भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन मेन्स के लियेराष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन: अवसर और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP) की शुरुआत की है। NMP के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक चार साल की अवधि में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्ति में 6 लाख करोड़ रुपए की कुल मुद्रीकरण क्षमता मौजूद है।
- यह योजना प्रधानमंत्री की रणनीतिक विनिवेश नीति के अनुरूप है, जिसके तहत सरकार केवल कुछ ही विशिष्ट क्षेत्रों में उपस्थिति बनाए रखेगी और शेष को निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
- इसका उद्देश्य ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में निजी क्षेत्र को शामिल करना और उन्हें राजस्व अधिकार हस्तांतरित करना है, हालाँकि इसके तहत परियोजनाओं के स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं किया जाएगा, साथ ही इसके माध्यम से उत्पन्न पूंजी का उपयोग देश भर में बुनियादी अवसंरचनाओं के निर्माण के लिये किया जाएगा।
- NMP का प्राथमिक कार्य मुद्रीकरण के लिये एक स्पष्ट ढाँचा प्रदान करना और संभावित निवेशकों के लिये मुद्रीकरण हेतु उपलब्ध संपत्ति की एक सूची तैयार करना है।
- केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत स्थायी बुनियादी अवसंरचना के वित्तपोषण हेतु मौजूदा सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण को एक प्रमुख साधन के रूप में मान्यता दी गई थी।
- वर्तमान में इसके तहत केवल केंद्र सरकार के मंत्रालयों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) की संपत्ति को ही शामिल किया गया है।
- सरकार ने स्पष्ट किया है कि ब्राउनफील्ड संपत्तियाँ वे संपत्तियाँ हैं, जिन्हें सरकार द्वारा ‘जोखिम रहित’ माना गया है और इसलिये निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र की संपत्ति में मुद्रीकृत होने वाली संपत्ति के कुल अनुमानित मूल्य का 66% से अधिक शामिल होगा, इसके अलावा इसमें दूरसंचार, खनन, विमानन, बंदरगाह, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन, गोदाम और स्टेडियम भी शामिल हैं।
- मूल्य के अनुसार वार्षिक चरणबद्धता के संदर्भ में चालू वित्त वर्ष में 0.88 लाख करोड़ रुपए के सांकेतिक मूल्य के साथ 15% परिसंपत्तियों को इसी वित्तीय वर्ष में मुद्रीकृत किया जाएगा।
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ दिसंबर 2019 में घोषित 100 लाख करोड़ रुपए की ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ (NIP) के साथ-साथ क्रियान्वित की जाएगी।
- मुद्रीकरण के माध्यम से जुटाई जाने वाली अनुमानित राशि ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ के तहत केंद्र के 43 लाख करोड़ रुपए के प्रस्तावित परिव्यय का लगभग 14% है।
- ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं पर एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करेगी, जो रोज़गार पैदा करने, जीवनयापन में सुधार और सभी के लिये बुनियादी अवसंरचना तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में मददगार होगी, जिससे विकास अधिक समावेशी हो सकेगा। इसमें मुख्यतः आर्थिक और सामाजिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ शामिल हैं।
- बुनियादी अवसंरचना विकास से संबंधित अन्य पहलों में ‘राज्यों के पूंजीगत व्यय हेतु विशेष सहायता योजना’ और ‘औद्योगिक गलियारे’ आदि शामिल हैं।
मुद्रीकरण (Monetisation):
- एक मुद्रीकरण लेन-देन में सरकार मूल रूप से अग्रिम धन, राजस्व हिस्सेदारी और परिसंपत्तियों में निवेश की प्रतिबद्धता के बदले में एक निर्दिष्ट लेन-देन अवधि के लिये निजी पार्टियों को राजस्व अधिकार हस्तांतरित करती है।
- उदाहरण के लिये रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Reits) और इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Invits) सड़कों और बिजली क्षेत्रों में संपत्ति का मुद्रीकरण करने के लिये उपयोग की जाने वाली प्रमुख संरचनाएँ हैं।
- ये स्टॉक एक्सचेंजों में भी सूचीबद्ध हैं, निवेशकों को द्वितीयक बाज़ारों के माध्यम से भी तरलता प्रदान करते हैं।
- जबकि ये एक संरचित वित्तपोषण वाहन हैं, सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के आधार पर अन्य मुद्रीकरण मॉडल में शामिल हैं:
- ऑपरेट मेंटेन ट्रांसफर (OMT),
- टोल ऑपरेट ट्रांसफर (TOT),
- संचालन, रखरखाव और विकास (OMD)।
ग्रीनफील्ड बनाम ब्राउनफील्ड निवेश
- ग्रीनफील्ड:
- यह एक विनिर्माण, कार्यालय या अन्य भौतिक कंपनी से संबंधित संरचना या संरचनाओं के समूह में उस क्षेत्र में निवेश को संदर्भित करता है जहाँ पहले कोई सुविधाएँ मौजूद नहीं हैं।
- ब्राउनफील्ड निवेश:
- जिन परियोजनाओं को संशोधित या उन्नत किया जाता है उन्हें ब्राउनफील्ड परियोजना कहा जाता है।
- एक नई उत्पादन गतिविधि शुरू करने के लिये मौजूदा उत्पादन सुविधाओं को खरीदने या पट्टे पर देने के लिये इस शब्द का उपयोग किया जाता है।
संबंधित चुनौतियाँ:
- विभिन्न संपत्तियों में पहचान योग्य राजस्व धाराओं का अभाव।
- एयर इंडिया और BPCL समेत सरकारी कंपनियों में निजीकरण की धीमी रफ्तार।
- इसके अलावा ट्रेनों में हाल ही में शुरू की गई PPP पहल में कम-से-कम उत्साहजनक बोलियों से यह संकेत मिलता है कि निजी निवेशकों की रुचि को आकर्षित करना इतना आसान नहीं है।
- संपत्ति-विशिष्ट चुनौतियाँ:
- गैस और पेट्रोलियम पाइपलाइन नेटवर्क में क्षमता उपयोग का निम्न स्तर।
