डेली न्यूज़ (23 Nov, 2024)



दूसरा भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-कैरिकॉम, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मिशन लाइफ, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, जन औषधि केंद्र, लघु द्वीपीय विकासशील देश (SIDS), कैरेबियन सागर, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये भारत-संयुक्त राष्ट्र साझेदारी कोष, 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' (OSOWOG), राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM)। 

मेन्स के लिये:

भारत-कैरिकॉम संबंधों को मजबूत करना और इसका महत्त्व।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और ग्रेनाडा के प्रधानमंत्री, जो वर्तमान में कैरीकॉम के अध्यक्ष हैं, ने जॉर्जटाउन, गुयाना में दूसरे भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की

  • पहला भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन 2019 में न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया था।

दूसरे भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की विशेषताएँ क्या हैं?

  • सहयोग के 7 स्तंभ: भारत के प्रधानमंत्री ने भारत और 'कैरिकॉम' के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिये सात प्रमुख स्तंभों का प्रस्ताव रखा। ये स्तंभ हैं:
    • C: क्षमता निर्माण: भारत ने अगले पाँच वर्षों में कैरिकॉम देशों के लिये अतिरिक्त 1000 ITEC (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग) स्लॉट की घोषणा की।
    •  A: कृषि और खाद्य सुरक्षा: भारत ने कृषि, विशेषकर ड्रोन, डिजिटल कृषि और कृषि मशीनीकरण जैसी प्रौद्योगिकी के उपयोग में अपने अनुभव साझा किये।
    • R: नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और मिशन LiFE जैसी वैश्विक पहलों पर अधिक सहयोग का आह्वान किया।
    • I: नवाचार, प्रौद्योगिकी और व्यापार: प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिये भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे और अन्य तकनीकी मॉडल की पेशकश की।
    • C: क्रिकेट और संस्कृति: भारत ने कैरीकॉम देशों में "भारतीय संस्कृति दिवस" आयोजित करने और क्षेत्र की युवा महिला क्रिकेटरों को क्रिकेट प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव रखा।
    • O: महासागर अर्थव्यवस्था और समुद्री सुरक्षा: भारत ने कैरेबियन सागर में समुद्री क्षेत्र मानचित्रण और जल विज्ञान पर सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की।
    • M: चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल: भारत ने किफायती स्वास्थ्य देखभाल के लिये अपना मॉडल पेश किया, जिसमें जन औषधि केंद्रों के माध्यम से जेनेरिक दवाओं का प्रावधान और स्वास्थ्य के लिये योग को बढ़ावा देना शामिल है।
  • जलवायु न्याय: कैरिकॉम नेताओं ने लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) के लिये जलवायु न्याय को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्व की सराहना की
    • SIDS वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 1% से भी कम के लिये ज़िम्मेदार हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
    • जलवायु न्याय का अर्थ है विभिन्न समुदायों, विशेषकर गरीब, हाशिये पर पड़े और कमज़ोर समूहों पर जलवायु परिवर्तन के असमान और असंगत प्रभावों को संबोधित करना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुरस्कार

  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी यात्रा के दौरान  गुयाना और बारबाडोस के शीर्ष पुरस्कार प्राप्त हुए।
    • गुयाना को "ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस" और बारबाडोस को "ऑनरेरी ऑर्डर ऑफ फ्रीडम" से सम्मानित किया गया।
  • हाल ही में, डोमिनिका ने प्रधानमंत्री मोदी के लिये अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार, "डोमिनिका अवार्ड ऑफ ऑनर" की भी घोषणा की।
  • प्रधानमंत्री मोदी के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची में अब 19 प्रतिष्ठित सम्मान शामिल हो गए हैं।
    • उल्लेखनीय पुरस्कारों में रूस का "ऑर्डर ऑफ सेंट एँड्रयू द एपोस्टल" और अमेरिका का "लीज़न ऑफ मेरिट" शामिल हैं।

कैरेबियाई समुदाय (CARICOM) क्या है?

