विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
नाभिकीय अपशिष्ट से निपटने की चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR), यूरेनियम और प्लूटोनियम, परमाणु अपशिष्ट, प्रयुक्त ईंधन, तरल अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ, विखंडनीय सामग्री पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPFM)। मेन्स के लिये:परमाणु ऊर्जा से संबंधित विकास, परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के तरीके, परमाणु अपशिष्ट से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने अपने लंबे समय से विलंबित प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर संयंत्र के मुख्य हिस्से को लोड किया, जिससे यह अपने तीन चरण वाले परमाणु कार्यक्रम के यूरेनियम और प्लूटोनियम द्वारा संचालित चरण-II के शिखर पर पहुँच गया।
- चरण-III तक, भारत को उम्मीद है कि वह नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन करने के लिये थोरियम के अपने विशाल भंडार का उपयोग करने में सक्षम होगा।
- नाभिकीय ऊर्जा के व्यापक प्रयोग के कारण नाभिकीय अपशिष्ट का प्रबंधन एक बहुत बड़ी चुनौती है।
प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR):
- ब्रीडर रिएक्टर एक नाभिकीय रिएक्टर है जो यूरेनियम-238 या थोरियम-232 जैसी उपजाऊ पदार्थ के विकिरण द्वारा उपभोग की तुलना में अधिक विखंडनीय पदार्थ उत्पन्न करता है जिसे विखंडनीय ईंधन के साथ रिएक्टर में लोड किया जाता है।
- इन्हें विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिये परमाणु ईंधन आपूर्ति का विस्तार करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
- PFBR एक 500-मेगावाट इलेक्ट्रिक (MWe) फास्ट-ब्रीडर नाभिकीय रिएक्टर है जिसका निर्माण वर्तमान में कलपक्कम (तमिलनाडु) में मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में किया जा रहा है।
- इसे मिश्रित ऑक्साइड (MOX) ईंधन द्वारा संचालित किया जाता है।
नाभिकीय अपशिष्ट क्या है?
- विखंडन रिएक्टर में, न्यूट्रॉन द्वारा कुछ तत्त्वों के परमाणुओं के नाभिक पर बमबारी की जाती है। जब ऐसा एक नाभिक न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है, तो यह अस्थिर हो जाता है और इसका विखंडन हो जाता है, जिससे कुछ ऊर्जा तथा विभिन्न तत्त्वों के नाभिक मुक्त होते हैं।
- उदाहरण के लिये, जब यूरेनियम-235 (U-235) नाभिक एक न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है, तो यह बेरियम-144, क्रिप्टन-89 और तीन न्यूट्रॉन में विखंडित हो सकता है। यदि 'Debris अर्थात् अवशेष' (बेरियम-144 और क्रिप्टन-89) ऐसे तत्त्वों का निर्माण करते हैं जो विखंडन प्रक्रिया से नहीं गुज़र सकते, तो वे नाभिकीय अपशिष्ट बन जाते हैं।
- नाभिकीय रिएक्टर में भरे गए ईंधन का विकिरण हो जाता है जो अंततः निष्कासन कर दिया जाता है जिस बिंदु पर इसे प्रयुक्त ईंधन (spent fuel) के रूप में जाना जाता है।
- नाभिकीय अपशिष्ट अत्यधिक रेडियोधर्मी होता है तथा इसे स्थानीय पर्यावरण में रिसाव और/या संदूषण को रोकने के लिये सुदृढ़ व्यवस्ताओं में संग्रहित करने की आवश्यकता होती है।
नोट:
- विखंडन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी परमाणु का नाभिक दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों और कुछ उपोत्पादों में विभाजित/विखंडित हो जाता है।
- जब नाभिक विभाजित होता है, तो विखंडित भागों (प्राथमिक नाभिक) की गतिज ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा के ईंधन के रूप में अन्य परमाणुओं में स्थानांतरित किया जाता है, जिसका उपयोग अंततः टरबाइनों को चलाने के लिये आवश्यक वाष्प उत्पादन करने में किया जाता है।
- संलयन को कई छोटे नाभिकों के एक बड़े नाभिक में संयोजन और उसके बाद भारी मात्रा में ऊर्जा के उत्सर्जन के रूप में परिभाषित किया गया है।
- संलयन का उपयोग करते हुए, वह प्रक्रिया जो सूर्य में ऊर्जा का उत्पादन करती है, एक असीमित, स्वच्छ ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकती है।
- सूर्य में, इसके अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न अत्यधिक दबाव संलयन की स्थिति उत्पन्न करता है।
- संलयन का उपयोग करते हुए, वह प्रक्रिया जो सूर्य में ऊर्जा का उत्पादन करती है, एक असीमित, स्वच्छ ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकती है।
नाभिकीय अपशिष्ट को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से किस प्रकार प्रबंधित किया जा सकता है?