- विद्युत क्षेत्र की परिसंपत्तियों में विनियमित टैरिफ।
- फोर लेन से नीचे के राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये निवेशकों में कम दिलचस्पी।
- उदाहरण के लिये कोंकण रेलवे में राज्य सरकारों सहित कई हितधारक हैं, जिनकी कंपनी में हिस्सेदारी है।
आगे की राह
- क्रियान्वयन ही सफलता की कुंजी है: सरकार ने NMP ढाँचे में बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण कई चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश की है, योजना का क्रियान्वयन इसकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- विवाद निवारण तंत्र: इसके अलावा एक कुशल विवाद समाधान तंत्र की आवश्यकता है।
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: बुनियादी ढाँचे की विस्तार योजना की सफलता अन्य हितधारकों संबंधी उनकी उचित भूमिका निभाने पर निर्भर करेगी।
- इनमें राज्य सरकारें और उनके सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम व निजी क्षेत्र शामिल हैं।
- इस संदर्भ में पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय उत्तरदायित्व कानून की फिर से जाँच करने के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त अंतर-सरकारी समूह की स्थापना की सिफारिश की है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय इतिहास
श्री नारायण गुरु
प्रिलिम्स के लिये:श्री नारायण गुरु से संबंधित तथ्यात्मक जानकारी मेन्स के लिये:श्री नारायण गुरु का परिचय, विभिन्न क्षेत्रों में इनका योगदान तथा इनका दर्शन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने श्री नारायण गुरु को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी।
- इससे पहले भारत के उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु (Sree Narayana Guru) की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद, "नॉट मैनी, बट वन" (Not Many, But One) लॉन्च किया।
प्रमुख बिंदु
जन्म:
- श्री नारायण गुरु का जन्म 22 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के पास एक गाँव चेमपज़ंथी (Chempazhanthy) में हुआ था। इनेक पिता का नाम' मदन असन और माता का नाम कुट्टियम्मा (Kuttiyamma) था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
- उनका परिवार एझावा (Ezhava) जाति से संबंध रखता था और उस समय के सामाजिक मान्यताओं के अनुसार इसे 'अवर्ण’' (Avarna) माना जाता था।
- उन्हें बचपन से ही एकांत पसंद था और वे हमेशा गहन चिंतन में लिप्त रहते थे। वह स्थानीय मंदिरों में पूजा करने के लिये प्रयासरत रहते थे, जिसके लिये भजनों तथा भक्ति गीतों की रचना करते रहते थे।
- छोटी उम्र से ही उनका आकर्षण तप की ओर था जिसके चलते वे संन्यासी के रूप में आठ वर्षों तक जंगल में रहे थे।
- उनको वेद, उपनिषद, साहित्य, हठ योग और अन्य दर्शनों का ज्ञान था।
महत्त्वपूर्ण कार्य:
- जातिगत अन्याय के खिलाफ:
- उन्होंने "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" (ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) का प्रसिद्ध नारा दिया।
- उन्होंने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था।
- उन्होंने एक मंदिर कलावन्कोड (Kalavancode) में अभिषेक किया और मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है।
- धर्म-परिवर्त्तन का विरोध:
- उन्होंने लोगों को समानता की सीख दी लेकिन इस बात को महसूस किया कि असमानता का उपयोग धर्म परिवर्तन के लिये नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है।
- श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1923 में अलवे अद्वैत आश्रम (Alwaye Advaita Ashram) में एक सर्व-क्षेत्र सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम बताया जाता है। यह एझावा समुदाय में होने वाले धार्मिक रूपांतरणों को रोकने का एक प्रयास था।
- अन्य:
- वर्ष 1903 में, उन्होंने संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में एक धर्मार्थ समाज, श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (Sree Narayana Dharma Paripalana Yogam-SNDP) की स्थापना की। संगठन वर्तमान समय में भी अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कर रहा है।
- वर्ष 1924 में, स्वच्छता, शिक्षा, भक्ति, कृषि, हस्तशिल्प और व्यापार के गुणों को बढ़ावा देने के लिये शिवगिरी तीर्थ (Sivagiri pilgrimage) की स्थापना की गई थी।
श्री नारायण गुरु का दर्शन:
- श्री नारायण गुरु बहुआयामी प्रतिभा, महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रबल प्रस्तावक, कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
साहित्यिक रचनाएँ:
- उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं: अद्वैत दीपिका, असरमा, थिरुकुरल, थेवरप्पाथिंकंगल आदि।
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान:
- श्री नारायण गुरु मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे।
- श्री नारायण गुरु ने वायकोम सत्याग्रह (त्रावणकोर) को गति प्रदान की। इस आंदोलन का उद्देश्य निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाना था। इस आंदोलन की वजह से महात्मा गांधी सहित सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ गया।
- उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीयता के सार को समाहित किया और दुनिया की विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया।
विज्ञान में योगदान:
- श्री नारायण गुरु ने स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया।
