अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ओपेक-रूस वार्ता स्थगित
- 06 Apr 2020
- 13 min read
प्रीलिम्स के लिये:पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन मेन्स के लिये:वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कच्चे तेल की घटती कीमतों को लेकर ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’- ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) और रूस के बीच होने वाली वार्ता को अगले सप्ताह तक के लिये स्थगित कर दिया गया है।
मुख्य बिंदु:
- रूस और सऊदी अरब के बीच कुछ मतभेदों के कारण 4 अप्रैल, 2020 को प्रस्तावित इस बैठक को स्थगित कर दिया गया है।
- हाल ही में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए ओपेक+ (समूह के स्थायी सदस्य और अन्य देश) देशों ने तेल उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया था।
- परंतु रूस ने वर्ष 2018 के समझौते के विपरीत पुनः तेल उत्पादन में कटौती करने से इनकार कर दिया था।
- इसके बाद सऊदी अरब ने कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि कर दी, जिससे बाज़ार में तेल की उपलब्धता अधिक होने के कारण कच्चे तेल के मूल्य में अभूतपूर्व गिरावट देखी गई है।
- तेल उत्पादक देशों के बीच वर्तमान में चल रहे विवाद के कारण ब्रेंट क्रूड ऑयल (Brent Crude Oil) का मूल्य 2 अप्रैल, 2020 को घटकर लगभग 33 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया था।
‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’
(Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC):
- OPEC एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1960 में इराक में आयोजित बगदाद सम्मेलन (10-14 सितंबर, 1960) के दौरान की गई थी।
- ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला इस संगठन के पाँच संस्थापक सदस्य हैं।
- वर्तमान में इस संगठन के सदस्य देशों की संख्या 14 है।
- OPEC के अनुसार, इस संगठन का उद्देश्य पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये उचित और स्थिर कीमतों को सुरक्षित करने, उपभोक्ता राष्ट्रों को पेट्रोलियम की एक कुशल, किफायती तथा नियमित आपूर्ति एवं तेल उद्योग में निवेश करने वालों के लिये एक उचित लाभ को सुनिश्चित करने हेतु सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों के समन्वय और एकीकरण को बढ़ावा देना है।
- OPEC का मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में स्थित है।
तेल कीमतों में गिरावट के कारण:
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग में कमी को देखते हुए तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती लाने के लिये किसी सहमति का अभाव।
- रूस द्वारा तेल उत्पादन में कटौती लाने से इनकार करने पर सऊदी अरब ने अपना तेल उत्पादन 9.8 मिलियन बैरल प्रति दिन से बढ़ाकर 12.3 मिलियन बैरल प्रति दिन करने की घोषणा कर दी थी।
- इसके अतिरिक्त COVID-19 के कारण वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में औद्योगिक गतिविधियों को स्थगित करना पड़ा है, जिससे तेल की मांग में गिरावट और तेज़ हुई है।
- ध्यातव्य है कि चीन विश्व का सबसे बड़ा तेल आयात करने वाला देश है, दिसंबर 2019 में COVID-19 के शुरूआती मामलों की पुष्टि के बाद देश में यातायात और अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध के कारण चीन ने तेल के आयात में भारी कटौती की है।
- COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू उड़ानों पर प्रतिबंधों के कारण विमानन ईंधन (Aviation Turbine Fuel) की खपत में अभूतपूर्व कमी आई है।
तेल कीमतों में गिरावट के प्रभाव:
- तेल उत्पादन क्षेत्र की कंपनियों का मुनाफा तेल निकासी (Oil Extraction) की लागत पर निर्भर करता है।
- वर्तमान में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में तेल उपलब्ध है परंतु पिछले कुछ वर्षों से तेल निकासी की लागत में वृद्धि हुई है और इसका प्रभाव कंपनियों के मुनाफे पर भी पड़ा है, ऐसे में तेल की कीमतों में गिरावट से इस क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- ‘हेंस और बून ऑयल पैच बैंकरप्सी मॉनिटर रिपोर्ट’ (Haynes and Boone's Oil Patch Bankruptcy Monitor Report) के अनुसार, वर्ष 2015 (जबसे तेल कीमतों में गिरावट देखी गई) से उत्तरी अमेरिका की 208 तेल उत्पादक कंपनियों ने स्वयं को दिवालिया घोषित किया।
- कच्चे तेल की कीमतों में कमी से तेल के निर्यात पर आश्रित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे- ईरान, वेनुजुएला, रूस आदि) को गंभीर क्षति होगी।
- तेल की कीमतों में आई गिरावट का प्रभाव निर्यात पर आश्रित देशों की अर्थव्यवस्था के साथ ही उनकी राजनीति पर भी देखने को मिलेगा, ऐसे में अधिक समय तक तेल की कीमतों में गिरावट का प्रभाव देश की आतंरिक एवं क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है।
