अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोविड-19 के दौरान विश्व सैन्य खर्च में वृद्धि: SIPRI
चर्चा में क्यों?
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा प्रकाशित नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया भर में सैन्य खर्च 1,981 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- विश्व सैन्य खर्च में 2.6% की वृद्धि ऐसे वर्ष में हुई जब वैश्विक जीडीपी कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभावों के कारण 4.4% तक सिकुड़ गई है।
प्रमुख बिंदु:
वैश्विक परिदृश्य:
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में वर्ष 2020 में सैन्य खर्च का वैश्विक औसत 2.4% तक पहुँच गया है, जो कि वर्ष 2019 में 2.2% पर था।
- वर्ष 2020 में पाँच सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्त्ता: संयुक्त राज्य अमेरिका> चीन> भारत> रूस> यूनाइटेड किंगडम। ये देश संयुक्त तौर पर कुल 62% वैश्विक सैन्य खर्च के लिये उत्तरदायी थे।
- अमेरिका: सात वर्ष की लगातार कटौती के बाद वर्ष 2020 अमेरिकी सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार तीसरा वर्ष रहा है।
- यह चीन और रूस जैसे रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के कथित खतरे को लेकर बढ़ती चिंताओं और अमेरिकी सैन्य क्षमता को मज़बूत करने को लेकर ट्रंप प्रशासन के प्रयासों को दर्शाता है।
- चीन: चीन का खर्च लगातार 26 वर्षों से बढ़ा है, SIPRI सैन्य व्यय डेटाबेस में किसी भी देश द्वारा निर्बाध वृद्धि की यह सबसे लंबी शृंखला है।
- अमेरिका: सात वर्ष की लगातार कटौती के बाद वर्ष 2020 अमेरिकी सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार तीसरा वर्ष रहा है।
- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के लगभग सभी सदस्यों ने वर्ष 2020 में अपने सैन्य व्यय में बढ़ोतरी की है।
- वर्ष 2020 में सैन्य व्यय में वृद्धि वाले शीर्ष 15 देशों में सऊदी अरब, रूस, इज़रायल और अमेरिका शीर्ष पर थे।
क्षेत्रीय परिदृश्य:
- यूरोप: वर्ष 2020 में यूरोप में सैन्य खर्च 4.0% बढ़ा है।
- जर्मनी और फ्राँस वैश्विक स्तर पर 7वें और 8वें सबसे बड़े व्ययकर्त्ता के रूप में उभरे हैं।
- एशिया और ओशिनिया: चीन के अलावा, भारत (72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर), जापान (49.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर), दक्षिण कोरिया (45.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और ऑस्ट्रेलिया (27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) एशिया और ओशिनिया क्षेत्र में सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्त्ता थे।
- सभी चार देशों ने वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के बीच 2011-20 के दशक में अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की।
- उप-सहारा अफ्रीका: वर्ष 2020 में उप-सहारा अफ्रीका में सैन्य खर्च में 3.4% वृद्धि हुई है और यह 18.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- खर्च में सबसे बड़ी वृद्धि साहेल क्षेत्र में स्थित देशों- चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजीरिया के साथ-साथ युगांडा द्वारा की गई।
- दक्षिण अमेरिका: दक्षिण अमेरिका में सैन्य व्यय में 2.1% की गिरावट आई।
- यह कमी काफी हद तक इस क्षेत्र के सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्ता ब्राज़ील के खर्च में 3.1% की गिरावट के कारण देखी गई।
- मध्य-पूर्वी देश: 11 मध्य-पूर्वी देशों ने संयुक्त सैन्य खर्च में वर्ष 2020 में 6.5% तक की कमी की है।
- पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के नौ सदस्यों में से आठ ने वर्ष 2020 में अपने सैन्य खर्च में कटौती की है।
- अंगोला के सैन्य व्यय में 12%, सऊदी अरब के सैन्य व्यय में 10% और कुवैत के सैन्य व्यय में 5.9% कमी हुई है।
- गैर-ओपेक तेल निर्यातक देश बहरीन ने भी अपने खर्च में 9.8% की कटौती की है।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत वर्ष 2020 में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य व्यय करने वाला देश था।
- भारत का कुल सैन्य व्यय तकरीबन 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि वैश्विक सैन्य व्यय का 3.7% है।
- वर्ष 2019 के बाद से भारत का सैन्य व्यय 2.1% बढ़ा है। इस वृद्धि का कारण काफी हद तक पाकिस्तान के साथ जारी संघर्ष और चीन के साथ सीमा तनाव को माना जा सकता है।
- पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी सैन्य टकराव ने निश्चित रूप से मई 2020 की शुरुआत में भारत को विदेशों से कई आपातकालीन हथियारों की खरीद करने के लिये प्रेरित किया।
- भारत के वार्षिक सैन्य व्यय में 33 लाख वयोवृद्ध और सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों के लिये एक विशाल पेंशन फंड भी शामिल है।
- उदाहरणार्थ वर्ष 2021-2022 के रक्षा बजट में कुल 4.78 लाख करोड़ रुपए परिव्यय में से 1.15 लाख करोड़ रुपए पेंशन फंड का था।
- चीन और पाकिस्तान के साथ दो सक्रिय सीमा विवादों के कारण भारत के पास 15 लाख से अधिक कर्मियों वाला एक मज़बूत सशस्त्र बल मौजूद है।
- नतीजतन रक्षा बजट में दिन-प्रतिदिन की लागत और वेतन संबंधी राजस्व व्यय, सैन्य आधुनिकीकरण के लिये पूंजीगत परिव्यय से अधिक हो जाता है, जिसके कारण लड़ाकू विमानों से लेकर पनडुब्बियों तक विभिन्न मोर्चों पर सशस्त्र बलों को परिचालन संबंधी आपूर्ति की कमी का सामना करना पड़ता है।
- कमज़ोर घरेलू रक्षा-औद्योगिक आधार के कारण भारत, सऊदी अरब के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़े हथियार आयातक देश है, जो भारत की रणनीतिक स्थिति को कमज़ोर करता है।
- वर्ष 2016-2020 के दौरान भारत ने कुल वैश्विक हथियार आयात का 9.5% हिस्सा प्राप्त किया था ।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट:
- यह थिंक टैंक संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निशस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
- यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता को सार्वजनिक रूप से मौजूद स्रोतों के आधार पर डेटा, विश्लेषण और सिफारिशें प्रदान करता है।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
फसल विविधीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक विख्यात कृषि अर्थशास्त्री ने सुझाव दिया है कि पशु कृषि/पशुपालन का उपयोग फसल विविधीकरण को बेहतर अवसर प्रदान करते है।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- फसल विविधीकरण से तात्पर्य नई फसलों या फसल प्रणालियों से कृषि उत्पादन को जोड़ने से है, जिसमें एक विशेष कृषि क्षेत्र पर कृषि उत्पादन के पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्यवर्द्धित फसलों से विभिन्न तरीकों से लाभ मिल रहा है।
- फसल प्रणाली: यह फसलों, उनके अनुक्रम और प्रबंधन तकनीकों को संदर्भित करता है जिसका उपयोग किसी विशेष कृषि क्षेत्र में वर्षों से किया जाता है।
- प्रकार: भारत में प्रमुख फसल प्रणाली इस प्रकार है- क्रमिक फसल, एकल फसली व्यवस्था (Mono-Cropping), अंतर फसली (Intercropping), रिले क्रॉपिंग (Relay cropping), मिश्रित अंतर फसली (Mixed intercropping), अवनालिका फसल (Alley cropping)।
- अधिकतर किसान आजीविका और आय के मानकों को बढ़ाने के लिये मिश्रित फसल-पशुधन प्रणाली का भी उपयोग करते हैं।
- पशुपालन या पशुकृषि विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं (जैसे-गाय-भैस, कुत्ते, भेड़ और घोड़ा) के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है।
- पशुपालन से तात्पर्य पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन से है। यह एक प्रकार का पशु प्रबंधन तथा देखभाल है, जिसमें लाभ के लिये पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है। यह कृषि की एक शाखा है।
प्रकार:
लाभ:
- छोटी भूमि पर आय में वृद्धि:
- वर्तमान में 70-80% किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इसे दूर करने के लिये मौजूदा फसल के पैटर्न को उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे कि मक्का, दाल, इत्यादि का विविधीकरण किया जाना चाहिये।
- हरियाणा राज्य सरकार द्वारा जल संरक्षण के उद्देश्य से ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ (Mera Pani Meri Virasat) योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के माध्यम से राज्य सरकार पानी की अधिक खपत वाले धान के स्थान पर ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करेगी जिनके लिये कम पानी की आवश्यकता होती है। योजना के तहत, आगामी खरीफ सीज़न के दौरान धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसलों की बुवाई करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रति एकड़ 7,000 रुपए भी प्रदान किये जाएंगे।
- आर्थिक स्थिरता:
- फसल विविधीकरण विभिन्न कृषि उत्पादों की कीमत में उतार-चढ़ाव को बेहतर ढंग से वहन कर सकता है और यह कृषि उत्पादों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।
- प्राकृतिक आपदाओं को कम करना:
- जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) तथा अजैविक (सूखा, क्षारीयता, जलाक्रांति, गरमी, ठंड तथा पाला) पारिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है। इस परिस्थिति में मिश्रित फसल के माध्यम से फसल विविधीकरण उपयोगी हो सकता है।
- संतुलित भोजन की मांग:
- अधिकांश भारतीय आबादी कुपोषण से पीड़ित है। ज़्यादातर महिलाओं में एनीमिया होता है। खाद्य टोकरी में (दलहन, तिलहन, बागवानी और सब्जी) गुणवत्ता बढ़ाकर सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं और खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के उद्देश्य से मृदा स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।
- भारत सरकार ने अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के माध्यम से दलहन और तिलहन के क्षेत्र में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा है।
- संरक्षण:
- फसल विविधीकरण को अपनाने से प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद मिलती है, जैसे कि चावल-गेहूँ की फसल प्रणाली में फलियाँ लगाना, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करने के लिये वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करने की क्षमता रखती है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) की सहायता से किसान अपने खेतों की मृदा के बेहतर स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिये पोषक तत्त्वों का उचित मात्रा में उपयोग करने के साथ ही मृदा की पोषक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
चुनौतियाँ:
- देश में बहुतायत फसल क्षेत्र पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर है।
- भूमि और जल संसाधनों जैसे संसाधनों का दोहन और अधिकतम उपयोग, पर्यावरण और कृषि की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- जीवाश्म ईंधन के बाद मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में पशु कृषि का दूसरा सबसे बड़ा योगदान है और यह वनों की कटाई, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान का एक प्रमुख कारण है।
- उन्नत खेती द्वारा बीज और पौधों की अपर्याप्त आपूर्ति में सुधार करना।
- कृषि के आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के पक्ष में भूमि का विखंडन।
- ग्रामीण सड़क, बिजली, परिवहन, संचार आदि कमज़ोर बुनियादी ढाँचे।
- फसल कटाई के पश्चात् अपर्याप्त प्रौद्योगिकियों और ख़राब होने वाले बागवानी उत्पादों के कटाई के पश्चात् उनका प्रबंधन करने के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे।
- कमज़ोर कृषि आधारित उद्योग।
- कमज़ोर अनुसंधान- उनका विस्तार - किसान संबंध।
- किसानों के बड़े पैमाने पर निरक्षरता के साथ अपर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन।
- अधिकांश फसल और पौधों को प्रभावित करने वाले रोगों और कीटों की अधिकता।
- बागवानी फसलों के लिये खराब डेटाबेस।
- कई वर्षों से कृषि के क्षेत्र में निवेश में कमी देखी गई है।
अन्य संबंधित पहल:
- रेफ्रिजरेशन सिस्टम पूसा- FSF
- कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- मेगा फ़ूड पार्क
- बीज-हब केंद्र
आगे की राह:
- हालाँकि ऐसी चुनौतियाँ हैं जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन फसल विविधीकरण किसानों की आय दोगुनी और राष्ट्र को खाद्य सुरक्षा संपन्न बनाने का एक अवसर प्रदान करता है।
- इसलिये, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूँ और चावल के अलावा उत्पादित फसलों को खरीदकर फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिये। इससे घटते भूमिगत जलस्तर आपूर्ति के संरक्षण में भी मदद मिल सकती है।
- कृषि उत्सर्जन को स्मार्ट पशुधन प्रबंधन, उर्वरक अनुप्रयोग में प्रौद्योगिकी-सक्षम निगरानी तंत्र, क्षेत्रीय ढाँचे में सरल परिवर्तन और अन्य अधिक कुशल कृषि तकनीकों के माध्यम से भी सीमित किया जा सकता है ।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दंतक परियोजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation-BRO) की सबसे पुरानी परियोजनाओं में से एक ‘दंतक परियोजना’ (Project DANTAK) ने भूटान में अपनी ‘डायमंड जुबली’ पूरी की है।
- भूटान में महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना का निर्माण करते समय 1,200 से अधिक दंतक कर्मियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है।
प्रमुख बिंदु
दंतक परियोजना के विषय में:
- इस परियोजना की स्थापना 24 अप्रैल, 1961 को हुई थी।
- यह भूटान के तीसरे राजा और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम था।
