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दवा अनुमोदन प्रक्रिया में तीव्रता की आवश्यकता

  • 22 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

दवा अनुमोदन प्रक्रिया, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन

मेन्स के लिये

दवा अनुमोदन प्रक्रिया में तीव्रता की आवश्यकता और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने नई दवा की अनुमोदन प्रक्रिया (Approval Process) को सरल और तेज़ बनाने के उद्देश्य से गठित समिति की एक बैठक बुलाई है। 

प्रमुख बिंदु

  • उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि COVID-19 महामारी के मद्देनज़र देश में नई दवा के अनुमोदन की सुधार प्रक्रिया में तेज़ी लाना अनिवार्य हो गया है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में COVID-19 संक्रमण का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है और ऐसे में संक्रमित लोगों का इलाज करने के लिये रेमेडिसविर (Remdesivir) और फेवीपिरवीर (Favipiravir) जैसी दवाओं की तत्काल आवश्यकता है।
  • ऐसे में देश में क्लीनिकल ट्रायल की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के साथ-साथ नई दवाओं के विपणन अनुमोदन (Marketing Approval) में भी तेज़ी लाने की आवश्यकता है।

 काफी लंबी है विपणन अनुमोदन की प्रक्रिया

  • वर्तमान में भारत में किसी भी नई दवा के अनुमोदन (Approval) की सामान्य समय सीमा लगभग छह से नौ महीने की है, यहाँ तक ​​कि उन दवाओं के लिये भी इतना ही समय लगता है जिन्हें किसी अन्य देश द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है।
  • दवा के क्लीनिकल ट्रायल की सफलता के बाद दवा निर्माता सभी प्रासंगिक डेटा के साथ नियामक एजेंसियों के समक्ष विपणन अनुमोदन के लिये आवेदन करता है।
  • किसी दवा के क्लीनिकल ट्रायल में ही अनुमानतः 3 वर्ष से 10 वर्ष का समय लगता है, हालाँकि मौजूदा महामारी को देखते हुए इस समयावधि को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • ये नियामक एजेंसियाँ सभी देशों में दवाओं के विनियमन हेतु एक विशिष्ट एजेंसी के रूप में कार्य करती हैं। यही एजेंसियाँ किसी दवा के विपणन का अनुमोदन देती हैं और यही एजेंसियाँ संदेह अथवा विवाद की स्थिति में दवाओं के विपणन अनुमोदन को रद्द करती हैं। 
  • भारत में यह कार्य केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) द्वारा संपन्न किया जाता है।

समाधान

  • प्रक्रिया के अनुसार, किसी भी दवा निर्माता कंपनी को अपना प्रस्ताव एक विषय विशेषज्ञ समिति (Subject Expert Committee-SEC) के समक्ष समीक्षा के लिये प्रस्तुत करना होता है। 
  • विदित है कि फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) ने हाल ही में एक प्रस्ताव दिया था कि अमेरिका, यूरोपीय देशों और कनाडा तथा जापान जैसे देशों द्वारा पहले ही अनुमोदित दवाओं को CDSCO द्वारा SEC के समक्ष प्रस्तुत किये बिना ही मंज़ूरी दी जानी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त ‘ऑर्फन ड्रग’ (Orphan Drugs) को इस प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जानी चाहिये। ‘ऑर्फन ड्रग’ वे दवाएँ होती हैं, जिनका निर्माण काफी दुर्लभ रोगों के इलाज के लिये किया जाता है, और बिना सरकारी सहायता के इन दवाओं का निर्माण दवा निर्माता के लिये नुकसानदायक हो सकता है।

क्लीनिकल ट्रायल का अर्थ

  • क्लीनिकल ट्रायल (नैदानिक परीक्षण) का अभिप्राय ऐसे शोध या अध्ययन से होता है, जिनका उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि कोई चिकित्सकीय प्रणाली, दवा या कोई चिकित्सकीय उपकरण मनुष्य के लिये सुरक्षित और प्रभावी है अथवा नहीं। 
  • इन शोधों का उद्देश्य अनुसंधान होता है, अतः इनके लिये सख्त वैज्ञानिक मानकों का पालन किया जाता है।
  • ऐसे परीक्षणों की शुरुआत आमतौर पर एक नए विचार या प्रयोग से होती है और उसके आशाजनक पाए जाने पर परीक्षण पशु पर किया जाता है। 
  • पशु पर क्लीनिकल परीक्षण का उद्देश्य यह जानना होता है कि कोई दवा या चिकित्सा पद्धति जीवित शरीर पर क्या प्रभाव छोड़ती है अथवा वह हानिकारक तो नहीं है।
  • हालाँकि जो परीक्षण प्रयोगशाला में अथवा जानवरों पर सकारात्मक परिणाम देते हैं, यह ज़रूरी नहीं है कि वे मनुष्यों पर भी वही परिणाम दें। अतः इनका मनुष्यों पर भी परीक्षण आवश्यक है।
  • पशुओं और मनुष्यों पर किये जाने वाले क्लीनिकल ट्रायल सदैव से ही संपूर्ण विश्व में विवाद का विषय रहे हैं।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) 

  • केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) भारतीय दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों के लिये एक राष्ट्रीय विनियामक निकाय है।
  • CDSCO को दवाओं के अनुमोदन, क्लीनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करने जैसे कार्य सौंपे गए हैं।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

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