जनजातीय समाज का सशक्तीकरण
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, संबंधित पहल मेन्स के लिये:भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपाय, भारत में जनजातीय समूहों द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे, भारत के जनजातीय समाज को सशक्त बनाने के तरीके |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र के संस्कृति, पर्यटन और विकास मंत्री ने राज्यसभा में देश की जनजातीय सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रचार के उद्देश्य से सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं तथा कार्यक्रमों का उल्लेख किया।
भारत में जनजातियों के सशक्तीकरण के हालिया प्रयास:
- क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (Zonal Cultural Centres- ZCCs): भारत सरकार ने सात ZCCs की स्थापना की है जो नियमित आधार पर देश भर में विविध सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों के आयोजन के लिये उत्तरदायी हैं। ये केंद्र देश भर में जनजातीय भाषाओं एवं संस्कृति के संरक्षण में भी सहायता करेंगे।
- पटियाला, नागपुर, उदयपुर, प्रयागराज, कोलकाता, दीमापुर और तंजावुर में मुख्यालय के साथ इन परिषदों की स्थापना की गई है।
- क्षेत्रीय त्योहार: संस्कृति मंत्रालय के तहत प्रत्येक वर्ष क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव और कम-से-कम 42 क्षेत्रीय त्योहारों का आयोजन किया जाता है।
- इन गतिविधियों का समर्थन करने के लिये सरकार सभी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों को अनुदान स्वरूप सहायता प्रदान करती है।
- जनजातीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार: सरकार जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देने, जनजातीय भाषाओं के संरक्षण के लिये द्विभाषी प्राइमर्स के विकास और जनजातीय साहित्य को बढ़ावा देने हेतु राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को अनुदान भी प्रदान करती है।
- जनजातीय अनुसंधान सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (TRU-ECE) योजना: इसके तहत जनजातीय समुदायों की संस्कृति, कलाकृतियों, रीति-रिवाज़ों एवं परंपराओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से TRU-ECE योजना के लिये प्रतिष्ठित संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- एकलव्य मॉडल और संग्रहालय: आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने जनजातीय छात्रों की शिक्षा का समर्थन करने के लिये लगभग 750 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित करने का संकल्प लिया है।
- सरकार ने आदिवासी लोगों के वीरतापूर्ण और देशभक्तिपूर्ण कार्यों को स्वीकार करने के लिये दस जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को भी मंज़ूरी दी है।
- आदिवासी अनुदान प्रबंधन प्रणाली (ADIGRAMS): यह मंत्रालय द्वारा राज्यों को दिये गए अनुदान की भौतिक और वित्तीय प्रगति की निगरानी करती है तथा धनराशि के वास्तविक उपयोग को ट्रैक कर सकती है।
- जनजातीय गौरव दिवस: वर्ष 2021 में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को चिह्नित करने के लिये प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
अन्य संबंधित सरकारी योजनाएँ:
अनुसूचित जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- भारत का संविधान 'जनजाति' शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, हालाँकि अनुसूचित जनजाति' शब्द को अनुच्छेद 342 (i) के माध्यम से संविधान में प्रस्तुत किया गया था।
- इसमें कहा गया है कि 'राष्ट्रपति, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या आदिवासी समुदायों या जनजातियों या आदिवासी समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकता है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में जनजाति सलाहकार परिषद की स्थापना का प्रावधान करती है।
- शैक्षिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 15(4): अन्य पिछड़े वर्गों (इसमें ST भी शामिल हैं) की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान।
- अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा (इसमें ST भी शामिल हैं)।
- अनुच्छेद 46: राज्य, विशेष देखभाल के साथ कमज़ोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से बचाएगा।
- अनुच्छेद 350: एक विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- राजनीतिक सुरक्षा:
- अनुच्छेद 330: लोकसभा में अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 332: राज्य विधानमंडलों में अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 243: पंचायतों में सीटों का आरक्षण।
- प्रशासनिक सुरक्षा:
- अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने तथा उन्हें बेहतर प्रशासन प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष धनराशि देने का प्रावधान करता है।1212
भारत में जनजातियों की समस्याएँ:
- भूमि अधिकार: आदिवासी समुदायों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक सुरक्षित भूमि अधिकारों की कमी है। अनेक जनजातियाँ वन क्षेत्रों या दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ भूमि और संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को अक्सर मान्यता नहीं दी जाती है जिससे विस्थापन एवं भूमि अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- सामाजिक-आर्थिक पहुँच का अभाव: जनजातीय आबादी की स्थिति अक्सर सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर होती है जिसमें गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं स्वच्छ पेयजल तथा स्वच्छता सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच की कमी शामिल है।
- शिक्षा अंतराल: जनजातीय आबादी के बीच शिक्षा का स्तर आमतौर पर राष्ट्रीय औसत से कम है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच की कमी, सांस्कृतिक बाधाएँ और भाषायी अंतर आदिवासी बच्चों के शैक्षिक विकास में बाधा बन सकते हैं।