- प्राथमिक चुनौती प्रयुक्त ईंधन का प्रबंधन करना है, जो अत्यधिक गर्म और रेडियोधर्मी है। ठंडा होने के बाद लंबे समय तक भंडारण के लिये इन्हें सूखे पीपों में स्थानांतरित करने से पहले इसे कई दशकों तक जल में डूबाए रकहने की आवश्यकता होती है।
- लंबे समय से परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम वाले सभी देशों ने प्रयुक्त ईंधन की एक बड़ी मात्रा जमा कर ली है।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका के पास 69,682 टन (tn), कनाडा के पास 54,000 टन और रूस के पास 21,362 टन नाभिकीय अपशिष्ट था।
- रेडियोधर्मिता के स्तर के आधार पर भंडारण की अवधि कुछ सहस्राब्दियों (1000 वर्ष) तक चल सकती है, क्योंकि उन्हें ऐसे समय के लिये मानव संपर्क से अलग करना पड़ता है जो ग्रह पर शारीरिक रूप से आधुनिक होमो सेपियन्स की तुलना में अधिक लंबा है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में तरल अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ भी होती हैं।
- जापान वर्तमान में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र से उपचार के बाद ऐसे पानी को प्रशांत महासागर में छोड़ रहा है।
- इस तरह के अन्य अपशिष्ट को, उनके खतरे के आधार पर, वाष्पित किया जा सकता है या "रासायनिक रूप से अवक्षेपित" किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि कीचड़ वाले पदार्थ को या तो ठोस पदार्थों द्वारा भिगोकर या जलाकर प्रबंधित किया जा सकता है।
- तरल उच्च-स्तरीय अपशिष्ट में "ईंधन में उत्पादित लगभग सभी विखंडन उत्पाद" होते हैं। इसे एक भंडारण योग्य ग्लास बनाने के लिये विट्रीफाइड किया जाता है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में तरल अपशिष्ट उपचार सुविधाएँ भी होती हैं।
- कुछ विशेषज्ञ भूवैज्ञानिक निपटान का समर्थन करते हैं, जहाँ अपशिष्ट को विशेष कंटेनरों में सील कर दिया जाता है और ग्रेनाइट या मिट्टी में भूमिगत दबा दिया जाता है।
- प्रयुक्त ईंधन से निपटने का दूसरा तरीका पुनर्प्रसंस्करण है- जो खर्च किये गए ईंधन में विखंडनीय सामग्री को गैर-विखंडनीय सामग्री से अलग करता है।
- सामग्री को गैर-विखंडनीय सामग्री से बची हुई विखंडनीय सामग्री को अलग करने के लिये रासायनिक रूप से उपचारित किया जाता है।
- क्योंकि प्रयुक्त ईंधन इतना खतरनाक होता है, पुनर्प्रसंस्करण सुविधाओं को विशेष सुरक्षा और स्वयं के कर्मियों की आवश्यकता होती है।
- ऐसी सुविधाएँ उच्च ईंधन दक्षता का लाभ प्रदान करती हैं लेकिन महँगी भी होती हैं।
- पुनर्संसाधन से हथियार-उपयोग योग्य (हथियार-ग्रेड से भिन्न) प्लूटोनियम भी प्राप्त होता है।
- हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम अत्यधिक शुद्ध (Pure) है, जो कुशल और कॉम्पैक्ट परमाणु हथियारों के लिये आदर्श है।
- रिएक्टर-ग्रेड या विखंडित हथियारों सहित हथियार-उपयोग योग्य प्लूटोनियम के लिये अधिक सामग्री या विशेष डिज़ाइन की आवश्यकता हो सकती है, जो दक्षता और डिज़ाइन विकल्पों को प्रभावित कर सकती है।
परमाणु अपशिष्ट के प्रबंधन में क्या चुनौतियाँ हैं?