  • कैरीकॉम के बारे में: कैरीकॉम 21 देशों का एक समूह है: 15 सदस्य देश और 6 सहयोगी सदस्य जिनमें द्वीपीय देश और सूरीनाम तथा गुयाना जैसे मुख्य भूमि क्षेत्र शामिल हैं।
    • कैरिकॉम की स्थापना वर्ष 1973 में चार संस्थापक सदस्यों - बारबाडोस, गुयाना, जमैका और त्रिनिदाद और टोबैगो द्वारा चगुआरामस संधि पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।

  • विविधता: यह समुदाय अफ्रीकी, भारतीय, यूरोपीय, चीनी, पुर्तगाली और स्वदेशी पृष्ठभूमि के लोगों से बना है।
    • जनसंख्या: वहाँ लगभग 16 मिलियन लोग रहते हैं और उनमें से 60% लोग 30 वर्ष से कम आयु के हैं।
    • भाषाएँ: यह क्षेत्र बहुभाषी है, जिसमें अंग्रेज़ी मुख्य भाषा है, इसके अलावा फ्रेंच, डच और विभिन्न अफ्रीकी एवं एशियाई भाषाएँ भी बोली जाती हैं।
  • भौगोलिक विस्तार: सदस्य देश उत्तर में बहामास से लेकर दक्षिण में सूरीनाम और गुयाना तक फैले हुए हैं, जिससे यह आर्थिक एवं सामाजिक विकास के विभिन्न स्तरों वाला एक विशाल एवं विविध क्षेत्र बन गया है।
  • कैरिकॉम के एकीकरण के स्तंभ: कैरिकॉम का एकीकरण चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है, जो समुदाय के उद्देश्यों का मार्गदर्शन करते हैं:
    • आर्थिक एकीकरण: व्यापार और उत्पादकता के माध्यम से विकास एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना।
    • विदेश नीति समन्वय: अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में एकीकृत आवाज प्रस्तुत करना।
    • मानव एवं सामाजिक विकास: स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • सुरक्षा: क्षेत्रीय सुरक्षा, आपदा प्रतिक्रिया और अपराध रोकथाम को मज़बूत करना।

भारत-कैरिकॉम संबंध

  • नवंबर 2003 में एक कैरिकॉम प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया, जिसके परिणामस्वरूप एक स्थायी संयुक्त आयोग की स्थापना हुई। 
    • जॉर्जटाउन (गुयाना की राजधानी) में भारत के उच्चायुक्त को कैरीकॉम का राजदूत भी नियुक्त किया गया है, जो क्षेत्रीय सहयोग के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • भारत-कैरिकॉम विदेश मंत्रियों की पहली बैठक (2005) ने निकट सहयोग, विशेष रूप से व्यापार और कैरेबियाई विकास बैंक के माध्यम से विकास परियोजनाओं जैसे क्षेत्रों में, के लिये आधार तैयार किया।
  • प्रथम भारत-कैरिकॉम संयुक्त आयोग (2015) की बैठक जॉर्जटाउन में आयोजित की गई, जिसके परिणामस्वरूप भारत और कैरिकॉम देशों के बीच व्यापारिक साझेदारी को बढ़ावा मिला।
  • भारत-कैरिकॉम मंत्रिस्तरीय बैठकें नियमित रूप से आयोजित की जाती हैं, तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान उल्लेखनीय कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
  • मानवीय सहायता: वर्ष 2017 में, कैरेबियन सागर में तूफान के बाद, भारत ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये भारत-संयुक्त राष्ट्र साझेदारी कोष के माध्यम से आपातकालीन सहायता और अतिरिक्त सहायता के रूप में 200,000 अमरीकी डालर प्रदान किये।
  • भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन (2019) न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसमें भारत ने कैरिकॉम देशों को समर्थन देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • 14 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान: सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिये।
    • 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता: विशेष रूप से सौर ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन परियोजनाओं के लिये।
    • विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम: कैरीकॉम देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप भारत ने विशेष क्षमता निर्माण कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
  • भारत-कैरिकॉम टास्क फोर्स: इसकी स्थापना चल रही पहलों को सुव्यवस्थित और उन्नत करके तथा भविष्य के लिये स्पष्ट रणनीतियाँ स्थापित करके सहयोग को पुनर्जीवित करने के लिये की गई थी।