- शोषण और बंधुआ मज़दूरी: कुछ आदिवासी समुदाय शोषण, बंधुआ मज़दूरी एवं मानव तस्करी के प्रति संवेदनशील हैं, विशेषकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में जहाँ कानून प्रवर्तन कमज़ोर है।
- सांस्कृतिक क्षरण: तीव्रता से हो रहे शहरीकरण एवं आधुनिकीकरण से जनजातीय संस्कृतियों, भाषाओं और उनकी पारंपरिक प्रथाओं का क्षरण हो सकता है। युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रतिनिधित्व का अभाव: सुरक्षात्मक उपायों के बावजूद जनजातीय समुदायों को प्रायः अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व का सामना करना पड़ता है, साथ ही निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में एक प्रबल प्रतिनिधित्व की कमी होती है जो उनके कल्याण और अधिकारों से संबंधित होती है।
आगे की राह
- भूमि एवं संसाधन अधिकार: जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिये उनके भूमि एवं संसाधन अधिकारों की पहचान तथा उन्हें सुरक्षित करना आवश्यक है। विस्थापन एवं भूमि हस्तांतरण जनजातियों द्वारा सामना किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दे रहे हैं और साथ ही इन चिंताओं को संबोधित करना उनके अस्तित्व के लिये भी आवश्यक है।
- शिक्षा एवं कौशल विकास: जनजातीय समुदायों की आवश्यकताओं तथा सांस्कृतिक संदर्भ के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करने से उन्हें बेहतर आजीविका के अवसरों को प्राप्त करने के साथ अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा एवं स्वच्छता: जनजातीय समुदायों के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिये उचित स्वास्थ्य सुविधाओं तथा स्वच्छता तक पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है, जो प्रायः भौगोलिक अलगाव और सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण अद्वितीय स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करते हैं।
- महिलाओं का सशक्तीकरण: आदिवासी समाजों में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के साथ निर्णय लेने की प्रक्रियाओं, आर्थिक गतिविधियों तथा सामुदायिक विकास में उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना।
- स्वदेशी संस्कृति का प्रचार: भारत की विरासत की समृद्ध विविधता को बनाए रखने के लिये जनजातीय भाषाओं, कला, परंपराओं तथा सांस्कृतिक प्रथाओं का संरक्षण एवं प्रचार करना महत्त्वपूर्ण है।
- भागीदारी एवं समावेशन: स्थानीय शासन और नीति-निर्माण निकायों में जनजातीय प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करना, जो यह सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगा कि उन मामलों में उनकी आवाज़ सुनी जाए जो सीधे उनके जीवन को प्रभावित करते हैं
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. आप उन आँकड़ों की व्याख्या कैसे करते हैं जो दर्शाते हैं कि भारत में जनजातियों में लिंग अनुपात अनुसूचित जातियों में लिंग अनुपात की तुलना में महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल है? (2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
टीकाकरण की दिशा में वैश्विक प्रयास
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, DTP वैक्सीन, कोविड-19 महामारी, ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV), प्रतिरक्षण रणनीति 2030, विश्व टीकाकरण सप्ताह, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष मेन्स के लिये:भारत में टीकाकरण की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की है कि वर्ष 2022 के दौरान वैश्विक टीकाकरण प्रयासों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2022 में 4 मिलियन से अधिक बच्चों का टीकाकरण किया गया, जो वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों से निपटने के लिये देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सामूहिक प्रयासों को दर्शाता है।
वैश्विक टीकाकरण प्रयासों में प्रमुख प्रगति:
- टीकाकरण कवरेज में सकारात्मक रुझान:
- वैश्विक मार्कर के रूप में DTP3 वैक्सीन का उपयोग:
- DTP3 वैक्सीन, डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (काली खाँसी) से बचाती है, जो विश्व में टीकाकरण कवरेज के लिये मानक संकेतक के रूप में कार्य करती है।
- WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में शून्य खुराक वाले बच्चों (जिन्हें DTP वैक्सीन,की पहली खुराक भी नहीं मिली है) की संख्या वर्ष 2021 के 4.6 मिलियन से आधी होकर वर्ष 2022 में 2.3 मिलियन हो गई।
- भारत में DTP की कवरेज दर वर्ष 2022 में बढ़कर 93% हो गई, जो वर्ष 2019 में दर्ज की गई महामारी से पहले की तुलना में 91% (सबसे अच्छा लक्ष्य) तक रही।
- महामारी से संबंधित व्यवधानों से उभरना:
- महामारी के दौरान टीकाकरण कवरेज में महत्त्वपूर्ण गिरावट का अनुभव करने वाले 73 देशों में से 15 महामारी-पूर्व स्तर पर पहुँच गए हैं और 24 देश सुधार की राह पर हैं।
- HPV टीकाकरण दरें:
- ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) टीकाकरण दरें महामारी-पूर्व स्तर पर वापस आ गई हैं, लेकिन वे 90% के लक्ष्य से नीचे बनी हुई हैं।
- वैश्विक मार्कर के रूप में DTP3 वैक्सीन का उपयोग:
- दीर्घकालीन असमानताएँ और वर्तमान चुनौतियाँ:
- पुनर्प्राप्ति और प्रणाली सुदृढ़ीकरण में असमानता:
- अनेक छोटे और गरीब देशों को अभी भी टीकाकरण सेवाओं को बहाल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि कुछ देशों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
- 34 देशों में टीकाकरण की दर स्थिर है या इसमें और गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है जो वर्तमान में संचालित कैच-अप और प्रणाली को सुदृढ़ करने के प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- खसरा टीकाकरण को लेकर चिंता का कारण:
- खसरा (वायरल बीमारी जो आमतौर पर बच्चों को प्रभावित करती है) टीकाकरण की दर में अन्य टीकों की तरह प्रभावी वृद्धि नहीं हो रही है।
- इससे वैश्विक स्तर पर अतिरिक्त 35.2 मिलियन बच्चों में खसरे के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
- खसरा टीकाकरण की पहली खुराक की दर वर्ष 2022 में बढ़कर 83% हो गई है लेकिन यह वर्ष 2019 के 86% से कम है।