- श्री नारायण गुरु का अध्यारोप (Adyaropa) दर्शनम् (दर्शनमला) ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।
- इनके दर्शन में दैवदशकम् (Daivadasakam) और आत्मोपदेश शतकम् (Atmopadesa Satakam) जैसे कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे रहस्यवादी विचार तथा अंतर्दृष्टि वर्तमान की उन्नत भौतिकी से मिलते-जुलते हैं।
दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता:
- श्री नारायण गुरु की सार्वभौमिक एकता के दर्शन का समकालीन विश्व में मौजूद देशों और समुदायों के बीच घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद तथा अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के लिये विशेष महत्त्व है।
मृत्यु:
- श्री नारायण गुरु की मृत्यु 20 सितंबर, 1928 को हो गई। केरल में यह दिन श्री नारायण गुरु समाधि (Sree Narayana Guru Samadhi) के रूप में मनाया जाता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक विनिर्माण जोखिम सूचकांक 2021
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक विनिर्माण जोखिम सूचकांक के बारे में मेन्स के लिये:भारत की रैंकिंग में सुधार हेतु उत्तरदायी कारक तथा विनिर्माण क्षेत्र में सुधार हेतु भारत द्वारा की गई विभिन्न पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत वैश्विक विनिर्माण जोखिम सूचकांक (Global Manufacturing Risk Index) 2021 में भारत अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व स्तर पर दूसरा सबसे अधिक मांग वाला विनिर्माण गंतव्य बन गया है।
- गत वर्ष जारी सूचकांक में अमेरिका दूसरे स्थान पर जबकि भारत तीसरे स्थान पर था।
प्रमुख बिंदु
सूचकांक के विषय में:
- यह यूरोप, अमेरिका और एशिया-प्रशांत (APAC) के 47 देशों में वैश्विक विनिर्माण की दृष्टि से सबसे फायदेमंद स्थानों का आकलन करता है।
- रिपोर्ट में रैंकिंग का निर्धारण चार प्रमुख मापदंडों के आधार पर किया जाता है:
- विनिर्माण को पुनः शुरू करने के मामले में देश की क्षमता,
- कारोबारी माहौल (प्रतिभा/श्रम की उपलब्धता, बाज़ारों तक पहुँच),
- संचालन लागत,
- जोखिम (राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय)।
- यह सूचकांक अमेरिका स्थित संपत्ति सलाहकार कुशमैन एंड वेकफील्ड (Cushman & Wakefield) द्वारा जारी किया जाता है।
- वैश्विक विनिर्माण जोखिम सूचकांक, 2021 में चीन पहले स्थान पर बना हुआ है जबकि अमेरिका तीसरे स्थान पर पहुँच गया है।
- रैंकिंग में सुधार निर्माताओं द्वारा अमेरिका और APAC क्षेत्र के देशों सहित अन्य देशों की तुलना में भारत के प्रति एक पसंदीदा विनिर्माण केंद्र के रूप में बढ़ती रुचि को दर्शाता है।
भारत की रैंकिंग में सुधार हेतु उत्तरदायी कारक:
- भारत पर बढ़ते फोकस का श्रेय भारत की परिचालन स्थितियों और लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को दिया जा सकता है।
- भारत की जनसंख्या अति विशाल है, जिसका अर्थ है कि यहाँ नवीन क्षमताओं वाला एक युवा कार्यबल उपस्थित है जो देश के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है।
- फार्मा, रसायन और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में पहले से ही स्थापित आधार के कारण चीन से एशिया के अन्य हिस्सों में संयंत्र स्थानांतरण को भी रैंकिंग में सुधार के लिये उत्तरदायी माना जा सकता है।
- इसके अलावा ये कारक अमेरिका-चीन व्यापार तनाव के केंद्र में भी बने हुए हैं।
भारत में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार हेतु हाल की पहल:
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)
- मेक इन इंडिया
- स्किल इंडिया
- सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के लिये ऋण गारंटी योजना
- नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक योजना (ASPIRE)
- प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)
- औद्योगिक गलियारे
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय विरासत और संस्कृति
गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप
प्रिलिम्स के लियेगुरु ग्रंथ साहिब, सिख धर्म मेन्स के लियेसिख धर्म के गुरु एवं उनके विचार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत, अफगानिस्तान से गुरु ग्रंथ साहिब (सिख पवित्र पुस्तक) के तीन स्वरूप/प्रतियाँ (Saroops) लाया है, अब अफगानिस्तान में शेष तीन प्रतियाँ बची हैं।
- अफगानिस्तान में 13 प्रतियाँ थी, जिनमें से सात पहले ही भारत में स्थानांतरित हो चुकी थीं।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- स्वरूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब की एक भौतिक प्रति है, जिसे पंजाबी में बीर भी कहा जाता है। प्रत्येक बीर में 1,430 पृष्ठ होते हैं, जिन्हें अंग कहा जाता है। प्रत्येक पृष्ठ पर छंद एक समान रहते हैं।
- सिख गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप को एक जीवित गुरु मानते हैं तथा इसे अत्यंत सम्मान के साथ रखते हैं।
- उनका मानना है कि सभी 10 गुरु अलग-अलग शरीरों में एक ही आत्मा थे तथा गुरु ग्रंथ साहिब उनका शाश्वत भौतिक और आध्यात्मिक रूप है।
- गुरु अर्जुन देव (पाँचवें सिख गुरु) ने 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब के पहले बीर को संकलित किया और इसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में स्थापित किया।
- बाद में गुरु गोबिंद सिंह (दसवें सिख गुरु) ने अपने पिता गुरु तेग बहादुर (नौवें गुरु) द्वारा लिखे गए छंदों को जोड़ा तथा दूसरी और आखिरी बार बीर का संकलन किया।