भारत और कैरिकॉम एक दूसरे के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

  • सामरिक विस्तार: लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (LAC) क्षेत्र अपने भू-राजनीतिक संबंधों में विविधता ला रहा है तथा एशिया में नई साझेदारियाँ तलाश रहा है, जो इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की भारत की महत्वाकांक्षा के अनुरूप है।
  • साझा जलवायु चिंताएँ: भारत और कैरीकॉम को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें समुद्र का बढ़ता स्तर और चरम मौसम शामिल हैं। 
    • भारत के COP-26 प्रयास, शमन और अनुकूलन के लिये जलवायु वित्त पोषण हेतु CARICOM के आह्वान के अनुरूप हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत द्वारा सह-स्थापित ISA, कैरीकॉम देशों को सौर ऊर्जा तैनाती बढ़ाने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
    • इसके अतिरिक्त, एक विश्व एक सूर्य एक ग्रिड (OWOSOG) पहल एक वैश्विक ग्रिड बनाने के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है जो महाद्वीपों के पार सौर ऊर्जा संचारित कर सकता है।
  • डिजिटल स्वास्थ्य सहयोग: CoWin और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) जैसी भारत की डिजिटल स्वास्थ्य प्रगति, कैरीकॉम में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सुधार के लिये एक मॉडल पेश करती है, विशेष रूप से जलवायु-प्रेरित स्वास्थ्य खतरों के लिये।
  • जैव ईंधन और ऊर्जा सहयोग: जैव ईंधन अनुसंधान में ब्राज़ील के साथ भारत का सहयोग कैरिकॉम देशों तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे संयुक्त ऊर्जा समाधान और जैव ईंधन उत्पादन के लिये एक मंच तैयार हो सकेगा।
  • मज़बूत साझेदारी: भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा और भारत के चल रहे विकास सहायता कार्यक्रम, जैसे कि कैरीकॉम विकास कोष में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान, भविष्य के सहयोग के लिये एक मज़बूत आधारशिला रखते हैं।

निष्कर्ष;

दूसरे भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन ने द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह सहयोग साझा चुनौतियों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास को संबोधित करने के लिये विशाल अवसर प्रदान करता है, जिससे कैरेबियाई क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ जाती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत-कैरिकॉम संबंधों की वर्तमान स्थिति तथा व्यापार, जलवायु परिवर्तन और लोगों के बीच संबंधों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने की संभावनाओं पर चर्चा करें?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक सही सुमेलित है?

भौगोलिक लक्षण        प्रदेश

(a) एबिसिनी पठार  : अरब
(b) एटलस पर्वत     : उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका
(c) गुयाना उच्चभूमि : दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका
(d) ओकावांगो द्रोणी : पैटागोनिया

उत्तर: B 


मेन्स

प्रश्न: भारत से अन्य उपनिवेशों में ब्रिटिशों द्वारा गिरमिटिया मज़दूरों को क्यों ले जाया गया? क्या वे वहाँ अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित कर पाए? (2018) 

प्रश्न: दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिए। (2017)


वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 और भारत में मृदा

प्रिलिम्स के लिये:

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, शून्य बजट प्राकृतिक कृषिसतत् विकास लक्ष्य 15, भारत में मृदा के प्रकार

मेन्स के लिये:

मृदा स्वास्थ्य और स्थिरता, सतत् कृषि पद्धतियाँ, भारत के मृदा संरक्षण प्रयास

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वैश्विक मृदा सम्मेलन (GSC) 2024 नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसमें खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये मृदा स्वास्थ्य के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया।

वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 क्या है?

  • विषय में: भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी (ISSS) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (IUSS) के सहयोग से आयोजित GSC 2024 का उद्देश्य सतत् मृदा/संसाधन प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करना है। 
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य इस बात पर वैश्विक संवाद को बढ़ावा देना था कि किस प्रकार मृदा की देखभाल विभिन्न क्षेत्रों में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है।
  • विषय: खाद्य सुरक्षा से परे मिट्टी की देखभाल: जलवायु शमन परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ।
  • GSC 2024 की मुख्य विशेषताएँ: मृदा स्वास्थ्य को एक गंभीर मुद्दा माना गया, जिसमें मृदा क्षरण से उत्पादकता प्रभावित हो रही है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा पैदा हो रहा है। 
    • भारत की लगभग 30% मृदा कटाव, लवणता, प्रदूषण और कार्बनिक कार्बन की हानि के कारण क्षतिग्रस्त हो चुकी है।
    • सम्मेलन में मृदा क्षरण से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर जोर दिया गया, जो संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 15 (SDG 15) के अनुरूप है।
      • SDG 15 का उद्देश्य स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के सतत् उपयोग को संरक्षित करना, पुनर्स्थापित करना और बढ़ावा देना, वनों का स्थायी प्रबंधन करना, मरुस्थलीकरण से निपटना, भूमि क्षरण को रोकना और जैवविविधता की हानि को रोकना है। 

