विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
महाराष्ट्र में नए डॉप्लर रडार: IMD
प्रिलिम्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग, डॉप्लर वेदर रडार, रडार मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2021 में मुंबई सहित महाराष्ट्र में सात नए डॉप्लर रडार (Doppler Radars) स्थापित करेगा।
- जनवरी 2021 में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हिमालय पर मौसम परिवर्तन की सूक्ष्मता से निगरानी करने हेतु स्वदेशी रूप से निर्मित दस में से दो एक्स-बैंड डॉप्लर वेदर रडार (Doppler Weather Radars- DWR) को चालू किया था।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- आमतौर पर IMD द्वारा अलग-अलग आवृत्तियों (एस-बैंड, सी-बैंड और एक्स-बैंड) के डॉप्लर रडार का उपयोग लगभग 500 किमी. के कवरेज़ क्षेत्र में मौसम प्रणालियों, क्लाउड बैंड और गेज वर्षा की गति का पता लगाने तथा ट्रैक करने के लिये किया जाता है।
- मुंबई के ऊपर चार एक्स-बैंड और एक सी-बैंड रडार स्थापित किये जाएंगे। इसके अलावा रत्नागिरी में एक नया सी-बैंड और वेंगुर्ला में एक एक्स-बैंड स्थापित किया जाएगा। प्रत्येक रडार कई उद्देश्यों के लिये कार्य करेगा।
मौज़ूदा रडार:
- पूर्वी तट: कोलकाता, पारादीप, गोपालपुर, विशाखापत्तनम, मछलीपट्टनम, श्रीहरिकोटा, कराईकल और चेन्नई।
- पश्चिमी तट: तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, गोवा और मुंबई।
- अन्य रडार: श्रीनगर, पटियाला, कुफरी, दिल्ली, मुक्तेश्वर, जयपुर, भुज, लखनऊ, पटना, मोहनबार, अगरतला, सोहरा, भोपाल, हैदराबाद और नागपुर।
महत्त्व:
- ये रडार, चरम मौसम की घटनाओं जैसे चक्रवात और भारी वर्षा के समय मौसम विज्ञानियों का मार्गदर्शन करेंगी।
- चूँकि रडार अवलोकन हर 10 मिनट में अपडेट किये जाएंगे इसलिये पूर्वानुमानकर्त्ता मौसम प्रणालियों के विकास के साथ-साथ उनकी अलग-अलग तीव्रताओं को ट्रैक करने में सक्षम होंगे और तदनुसार मौसम की घटनाओं तथा उनके प्रभाव की भविष्यवाणी कर सकेंगे।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD):
- IMD की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी है।
- यह मौसम संबंधी जानकारियों, मौसम पूर्वानुमान तथा भूकंपीय विज्ञान से संबंधित प्रमुख एजेंसी है।
रडार:
रडार (Radio Detection and Ranging):
- यह एक ऐसा उपकरण है जो स्थान (गति और दिशा), ऊँचाई और तीव्रता, गतिमान एवं गैर-गतिमान वस्तुओं की आवाजाही का पता लगाने के लिये सूक्ष्म तरंगीय क्षेत्र में विद्युत चुंबकीय तरंगों का उपयोग करता है।
डॉप्लर रडार:
- यह एक विशेष रडार है जो एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित वस्तुओं के वेग से संबंधित आँकड़ों को एकत्रित करने के लिये डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करता है।
- डॉप्लर प्रभाव: किसी तरंग स्रोत तथा प्रेक्षक के मध्य सापेक्षिक गति के कारण प्रेक्षक को तरंग की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है। तरंग की आवृत्ति में इस आभासी परिवर्तन को डॉप्लर प्रभाव या डॉप्लर परिवर्तन (Doppler Shift) कहते हैं।
- यह एक वांछित लक्ष्य (वस्तु) को माइक्रोवेव सिग्नल के माध्यम से लक्षित करता है और विश्लेषण करता है कि लक्षित वस्तु की गति ने वापस आने वाले सिग्नलों की आवृत्ति को कैसे बदल दिया है।
- यह रूपांतरण रडार के सापेक्ष लक्ष्य के वेग के रेडियल घटक का प्रत्यक्ष और अत्यधिक सटीक माप देती है।
डॉप्लर वेदर रडार (DWR):
- डॉप्लर सिद्धांत के आधार पर रडार को एक ‘पैराबॉलिक डिश एंटीना’ (Parabolic Dish Antenna) और एक फोम सैंडविच स्फेरिकल रेडोम (Foam Sandwich Spherical Radome) का उपयोग कर मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी की सटीकता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- DWR में वर्षा की तीव्रता, वायु प्रवणता और वेग को मापने के उपकरण लगे होते हैं जो चक्रवात के केंद्र और धूल के बवंडर की दिशा के बारे में सूचित करते हैं।
डॉप्लर रडार के प्रकार: डॉप्लर रडार को तरंगदैर्ध्य के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे- एल( L), एस(S), सी(C), एक्स(X), के(K)।
- X-बैंड रडार:
- ये 2.5-4 सेमी. की तरंगदैर्ध्य और 8-12 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं। छोटे तरंगदैर्ध्य के कारण X-बैंड रडार अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जो सूक्ष्म कणों का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
- इसका उपयोग तूफान और बिजली गिरने का पता लगाने के लिये किया जाता है।
- C-बैंड रडार:
- ये रडार 4-8 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 4-8 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण, डिश का आकार बहुत बड़ा होने की आवश्यकता नहीं है।
- इसमें सिग्नल अधिक आसानी से क्षीण हो जाते हैं, इसलिये इस प्रकार के रडार का उपयोग कम दूरी के मौसम अवलोकन के लिये सबसे उपयुक्त है।
- यह चक्रवात ट्रैकिंग के समय मार्गदर्शन करता है।
- S-बैंड रडार:
- यह 8-15 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करता है। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण एस बैंड रडार आसानी से क्षीण नहीं होते हैं।
- यह विशेषता इन्हें निकट और दूर के मौसम के अवलोकन के लिये उपयोगी बनाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
न्यायाधीशों द्वारा बहिष्कार
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, रंजीत ठाकुर बनाम भारत संघ (1987) मेन्स के लिये:न्यायाधीशों द्वारा मामलों के बहिष्कार से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) के दो न्यायाधीशों ने पश्चिम बंगाल से संबंधित मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।
प्रमुख बिंदु:
बहिष्कार:
- यह पीठासीन न्यायालय के अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी के हितों के टकराव के कारण कानूनी कार्यवाही जैसी आधिकारिक कार्रवाई में भाग लेने से अनुपस्थित रहने से संबंधित है।
बहिष्कार का कारण:
- जब हितों का टकराव होता है तो एक न्यायाधीश मामले की सुनवाई से पीछे हट सकता है ताकि यह धारणा पैदा न हो कि उसने मामले का निर्णय करते समय पक्षपात किया है।
- हितों का टकराव कई तरह से हो सकता है, जैसे:
- मामले में शामिल किसी पक्ष के साथ पूर्व या व्यक्तिगत संबंध होना।
- एक मामले में शामिल पक्षों में से एक के लिये पेश किया गया।
- वकीलों या गैर-वकीलों के साथ एकतरफा संचार।
- एक उच्च न्यायालय (HC) के फैसले के खिलाफ SC में अपील दायर की जाती है जो SC के न्यायाधीश द्वारा HC में होने पर दी जा सकती है।
- एक कंपनी के मामले में जिसमें वह शेयर रखता है और उसने अपने हित का खुलासा नहीं किया है और इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
- यह प्रथा कानून की उचित प्रक्रिया के मुख्य सिद्धांत से उपजी है कि कोई भी अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता है।
- कोई भी हित या हितों का टकराव किसी मामले से हटने का आधार होगा क्योंकि निष्पक्ष कार्य करना न्यायाधीश का कर्तव्य है।
निर्णय और अस्वीकृति की प्रक्रिया:
- किसी भी संभावित हितों के टकराव का खुलासा करने के लिये न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर होने के कारण आमतौर पर खुद को अलग करने का निर्णय न्यायाधीश द्वारा लिया जाता है।