- खसरा (वायरल बीमारी जो आमतौर पर बच्चों को प्रभावित करती है) टीकाकरण की दर में अन्य टीकों की तरह प्रभावी वृद्धि नहीं हो रही है।
- पुनर्प्राप्ति और प्रणाली सुदृढ़ीकरण में असमानता:
टीकाकरण से संबंधित प्रमुख वैश्विक पहल:
- टीकाकरण एजेंडा 2030 (IA2030): यह 2021-2030 के दशक के लिये टीकों और टीकाकरण हेतु एक महत्त्वाकांक्षी, व्यापक वैश्विक नीति एवं रणनीति निर्धारित करता है।
- दशक के अंत तक IA2030 का लक्ष्य:
- शून्य टीके की खुराक प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या में 50% की कमी करना।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 500 नए या कम उपयोग वाले टीकों की शुरुआत का लक्ष्य प्राप्त करना।
- बचपन के आवश्यक टीकों के लिये 90% कवरेज प्राप्त करना।
- दशक के अंत तक IA2030 का लक्ष्य:
- विश्व टीकाकरण सप्ताह: यह प्रत्येक वर्ष अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है।
- वर्ष 2023 के लिये थीम- 'द बिग कैच-अप'।
भारत में टीकाकरण की स्थिति:
- परिचय:
- भारत अपने सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के माध्यम से वार्षिक तौर पर 30 मिलियन से अधिक गर्भवती महिलाओं एवं 27 मिलियन बच्चों का टीकाकरण करता है।
- एक बच्चे को पूरी तरह से प्रतिरक्षित तब माना जाता है जब उसे जीवन के पहले वर्ष के भीतर राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सभी आवश्यक टीके लगा दिये जाते हैं।
- हालाँकि यूनिसेफ के अनुसार, भारत में केवल 65% बच्चों का पूर्ण टीकाकरण उनके जीवन के पहले वर्ष के दौरान किया जाता है।
- भारत में प्रमुख टीकाकरण कार्यक्रम:
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP):
- यह कार्यक्रम 12 वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों के खिलाफ मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर 9 बीमारियों के उन्मूलन हेतु प्रयास: ये हैं- डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक का गंभीर रूप, हेपेटाइटिस बी तथा मेनिनजाइटिस एवं हेमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा प्रकार बी के कारण होने वाला निमोनिया।
- उप-राष्ट्रीय स्तर पर 3 बीमारियों के उन्मूलन हेतु प्रयास: इनमें रोटावायरस डायरिया, न्यूमोकोकल निमोनिया और जापानी इंसेफेलाइटिस शामिल हैं।
- UIP द्वारा हासिल किये गए दो प्रमुख लक्ष्य हैं- वर्ष 2014 में पोलियो का उन्मूलन और वर्ष 2015 में माताओं और नवजातों में टेटनस का उन्मूलन।
- मिशन इंद्रधनुष:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में UIP के तहत सभी अप्रतिरक्षित और आंशिक रूप से प्रतिरक्षित बच्चों का टीकाकरण करने के उद्देश्य से मिशन इंद्रधनुष शुरू किया गया था।
- इसका चरणबद्ध तरीके से क्रियान्वयन किया जा रहा है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में UIP के तहत सभी अप्रतिरक्षित और आंशिक रूप से प्रतिरक्षित बच्चों का टीकाकरण करने के उद्देश्य से मिशन इंद्रधनुष शुरू किया गया था।
- अन्य सहायक उपाय:
- इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN) रोलआउट
- राष्ट्रीय कोल्ड चेन प्रबंधन सूचना प्रणाली (National Cold Chain Management Information System- NCCMIS)
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP):
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. ‘भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016) (a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण उत्तर: (a) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे मेन्स के लिये:भारत में बच्चों के डूबने की आशंका, डूबने से बचाव के लिये प्रभावी उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में ड्राउनिंग (डूबने) की घटनाओं की चिंताजनक संख्या, जिनमें एक महत्त्वपूर्ण अनुपात बच्चों का है, ने निवारक उपायों की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया है।
- वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे (World Drowning Prevention Day) की पृष्ठभूमि में ड्राउनिंग के कारण होने वाली मृत्यु के कारणों को संबोधित करना और रोकथाम हेतु सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है जो इन त्रासदियों को रोकने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे:
- वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे एक वैश्विक कार्यक्रम है जो डूबने के कारण खोई जिंदगियों को याद करने के साथ ही जल और उसके आसपास सुरक्षा के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 25 जुलाई को आयोजित किया जाता है।
- वर्ल्ड ड्राउनिंग प्रिवेन्शन डे, अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव द्वारा घोषित किया गया था, जिसने डूबने की घटनाओं की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर कार्यों के समन्वय के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को आमंत्रित किया था।
- यह दिन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि डूबना एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जिसके कारण पिछले दशक में 2.5 मिलियन से अधिक मौतें अधिकतर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई हैं।
- हालाँकि डूबने से होने वाली मानवीय, सामाजिक तथा आर्थिक क्षति असहनीय है, लेकिन इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है।
- डूबने की घटनाओं की रोकथाम के लिये साक्ष्य-आधारित, किफायती रणनीतियों को लागू करके डूबने के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।
ड्राउनिंग से संबंधित घटनाओं के आँकड़े:
- WHO के नवीनतम वैश्विक स्वास्थ्य अनुमान से संकेत मिलता है कि वर्ष 2019 में लगभग 2,36,000 लोगों की डूबने या ड्राउनिंग के कारण मृत्यु हो गई थी।
- इनमें से 50% से अधिक मौतें 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों की हुई थीं तथा 5-14 वर्ष की आयु के बच्चों की डूबने से होने वाली मृत्यु विश्व भर में होने वाली मौतों का छठा प्रमुख कारण है।
- ड्राउनिंग की सबसे अधिक दर 1-4 वर्ष की आयु के बच्चों की है। इसके बाद वैश्विक स्तर पर 5-9 वर्ष की आयु के बच्चे इसमें शामिल हैं।
