डेली न्यूज़ (19 Apr, 2022)



उबला चावल

प्रिलिम्स के लिये:

उबला चावल, चावल, खरीफ फसल, रबी फसल

मेन्स के लिये:

देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसलें तथा फसल पैटर्न

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र द्वारा अधिक उबला चावल/पारबॉइल्ड राइस/उसना चावल (Parboiled Rice) की खरीद पर रोक लगाने की घोषणा की गई थी जिसके बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने एक समान धान खरीद नीति की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया।

उबला चावल (Parboiled Rice) 

  • उबला चावल के बारे में:
    • 'पारबॉइल्ड' (Parboil) का शाब्दिक अर्थ  है 'आंशिक रूप से उबालकर पकाया गया' (Partly Cooked by Boiling’)। 
      • इस प्रकार उबला चावल उस चावल को संदर्भित करता है जिसे चावल/धान (Paddy) के  मिलिंग चरण (Milling Stage) से पहले आंशिक रूप से उबाला जाता है।
    • चावल को उबालना कोई नई प्रथा नहीं है तथा भारत में प्राचीन समय से ही इसका प्रयोग किया जाता रहा है। 
      • हालाँकि भारतीय खाद्य निगम या उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के द्वारा उबले हुए चावल की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
  • चावल को उबालने की प्रक्रिया (उदाहरण):
    • केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (Central Food Technological Research Institute- CFTRI), मैसूर, एक ऐसी विधि का उपयोग करता है जिसमें धान को 8 घंटे से अधिक समय तक भिगोने की सामान्य विधि के विपरीत, धान को तीन घंटे के लिये ही गर्म पानी में भिगोया जाता है।
      • इसके बाद चावल को पानी से निकाल दिया जाता है और धान को 20 मिनट के लिये स्टीम कर दिया जाता है। साथ ही धान को CFTRI द्वारा प्रयोग की जाने वाली विधि में किसी छायादार स्थान में सुखाया जाता है, लेकिन सामान्य विधि में इसे धूप में सुखाया जाता है।
    • धान प्रसंस्करण अनुसंधान केंद्र (Paddy Processing Research Centre- PPRC), तंजावुर द्वारा एक अन्य विधि का प्रयोग किया जाता  है जिसे क्रोमेट सोकिंग प्रोसेस (Chromate Soaking Process) के रूप में जाना जाता है।
      • इस विघि में प्रयोग किया जाने वाले क्रोमेट लवण के आयनों में क्रोमियम और ऑक्सीजन के अणु होते हैं, गीले चावल से गंध को दूर करने में सहायक होते हैं।
  • उबालने के लिये उपयुक्त चावल की किस्में:
    • सामान्यत: चावल की सभी किस्मों को उबले चावल में संसाधित किया जा सकता है, लेकिन मिलिंग के दौरान चावल के टूटने की प्रक्रिया को रोकने हेतु लंबी पतली किस्मों (Slender Varieties) का उपयोग करना उचित होता है।
    • हालांँकि सुगंधित किस्मों को उबालने के लिये प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इस इसकी सुगंध कम हो सकती है।

फायदे और नुकसान

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  • फायदे:
    • उबालने से चावल सख्त हो जाते हैं जिससे मिलिंग के दौरान चावल के दाने के टूटने की संभावना कम हो जाती है।
    • हल्का उबालने से चावल के पोषक तत्व भी बढ़ जाते हैं।
    • उबले हुए चावल में कीड़ों और कवक के प्रति अधिक प्रतिरोध होता है।
  • नुकसान:
    • चावल गहरे रंग के हो जाते हैं और लंबे समय तक भिगोने के कारण उनमें गंध आ सकती हैं।
    • इसके अलावा एक उबला चावल मिलिंग इकाई (Parboiling Rice Milling Unit) स्थापित करने के लिये कच्चे चावल मिलिंग इकाई (Raw Rice Milling Unit) की तुलना में अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।

सरकार द्वारा उबला चावल की खरीद बंद करने का कारण: 

  • सरकार के अनुसार पर्याप्त स्टॉक होने के कारण भारतीय खाद्य निगम अधिशेष चावल की खरीद नहीं कर सकता है।
  • साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के तहत ऐसे अनाज की कोई मांग नहीं है।
    • मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत वितरण हेतु  20 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष उबले चावल की मांग है।
    • मंत्रालय के अनुसार हाल के वर्षों में उबले हुए चावल की मांग में कमी आई है।
  • पिछले कुछ वर्षों में झारखंड, केरल और तमिलनाडु जैसे उबले चावल की खपत वाले राज्यों में इसके उत्पादन में वृद्धि हुई है जिसके परिणामस्वरूप इन राज्यों में इसकी आयात में कमी हुई है।
  • इससे पहले भारतीय खाद्य निगम राज्यों को आपूर्ति करने हेतु तेलंगाना जैसे राज्यों से उबले हुए चावल की खरीद करता था। हाल के वर्षों में इन राज्यों में उबले हुए चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
    • तेलंगाना उबले हुए चावल (भुजिया या उसना या सेला चावल) का एक अधिशेष उत्पादक क्षेत्र है, लेकिन यहाँ उबले हुए चावल का उपभोग नहीं किया जाता है, यहाँ हमेशा अधिशेष में उत्पादन होता है, जो भारतीय खाद्य निगम (FCI) को दिया जाता है।