- दंतक परियोजना के तहत अग्रणी मोटर योग्य सड़कों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
उपलब्धियाँ:
- सड़क संपर्क:
- इस परियोजना के अंतर्गत पिछले कुछ वर्षों में भूटान में 5000 मीटर लंबे पुलों के साथ लगभग 1600 किमी. ब्लैकटॉप मार्ग और 120 किलोमीटर लंबा ट्रैक तैयार किया गया है।
- अन्य निष्पादित परियोजनाएँ:
- इस परियोजना द्वारा निष्पादित कुछ अन्य उल्लेखनीय परियोजनाओं में पारो हवाई अड्डा, योनफुला एयरफील्ड, थिम्फू-त्रासीगंग राजमार्ग, दूरसंचार और हाइड्रो पॉवर इंफ्रास्ट्रक्चर, शेरुबसे कॉलेज, कांग्लुंग तथा इंडिया हाउस एस्टेट का निर्माण शामिल है।
- चिकित्सा और शिक्षा सुविधाएँ:
- दंतक परियोजना द्वारा सुदूरवर्ती क्षेत्रों में पहली बार चिकित्सा और शिक्षा सुविधाएँ स्थापित की गईं।
- भोजन बिक्री केंद्र:
- सड़क के किनारे भोजन की दुकानों ने भूटानी लोगों को भारतीय व्यंजनों से परिचित कराया।
भारत-भूटान संबंध:
भारत-भूटान की शांति और मित्रता संधि, 1949:
- यह संधि अन्य बातों के अलावा स्थायी शांति तथा मित्रता, मुक्त व्यापार तथा वाणिज्य और एक-दूसरे के नागरिकों को समान न्याय प्रदान करने पर ज़ोर देती है।
- इस संधि को वर्ष 2007 में संशोधित किया गया, जिसमें भारत द्वारा भूटान को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति निर्धारित करने के लिये प्रेरित किया गया।
बहुपक्षीय भागीदारी:
- दोनों देश दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल), बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे महत्त्वपूर्ण बहुपक्षीय मंच साझा करते हैं।
आर्थिक भागीदारी:
- भूटान के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी जल विद्युत सहयोग , दोनों देशों के द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग का मूल आधार है।
- भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अगस्त 2019 में 720 मेगावाट की मांगदेछु जल विद्युत परियोजना का उद्घाटन किया गया था, जिसका कार्यान्वयन 1200 MW पुनात्संगछु-I, 1020 मेगावाट पुनात्संगछु-II और खोलोंगचू HEP (600 MW) विभिन्न चरणों में हो रहा है।
- भारत, भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
सीमा सड़क संगठन
- इस संगठन की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा वर्ष 1960 में देश के उत्तर और उत्तर-पूर्वी सीमा क्षेत्रों में सड़कों के नेटवर्क के त्वरित विकास के लिये की गई थी।
- यह रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है।
- यह एयरफील्ड, बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स, डिफेंस वर्क्स और सुरंग निर्माण तथा विकास जैसे विभिन्न कार्यों में संलग्न है।
- हाल की कुछ उपलब्धियाँ:
- अटल सुरंग: यह हिमाचल प्रदेश के रोहतांग पास में स्थित है। यह मनाली के पास सोलांग घाटी को लाहौल और स्पीति ज़िले से जोड़ती है।
- नेचिपु सुरंग: यह अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले में बालीपारा-चारुदर-तवांग (बीसीटी) मार्ग पर स्थित है।
- दापोरिजो पुल: यह अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी नदी के ऊपर स्थित है।
- कासोवाल पुल: यह पूल रावी नदी के ऊपर स्थित है और पंजाब में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास कसोवाल एन्क्लेव को देश के शेष हिस्सों से जोड़ता है।
- दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड: यह उत्तरी सीमा के पास दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) पोस्ट को दक्षिणी श्योक नदी घाटी में स्थित दारबुक और श्योक गाँवों के माध्यम से लेह से जोड़ता है।
- बरसी पुल (मनाली-लेह राजमार्ग पर सबसे लंबा पुल): इस पुल को बग्गा (Bagga) नदी पर बनाया गया है, जो लाहौल में टांडी में चंद्रा नदी के साथ मिलकर जम्मू और कश्मीर में चिनाब के रूप में बहती है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
चांडलर गुड गवर्नेंस इंडेक्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चांडलर ‘गुड गवर्नेंस इंडेक्स’ (CGGI) में भारत को 49वाँ स्थान प्राप्त हुआ।
- इस सूची में फिनलैंड शीर्ष स्थान पर है।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- CGGI को चांडलर इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस द्वारा जारी किया गया है। यह एक निजी गैर-लाभकारी संगठन है जिसका मुख्यालय सिंगापुर में स्थित है।
- यह सूचकांक 104 देशों के सरकारी क्षमताओं और परिणामों को वर्गीकृत करता है।
- प्रत्येक देश को 50 से अधिक खुले डेटा बिंदुओं पर मापा जाता है। यह सूचकांक सात स्तंभों या मापदंडो पर केंद्रित है :