- 1708 में गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का जीवित गुरु घोषित किया था।
- गुरु ग्रंथ साहिब छह सिख गुरुओं, 15 संतों द्वारा लिखे गए भजनों का एक संग्रह है, जिसमें भगत कबीर, भगत रविदास, शेख फरीद और भगत नामदेव, 11 भट्ट (गीतकार) और 4 सिख शामिल हैं।
- श्लोकों की रचना 31 रागों में की गई है।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के पास गुरु ग्रंथ साहिब के बीर को प्रकाशित करने का एकाधिकार है तथा इसका प्रकाशन अमृतसर में किया जाता है।
- गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना तथा परिवहन एक सख्त आचार संहिता द्वारा नियंत्रित होती है जिसे सिख राहत मर्यादा कहा जाता है।
- आदर्श परिस्थितियों में गुरु ग्रंथ साहिब को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिये पाँच बपतिस्मा (Baptism) प्राप्त सिखों की आवश्यकता होती है। सम्मान की निशानी के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब के बीर को सिर पर रखा जाता है और व्यक्ति नंगे पैर चलता है।
- गुरुद्वारों में स्वरूप के लिये एक अलग विश्राम स्थल है, जिसे 'सुख आसन स्थान' या 'सचखंड' कहा जाता है जहाँ गुरु रात में विश्राम करते हैं।
- सुबह में स्वरूप को फिर से 'प्रकाश' उत्सव समारोह में स्थापित किया जाता है।
- सिख राहत मर्यादा: यह एक मैनुअल है जो सिखों के कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है तथा चार अनुष्ठानों को नाम देता है जिन्हें संस्कार मार्ग कहा जाता है।
- पहला अनुष्ठान जन्म और गुरुद्वारे में आयोजित नामकरण समारोह है।
- दूसरा अनुष्ठान आनंद करज (आनंदमय मिलन) या विवाह समारोह है।
- तीसरा अनुष्ठान जिसे सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है, अमृत संस्कार है जो खालसा में दीक्षा के लिये होने वाला समारोह है।
- चौथा अनुष्ठान मृत्योपरांत होने वाला अंतिम संस्कार समारोह है।
सिख धर्म
- पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ है 'शिष्य'। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
- सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं।
- सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया।
- सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
- इस्लामिक युग में सिखों के उत्पीड़न ने खालसा की स्थापना को प्रेरित किया जो अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है।
- गुरु गोविंद सिंह ने खालसा (जिसका अर्थ है 'शुद्ध') पंथ की स्थापना की जो सैनिक-संतों का विशिष्ट समूह था।
- खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है तथा ये पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं को धारण करते हैं, जो हैं:
- केश (बिना कटे बाल), कंघा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (एक लोहे का कंगन), कच्छा (सूती जांघिया) और कृपाण (एक लोहे का खंजर)।
- खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है तथा ये पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं को धारण करते हैं, जो हैं:
- यह उपदेश देता है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग भगवान की नज़र में समान हैं।
- सिख साहित्य:
- आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
- दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।
सिख धर्म के दस गुरु
गुरु नानक देव (1469-1539)
- ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे।
- इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की।
- वह बाबर के समकालीन थे।
- गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।
गुरु अंगद (1504-1552)
- इन्होंने गुरुमुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय बनाया।
गुरु अमर दास (1479-1574)
- इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की।
- इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा व्यवस्था जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
- ये अकबर के समकालीन थे।
गुरु राम दास (1534-1581)
- इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की।
- इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।
गुरु अर्जुन देव (1563-1606)
- इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की।
- इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया।
- वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे।
- इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।
गुरु हरगोबिंद (1594-1644)
- इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है।
- इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया।
- इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
गुरु हर राय (1630-1661)
- ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगज़ेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।
गुरु हरकिशन (1656-1664)
- ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे कम आयु के गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी।
- इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।
गुरु तेग बहादुर (1621-1675)
- इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।
गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)
- इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की।
- इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया।
- ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
समर्थ उद्योग भारत 4.0 प्लेटफाॅर्म
प्रिलिम्स के लियेसमर्थ उद्योग भारत 4.0 मेन्स के लियेऔद्योगिक क्रांति 4.0 के लाभ और चुनौतियाँ, मौजूदा भारतीय परिदृश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘सेंट्रल मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट’ (CMTI) बंगलूरू ने ‘समर्थ उद्योग भारत 4.0 प्लेटफॉर्म’ के तहत ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिये ‘समर्थ उद्योग केंद्रों से विशेषज्ञ वार्ता’ हेतु एक वेबिनार का आयोजन किया।
- इसका उद्देश्य स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास और स्मार्ट विनिर्माण एवं उद्योग 4.0 के क्षेत्र में सहयोग के तरीकों पर समर्थ उद्योग केंद्रों के विशेषज्ञों से वार्ता करना था।
- CMTI भारी उद्योग मंत्रालय के तत्त्वावधान में एक अनुसंधान एवं विकास संगठन है, जो विनिर्माण क्षेत्र को 'प्रौद्योगिकी समाधान' प्रदान करने और देश में तकनीकी विकास में सहायता करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
प्रमुख बिंदु
समर्थ उद्योग भारत 4.0
- ‘स्मार्ट एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग एंड रैपिड ट्रांसफॉर्मेशन हब’ यानी समर्थ उद्योग भारत 4.0’ भारी उद्योग विभाग की एक उद्योग 4.0 पहल है, जो भारतीय पूंजीगत उत्पाद क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि पर ज़ोर देती है।
- प्रौद्योगिकी विकास एवं बुनियादी ढाँचे के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये वर्ष 2014 में 'भारतीय पूंजीगत उत्पाद क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि' योजना को अधिसूचित किया गया था।
- CMTI ने तीव्रता से बढ़ते भारतीय विनिर्माण उद्योग के लिये ‘उद्योग 4.0’ और ‘स्मार्ट विनिर्माण प्रथाओं’ को अपनाने की प्रक्रिया को सुगम बनाने तथा उनका समर्थन करने के लिये एक ‘सामान्य इंजीनियरिंग सुविधा केंद्र’ (CEFC) के रूप में ‘स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग डेमो एंड डेवलपमेंट सेल’ (SMDDC) की स्थापना की है।
उद्योग 4.0
- यह चौथी औद्योगिक क्रांति को संदर्भित करता है, जो कि विनिर्माण क्षेत्र में साइबर-भौतिक परिवर्तनों से संबद्ध है।
- इसे प्रायः ‘साइबर-भौतिक प्रणालियों, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग तथा कॉग्निटिव कंप्यूटिंग और स्मार्ट फैक्ट्री बनाने सहित विनिर्माण प्रौद्योगिकियों में स्वचालन एवं डेटा विनिमय की वर्तमान प्रवृत्ति के लिये प्रयोग किया जाता है।
औद्योगिक क्रांति 4.0 के लाभ:
- इससे प्रक्रियाओं में उत्पादकता, दक्षता और गुणवत्ता में वृद्धि होगी, खतरनाक वातावरण (Dangerous Environments) में कार्य को कम करके श्रमिकों के लिये अधिक सुरक्षा, डेटा-आधारित उपकरणों के साथ निर्णय लेने में वृद्धि करेगा और अनुकूल उत्पादों को विकसित करके प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करेगा।
चुनौतियाँ:
- तकनीकी कौशल में अंतर:
- चूँकि कार्यबल के लिये महत्त्वपूर्ण सभी आवश्यकताएँ विकसित हो रही हैं इसलिये केवल सही कार्यबल के साथ ही व्यवसाय मॉडल नई तकनीक को सफलतापूर्वक लागू करने और संचालन को बनाए रखने में सक्षम होंगे।
- डेटा संवेदनशीलता:
- प्रौद्योगिकी में वृद्धि ने डेटा और IP गोपनीयता, स्वामित्व तथा प्रबंधन पर बढ़ती चिंताओं को भी जन्म दिया है।
- नवाचार:
- प्रोटोकॉल, घटकों, उत्पादों और प्रणालियों के बीच अलगाव की कमी भी एक चुनौती है क्योंकि इंटरऑपरेबिलिटी कंपनियों की नवाचार करने की क्षमता को बाधित करती है।
- सुरक्षा:
- कारखानों में मौजूदा और उभरती कमज़ोरियों के संदर्भ में खतरे एक और गंभीर चिंता का विषय है।
- भौतिक और डिजिटल सिस्टम जो स्मार्ट कारखानों का निर्माण करते हैं और रियल-टाइम इंटरऑपरेबिलिटी को संभव बनाते हैं।
- हैंडलिंग डेटा ग्रोथ:
- जैसे-जैसे अधिक कंपनियाँ AI के उपयोग पर निर्भर होंगी, कंपनियों को अधिक डेटा का सामना करना पड़ेगा जो कि तेज़ गति से उत्पन्न हो रहा है और कई प्रारूपों में प्रस्तुत किया जा रहा है।
भारतीय परिदृश्य
भारत की वर्तमान क्षमता का अवलोकन:
- भारत में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है।
- यह जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है।
- जब कारों के निर्यात की बात आती है तो यह शीर्ष 15 में भी शामिल नहीं है।
- कुल मिलाकर भारत का विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 17% है।
- सेवा क्षेत्र 65% से अधिक का विनिर्माण करता है।
- 2018 में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने भारत सरकार के सहयोग से कार्य करने के उद्देश्य से भारत में चौथी औद्योगिक क्रांति हेतु अपना केंद्र स्थापित किया।
- नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (NITI) आयोग उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये नए नीति ढाँचे को विस्तृत करने हेतु WEF के साथ समन्वय स्थापित करने के लिये नामित नोडल एजेंसी है।
- भारत सरकार ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पहले से ही सक्षम नीतिगत ढाँचा तैयार कर प्रोत्साहन प्रदान किया है।
- समर्थ उद्योग भारत 4.0 जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण, डेमो सेंटर आदि जैसे कदमों के माध्यम से 2025 तक भारतीय विनिर्माण इकाइयों के लिये तकनीकी समाधान विकसित करने के उद्देश्य से उद्योग 4.0 के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने हेतु भारत की पहल है।