- ड्राउनिंग विश्व भर में अनजाने में चोट के कारण होने वाली मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है जो चोट से संबंधित सभी मौतों का 7% है।
- लड़कियों की तुलना में लड़कों में ड्राउनिंग का खतरा अधिक होता है।
- शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ड्राउनिंग की दर अधिक है।
- सुरक्षित जल तक सीमित पहुँच के कारण ड्राउनिंग की आशंका बढ़ जाती है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2021 में डूबने से 36,362 मौतें हुईं, इनमें बच्चे विशेष रूप से सुभेद्य थे।
ड्राउनिंग का कारण और इसके जोखिम:
- ड्राउनिंग को तरल पदार्थ में डूबने या डुबाने से श्वसन हानि का अनुभव करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है।
- डूबने की घटना विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे- बाढ़, तूफान, नाव दुर्घटनाएँ, पर्यवेक्षण की कमी, असुरक्षित जल स्रोत या मनोरंजक गतिविधियाँ।
- डूबने के मुख्य जोखिम कारकों में उम्र, लिंग, स्थान, जल तक पहुँच, तैराकी की क्षमता, शराब का उपयोग और जागरूकता की कमी शामिल हैं।
- तैराकी कौशल और जल सुरक्षा के संबंध में जागरूकता की कमी डूबने के जोखिम को बढ़ा सकती है।
- शराब के सेवन से निर्णय लेने में कठिनाई होती है और डूबने की संभावना बढ़ जाती है।
- डूबने से बचाव के उपायों के बारे में जागरूकता की कमी सुरक्षात्मक उपायों को कम कर देती है।
ड्राउनिंग से बचाव के लिये कुछ प्रभावी उपाय:
- पहुँच को नियंत्रित करने के लिये जल निकायों (पूल, कुएँ, तालाब) के चारों ओर अवरोध स्थापित करना।
- बच्चों और वयस्कों के लिये जल से दूर सुरक्षित क्षेत्र उपलब्ध कराना।
- तैराकी और जल सुरक्षा संबंधी कौशल प्रशिक्षण, विशेषकर उन लोगों को जो जल निकायों के पास रहते हैं या जल से संबंधित गतिविधियों में संलग्न हैं।
- दर्शकों को सुरक्षित बचाव और पुनर्जीवन तकनीकों की जानकारी देना, जैसे- हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन (Cardiopulmonary Resuscitation- CPR) या मुँह से साँस देने का प्रशिक्षण।
- लाइफ जैकेट पहनने और उचित रखरखाव सहित सुरक्षित नौकायन एवं शिपिंग नियमों को लागू करना।
- बाढ़ प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे और पूर्व चेतावनी प्रणालियों के साथ बाढ़ जोखिम प्रबंधन में सुधार करना।
ड्राउनिंग से होने वाली मौतों की रोकथाम हेतु सरकारी पहल:
- भारत:
- भारत सरकार ने देश में ड्राउनिंग की घटनाओं की रोकथाम की रूपरेखा का मसौदा तैयार करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति की स्थापना की है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने फरवरी 2022 में ड्राउनिंग की घटनाओं की रोकथाम को कवर करते हुए एक 'राष्ट्रीय आपातकालीन जीवन सहायता' प्रदाता पाठ्यक्रम मैनुअल पेश किया।
- वैश्विक:
- ड्राउनिंग की घटनाओं की रोकथाम के लिये वैश्विक गठबंधन की स्थापना 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक के दौरान की गई थी।
- इसका लक्ष्य वर्ष 2029 तक ड्राउनिंग से संबंधित वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं को दूर करना है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन कार्रवाई का समन्वय करेगा और ड्राउनिंग की घटनाओं पर एक वैश्विक स्थिति रिपोर्ट तैयार करेगा।
स्रोत: द हिंदू
बौद्धिक संपदा अधिकार नीति प्रबंधन संरचना
प्रिलिम्स के लिये:बौद्धिक संपदा अधिकार नीति प्रबंधन संरचना, राष्ट्रीय आईपीआर (बौद्धिक संपदा अधिकार) नीति 2016, भौगोलिक टैग, कॉपीराइट, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा मेन्स के लिये:बौद्धिक संपदा अधिकार, आवश्यकता और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने राज्यसभा को बौद्धिक संपदा अधिकार नीति प्रबंधन (IPRPM) फ्रेमवर्क के बारे में जानकारी दी है।
IPRPM फ्रेमवर्क:
- परिचय:
- इस फ्रेमवर्क को राष्ट्रीय IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) नीति, 2016 के रूप में प्रारंभ किया गया था, जिसमें IP कानूनों के कार्यान्वयन, निगरानी और समीक्षा के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित करते हुए सभी IPR को एक एकल दृष्टि दस्तावेज़ में शामिल किया गया था।
- फ्रेमवर्क के अंतर्गत शामिल IPR के प्रकार:
क्षेत्र |
कानूनी प्रावधान |
विषय |
संरक्षण की अवधि |
पेटेंट |
पेटेंट अधिनियम, 1970 और पेटेंट नियम, 2003 को 2014, 2016, 2017, 2019, 2020 तथा 2021 में संशोधित किया गया। |
हमें अर्हता प्राप्त करने की आवश्यकता है नवीन, आविष्कारशील और औद्योगिक उपयोगिता वाला होना |
20 वर्ष |
ट्रेडमार्क |
ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और ट्रेडमार्क नियम, 2017 |
ब्रांड नाम की सुरक्षा, किसी व्यवसाय या वाणिज्यिक उद्यम के लिये लोगो, डिज़ाइन |
10 वर्ष; अतिरिक्त शुल्क के भुगतान पर 10 वर्षों के लिये नवीनीकरण किया जाता है |
डिज़ाइन |
डिज़ाइन अधिनियम 2000 और डिज़ाइन (संशोधन) नियम, 2021 |
नए या मूल डिज़ाइन (सजावटी/दृश्य स्वरूप जिसे मानव आँख देख सकती है) जिसे औद्योगिक रूप से दोहराया जा सकता है |
10 + 5 वर्ष |
कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और कॉपीराइट नियम, 2013 में 2021 में संशोधन किया गया। |
सृजनात्मक, कलात्मक, साहित्यिक, संगीतमय और श्रव्य-दृश्य कार्य |
लेखक- लाइफटाइम+ 60 वर्ष; निर्माता- 60 वर्ष कलाकार- 50 वर्ष |
|
भौगोलिक संकेत अधिनियम, 1999 और जीआई नियम, 2002 में 2020 संशोधन किया गया |
भौगोलिक जुड़ाव के कारण अद्वितीय विशेषताओं वाले सामान- कृषि सामान, प्राकृतिक सामान, निर्मित सामान, हस्तशिल्प और खाद्य पदार्थ |
10 वर्ष, नवीकृत 10 वर्षों तक अतिरिक्त शुल्क का भुगतान |
|
सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट लेआउट डिज़ाइन |
सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट लेआउट डिज़ाइन अधिनियम, 2000 और नियम, 2001 |
ट्रांज़िस्टर का एक लेआउट और ऐसे तत्त्वों को जोड़ने वाले लीड तारों सहित अन्य चालकीय तत्त्व और सेमीकंडक्टर एकीकृत सर्किट में किसी भी तरीके से व्यक्त किये जाते हैं। |
10 वर्ष |
व्यापार गोपनीयता |