- नेतृत्त्व और दूरदर्शिता।
- मज़बूत कानून और नीतियाँ।
- मज़बूत संस्थाएँ।
- वित्तीय सहायता।
- आकर्षक बाज़ार।
- वैश्विक प्रभाव और प्रतिष्ठा।
- लोगों को समर्थ बनाने में मदद करना।
उद्देश्य:
- यह राष्ट्र निर्माण में दुनिया भर के सरकारी नेताओं और सार्वजनिक अधिकारियों का समर्थन करता है और प्रशिक्षण, अनुसंधान, सलाहकारी गतिविधियों के माध्यम से सार्वजनिक संस्थागत क्षमता को मज़बूत करता है।
- यह प्रभावी नीति निर्धारण के लिये उपकरण और रूपरेखा भी साझा करता है, और नागरिकों के लिये बेहतर सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये राष्ट्रों को सशक्त बनाता है।
दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शन:
- भारत 49वें स्थान पर, श्रीलंका 74वें, पाकिस्तान 90वें और नेपाल 92वें स्थान पर है।
सुशासन के लिये भारतीय पहल:
- सुशासन सूचकांक:
- देश में शासन की स्थिति प्रभावों का आकलन करने के लिये ‘कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय’ (The Ministry of Personnel, Public Grievances & Pensions) द्वारा सुशासन सूचकांक (Good Governance Index- GGI) की शरुआत की गई है।
- जिसके द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों सहित केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जनता के हित में किये गए विभिन्न हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन किया जा सके।
- सुशासन दिवस :
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर 25 दिसंबर को प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- इसका उद्देश्य भारत के नागरिकों के मध्य सरकार की जवाबदेही के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
- राष्ट्रीय ई-शासन योजना:
- "सभी सरकारी सेवाओं को सार्वजनिक सेवा प्रदाता केंद्र के माध्यम से आम आदमी तक पहुँचाना और आम आदमी की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इन सेवाओं में कार्यकुशलता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना" यह दृष्टिकोण अच्छे शासन को सुनिश्चित करने के लिये सरकार की प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005:
- यह शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में प्रभावी भूमिका निभाता है।
- अन्य पहल::
- नीति आयोग, मेक इन इंडिया, लोकपाल इत्यादि की स्थापना।
शासन व्यवस्था
परिचय:
- यह निर्णय लेने तथा इन निर्णयों के कार्यान्वयन (यह लागू नहीं किये जाते है) की एक प्रक्रिया है।
- शासन शब्द का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन, राष्ट्रीय प्रशासन और स्थानीय शासन।
सुशासन:
- यह सरकार को एक दृष्टिकोण प्रदान करता है जो न्याय और शांतिप्रिय तंत्र बनाने के लिये प्रतिबद्ध है जो व्यक्ति के मानव अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा बताए गए सुशासन के 8 सिद्धांत या लक्षण:
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोविड-19 संकट: अमेरिका एवं भारत
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोविड -19 महामारी के लिये टीकों की आपूर्ति शृंखला के सुचारू क्रियान्वयन तथा महामारी से संबंधित अन्य मुद्दों को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के मध्य टेलीफोन पर बातचीत की गई।
- टेलीफोन पर हुई वार्ता न केवल अमेरिका से टीकों की आपूर्ति शृंखला को सुनिश्चित करने से संबंधित थी , बल्कि इस दौरान उन संसाधनों की कमी पर भी चर्चा की गई जिनके आभाव के कारण भारत में वायरस संक्रमण और मौतों की संख्या तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है।
- इससे पहले वर्ष 2020 में भारत और अमेरिका ने कोविड-19 हेतु वैक्सीन अनुसंधान और परीक्षण पर एक साथ कार्य करने की योजना बनाई थी।
प्रमुख बिंदु:
द्विपक्षीय चर्चा:
- भारत द्वारा विकासशील देशों के लिये टीकों और दवाओं की त्वरित और सस्ती पहुंँच सुनिश्चित करने के लिये ‘ट्रिप्स’ यानी ‘ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स’ समझौते के मानदंडों में छूट हेतु विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) में की गई अपनी पहल पर चर्चा की।
- वर्ष 1995 में लागू यह समझौता सदस्य देशों को अपने अधिकार क्षेत्र में बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों का कुशल संरक्षण और प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये सदस्य देशों पर बाध्यकारी दायित्त्व को लागू करके बौद्धिक संपदा (IP) संरक्षण संबंधी प्रयासों में समन्वय स्थापित करता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार सस्ती दरों पर टीकों और दवाओं की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- भारत द्वारा विश्व स्तर पर कोविड-19 महामारी हेतु अपनी वैक्सीन मैत्री पहल तथा COVAX और क्वाड वैक्सीन पहल (Quad Vaccine Initiatives) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया गया।
