डेली न्यूज़ (20 Nov, 2023)



अम्ल वर्षा

और पढ़े : अम्ल वर्षा


लोकपाल का क्षेत्राधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का लोकपाल, स्वदेश दर्शन योजना, बौद्ध सर्किट, रामायण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT)

मेन्स के लिये:

लोकपाल को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये उसे पर्याप्त शक्तियाँ सौंपने से संबंधित मुद्दे एवं  चिंताएँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के लोकपाल ने क्षेत्राधिकार की सीमाओं का हवाला देते हुए कहा कि वह उत्तर प्रदेश में आत्महत्या से मरने वाले एक सरकारी अधिकारी की पत्नी की याचिका पर विचार नहीं कर सकता।

  • स्वदेश दर्शन योजना के तहत केंद्र सरकार की परियोजनाओं के समापन प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये अधिकारी पर कथित तौर पर वरिष्ठों द्वारा दबाव डाला गया था।

भारत के लोकपाल द्वारा क्या रुख अपनाया गया?

  • उत्तर प्रदेश मामले में लोकपाल की क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ:
    • लोकपाल ने स्पष्ट किया कि उसके पास प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति और उत्तर प्रदेश के महानिदेशक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं है।
    • कथित आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा यह मुद्दा आपराधिक कानून और प्रक्रिया के दायरे में आता है, जिसके कारण लोकपाल को यह घोषित करना पड़ा कि वह याचिका पर विचार नहीं कर सकता।
  • शिकायत अग्रेषित करना:
    • अपने अधिकार क्षेत्र की बाधाओं के बावजूद, लोकपाल ने आगे की जाँच के लिये शिकायत को केंद्रीय पर्यटन सचिव को भेजकर एक कदम आगे बढ़ाया।

स्वदेश दर्शन योजना:

  • इसे वर्ष 2014-15 में देश में थीम आधारित पर्यटन सर्किट के एकीकृत विकास के लिये शुरू किया गया था। योजना के तहत पर्यटन मंत्रालय देश में पर्यटन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • योजना का दूसरा चरण पहले 2023 में शुरू किया गया था। योजना के तहत पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण सर्किट में शामिल हैं:

लोकपाल क्या हैं?

  • परिचय:
    • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संघ के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त की स्थापना का प्रावधान है।
    • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक स्थिति के वैधानिक निकाय हैं।
  • कार्य:
    • वे एक "लोकपाल" का कार्य करते हैं और कुछ सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों एवं संबंधित मामलों की जाँच करते हैं।

लोकपाल के अधिकार क्षेत्र और उसकी शक्तियों के अंतर्गत क्या आता है?

  • प्रधानमंत्री (PM) और मंत्रियों से संबंधित:
    • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री, अन्य मंत्री, संसद सदस्य (सांसद), समूह A, B, C और D अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
    • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री शामिल हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले इसके अपवाद हैं।
      • संसद में कही गई किसी बात या वहाँ दिये गए वोट के मामले में लोकपाल के पास मंत्रियों और सांसदों के संबंध में कोई अधिकार नहीं है।
  • सिविल सेवकों और नौकरशाहों से संबंधित: 
    • इसके अधिकार क्षेत्र में वह व्यक्ति भी शामिल है जो केंद्रीय अधिनियम द्वारा स्थापित किसी भी सोसायटी या केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित/नियंत्रित किसी अन्य निकाय का प्रभारी (निदेशक/प्रबंधक/सचिव) है या रहा है और उकसाने, रिश्वत देने या लेने के कृत्य में शामिल है।
    • लोकपाल अधिनियम के अनुसार सभी सार्वजनिक अधिकारियों को अपनी और अपने आश्रितों की संपत्ति एवं देनदारियों की जानकारी देना आवश्यक है।
  • केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) से संबंधित: 
    • इसके पास CBI पर अधीक्षण और निर्देश देने की शक्तियाँ हैं।
      • यदि लोकपाल ने कोई मामला CBI को भेजा है, तो ऐसे मामले में जाँच अधिकारी को लोकपाल की स्वीकृति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

लोकपाल की कार्यप्रणाली के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमी: मई 2022 से लोकपाल के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, जिससे इसके प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • भ्रष्ट अधिकारियों से निपटने में निष्क्रियता: अप्रैल 2023 में संसद में पेश की गई एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, लोकपाल ने "आज तक भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है।"
    • लोकपाल कार्यालय द्वारा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के पैनल को उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 के बाद से भ्रष्टाचार विरोधी निकाय को कुल 8,703 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 5,981 शिकायतों का निपटारा किया गया।
    • बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होने के बावजूद भ्रष्टाचार के लिये किसी पर मुकदमा नहीं चलाया गया है जो भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की लोकपाल की क्षमता के बारे में चिंताओं को उजागर करता है।
  • पारदर्शिता की कमी: कुछ विशेषज्ञों ने लोकपाल की पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व की कमी के संबंध में भी आलोचना की है, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे लोकपाल की विश्वसनीयता एवं प्रभावशीलता कम होती है।

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये लोकपाल की संस्था को कार्यात्मक स्वायत्तता एवं जनशक्ति की उपलब्धता दोनों के संदर्भ में सशक्त किया जाना चाहिये।
  • अधिक पारदर्शिता, सूचना के अधिकार तक अधिक पहुँच तथा नागरिकों व नागरिक समूहों के सशक्तिकरण सहित एक अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता है जो स्वयं को सार्वजनिक जाँच के अधीन करने के लिये तत्पर हो।
  • प्रशासनिक सुदृढ़ता के लिये लोकपाल की नियुक्ति ही अपने आप में पर्याप्त नहीं है। जाँच एजेंसियों के सशक्तीकरण मात्र से सरकार का आकार तो बढ़ेगा किंतु ज़रूरी नहीं कि प्रशासन में सुधार हो।
    • सरकार द्वारा अपनाया गया नारा "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, लोकपाल तथा लोकायुक्त को ऐसे लोगों से संबंधित वित्तीय, प्रशासनिक एवं कानूनी जाँच एवं उसकी रिपोर्ट तैयार करके मुक्त होने की आवश्यकता है, जिनके विरुद्ध जाँच करने तथा मुकदमा चलाने के लिये उन्हें कहा गया है।
  • लोकपाल तथा लोकायुक्त की नियुक्तियाँ पारदर्शी तरीके से की जानी चाहिये जिससे अनुचित अवधारणा वाले लोगों के प्रवेश की संभानाएँ कम हो सकें।
  • किसी एकल संस्थान अथवा प्राधिकरण में अत्यधिक शक्ति के संकेन्द्रण से बचने के लिये उचित उत्तरदायी तंत्र के साथ विकेन्द्रीकृत संस्थानों की बहुलता की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. 'राष्ट्रीय लोकपाल कितना भी प्रबल क्यों न हो, सार्वजनिक मामलों में अनैतिकता की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।' विवेचना कीजिये। (2013)