सामान्य विधि आईपीसी, अनुबंध अधिनियम, आईपी अधिनियम और कॉपीराइट के माध्यम से कवर किया गया दृष्टिकोण |
व्यावसायिक मूल्य वाली गोपनीय जानकारी |
जब तक गोपनीयता सुरक्षित रखी जाती है |
पौधों की विविधताएँ |
पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम (PPVFRA), 2001 |
पारंपरिक किस्में और भूमि प्रजातियाँ, व्यापार/उपयोग में आने वाली सभी विकसित किस्में (गैर-पारंपरिक एवं गैर-भूमि प्रजाति) जो 1 वर्ष से अधिक पुरानी हों तथा 15 वर्ष या 18 वर्ष से अधिक पुरानी न हों (पेड़ों और लताओं के मामले में), तथा नई पौधों की प्रजातियाँ। |
6-10 वर्ष |
- उद्देश्य:
- IPR जागरूकता: समाज के सभी वर्गों के बीच IPR के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने हेतु आउटरीच और प्रचार कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण है।
- IPR का सृजन: IPR के सृजन को प्रोत्साहित करना।
- कानूनी और विधायी संरचना: सुदृढ़ और प्रभावी IPR कानून बनाना जो बड़े सार्वजनिक हित के साथ मालिकों के हितों को संतुलित करता है।
- प्रशासन और प्रबंधन: सेवा उन्मुख IPR प्रशासन को आधुनिक और सुदृढ़ बनाना।
- IPR का व्यावसायीकरण: व्यावसायीकरण के माध्यम से IPR का उचित मूल्य प्राप्त करना।
- प्रवर्तन और न्यायनिर्णयन: IPR उल्लंघन से निपटने के लिये प्रवर्तन और न्यायनिर्णयन तंत्र को सुदृढ़ करना।
- मानव पूंजी विकास: IPR में शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान एवं कौशल निर्माण के लिये मानव संसाधनों, संस्थानों और क्षमताओं को मज़बूत एवं विस्तारित करना।
- IPR नीति के तहत पहल:
- राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन (NIPAM): यह शैक्षणिक संस्थानों में IP जागरूकता और बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये एक प्रमुख कार्यक्रम है।
- राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा (IP) पुरस्कार: यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष व्यक्तियों, संस्थानों, संगठनों और उद्यमों को उनके IP निर्माण एवं व्यावसायीकरण के लिये शीर्ष उपलब्धि हासिल करने वालों की पहचान एवं पुरस्कृत करने हेतु प्रदान किये जाते हैं।
- स्टार्ट-अप बौद्धिक संपदा संरक्षण (SIPP) की सुविधा हेतु योजना: यह स्टार्ट-अप द्वारा पेटेंट आवेदन दाखिल करने को प्रोत्साहित करती है।
- पेटेंट सुविधा कार्यक्रम: इसका उद्देश्य पेटेंट योग्य आविष्कारों की खोज करना तथा पेटेंट दाखिल करने और प्राप्त करने में पूर्ण वित्तीय, तकनीकी एवं कानूनी सहायता प्रदान करना है।
बौद्धिक संपदा अधिकार:
- परिचय:
- IPR व्यक्तियों को उनके निर्माण पर दिया गया अधिकार है। ये आमतौर पर रचनाकार को एक निश्चित अवधि के लिये उसकी रचना के उपयोग पर विशेष अधिकार देते हैं।
- इन अधिकारों को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 27 में उल्लिखित किया गया है जो वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक प्रस्तुतियों के परिणामस्वरूप नैतिक एवं भौतिक हितों की सुरक्षा एवं लाभ पाने का अधिकार प्रदान करता है।
- बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883) और साहित्यिक एवं कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886) में मान्यता दी गई थी।
- ये दोनों संधियाँ विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा प्रशासित हैं।
- IPR की आवश्यकता:
- नवाचार को प्रोत्साहित करना:
- नई रचनाओं का कानूनी संरक्षण भावी नवाचार के लिये अतिरिक्त संसाधनों की प्रतिबद्धता को प्रोत्साहित करता है।
- आर्थिक विकास:
- बौद्धिक संपदा का प्रचार एवं संरक्षण आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। इसके साथ नई नौकरियाँ और उद्योग हेतु अवसर उत्पन्न करता है तथा जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
- रचनाकारों के अधिकारों की रक्षा:
- IPR को निर्मित वस्तुओं के उपयोग को नियंत्रित करने के लिये कुछ समय-सीमित अधिकार प्रदान करके रचनाकारों और उनकी बौद्धिक वस्तुओं, वस्तुओं एवं सेवाओं के अन्य उत्पादकों की सुरक्षा करना आवश्यक है।
- व्यापार करने में आसानी:
- यह नवाचार एवं रचनात्मकता को बढ़ावा देता है तथा व्यापार करने में सरलता को सुनिश्चित करता है।
- प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण:
- यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, संयुक्त उद्यम और लाइसेंसिंग के रूप में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
- नवाचार को प्रोत्साहित करना:
IPR व्यवस्था से संबंधित मुद्दे:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पेटेंट-मित्रता: राष्ट्रीय IPR नीति वैश्विक स्तर पर सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराने में भारतीय फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के योगदान को मान्यता देती है। हालाँकि भारत की पेटेंट स्थापना ने फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय हित पर पेटेंट-मित्रता को प्राथमिकता दी है।
डेटा विशिष्टता: विदेशी निवेशकों और बहु-राष्ट्रीय निगमों (MNC) का आरोप है कि भारतीय कानून फार्मास्यूटिकल या कृषि-रसायन उत्पादों के बाज़ार अनुमोदन के लिये आवेदन के दौरान सरकार को प्रस्तुत किये गए परीक्षण डेटा या अन्य डेटा के अनुचित व्यावसायिक उपयोग से रक्षा नहीं करता है। इसके लिये वे डेटा विशिष्टता कानून की मांग करते हैं।
प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार में परिणाम: पेटेंट अधिनियम में चार हितधारक हैं: समाज, सरकार, पेटेंटधारी और उनके प्रतिस्पर्द्धी तथा केवल पेटेंटधारकों को लाभ पहुँचाने के लिये अधिनियम की व्याख्या करना और लागू करना अन्य हितधारकों के अधिकारों को कमज़ोर करता है एवं प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार परिणामों की ओर ले जाता है।
IPR से संबंधित संधियाँ और अभिसमय:
- वैश्विक:
- भारत WTO (विश्व व्यापार संगठन) का सदस्य है और TRIPS (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू) समझौते के लिये प्रतिबद्ध है।
- भारत WIPO (विश्व बौद्धिक संपदा संगठन) का भी सदस्य है, जो विश्व में बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार निकाय है।