- दोनों देशों द्वारा अपने-अपने देशों में उत्पन्न कोविड-19 की स्थिति पर चर्चा की गई, जिसमें भारत में चल रहे टीकाकरण प्रयासों के माध्यम से कोविड-19 की दूसरी लहर को नियंत्रित करने हेतु किये जा रहे प्रयास, महत्त्वपूर्ण दवाओं, चिकित्सीय और स्वास्थ्य देखभाल उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित करना आदि मुद्दे शामिल थे।
- दोनों देशों के संबंधों में हुई प्रगति:
- वर्ष 2020 में भारत-अमेरिका ‘व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी’ (Comprehensive Global Strategic Partnership) हेतु एक साथ आए थे।
- भारत और अमेरिका के मध्य भू-स्थानिक सहयोग के लिये ‘बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते’ (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-Spatial Cooperation- BECA) पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके तहत दोनों देशों के मध्य रक्षा संबंधों को मज़बूत करने हेतु चार आधारभूत समझौते शामिल है।
- अन्य कई प्रमुख मुद्दों में दोनों देशों की सरकारों के मध्य निरंतर संवाद, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में साझा हित, क्षेत्रीय सहयोग, रक्षा संबंध तथा दोनों देशों द्वारा अप्रत्याशित चुनौतियों का मिलकर मुकाबला करना आदि शामिल हैं।
भारत का अनुरोध:
- भारत द्वारा अमेरिका से कोविड-19 से संबंधित टीकों, दवाओं, और चिकित्सीय उपकरणों के निर्माण हेतु आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति शृंखला को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- भारत द्वारा अमेरिका से सात आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति हेतु अनुरोध किया गया है, जिसकी तत्काल आवश्यकता है। इनमें ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स (Oxygen Concentrators), ऑक्सीजन सिलेंडर (Oxygen Cylinders), ऑक्सीजन जनरेटर (Oxygen Generators), ऑक्सीजन जेनरेशन प्लांट (Oxygen Generation Plants), रेमेडिसविर (Remdesivir), फेविविरविर (Favipiravir) और टोसीलिज़ुमाब (Tocilizumab) शामिल हैं।
अमेरिका की पहल:
- अमेरिका ने अपने वैक्सीन फिल्टर के लंबित आदेश को भारतीय वैक्सीन निर्माताओं को दे दिया है, जिससे भारत को और अधिक वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी।
- अमेरिका ने भारत में कोविशील्ड वैक्सीन (Covishield Vaccine) के निर्माण हेतु आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
अन्य देशों द्वारा भारत की मदद:
- सिंगापुर द्वारा भारत को चार ‘क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंक’ (Cryogenic Oxygen Tanks) उपलब्ध कराए गए हैं।
- ब्रिटेन ने कोरोना महामारी से मुकाबले के लिये भारत को 600 से अधिक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा उपकरण प्रदान करने की घोषणा की है।
- ऑस्ट्रेलिया ने घोषणा की है कि वह तत्काल समर्थन पैकेज के हिस्से के रूप में भारत को ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) उपलब्ध कराएगा।
- सऊदी अरब द्वारा भारत को 80 मीट्रिक टन तरल ऑक्सीजन प्रदान किया गया है।
- जर्मनी द्वारा भारत के लिये ‘मिशन ऑफ सपोर्ट’ तैयार किया जा रहा है।
- रूस ने घोषणा की है कि वह भारत को 3,00,000-4,00,000 यूनिट रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remdesivir Injection) उपलब्ध कराएगा, इसके अलावा रूस ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स (Oxygen Concentrators), जनरेटर (Generators) और दवा आदि उपलब्ध कराने की भी योजना बना रहा है।
- चीन ने भी घोषणा की है कि वह भारत की अवश्यकाओं के आधार पर सहायता और आवश्यक सहयोग प्रदान करेगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
पॉवर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पॉवर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (Power Grid Corporation of India) ने अपना इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT) - पॉवर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (Power Grid Infrastructure Investment Trust- PGInvIT) लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
पॉवर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के विषय में:
- यह पहली बार है जब एक राज्य के स्वामित्व वाली इकाई ‘इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट’ के माध्यम से अपनी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण कर रही है।
- यह ‘IRB InvIT’ और ‘इंडिया ग्रिड ट्रस्ट’ के बाद भारतीय बाज़ारों में सूचीबद्ध होने वाला तीसरा InvIT होगा। ‘IRB InvIT’ और ‘इंडिया ग्रिड ट्रस्ट’ दोनों को ही वर्ष 2017 में सार्वजनिक किया गया था।
- सरकारी सहायता पर निर्भर हुए बिना धन संबंधी आवश्यकताओं का प्रबंधन करने हेतु राज्य-संचालित कंपनियों को एक वैकल्पिक धन संग्रहण मार्ग प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा InvIT मार्ग प्रस्तावित किया गया था।
पॉवर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
- यह विद्युत मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी है।
- यह देश की सबसे बड़ी बिजली ट्रांसमिशन कंपनी है।
- इसने अपना व्यावसायिक संचालन वर्ष 1992-93 में शुरू किया था और वर्तमान में यह एक महारत्न कंपनी है।
इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के विषय में:
- यह म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) की तरह ही एक सामूहिक निवेश योजना है, जो अवसंरचना परियोजनाओं में व्यक्तिगत और संस्थागत निवेशकों से प्राप्त राशि के प्रत्यक्ष निवेश को संभव बनाती है और निवेशकों को इस पर आय का छोटा हिस्सा अर्जित करने का अवसर मिलता है।
- InvITs को ‘रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट’ (Real Estate Investment Trust-ReIT) के संशोधित संस्करण के रूप में देखा जा सकता है, जिसे फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप डिज़ाइन किया गया है।
- इसे प्रायः आय सृजन और परिचालन योग्य बुनियादी अवसंरचना जैसे- सड़क, बिजली ट्रांसमिशन लाइनों और गैस पाइपलाइनों आदि के निर्माण के लिये बनाया गया है।
- इन संपत्तियों के पास मज़बूत और दीर्घकालिक अनुबंध होते हैं, जो दीर्घकाल (15-20 वर्ष) तक स्थिर नकदी प्रवाह प्रदान करते हैं।
- इसे सेबी (इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) विनियम, 2014 द्वारा विनियमित किया जाता है।
- इसके पास भी म्यूचुअल फंड की तरह ट्रस्टी, प्रायोजक, निवेश प्रबंधक एवं परियोजना प्रबंधक होते हैं।
- ट्रस्टी (Trustee) के पास InvIT के प्रदर्शन का निरीक्षण करने की दायित्त्व होता है।
- प्रायोजक (Sponsor) कंपनी के प्रमोटर होते हैं, जिन्होंने InvIT स्थापित किया है।
- निवेश प्रबंधक (Investment Manager) को InvIT की परिसंपत्तियों एवं निवेशों की देखरेख का कार्य सौंपा जाता है।
- परियोजना प्रबंधक (Project Manager) परियोजना के निष्पादन जे लिये उत्तरदायी होता है।
- InvITs इकाइयों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जा सकता है, जिससे इन्हें तरलता प्राप्त होती है।
- ये निजी और गैर-सूचीबद्ध भी हो सकती हैं, ऐसी स्थिति में उनका सार्वजनिक रूप से कारोबार नहीं होता है और उनमें मुख्य रूप से संस्थागत निवेशकों द्वारा निवेश किया जाता है।
InvITs स्थापित करने के लाभ:
- ये प्रायोजकों (इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स) को राजस्व उत्पन्न करने वाली परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करने, इक्विटी लाभ प्राप्त करने और अपने ऋण को कम करने के लिये सुविधाजनक मार्ग प्रदान करता है।
- InvITs अधिक कर-अनुकूल संरचना भी प्रस्तुत करते हैं। एक ट्रस्ट होने के कारण InvIT की अंतर्निहित परिसंपत्तियों से प्राप्त की गई आय कर योग्य नहीं होती है।
- ये बैंकों, वित्तीय संस्थानों, पेंशन फंड, बीमा कंपनियों और खुदरा निवेशकों आदि को कम जोखिम के निवेश अवसर प्रदान करते हैं।
InvITs के नुकसान:
- ये विनियामक और कर कानून में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- भारत में अवसंरचना परिसंपत्तियाँ से संबद्ध नहीं होती हैं।
- जबकि InvITs के प्रदर्शन पर मुद्रास्फीति की उच्च दर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अर्मेनियाई नरसंहार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने वर्ष 1915-16 में ऑटोमन तुर्कों (Ottoman Turks) द्वारा अर्मेनियाई लोगों की सामूहिक हत्याओं को आधिकारिक तौर पर ‘नरसंहार’ (Genocide) के रूप में मान्यता दे दी है।
- अर्मेनियाई प्रवासी 24 अप्रैल को ‘अर्मेनियाई नरसंहार स्मरण दिवस’ (Armenian Genocide Remembrance Day) के रूप में चिह्नित करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
नरसंहार का अर्थ:
- संयुक्त राष्ट्र के ‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ (दिसंबर 1948) के अनुच्छेद II के अनुसार, ‘नरसंहार का आशय एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से नष्ट करने के उद्देश्य से किये गए कृत्य से है।
- वर्ष 1943 में पोलिश वकील राफेल लेमकिन (Raphael Lemkin) द्वारा सर्वप्रथम ‘नरसंहार’ शब्द का प्रयोग किया गया था।
अर्मेनियाई नरसंहार:
- अर्मेनियाई नरसंहार को 20वीं सदी का पहला नरसंहार कहा जाता है।
- यह वर्ष 1915 से 1917 तक तुर्क साम्राज्य में हुए अर्मेनियाई लोगों के व्यवस्थित विनाश को उल्लेखित करता है।
- नवंबर 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद, ऑटोमन तुर्कों ने जर्मनी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के साथ युद्ध में भाग लिया।
- ऑटोमन तुर्कों का विश्वास था कि अर्मेनियाई लोग युद्ध में रूस का साथ देगे, इसके परिणामस्वरूप ऑटोमन तुर्क पूर्वी सीमा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अर्मेनियाई लोगों को हटाने के अभियान में शामिल हो गए।
- 24 अप्रैल, 1915 को ऑटोमन तुर्की सरकार के हज़ारों अर्मेनियाई बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया और उन्हें मार डाला। यही ‘अर्मेनियाई नरसंहार’ की शुरुआत थी।
- आर्मीनियाई परिवारों और छोटे बच्चों को सीरिया और अरब के रेगिस्तानों में बिना भोजन, पानी और आश्रय के कई दिनों चलने के लिये मज़बूर किया गया।
- एक अनुमान के अनुसार, उपचार के अभाव, दुर्व्यवहार, भुखमरी और नरसंहार के कारण इस दौरान लगभग 1.5 लाख आर्मीनियाई लोगों की मृत्यु हुई थी।
इस मान्यता का महत्व:
- अमेरिका द्वारा इसे नरसंहार की मान्यता प्रदान करने से इसका तुर्की पर कानूनी प्रभाव पड़ेगा तथा अन्य देशों के द्वारा भी ऐसी मान्यता प्रदान किये जाने से तुर्की के सामने समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- अर्मेनियाई राष्ट्रीय संस्थान के अनुसार, 30 देश आधिकारिक रूप से अर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता देते हैं।
तुर्की की प्रतिक्रिया:
- इस तरह के कदमों से अमेरिका और तुर्की के मध्य संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं, दोनों ही देश उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization Allies) में सहयोगी हैं।
- रूस से एस-400 रक्षा प्रणालियों की खरीद, सीरिया के संबंध में विदेश नीति में मतभेद, मानवाधिकारों और अन्य कानूनी मुद्दों को सुलझाने के साथ विदेश नीति में उत्पन्न मतभेदों ने अमेरिका और तुर्की के मध्य संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
- तुर्की द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया है कि अर्मेनियाई लोगों पर अत्याचार किये गए थे, लेकिन इस बात से इनकार करता है कि यह एक नरसंहार था, साथ ही तुर्की इस दौरान 1.5 लाख लोगों की मृत्यु की बात को भी चुनौती देता है।
भारत का रुख:
- भारत, जिसने औपचारिक रूप से अर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं दी है, ने मुख्य रूप से इस क्षेत्र में अपने व्यापक विदेश नीति निर्णयों और भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए अपना पक्ष रखा है।
- यद्यपि भारत द्वारा नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की गई है, किंतु भारत के पास नरसंहार से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘राज्य बनाम सज्जन कुमार’ (2018) वाद में वर्ष 1984 में दिल्ली और पूरे देश में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान सिखों की सामूहिक हत्या के मामले का अवलोकन किया गया था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘राज्य बनाम सज्जन कुमार’ (2018) वाद में वर्ष 1984 में दिल्ली और पूरे देश में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान सिखों की सामूहिक हत्या के मामले का अवलोकन किया गया था।
- यद्यपि भारत द्वारा नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की गई है, किंतु भारत के पास नरसंहार से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है।
आर्मीनिया से संबंधित अन्य समाचार:
- अर्मेनिया-अजरबैजान संघर्ष:
- हाल ही में रूस की मध्यस्थता से आर्मीनिया और अज़रबैजान के मध्य एक नया शांति समझौता किया गया है। दोनों देश दक्षिण काकेशस में नागोर्नो-करबख के विवादित क्षेत्र पर सैन्य संघर्ष में उलझे हुए थे।
- नागोर्नो-करबख संघर्ष का प्रमुख केंद्र अज़रबैजान में स्थित है, जहाँ की अधिकतर आबादी अर्मेनियाई जातीयता समूह की है (अज़रबैजान की शिया मुस्लिम बहुल आबादी की तुलना में अधिकतर ईसाई लोग)।