ग्रीनहाउस गैस सांद्रता रिकॉर्ड उच्च स्तर पर: संयुक्त राष्ट्र

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, ग्रीनहाउस गैस, पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन

मेन्स के लिये:

बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक, बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के प्रमुख प्रभाव, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिये प्रमुख पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में हुई अभूतपूर्व वृद्धि को उजागर करते हुए चेतावनी जारी की, जिसने वर्ष 2022 में नया रिकॉर्ड स्थापित किया।

  • संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के 19वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में संबंधित प्रभावों की रूपरेखा प्रदान की गई है, जिसमें बढ़ते तापमान, मौसम की घटनाओं में तीव्रता तथा परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि शामिल है।

बुलेटिन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि: WMO ने अपने 19वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में कहा कि तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर ने विगत रिकॉर्ड को पार कर लिया है, जो वायुमंडल में इनकी उपस्थिति में वृद्धि को दर्शाता है।
    • वर्ष 2022 में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता 418 भाग प्रति मिलियन, मीथेन 1,923 भाग प्रति बिलियन तथा नाइट्रस ऑक्साइड 336 भाग प्रति बिलियन तक पहुँच गई, जो पूर्व-औद्योगिक काल के स्तरों से क्रमशः 150%, 264% एवं 124% अधिक है।
      • जलवायु पर वार्मिंग प्रभाव के मामले में तीन प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का हिस्सा लगभग 64% है।
      • जलवायु परिवर्तन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता मीथेन है, जो लगभग 16% वार्मिंग का कारण है।
        • वार्मिंग प्रभाव में नाइट्रस ऑक्साइड का योगदान लगभग 7% है।
  • पेरिस समझौते के लक्ष्यों के लिये चुनौतियाँ: वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तथा अधिमानतः 1.5C तक सीमित करना था। दुर्भाग्य से वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान पहले ही 1.5C के स्तर को पार कर पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.15C ऊपर पहुँच गया।
    • वर्तमान प्रक्षेपपथ एक गंभीर समस्या को इंगित करता है, जिसके अनुसार सदी के अंत तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पार करते हुए तापमान में काफी वृद्धि होने का अनुमान है, इसके कारण मौसम की घटनाओं में तीव्रता, बर्फ पिघलने एवं समुद्र के अम्लीकरण जैसे विनाशकारी परिणाम होंगे।
  • अनुमानित जलवायु व्यवधान: ऊष्मा को प्रग्रहित करने वाली गैसों में निरंतर वृद्धि तीव्र जलवायु व्यवधानों से ग्रस्त भविष्य की ओर इंगित करती है।
    • बुलेटिन इन बढ़ते जोखिमों को कम करने के लिये जीवाश्म ईंधन की खपत को तेज़ी से कम करने की अनिवार्य आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
    • जलवायु प्रणाली गंभीर "टिपिंग पॉइंट्स" के करीब पहुँच सकती है, जहाँ कुछ बदलावों से अपरिवर्तनीय जलप्रपात (कैस्केड्स) की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे- अमेज़न का तेज़ी से खत्म होना, उत्तरी अटलांटिक परिसंचरण में बाधा तथा प्रमुख बर्फ की चादरों का अस्थिर होना।

ग्रीनहाउस गैस क्या हैं?

  • ग्रीनहाउस गैस (GHGs) पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली तथा मानव-जनित गैसों के समूह हैं।
    • इन गैसों में ऊष्मा को अवशोषित करने और उत्सर्जित करने, वातावरण के भीतर तापीय ऊर्जा को संगठित करने की अनूठी शक्ति होती है। 
  • वे एक थर्मल ब्लैंकेट (कंबल) के रूप में कार्य करते हैं, जो वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश को प्रवेश करने की अनुमति देते हैं और अवशोषित गर्मी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को वापस अंतरिक्ष में जाने से रोकते हैं।
    • यह घटना, जिसे ग्रीनहाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है, पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है और इसे जीवन के लिये रहने योग्य बनाती है। 
  • हालाँकि मानवीय गतिविधियाँ, जैसे- जीवाश्म ईंधन जलाना, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं ने इन गैसों की सांद्रता में काफी वृद्धि की है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ गया है तथा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • कुछ प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में शामिल हैं- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और जल वाष्प।

बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं?

  • जीवाश्म ईंधन दहन:  ऊर्जा के लिये जीवाश्म ईंधन को जलाना, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्त्ता है
    • कोयले पर निर्भर औद्योगिक गतिविधियाँ, परिवहन और विद्युत उत्पादन जिसके कारण  वायुमंडल में बहुत अधिक CO2 उत्सर्जन होता है।
  • वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन: वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, CO2 को अवशोषित करते हैं। मुख्य रूप से कृषि या शहरीकरण के लिये वनों की कटाई एवं भूमि-उपयोग परिवर्तन की वजह से कार्बन सिंक में कमी आती है, ये कारक संग्रहीत कार्बन को मुक्त करने के साथ ही CO2 को अवशोषित करने की पृथ्वी की क्षमता में कमी लाते हैं।
    • वनों की कटाई ने अमेज़न वर्षावन के कुछ हिस्सों, जो पहले कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते थे, को कार्बन के एक महत्त्वपूर्ण उत्सर्जक में बदल दिया है।
  • कृषि पद्धतियाँ: कृषि मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। पशुधन खेती से मीथेन उत्पन्न होता है, जबकि नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
  • अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन: अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, विशेष रूप से लैंडफिल में अपशिष्ट का निपटान, मीथेन उत्पादन की ओर ले जाता है क्योंकि कार्बनिक अपशिष्ट अवायवीय स्थितियों में विघटित हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक प्रक्रियाएँ: ज्वालामुखी विस्फोट, वनाग्नि और प्राकृतिक क्षय प्रक्रियाएँ भी GHG जारी करती हैं। हालाँकि ये घटनाएँ ऐतिहासिक रूप से घटित होती हैं, लेकिन मानवीय गतिविधियों ने उनकी आवृत्ति और प्रभाव को बढ़ा दिया है।
  • शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि: तेज़ी से शहरी विस्तार और जनसंख्या वृद्धि के कारण ऊर्जा की मांग, वाहनों और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता बढ़ जाती है, जिससे उच्च GHG उत्सर्जन होता है।
  • पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना और मीथेन रिलीज़: बढ़ते तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन मुक्त होती है, जो मृदा के भीतर संगृहीत एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
    • यह एक फीडबैक लूप/ प्रतिक्रिया प्रदान करता है, जहाँ अधिक मीथेन जारी होने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है तथा पर्माफ्रॉस्ट पिघलने का क्रम और भी तेज़ हो जाता है।    

बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के प्रमुख प्रभाव क्या हो सकते हैं?

  • प्रेरित जलवायु परिवर्तन: बढ़ी हुई ग्रीनहाउस गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्र करती हैं, जिससे वातावरण में अधिक गर्मी एकत्रित हो जाती है।
    • इसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे मौसम में  बदलाव, तापमान में वृद्धि और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन देखा जाता है, जो सूखा, लू, बाढ़ एवं अधिक गंभीर तूफान उत्पन्न कर सकती है।
  • पिघलती बर्फ और बढ़ता समुद्र स्तर: गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ की चोटियाँ पिघल जाती हैं, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है।
    • यह घटना तटीय समुदायों, जैवविविधता और बुनियादी ढाँचे के लिये खतरा उत्पन्न करती है, जिससे तटीय कटाव एवं बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  • खाद्य और जल सुरक्षा: तापमान और वर्षा पैटर्न में परिवर्तन कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है, जिससे फसल बर्बाद हो सकती है और खाद्य सुरक्षा में कमी देखी जा सकती है।
    • जल की कमी या अत्यधिक वर्षा पेयजल, कृषि और उद्योग के लिये जल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।
  • महासागरीय अम्लीकरण: महासागरों द्वारा अवशोषित अतिरिक्त CO2 अम्लीकरण का कारण बनती है, जिससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।
    • अम्लीय जल कुछ समुद्री जीवों की सीपियाँ और कंकाल बनाने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है, जिसका प्रभाव प्लवक, मूँगा चट्टानों तथा शेलफिश पर पड़ता है, जो समुद्री खाद्य शृंखलाओं का आधार बनाते हैं।
  • भू-राजनीतिक तनाव: भूमि, जल एवं संसाधनों पर भू-राजनीतिक तनाव और संघर्ष के परिणामस्वरूप जलवायु-प्रेरित विस्थापन, संसाधनों की कमी तथा रहने योग्य स्थानों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा देखी जा सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जो पहले से ही सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता का अनुभव कर रहे हैं।

आगे की राह

  • शमन रणनीतियाँ: ऊर्जा, परिवहन, उद्योग और कृषि जैसे क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित नीतियों तथा प्रौद्योगिकियों को लागू करना।
    • इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन, ऊर्जा दक्षता में सुधार, स्थायी भूमि उपयोग को बढ़ावा देना और जीवाश्म ईंधन निर्भरता को कम करना शामिल है।
  • अनुकूलन के उपाय: जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और अनुमानित प्रभावों से निपटने के लिये अनुकूलन रणनीतियों का विकास तथा कार्यान्वयन करना।
    • इसमें विषम मौसम की घटनाओं और बदलते जलवायु पैटर्न का सामना करने के लिये बुनियादी ढाँचे, कृषि, जल प्रबंधन तथा शहरी नियोजन में लचीलापन बढ़ाना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और साझेदारियों के माध्यम से जलवायु कार्रवाई के प्रति वैश्विक सहयोग तथा प्रतिबद्धता को बढ़ावा देना।
    • वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए पेरिस समझौते जैसे समझौतों के तहत देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने और उन्हें मज़बूत करने के लिये प्रोत्साहित करना

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022) 

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)


10वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की मीटिंग-प्लस

प्रिलिम्स के लिये:

10वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की मीटिंग-प्लस, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN), सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) 1982, समुद्री सुरक्षा, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में महिलाएँ

मेन्स के लिये:

10वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की मीटिंग-प्लस, भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह एवं समझौते।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने जकार्ता, इंडोनेशिया में आसियान रक्षा मंत्रियों की 10वीं मीटिंग- प्लस (ADMM-Plus) में भाग लिया।

ADMM-प्लस बैठक में भारतीय संबोधन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • आसियान केंद्रीयता:
    • भारत ने आसियान की केंद्रीय भूमिका के महत्त्व की पुष्टि की और क्षेत्र में बातचीत तथा आम सहमति को बढ़ावा देने में उसके प्रयासों की सराहना की।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के प्रति प्रतिबद्धता:
  • क्षेत्रीय सुरक्षा पहल:
    • भारत ने परामर्शी और विकास-उन्मुख सुरक्षा पहल का समर्थन किया, जो क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने के लिये ADMM-प्लस के भीतर व्यावहारिक, दूरदर्शी सहयोग के लक्ष्य के साथ हितधारकों के बीच सहमति को प्रतिबिंबित करता है।
  • संवाद और कूटनीति:
    • भारत ने स्थायी शांति और वैश्विक स्थिरता के लिये बातचीत एवं कूटनीति के महत्त्व पर ज़ोर दिया, "हम बनाम वे" की मानसिकता को त्यागने पर ज़ोर दिया और कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है।
  • सहयोगात्मक पहल:
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में महिलाओं के लिये पहल, समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण नियंत्रण के लिये पहल, आसियान-भारत समुद्री अभ्यास तथा मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) कार्यों पर विशेषज्ञ कार्य समूह (EWG) जैसी संयुक्त पहल में आसियान सदस्य देशों की भागीदारी की सराहना की।
    • भारत ने आतंकवाद से निपटने पर EWG की सह-अध्यक्षता करने का प्रस्ताव रखा, जो आसियान क्षेत्र में आतंकवाद के गंभीर खतरे के कारण ADMM-प्लस द्वारा समर्थित चिंता का विषय है।
    • वर्तमान 2021-2024 चक्र में भारत इंडोनेशिया के साथ HADR पर EWG की सह-अध्यक्षता कर रहा है।

ADMM-प्लस क्या है?