- कुछ न्यायाधीश मौखिक रूप से मामले में शामिल वकीलों को अपने अलग होने के कारणों से अवगत कराते हैं, कई नहीं। कुछ अपने क्रम में कारणों की व्याख्या करते हैं।
- कुछ परिस्थितियों या मामलों में वकील या पक्ष इसे न्यायाधीश के सामने लाते हैं। एक बार अलग होने का अनुरोध किये जाने के बाद न्यायाधीश के पास इसे वापस लेने या न लेने का अधिकार होता है।
- हालाँकि ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहाँ न्यायाधीशों ने विरोध नहीं देखा, भले ही वे खुद को अलग कर लेते हों, लेकिन केवल इसलिये कि इस तरह की आशंका जताई गई थी, ऐसे कई मामले भी हैं जहाँ न्यायाधीशों ने किसी मामले से हटने से इनकार कर दिया है।
- यदि कोई न्यायाधीश इनकार करता है तो मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक नई पीठ को आवंटित करने के लिये सूचीबद्ध किया जाता है।
बहिष्कार हेतु नियम:
- पुनर्मूल्यांकन को नियंत्रित करने वाले कोई औपचारिक नियम नहीं हैं, हालाँकि SC के कई निर्णयों में इस मुद्दे पर बात की गई है।
- रंजीत ठाकुर बनाम भारत संघ (1987) मामले में SC ने माना कि यह दूसरे पक्ष के मन में पक्षपात की संभावना की आशंका के प्रति तर्कों को बल प्रदान करती है।
- न्यायालय को अपने सामने पक्ष के तर्क को देखना चाहिये और तय करना चाहिये कि वह पक्षपाती है या नहीं।
चिंताएँ:
- न्यायिक स्वतंत्रता को कम आँकना:
- यह वादियों को अपनी पसंद की बेंच चुनने की अनुमति देता है, जो न्यायिक निष्पक्षता को कम करता है।
- साथ ही इन मामलों में अलग होने का उद्देश्य न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता दोनों को कमज़ोर करता है।
- विभिन्न व्याख्याएँ:
- चूँकि यह निर्धारित करने के लिये कोई नियम नहीं हैं कि न्यायाधीश इन मामलों में कब खुद को अलग कर सकते हैं, एक ही स्थिति की अलग-अलग व्याख्याएँ हैं।
- प्रक्रिया में देरी:
- कुछ कार्य मुद्दों को उलझाने या कार्यवाही में बाधा डालने और देरी करने के इरादे से या किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रारूप में बाधा डालने या इसे बाधित करने के इरादे से भी किये जाते हैं।
आगे की राह:
- न्याय में परिवर्तन के एक उपकरण के रूप में तथा वादी की पसंद की बेंच चुनने के साधन के रूप में और न्यायिक कार्य से बचने हेतु एक साधन के रूप में पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
- न्यायिक अधिकारियों को हर तरह के दबाव का विरोध करना चाहिये, चाहे वह कहीं से भी हो और अगर वे विचलित हो जाते हैं तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ- साथ संविधान भी कमज़ोर हो जाएगा।
- इसलिये एक नियम जो न्यायाधीशों की ओर से अलग होने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है, जल्द-से-जल्द बनाया जाना चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर: लोथल
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, लोथल शहर, सिंधु घाटी सभ्यता मेन्स के लियेराष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का महत्त्व, सिंधु घाटी सभ्यता संबंधी विभिन्न पहलू |
चर्चा में क्यों?
संस्कृति मंत्रालय (MoC) और पत्तन, पोत परिवहन ईवा जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) ने गुजरात के लोथल में 'राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर’ (NMHC) के विकास में सहयोग हेतु एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर
- ‘राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर’ (NMHC) गुजरात के लोथल क्षेत्र में विकसित किया जाएगा।
- इसे एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जहाँ प्राचीन से लेकर आधुनिक काल तक की भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा।
- इस परिसर को मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा प्रदान करने के दृष्टिकोण से विकसित किया जाएगा।
- इस परिसर को लगभग 400 एकड़ के क्षेत्र में विकसित किया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय, लाइट हाउस संग्रहालय, विरासत थीम पार्क, संग्रहालय थीम वाले होटल, समुद्री थीम वाले इको-रिसॉर्ट्स और समुद्री संस्थान जैसी विभिन्न अनूठी संरचनाएँ शामिल होंगी।
- इस परिसर में कई मंडप भी शामिल होंगे, जहाँ भारत के विभिन्न तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की कलाकृतियों और समुद्री विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा।
- इस परिसर की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे गुजरात के लोथल शहर में स्थापित किया जा रहा है, जो कि प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख शहरों में से एक है।
लोथल के विषय में
- लोथल गुजरात में स्थित प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे दक्षिणी शहरों में से एक था।
- इस शहर का निर्माण लगभग 2400 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की मानें तो लोथल में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात डॉक था, जो लोथल शहर को सिंध के हड़प्पा शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच व्यापार मार्ग पर साबरमती नदी के एक प्राचीन मार्ग से जोड़ता था।
- प्राचीन काल में लोथल एक महत्त्वपूर्ण एवं संपन्न व्यापार केंद्र था, जिसके मोतियों, रत्नों और बहुमूल्य गहनों का व्यापार पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर क्षेत्रों तक विस्तृत था।
- मनके बनाने और धातु विज्ञान में इस शहर के लोगों ने जिन तकनीकों और उपकरणों का प्रयोग किया वे वर्षों बाद आज भी प्रयोग की जा रही हैं।
- लोथल स्थल को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है और यूनेस्को की अस्थायी सूची में इसका आवेदन अभी भी लंबित है।
सिंधु घाटी सभ्यता
- हड़प्पा सभ्यता के रूप में प्रचलित सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 2,500 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में समकालीन पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में विकसित हुई थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता चार प्राचीनतम सबसे बड़ी शहरी सभ्यताओं में से एक थी, अन्य शहरी सभ्यताओं में मेसोपोटामिया, मिस्र और चीन शामिल हैं।
- यह मूल रूप से एक शहरी सभ्यता थी, जहाँ लोग सुनियोजित और बेहतर तरह से निर्मित कस्बों में रहते थे, जो व्यापार के केंद्र भी थे।
- यहाँ चौड़ी सड़कें और बेहतर तरीके से विकसित जल निकासी व्यवस्था मौजूद थी।
- घर पकी हुई ईंटों के बने होते थे और घरों में दो या दो से अधिक मंज़िलें होती थीं।
- हड़प्पावासी अनाज उगाने की कला जानते थे और गेंहूँ तथा जौ उनके भोजन का मुख्य हिस्सा थे।
- 1500 ईसा पूर्व तक हड़प्पा संस्कृति का अंत हो गया। सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिये उत्तरदायी विभिन्न कारणों में बार-बार आने वाली बाढ़ और भूकंप जैसे अन्य प्राकृतिक कारण शामिल हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
रिफॉर्म लिंक्ड बॉरोइंग विंडो
प्रिलिम्स के लिये:रिफॉर्म लिंक्ड बॉरोइंग मेन्स के लिये:विभिन्न क्षेत्रों में सरकार द्वारा किये गए विभिन्न सुधार |
चर्चा में क्यों?