- भारत IPR से संबंधित निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण WIPO-प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अभिसमयों का भी सदस्य है:
- पेटेंट प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों के जमाव की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पर बुडापेस्ट संधि (वर्ष 1977 में अपनाई गई)।
- औद्योगिक संपत्ति की सुरक्षा के लिये पेरिस अभिसमय (वर्ष1883 में अपनाया गया)।
- विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना पर अभिसमय (वर्ष 1967 में अपनाया गया)।
- साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (वर्ष 1886 में अपनाया गया)।
- पेटेंट सहयोग संधि प्रणाली (Patent Cooperation Treaty system)(वर्ष 1970 में अपनाई गई)।
- राष्ट्रीय:
- भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970:
- भारत में पेटेंट प्रणाली के लिये यह प्रमुख कानून वर्ष 1972 में लागू हुआ। इसने भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम, 1911 का स्थान लिया।
- अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया था, जिसमें उत्पाद पेटेंट को भोजन, दवाओं, रसायनों और सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक बढ़ाया गया था।
- भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970:
आगे की राह
- एक विकासशील देश के रूप में भारत को दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं तक पहुँच प्रदान करने और पेटेंट के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करने के बीच संतुलन बनाने में अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- भारत उन उपायों को अपना सकता है जो किफायती स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आवश्यक वस्तुओं तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं।
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी और व्यवसाय मॉडल विकसित हो रहे हैं, प्रासंगिक व प्रभावी बने रहने के लिये IPR कानूनों की नियमित समीक्षा एवं उन्हें अद्यतन करना आवश्यक है।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये IPR व्यवस्था में लचीलापन आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. वैश्वीकृत संसार में बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014) |
स्रोत: पी.आई.बी.
सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सौर ऊर्जा का रोडमैप
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ ऊर्जा, सौर ऊर्जा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, राष्ट्रीय सौर मिशन, PM-कुसुम मेन्स के लिये:भारत में सौर ऊर्जा और विकास, सौर ऊर्जा से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिये सरकारी योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के साथ साझेदारी में वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता के अंतर्गत विकसित 'सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सौर ऊर्जा के रोडमैप' पर रिपोर्ट का अनावरण किया, जिसमें दर्शाया गया है कि कैसे सौर ऊर्जा वैश्विक स्तर पर विद्युत तक पहुँच प्राप्त करने और सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- गोवा में आयोजित G20 ऊर्जा रूपांतरण कार्य समूह (Energy Transition Working Group) की चौथी बैठक के दौरान रोडमैप का अनावरण किया गया। यह वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच प्राप्त करने पर केंद्रित है और टिकाऊ ऊर्जा समाधान में सौर मिनी ग्रिड की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- रोडमैप वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच प्राप्त करने के लिये एक प्रमुख समाधान के रूप में सौर ऊर्जा पर ज़ोर देता है।
- यह गैर-विद्युतीकृत आबादी के लगभग 59% (396 मिलियन लोगों) की पहचान करता है जो सौर-आधारित मिनी-ग्रिड के माध्यम से विद्युतीकरण के लिये सबसे उपयुक्त हैं।
- लगभग 30% गैर-विद्युतीकृत आबादी (203 मिलियन लोग) को ग्रिड विस्तार के माध्यम से विद्युतीकृत किया जा सकता है और शेष 11% गैर-विद्युतीकृत आबादी (77 मिलियन लोग) को विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधान के माध्यम से विद्युतीकृत किया जा सकता है।
- सौर-आधारित मिनी-ग्रिड, सौर-आधारित विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और ग्रिड विस्तार के बीच वितरित विद्युतीकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये लगभग 192 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल निवेश की आवश्यकता है।
- मिनी-ग्रिड परिनियोजन का समर्थन करने के लिये लगभग 50% (48.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की व्यवहार्यता अंतर-निधि की आवश्यकता है।
- रोडमैप सौर ऊर्जा समाधानों के सफल और टिकाऊ विस्तार के लिये नीतियों, विनियमों और वित्तीय जोखिमों से संबंधित चुनौतियों के समाधान के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- यह विद्युतीकरण पहल को आगे बढ़ाने के लिये ऊर्जा पहुँच की कमी वाले क्षेत्रों में तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञता, कौशल विकास एवं जागरूकता सृजन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- रिपोर्ट सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच में तेज़ी लाने के लिये बढ़े हुए निवेश, पारिस्थितिकी तंत्र विकास और इष्टतम संसाधन उपयोग की वकालत करती है।
- दूरस्थ और अविकसित क्षेत्रों में ऊर्जा पहुँच बढ़ाने के एक तरीके के रूप में विद्युतीकरण पहल के साथ सौर PV-आधारित खाना पकाने के समाधानों के एकीकरण पर ज़ोर दिया गया है।
सौर मिनी ग्रिड:
- परिचय:
- सौर मिनी-ग्रिड छोटे पैमाने पर विद्युत उत्पादन और वितरण प्रणालियाँ हैं जो विद्युत उत्पन्न करने तथा इसे बैटरी में संग्रहीत करने के लिये सौर फोटोवोल्टिक (PV) तकनीक का उपयोग करती हैं।
- वे आमतौर पर उन समुदायों या क्षेत्रों को विद्युत प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं जिन्हें या तो मुख्य पावर ग्रिड से कनेक्ट करने की आवश्यकता होती है या बार-बार विद्युत कटौती का अनुभव होता है।