नोट: 

  • ISSS की स्थापना वर्ष 1934 में कलकत्ता में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत की गई थी। सोसायटी मृदा विज्ञान ज्ञान को बढ़ावा देने के लिये सेमिनार और सम्मेलन आयोजित करती है। 
  • IUSS एक गैर-लाभकारी, गैर-सरकारी वैज्ञानिक संस्था है। यह अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद (ISC) का हिस्सा है। 
    • IUSS मृदा विज्ञान अनुसंधान और इसके अनुप्रयोगों को बढ़ावा देता है तथा वैज्ञानिकों के बीच वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देता है।

भारत में मृदा स्वास्थ्य के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • मृदा क्षरण : भारत की एक तिहाई से अधिक मृदा असंवहनीय कृषि पद्धतियों और अप्रभावी मृदा प्रबंधन पद्धतियों के कारण क्षरण के खतरे में है।
  • मृदा अपरदन और उर्वरता की हानि : भारत में प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 15.35 टन मृदा नष्ट हो जाती है, जिससे फसल उत्पादकता कम हो जाती है और 13.4 मिलियन टन वर्षा आधारित फसलों का नुकसान होता है। 
    • इससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षति होती है, साथ ही बाढ़, सूखे में वृद्धि होती है तथा जलाशय क्षमता में 1-2% वार्षिक कमी आती है।
  • मृदा लवणता: लवणता जल अंतःस्यंदन, पोषक तत्त्व अवशोषण और मृदा वातन को कम करके मृदा के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है, जिससे फसल उत्पादकता में कमी आती है। 
  • यह मृदा संरचना को बाधित करता है, लवण-सहिष्णु जीवों को बढ़ावा देता है, तथा मृदा क्षरण को तीव्र करता है, जिससे अंततः भूमि बंजर हो जाती है।
    • कार्बनिक तत्त्वों और पोषक तत्व स्तर में कमी: एक प्रमुख चिंता का विषय यह है कि भारतीय मृदा में कार्बनिक तत्व असामान्य रूप से कम (लगभग 0.54%) है, जो आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को दर्शाता है, जो मृदा की उर्वरता और कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है।
      • भारत की 70% से अधिक मृदा या तो अम्लीय या क्षारीय है, जो प्राकृतिक पोषक चक्र को बाधित करती है। 
      • इसके अतिरिक्त, भारतीय मृदा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की प्राय: कमी रहती है, जिससे स्वास्थ्य संकट में और भी वृद्धि होती है। 
  • मरुस्थलीकरण: यह कार्बनिक पदार्थ, पोषक तत्त्व और नमी को कम करके मृदा को क्षरण की ओर ले जाता है। इसके परिणामस्वरूप मृदा की उर्वरता कम हो जाती है, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो जाती है।
    • मरुस्थलीकरण से मृदा-क्षरण में तीव्रता आती है, जैवविविधता में कमी आती है तथा भूमि कृषि के लिये अनुपयुक्त हो जाती है,जिससे खाद्य सुरक्षा पर संकट उत्पन्न होता है।
  • उपजाऊ भूमि का उपयोग : उपजाऊ कृषि भूमि का एक बड़ा भाग गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जा रहा है, जिससे बहुमूल्य मृदा संसाधनों की हानि हो रही है।

मृदा संरक्षण के लिये भारत की पहल :

भारत में मृदा के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • मृदा का वर्गीकरण: भारत की विविध विशेषताओं, भू-आकृति, जलवायु क्षेत्रों और वनस्पति प्रकारों ने विभिन्न प्रकार की मृदाओं के विकास में योगदान दिया है।
    • ऐतिहासिक रूप से, भारतीय मृदा को दो मुख्य समूहों में वर्गीकृत किया गया है: उर्वर (उपजाऊ) और ऊसर (अनुर्वर)। 
    • वर्ष 1956 में स्थापित भारतीय मृदा सर्वेक्षण तथा राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो ने गठन, रंग, संरचना और स्थान को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) मृदा वर्गीकरण के आधार पर भारतीय मृदाओं का वर्गीकरण किया गया है।
  • भारत में प्रमुख मृदा के प्रकार:

    मृदा का प्रकार

वितरण

विशेषताएँ

उत्पादित मुख्य फसलें

जलोढ़ मृदा

उत्तरी मैदान, नदी घाटियाँ, पूर्वी तट के डेल्टा और गुजरात के मैदान

रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मृदा तक; पोटाश की प्रचुरता, फास्फोरस की कमी; खादर (नवीन जलोढ़) और भांगर (पुरानी जलोढ़); रंग हल्के भूरे से लेकर राख जैसे भूरे रंग तक

चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास

काली मृदा

दक्कन का पठार (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु)

चिकनी, गहरी, अपरागम्य; नम होने पर विस्तारित और चिपचिपी हो जाती है, शुष्क होने पर सिकुड़ जाती है एवं उसमें दरार पड़ जाती हैं; लंबे समय तक नमी बनी रहती है; चूना, लोहा, मैग्नेशिया, एल्युमिना एवं पोटाश की प्रचुरता; फास्फोरस, नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की कमी होती है।

कपास, ज्वार, दालें एवं बाजरा

लाल और पीली मृदा

पूर्वी और दक्षिणी दक्कन पठार, ओडिशा के कुछ भाग, छत्तीसगढ़, दक्षिणी गंगा का मैदान

क्रिस्टलीय आग्नेय चट्टानों में विकसित होती है; लौह के कारण लाल, हाइड्रेट होने पर पीली; बारीक दाने वाली उपजाऊ मृदा होती है; नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्यूमस की कम मात्रा

गेहूँ, चावल, बाजरा, दालें, मूंगफली

लैटेराइट मृदा

उच्च तापमान एवं वर्षा वाले क्षेत्र (कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा, असम)

तीव्र निक्षालन का परिणाम; लौह ऑक्साइड और पोटाश से भरपूर, कार्बनिक पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्शियम की निम्न मात्रा 

काजू, चाय, कॉफी, रबर, नारियल


शुष्क मृदा


पश्चिमी राजस्थान, पंजाब और हरियाणा

रेतीली और लवणीय; आर्द्रता और ह्यूमस की कमी; उच्च वाष्पीकरण एवं कैल्शियम के कारण 'कंकर' जैसी परतें बन जाना; नाइट्रोजन की कमी, फॉस्फेट सामान्य; रंग- लाल से भूरा

जौ, कपास, बाजरा, दालें

लवणीय मृदा

पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तटीय डेल्टा, सुंदरबन (पश्चिम बंगाल), अत्यधिक सिंचाई वाले क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा)

सोडियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम की अधिकता; शुष्क जलवायु और खराब जल निकासी के कारण खारापन; नाइट्रोजन और कैल्शियम की कमी; सिंचित क्षेत्रों में केशिका क्रिया के कारण लवण की परत का निर्माण

चावल, गेहूँ, जौ (जिप्सम उपयोग के साथ)

पीट मृदा

उच वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्र (उत्तरी बिहार, दक्षिणी उत्तराखंड, तटीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु)

उच्च कार्बनिक पदार्थ एवम ह्यूमस; क्षारीय हो सकती है; 40-50% तक कार्बनिक पदार्थ; जलमग्न और दलदली क्षेत्रों में मिलती है

चावल, जूट

वन मृदा

पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्र, हिमालय, पश्चिमी और पूर्वी घाट

संरचना और बनावट में भिन्नता; घाटियों में दोमट और गादयुक्त, ऊपरी ढलानों में मोटे दाने वाली; बर्फ से ढके क्षेत्रों में अम्लीय और कम ह्यूमस वाली; निचली घाटियों में उपजाऊ

चाय, कॉफी, मसाले, उष्णकटिबंधीय फल

मृदा परिच्छेदिका

  • परिचय: मृदा परिच्छेदिका का आशय मृदा की ऊर्ध्वाधर संरचना से है जिससे मृदा की विभिन्न क्षैतिज परतों/संस्तर को दर्शाया जाता है जो बनावट, रंग एवं रासायनिक संरचना में भिन्न होती हैं।
    • जलवायु, जीवों और भूमि सतह की अंतःक्रियाओं के माध्यम से विकसित मृदा संस्तर कार्बनिक (O) या खनिज (A, E, B, C) हो सकते हैं।

मृदा की प्रमुख परतें:

  • O- संस्तर (कार्बनिक परत): इसमें पत्तियाँ, टहनियाँ और काई जैसे अविघटित कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
  • A- संस्तर (शीर्ष मृदा): कार्बनिक पदार्थ और खनिजों से भरपूर, पौधों की वृद्धि में सहायक, मुलायम और छिद्रयुक्त।
  • E- संस्तर  (अपवाहन परत): निक्षालन (पानी द्वारा खनिजों का निष्कासन) के कारण एक हल्की, पोषक तत्त्वों से रहित परत।
  • B- संस्तर (अधोमृदा): ऊपरी परतों से निक्षालित खनिजों को एकत्रित करता है, इसमें लोहा, मृदा और कार्बनिक यौगिक होते हैं। 
  • C- संस्तर (मूल परत): यह टूटी हुई आधारशिला या सैप्रोलाइट से बनी होने के कारण मृदा का पुर्णतः विकास नही हो पता है, जिससे इसमें बहुत कम कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
  • R-संस्तर (आधारशिला): मृदा परिच्छेदिका के आधार पर अपक्षयित आधारशिला।

मृदा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • नीतियाँ: SHC जैसी अधिक व्यापक योजनाएँ विकसित करनी चाहिये, जिससे किसानों को मृदा की पोषक स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सके। इससे किसानों को उर्वरक उपयोग एवं मृदा प्रबंधन के बारे में सूचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
  • कार्बन पृथक्करण: मृदा कार्बन पृथक्करण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कार्बनिक रूप में संग्रहीत करके मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाता है, जिससे उर्वरता और जल प्रतिधारण में सुधार होता है। कवर क्रॉपिंग एवं कम जुताई जैसी प्रथाएँ कार्बन के स्तर और स्थिरता को बढ़ाती हैं।
  • सतत् कृषि पद्धतियाँ: भारत मृदा की गुणवत्ता में सुधार, कटाव को कम करने और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिये बड़े पैमाने पर बिना जुताई वाली कृषि को अपनाया जा सकता है, जैसा कि ब्राज़ील में सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया है।
    • यह सतत् अभ्यास बेहतर उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करता है।
    • फसल चक्र, कृषि वानिकी और जैविक कृषि  जैसी सतत् कृषि पद्धतियाँ मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 द्वारा खाद्य सुरक्षा और जलवायु प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये सतत् मृदा प्रबंधन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। भारत को मृदा क्षरण को दूर करने के लिये बेहतर कृषि पद्धतियों और नीतियों को अपनाना चाहिये। दीर्घकालिक कृषि और आर्थिक स्थिरता के लिये मृदा स्वास्थ्य को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मृदा स्वास्थ्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।" मृदा क्षरण के संबंध में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये साथ ही स्थायी समाधान सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है?

(a) भूरी वन मृदा
(b) विदरी  ज्वालामुखीय चट्टान
(c) ग्रेनाइट और शिस्ट
(d) शेल और चूना-पत्थर

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • काली मृदा, कपास उगाने के लिये आदर्श है इसे रेगुर मृदा या काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है। काली मृदा के निर्माण के लिये चट्टान सामग्री के साथ-साथ जलवायु परिस्थितियाँ भी महत्त्वपूर्ण कारक हैं। काली मृदा दक्कन (बेसाल्ट) क्षेत्र की प्रमुख पहचान है जो उत्तर-पश्चिमी दक्कन के पठारमें फैपायी जाती है और इसका निर्माण लावा प्रवाह या विदरी ज्वालामुखीय चट्टान से हुआ है।
  • दक्कन के पठार में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल हैं। काली मृदा, गोदावरी व कृष्णा के ऊपरी भाग तथा उत्तरी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्से में पाई जाती हैं।
  • रासायनिक रूप से काली मृदा चूना, लोहा, मैग्नेशिया और एल्युमीनियम के संदर्भ में समृद्ध है। इसमें पोटाश भी होता है। लेकिन इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। मृदा का रंग गहरे काले से लेकर भूरे रंग तक होता है।

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न. भारत की लेटराइट मिट्टियों के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2013)

  1. यह साधारणतः लाल रंग की होती है।
  2.  यह नाइट्रोजन और पोटाश से समृद्ध होती है।
  3.  उनका राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अच्छा विकास हुआ है।
  4.  इन मिट्टियों में टैपियोका और काजू की अच्छी उपज होती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (c)


G20 रियो डी जनेरियो ‘लीडर्स डिक्लेरेशन’

प्रिलिम्स के लिये:

G20, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), सस्टेनेबल फ्यूल, भूमि क्षरण, भूख और गरीबी के खिलाफ वैश्विक गठबंधन, पेरिस समझौता, मिशन LiFE, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, अपशिष्ट से ऊर्जा, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI), छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य, वैश्विक विकास समझौता (GDC), तीसरा वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS)