- भारत की राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP) को प्रख्यापित किया गया है जिसका उद्देश्य सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना है और यह उद्योग 4.0 के उद्देश्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है।
- अन्य :
- मेक इन इंडिया, विनिर्माण समूहों की स्थापना, व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease Of Doing Business) में सुधार, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की घोषणा, वित्तीय क्षेत्र में सुधार, कर सुधार, अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना, बड़ी बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाएँ, विद्युत क्षेत्र में सुधार तथा देश में पर्यावरण, सामाजिक और कॉर्पोरेट प्रशासन (ESG) को मज़बूत करना।
- 5G परीक्षण और डिजिटल इंडिया जैसी पहल।
आगे की राह
- औद्योगिक क्रांति 4.0 के संदर्भ में स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग, एनालिटिक्स और IoT को अपनाने से भारत में औद्योगीकरण को एक नया अवसर मिलेगा।
- नीति कार्यान्वयन बाधाओं के अलावा एक बड़ी बाधा कुशल श्रमिकों की कमी या रोबोटिक्स और ऑटोमेशन के कारण नौकरी छूटने का डर है। इसका सामना करने के लिये एक स्मार्ट रणनीति बनाकर इन क्षेत्रों में श्रमिकों और लाखों लोगों के कौशल को बढ़ावा देना तथा अधिक रोज़गार सृजित करना है।
स्रोत : पीआईबी
सामाजिक न्याय
तीव्र शहरीकरण और स्लम क्षेत्रों की दुर्दशा
प्रिलिम्स के लियेशहरीकरण और स्लम क्षेत्र मेन्स के लियेस्लम निवासियों पर कोविड-19 का प्रभाव, स्लम क्षेत्रों से संबंधित चुनातियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत में तीव्रता से बढ़ता शहरीकरण एक अपरिहार्य चुनौती बन गया है। सेवा क्षेत्र के विकास के साथ शहरों पर जनसंख्या का दबाव और अधिक बढ़ता जा रहा है।
- दिल्ली दुनिया का छठा सबसे बड़ा महानगर है, इसके बावजूद यहाँ एक-तिहाई आवास स्लम क्षेत्र का हिस्सा हैं, जिनके पास कोई बुनियादी संसाधन भी उपलब्ध नहीं हैं।
स्लम क्षेत्र
- स्लम क्षेत्र का आशय सार्वजनिक भूमि पर अवैध शहरी बस्तियों से है और आमतौर पर यह एक निश्चित अवधि के दौरान निरंतर एवं अनियमित तरीके से विकसित होता है। स्लम क्षेत्रों को शहरीकरण का एक अभिन्न अंग माना जाता है और शहरी क्षेत्र में समग्र सामाजिक-आर्थिक नीतियों एवं योजनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।
- ‘स्लम क्षेत्र’ को प्रायः ‘अराजक रूप से अधिग्रहीत, अव्यवस्थित रूप से विकसित और आमतौर पर उपेक्षित क्षेत्र के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जहाँ काफी अधिक आबादी निवास करती है।
- ‘स्लम क्षेत्र’ के अस्तित्व और तीव्र विकास को एक सामान्य शहरी घटना के रूप में देखा जाता है, जो कि दुनिया भर में प्रचलित है।
प्रमुख बिंदु
शहरीकरण
- शहरीकरण का आशय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के पलायन, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के अनुपात में कमी और इस परिवर्तन को अपनाने हेतु समाज के तरीकों से है।
- शहरों को प्रायः तीव्र शहरीकरण के प्रतिकूल परिणामों जैसे- अत्यधिक जनसंख्या, आवास और बुनियादी सुविधाओं की कमी, पर्यावरण प्रदूषण, बेरोज़गारी तथा सामाजिक अशांति आदि का सामना करना पड़ता है।
- विकसित शहर के निर्माण के इस मॉडल में अनियोजित विकास भी शामिल होता है, जो अमीर और गरीब समुदाय के बीच व्याप्त द्वंद्व को मज़बूत करता है।
- इसके अलावा कोविड-19 महामारी ने शहरों में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले शहरी गरीबों या झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिये परेशानी को और गंभीर कर दिया है।
स्लम क्षेत्रों की स्थिति
- भारत में 13.7 मिलियन स्लम घरों में कुल 65.49 मिलियन लोग निवास करते हैं। लगभग 65% भारतीय शहरों के आसपास झुग्गियाँ और स्लम क्षेत्र मौजूद हैं, जहाँ लोग काफी घनी बस्तियों में रहते हैं।
- ‘नेशनल सर्विस स्कीम राउंड’ (जुलाई 2012-दिसंबर 2012) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2012 तक दिल्ली में लगभग 6,343 स्लम बस्तियाँ थीं, जिनमें दस लाख से अधिक घर थे, जहाँ दिल्ली की कुल आबादी का 52% हिस्सा निवास करता था।
स्लम निवासियों पर कोविड-19 का प्रभाव
- वित्तीय असुरक्षा
- भारत की लगभग 81 प्रतिशत आबादी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करती है। संपूर्ण कोविड लॉकडाउन के अचानक लागू होने से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की आजीविका काफी बुरी तरह प्रभावित हुई है।
- पूर्व लॉकडाउन के बाद दिल्ली में भारी संख्या में ‘रिवर्स माइग्रेशन’ देखा गया, जब हज़ारों प्रवासी कामगार अपने गृहनगर वापस चले गए। इस दौरान लगभग 70% स्लम निवासी बेरोज़गार हो गए; 10% की मज़दूरी में कटौती हुई और 8% पर इसके अन्य प्रभाव देखे गए।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली और सामाजिक क्षेत्र योजना कवरेज:
- यद्यपि ग्रामीण निवासियों का एक बड़ा वर्ग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से उपलब्ध खाद्यान्न के कारण महामारी से प्रेरित आर्थिक व्यवधान का सामना करने में सक्षम था, किंतु शहरी गरीबों तक ऐसे राशन की पहुँच न्यूनतम थी।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लेकर भी ग्रामीण गरीबों के बीच शहरी गरीबों की तुलना में बेहतर कवरेज था।
- शहरी क्षेत्रों में परिवारों के एक बड़े हिस्से के पास राशन कार्ड नहीं है।
- मौजूदा असमानताएँ:
- कोविड-19 महामारी ने झुग्गियों और स्लम क्षेत्रों की चुनौतियों को और अधिक गंभीर रूप से उजागर किया है। इन क्षेत्रों में हाथ धोना और शारीरिक दूरी जैसे नियमों का पालन करना असंभव था।
- दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लगभग 21.8% परिवार सार्वजनिक नल जैसे साझा जल स्रोतों पर निर्भर हैं।
- पोषण और भूख:
- पोषण की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट शहरी निवासियों के मामले में अधिक देखी गई और अधिकांश लोगों को भोजन खरीदने तक के लिये पैसे उधार लेने पड़ रहे थे।
- कुल मिलाकर भूख और खाद्य असुरक्षा का स्तर काफी उच्च बना रहा, जहाँ स्थिति में सुधार की उम्मीद काफी कम थी और रोज़गार के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ खाद्य सहायता प्रदान करने संबंधी उपायों की भी कमी थी।
स्लम विकास की उपेक्षा से उत्पन्न मुद्दे:
- रोगों के प्रति संवेदनशील:
- स्लम क्षेत्रों में रहने वाले लोग टाइफाइड और हैजा जैसी जलजनित बीमारियों के साथ-साथ कैंसर व एचआईवी/एड्स जैसी अधिक घातक बीमारियों के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं।
- सामाजिक कुरीतियों के शिकार:
- ऐसी बस्तियों में रहने वाली महिलाओं और बच्चों को वेश्यावृत्ति, भीख मांगने और बाल तस्करी जैसी सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता है।
- इसके अलावा ऐसी बस्तियों में रहने वाले पुरुषों को भी इन सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता है।
- ऐसी बस्तियों में रहने वाली महिलाओं और बच्चों को वेश्यावृत्ति, भीख मांगने और बाल तस्करी जैसी सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता है।
- अपराध की घटनाएँ:
- स्लम क्षेत्रों को आमतौर पर ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है, जहाँ अपराध काफी अधिक होते हैं। यह स्लम क्षेत्रों में शिक्षा, कानून व्यवस्था और सरकारी सेवाओं के प्रति आधिकारिक उपेक्षा के कारण है।
- गरीबी
- एक विकासशील देश में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले अधिकांश लोग अनौपचारिक क्षेत्र से अपना जीवन यापन करते हैं जो न तो उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है और न ही बेहतर जीवन के लिये पर्याप्त आय उपलब्ध कराता है, जिससे वे गरीबी के दुष्चक्र में फँस जाते हैं।
झुग्गीवासियों/शहरी गरीबों के लिये सरकार की पहल:
सिफारिशें:
- कल्याण और राहत योजनाओं की दक्षता में तेज़ी लाना।
- मलिन बस्तियों में मुफ्त टीके, खाद्य सुरक्षा और पर्याप्त आश्रय सुनिश्चित करना।
- मलिन बस्तियों में स्वच्छता और परिवहन सुविधाओं में सुधार।
- क्लीनिक और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना।
- गैर-लाभकारी संस्थाओं और स्थानीय सहायता निकायों की सहायता करना, जिनकी इन हाशिये के समुदायों तक बेहतर पहुँच है।
आगे की राह
- लाभ अभीष्ट लाभार्थियों के एक छोटे से हिस्से तक ही पहुँच पाते हैं। अधिकांश राहत कोष और लाभ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों तक नहीं पहुँचते हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि इन बस्तियों को सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी जाती है।
- भारत में उचित सामाजिक सुरक्षा उपायों का अभाव देखा गया है और इसका वायरस से लड़ने की हमारी क्षमता पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। इस प्रकार शहरी नियोजन और प्रभावी शासन के लिये नए दृष्टिकोण समय की आवश्यकता है।
- टिकाऊ, मज़बूत और समावेशी बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिये। शहरी गरीबों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिये हमें ‘ऊपर से नीचे के दृष्टिकोण’ को अपनाने की आवश्यकता है।
स्रोत : डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तालिबान को प्रतिबंधों की सूची से हटाना
प्रिलिम्स के लिये:संकल्प 1988 समिति, संयुक्त राष्ट्र, UNSC मेन्स के लिये:तालिबान के प्रति संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की प्रतिक्रिया, तालिबान शासन का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) के अधिकारियों ने दावा किया कि तालिबान के शीर्ष नेतृत्त्व ने अब तक प्रतिबंधों से हटाने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों से कोई अनुरोध नहीं किया है।
- उन्होंने उन रिपोर्टों का भी खंडन किया जिसमें कहा गया था कि सितंबर 2021 में होने वाली तालिबान प्रतिबंध समिति की अगली बैठक जिसे संकल्प 1988 समिति के रूप में भी जाना जाता है, में सिराजुद्दीन हक्कानी और मुल्ला बरादार जैसे नामित आतंकवादियों पर प्रतिबंध हटा दिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
संकल्प 1988 समिति की बैठक:
- संयुक्त राष्ट्र (UNPR) में भारत, स्थायी प्रतिनिधि के रूप में दिसंबर 2021 तक है और यह बैठकों की तारीख तय करने तथा तालिबानी नेताओं पर प्रतिबंध हटाने के अनुरोधों की जाँच करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA), जो सितंबर 2021 में समाप्त हो रहा है, के जनादेश के नवीनीकरण पर चर्चा करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण बैठक होने की उम्मीद है।
- "शांति और सुलह के प्रयासों" में भाग लेने के लिये 14 तालिबान सदस्यों को दी जाने वाली विशेष यात्रा छूट का विस्तार करने के बारे में भी निर्णय लिये जाने की संभावना है।
- बैठक में इस बात पर भी चर्चा हो सकती है कि क्या अन्य तालिबान नेताओं को छूट में शामिल किया जाए, उन्हें यात्रा करने और कुछ फंड तक पहुँचने की अनुमति दी जाए, जो इस समय फ्रीज की स्थिति में हैं।