भारतीय राज्य ‘रिफॉर्म लिंक्ड बॉरोइंग विंडो’ के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 (FY21) में 1.06 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त उधार लेने में सक्षम थे।
- अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिये राज्यों को अतिरिक्त छूट प्रदान करने की घोषणा की गई थी।
नोट:
- भारत के संविधान के भाग XII का अध्याय II केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा उधार लेने से संबंधित है।
- इसमें दो प्रावधान शामिल हैं- अनुच्छेद 292 जिसमें केंद्र सरकार द्वारा उधार लेना शामिल है और अनुच्छेद 293 जिसमें राज्य सरकारों द्वारा उधार लेना शामिल है।
- अनुच्छेद 293 (3) के अनुसार, पहले से ही केंद्र सरकार की ऋणी राज्य सरकारों को और उधार लेने से पहले केंद्र सरकार की सहमति लेने की आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु:
- यह एक सहायता थी, जो राज्यों को अतिरिक्त धन प्राप्त करने के लिये प्रगतिशील नीतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करती थी।
- अक्तूबर 2020 में केंद्र सरकार ने चार महत्त्वपूर्ण सुधारों के कार्यान्वयन के लिये अपने जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) का 1% अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति प्रदान की थी, ये हैं:
- एक राष्ट्र एक राशन कार्ड प्रणाली का कार्यान्वयन,
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार,
- शहरी स्थानीय निकाय / उपयोगिता में सुधार और
- विद्युत क्षेत्र में सुधार।
- इस ‘रिफॉर्म लिंक्ड बॉरोइंग विंडो’ के तहत राज्यों को सभी चार सुधारों के पूरा होने पर 2.14 लाख करोड़ रुपए तक की धनराशि प्राप्त करने की सुविधा प्रदान की गई थी।
- चार में से तीन सुधारों को पूरा करने वाले राज्यों के पूंजीगत व्यय के लिये केंद्र 2,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि की सहायता प्रदान करेगा।
- पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर वित्त वर्ष 2021-22 के लिये राज्यों हेतु शुद्ध उधार सीमा अनुमानित जीएसडीपी (लगभग 8.46 लाख करोड़ रुपए) के 4% तय की गई है।
‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ प्रणाली (ONORC) में सुधार:
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों तथा उनके परिवारों को देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (Fair Price Shop-FPS) से राशन मिल सके।
- साथ ही इसका उद्देश्य लाभार्थियों को बेहतर तरीके से लक्षित करना, फर्जी/ डुप्लिकेट/ अपात्र राशन कार्डों को समाप्त करना और कल्याण को बढ़ावा देना है।
- इसके लिये सरकार द्वारा राज्य के सभी राशन कार्डों की आधार सीडिंग, लाभार्थियों का बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और राशन की दुकानों के स्वचालन संबंधी सुधार किये गए हैं।
‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में सुधार
- यह उद्यमों और कंपनियों के संचालन के लिये एक बेहतर वातावरण और बाधा रहित प्रक्रिया की सुविधा प्रदान करता है।
- इस श्रेणी में किये गए सुधारों में शामिल हैं:
- 'ज़िला स्तरीय व्यापार सुधार कार्य योजना' के प्रथम मूल्यांकन का समापन।
- विभिन्न अधिनियमों के तहत व्यवसायों द्वारा प्राप्त पंजीकरण प्रमाणपत्र/ अनुमोदन/ लाइसेंस के नवीनीकरण की आवश्यकता को समाप्त करना।
- अधिनियमों के तहत एक कम्प्यूटरीकृत केंद्रीय यादृच्छिक निरीक्षण प्रणाली का क्रियान्वयन।
शहरी स्थानीय निकाय सुधार:
- इन सुधारों का उद्देश्य राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों को वित्तीय मज़बूती प्रदान करना और उन्हें नागरिकों को बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम बनाना है।
- इन सुधारों के तहत राज्यों के लिये संपत्ति कर और पानी एवं सीवेज शुल्क की न्यूनतम दरों को अधिसूचित करना अनिवार्य कर दिया गया था। यह शहरी क्षेत्रों में स्टाम्प ड्यूटी गाइडलाइंस, लेन-देन के लिये मूल्य एवं वर्तमान लागत के अनुरूप था।
विद्युत क्षेत्र में सुधार
- विद्युत क्षेत्र में सुधारों के तहत राज्य के लिये तीन मापदंडों को पूरा करना अनिवार्य है- समग्र तकनीकी तथा वाणिज्यिक (AT&C) नुकसान में कमी करना, औसत आपूर्ति लागत औरऔसत राजस्व प्राप्ति (ACS-ARR) में अंतर को कम करना तथा प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से किसानों को बिजली सब्सिडी प्रदान करना।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, सूक्ष्म वित्त संस्थान,अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, लघु वित्त बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक मेन्स के लियेमाइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रस्ताव एवं इसका महत्त्व , गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - सूक्ष्म वित्त संस्थान (NBFC-MFIs) के रूप में अर्हता प्राप्त करने की शर्तें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन (MFI) के लिये ब्याज दर पर कोई सीमा नहीं रखने का प्रस्ताव दिया तथा कहा कि सभी सूक्ष्म ऋणों को दिशा-निर्देशों के एक सामान्य सेट द्वारा विनियमित किया जाना चाहिये, भले ही उन्हें कोई भी दे।
प्रमुख बिंदु
प्रस्ताव:
- RBI का उद्देश्य सभी विनियमित संस्थाओं के लिये माइक्रोफाइनेंस ऋणों की एक सामान्य परिभाषा का सुझाव देना है।
- सूक्ष्म-वित्त संस्थानों के लिये आरबीआई के नियमों के तहत एक सूक्ष्म-वित्त उधारकर्ता की वार्षिक घरेलू आय ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 1.25 लाख रुपए तथा शहरी /अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के लिये 2 लाख रुपए तक संपार्श्विक-मुक्त ऋण होना चाहिये।
- इस प्रयोजन के लिये 'परिवार' का अर्थ सामान्य रूप में एक साथ रहने वाले तथा एक ही रसोई से भोजन प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का समूह है।
- RBI ने घरेलू आय के प्रतिशत के रूप में घरेलू आय के सभी बकाया ऋण दायित्वों के लिये ब्याज के भुगतान तथा मूलधन के पुनर्भुगतान को अधिकतम 50% की सीमा के अधीन रखा है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)-MFI जैसी कोई भी अन्य NBFC बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति और उचित व्यवहार संहिता के आधार पर निर्देशित होगी, जिससे प्रकटीकरण और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।
- ब्याज दर के लिये कोई सीमा निर्धारित नहीं होगी। सूक्ष्म ऋणों हेतु कोई संपार्श्विक अनुमति नहीं होगी।
- कोई पूर्व-भुगतान जुर्माना नहीं होना चाहिये ,जबकि सभी संस्थाओं को उधारकर्ताओं को उनकी पसंद के अनुसार साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक किश्तों का भुगतान करने की अनुमति देनी होगी।
प्रस्ताव का महत्त्व:
- RBI ने इस कदम से माइक्रोफाइनेंस सेक्टर की परिपक्वता पर भरोसा जताया है।
- यह एक दूरदर्शी कदम है जहाँ पारदर्शी शर्तों पर उचित ब्याज दर तय करने की ज़िम्मेदारी संस्था की है।
माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन (MFI) :
- यह वित्तीय सेवा का एक रूप है, जो गरीब और कम आय वाले परिवारों को लघु ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है।
- माइक्रोफाइनेंस प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या और माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों को उपलब्ध कराए गए क्रेडिट की मात्रा दोनों में वृद्धि के मामले में पिछले दो दशकों में भारतीय माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है।
- माइक्रो क्रेडिट विभिन्न संस्थागत चैनलों के माध्यम से वितरित किया जाता है, जैसे,
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCB) [लघु वित्त बैंक (SFB) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) सहित]
- सहकारी बैंक,
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)
- माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFI) NBFC के साथ-साथ अन्य रूपों में पंजीकृत हैं।
