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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों का विरोध

  • 11 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

जीएम-सीड्स एवं जेनेटिक इंजीनियरिंग, बीटी कॉटन 

मेन्स के लिये:

वर्तमान समय में आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शेतकारी संगठन (Shetkari Sanghatana) नामक किसान संगठन द्वारा उन किसानों के खिलाफ एक आंदोलन चलाने की बात कही गई है जो चालू खरीफ के मौसम में बिना प्रशासनिक अनुमति के आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों (Genetically modified seeds/GM- seeds) का प्रयोग करने जा रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • शेतकारी संगठन का मानना है कि चालू खरीफ ऋतु में, किसान बिना किसी अनुमति के बड़े पैमाने पर मक्का, सोयाबीन, सरसों, बैगन और शाकनाशी सहिष्णु कपास ( Herbicide Tolerant Cotton) के लिये  जीएम बीजों की बुवाई करेंगे।
    • शाकनाशी सहिष्णु कपास ( Herbicide Tolerant Cotton) में खरपतवार के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता होती है।
  • संगठन का कहना है कि यदि किसान इस तरह के विभिन्न प्रकार के बीज़ अपने खेतों में प्रयोग करना चाहते हैं तो उन्हें फसल की जीएम प्रकृति की घोषणा करते हुए खेतों में बोर्ड लगाना होगा ताकि खेतों में आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के प्रयोग के लिये नवीनतम प्रौद्योगिकीयों को अपनाया जा सके।

आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज़ ?

  • ये ऐसे बीज होते है जिनके आनुवंशिक पदार्थ को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया गया है।
  • ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो सके तथा फसल को कीट प्रतिरोधी अथवा सुखा रोधी बनाया जा सके।
  • जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा वांछित प्रभाव प्राप्त करने के लिये टिश्यू कल्चर, म्युटेशन अर्थात् उत्परिवर्तन एवं सूक्ष्म जीवों की मदद से पौधों में नए जीनों का प्रवेश कराया जाता है।
  • इस तरह की एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया में पौधे को एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस (Agrobacterium Tumefaciens) नामक सूक्ष्मजीव से संकरण कराया जाता है। इस  सूक्ष्मजीव को टी-डीएनए (Transfer-DNA) नामक एक विशिष्ट जीन से संकरण कराकर पौधे में डीएनए का प्रवेश कराया जाता है।
  • इस एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस के टी-डीएनए को वांछित जीन से सावधानीपूर्वक प्रतिस्थापित किया जाता है, जो कीट प्रतिरोधक होता है। इस प्रकार पौधे के जीनोम में बदलाव लाकर वांछित गुणों वाली फसल प्राप्त की जाती है।
  • भारत में बीटी कपास, एकमात्र अनुमति प्राप्त जीएम फसल है, जिसमें मिट्टी में मौज़ूद बेसिलस थुरिंगिनेसिस (बीटी) जीवाणु के साथ दो विदेशी जीन (Alien Genes) के संकरण से प्राप्त किया जाता है।
  • ये जीन कपास की फसल को सामान्य पिंक बॉलवॅर्म (Pink Bollworm) नामक कीट से बचाव के लिये एक विषाक्त प्रोटीन के स्रावण में सहायता करते हैं। 
  • शाकनाशी सहिष्णु कपास एक अतिरिक्त जीन एवं अन्य मिट्टी के जीवाणु को साथ संकरण कराने से प्राप्त की गई  है, जो पौधे को सामान्य हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट (Herbicide Glyphosate) जो कि एक कीटनाशक है, के कम प्रयोग करने को बढ़ावा देती है।

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की कानूनी स्थिति:

  • भारत में, ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति’ (Genetic Engineering Appraisal Committee -GEAC) पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित सांविधिक निकाय है जो जीएम फसलों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिये अनुमति प्रदान करता है।
  • वर्ष 2002 में, GEAC ने बीटी कॉटन के वाणिज्यिक उत्पादन की अनुमति दी थी। तब से अब तक देश का 95% से अधिक कपास क्षेत्र तब से बीटी कपास के अंतर्गत आ गया है। 
  • गैर कानूनी रूप से जीएम संस्करण फसलों/बीज़ों का उपयोग करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 5 वर्ष की जेल की सज़ा तथा 1 लाख रुपये का जुर्माना आरोपित किया जा सकता है।

किसानों द्वारा जीएम- फसलों फसलों की बुआई करने का कारण:

  • किसानों का ऐसा कहना है कि बीटी कपास का प्रयोग करने से कीटनाशकों एवं इसकी निराई पर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है।
  • जीएम फसलें सूखा-रोधी और बाढ़-रोधी होने के साथ कीट प्रतिरोधी भी होती हैं।
  • शाकनाशी सहिष्णु कपास का प्रयोग करने से इसमें मौज़ूद हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट के कारण खरपतवार हटाने पर लगने वाले खर्च में कमी आती है।
  • हरियाणा जैसे राज्यों में बीटी बैंगन का क्षेत्र काफी अधिक है जिसका मुख्य कारण इस पर आने वाली लागत तथा कीटनाशकों पर लगने वाले खर्च का कम होना है।
  • ये बीज साधारण बीज से अधिक उपज प्रदान करते है।

पर्यावरणविदों का तर्क:

  • मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर जीएम फसलों के प्रभाव को देखते हुए पर्यावरणविदों का तर्क है कि अभी इन पर और अध्ययन की आवश्यकता है उसके बाद ही इनके व्यावसायिक उत्पादन को मंज़ूरी दी जानी चाहिए। 
  • लंबे समय तक आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का प्रयोग मनुष्यों के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकता  हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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