डब्ल्यूटीओ के घेराव हेतु पूंजीगत सामानों का शुल्क मुक्त आयात
चर्चा में क्यों?
घरेलू उद्योगों द्वारा उत्पादित पूंजीगत वस्तुओं का शुल्क मुक्त आयात सुनिश्चित करने के लिये सरकार एक योजना पर काम कर रही है, जिससे न केवल घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि इससे रोज़गार उत्पादन में भी वृद्धि होने की संभावना है।
इसकी आवश्यकता क्यों ?
- जहाँ एक ओर यह पहल कुछ निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं का विकल्प साबित हो सकती है वहीं दूसरी ओर, वैश्विक व्यापार नियमों के साथ असंगतता के कारण चरणबद्ध आयात-निर्यात में उत्पन्न हो रही बाधाओं को दूर करने में सहायक साबित हो सकती है।
- वर्तमान समय में निर्यातक, निर्यात संवर्द्धन पूंजीगत वस्तुओं (Export Promotion Capital Goods - EPCG) की योजना के तहत पूंजीगत सामान का शुल्क मुक्त आयात कर सकते हैं और निर्यात उन्मुख इकाइयों (Export Oriented Units-EOUs) तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone-SEZ) की इकाइयों के संदर्भ में भी आवश्यक पहल कर सकते हैं।
- परंतु इसमें समस्या यह है कि अब ये योजनाएँ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मानदंडों के अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में या तो इन्हें चरणबद्ध तरीके से परिवर्तित करना होगा अथवा इन्हें पूरी तरह से समाप्त करना होगा।
- इस संदर्भ में यह नई योजना डब्ल्यूटीओ मानदंडों के अनुरूप तैयार की गई है। साथ ही इसके अंतर्गत निर्माताओं हेतु समान लाभ की व्यवस्था करने का भी प्रयास किया जा रहा है।
नई योजना
- विदेश व्यापार निदेशालय (Directorate-General of Foreign Trade - (DGFT) के नेतृत्व में व्यापार विशेषज्ञों और उद्योग प्रतिनिधियों की एक टीम तैयार की गई है जिसका कार्य इस योजना को अंतिम रूप प्रदान करना है, जिसे अंततः घरेलू उद्योग और निर्यातकों के लिये वैकल्पिक प्रोत्साहन योजनाओं पर कैबिनेट नोट में शामिल किया जाएगा।
वर्तमान स्थिति
- वर्तमान समय में भारत कई निर्यात संबंधी कई विषम परिस्थितियों से घिरा हुआ है, इस साल की शुरुआत में अमेरिका द्वारा भारत पर भारतीय निर्यात सब्सिडी के रूप में अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुँचाने संबंधी मामला सामने आया था। यह मामला इतना अधिक बढ़ गया था कि अमेरिका ने भारत को डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान निकाय के समक्ष ला खड़ा किया।
- इस मामले में पाँच लोकप्रिय निर्यात संवर्द्धन योजनाओं को चिन्हित किया गया, जिनमें एमईआईएस (Merchandise Export from India Scheme -MEIS), ईपीसीजी योजना और ईओयू एवं एसईजेड इकाइयों को उपलब्ध कराए जाने वाले कुछ प्रोत्साहन शामिल हैं, इन सभी पर सब्सिडी तथा काउंटरवेलिंग उपायों पर डब्ल्यूटीओ समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया।
भारत की योजना क्या है?
- उक्त मामलों को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माताओं द्वारा उन योजनाओं को प्रतिस्थापित करने पर विचार किया जा रहा है जो सीधे तौर पर निर्यात से जुड़ी हुई नहीं हैं। ये योजनाएँ सभी घरेलू उत्पादकों के लिये उपलब्ध होंगी और निर्यात के अलावा अन्य मानदंडों जैसे- रोज़गार से भी संबद्ध होंगी।
- वर्तमान में पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क का औसत स्तर लगभग 7.5 प्रतिशत है। घरेलू उद्योगों के लिये इसे शून्य करने से जहाँ एक ओर रोज़गार उत्पादन जैसे महत्त्वपूर्ण मानदंडों को पूरा किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर, निर्माताओं को भी राहत प्रदान करने का अवसर प्रदान किया जा सकता है।
चुनौतियाँ
- हालाँकि, इस योजना के निष्पादन में कुछ चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। पूंजीगत वस्तुओं के आयात को प्रोत्साहित करने की योजना से घरेलू पूंजीगत वस्तुओं के उद्योग के हितों को नुकसान पहुँचने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
- इसमें कोई दोराय नहीं है कि सरकार का अंतिम उद्देश्य 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्यों को पूरा करना है। हालाँकि घरेलू उद्योगों को कुछ अतिरिक्त लाभ देकर भी इन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।