- भूवैज्ञानिक निपटान रिसाव: परमाणु अपशिष्ट के भूवैज्ञानिक निपटान से रेडियोधर्मी सामग्री के मनुष्यों के संपर्क में आने का खतरा उत्पन्न हो जाता है, उदाहरण के लिये, आस-पास की खुदाई गतिविधियों के माध्यम से कंटेनरों में गड़बड़ी हो जाती है।
- उदाहरण: वेस्ट आइसोलेशन पायलट प्लांट, यूएस, के पास कुछ सहस्राब्दियों के लिये कचरे को संग्रहीत करने का लाइसेंस है। वर्ष 2014 में साइट पर एक दुर्घटना के कारण थोड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री पर्यावरण में फैल गई जिससे इसके रखरखाव में गंभीर विफलताओं का पता चला।
- निजी क्षेत्र का बहिष्कार: निजी क्षेत्र की भागीदारी अक्सर प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार प्रोत्साहन के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना, अधिक कुशल और प्रभावी परमाणु अपशिष्ट उपचार के लिये नई प्रौद्योगिकियों तथा प्रक्रियाओं को विकसित करने हेतु प्रोत्साहन कम हो सकता है।
- अप्रयुक्त निधि: अमेरिका के परमाणु अपशिष्ट नीति अधिनियम, 1982 में कहा गया है कि परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न बिजली का एक हिस्सा 'परमाणु अपशिष्ट कोष' को आवंटित किया जाएगा, जो भूवैज्ञानिक निपटान सुविधा को वित्तपोषित करेगा।
- जुलाई 2018 तक 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड जमा होने के बावजूद, फंड को अपने इच्छित उद्देश्य के लिये अप्रयुक्त रहने हेतु आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का अभाव: हितधारकों में अक्सर सहयोग की कमी होती है, जिससे परमाणु अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में बाधा आती है। चूँकि परमाणु अपशिष्ट एक वैश्विक मुद्दा है, इसलिये ज्ञान साझा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने और परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने वाले सभी देशों में ज़िम्मेदार प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।
भारत परमाणु अपशिष्ट से कैसे निपटता है?
- इंटरनेशनल पैनल ऑन फिशाइल मैटेरियल्स (IPFM) की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ट्रॉम्बे, तारापुर और कलपक्कम में पुनर्संसाधन संयंत्र हैं।
- ट्रॉम्बे सुविधा चरण-II रिएक्टरों के साथ-साथ परमाणु हथियारों हेतु प्लूटोनियम का उत्पादन करने के लिये दो अनुसंधान रिएक्टरों से खर्च किये गए ईंधन के रूप में प्रति वर्ष 50 टन भारी धातु (tHM/y) का पुनर्संसाधन करती है।
- तारापुर में स्थित दो रिएक्टरों में से एक का उपयोग कुछ दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों (चरण-I) से 100 tHM/y ईंधन को पुन: संसाधित करने के लिये किया जाता है और दूसरे रिएक्टर का संचालन वर्ष 2011 से शुरू हुआ जिसकी क्षमता 100 tHM/y है।
- कलपक्कम में स्थित तीसरे रिएक्टर की क्षमता 100 tHM/y है।
- रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि तारापुर और कलपक्कम में स्थित रिएक्टरों की संयुक्त औसत क्षमता कारक लगभग 15% है।
आगे की राह
- पुनः संसाधित करना (रि-प्रोसेसिंग): इसमें उपयोग किये गए नाभिकीय ईंधन से उपयोग योग्य सामग्रियों को अलग करना शामिल है। पुनर्संसाधन से प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे मूल्यवान तत्त्वों के पुनर्चक्रण में सहायता मिलती है, जिससे उच्च-स्तरीय अपशिष्ट की मात्रा कम हो जाती है जिसके लिये दीर्घकालिक भंडारण की आवश्यकता होती है।
- विट्रीफिकेशन: इस प्रक्रिया में रेडियोधर्मी अपशिष्ट को काँच में परिवर्तित करना शामिल है जो अपशिष्ट के हानिकारक घटकों को स्थिर करता है और पर्यावरण में इसके रिसाव को रोकता है।
- इसका उपयोग उच्च-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्ट के लिये किया जाता है और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद करता है।
- अनुसंधान और विकास: नाभिकीय अपशिष्ट प्रबंधन के लिये निपटान के वैकल्पिक विधियों और नवीन प्रौद्योगिकियों का पता लगाने के लिये अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है।
- इसमें अपशिष्ट की रोकथाम करने हेतु उन्नत सामग्रियों का अन्वेषण करना, निपटान के भूवैज्ञानिक विकल्पों की खोज करना और अधिक कुशल अपशिष्ट उपचार प्रक्रियाओं को विकसित करना शामिल है।