बैठक का महत्त्व:
- यह पहली बार है जब काबुल पर तालिबान के कब्ज़े और अमेरिकी सैनिकों के पीछे हटने की समय-सीमा के बाद समितियों की बैठक होगी।
- UNSC के सदस्यों, विशेष रूप से P-5 - यूएस, रूस, चीन, फ्राँस और यूके द्वारा उठाए जाने वाले कदमों से यह संकेत मिलेगा कि वे अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्त्व वाले भविष्य के शासन के लिये किस तरह का दृष्टिकोण रखना चाहते हैं।
- इस बार काबुल पर तालिबान के नियंत्रण और उसके द्वारा देश के झंडे तथा नाम को बदलने (इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान) पर ज़ोर दिये जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र को 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' द्वारा नियुक्त राजदूत गुलाम इसाकजई की मान्यता जारी रखने का फैसला भी करना होगा।
- वर्ष 1996 में पिछली बार जब तालिबान ने काबुल में सत्ता संभाली थी तब संयुक्त राष्ट्र ने इसके शासन को मान्यता देने से मना कर दिया था और पिछली रब्बानी सरकार द्वारा नामित राजदूत की ही मान्यता जारी रखी थी।
चुनौतियाँ:
- UNAMA के लिये एक नए जनादेश के साथ तालिबान के प्रभुत्व वाले शासन की ज़मीनी हकीकत को स्वीकार करना चुनौती होगी।
- यदि संयुक्त राष्ट्र नए शासन को स्वीकार करता है, जो वर्तमान में असंभव प्रतीत होता है, तो यह तालिबान को अपने स्वयं के सदस्यों को हटाने का प्रस्ताव देने का जनादेश देगा क्योंकि अफगानिस्तान यूएनपीआर प्रतिबंध सूची का "केंद्रबिंदु" है।
- इस तरह का प्रस्ताव अगस्त 2021 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा दिये गए उसके बयान के विरुद्ध भी होगा जिसमें दृढ़ता से कहा गया था कि सदस्य "इस्लामिक अमीरात की बहाली का समर्थन नहीं करते हैं"।
भारत के लिये प्रतिबंधों का महत्त्व:
- सिराजुद्दीन हक्कानी से संबंधित रिपोर्ट भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वह और उसके पिता जलालुद्दीन हक्कानी द्वारा स्थापित हक्कानी समूह 2008 और 2009 में काबुल में भारतीय दूतावास में हुए बम विस्फोटों के लिये वांछित है।
- नवंबर 2012 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष के रूप में यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि हक्कानी समूह को एक आतंकवादी इकाई के रूप में नामित किया जाए।
- भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिये कई देशों के साथ काम किया था कि इस समूह को संयुक्त राष्ट्र की संकल्प 1988 समिति/तालिबान प्रतिबंध समिति की सूची के साथ-साथ अमेरिका में प्रतिबंधित किया जाए। इसी के परिणामस्वरूप एक ही समय में इसे विदेशी आतंकवादी संगठन नामित किया गया था।
- तालिबान प्रमुख हैबतुल्लाह अखुंदजादा के डिप्टी सिराजुद्दीन हक्कानी का अब अफगानिस्तान की अगली सरकार में काफी प्रभाव होने की संभावना है।
- उसके भाई अनस हक्कानी, जिसे 2014 में समूह के आतंकी हमलों के वित्तपोषण के लिये गिरफ्तार किया गया था और 2019 में बगराम जेल से बंधक स्वैप के हिस्से के रूप में रिहा किया गया था, अब काबुल में सरकार गठन वार्ता में मुख्य वार्ताकारों में से एक है।
संकल्प 1988 समिति/तालिबान प्रतिबंध समिति
पृष्ठभूमि:
- संकल्प 1267 (1999) के अनुसार, वर्ष 1999 में UNSC समिति की स्थापना की गई थी, जिसने तालिबान पर एक सीमित हवाई प्रतिबंध लगाने और संपत्ति को फ्रीज करने का कार्य किया। समय के साथ ये उपाय एक लक्षित तरीके से संपत्ति को फ्रीज करने, यात्रा पर प्रतिबंध लगाने और नामित व्यक्तियों तथा संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने के साधन बन गए।
- जून 2011 में संकल्प 1988 (2011) को अपनाने के बाद समिति दो भागों में विभाजित हो गई।
- संकल्प 1267 समिति को अब अल-कायदा प्रतिबंध समिति के रूप में जाना जाता था, जिसे अल-कायदा से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने के निर्देश दिये गए।
- तालिबान से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये संकल्प 1988 (2011) के अनुसार एक अलग समिति की स्थापना की गई थी।
समिति के विषय में:
- समिति में सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्य शामिल हैं और यह सर्वसम्मति से निर्णय लेती है। 31 दिसंबर, 2021 को समाप्त होने वाली अवधि के लिये समिति का वर्तमान अध्यक्ष भारत है।
- समिति के कार्य ISIL (दाएश), अल-कायदा व तालिबान और संबंधित व्यक्तियों तथा संस्थाओं संबंधी संकल्प 1526 (2004) व 2253 (2015) के अनुसार, विश्लेषणात्मक समर्थन एवं प्रतिबंध निगरानी टीम (Analytical Support and Sanctions Monitoring Team) द्वारा समर्थित हैं।
समिति को निर्दिष्ट कार्य:
- प्रतिबंध उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
- प्रासंगिक प्रस्तावों में निहित लिस्टिंग मानदंडों को पूरा करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को नामित करना।
- प्रतिबंध से संबंधित मापदंडों में छूट के लिये अधिसूचनाओं और अनुरोधों पर विचार करना तथा उन पर निर्णय लेना।
- 1988 की प्रतिबंध सूची से किसी नाम को हटाने के अनुरोधों पर विचार करना और उन पर निर्णय लेना।
- 1988 की प्रतिबंध सूची की प्रविष्टियों की आवधिक और विशिष्ट समीक्षा करना।
- निगरानी टीम द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की जाँच करना।
- प्रतिबंध लगाने संबंधी मापदंडों के कार्यान्वयन पर सुरक्षा परिषद को समय-समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।