- MFI वित्तीय कंपनियाँ उन लोगों को छोटे ऋण प्रदान करती हैं जो समाज के वंचित और कमज़ोर वर्गों से हैं तथा जिनकी बैंकिंग सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
- सूक्ष्म ऋण का अभिप्राय अलग-अलग देशों में भिन्न होता है। भारत में 1 लाख रुपए से कम के सभी ऋणों को माइक्रोलोन या सूक्ष्म ऋण माना जा सकता है।
- महत्त्व :
- यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये तैयार किया गया एक आर्थिक उपकरण है जो गरीब और निम्न-आय वाले परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने, उनकी आय के स्तर को बढ़ाने तथा समग्र जीवन स्तर में सुधार करने में सक्षम बनाता है।
- यह राष्ट्रीय नीतियों की उपलब्धि को सुगम बना सकता है जो गरीबी स्तर में कमी करके, महिला सशक्तीकरण, कमज़ोर समूहों को सहायता तथा उनके जीवन स्तर में सुधार को लक्षित करती है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - सूक्ष्म वित्त संस्थान (NBFC-MFIs)
- NBFC-MFI एक गैर-जमा धारक वाली वित्तीय कंपनी है।
- NBFC-MFI के रूप में अर्हता प्राप्त करने की शर्तें:
- 5 करोड़ रुपए की न्यूनतम शुद्ध स्वामित्व वाली निधि (NOF) ।
- अर्हता संपत्ति की प्रकृति में इसकी शुद्ध संपत्ति का कम-से-कम 85% होना चाहिये।
- अर्हता संपत्ति (Qualifying Assets ) वे संपत्तियाँ हैं जिनके पास अपने इच्छित उपयोग या बिक्री के लिये पर्याप्त समय है।
- NBFC-MFI और अन्य NBFC के बीच अंतर यह है कि जहाँ अन्य NBFC बहुत उच्च स्तर पर काम कर सकती हैं, वहीं MFI केवल लघु स्तर के सामाजिक पहलू को पूरा करते हैं, जिसमें ऋण के रूप में छोटी राशि की आवश्यकता होती है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
विश्व का पहला आनुवंशिक रूप से संशोधित रबड़: असम
प्रिलिम्स के लिये:GM रबड़, रबड़ बोर्ड मेन्स के लिये:GM रबड़ की भारत में आवश्यकता, रबड़ के क्षेत्र में भारत की स्थिति, भारत की राष्ट्रीय रबड़ नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रबड़ अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित विश्व का पहला आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) रबड़ संयंत्र असम में स्थापित किया गया।
- रबड़ संयंत्र इस क्षेत्र के लिये विशेष रूप से विकसित अपनी तरह का पहला संयंत्र है जिसके चलते पूर्वोत्तर क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों में रबड़ के अच्छी तरह से विकसित होने की आशा है।
प्रमुख बिंदु:
GM रबड़ के संदर्भ में:
- आनुवंशिक संशोधन (GM) प्रौद्योगिकी में प्रयोगशाला तकनीकों का उपयोग कर प्रजातियों के बीच विशिष्ट लक्षणों के लिये जीन को स्थानांतरित किया जाता है।
- इस रबड़ में मैंगनीज युक्त सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज़ (MnSOD) जीन को अंतर्वेशित कराया गया है जिसके चलते यह उत्तर-पूर्व में शीतऋतु में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड का मुकाबला करने में सक्षम होगी।
- MnSOD जीन में पौधों को ठंड और सूखे जैसे गंभीर पर्यावरणीय स्थितियों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने की क्षमता होती है।
- आवश्यकता:
- प्राकृतिक रबड़ उष्ण आर्द्र अमेज़ॅन वनों की मूल प्रजाति है और पूर्वोत्तर की शीत परिस्थितियों के लिये स्वाभाविक रूप से अनुकूल नहीं है, जो भारत में रबड़ के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
- शीतकाल के दौरान मृदा के लगातार शुष्क बने रहने के कारण रबर के पौधों की वृद्धि रुक जाती है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में रबड़ के पौधों के परिपक्व होने की अवधि लंबी होती है।
प्राकृतिक रबड़:
- वाणिज्यिक वृक्षारोपण फसल: रबर हेविया ब्रासिलिएन्सिस (Hevea Brasiliensis.) नामक वृक्ष के लेटेक्स से बनाया जाता है। रबर को बड़े पैमाने पर एक रणनीतिक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में माना जाता है और इसे रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा औद्योगिक विकास के लिये विश्व स्तर पर विशेष दर्जा दिया गया है।
- वृद्धि के लिये आवश्यक दशाएँ: यह एक भूमध्यरेखीय फसल है परंतु विशेष परिस्थितियों में इसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाया जाता है।
- तापमान: नम और आर्द्र जलवायु के साथ 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान।
- वर्षा: 200 सेमी. से अधिक।
- मृदा का प्रकार: अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ मृदा।
- इस रोपण फसल के लिये कुशल श्रम की सस्ती और पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- भारतीय परिदृश्य:
- अंग्रेज़ों ने भारत में पहला रबर बागान वर्ष 1902 में केरल में पेरियार नदी के तट पर स्थापित किया था।
- भारत वर्तमान में उच्चतम उत्पादकता (वर्ष 2017-18 में 694,000 टन) के साथ विश्व में प्राकृतिक रबड़ का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- शीर्ष रबड़ उत्पादक राज्य: केरल > तमिलनाडु > कर्नाटक।
- सरकारी पहल: रबड़ प्लांटेशन डेवलपमेंट स्कीम और रबड़ ग्रुप प्लांटिंग स्कीम रबड़ के लिये सरकार के नेतृत्व वाली पहल के उदाहरण हैं।
- रबर, कॉफी, चाय, इलायची, ताड़ के वृक्ष और जैतून के वृक्षारोपण में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
- विश्व स्तर पर प्रमुख उत्पादक: थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, चीन और भारत।
- प्रमुख उपभोक्ता: चीन, भारत, अमेरिका, जापान, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया।
भारत की राष्ट्रीय रबड़ नीति:
- वाणिज्य विभाग द्वारा मार्च 2019 में राष्ट्रीय रबड़ नीति प्रस्तुत की गई थी।
- इस नीति में प्राकृतिक रबड़ उत्पादन क्षेत्र और संपूर्ण रबड़ उद्योग मूल्य शृंखला का समर्थन करने के लिये कई प्रावधान शामिल हैं।
- इसमें रबर की नई रोपण और पुनर्रोपण, उत्पादकों के लिये सहायता, प्राकृतिक रबड़ का प्रसंस्करण और विपणन, श्रम की कमी, उत्पादक मंच, बाह्य व्यापार, केंद्र-राज्य एकीकृत रणनीति, अनुसंधान, प्रशिक्षण, रबर उत्पाद निर्माण और निर्यात, जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे और कार्बन बाज़ार शामिल हैं।
- यह देश में रबड़ उत्पादकों के सामने आने वाली समस्याओं को कम करने के लिये रबड़ क्षेत्र पर गठित टास्क फोर्स द्वारा चिह्नित अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीतियों पर आधारित है।
- मीडियम टर्म फ्रेमवर्क (MTF, वर्ष 2017-18 से 2019-20) में प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र का सतत् और समावेशी विकास (Sustainable and Inclusive Development of Natural Rubber Sector) योजना को लागू करके उत्पादकों के कल्याण के लिये प्राकृतिक रबड़ क्षेत्र को विस्तारित करने हेतु रबड़ बोर्ड विकास और अनुसंधान गतिविधियों को संपन्न करता है।
- विकासात्मक गतिविधियों में रोपण के लिये वित्तीय एवं तकनीकी सहायता, गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की आपूर्ति, उत्पादक मंचों के लिये सहायता, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं।
रबड़ बोर्ड:
- यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है तथा इसका मुख्यालय केरल के कोट्टायम में स्थित है।
- यह रबड़ से संबंधित अनुसंधान, विकास, विस्तार एवं प्रशिक्षण गतिविधियों को सहायता और प्रोत्साहित करके देश में रबड़ उद्योग के विकास के लिये उत्तरदायी है।
- रबड़ अनुसंधान संस्थान (Rubber Research Institute) रबड़ बोर्ड के अधीन कार्यरत है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
G20 श्रम और रोज़गार मंत्रियों की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:G20 मेन्स के लिये:महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थिति से संबंधित मुद्दे एवं सुधार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री (Union Minister for Labour and Employment) ने कहा है कि भारत श्रम बल की भागीदारी में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिये सामूहिक प्रयास कर रहा है।