- नियामक निरीक्षण: नाभिकीय अपशिष्ट की सुरक्षित हैंडलिंग, परिवहन और भंडारण सुनिश्चित करने के लिये सख्त नियामक ढाँचे की आवश्यकता है। भारत की नियामक अभिकरण सुरक्षा मानकों के अनुपालन का अनुवीक्षण करते हैं और नाभिकीय अपशिष्ट से संबंधित पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिये नियम लागू करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: नाभिकीय अपशिष्ट का प्रबंधन एक वैश्विक मुद्दा है। परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने वाले सभी देशों में ज्ञान साझा करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने और उत्तरदायी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत 'अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर' (International Thermonuclear Experimental Reactor) का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है। यदि यह प्रयोग सफल हो जाता है तो भारत का तात्कालिक लाभ क्या है? (2016) (a) यह विद्युत उत्पादन के लिये यूरेनियम के स्थान पर थोरियम प्रयुक्त कर सकता है। उत्तर: (d) प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य है: (2011) (a) न्यूट्रॉन की गति धीमा करना। उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का। उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सवृद्धि तथा विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017) |
शासन व्यवस्था
एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:एक राष्ट्र, एक चुनाव, नगर पालिकाएँ और पंचायतें, भारत का चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग, अनुच्छेद 356 मेन्स के लिये:एक साथ चुनाव, महत्त्व और चुनौतियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
चुनाव सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया है।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट इस महत्त्वपूर्ण बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिये संविधान में व्यापक सिफारिशों और संशोधनों की रूपरेखा तैयार करती है।
एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें क्या हैं?
- एक साथ चुनाव के लिये संक्रमण:
- अनुच्छेद 82A में संशोधन:
- समिति राष्ट्रपति को लोकसभा और विधान सभाओं के एक साथ चुनाव शुरू करने के लिये "नियत तारीख" निर्दिष्ट करने का अधिकार देने के लिये संविधान के अनुच्छेद 82A में संशोधन करने का सुझाव देती है।
- इस तारीख के बाद जिन राज्य विधानसभाओं में चुनाव होने हैं, वे एक साथ चुनाव कराने की सुविधा के लिये अपनी शर्तों को संसद के साथ समन्वयित कर लेंगी।
- अवधि समन्वयन (Term Synchronization):
- यदि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है और लागू किया जाता है, तो संभवतः पहला एक साथ चुनाव वर्ष 2029 में हो सकता है।
- वैकल्पिक रूप से यदि वर्ष 2034 के चुनावों को लक्षित किया जाता है, तो वर्ष 2029 के लोकसभा चुनावों के बाद नियत तारीख की पहचान की जाएगी।
- जिन राज्यों में जून 2024 और मई 2029 के बीच चुनाव होने हैं, उनका कार्यकाल 18वीं लोकसभा के साथ समाप्त हो जाएगा, भले ही इसके परिणामस्वरूप कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल एक बार के उपाय के रूप में पाँच साल से कम हो।
- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु (2026), पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (2027) और कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना (2028) जैसे राज्य अपने चुनावी चक्र को समन्वयित (synchronise) करेंगे।
- वर्ष 2024 के चुनावों के बाद चुनी गई सरकार अपनी प्राथमिकता के आधार पर वर्ष 2029 या 2034 को लक्ष्य करते हुए एक साथ चुनाव लागू करने के लिये शुरुआती बिंदु तय करेगी।
- संसद या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने की स्थिति में समन्वय बनाए रखने के लिये, समिति ने एक साथ चुनावों के अगले चक्र तक केवल शेष कार्यकाल या "असमाप्त अवधि (unexpired term)" के लिये नए चुनाव कराने की सिफारिश की।
- यह उपाय सुनिश्चित करता है कि कोई भी त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव एक साथ चुनावों की समग्र समय-सीमा को प्रभावित नहीं करता है।
- यदि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है और लागू किया जाता है, तो संभवतः पहला एक साथ चुनाव वर्ष 2029 में हो सकता है।
- अनुच्छेद 82A में संशोधन:
- स्थानीय निकाय चुनावों का समन्वयन:
- संसद को आम चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों का समन्वय सुनिश्चित करने के लिये संभवतः अनुच्छेद 324A की शुरुआत के माध्यम से कानून बनाने की सलाह दी जाती है।
- यह कानून स्थानीय निकायों की शर्तों को निर्धारित करेगा और उनके चुनाव कार्यक्रम को राष्ट्रीय चुनावी समय-सीमा के साथ संरेखित करेगा।
- मतदाता सूची तैयार करना एवं प्रबंधन:
- समिति संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव देती है ताकि भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के परामर्श से सरकार के सभी स्तरों पर लागू एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान-पत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सके।
- लोकसभा के लिये मतदाता सूची ECI द्वारा तैयार और रखरखाव की जाती है, जबकि स्थानीय निकायों के लिये मतदाता सूची SEC द्वारा तैयार की जाती है।