मेन्स के लिये:

वैश्विक समस्याओं को सुलझाने और सतत् विकास को बढ़ावा देने में G20 जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, G20 लीडर्स ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में 19वें G20 शिखर सम्मेलन के लिये एकत्रित हुए, जिसमें "एक न्यायपूर्ण विश्व और एक सतत् ग्रह का निर्माण" विषय के अंतर्गत एक सतत् और समावेशी विश्व को आगे बढ़ाने की G20 की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई है।

  • इसके अतिरिक्त, भारत के प्रधानमंत्री ने सतत् विकास और ऊर्जा संक्रमण पर G20 सत्र को संबोधित किया।
  • G20 की मेजबानी वर्ष 2025 में  दक्षिण अफ्रीका तथा इसके बाद वर्ष 2026 में संयुक्त राज्य अमेरिका करेगा।

G20 रियो डी जेनेरियो नेताओं के घोषणा-पत्र के मुख्य परिणाम क्या हैं?

  • अधिक अमीरों पर कर लगाना: घोषणा-पत्र में अधिक अमीरों पर प्रगतिशील और प्रभावी कर लगाने की वकालत की गई है।
    • कर सिद्धांतों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए राजकोषीय संप्रभुता के सम्मान पर बल दिया जाता है।
  • बहुपक्षवाद: घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया-प्रशांत जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के बेहतर प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया गया।
  • सामाजिक समावेशन और डिजिटल विभाजन: नेतागण भुगतान और अवैतनिक देखभाल कार्यों में पुरुषों और महिलाओं दोनों की समान भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध हैं, तथा दोनों लिंगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं।
    • G-20 देशों ने डिजिटल विभाजन को कम करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की, जिसमें वर्ष 2030 तक लैंगिक डिजिटल विभाजन को आधा करना भी शामिल है। 
    • भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका ने समावेशी डिजिटल परिवर्तन के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) पर एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया।
  • जलवायु कार्यवाही: नेताओं ने कम उत्सर्जन वाली ऊर्जा के लिये समावेशी, प्रौद्योगिकी-तटस्थ दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया और वैश्विक जलवायु परिवर्तन गतिशीलता कार्य बल का स्वागत किया।
    • इसने स्वैच्छिक आधार पर वर्ष 2040 तक भूमि क्षरण को 50% तक कम करने की G-20 की महत्वाकांक्षा की पुनः पुष्टि की, जैसा कि G-20 भूमि पहल के तहत प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
  • वैश्विक व्यापार: G-20 देश WTO के नियमों और बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों के अनुरूप भेदभावपूर्ण हरित आर्थिक नीतियों से बचने पर सहमत हुए।
    • वैश्विक स्वास्थ्य: G-20 देशों ने टीकों, चिकित्सा और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों तक न्यायसंगत पहुँच बढ़ाने के लिये स्थानीय और क्षेत्रीय उत्पादन गठबंधन का स्वागत किया।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना

  • परिचय: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) डिजिटल प्रणालियों का एक समूह है जो देशों को सुरक्षित और कुशलतापूर्वक आर्थिक अवसर प्रदान करने और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • कवरेज: DPI पूरी अर्थव्यवस्था को कवर करता है, लोगों, डेटा और धन को उसी तरह जोड़ता है जिस तरह सड़कें और रेलवे लोगों और वस्तुओं को जोड़ते हैं।
  • DPI पारिस्थितिकी तंत्र: लोग, डेटा और धन एक प्रभावी DPI पारिस्थितिकी तंत्र की नींव बनाते हैं :
    • पहला, डिजिटल ID प्रणाली के माध्यम से लोगों का प्रवाह।
    • दूसरा, वास्तविक समय तीव्र भुगतान प्रणाली के माध्यम से धन का प्रवाह।
    • तीसरा सहमति-आधारित डेटा साझाकरण प्रणाली के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी का प्रवाह, ताकि DPI के लाभों को वास्तविक बनाया जा सके और नागरिकों को डेटा को नियंत्रित करने की वास्तविक क्षमता प्रदान की जा सके।

नोट: शक्तिशाली G-20 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने "सुरक्षित, किफायती, गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी स्वास्थ्य उत्पादों और प्रौद्योगिकियों" तक अधिक न्यायसंगत पहुंच को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय और क्षेत्रीय उत्पादन के लिये गठबंधन स्थापित करने का संकल्प लिया है।

G20 रियो घोषणापत्र में भारत की क्षेत्रीय प्रगति पर प्रकाश डाला गया है?