चावल की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25C से अधिक) तथा 100 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा के साथ उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है।
  • चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों, तटीय क्षेत्रों तथा डेल्टा क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • चावल उत्पादक राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और पंजाब का स्थान है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. भारत में पिछले पाँच वर्षों में खरीफ की फसलों की खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 

  1. धान की खेती के अंतर्गत क्षेत्र अधिकतम है।
  2. ज्वार की खेती के अंतर्गत क्षेत्र, तिलहनों की खेती के अंतर्गत क्षेत्र की तुलना में अधिक है।
  3. कपास की खेती का क्षेत्र, गन्ने की खेती के क्षेत्र की तुलना में अधिक है।
  4. गन्ने की खेती के अंतर्गत क्षेत्र निरंतर घटा है।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)

  • चावल/धान सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है। चावल/धान की खेती के अंतर्गत भारत सबसे बड़ा क्षेत्र है।

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  • कथन 1 और 3 सही हैं तथा कथन 2 और 4 सही नहीं हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

प्रश्न. निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये:

  1. कपास
  2. मूँगफली
  3. धान
  4. गेहूँ

इनमें से कौन-सी खरीफ की फसलें हैं?

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (c) 

  • भारत में तीन फसल मौसम रबी, खरीफ और जायद हैं। रबी की फसलों की बुवाई अक्तूबर से दिसंबर तक की जाती है तथा गर्मियों में अप्रैल से जून तक काटी जाती है।
  • खरीफ फसलें देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून की शुरुआत के साथ बोई जाती हैं तथा सितंबर-अक्तूबर में काटी जाती हैं।
  • रबी के मौसम और खरीफ के मौसम के बीच के एक छोटे मौसम (मुख्य रूप से मार्च से जून तक का मौसम) को जायद कहा जाता है। 'जायद' के अंतर्गत तरबूज़, कस्तूरी, ककड़ी, सब्जियाँ और चारा (पशुभोजन) आदि जैसी कुछ फसलें उगाई जाती हैं।
  • खरीफ फसलें: चावल, मक्का, ज्वार, बाज़रा, फिंगर बाजरा या रागी (अनाज), अरहर (दाल), सोयाबीन,  मूँगफली (तिलहन), कपास, आदि। अतः  1, 2 और 3 सही हैं।
  • रबी की फसलें: गेहूँ, जौ, जई (अनाज), चना या चना (दाल), अलसी, सरसों (तिलहन), आदि। अतः 4 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पोलियो

प्रिलिम्स के लिये:

पोलियो, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, डब्ल्यूएचओ।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, पोलियो, इसका प्रसार, टीका और उन्मूलन के उपाय।

चर्चा में क्यों?

नए कोविड -19 वेरिएंट की संभावना के साथ मामलों में केंद्र ने राज्यों से कहा है कि वे सभी प्रहरी साइटों (Sentinel Sites) पर सीवेज़ के नमूने भेजें जो वर्तमान में पोलियो वायरस की निगरानी कर रहे हैं।

  • प्रहरी निगरानी (Sentinel surveillance) "एक आबादी के स्वास्थ्य के स्तर में स्थिरता या परिवर्तन का आकलन करने के लिये डॉक्टरों, प्रयोगशालाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों के एक स्वैच्छिक नेटवर्क के माध्यम से विशिष्ट बीमारियों/स्थितियों की घटना की दर की निगरानी" है।

पोलियो क्या है?