- महत्त्व:
- वैश्विक आबादी के लगभग 9% के पास अभी भी विद्युत तक पहुँच नहीं है, उप-सहारा अफ्रीका और ग्रामीण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- सौर मिनी ग्रिड इन समुदायों को विश्वसनीय और किफायती विद्युत प्रदान करके इस चुनौती से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- इसके अलावा वैश्विक स्तर पर 1.9 बिलियन से अधिक लोगों के पास स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुँच नहीं है और सौर मिनी-ग्रिड भी इलेक्ट्रिक स्टोव या अन्य खाना पकाने के उपकरणों को विद्युत प्रदान कर सकते हैं।
- वैश्विक आबादी के लगभग 9% के पास अभी भी विद्युत तक पहुँच नहीं है, उप-सहारा अफ्रीका और ग्रामीण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- सौर मिनी ग्रिड के लाभ:
- विश्वसनीयता: सौर ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की सहायता से विद्युत का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है जो प्राकृतिक आपदाओं या विद्युत कटौती के दौरान भी लचीला बना रहता है।
- वहनीयता: सौर ऊर्जा एक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है।
- मापनीयता: सौर मिनी ग्रिड को समुदाय की ऊर्जा मांग के आधार पर ऊपर या नीचे बढ़ाया जा सकता है, जिससे वे ऊर्जा पहुँच के लिये एक लचीला विकल्प बन जाते हैं।
- सौर मिनी-ग्रिड सामर्थ्य:
- दूरदराज़ के क्षेत्रों या द्वीपों में सौर ऊर्जा डीज़ल जनरेटर का एक लागत प्रभावी विकल्प है, जहाँ महँगे ईंधन परिवहन के कारण विद्युत की लागत 36 रुपए प्रति यूनिट तक हो सकती है।
- सौर ऊर्जा का उपयोग इन क्षेत्रों में विद्युत के खर्च को कम करने के लिये एक स्थायी और आर्थिक रूप से व्यवहार्य समाधान प्रदान करता है।
- विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा की तैनाती को फीड-इन टैरिफ और ग्रिड-कनेक्टेड क्षमता के लिये टैरिफ पुनर्गठन के माध्यम से समर्थित किया जाता है।
- बड़े पैमाने पर खरीद के साथ बैटरी की लागत में अपेक्षित कमी से सौर मिनी-ग्रिड के विकास को और बढ़ावा मिलेगा।
- दूरदराज़ के क्षेत्रों या द्वीपों में सौर ऊर्जा डीज़ल जनरेटर का एक लागत प्रभावी विकल्प है, जहाँ महँगे ईंधन परिवहन के कारण विद्युत की लागत 36 रुपए प्रति यूनिट तक हो सकती है।
सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सौर ऊर्जा की परिनियोजन चुनौतियाँ:
- ऐसी सक्षम नीतियों एवं विनियमों का अभाव जो सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सौर ऊर्जा की तैनाती का समर्थन कर सकें।
- निरंतर आपूर्ति के लिये उपकरण निर्माण, ऑन-ग्राउंड निष्पादन तथा रखरखाव में चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
- सौर पैनलों पर धूल जमा होने से एक महीने में उनका उत्पादन 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है, जिससे नियमित सफाई की आवश्यकता होती है।
- जल रहित सफाई तकनीकें श्रम-गहन हैं और सतहों को खरोंचती हैं, लेकिन वर्तमान जल-आधारित सफाई तकनीकें वार्षिक लगभग 10 बिलियन गैलन जल का उपयोग करती हैं।
- विकासशील देशों में उच्च वित्तीय जोखिमों के परिणामस्वरूप उपभोक्ता सामर्थ्य और आपूर्तिकर्त्ता व्यवहार्यता के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।
- सौर मिनी ग्रिड को लागू करने के साथ उनको बनाए रखने के लिये अधिक तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA):
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान वर्ष 2015 में भारत और फ्राँँस द्वारा सह-स्थापित ISA सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की बढ़ती तैनाती के लिये एक कार्य-उन्मुख, सदस्य-संचालित, सहयोगी मंच है।
- इसका मूल उद्देश्य अपने सदस्य देशों में ऊर्जा पहुँच को सुविधाजनक बनाना, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ऊर्जा परिवर्तन को बढ़ावा देना है।
- ISA, वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड (OSOWOG) को लागू करने के लिये नोडल एजेंसी है, जो एक क्षेत्र में उत्पन्न सौर ऊर्जा को दूसरों की विद्युत मांगों को पूरा करने के लिये स्थानांतरित करना चाहता है।
- मुख्यालय:
- इसका मुख्यालय भारत में है तथा इसका अंतरिम सचिवालय गुरूग्राम में स्थापित किया गया है।
- सदस्य राष्ट्र:
- कुल 109 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, साथ ही 90 देशों ने इसकी पुष्टि की है।
- संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राज्य ISA में शामिल होने के पात्र हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को पर्यवेक्षक का दर्जा:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) को पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया है।
- यह गठबंधन और संयुक्त राष्ट्र के बीच नियमित एवं स्पष्ट रूप से परिभाषित सहयोग में सहायता प्रदान करेगा जिससे वैश्विक ऊर्जा वृद्धि के साथ विकास भी होगा।
- SDG 7:
- सतत विकास लक्ष्य 7 (SDG7) वर्ष 2030 तक "सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा" का आह्वान करता है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य वर्ष 2030 तक हमारे कार्य की नींव हैं।
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने हेतु सरकारी योजनाएँ:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
- राष्ट्रीय सौर मिशन
- किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-कुसुम)
- एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड (OSOWOG)
- सोलर पार्क योजना
- रूफटॉप सौर योजना
आगे की राह
- सक्षम नीति और नियामक संरचना विकसित करने में विकासशील देशों की सहायता करना।
- ऊर्जा परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना।
- विद्युतीकरण पहल के साथ सौर PV-आधारित भोजन पकाने के समाधान का एकीकरण करना।
- निवेश आकर्षित करने के लिये प्रोत्साहन एवं सब्सिडी प्रदान करना। हरित बॉण्ड जैसे नवीन वित्तपोषण मॉडल की खोज करना।
- पवन या बायोमास ऊर्जा के साथ संकरण मिनी-ग्रिड की विश्वसनीयता बढ़ाता है तथा विद्युत उपकरणों की लागत कम करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020) |
स्रोत: पी.आई.बी.