  • परिचय:
    • ADMM-प्लस आसियान (ASEAN) (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड तथा वियतनाम) एवं इसके आठ संवाद साझेदार देशों ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस व संयुक्त राज्य अमेरिका (सामूहिक रूप से “प्लस देश/Plus Countries” के रूप में संदर्भित) का एक मंच है। जिसका उद्देश्य संबद्ध क्षेत्र में शांति, स्थिरता तथा विकास के लिये सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को सशक्त करना है।
      • ADMM आसियान में सर्वोच्च रक्षा सलाहकार व सहकारी तंत्र के रूप में कार्य करता है।
  • स्थापना:
    • वर्ष 2010 में हनोई, वियतनाम में प्रथम ADMM-प्लस का आयोजन हुआ।
    • वर्ष 2017 के बाद से ADMM-प्लस की वार्षिक बैठक होती है, ताकि तेज़ी से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रीय सुरक्षा माहौल के बीच आसियान तथा प्लस देशों के बीच बातचीत एवं सहयोग बढ़ाया जा सके।
  • उद्देश्य:
    • आसियान सदस्य देशों की विभिन्न क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए क्षमता निर्माण में साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में आसियान सदस्य देशों को सहयोग करना।
    • अधिक संवाद तथा पारदर्शिता के माध्यम से रक्षा प्रतिष्ठानों के बीच परस्पर विश्वास को प्रोत्साहन देना
    • संबद्ध क्षेत्र के समक्ष मौजूद अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को बढ़ाना;
    • वियनतियाने एक्शन प्रोग्राम के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाना, जो आसियान को एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समृद्ध आसियान बनाने एवं हमारे मित्र देशों और संवाद भागीदारों के साथ अधिक दूरदर्शी बाहरी संबंध रणनीतियों को अपनाने का आह्वान करता है।
  • उपलब्धियाँ:
    • ADMM-प्लस, भागीदार देशों के रक्षा प्रतिष्ठानों के बीच व्यावहारिक सहयोग के लिये एक प्रभावी मंच बन गया है।
    • ADMM-प्लस वर्तमान में व्यावहारिक सहयोग के सात क्षेत्रों अर्थात् समुद्री सुरक्षा (MS), आतंकवाद-रोधी (CT), मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन (HADR), शांतिरक्षा अभियान (PKO), सैन्य चिकित्सा (MM), मानवीय खदान कार्रवाई (Humanitarian Mine Action- HMA) और साइबर सुरक्षा (CS) पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इन क्षेत्रों में सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये विशेषज्ञों के कार्य समूह (EWG) की स्थापना की गई है।
      EWG की सह-अध्यक्षता एक आसियान सदस्य देश और एक प्लस देश द्वारा की जाती है, जो तीन वर्ष के चक्र में संचालित होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2. कनाडा
  3. चीन
  4. भारत
  5. जापान
  6. यूएसए

उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं?

(A) केवल 1, 2, 4 और 5
(B) केवल 3, 4, 5 और 6
(C) केवल 1, 3, 4 और 5
(D) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: c


डेटा स्वामित्व के लिये सरकार का प्रयास

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डिजिटल इंडिया बिल, अज्ञात डेटा, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

डेटा गवर्नेंस और गोपनीयता का विनियमन, डेटा गोपनीयता एवं डेटा सुरक्षा से संबंधित मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार कथित तौर पर फेसबुक, गूगल और अमेज़न जैसे प्रमुख तकनीकी दिग्गजों को सरकार समर्थित डेटाबेस के लिये अज्ञात व्यक्तिगत डेटा साझा करने का निर्देश देने पर विचार कर रही है।

  • आगामी डिजिटल इंडिया बिल, 2023 में उल्लिखित यह संभावित विकास डेटा स्वामित्व पर केंद्रित है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मॉडल के परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।

अज्ञात डेटा क्या है?

  • यह एक ऐसा डेटा सेट है जिसमें व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी नहीं होती है। इसमें किसी विशेष जनसांख्यिकी का समग्र स्वास्थ्य डेटा, किसी क्षेत्र का मौसम और जलवायु डेटा, ट्रैफिक डेटा, अन्य जैसी समग्र जानकारी शामिल हो सकती है।
    • यह व्यक्तिगत डेटा से अलग है, यह वह डेटा है जो किसी पहचाने गए या पहचाने जाने योग्य व्यक्ति से संबंधित है, जैसे- ईमेल, बायोमेट्रिक्स इत्यादि।
  • अज्ञात डेटा का उपयोग व्यक्तियों की गोपनीयता से समझौता किये बिना, विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है, जैसे- सांख्यिकीय विश्लेषण, बाज़ार अनुसंधान, उत्पाद विकास आदि 

सरकार बढ़े तकनीकी डेटा तक पहुँच पर विचार क्यों कर रही है?

  • यह कदम आगामी डिजिटल इंडिया विधेयक का हिस्सा है, जिसमें बड़ी तकनीकी कंपनियों को उनके पास मौजूद सभी गैर-व्यक्तिगत डेटा को सरकार समर्थित डेटाबेस में जमा करने के लिये बाध्य करने का प्रावधान है, जिसे भारत डेटासेट प्लेटफॉर्म के रूप में जाना जाता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा गठित कार्य समूह के अनुसार, भारत डेटासेट प्लेटफॉर्म को सरकार, निजी कंपनियों, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) क्षेत्र, शिक्षाविदों तथा अन्य सहित विभिन्न हितधारकों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय डेटा साझा और विनिमय मंच के रूप में परिकल्पित किया गया है।
    • भारत डेटासेट प्लेटफॉर्म द्वारा रखे गए गैर-व्यक्तिगत डेटा का मुद्रीकरण किया जा सकता है, जो आर्थिक लाभ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • इससे पहले मई 2022 में सरकार ने राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क नीति मसौदा जारी किया था, जिसके तहत उसने केवल निजी कंपनियों को स्टार्टअप और भारतीय शोधकर्त्ताओं के साथ गैर-व्यक्तिगत डेटा साझा करने के लिये "प्रोत्साहित" किया था।
  • सरकार का तर्क है कि बड़ी तकनीकी कंपनियों को भारतीयों के गैर-व्यक्तिगत डेटा के आधार पर एल्गोरिदम बनाने से फायदा हुआ है और उन्हें इस पर विशेष स्वामित्व का दावा नहीं करना चाहिये।

डिजिटल इंडिया बिल की मुख्य बातें क्या हैं?