  • परिचय:
    • पोलियो अपंगता का कारक और एक संभावित घातक वायरल संक्रामक रोग है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
    • प्रतिरक्षात्मक रूप से मुख्यतः पोलियो वायरस के तीन अलग-अलग उपभेद हैं:
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 1 (WPV1)
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 2 (WPV2)
      • वाइल्ड पोलियो वायरस 3 (WPV3)
    • लक्षणात्मक रूप से तीनों उपभेद समान होते हैं और पक्षाघात तथा मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
    • हालाँकि इनमें आनुवंशिक और वायरोलॉजिकल अंतर पाया जाता है, जो इन तीन उपभेदों के  अलग-अलग वायरस बनाते हैं, जिन्हें प्रत्येक को एकल रूप से समाप्त किया जाना आवश्यक होता है।
  • प्रसार:
    • यह वायरस मुख्य रूप से ‘मलाशय-मुख मार्ग’ (Faecal-Oral Route) के माध्यम से या दूषित पानी या भोजन के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
    • यह मुख्यतः 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। आंँत में वायरस की संख्या में बढ़ोतरी होती, जहाँ से यह तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है और जो पक्षाघात का कारण बन सकता है।
  • लक्षण:
    • पोलियो से पीड़ित अधिकांश लोग बीमार महसूस नहीं करते हैं। कुछ लोगों में केवल मामूली लक्षण जैसे- बुखार, थकान, जी मिचलाना, सिरदर्द, हाथ-पैर में दर्द आदि पाए जाते हैं।
    • दुर्लभ मामलों में पोलियो संक्रमण के कारण मांँसपेशियों में पक्षाघात होता है।
    • यदि साँस लेने के लिये उपयोग की जाने वाली मांँसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाएं या मस्तिष्क में कोई संक्रमण हो जाए तो पोलियो घातक हो सकता है।
  • रोकथाम और इलाज:
    • इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है।
  • टीकाकरण:
  • हाल के प्रकोप:
    • वर्ष 2019 में पोलियो का प्रकोप फिलीपींस, मलेशिया, घाना, म्याँमार, चीन, कैमरून, इंडोनेशिया और ईरान में दर्ज किया गया था, जो ज़्यादातर वैक्सीन-व्युत्पन्न थे, जिसमें वायरस का एक दुर्लभ स्ट्रेन आनुवंशिक रूप से वैक्सीन में स्ट्रेन से उत्परिवर्तित हुआ।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यदि वायरस को उत्सर्जित किया जाता है और कम-से-कम 12 महीनों के लिये एक अप्रतिरक्षित या कम-प्रतिरक्षित आबादी में प्रसारित होने दिया जाता है तो यह यह संक्रमण का कारण बन सकता है।
  • भारत और पोलियो:
    • तीन वर्ष के दौरान शून्य मामलों के बाद भारत को वर्ष 2014 में WHO द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ।
      • यह उपलब्धि उस सफल पल्स पोलियो अभियान के बाद प्राप्त हुई जिसमें सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई थी।
      • देश में वाइल्ड पोलियो वायरस के कारण अंतिम मामला 13 जनवरी, 2011 को पता चला था।

पोलियो उन्मूलन उपाय

वैश्विक:

  • वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल: 
    • इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त है।
      • पोलियो टीकाकरण गतिविधियों के दौरान विटामिनA के व्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से अनुमानित 1.5 मिलियन नवजातों की मौतों को रोका गया है।
  • विश्व पोलियो दिवस:
    • यह प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को मनाया जाता है ताकि देशों को बीमारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सतर्क रहने का आह्वान किया जा सके।

भारत:

  • पल्स पोलियो कार्यक्रम:
    • इसे ओरल पोलियो वैक्सीन के अंतर्गत शत्-प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0:
    • यह पल्स पोलियो कार्यक्रम (वर्ष 2019-20) के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान था।
  • सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 1985 में 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization) में संशोधन के साथ शुरू किया गया था।
    • इस कार्यक्रम के उद्देश्यों में टीकाकरण कवरेज में तेज़ी से वृद्धि, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम की स्थापना, वैक्सीन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि शामिल हैं।

स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस


एमएसएमई वित्त के लिये संसदीय पैनल

प्रिलिम्स के लिये: 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र, उद्यम पोर्टल, 'व्यापार' क्रेडिट कार्ड, एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने की पहलें

मेन्स के लिये:

एमएसएमई वित्त, औद्योगिक विकास हेतु संसदीय पैनल

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा  सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) क्षेत्र में ऋण प्रवाह को मज़बूत करने हेतु कई उपाय सुझाए गए हैं।

प्रमुख बिंदु 

एमएसएमई क्षेत्र में ऋण प्रवाह में सुधार की आवश्यकता:

  • औपचारिकता का अभाव: एमएसएमई के लिये क्रेडिट पारितंत्र को औपचारिक रूप देने की आवश्यकता को महत्त्व दिया गया है क्योंकि सरकारी आंँकड़ों के अनुसार, 6.34 करोड़ एमएसएमई में से 40% से कम औपचारिक वित्तीय प्रणाली के माध्यम से उधार लेते हैं।
    • एमएसएमई क्षेत्र में समग्र ऋण अंतर 20-25 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। 
  • एकीकृत डेटा का अभाव: अंतिम एमएसएमई सर्वेक्षण, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा छह वर्ष पहले किया गया था, जबकि सरकार ने वर्ष 2020 में एमएसएमई की परिभाषा को संशोधित किया था।
    • समिति के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र के संबंध में जो भी डेटा है, वे खंडित तरीके से मौजूद हैं और कई डेटासेट में कोई वास्तविक एकीकरण नहीं है।
    • यही वजह है कि बैंक एमएसएमई क्षेत्रक को ऋण देने से कतरा रहे थे।

MSMEs

पैनल के सुझाव:

  • वन-स्टॉप सेंट्रल डेटा रिपोजिटरी: उद्यम पोर्टल को अन्य डेटाबेस जैसे- सिबिल डेटा, यूटिलिटी बिल डेटा आदि के साथ जोड़कर एमएसएमई क्षेत्र हेतु वन-स्टॉप सेंट्रल डेटा रिपोजिटरी में विकसित करना।
  • अभिनव उधार प्रणाली/इनोवेटिव लेंडिंग सिस्टम: मोबाइल-आधारित कॉन्टैक्टलेस, पेपरलेस और कम लागत वाले तरीके से छोटे-टिकट कार्यशील पूंजी ऋण तक पहुंँचने के लिये औपचारिक क्षेत्र के सभी एमएसएमई हेतु  'एमएसएमई ऋण के लिये एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface-UPI) बनाना।
  • व्यापार क्रेडिट कार्ड: पैनल ने एमएसएमई के लिये सिडबी के तहत एक 'व्यापार' किसान  क्रेडिट कार्ड योजना की भी सिफारिश की जो राष्ट्रीय कृषि और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना के समान है, ताकि स्ट्रीट वेंडर और किराना स्टोर सहित करोड़ों एमएसएमई को औपचारिक  वित्तीय प्रणाली में शामिल जा सके। 
    • क्रेडिट कार्ड कम ब्याज दरों पर अल्पकालिक कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान कर सकता है और केसीसी धारकों को उपलब्ध 1 लाख संपार्श्विक-मुक्त सुविधा जैसे संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करने के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।
  • MSME जनगणना: बदली हुई परिभाषा के अनुरूप एमएसएमई का सर्वेक्षण/जनगणना यथाशीघ्र किया जाए ताकि देश में एमएसएमई की वास्तविक संख्या का अनुमान लगाने के साथ-साथ उनकी क्रेडिट आवश्यकताओं का वास्तविक आकलन किया जा सकेगा।

MSMEs क्षेत्र का महत्त्व

SMEs

एमएसएमई क्षेत्र से संबंधित पहलें:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय खादी, ग्राम और जूट उद्योगों सहित MSME क्षेत्र के वृद्धि और विकास को बढ़ावा देकर एक जीवंत एमएसएमई क्षेत्र की कल्पना करता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम को वर्ष 2006 में एमएसएमई को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दों के साथ-साथ क्षेत्र की कवरेज़ और निवेश सीमा को संबोधित करने के लिये अधिसूचित किया गया था।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना तथा देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिये निधि की योजना (SFURTI): इसका उद्देश्य कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों को समूहों में व्यवस्थित करना तथा इस प्रकार उन्हें आज के बाज़ार परिदृश्य में प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु योजना (ASPIRE): यह योजना 'कृषि आधारित उद्योग में स्टार्टअप के लिये फंड ऑफ फंड्स', ग्रामीण आजीविका बिज़नेस इनक्यूबेटर (LBI), प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
  • MSME को वृद्धिशील ऋण प्रदान करने के लिये ब्याज सबवेंशन योजना: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें सभी कानूनी एमएसएमई को उनकी वैधता की अवधि के दौरान उनके बकाया, वर्तमान/वृद्धिशील सावधि ऋण/कार्यशील पूंजी पर 2% तक की राहत प्रदान की जाती है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी योजना: ऋण के आसान प्रवाह की सुविधा के लिये शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत एमएसएमई को दिये गए संपार्श्विक मुक्त ऋण हेतु गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE-CDP): इसका उद्देश्य एमएसएमई की उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता के साथ-साथ क्षमता निर्माण को बढ़ाना है।
  • क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन स्कीम (CLCS-TUS): इसका उद्देश्य संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिये 15% पूंजी सब्सिडी प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों (एमएसई) को प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा प्रदान करना है।
  • CHAMPIONS पोर्टल: इसका उद्देश्य भारतीय एमएसएमई को उनकी शिकायतों को हल करके और उन्हें प्रोत्साहन, समर्थन प्रदान कर राष्ट्रीय और वैश्विक चैंपियन के रूप में स्थापित होने में सहायता करना है।
  • MSME समाधान: यह केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/सीपीएसई/राज्य सरकारों द्वारा विलंबित भुगतान के बारे में सीधे मामले दर्ज करने में सक्षम बनाता है।
  • उद्यम पंजीकरण पोर्टल: यह नया पोर्टल देश में एमएसएमई की संख्या पर डेटा एकत्र करने में सरकार की सहायता करता है।
  • एमएसएमई संबंध: यह एक सार्वजनिक खरीद पोर्टल है। इसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा एमएसई से सार्वजनिक खरीद के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये शुरू किया गया था।

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस


निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तु योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सीमा शुल्क, पूंजीगत वस्तु, निर्यात संबंधी पहल

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, व्यवसाय करने में आसानी, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अनुपालन आवश्यकताओं को कम करने तथा व्यापार सुगमता की सुविधा हेतु निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तु (Export Promotion Capital Goods- EPCG) योजना के तहत विभिन्न प्रक्रियाओं में ढील दी है।

पूंजीगत वस्तु (Capital Goods):

  • पूंजीगत वस्तुएँ (Capital Goods) वे भौतिक संपत्तियांँ हैं जिन्हें एक कंपनी उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादों और सेवाओं के निर्माण हेतु उपयोग करती है तथा जिनका बाद में उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है।
  • पूंजीगत वस्तुओं में भवन, मशीनरी, उपकरण, वाहन और उपकरण शामिल हैं।
  • पूंजीगत वस्तुएंँ तैयार माल नहीं होतीं बल्कि उनका उपयोग माल को निर्मित करने के लिये किया जाता है।
  • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का गुणक प्रभाव होता है और उपयोगकर्त्ता उद्योगों के विकास पर इसका असर पड़ता है क्योंकि यह विनिर्माण गतिविधि के अंतर्गत आने वाले शेष क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण  इनपुट, यानी मशीनरी और उपकरण प्रदान करता है।

 निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तु (EPCG) योजना:

  • परिचय:
    • EPCG योजना वर्ष 1990 के दशक में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से पूंजीगत वस्तुओं के आयात की सुविधा हेतु शुरू की गई थी, जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई है।
    • इस योजना के तहत निर्माता बिना किसी सीमा शुल्क को आकर्षित किये, उत्पादन से पहले, उत्पादन तथा उत्पादन के बाद वस्तुओं के लिये पूंजीगत वस्तुओं का आयात कर सकते हैं।
    • EPCG योजना के तहत बिना किसी प्रतिबंध के पुरानी पूंजीगत वस्तुओं का भी आयात किया जा सकता है।
    • पूंजीगत वस्तुओं के आयात पर सीमा शुल्क के दायित्व का भुगतान करने में छूट प्रदान करने वाली यह योजना प्राधिकरण जारी होने की तारीख से 6 वर्षों के भीतर ऐसे पूंजीगत वस्तुओं के आयात पर बचाए गए शुल्क के 6 गुना के निर्यात मूल्य के बराबर होता है।
      • सरल शब्दों में व्यापार पर विदेशी मुद्रा को शामिल करने की बाध्यता है, जो  घरेलू मुद्रा में मापे गए ऐसे आयात पर बचाए गए शुल्क के 600 प्रतिशत के बराबर है। यह निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तुएँ योजना का लाभ उठाने के छह साल के भीतर किया जाना है।

EPCG-Scheme

  • कवरेज़:
    • निर्माता निर्यातकों के साथ या समर्थन निर्माताओं के बिना,
    • मर्चेंट एक्सपोर्टर्स सपोर्टिंग मैन्युफैक्चरर्स से जुड़े सेवा प्रदाता तथा
    • सामान्य सेवा प्रदाता (CSP)।
  • नए मानदंड:
    • पूंजीगत वस्तुओं के आयात को निर्यात दायित्व के अधीन शुल्क मुक्त करने की अनुमति है।
    • योजना के तहत प्राधिकरण धारक (या निर्यातक) को छह वर्षों में मूल्य के संदर्भ में बचाए गए वास्तविक शुल्क के छह गुना मूल्य के तैयार माल का निर्यात करना होता है।
    • निर्यात दायित्व विस्तार हेतु अनुरोध पूर्व निर्धारित 90 दिनों की अवधि के बजाय समाप्ति के छह महीने के भीतर किया जाना चाहिये। हालांँकि छह महीने के बाद और छह साल तक किये गए आवेदनों पर प्रति प्राधिकरण 10,000 रुपए का विलंब शुल्क आरोपित होगा।
    • बदलावों के अनुसार, ब्लॉक-वार निर्यात दायित्व विस्तार हेतु अनुरोध समाप्ति के छह महीने के भीतर किया जाना चाहिये। हालांँकि छह महीने के बाद और छह साल तक किये गए आवेदनों हेतु प्रति प्राधिकरण 10,000 रुपये का विलंब शुल्क देय होगा।
    • EPCG के तहत चूक के लिये स्क्रिप्स एमईआईएस (भारत से माल निर्यात योजना)/निर्यात उत्पाद (आरओडीटीईपी)/आरओएससीटीएल (राज्य और केंद्रीय करों और लेवी की छूट) पर शुल्क या कर की छूट के माध्यम से सीमा शुल्क का भुगतान करने की सुविधा वापस ले ली गई है।
  • EPCG योजना के लाभ:
    • EPCG का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना है तथा भारत सरकार इस योजना की मदद से निर्यातकों को प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • इस प्रावधान से निर्यातकों को भारी फायदा हो सकता है। हालांँकि उन लोगों के लिये इस योजना के साथ आगे बढ़ना उचित नहीं है जो भारी मात्रा में निर्माण नहीं करते हैं या पूरी तरह से देश के भीतर निर्मित सामान को बेचने की उम्मीद नहीं करते हैं, क्योंकि इस योजना के तहत निर्धारित दायित्वों को पूरा करना लगभग असंभव हो सकता है।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिये अन्य योजनाएंँ:

  • भारत से पण्य वस्तु निर्यात योजना:
    • इसको विदेश व्यापार नीति (FTP) 2015-20 में पेश किया गया था। इसके तहत सरकार उत्पाद और देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।

भारत योजना से सेवा निर्यात:

  • इसे भारत की विदेश व्यापार नीति 2015-2020 के तहत अप्रैल 2015 में 5 वर्षों के लिये  लॉन्च किया गया था।
    • इससे पहले वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये इस योजना को भारत योजना (SFIS योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
  • निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP):
    • यह भारत में निर्यात बढ़ाने में मदद करने हेतु जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिये पूरी तरह से स्वचालित मार्ग है
  • राज्य एवं केंद्रीय करों और लेवी की छूट
    • मार्च 2019 में घोषित RoSCTL को एम्बेडेड स्टेट (Embedded State) और केंद्रीय शुल्कों (Central Duties) तथा उन करों के लिये पेश किया गया था जो माल एवं सेवा कर (GST) के माध्यम से वापस प्राप्त नहीं होते हैं।

