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टू द पॉइंट

शासन व्यवस्था

कॉर्पोरेट गवर्नेंस

  • 21 Feb 2020
  • 11 min read

कोई भी संगठन चाहे वह लोक संगठन हो या फिर निजी उसका कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित होना चाहिये तथा उसके द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भली-भाँति किया जाना चाहिये। किसी भी कंपनी के कॉर्पोरेट शासन में मुख्य रूप से छह घटक (ग्राहक, कर्मचारी, निवेशक, वैंडर, सरकार तथा समाज) शामिल होते हैं जिन्हें ‘स्टेक होल्डर्स’ कहा जाता है। कॉर्पोरेट शासन को प्रभावी और कुशल तरीके से चलाने के लिये प्रबंधन को इन सभी स्टेक होल्डर्स का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक होता है।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस का अर्थ:

  • कोई भी ऐसा संगठन जो सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में कार्य करता है तथा अपने कर्मचारियों, ग्राहकों, आम नागरिकों (समाज) तथा शेयरधारकों के प्रति अपनी जबावदेही को समझता है और संगठन के विकास के साथ-साथ इन सभी का भी ध्यान रखता है तो कहा जा सकता है कि ऐसे संगठन का कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित किया जा रहा है।
  • इस पूरी प्रक्रिया में समाज के प्रति नैतिक दायित्वों का निर्वहन कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी कहलाता है।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस की संकल्पना लोक और निजी संगठनों को नैतिकता के आधार पर संचालित करने से संबंधित है अर्थात् इसका संबंध नैतिकता आधारित शासन से है।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस के विभिन्न माॅडल:

विश्व स्तर पर कॉर्पोरेट गवर्नेंस के कई माॅडल प्रचलित हैं, जो विभिन्न संस्थाओं के वित्त पोषण तथा संस्था के लिये बनाए गए कानून एवं नियमों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इस प्रकार हैं-

एंग्लो सेक्सन मॉडल (एंग्लो अमेरिकन):

  • यह मॉडल संगठन के मालिकों द्वारा निर्धारित कॉर्पोरेट उद्देश्यों पर आधारित है।
  • इसमें सिर्फ शेयर धारकों के हितों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में यही माॅडल प्रचलित है।

कॉन्टिनेंटल मॉडल (फ्रेंको जर्मन मॉडल):

  • यह मॉडल फर्म/कंपनी को एक सामूहिक इकाई के रूप में देखता है।
  • इसमें शेयर धारकों के हित के साथ-साथ ग्राहकों, कर्मचारियों, स्थानीय निवासियों के प्रति भी सामाजिक उत्तरदायित्व पर बल दिया जाता है।
  • भारत तथा अन्य महाद्वीपीय देशों में यही माडल प्रचलित है।

जापानी मॉडल:

  • जापानी औद्योगिक संरचना आपूर्तिकर्त्ता और खरीदार कंपनियों के एक नेटवर्क पर आधारित है।
  • कंपनियों को सदस्यों और उनके मुख्य बैंकों के बीच व्यापक क्रॉस शेयरहोल्डिंग के लिये जाना जाता है।
  • इन संगठनों का विभिन्न फ़र्मों और बैंकों के साथ दीर्घकालिक संबंध होता है जो उन्हें वित्त सविधा प्रदान करते हैं।

पारिवारिक स्वामित्व वाली कंपनी मॉडल:

  • यह मॉडल परिवार के स्वामित्व वाले व्यवसाय द्वारा चलाया जाता है।
  • एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में यह माॅडल प्रचलित है।
  • इसमें परिवारों के स्वामित्व वाली कंपनियाँ अक्सर बाज़ार पर हावी होती हैं।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस के समक्ष चुनौतियाँ:

हालाँकि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के बारे में सरकार द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किये जाते हैं फिर भी एक प्रभावी कॉर्पोरेट प्रशासन के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियाँ अक्सर विद्यमान रहती हैं-

  • कई बार कंपनी द्वारा लेन-देन को बैलेंस शीट में सही से प्रस्तुत नहीं किया जाता है।
  • कंपनी द्वारा एक ही प्रकार के लेन -देन हेतु कई विनियामक संस्थाएँ मौजूद होती हैं जैसे- कंपनी अधिनियम-2013, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), भारतीय रिज़र्व बैंक, बीमा नियामक विकास प्राधिकरण आदि जो प्रक्रियाओं को अधिक जटिल बना देती हैं।
  • ऐसी कंपनियाँ जिनमें परिवार का वर्चस्व होता है, में निदेशकों से लेकर कर्मचारियों तक सभी प्रमुख पदों पर परिवार के सदस्य ही नियुक्त होते हैं,अर्थात् संगठन में एकाधिकार की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।

सरकार द्वारा इस दिशा में किये गए प्रयास:

भारतीय संदर्भ में कई बार ऐसा देखा गया है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों का सही से पालन नहीं किया जाता तथा नैतिकता का मुद्दा बार-बार सामने आता है, चाहे वर्ष1984 का भोपाल गैस कांड हो या फिर वर्ष 2009 का सत्यम कंप्यूटर केस।

  • इन्हीं सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए सरकार द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार हेतु समय-समय पर कुछ दिशा-निर्देश जारी किये गए जो इस प्रकार हैं-
  • भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के क्षेत्र में पहला सुधारात्मक प्रयास वर्ष 1988 में सेबी की स्थापना के साथ किया गया। इसके द्वारा शेयर धारकों/ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ मानक निर्धारित किये गए। इन मानकों को अपनाने के बाद ही अब कोई निजी या सार्वजनिक कंपनी पब्लिक इश्यूज़ (Public Issues) जारी कर सकती है।
  • वर्ष 1992 के हर्षद मेहता कांड के बाद सेबी को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया तथा सेबी को कुछ दंडात्मक एवं बाध्यकारी अधिकार भी दिये गए।
  • सेबी एक्ट1992 में सुधार हेतु सुझाव देने के लिये वर्ष 2003 में नारायण मूर्ति समिति का गठन किया गया। इसने कॉर्पोरेट शासन को बेहतर बनाने के लिये कुछ सुझाव प्रस्तुत किये जो इस प्रकार हैं-
    • किसी भी संगठन में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या ⅓ होनी चाहिये जिन्हें बढ़ाकर ½ तक किया जा सकता है। इससे संगठन में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ावा मिलेगा।
    • कोई भी ऐसा कंपनी/संगठन जो शेयर बाज़ार में व्यापार करता है उसके लेखा की जाँच सिर्फ निजी लेखा परीक्षकों द्वारा नहीं बल्कि एक ऑडिट बोर्ड के माध्यम से की जानी चाहिये जिसमें भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा सेवा के अधिकारी भी शामिल हों।
    • समिति द्वारा व्हिसल ब्लोवर नीति को भी अपनाने का सुझाव दिया गया है।
  • वर्ष 2017 में उदय कोटक समिति का गठन किया गया जिसने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों में सुधार हेतु अपने सुझाव सेबी के समक्ष प्रस्तुत किये।
  • इसी क्रम में भारत में कंपनियों के विनियम से संबंधित कम्पनी अधिनयम-2013 भी प्रमुख है। इस अधिनियम के अनुसार कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (C.S.R) समिति का गठन किया जा सकता है जिसमे कम्पनी को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये योजना बनाने, सिफारिश करने और उस पर निगरानी करने के लिये जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
  • इन सबके साथ कॉर्पोरेट शासन को बेहतर बनाने के लिये स्वयं उद्योगपतियों के समुदाय द्वारा संस्थान/संगठन में नैतिकता के आधार पर कार्य करने की संस्कृति का विकास किया जाना चाहिये।

कॉर्पोरेट शासन का महत्व:

  • जिन कंपनियों में कॉर्पोरेट शासन को सही ढंग से प्रबंधन किया जाता है ऐसी कंपनियों पर लोगों का विश्वास बना रहता है।
  • कंपनी में स्वतंत्र निदेशकों की उपस्थिति और उनकी सक्रियता बाज़ार में कंपनी की अच्छी छवि स्थापित करने में मददगार साबित होती है।
  • जब किसी कंपनी में विदेशी संस्थागत निवेश किया जाता तो कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस पर भी खासा ध्यान दिया जाता है।
  • साथ ही कार्पोरेट गवर्नेंस कंपनी के शेयरों की कीमत पर भी असर डालता है। यदि किसी कंपनी का कॉरपोरेट गवर्नेंस बेहतर होता है तो ऐसी कंपनी को बाज़ार से रकम जुटाने में आसानी होती है।
  • साथ ही वैश्विक स्तर पर देश की साख कायम होती है।

निष्कर्ष:

पिछले कुछ समय में बड़ी कंपनियों के दिवालिया होने के बाद, न केवल भारतीय परिदृश्य में बल्कि वैश्विक स्तर पर कॉर्पोरेट शासन की ज़रूरत पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है।

हाँलाकि कॉर्पोरेट शासन प्रणाली अर्थव्यवस्था के लिये तथा शेयर धारकों के हित को सुरक्षित रखने में प्रभावशाली साबित हुई है, फिर भी हमें अभी और कुशल निगरानी, पारदर्शी आंतरिक लेखा परीक्षा प्रणाली, कुशल बोर्ड और प्रबंधन की आवश्यकता है जो एक प्रभावी कॉर्पोरेट प्रशासन को नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं। साथ ही उभरती नई कंपनियों के रणनीतिक प्रबंधन को बढ़ावा देने तथा बाज़ार को स्थिरता प्रदान करने में मददगार साबित हों।

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