  • डिजिटल इंडिया बिल, 2023 (यदि पारित हो जाता है, तो यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के उत्तराधिकारी के रूप में कार्य करेगा) व्यापक कानूनी ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें विभिन्न विधायी उपाय शामिल हैं।
  • यह एक व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है जिसमें डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव, 2022 और गैर-व्यक्तिगत डेटा के विनियमन को संबोधित करने वाली नीति जैसे उपाय शामिल हैं।
  • इस विधेयक का उद्देश्य डेटा-संचालित नवाचार और विकास के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करके भारत में AI पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना है।
  • इस विधेयक को भारत के डिजिटल परिदृश्य की व्यापक निगरानी सुनिश्चित करने के साथ ही साइबर अपराध, डेटा सुरक्षा, डीपफेक, इंटरनेट के विविध प्लेटफॉर्म्स के बीच प्रतिस्पर्द्धा, ऑनलाइन सुरक्षा तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के नकारात्मक प्रभाव जैसी समकालीन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: C


प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटीकृत स्वतंत्रता।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के तहत प्रावधान।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)


सोमालिया में बाढ़

प्रिलिम्स के लिये:

सोमालिया में बाढ़, मानवीय मामलों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA), बाढ़, अल नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

सोमालिया में बाढ़, वायुमंडलीय परिसंचरण और मौसम प्रणाली

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानवीय मामलों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA) ने ऐतिहासिक सूखे के बाद सोमालिया और पूर्वी अफ्रीका के पड़ोसी देशों में हज़ारों व्यक्तियों को बेघर करने वाली बाढ़ को सदी में एक बार होने वाली घटना के रूप में वर्णित किया है।

  • सोमालिया में बाढ़ का मुख्य कारण अत्यधिक वर्षा को बताया गया है, जो अल नीनो तथा हिंद महासागर द्विध्रुव जैसी जलवायु घटनाओं के कारण और बढ़ गई है।
  • इसका प्रभाव केवल सोमालिया तक ही सीमित नहीं है; इससे पड़ोसी देश केन्या भी प्रभावित हुआ है, मरने वालों की संख्या 15 तक पहुँच गई है और मोम्बासा, मंडेरा तथा वजीर जैसे क्षेत्रों को बाढ़ के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

मानवीय मामलों के समन्वय के लिये कार्यालय (OCHA) क्या है?

  • OCHA संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का हिस्सा है, जिस पर आपात स्थिति में सुसंगत प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये मानवीय अभिकर्त्ताओं को एक साथ लाने की ज़िम्मेदारी है।
  • OCHA यह भी सुनिश्चित करता है कि एक रूपरेखा हो जिसके अंतर्गत प्रत्येक अभिकर्त्ता समग्र प्रतिक्रिया प्रयास में योगदान दे सके।

अल नीनो क्या है?

हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) क्या है?

  • IOD और भारतीय नीनो:
    • IOD, जिसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है, अल नीनो के समान ही एक घटना है जो पूर्व में इंडोनेशियाई और मलेशियाई तटरेखा तथा पश्चिम में सोमालिया के पास अफ्रीकी तटरेखा के बीच हिंद महासागर के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में घटित होती है।
      • अल नीनो, अल नीनो दक्षिणी दोलन ((ENSO) घटना का सामान्य से अधिक गर्म चरण है, जिसके दौरान भारत सहित विश्व  के कई क्षेत्रों में सामान्यतः गर्म तापमान और सामान्य से कम वर्षा होती है।
    • भूमध्य रेखा के साथ समुद्र का एक किनारा दूसरे की तुलना में गर्म हो जाता है।
    • IOD को सकारात्मक तब कहा जाता है जब हिंद महासागर का पश्चिमी भाग, सोमालिया तट के पास, पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में अधिक गर्म हो जाता है।
    • जब पश्चिमी हिंद महासागर ठंडा होता है तो यह नकारात्मक होता है।
  • तंत्र:
    • तटस्थ चरण:
      • हिंद महासागर बेसिन में वायु का संचार पश्चिम से पूर्व की ओर होता है, यानी अफ्रीकी तट से इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर, सतह के पास और ऊपरी स्तर पर विपरीत दिशा में। इसका अर्थ  है कि हिंद महासागर में सतही जल ला प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर होता है।
      • एक सामान्य वर्ष में इंडोनेशिया के पास पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म जल हिंद महासागर में मिल जाता है और हिंद महासागर के उस हिस्से को थोड़ा गर्म कर देता है। इससे वायु ऊपर की ओर उठती है तथा प्रचलित वायु परिसंचरण में मदद मिलती है।
    • नकारात्मक IOD:
      • उन वर्षों में जब वायु परिसंचरण मज़बूत हो जाता है, अफ्रीकी तट से अधिक गर्म सतही जल  इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर धकेल दिया जाता है, जिससे वह क्षेत्र सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इससे गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है और चक्र खुद को मज़बूत करता है।
      • यह नकारात्मक IOD की स्थिति है।

  • सकारात्मक IOD: इस स्थिति में वायु परिसंचरण सामान्य से थोड़ा कमज़ोज़ोर हो जाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में वायु परिसंचरण की दिशा भी उलट जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अफ्रीकी तट गर्म हो जाता है, जबकि इंडोनेशियाई तट ठंडा हो जाता है।
    • सकारात्मक IOD को अक्सर अल नीनो के समय विकसित होते देखा जाता है, जबकि नकारात्मक IOD कभी-कभी ला नीना से संबंधित होता है।
    • अल नीनो के दौरान इंडोनेशिया का प्रशांत क्षेत्र सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है जिसके कारण हिंद महासागर का क्षेत्र भी ठंडा हो जाता है। इससे सकारात्मक IOD को विकसित होने में सहायता मिलती है।