- समिति पुनर्मतदान को रोकने और मतदाता अधिकारों की सुरक्षा के लिये ECI तथा राज्य चुनाव आयोगों के बीच सामंजस्य के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
- समिति संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव देती है ताकि भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के परामर्श से सरकार के सभी स्तरों पर लागू एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान-पत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सके।
- लॉजिस्टिक व्यवस्थाएँ और व्यय अनुमान:
- समिति ECI से एक साथ चुनावों के लिये विस्तृत आवश्यकताएँ और व्यय अनुमान प्रस्तुत करने को कहती है।
- निर्बाध लॉजिस्टिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये समिति ECI और SECs से व्यापक योजनाएँ तथा अनुमान विकसित करने का आग्रह करती है।
- इन योजनाओं में उपकरण की आवश्यकताएँ, कर्मियों की तैनाती और सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये।
- शासन और विकास पर प्रभाव:
- समिति प्रभावी निर्णय लेने और सतत् विकास के लिये शासन में निश्चितता के महत्त्व को रेखांकित करती है।
- यह नीतिगत पंगुता को रोकने और प्रगति के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने में समकालिक चुनावों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
एक साथ चुनाव के संबंध में विवाद क्या हैं?
- पक्ष में तर्क:
- लागत क्षमता:
- एक साथ चुनाव कराने से राज्य और केंद्र दोनों सरकारों द्वारा किये जाने वाले पर्याप्त आवर्ती व्यय में कमी आती है।
- चुनावों को एक कार्यक्रम में समेकित करने से मतदाता पंजीकरण, मतदान केंद्र, चुनाव कर्मचारी, सुरक्षा तैनाती और अन्य लॉजिस्टिक संबंधी आवश्यकताओं से जुड़ी लागत कम हो जाती है।
- सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची के साथ, सुरक्षा बलों और नागरिक अधिकारियों जैसे प्रशासनिक संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग किया जाता है, जिससे सार्वजनिक धन की बचत होती है जिसे अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिये पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।
- उन्नत शासन एवं प्रशासन:
- एक साथ चुनाव होने से चुनावी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासन पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।
- अलग-अलग चुनावों के दौरान सुरक्षा और पुलिस बलों की लंबे समय तक तैनाती राष्ट्रीय सुरक्षा तथा कानून प्रवर्तन प्रयासों पर दबाव डाल सकती है, जिसे एक साथ चुनाव कराकर कम किया जा सकता है।
- अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादले और अलग-अलग चुनावों के दौरान आचार संहिता के कारण होने वाला व्यवधान सरकारी मशीनरी के सुचारु कामकाज में बाधा डाल सकता है, जिसे समकालिक चुनावों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
- एक साथ चुनाव होने से चुनावी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासन पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।
- राजनीति में धन का प्रभाव कम होना:
- एक साथ चुनाव कराने से चुनाव अभियानों की आवृत्ति और संबंधित खर्चों को कम करके राजनीति में धन की भूमिका को कम किया जा सकता है।
- अभियान वित्त नियमों को ECI द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है, जिससे सभी दलों और उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित होंगे।
- एक साथ चुनाव कराने से चुनाव अभियानों की आवृत्ति और संबंधित खर्चों को कम करके राजनीति में धन की भूमिका को कम किया जा सकता है।
- विभाजनकारी राजनीति का शमन:
- 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' की अवधारणा का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करने में क्षेत्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विभाजनकारी प्रभाव को कम करना है।
- राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके और एकीकृत चुनावी एजेंडे को बढ़ावा देकर, एक साथ चुनाव संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
- 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' की अवधारणा का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करने में क्षेत्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विभाजनकारी प्रभाव को कम करना है।
- मतदाता सहभागिता में वृद्धि:
- विभिन्न स्तरों पर बार-बार होने वाले चुनावों से उत्पन्न होने वाली वोटर फेटीग को एक ही कार्यक्रम में एकत्रित करके कम किया जा सकता है।
- एक साथ चुनाव मतदाताओं की उदासीनता को कम करके और प्रत्येक चुनावी अभ्यास के महत्त्व को बढ़ाकर संभावित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर मतदान प्रतिशत बढ़ा सकते हैं।