स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड


पारंपरिक चिकित्सा के लिये वैश्विक केंद्र: गुजरात

प्रिलिम्स के लिये:

GCTM, WHO, पारंपरिक चिकित्सा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

मेन्स के लिये:

ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM) और इसका महत्त्व, पारंपरिक औषधि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात के जामनगर में अपनी तरह के पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक केंद्र/ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM) के लिये शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया था।

  • इसके अतिरिक्त वैश्विक आयुष निवेश और नवाचार सम्मेलन इस महीने के अंत में गांधीनगर में आयोजित किया जाएगा, जिसका उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में निवेश और नवाचारों को बढ़ावा देना है।
    • यह दीर्घकालिक साझेदारी और निर्यात को बढ़ावा देने तथा एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र का पोषण करने का एक अनूठा प्रयास है।

GCTM की स्थापना का उद्देश्य:

  • तकनीकी प्रगति के साथ एकीकरण:
    • केंद्र का लक्ष्य पारंपरिक चिकित्सा की क्षमता को तकनीकी प्रगति और साक्ष्य-आधारित अनुसंधान के साथ एकीकृत करना है।
  • नीतियाँ और मानक निर्धारित करना:
    • यह पारंपरिक चिकित्सा उत्पादों पर नीतियों और मानकों को निर्धारित करने की कोशिश करेगा साथ ही देशों को एक व्यापक, सुरक्षित व उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य प्रणाली बनाने में मदद करेगा।
  • WHO की रणनीति को लागू करने हेतु समर्थन प्रयास:
    • यह WHO’s की पारंपरिक चिकित्सा रणनीति (2014-23) को लागू करने के प्रयासों का समर्थन करेगा।
      • इसका उद्देश्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़ के लक्ष्य को आगे बढ़ाने में पारंपरिक चिकित्सा की भूमिका को मज़बूत करने के लिये नीतियों और कार्य योजनाओं को विकसित करने में राष्ट्रों का समर्थन करना है।
    • WHO’s के अनुमान के अनुसार, दुनिया की 80% आबादी पारंपरिक चिकित्सा का उपयोग करती है।
    • भारत ने GCTM’s की स्थापना, बुनियादी ढाँचे और संचालन का समर्थन करने के लिये अनुमानित 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद का वादा किया है।
  • चार मुख्य रणनीतिक क्षेत्रों पर ध्यान देना:
    • साक्ष्य और अधिगम
    • डेटा और विश्लेषण
    • स्थिरता और इक्विटी 
    • वैश्विक स्वास्थ्य के लिये पारंपरिक चिकित्सा के योगदान को अनुकूलित करने के लिये नवाचार और प्रौद्योगिकी।

पारंपरिक चिकित्सा (Traditional Medicine):

  • परिचय:
    • WHO के अनुसार पारंपरिक चिकित्सा "ज्ञान, कौशल और प्रथाओं का कुल योग है जो स्वदेशी और विभिन्न संस्कृतियों ने समय के साथ स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा शारीरिक एवं मानसिक बीमारी को रोकने, निदान और उपचार करने के लिये उपयोग किया है"।
    • इसकी पहुँच में प्राचीन प्रथाओं जैसे एक्यूपंक्चर (Acupuncture), आयुर्वेदिक दवा और हर्बल मिश्रण के साथ-साथ आधुनिक औषधि भी शामिल हैं।
  • भारत में पारंपरिक चिकित्सा:
    • भारत में इसे अक्सर प्रथाओं और उपचारों जैसे कि योग, आयुर्वेद, सिद्ध के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
      • ये उपचार और प्रथाएँ ऐतिहासिक रूप से और साथ ही अन्य भारतीय परंपरा का हिस्सा रही हैं - जैसे की होम्योपैथी (जो वर्षों से भारतीय परंपरा का एक हिस्सा है)।
      • तमिलनाडु और केरल में मुख्य रूप से सिद्ध प्रणाली का पालन किया जाता है
      • सोवा-रिग्पा प्रणाली मुख्य रूप से लेह-लद्दाख तथा हिमालयी क्षेत्रों जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग, लाहौल और स्पीति में प्रचलित है।

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पारंपरिक चिकित्सा के ज्ञान को आगे बढ़ाने की क्या आवश्यकता:

  • पारंपरिक चिकित्सा में एकीकरण का अभाव:
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियाँ और रणनीतियाँ अभी तक पारंपरिक चिकित्सा कर्मियों, मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों और स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरी तरह से एकीकृत नहीं करती हैं।
  • जैव विविधता का संरक्षण:
    • जैव विविधता और और उसके स्थिर संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि आज अनुमोदित फार्मास्युटिकल उत्पादों में से लगभग 40% प्राकृतिक पदार्थों से ही प्राप्त होते हैं।
      • उदाहरण के लिये: एस्पिरिन की खोज विलो पेड़ की छाल का उपयोग कर पारंपरिक चिकित्सा योग पर आधारित थी, गर्भनिरोधक गोली जंगली रतालू पौधों की जड़ों से विकसित की गई थी और कैंसर के उपचार गुलाबी पेरिविंकल पर आधारित थे।
  • पारंपरिक चिकित्सा के अध्ययन में आधुनिकीकरण:
    • डब्ल्यूएचओ ने पारंपरिक चिकित्सा के अध्ययन के तरीकों के आधुनिकीकरण का उल्लेख किया है। 
      • वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा के  साक्ष्य और रुझानों को मानचित्रित करने के लिये किया जाता है।
      • कार्यात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (Functional Magnetic Resonance Imaging) का उपयोग मस्तिष्क गतिविधि और विश्राम प्रतिक्रिया का अध्ययन करने हेतु किया जाता है जो कुछ पारंपरिक चिकित्सा उपचारों जैसे ध्यान और योग का हिस्सा है तथा जिन्हें तनावपूर्ण समय में मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये शीघ्रता से तैयार किया जाता हैं।
  • अन्य देशों के लिये एक हब के रूप में सेवा करना:
    • पारंपरिक औषधियों को भी मोबाइल फोन एप्स, ऑनलाइन कक्षाओं और अन्य तकनीकों द्वारा व्यापक रूप से अद्यतन किया जा रहा है।
    • GCTM अन्य देशों के लिये एक हब के रूप में कार्य करेगा और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और उत्पादों पर मानकों का निर्माण करेगा।

भारत द्वारा पूर्व में किये गए समान सहयोगात्मक प्रयास:

  • परियोजना सहयोग समझौता (PCA) :
    • वर्ष 2016 में आयुष मंत्रालय द्वारा पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में WHO के साथ एक परियोजना सहयोग समझौते (PCA) पर हस्ताक्षर किये गए।
      • इसका उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा संबंधी चिकित्सकों के लिये योग, आयुर्वेद, यूनानी और पंचकर्म में प्रशिक्षण हेतु मानक निर्मित करना था।
      • सहयोग का उद्देश्य डब्ल्यूएचओ की पारंपरिक और पूरक चिकित्सा रणनीति के विकास और कार्यान्वयन में डब्ल्यूएचओ का समर्थन करके पारंपरिक चिकित्सा और उपभोक्ता संरक्षण की गुणवत्ता तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
  • संबंधित समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर:
    • अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा, मलेशिया, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ताज़िकिस्तान, सऊदी अरब, इक्वाडोर, जापान, रीयूनियन द्वीप, कोरिया और हंगरी इंडोनेशिया के संस्थानों, विश्वविद्यालयों तथा संगठनों के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान एवं  पारंपरिक औषधि के विकास हेतु  कम से कम 32 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये  गए हैं।।
    • इसके अलावा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) तथा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा भारत के भीतर और बाहर शोधकर्त्ताओं  के बीच वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुसंधान के अवसरों की पहचान करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गये हैं। पारंपरिक औषधि के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में फाउंडेशन-वित्त पोषित संस्थाओं के साथ सहयोग भी शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत-फिनलैंड संबंध

प्रीलिम्स के लिये:

क्वांटम कंप्यूटिंग, सतत् ऊर्जा तकनीक, इलेक्ट्रिक वाहन, साइबर-फिजिकल सिस्टम, क्वांटम टेक्नोलॉजीज, फ्यूचर मैन्युफैक्चरिंग, ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत-फिनलैंड संबंध 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में फिनलैंड के आर्थिक मामलों के मंत्री ने भारत के केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री से मुलाकात की।

  • उन्होंने क्वांटम कंप्यूटिंग पर एक इंडो-फिनिश वर्चुअल नेटवर्क सेंटर स्थापित करने के निर्णय की घोषणा की।
  • भारतीय द्वारा क्वांटम कंप्यूटिंग पर वर्चुअल नेटवर्क सेंटर हेतु तीन प्रमुख संस्थानों आईआईटी मद्रास, आईआईएसईआर पुणे और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (सी-डैक) पुणे की पहचान की है।

Finland

बैठक की मुख्य विशेषताएंँ:

  • भारत फिनलैंड अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ अनुसंधान सहयोग को विकसित करने और फिनलैंड उद्योग के साथ प्रौद्योगिकी सहयोग विकसित करने का इच्छुक है, विशेष रूप से निम्नलिखित प्रौद्योगिकी डोमेन और क्वांटम कंप्यूटिंग के अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जैसे कि:
    • सतत् ऊर्जा प्रौद्योगिकी (उत्पादन, रूपांतरण, भंडारण और संरक्षण), पर्यावरण और स्वच्छ प्रौद्योगिकियांँ।
    • विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु जैव आधारित अर्थव्यवस्था, बायोबैंक और जैव आधारित सामग्री।
    • जल और समुद्री प्रौद्योगिकी।
    • खाद्य और कृषि प्रौद्योगिकी।
    • वहनीय स्वास्थ्य सेवा (फार्मास्यूटिकल्स और बायोमेडिकल इंस्ट्रुमेंटेशन सहित),
    • सभी क्षेत्रों में उन्नत विनिर्माण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एकीकरण और मशीन लर्निंग के लिये प्रौद्योगिकियांँ।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन, साइबर-भौतिक प्रणाली, क्वांटम प्रौद्योगिकी, ग्रीन हाइड्रोजन ईंधन आदि जैसे कई नए मिशन मोड कार्यक्रम शुरू किये गए हैं तथा सामाजिक चुनौतियों के मुद्दों को हल करने में फिनलैंड के साथ संयुक्त सहयोग की मांग की है।
  • दौरे पर आए फिनलैंड के मंत्री ने आश्वासन दिया कि फिनलैंड कंपनियांँ कार्बन-तटस्थ प्रौद्योगिकियों के लिये भारत के साथ साझेदारी करेंगी और जलवायु परिवर्तन में स्थिरता हेतु सहयोग को बढ़ाएंगी।
  • फिनलैंड के मंत्री ने भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले नए उत्पादों और सेवाओं के विकास को बढ़ावा देने हेतु चिकित्सा अनुसंधान के लिये उच्च गुणवत्ता वाले मानव नमूनों की मध्यस्थता के लिये फिनलैंड की बायोबैंक परियोजना में सहयोग हेतु भी आमंत्रित किया।

फिनलैंड-भारत संबंधों का इतिहास:

  • पृष्ठभूमि: फिनलैंड और भारत के बीच परंपरागत रूप से मधुर और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं।
    • हाल के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों ने दोनों पक्षों द्वारा अनुसंधान, नवाचार और निवेश में सहयोग के साथ विविधता को स्थापित किया है।
    • वर्ष 2019 ने दोनों देशों के बीच 70 वर्ष के राजनयिक संबंधों को चिह्नित किया।
  • परस्पर महत्त्व: फिनलैंड भारत को अपने उत्पादों के लिये एक बाज़ार और अपने उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों के लिये एक अनुकूल निवेश गंतव्य के रूप में देखता है।
    • भारत फिनलैंड को यूरोपीय संघ के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य और आधुनिक प्रौद्योगिकी के भंडार के रूप में देखता है।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग: विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में भारत तथा फिनलैंड के बीच मज़बूत संबंध हैं।
    • भारत और फिनलैंड दोनों अंटार्कटिक संधि के सलाहकार सदस्य हैं, साथ ही उनके अंटार्कटिका में उनके सक्रिय स्टेशन भी हैं।
      • फिनलैंड वर्ष 2023 में अंटार्कटिक संधि सलाहकार बैठक (ATCM) तथा वर्ष 2024 में भारत की मेजबानी करेगा।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और फिनिश मौसम विज्ञान संस्थान (FMI) वर्ष 2014 से वायुमंडलीय पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं।
      • इस सहयोग के तहत FMI द्वारा विकसित वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान मॉडल (Air Quality Forecasting models) को भारतीय क्षेत्र के लिये अनुकूलित किया गया है जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण की घटनाओं को सूक्ष्म स्तर से क्षेत्रीय स्तर तक पूर्वानुमानित करने की क्षमता में वृद्धि हुई है ताकि प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण उचित कार्रवाई कर सकें।
    • फिनलैंड 5G/6G प्रौद्योगिकी में अग्रणी है, जिसके साथ ही शीर्ष भारतीय आईटी कंपनियाँ इस क्षेत्र में सहयोग करना चाहती हैं।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
    • वर्ष 2020 में फिनलैंड के साथ भारत का कुल व्यापार (वस्तुओं और सेवाओं) 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो भारत के पक्ष में है।
    • वर्ष 2020 में वस्तुओं का व्यापार लगभग 950 मिलियन अमेरिकी डॉलर था तथा फिनलैंड के पक्ष में लगभग 134 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • भारत से फिनलैंड की शीर्ष आयातित वस्तुएँ (जनवरी-दिसंबर 2020):
      • औषधीय उत्पाद
      • कपड़ों से निर्मित वस्तुएँ 
      • कच्चा धागा 
      • धातुओं के उत्पाद
      • इलेक्ट्रिक मशीनरी और पार्ट्स
    • फिनलैंड से भारत की शीर्ष आयातित वस्तुएँ (जनवरी-दिसंबर 2020):
      • विशेष उद्योगों के लिये मशीनरी
      • इलेक्ट्रिक मशीनरी और पार्ट्स
      • कागज, पेपरबोर्ड और उनसे संबंधित उपकरण 
      • धात्विक अयस्क और धातु स्क्रैप
      • सामान्य औद्योगिक मशीनरी
  • सांस्कृतिक संबंध:
    • फिनलैंड भारतीय संस्कृति के प्रति ग्रहणशील है।
    • फिनलैंड में कई भारतीय नृत्य विद्यालय और योग विद्यालय हैं।
    • भारतीय नृत्य और संगीत (शास्त्रीय और समकालीन दोनों) को बढ़ावा देने वाले भारतीय संघों तथा अन्य सांस्कृतिक संगठनों द्वारा नियमित रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
    • फिनिश इंडिया सोसायटी वर्ष 1956 से सक्रिय है।

स्रोत: पी.आई.बी.