  • IOD का प्रभाव:
    • हिंद महासागर में IOD एक महासागर-वायुमंडलीय संपर्क प्रदर्शित करता है जो प्रशांत महासागर में अल नीनो घटनाओं के दौरान देखे गए उतार-चढ़ाव से काफी मिलता-जुलता है। हालाँकि अल नीनो की तुलना में IOD कम शक्तिशाली होता है, जिसके परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है।
    • एक सकारात्मक IOD पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ्रीकी तट पर वर्षा को प्रोत्साहित करता है, जबकि इंडोनेशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में वर्षा की मात्रा को कम करता है। जब IOD नकारात्मक होता है, तो विपरीत प्रभाव होते हैं।

सोमालिया के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • स्थान: 
    • सोमालिया अफ्रीका के हॉर्न में स्थित है, जिसकी सीमा उत्तर में अदन की खाड़ी, पूर्व में हिंद महासागर, पश्चिम में केन्या और इथियोपिया तथा उत्तर-पश्चिम में जिबूती से लगती है।
  • राजधानी : 
    • मोगादिशू सोमालिया की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है।
  • क्षेत्र: 
    • देश में शुष्क मैदानों, पठारों, उच्चभूमियों और पर्वत शृंखलाओं सहित विविध परिदृश्य हैं। 
    • सोमालिया के उत्तरी भाग में गॉलिस पर्वत शामिल हैं, जबकि दक्षिणी क्षेत्र में सवाना और घास के मैदान हैं।
  • जलवायु: 
    • सोमालिया गर्म तापमान तथा सीमित वर्षा के साथ मुख्य रूप से शुष्क से अर्द्ध-शुष्क जलवायु का अनुभव करता है। हिंद महासागर के प्रभाव के कारण इसके तटीय क्षेत्रों की जलवायु अधिक मध्यम है।
  • द्वीप:
    • सोमालिया के तट पर कई द्वीप स्थित हैं, जिनमें बाजुनी एवं सोकोट्रा द्वीप समूह शामिल हैं, जिसमें सोकोत्रा, अब्द अल कुरी व साम्हा जैसे द्वीप शामिल हैं। हालाँकि सोकोट्रा द्वीपसमूह का प्रशासन यमन द्वारा किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ के तापमान के अंतर से विशेषित होती है। 
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

मेन्स:

प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती हैं। क्या आप सहमत हैं? (2014)


केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव का प्रभाव, सहकारी संघवाद, संविधान की अनुसूची VII, आर्थिक सुधार, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), पीएम गति शक्ति

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव का प्रभाव, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में केंद्र और राज्यों के बीच विवादों की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है, जिससे सहकारी संघवाद के स्तंभ कमज़ोर हो रहे हैं तथा इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

नोट: सहकारी संघवाद में केंद्र और राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में "सहयोग" करते हैं।

  • यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को सक्षम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
  •  संघ और राज्य संविधान की अनुसूची VII में निर्दिष्ट मामलों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिये संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।

केंद्र-राज्य संबंधों के मुद्दे क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1991 से जारी आर्थिक सुधारों के कारण निवेश पर कई नियंत्रणों में ढील दी गई है, जिससे राज्यों को कुछ छूट मिली है, लेकिन सार्वजनिक व्यय नीतियों के संबंध में पूर्ण स्वायत्तता नहीं है क्योंकि राज्य सरकारें अपनी राजस्व प्राप्तियों के लिये केंद्र पर निर्भर हैं।
    • हाल ही में कई राज्यों ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों के बीच आदान-प्रदान के समीकरण ने दोनों के रुख को और अधिक सख्त कर दिया है, जिससे बातचीत के लिये बहुत कम अवसर बचा है।
    • तेज़ी से बढ़ते केंद्र-राज्य संबंधों ने सहकारी संघवाद को नुकसान पहुँचाया है।
  • समसामयिक विवादों की जटिलताएँ:
    • विवाद के क्षेत्रों में सामाजिक क्षेत्र की नीतियों का एकरूपीकरण, नियामक संस्थानों की कार्यप्रणाली और केंद्रीय एजेंसियों की शक्तियाँ शामिल हैं।
    • आदर्श रूप से इन क्षेत्रों में अधिकांश नीतियाँ राज्यों के विवेक पर होनी चाहिये, जिसमें एक शीर्ष केंद्रीय निकाय संसाधन आवंटन की प्रक्रिया की देख-रेख करता है।
    • हालाँकि शीर्ष निकायों ने अक्सर अपना प्रभाव बढ़ाने और राज्यों को उन दिशाओं में धकेलने का प्रयास किया है जो केंद्र के अधीन हैं।

भारत में केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • विधायी संबंध:
    • संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
      • भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के आलोक में यह क्षेत्र और कानून दोनों ही आधार पर केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित करता है।
    • विधायी विषयों का विभाजन (अनुच्छेद 246): भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों: सूची- I (संघ), सूची- II (राज्य) और सूची- III (समवर्ती) के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न विषयों के विभाजन का प्रावधान किया गया है।
    • राज्य के क्षेत्राधिकार में संसदीय विधान (अनुच्छेद 249): असामान्य परिस्थिति में शक्तियों के इस विभाजन को संशोधित या निलंबित कर दिया जाता है। 
  • प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263):
    • संविधान के अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
  • वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 256-291):
    • संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
      • चूँकि भारत एक संघीय देश है, इसलिये जब कराधान की बात आती है तो यह शक्तियों के विभाजन का पालन करता है और राज्यों को धन आवंटित करना केंद्र की ज़िम्मेदारी है।
    • अनुसूची VII केंद्र और राज्यों की कर लगाने की क्षमता का वर्णन करती है। 
      • वस्तु एवं सेवा कर, एक दोहरी कर संरचन, वित्तीय केंद्र-राज्य संबंध का एक हालिया उदाहरण है।    

हाल के समय में राजकोषीय संघवाद से कैसे समझौता किया गया है?