तेल की कीमतों में गिरावट से भारत पर प्रभाव:
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से तेल के आयात पर होने वाले सरकारी खर्च में कमी आई है।
- मार्च 2014 और अप्रैल 2020 के बीच भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल का मूल्य प्रति बैरल 107 अमेरिकी डॉलर से घटकर 21 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गया है।
- हालाँकि मार्च 2014 और फरवरी 2020 के बीच खुदरा तेल बिक्री की कीमतों में बहुत कमी नहीं हुई है, उदाहरण के लिये इस अवधि के दौरान देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत में लगभग 1.82 रुपए प्रति लीटर की ही कमी की गई।
- जबकि इसी अवधि के दौरान तेल की बिक्री के माध्यम से केंद्र सरकार को शुल्क के रूप में प्राप्त होने वाली राशि में दोगुनी वृद्धि (10.38 रूपए से लगभग 23 रुपए प्रति लीटर) हुई है।
- मार्च 2020 में वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए केंद्र सरकार ने भारत में बिकने वाले तेल पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में लगभग 3 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि कर दी, परिणामतः भारतीय बाज़ार में मिलने वाले तेल की कीमत में कोई विशेष बदलाव देखने को नहीं मिला।
उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में वृद्धि का कारण:
- COVID-19 के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभावों से पहले ही सरकार राजकोषीय घाटे की समस्या से जूझ रही थी।
- लगभग चार वर्ष पहले लागू ‘वस्तु और सेवा कर’ (Goods and Services Tax- GST) से अपेक्षा के अनुरूप शीघ्र ही अधिक कर (Tax) इकट्ठा नहीं किया जा सका है।
- इस दौरान उपभोक्ता मांग में गिरावट को देखते हुए आयकर में कटौती जैसे माध्यमों से उपभोक्ताओं को अधिक मुद्रा उपलब्ध कराने की मांग तेज़ हुई है।
- वर्तमान में सरकार के लिये आयकर में कटौती करना बहुत मुश्किल है अतः सरकार ने करदाताओं को नई दरों वाले आयकर स्लैब का विकल्प उपलब्ध कराया है।
- वर्तमान में उपभोक्ता मंहगाई में वृद्धि का कारण खाद्य पदार्थों एवं अन्य वस्तुओं की खराब आपूर्ति रही है, उपभोक्ता मंहगाई पर तेल की बढ़ी कीमतों का कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा है।
- इसे देखते हुए वर्तमान में सरकार ने तेल की कीमतों को स्थिर रखकर, तेल से अर्जित लाभ के माध्यम से अपने वित्तीय घाटे को कम करने का प्रयास किया है।
- 24 मार्च, 2020 के लॉकडाउन के पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल हालिया उत्पाद शुल्क वृद्धि से ही सरकार को वित्तीय वर्ष 2020-21 में 43,000 करोड़ रुपए का लाभ होने का अनुमान है।
देश में तेल की आपूर्ति पर COVID-19 का प्रभाव:
- वर्तमान में COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये देशभर लागू लॉकडाउन के परिणामस्वरुप पेट्रोल और डीजल की खपत में 50% तक की कमी आई है तथा विमानन ईंधन (Aviation Turbine Fuel) की बिक्री लगभग शून्य रही है।
- इसे देखते हुए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (Indian Oil Corporation- IOCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Hindustan Petroleum Corporation Limited- HPCL) जैसी भारतीय तेल परिशोधन कंपनियों ने आगामी अप्रैल माह के लिये कच्चे तेल के आयात में 50% तक की कमी करने का फैसला किया है जबकि वर्तमान में निर्यातक एक बैरल तेल 20 अमेरिकी डॉलर या उससे कम में भी देने के लिये तैयार हैं।
- भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Bharat Petroleum Corporation Limited- BPCL) रिफाइनरी निदेशक के अनुसार, वर्तमान में हमारी रिफाइनरियाँ (Refineries) केवल 80% क्षमता पर कार्य कर रहीं हैं और भविष्य में इसके और कम होने की उम्मीदें है, जिसके कारण हमें अतिरिक्त आयात को रद्द या विलंबित करना अथवा कहीं और बेचना पड़ेगा।
- वर्तमान में IOCL ने भी कच्चे तेल के कुल परिशोधन में अपनी क्षमता की एक-तिहाई कमी की है।
- IOCL ने पश्चिमी देशों के निर्यातकों से फोर्स मेजर (Force Majeure) नियमों के तहत तेल के आयत को कम करने का आग्रह किया है, कंपनी के अनुसार, COVID-19 के नियंत्रण के लिये देशव्यापी लॉकडाउन के कारण पेट्रोल की बिक्री में 54% और डीजल की बिक्री में 63% की गिरावट देखने को मिली है।
निष्कर्ष: वर्तमान में कच्चे तेल की घटती कीमतें तेल उत्पादक देशों के लिये एक बड़ी चिंता का विषय बन गईं हैं, यदि तेल की उत्पादन सीमा को लेकर उत्पादक देशों में शीघ्र ही कोई सहमति नहीं बनती तो यह समस्या और भी जटिल हो सकती है। परंतु आर्थिक क्षेत्र में दबाव झेल रही भारत सरकार के लिये अपने वित्तीय घाटे को कम करने का यह सबसे उपयुक्त समय है, आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा में कमी भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।