- वह G20 श्रम और रोजगार मंत्रियों की बैठक में घोषणा और रोज़गार कार्य समूह की प्राथमिकताओं पर बैठक को संबोधित कर रहे थे।
G20
- G20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि, यूरोपियन संघ एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
- G20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्त्व करता है
- सदस्य: इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
बैठक में चर्चित मुद्दे:
- रोजगार कार्य समूह ने महिला रोज़गार, सामाजिक सुरक्षा और दूरस्थ कार्य सहित प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
- वर्ष 2014 में G20 नेताओं ने ब्रिस्बेन में वर्ष 2025 तक पुरुषों और महिलाओं के बीच श्रम शक्ति भागीदारी दर में अंतर को 25% तक कम करने का संकल्प लिया, जिसका उद्देश्य 100 मिलियन महिलाओं को श्रम क्षेत्र में लाना, वैश्विक एवं समावेशी विकास को बढ़ाना और गरीबी एवं असमानता को कम करना था। ।
भारत द्वारा हाइलाइट की गई पहल:
- शैक्षिक और कौशल प्रयास (Educational and Skilling Efforts):
- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020:
- इसका उद्देश्य स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणालियों में सुधार करना है।
- भारत, पूर्वस्कूली से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लये अपने शैक्षिक और कौशल प्रयासों को मज़बूत कर रहा है।
- राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन:
- इसका उद्देश्य कौशल प्रशिक्षण गतिविधियों के संदर्भ में सभी क्षेत्रों और राज्यों को केंद्रबिंदु बनाना है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना:
- एक कौशल प्रमाणीकरण कार्यक्रम जिसके अंतर्गत एक बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं एवं युवतियों को उद्योग-अनुरूप कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा जो उन्हें बेहतर जीविका सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगा।
- दीक्षा (DIKSHA), स्वयं (SWAYAM) जैसे विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म पर डिजिटल शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई गई है।
- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020:
- रोजगार सृजन के लिये:
- आत्मानिर्भर भारत रोज़गार योजना:
- सरकार नए कर्मचारियों के साथ-साथ महामारी में अपनी नौकरी खो चुके लोगों के लिये EPF योगदान हेतु 24% तक वेतन का भुगतान कर रही है तथा उन्हें फिर से नियोजित किया जा रहा है।
- आत्मानिर्भर भारत रोज़गार योजना:
- महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये:
- नई श्रम संहिता 2019:
- यह वेतन, भर्ती और रोजगार की शर्तों में लिंग आधारित भेदभाव को कम करेगा।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
- यह महिला उद्यमियों को लघु उद्यम शुरू करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- इस योजना के तहत अब तक कुल 9 लाख करोड़ रुपये के संपार्श्विक मुक्त ऋण वितरित किये गए हैं।
- इस योजना के अंतर्गत लगभग 70% महिलाएँ हैं।
- नई सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020:
- इसमें अब स्व-नियोजित तथा अन्य सभी वर्ग के कार्यबल को भी सामाजिक सुरक्षा कवरेज के दायरे में शामिल किया जा सकता है।
- अन्य:
- महिलाएँ अब रात के समय भी काम कर सकती हैं तथा सवैतनिक मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई है।
- नई श्रम संहिता 2019:
ब्रिस्बेन लक्ष्य की ओर तथा उससे आगे G20 रोडमैप:
- इसे श्रम बाजारों के साथ-साथ सामान्य रूप से समाजों में महिलाओं और पुरुषों हेतु समान अवसर तथा परिणाम प्राप्त करने के लिये विकसित किया गया है।
- ब्रिस्बेन लक्ष्य की ओर तथा उससे आगे G20 रोडमैप को इस प्रकार निर्धारित किया गया है:
- महिलाओं के रोज़गार की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि करना।
- समान अवसर सुनिश्चित करना और श्रम बाजार में बेहतर परिणाम प्राप्त करना।
- सभी क्षेत्रों और व्यवसायों में महिलाओं और पुरुषों के समान वितरण को बढ़ावा देना।
- लैंगिक वेतन अंतर से निपटना।
- महिलाओं तथा पुरुषों के बीच भुगतान और अवैतनिक काम के अधिक संतुलित वितरण को प्रोत्साहित करना।
- श्रम बाजार में भेदभाव और लैंगिक रुढ़िबद्धता का समाधान करना।
श्रम बल भागीदारी
- श्रम बल भागीदारी दर कार्यशील आयु के सभी लोगों के प्रतिशत को इंगित करती है जो कार्यरत हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं।
- भारत महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने के लिये प्रयासरत है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुमानों के अनुसार, 2019 में, कोविड -19 महामारी से पूर्व भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी 23.5% थी।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण(PLFS), 2018-19 के अनुसार, भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) ग्रामीण क्षेत्रों में 26.4% और शहरी क्षेत्रों में 20.4% है।
महिला श्रम बल की भागीदारी में बाधाएँ
- समाज में रूढ़िबद्धता: भारत के सामाजिक मानदंड ऐसे हैं कि महिलाओं से परिवार की देखभाल और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी की आशा की जाती है। यह रूढ़िवादिता महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है।
- इससे महिलाएँ काम के लिये समय के आवंटन को लेकर लगातार संघर्ष करती हैं और यह उनके लिये जीवन संघर्ष की लड़ाई होती है।
- डिजिटल अंतराल: भारत में वर्ष 2019 में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं में 67% पुरुष और 33% महिलाएँ थी तथा यह अंतराल ग्रामीण क्षेत्रों में और भी अधिक है।
- यह अंतराल महिलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं तक पहुँचने या उन गतिविधियों या क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में एक बाधा बन सकता है जो अधिक डिजिटलाइज़ हो रहे हैं।
- तकनीकी व्यवधान: महिलाएँ अधिकांश प्रशासनिक और डेटा-प्रसंस्करण क्षेत्रों में भूमिकाएँ निभाती हैं, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा अन्य तकनीकों के प्रचलन से अधिक प्रभावित होंगे।
- जैसे-जैसे नियमित नौकरियाँ स्वचालित होंगी, महिलाओं पर दबाव और बढ़ेगा तथा वे उच्च बेरोज़गारी दर से प्रभावित हो सकती हैं।
- लैगिक-संबंधित डेटा का अभाव: वैश्विक स्तर पर लैंगिक डेटा में प्रमुख अंतराल और प्रचलित डेटा की कमी के कारण प्रगति की निगरानी करना मुश्किल हो जाता है।
- भारत में भी बालिकाओं के आँकड़ों में महत्त्वपूर्ण अंतराल लड़कियों के जीवन के व्यवस्थित अनुदैर्ध्य मूल्यांकन (Longitudinal Assessment) को प्रभावित करता है।
- कोविड-19 का प्रभाव: कोविड-19 के कारण वैश्विक महिला रोज़गार पुरुष रोज़गार (ILO अनुमान) की तुलना में 19% अधिक जोखिम में है।
आगे की राह:
- महिलाओं के लिये काम के अवसर कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। विभिन्न क्षेत्रों और व्यवसायों में रोज़गार तक पहुँच को बढ़ावा देने, विविध क्षेत्रों में निवेश और विशेष रूप से ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में परिवहन, आवास, स्वच्छता सुविधाओं, रोशनी एवं बुनियादी ढाँचे के समर्थन के लिये नीति निर्माण की आवश्यकता है।
- महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करना एक व्यापक गतिशील अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है, महिलाओं की आर्थिक भूमिका को बढ़ा सकता है और इसलिये विकास के लाभों को अधिक समावेशी रूप से वितरित कर सकता है।
स्रोत: PIB
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अंटार्कटिक संधि
प्रिलिम्स के लिये:अंटार्कटिक संधि मेन्स के लिये:अंटार्कटिक महाद्वीप से संबंधित मुद्दे एवं जलवायु परिवर्तन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) की 60वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