  • केंद्र का प्रभुत्व और निवेश परिवर्तन:
    • केंद्र की गतिविधियों का विस्तारित दायरा ऐसे परिदृश्य को जन्म दे सकता है जहाँ यह राज्यों के निवेश क्षेत्र का अतिक्रमण करेगा।
      • उदाहरणतः केंद्र ने PM गति शक्ति लॉन्च की, जहाँ सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्बाध कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप एक राज्य मास्टर प्लान तैयार करना एवं संचालित करना था।
    • हालाँकि राष्ट्रीय मास्टर प्लान की योजना तथा कार्यान्वयन के केंद्रीकरण से अपने मास्टर प्लान को तैयार करने में राज्यों का लचीलापन कम हो जाता है, जिससे राज्यों द्वारा कम निवेश किया जाता है।
      • परिणामस्वरूप राज्यों में सड़कों तथा पुलों पर पूंजीगत व्यय में गिरावट देखी गई, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का मात्र 0.58% रह गया।
  • विचित्र राजकोषीय प्रतिस्पर्द्धा:.
    • संघीय व्यवस्था में आमतौर पर क्षेत्रों/राज्यों के बीच वित्तीय प्रतिस्पर्द्धा देखी जाती है किंतु भारत ने राज्यों को न केवल आपस में बल्कि केंद्र के साथ भी इस प्रतिस्पर्द्धा में उलझते देखा है।
    • यह परिदृश्य केंद्र की संवर्द्धित राजकोषीय गुंज़ाइश के कारण उत्पन्न हुआ है, जिससे उसे अधिक खर्च करने की शक्ति मिलती है, जबकि राज्यों को गैर-कर राजस्व जुटाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • इसके अतिरिक्त व्यय तीन सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में  अधिक केंद्रित हो गया है, जो वर्ष 2021-22 तथा 2023-24 के बीच 16 राज्यों के व्यय का लगभग आधा है।
    • इस असंतुलन के कारण राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता कम हो जाती है तथा कल्याण प्रावधान की गतिशीलता में कमी देखी जाती है।
  • समानांतर नीतियों के कारण अक्षमताएँ:
    • केंद्र और राज्यों के बीच संघीय मतभेदों के परिणामस्वरूप 'समानांतर नीतियों' का उदय हुआ है।
      • उदाहरण के लिये राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) ने एक परिभाषित लाभ योजना से परिभाषित योगदान योजना में बदलाव की शुरुआत की।
      • हालाँकि अधिकांश राज्यों ने शुरू में NPS को अपनाया, जबकि कुछ राज्य कथित वित्तीय प्रभावों के कारण पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौट रहे हैं।
    • संघीय प्रणाली के भीतर विश्वास की कमी राज्यों को नीतियों की नकल करने के लिये प्रेरित करती है, जिससे अक्षमता की स्थिति उत्पन्न होती है तथा अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक राजकोषीय प्रभाव पड़ता है।

भारत में संघवाद को कैसे सशक्त किया जा सकता है?

  • सहयोगात्मक संवाद:
    • केंद्र एवं राज्यों के बीच खुले तथा पारदर्शी संचार को बढ़ावा देना। चिंताओं को दूर करने एवं दोनों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर सामान्य आधार खोजने के लिये नियमित बैठकों व चर्चाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • राज्यों को सशक्त बनाना:
    • उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हुए राज्यों को अधिक निर्णय लेने की शक्तियाँ एवं संसाधन हस्तांतरित करना चाहिये। यह राज्यों को केवल केंद्र पर निर्भर हुए बिना अपने विकास एजेंडे का प्रभार लेने के लिये सशक्त बना सकता है।
  • सहकारी नीतियाँ:
    • सहकारी नीतियों को प्रोत्साहित करना जहाँ केंद्र और राज्य पहल तैयार करने तथा लागू करने हेतु मिलकर कार्य करते हैं। यह सहयोग संसाधनों का अनुकूलन कर सकता है और व्यापक विकास सुनिश्चित कर सकता है।
  • भूमिकाओं में स्पष्टता:
    • अतिव्यापी क्षेत्राधिकारों और संघर्षों को कम करने हेतु सरकार के दोनों स्तरों के लिये स्पष्ट भूमिकाएँ तथा ज़िम्मेदारियाँ परिभाषित करना। यह स्पष्टता संचालन को सुव्यवस्थित कर सकती है और नीति के दोहराव को रोक सकती है।
  • विश्वास निर्माण:
    • आपसी सम्मान और समझ के माध्यम से विश्वास तथा सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना। विश्वास स्थापित करने से नीतियों और सुधारों के सुचारु कार्यान्वयन में सहायता मिल सकती है।

निष्कर्ष:

  • एक अनुकूल आर्थिक माहौल के लिये संघीय व्यवस्था के अंदर केंद्र और राज्यों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध होना महत्त्वपूर्ण है।
  • सहयोगात्मक और उत्पादक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये सहयोग, सशक्तीकरण, स्पष्टता एवं विश्वास आवश्यक घटक हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं  है? (2017)

(a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c)  संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।

उत्तर: (d)


प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है।(2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का 
(c) प्रशासनिक प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज़्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये।  (2014)


जल तनाव, जलवायु परिवर्तन और निर्णायक मोड़ पर बच्चे

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिसेफ, जल तनाव, फाल्कनमार्क संकेतक, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय, लॉस एंड डैमेज फंड, बाल कुपोषण

मेन्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे और संभावित समाधान, जलवायु परिवर्तन एवं बच्चों पर इसका प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में विश्व के लगभग आधे बच्चों को उच्च से अत्यधिक उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ा।

  • इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न विभिन्न जलवायु और पर्यावरणीय प्रभावों के कारण बच्चों का जीवन किस प्रकार प्रभावित कर रहा है।

रिपोर्ट की प्रमुख बातें क्या हैं?