  • समावेशिता और सतत् विकास लक्ष्य: वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच 4 करोड़ से अधिक परिवारों को आवास प्रदान किया हैं, 12 करोड़ घरों में अब स्वच्छ जल उपलब्ध है, 10 करोड़ परिवारों को स्वच्छ खाद्य ईंधन उपलब्ध कराया गया है तथा 11.5 करोड़ से अधिक परिवारों को शौचालय प्रदान किये गए हैं।
  • पेरिस समझौता लक्ष्य: भारत पहला G20 देश है जिसने पेरिस समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धताओं को समय से पूर्व कर लिया गया है। 
    • भारत ने नवंबर 2021 में ही गैर-जीवाश्म ईंधन से 40% स्थापित विद्युत क्षमता का अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है।
    • भारत के वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के नए लक्ष्य के अंतर्गत 200 गीगावाट की क्षमता हासिल कर ली है।
  • हरित परिवर्तन: भारत मिशन लाइफ के साथ वैश्विक हरित परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है, ताकि सतत्् जीवनशैली को बढ़ावा दिया जा सके और वैश्विक ऊर्जा संपर्क बढ़ाने तथा नवीकरणीय ऊर्जा नेटवर्क का विस्तार करने के लिये वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था: भारत ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत की है और  भारत में अपशिष्ट से ऊर्जा अभियान संचालित है जिसका उद्देश्य अपशिष्ट को न्यूनतम करना और संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है।
  • आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन: भारत ने आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन की शुरुआत की है, जो जलवायु चुनौतियों का सामना करने के लिये सुदृढ़ अवसंरचनाओं के निर्माण हेतु पूर्व-निवारक उपायों और आपदा पश्चात् पुनर्प्राप्ति दोनों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • ग्लोबल साउथ के लिये समर्थन: भारत ग्लोबल साउथ  में, विशेष रूप से छोटे विकासशील द्वीपीय देश (SIDS) के लिये ऊर्जा परिवर्तन के लिये सतत् और विश्वसनीय जलवायु वित्त की आवश्यकता का समर्थन करता है।

वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में G20 का क्या महत्व है?

  • वैश्विक आर्थिक प्रभाव: G20 राष्ट्र सामूहिक रूप से वैश्विक आर्थिक उत्पादन के 85% से अधिक, वैश्विक निर्यात के लगभग 75% तथा विश्व की लगभग 80% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • यह G7 जैसे पुराने समूहों की तुलना में विश्व अर्थव्यवस्था का अधिक विविध एवं सटीक प्रतिनिधित्व है।
  • संकट प्रबंधन: G20 ने वर्ष 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाई थी, जिसमें इसके सदस्य देशों ने 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यय उपायों पर सहमति व्यक्त की थी, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के साथ मंदी का प्रबंधन करने में सहायता मिली।
    • हाल ही में कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने में G20 की भूमिका निर्णायक रही है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिनिधित्व: इसमें भारत और ब्राज़ील जैसे प्रभावशाली लोकतांत्रिक राष्ट्रों के साथ-साथ चीन, रूस और सऊदी अरब जैसे निरंकुश राष्ट्र भी शामिल हैं, जिससे वैश्विक मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण मिलता है।
    • अफ्रीकी संघ को शामिल करने से 1.3 अरब से अधिक लोगों और 3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले महाद्वीप के दृष्टिकोण को शामिल किया गया।
  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में G20 देशों की हिस्सेदारी 80% से अधिक है। यह समूह जलवायु परिवर्तन को कम करने के किसी भी वैश्विक प्रयास में अपरिहार्य हैं। 

निष्कर्ष

G20 रियो डी जेनेरियो लीडर्स की घोषणा और भारत के प्रधानमंत्री के संबोधन में सतत् विकास, जलवायु कार्रवाई एवं ऊर्जा परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धताओं पर प्रकाश डाला गया है। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने एवं हरित परिवर्तन को बढ़ावा देने जैसी भारत की सक्रिय पहल सभी देशों के लिये न्यायसंगत, सतत् एवं समावेशी भविष्य को बढ़ावा देने के क्रम में इसके महत्त्व को रेखांकित करती हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक चुनौतियों से निपटने में G20 देशों की भूमिका का आकलन कीजिये। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह के चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)