- अंटार्कटिक संधि एकमात्र एकल संधि का उदाहरण है जो पूरे महाद्वीप को नियंत्रित करती है।
- यह एक अस्थायी आबादी वाले महाद्वीप के लिये नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की नींव भी रखती है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- अंटार्कटिक महाद्वीप को केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये संरक्षित करने एवं असैन्यीकृत क्षेत्र बनाने के लिये 1 दिसंबर, 1959 को वाशिंगटन में 12 देशों के बीच अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- 12 मूल हस्ताक्षरकर्त्ता अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्राँस, जापान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, सोवियत संघ, यूके और यूएस हैं।
- यह संधि वर्ष 1961 में लागू हुई, तत्पश्चात इसे कई अन्य देशों ने स्वीकार किया है।
- अंटार्कटिका को 60 °S अक्षांश के दक्षिण में स्थित बर्फ से आच्छादित भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- हाल ही में एक विशाल हिमखंड 'ए-76' (Iceberg 'A-76) अंटार्कटिका में वेडेल सागर (Weddell Sea) में स्थित रोने आइस शेल्फ (Ronne Ice Shelf) के पश्चिमी भाग में देखा गया है।
सदस्य:
- वर्तमान में इसमें 54 पक्षकार हैं। वर्ष 1983 में भारत इस संधि का सदस्य बना।
मुख्यालय:
- ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना।
प्रमुख प्रावधान:
- वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना।
- देश महाद्वीप का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये कर सकते हैं।
- सैन्य गतिविधियों, परमाणु परीक्षणों और रेडियोधर्मी कचरे के निपटान का निषेध।
- क्षेत्रीय संप्रभुता को निष्प्रभावी करना अर्थात् किसी देश द्वारा इस पर कोई नया दावा करने या मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जाएगा।
- इस संधि द्वारा किसी देश की इस महाद्वीप पर दावेदारी संबंधी किसी भी विवाद पर रोक लगा दी गई।
विवाद और समाधान:
- इसे लेकर समय-समय पर तनाव की स्थिति बनी रहती है। उदाहरणस्वरूप महाद्वीप क्षेत्र को लेकर अर्जेंटीना और यूके के अपने अतिव्यापी दावे हैं।
- हालाँकि संधि की सक्रियता का एक प्रमुख कारण कई अतिरिक्त सम्मेलनों और अन्य कानूनी प्रोटोकॉल के माध्यम से अर्जित क्षमता है।
- ये सम्मेलन और अन्य कानूनी प्रोटोकॉल समुद्री जीव संसाधनों के संरक्षण, खनन पर प्रतिबंध तथा व्यापक पर्यावरण संरक्षण तंत्र को अपनाने से संबंधित हैं।
- विदित है कि इस पर वर्षों से विवाद उत्पन्न होते रहे हैं लेकिन इन समझौतों के साथ संधि ढाँचे के विस्तार के माध्यम से कई विवादों को हल किया गया है। इस संपूर्ण ढाँचे को अब अंटार्कटिक संधि प्रणाली के रूप में जाना जाता है।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली:
परिचय:
- यह अंटार्कटिक में देशों के बीच संबंधों को विनियमित करने के उद्देश्य से की गई व्यवस्थाओं की जटिल संरचना है।
- इसका उद्देश्य सभी मानव जाति के हितों में यह सुनिश्चित करना है कि अंटार्कटिका हमेशा के लिये शांतिपूर्ण उद्देश्यों हेतु उपयोग किया जाता रहेगा और अंतर्राष्ट्रीय विवाद की वस्तु नहीं बनेगा।
- यह एक वैश्विक उपलब्धि है और 50 से अधिक वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की मिसाल है।
- ये समझौते अंटार्कटिक की अनूठी भौगोलिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक विशेषताओं के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी और उद्देश्यपूर्ण हैं और इस क्षेत्र के लिये एक मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय शासन ढाँचा तैयार करते हैं।
संधि प्रणाली के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौते:
- 1959 की अंटार्कटिक संधि।
- अंटार्कटिक सीलों के संरक्षण के लिये 1972 कन्वेंशन।
- अंटार्कटिक समुद्री जीवन संसाधनों के संरक्षण पर 1980 का कन्वेंशन।
- अंटार्कटिक संधि के लिये पर्यावरण संरक्षण पर 1991 का प्रोटोकॉल।
भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम
परिचय:
- यह नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशन रिसर्च (National Centre for Antarctic and Ocean Research- NCPOR) के तहत एक वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण कार्यक्रम है। इसकी शुरुआत 1981 में हुई थी जब अंटार्कटिका के लिये पहला भारतीय अभियान बनाया गया था।
- NCPOR देश में ध्रुवीय और दक्षिणी महासागरीय वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ संबंधित रसद गतिविधियों की योजना, प्रचार, समन्वय और निष्पादन के लिये नोडल एजेंसी है।
- इसकी स्थापना 1998 में हुई थी।
दक्षिण गंगोत्री:
- दक्षिण गंगोत्री भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अंटार्कटिका में स्थापित पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान बेस स्टेशन था।
- अभी यह क्षतिग्रस्त हो गया है और सिर्फ आपूर्ति का आधार बन गया है।
मैत्री:
- मैत्री अंटार्कटिका में भारत का दूसरा स्थायी अनुसंधान केंद्र है। इसे 1989 में बनाया गया था।
- मैत्री, शिरमाकर ओएसिस नामक चट्टानी पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है। भारत ने मैत्री के आसपास मीठे पानी की एक झील भी बनाई जिसे प्रियदर्शिनी झील के नाम से जाना जाता है।
भारती:
- भारती, 2012 से भारत का नवीनतम अनुसंधान केंद्र का संचालन। इसका निर्माण शोधकर्त्ताओं को कठोर मौसम के बावजूद सुरक्षित होकर काम करने में मदद के लिये किया गया है।
- यह भारत की पहली प्रतिबद्ध अनुसंधान सुविधा है और मैत्री से लगभग 3000 किमी पूर्व में स्थित है।
अन्य अनुसंधान सुविधाएँ:
- सागर निधि:
- 2008 में भारत ने शोध के लिये सागर निधि की स्थापना की।
- एक आइस-क्लास पोत, अंटार्कटिक जल को नेविगेट करने वाला पहला भारतीय पोत, यह 40 सेमी गहराई की पतली बर्फ को काट सकता है।
आगे की राह:
- अंटार्कटिक संधि कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक जवाब देने में सक्षम रही है परंतु 1950 के दशक की तुलना में 2020 के दशक में परिस्थितियाँ मौलिक रूप से भिन्न हैं। अंटार्कटिक आंशिक रूप से प्रौद्योगिकी के साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण भी बहुत अधिक सुलभ है।
- मूल 12 देशों की तुलना में अब अधिक देशों के महाद्वीप में वास्तविक हित निहित हैं। इसके अतिरिक्त विशेष रूप से तेल जैसे कुछ वैश्विक संसाधन दुर्लभ होते जा रहे हैं।
- अंटार्कटिक संसाधनों, विशेष रूप से मत्स्यपालन और खनिजों में चीन के हितों के बारे में काफी अटकलें हैं और चीन उन संसाधनों तक सुरक्षित पहुँच के लिये संधि प्रणाली में कमज़ोरियों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है।
- इसलिये सभी हस्ताक्षरकर्त्ताओं के साथ ही विशेष रूप से महाद्वीप में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी वाले लोगों को संधि के भविष्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
क्लास एक्शन सूट्स
प्रिलिम्स के लिये:ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, जनहित याचिका, क्लास एक्शन सूट मेन्स के लिये:क्लास एक्शन सूट का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में घटित‘ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (ONGC) से संबंधित ‘बार्ज त्रासदी’ जैसी घटनाएँ भारत में प्रभावी क्लास एक्शन सूट/मुकदमों की अनुपस्थिति को रेखांकित करती हैं।
- चक्रवात ताउते के कारण ‘बॉम्बे हाई’ से ONGC के जहाज़ों के क्षतिग्रस्त होने के बाद 71 लोगों की मौत हो गई थी।
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड:
- यह भारत सरकार का एक महारत्न सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी और यह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन है।
- यह भारत की सबसे बड़ी कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस कंपनी है, जो भारतीय घरेलू उत्पादन में लगभग 70% का योगदान करती है।
प्रमुख बिंदु:
- यह लोगों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह द्वारा अदालत में लाया गया मामला है, जिनकी संख्या अक्सर हज़ारों में होती है और इन्हें एकसमान नुकसान हुआ होता है।