  • जल तनाव और जलवायु का बच्चों पर प्रभाव: वर्ष 2022 में 953 मिलियन बच्चों को उच्च या अत्यधिक उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ा, जबकि 739 मिलियन ने जल की कमी का अनुभव किया और 436 मिलियन उच्च जल भेद्यता वाले क्षेत्रों में रहते थे।
    • जलवायु परिवर्तन इन चुनौतियों को तीव्र कर रहा है, अनुमानों से संकेत मिलता है कि वर्ष 2050 तक 2 मिलियन से अधिक बच्चों को लगातार हीट वेव्स के प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है।
  • जल भेद्यता में योगदान देने वाले कारक: इसमें अपर्याप्त पेयजल सेवाएँ, उच्च जल तनाव स्तर, अंतर-वार्षिक और मौसमी परिवर्तनशीलता, भूजल में गिरावट तथा सूखा शामिल हैं।
  • बच्चों पर स्वास्थ्य और पोषण का प्रभाव: बाढ़ जैसी जलवायु संबंधी घटनाएँ सुरक्षित जल एवं स्वच्छता तक पहुँच को बाधित करती हैं, जिससे बच्चों में डायरिया जैसी बीमारियाँ होती हैं।
  • बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न खाद्य उत्पादन को प्रभावित करते हैं, फसल की विफलता और खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण बाल कुपोषण की स्थिति बिगड़ती है।
  • बाल-केंद्रित जलवायु कार्रवाई के लिये यूनिसेफ का आह्वान: यूनिसेफ ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय के लिये 28वें सम्मेलन (COP28) की गंभीरता पर ज़ोर दिया और जलवायु एजेंडा में बच्चों को प्राथमिकता देने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।
    • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) से संबंधित निर्णयों में बच्चों और जलवायु-लचीली आवश्यक सेवाओं को एकीकृत करने हेतु समर्थन।
    • जलवायु-प्रभावित देशों का समर्थन करने के लिये लॉस एंड डैमेज फंड के अंतर्गत बाल-उत्तरदायी वित्तपोषण व्यवस्था एवं शासन की आवश्यकता पर ज़ोर देना।

जल तनाव क्या है?

  • परिचय:
  • जल तनाव 'वाटर स्ट्रेस' (Water Stress) एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें जल की मांग इसकी उपलब्ध आपूर्ति से अधिक हो जाती है अथवा जब निम्न गुणवत्ता इसकी उपयोगिता को सीमित कर देती है।
    • यदि किसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 1,000 क्यूबिक मीटर से कम जल उपलब्ध होता है तो उसे जल संकटग्रस्त माना जाता है।
  • WRI रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर विश्व की कम-से-कम 50% आबादी वर्ष में कम-से-कम एक महीने के लिये अत्यधिक जल तनावग्रस्त परिस्थितियों में रहती है
    • वर्ष 2050 तक यह स्तर 60% के करीब पहुँच सकता है।
  • जल तनाव के लिये उत्तरदायी कारक:
  • यह स्थिति जनसंख्या वृद्धि, अकुशल संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन एवं प्रदूषण जैसे कारकों के कारण उत्पन्न होती है, जिससे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के लिये स्वच्छ पानी तक पहुँचने में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं तथा कृषि, उद्योग और समग्र कल्याण प्रभावित होता है।
  • फाल्कनमार्क इंडिकेटर अथवा जल तनाव सूचकांक:
    • फाल्कनमार्क इंडिकेटर (जिसका उपयोग अमूमन विश्व भर में जल की कमी को मापने के लिये किया जाता है) अथवा जल तनाव सूचकांक किसी देश के कुल उपलब्ध जल संसाधनों को उसकी आबादी से जोड़कर उसके ताज़े जल के भंडार पर दबाव का अनुमान लगाता है।
    • यह प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की आवश्यकताओं को शामिल करते हुए जल संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव को दर्शाता है। यदि किसी देश में प्रति व्यक्ति नवीकरणीय जल की मात्रा:
      • 1,700 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल तनाव (Water Stress) का सामना कर रहा है।
      • 1,000 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल की कमी (Water Scarcity) का सामना कर रहा है।
      • 500 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल की पूर्ण कमी (Absolute Water Scarcity) का सामना कर रहा है।
  • बच्चों पर प्रभाव:
    • स्वास्थ्य जोखिम: जल की कमी का सामना करने वाले क्षेत्रों में बच्चों को अक्सर स्वच्छ जल की अपर्याप्त पहुँच से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
      • दूषित जल स्रोतों के उपयोग के कारण उनमें अतिसार, हैजा और पेचिश जैसी जलजनित बीमारियों की अधिक संभावना होती है।
    • दीर्घकालिक विकासात्मक प्रभाव: महत्त्वपूर्ण विकासात्मक चरणों के दौरान दीर्घकालिक जल तनाव बच्चों के विकास, संज्ञानात्मक विकास और समग्र स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है, जो संभावित रूप से उनके भविष्य के अवसरों तथा जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
    • लैंगिक भूमिकाओं पर प्रभाव: कई समाजों में लैंगिक भूमिकाएँ जल-संबंधी ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करती हैं।
      • जल की कमी अक्सर लड़कियों और महिलाओं पर असंगत बोझ डालती है, जिससे लड़कियों की शिक्षा प्रभावित होती है तथा लैंगिक असमानताएँ बनी रहती हैं।
      • यह लैंगिक भूमिकाओं और सामाजिक अपेक्षाओं के विषय में बच्चों की धारणाओं को आकार दे सकता है।

आगे की राह

  • स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम: स्कूलों और समुदायों में व्यापक स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम विकसित करना। जलजनित बीमारियों से बचाव के लिये बच्चों को अच्छे से हाथ धोने, स्वच्छता प्रथाओं और व्यक्तिगत स्वच्छता के विषय में सिखाना।
  • स्कूल-आधारित पहल: जल-बचत प्रथाओं को स्कूल पाठ्यक्रम में एकीकृत करना। जागरूकता बढ़ाने और स्कूलों में जल-बचत उपायों को लागू करने के लिये छात्र-नेतृत्व वाले जल संरक्षण क्लब का गठन या पहल करना।
  • शिक्षा और जागरूकता: बच्चों में जागरूकता बढ़ाने के लिये जलवायु परिवर्तन शिक्षा को स्कूल के पाठ्यक्रम में एकीकृत करना। उन्हें जलवायु विज्ञान, स्थिरता और उन कार्यों के विषय में पढ़ाना जिनमें वे जलवायु परिवर्तन को कम करने तथा अनुकूलित करने हेतु भाग ले सकते हैं।
  • बच्चों पर केंद्रित नीतियाँ: जलवायु परिवर्तन और जल तनाव की स्थिति में बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली वैश्विक नीतियों तथा रूपरेखाओं को मज़बूत करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में बाल-केंद्रित दृष्टिकोण शामिल करना, यह सुनिश्चित करना कि उनकी आवाज़ सुनी जाए और संबंधित नीतियों में उनकी आवश्यकताओं पर विचार किया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. जल तनाव (Water Stress) क्या है? भारत में क्षेत्रीय स्तर पर यह कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020)