सतत् पशुधन परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
प्रिलिम्स के लिये:G20, अनुच्छेद 48, अनुच्छेद 51A(g), गाँठदार त्वचा रोग, गर्मी का तनाव, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 मेन्स के लिये:भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
G20 के कृषि कार्य समूह (AWG) के तहत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, आनंद में सतत् पशुधन परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया।
भारत में पशुधन क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई हिस्से को आजीविका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।
- भारत में डेयरी सबसे बड़ा एकल कृषि क्षेत्र है। भारत दूध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23% का योगदान देता है।
- 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 303.76 मिलियन गोवंश (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक), 74.26 मिलियन भेड़, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 9.06 मिलियन सूअर और लगभग 851.81 मिलियन मुर्गियाँ हैं।
- खाद्य और कृषि संगठन कॉर्पोरेट सांख्यिकीय डेटाबेस (FAOSTAT) उत्पादन डेटा (2020) के अनुसार, भारत विश्व में अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में 8वें स्थान पर है।
- पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई हिस्से को आजीविका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
- अनुच्छेद 48: राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने की दिशा में काम करेगा।
- यह गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू तथा माल ढोने वाले मवेशियों की नस्लों के संरक्षण एवं सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाएगा तथा हत्या पर रोक लगाएगा।
- मौलिक कर्तव्य:
- अनुच्छेद 51A(g): जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना तथा सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया दिखाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
- भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- संसाधन तथा चारे की कमी: अनाज एवं चारे सहित पशु आहार की मांग, आपूर्ति से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को पशु पोषण हेतु उच्च लागत से समझौता करना पड़ता है।
- यह कमी पशुधन के स्वास्थ्य, उत्पादकता के साथ समग्र कल्याण को प्रभावित करती है, जिससे टिकाऊ चारा उत्पादन तथा वितरण के लिये नवीन समाधान की आवश्यकता होती है।
- भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान (IGFRI) के अनुसार, भारत में हरे चारे की कमी 63.5% है तथा सूखे चारे की कमी 23.5% है।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचा: पशु चिकित्सा सेवाओं एवं टीकों तक सीमित पहुँच रोग नियंत्रण के लिये खतरा उत्पन्न करती है, जिससे लगातार प्रकोप होता है जो पशुधन उत्पादकता के साथ उपज की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, उदाहरण के लिये गाँठदार त्वचा रोग या लंपी स्किन डिज़ीज़।
- जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय दबाव: अनियमित मौसम पैटर्न, जल की कमी तथा बढ़ता तापमान भोजन एवं जल की उपलब्धता दोनों को प्रभावित करते हैं, जिससे पशुधन गर्मी के तनाव और संबंधित बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) के एक अध्ययन में पाया गया कि गर्मी के तनाव के कारण भारत में गर्मी के महीनों के दौरान प्रति गाय प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन 0.45 किलोग्राम कम हो गया।
- गुणवत्तापूर्ण प्रजनन और आनुवंशिक सुधार: भारत में पशुधन प्रजनन अक्सर गुणवत्तापूर्ण प्रजनन स्टॉक और आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों तक पहुँच के संदर्भ में सीमाओं का सामना करता है।
- पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) के अनुसार, भारत में प्रजनन योग्य मादा गोवंश में से केवल 30% ही कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं के अंतर्गत आते हैं।
- पशु कल्याण और नैतिक चिंताएँ: पशु क्रूरता और अमानवीय प्रथाओं जैसे पशुपालन से संबंधित नैतिक मुद्दों ने हाल के वर्षों में अधिक ध्यान आकर्षित किया है।
- संसाधन तथा चारे की कमी: अनाज एवं चारे सहित पशु आहार की मांग, आपूर्ति से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को पशु पोषण हेतु उच्च लागत से समझौता करना पड़ता है।
- पशुधन क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Programme- NADCP)
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund- AHIDF)
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
- भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) की स्थापना वर्ष 1962 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी।
आगे की राह
- पशुधन आहार के लिये पोषण संबंधी नवाचार: वैकल्पिक एवं सतत् चारा स्रोतों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
- पारंपरिक चारा फसलों पर निर्भरता कम करने के लिये कीट-आधारित प्रोटीन, शैवाल-आधारित पूरक और उपोत्पाद उपयोग हेतु प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- पशुधन अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाएँ: बायोगैस उत्पादन के लिये पशुधन अपशिष्ट का उपयोग करने वाले बायोएनर्जी संयंत्रों की स्थापना को बढ़ावा देना।
- यह न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।
- बायोगैस उत्पादन के उपोत्पादों का उपयोग जैविक उर्वरकों के रूप में किया जा सकता है, जिससे संसाधन उपयोग की बाधा समाप्त होगी और स्थिरता बढ़ेगी।
- साथ ही कृषि अपशिष्ट को पौष्टिक पशु आहार में परिवर्तित करके चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना, जो पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी दोनों हो सकता है
- यह न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।
- आनुवंशिक निगरानी: भारत में पशुधन के लिये विशेष रूप से वायरस की आनुवंशिक निगरानी को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- चूँकि लम्पी रोग (Lumpy Skin Disease) का प्रकोप उच्च मृत्यु दर के साथ तेज़ी से फैल रहा है, इसलिये इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये इसकी आनुवंशिक संरचना की जाँच करने और इसके व्यवहार का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
- वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाना: व्यक्तियों, जानवरों, पौधों और पर्यावरण के अंतर्संबंध को समझना तथा वन हेल्थ दृष्टिकोण को पहचानना महत्त्वपूर्ण है।
- अनुसंधान और ज्ञान साझा करने में अंतःविषय सहयोग को प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है तथा ज़ूनोटिक रोगों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (वर्ष 2012) (A) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती उत्तर: (C) मेन्सप्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार और आय प्रदान करने के लिये पशुधन पालन में बड़ी संभावना है। भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त उपायों का सुझाव देने पर चर्चा कीजिये।(2015) |