- यह अवधारणा ‘प्रतिनिधि मुकदमेबाज़ी’ की अवधारणा से ली गई है, जिसमें एक शक्तिशाली विरोधी के खिलाफ आम व्यक्ति के लिये न्याय सुनिश्चित किया जाता है।
- ऐसे मामलों में आरोपी आमतौर पर कॉर्पोरेट संस्थाएँ या सरकारें होती हैं।
- आमतौर पर क्लास एक्शन सूट में भुगतान किया गया नुकसान व्यक्तिगत स्तर पर छोटा हो सकता है या मात्रात्मक भी नहीं हो सकता है।
- हालाँकि गणना की गई कुल क्षति बड़ी हो सकती है।
- जनहित याचिका (संविधान का अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 226) और क्लास एक्शन सूट के बीच का अंतर यह है कि क्लास एक्शन सूट के विपरीत एक निजी पक्ष के खिलाफ जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
क्लास एक्शन सूट का इतिहास:
- ‘क्लास एक्शन सूट’ का इतिहास 18वीं शताब्दी से पहले का है, इन्हें औपचारिक रूप से अमेरिका में वर्ष 1938 में नागरिक प्रक्रिया के संघीय नियमों के तहत कानून में शामिल किया गया था।
- यह अमेरिका में व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है जहाँ व्यक्ति या छोटे समुदाय, एक बड़ी इकाई के कार्यों से व्यथित सामूहिक रूप से कानूनी विकल्पों का प्रयोग करने के लिये एक साथ आते हैं।
- वर्षों से लापरवाही पर अंकुश लगाने में ‘क्लास एक्शन सूट’ इतना सफल सिद्ध हुआ है कि अब यह अमेरिकी कॉर्पोरेट और उपभोक्ता कानूनों, पर्यावरण मुकदमेबाज़ी आदि का एक हिस्सा है।
भारत में ‘क्लास एक्शन सूट’ से संबंधित नियम:
- सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 :
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भारत में सिविल कार्यवाही के प्रशासन से संबंधित एक प्रक्रियात्मक कानून है।
- नियम 8 प्रतिनिधि सूट को संदर्भित करता है जो भारत में नागरिक संदर्भ में ‘क्लासिक क्लास एक्शन सूट’ के सबसे करीब है। यह आपराधिक कार्यवाही को कवर नहीं करता है।
- कंपनी अधिनियम 2013:
- इसकी धारा 245 किसी कंपनी के सदस्यों या जमाकर्ताओं को विशिष्ट मामलों में कंपनी के निदेशकों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देती है।
- इस तरह के मुकदमे के आगे बढ़ने से पहले की थ्रेसशोल्ड सीमाएँ हैं, जिसके लिये न्यूनतम संख्या में लोगों या शेयर पूंजी धारकों की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार का मुकदमा वर्तमान में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLAT) में दायर किया गया है।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002:
- धारा 53 (N) के तहत यह पीड़ित व्यक्तियों के एक समूह को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी कार्यों से संबंधित मुद्दों के संदर्भ में NCLT में उपस्थित होने की अनुमति देता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 :
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत कुछ शिकायतों को ‘क्लास एक्शन सूट’ माना जा सकता है। (रामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव और अन्य बनाम द्वारकाधीश परियोजना प्राइवेट लिमिटेड और अन्य 2018)।
लाभ
- न्यायालय के बोझ में कमी
- इसका एक तात्कालिक लाभ यह है कि न्यायालय को केवल एक मामले की सुनवाई करनी होती है न कि कई मामलों की। पहले से ही भारतीय न्यायालय मामलों के बोझ में दबे हुए हैं, ऐसे में क्लास एक्शन सूट के माध्यम से उनके बोझ को कम किया जा सकता है।
- कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग की सहायता
- चूँकि सभी के पास कानूनी कार्यवाही के लिये साधन या समय नहीं होता है, ऐसे में धन और साधन से सक्षम लोगों का एक छोटा समूह अन्य पीड़ितों को न्याय दिला सकता है।
- ब्रांड छवि को प्रभावित करता है
- कंपनियाँ ऐसे मुकदमों का सामना करने से हिचक रही हैं, क्योंकि इससे उनकी ब्रांड छवि प्रभावित होती है। वे अपनी प्रतिष्ठा को होने वाले नुकसान को कम करने के लिये ऐसे मामलों को तेज़ी से निपटाना पसंद करते हैं।
- हालाँकि आरोपी पक्षों के लिये एक फायदा यह है कि उन्हें केवल एक ही मामले से निपटना होता है।
चुनौतियाँ
- अविकसित ‘टॉर्ट’ प्रणाली
- टॉर्ट कानून भारत में कई कारणों से पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है, मुख्य रूप से मुकदमेबाज़ी की उच्च लागत और समय लेने वाली प्रकृति के कारण।
- ‘टॉर्ट कानून’ उन कानूनों का एक समूह है, जो लोगों को उनके खिलाफ की गई गलतियों या अपराधों के लिये मुआवज़े की मांग करने में सक्षम बनाता है।
- टॉर्ट कानून भारत में कई कारणों से पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है, मुख्य रूप से मुकदमेबाज़ी की उच्च लागत और समय लेने वाली प्रकृति के कारण।
- आकस्मिक शुल्क का अभाव:
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम वकीलों को आकस्मिक शुल्क लेने की अनुमति नहीं देते हैं, यानी दावा करने वालों को केस जीतने पर मिलने वाले नुकसान का एक प्रतिशत।
- यह वकीलों को अधिक समय लेने वाले मामलों में पेश होने से हतोत्साहित करता है, क्लास एक्शन सूट अनिवार्य रूप से काफी अधिक समय लेते हैं।
- वादियों के लिये थर्ड-पार्टी वित्तपोषण तंत्र का अभाव:
- चूँकि मुकदमेबाज़ी की लागत अधिक होती है, इसलिये थर्ड-पार्टी को मुकदमेबाज़ी की लागत को प्रायोजित करने की अनुमति देकर क्लास एक्शन सूट को और अधिक सुगम बनाया जा सकता है।
- ज्ञात हो कि महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने इसकी अनुमति देने के लिये नागरिक प्रक्रिया संहिता में बदलाव किये हैं।
- चूँकि मुकदमेबाज़ी की लागत अधिक होती है, इसलिये थर्ड-पार्टी को मुकदमेबाज़ी की लागत को प्रायोजित करने की अनुमति देकर क्लास एक्शन सूट को और अधिक सुगम बनाया जा सकता है।
आगे की राह
- भारत को जवाबदेही निर्धारित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये, ज्ञात हो कि इस अवधारणा को विकसित अर्थव्यवस्थाओं में काफी गंभीरता से लिया जाता है और यही उन्हें रोज़गार और व्यापार के लिये एक बेहतर स्थान बनाता है।
- ऐसे मामलों को उठाने के लिये वकीलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, यह ‘क्लास एक्शन सूट’ को मुख्यधारा में लाने की दिशा में पहला कदम होगा।
- यदि भारत को ‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ रैंकिंग में सुधार करना है, खास तौर पर आपदा रोकथाम और जीवन के जोखिम के क्षेत्र में, तो क्लास एक्शन सूट काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
मिशन कर्मयोगी के लिये विशेष प्रयोजन वाहन
प्रिलिम्स के लियेमिशन कर्मयोगी के लिये विशेष प्रयोजन वाहन, सिविल सेवा क्षमता विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम- मिशन कर्मयोगी मेन्स के लियेiGOT कर्मयोगी डिजिटल प्लेटफॉर्म |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अपने महत्त्वाकांक्षी "मिशन कर्मयोगी (Mission Karmayogi)" के माध्यम से प्रमुख नौकरशाही सुधार लाने में सरकार की मदद करने के लिये एक तीन सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- केंद्र ने हाल ही में देश में सभी सिविल सेवाओं की भूमिका हेतु क्षमता विकास के लिये नियम आधारित प्रशिक्षण द्वारा परिवर्तनकारी बदलाव लाने हेतु 'सिविल सेवा क्षमता विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम- मिशन कर्मयोगी (National Programme for Civil Services Capacity Building – Mission Karmayogi)' को मंज़ूरी दी है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य सरकारी सेवाओं के लिये नागरिक अनुभव को बढ़ाना और सक्षम कार्यबल की उपलब्धता में सुधार करना है।
- इस सक्षमता संचालित मिशन को प्रभावी ढंग से चलाने के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) अर्थात् 'कर्मयोगी भारत' को एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में स्थापित किया जाएगा।
- इसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत 100% सरकारी स्वामित्व वाली इकाई के रूप में स्थापित किया जाएगा।
- SPV एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है और यह बुनियादी ढाँचे को डिज़ाइन करने, कार्यान्वयन, विकास और प्रबंधन, योग्यता मूल्यांकन सेवाओं का प्रबंधन तथा वितरण करने एवं टेलीमेट्री डेटा का शासनिक प्रबंधन और निगरानी व मूल्यांकन के प्रावधान सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- टास्क फोर्स अपने विज़न, मिशन और कार्यों को संरेखित करते हुए SPV की संगठनात्मक संरचना पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।
मिशन कर्मयोगी के बारे में:
- लक्ष्य और उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य सही दृष्टिकोण, कौशल और ज्ञान के साथ भविष्य के लिये सिविल सेवा का निर्माण करना है, जो न्यू इंडिया की दृष्टि से जुड़ा हुआ है।
- इसका उद्देश्य भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी तथा प्रौद्योगिकी समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिये तैयार करना है।
- मिशन का कारण:
- वर्तमान में नौकरशाही को नियम अभिविन्यास, राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- सिविल सेवाओं की यथास्थिति को बदलने और लंबे समय से लंबित सिविल सेवा सुधारों को लागू करने के लिये।
- योजना की विशेषताएँ:
- टेक-एडेड (Tech-Aided): क्षमता निर्माण प्रशिक्षण iGOT कर्मयोगी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से दिया जाएगा जिसमें वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से तैयार की गई सामग्री होगी।
- कवरेज: लगभग 46 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को शामिल करने के लिये वर्ष 2020-2021 से लेकर 2024-25 तक (5 वर्षों की अवधि के दौरान) 510.86 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा।
- नियमों से भूमिकाओं में बदलाव: यह कार्यक्रम "नियम-आधारित से भूमिका-आधारित (Rules-Based to Roles-Based)" मानव संसाधन प्रबंधन (Human Resource Management- HRM) का समर्थन करेगा ताकि पद की आवश्यकताओं के अनुरूप एक अधिकारी की दक्षता का मिलान करके कार्य आवंटन किया जा सके।
- एकीकृत पहल: अंततः सेवा मामलों जैसे- परिवीक्षा अवधि के बाद पुष्टि, तैनाती, कार्य असाइनमेंट और रिक्तियों की अधिसूचना सभी को प्रस्तावित ढाँचे में एकीकृत किया जाएगा।
अन्य नौकरशाही सुधार:
- सरकार ने संयुक्त सचिव (JS) के स्तर पर नियुक्तियों के संबंध में शीर्ष नौकरशाही कैडर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के आधिपत्य को समाप्त कर दिया है।
- इसके बजाय भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय लेखा और लेखा परीक्षा सेवा तथा भारतीय आर्थिक सेवा जैसे अन्य संवर्गों से भी पदों पर नियुक्तियाँ की गई हैं।
- इसी तरह केंद्र सरकार ने भी निजी क्षेत्र के कर्मियों के पार्श्व प्रेरण को प्रोत्साहित किया है।
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013
प्रिलिम्स के लिये:चुनावी ट्रस्ट योजना, चुनावी बॉण्ड मेन्स के लिये:चुनावी ट्रस्ट योजना से संबंधित विभिन्न पक्ष |
चर्चा में क्यों?
पहली बार चुनावी ट्रस्ट (चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 के तहत) ने चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान की घोषणा की है, हालाँकि चुनावी बॉण्ड योजना के तहत गारंटीकृत नाम न छापने का हवाला देते हुए धन प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है।
- एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, यह प्रथा ‘इलेक्टोरल ट्रस्ट्स स्कीम, 2013 और आयकर नियम, 1962 की भावना के विरुद्ध है, जो ट्रस्टों के लिये योगदान देने वाले के बारे में प्रत्येक विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाते हैं।
- यदि चुनावी ट्रस्ट, बॉण्ड के माध्यम से दान करने की इस प्रथा को अपनाना शुरू कर देते हैं, तो यह पूर्णतः अनुचित होगा और इसमें तमाम गलत प्रथाएँ जैसे- पूर्ण गुमनामी, अनियंत्रित और असीमित धन, काले धन का मुक्त प्रवाह, भ्रष्टाचार, विदेशी धन, कॉर्पोरेट दान तथा हितों का टकराव आदि शामिल होंगी।
प्रमुख बिंदु
चुनावी ट्रस्ट योजना के बारे में
- चुनावी ट्रस्ट भारत में गठित एक गैर-लाभकारी संगठन है जो किसी भी व्यक्ति से व्यवस्थित रूप से योगदान प्राप्त करने का कार्य करता है।
- चुनावी ट्रस्ट भारत में अपेक्षाकृत नई अवधारणा है और यह देश में तेज़ी से हो रहे चुनावी पुनर्गठन का हिस्सा है।
- चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
- चुनावी ट्रस्ट से संबंधित प्रावधान आयकर अधिनियम, 1961 और आयकर नियम, 1962 के तहत शामिल हैं।
उद्देश्य
- यह एक चुनावी ट्रस्ट को अनुमोदन प्रदान करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो स्वैच्छिक योगदान प्राप्त करते हैं तथा इसे राजनीतिक दलों को वितरित करते हैं।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत एक राजनीतिक दल इस योजना के तहत पात्र राजनीतिक दल होगा और एक चुनावी ट्रस्ट केवल पात्र राजनीतिक दलों को ही धन वितरित करेगा।
ट्रस्ट के अनुमोदन के लिये मानदंड
- एक चुनावी ट्रस्ट को अनुमोदित किया जाएगा यदि वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है:-
- कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के प्रयोजनों के लिये पंजीकृत कंपनी।
- चुनावी ट्रस्ट का उद्देश्य कोई लाभ अर्जित करना अथवा अपने सदस्यों या योगदानकर्त्ताओं को कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ देना नहीं होना चाहिये।
चुनावी ट्रस्टों में योगदान:
- स्वैच्छिक योगदान प्राप्त कर सकते हैं:
- एक ऐसे व्यक्ति से जो भारत का नागरिक है;
- ऐसी कंपनी से जो भारत में पंजीकृत है;
- किसी फर्म या भारत में निवास कर रहे एक हिंदू अविभाजित परिवार या व्यक्तियों के एक संघ या व्यक्तियों के निकाय से।
- योगदान स्वीकार नहीं कर सकते:
- ऐसे व्यक्ति से जो भारत का नागरिक नहीं है।
- किसी अन्य चुनावी ट्रस्ट से जो कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत एक कंपनी के रूप में पंजीकृत है और चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 के तहत चुनावी ट्रस्ट के रूप में अनुमोदित है;
- कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 में परिभाषित किसी सरकारी कंपनी से;
- किसी विदेशी स्रोत से, जैसा कि विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 की धारा 2 में परिभाषित किया गया है।
- एक चुनावी ट्रस्ट केवल चेक, डिमांड ड्राफ्ट या बैंक खाते के माध्यम से हस्तांतरण द्वारा किये गए योगदान को ही स्वीकार कर सकता है।
अन्य बिंदु:
- चुनावी/इलेक्टोरल ट्रस्ट एक वर्ष में प्राप्त कुल योगदान का 5% तक खर्च कर सकता है, जिसकी कुल सीमा निगमन के पहले वर्ष में 5 लाख रुपए और बाद के वर्षों में 3 लाख रुपए होगी।
- ट्रस्ट पात्र राजनीतिक दल से एक रसीद प्राप्त करता है जिसमें राजनीतिक दल का नाम, उसकी स्थायी खाता संख्या आदि का उल्लेख होता है।
- ट्रस्ट को अपनी प्राप्तियों, वितरण एवं व्यय के संबंध में ऐसी लेखा बही और अन्य दस्तावेज़ों को रखना तथा उनका अनुरक्षण करना आवश्यक है।
योजना का महत्त्व:
- चुनावी ट्रस्टों को कॉरपोरेट संस्थाओं द्वारा राजनीतिक दलों को उनके चुनाव संबंधी खर्चों के लिये उपलब्ध कराए गए फंड में अधिक पारदर्शिता लाने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- निर्वाचन आयोग ने पारदर्शिता के हित में चुनावी ट्रस्टों द्वारा प्राप्त और राजनीतिक दलों को उनके द्वारा वितरित किये गए योगदान के विवरण संबंधी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये चुनावी ट्रस्टों की योगदान रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु दिशा-निर्देश भी जारी किये थे।
चुनावी बॉण्ड
- चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
- चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
- यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
- बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
- एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।