- लागत क्षमता:
- एक साथ चुनाव के खिलाफ तर्क:
- संघवाद और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
- एक साथ चुनाव, चुनावी प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके और संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करके संघवाद के सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकते हैं।
- घटक राज्य, विशेष रूप से वे जो राष्ट्रीय स्तर पर गैर-प्रमुख दलों द्वारा शासित हैं, समकालिक चुनाव परिदृश्य में हाशिए पर या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व महसूस कर सकते हैं।
- संविधान में निहित संघीय भावना को कमज़ोर करते हुए, राष्ट्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय पार्टियों पर अनुचित लाभ प्राप्त कर सकती हैं।
- एक साथ चुनाव, चुनावी प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके और संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करके संघवाद के सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकते हैं।
- लागत निहितार्थ:
- एक साथ चुनावों के कार्यान्वयन के लिये अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल की खरीद में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
- विधान परिषदों/राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों और उप-चुनावों के लिये अभी भी अलग-अलग मतदान आयोजनों की आवश्यकता होगी, जो समकालिक चुनावों के बावजूद चल रही लागत में योगदान देगा।
- जवाबदेही और प्रतिनिधित्व पर प्रभाव:
- सरकार के विभिन्न स्तरों पर बार-बार चुनाव होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच जवाबदेही बनाए रखने में मदद मिलती है और मतदाताओं को अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने के नियमित अवसर सुनिश्चित होते हैं।
- चुनावों को समकालिक करने से चुनावी जवाबदेही जाँच की आवृत्ति कम हो सकती है और निर्वाचित अधिकारियों की अपने मतदाताओं की बढ़ती आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेही सीमित हो सकती है।
- सरकार के विभिन्न स्तरों पर बार-बार चुनाव होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच जवाबदेही बनाए रखने में मदद मिलती है और मतदाताओं को अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने के नियमित अवसर सुनिश्चित होते हैं।
- आवश्यक संवैधानिक संशोधन:
- भारत का संसदीय लोकतंत्र लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके पाँच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करने की अनुमति देता है।
- सभी सदनों के लिये पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल अवधि और विघटन से संबंधित अनुच्छेद 83, 85, 172 तथा 174 में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है।
- एक साथ चुनावों को समायोजित करने के लिये राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को नियंत्रित करने वाले अनुच्छेद 356 में संशोधन की भी आवश्यकता होगी।
- भारत का संसदीय लोकतंत्र लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके पाँच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करने की अनुमति देता है।
- सुरक्षा निहितार्थ:
- एक साथ चुनावों के दौरान, चुनाव ड्यूटी के लिये बड़े सुरक्षा बलों को तैनात करना संभावित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर कर सकता है, क्योंकि यह उन्हें सीमा सुरक्षा से विचलित कर देता है।
- संघवाद और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
एक साथ चुनाव के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
संवैधानिक प्रावधान |
विवरण |
अनुच्छेद 83 |
लोकसभा (लोगों का सदन) की अवधि निर्दिष्ट करती है, जिसमें कहा गया है, कि यह अपनी पहली बैठक से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी जब तक कि पहले भंग न हो जाए। |
अनुच्छेद 172 |
राज्य विधान सभाओं की अवधि से संबंधित, यह घोषणा करते हुए कि एक विधान सभा अपनी पहली बैठक की तारीख से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी। |
निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची की तैयारी और संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों की निगरानी, निर्देशन एवं नियंत्रण करने के लिये सशक्त बनाना। |
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संवैधानिक शासन की विफलता के मामले में किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देता है, जिससे राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्ष शासन किया जाता है। |
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भारत में चुनाव कराने के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें मतदाता सूची, सदस्यता के लिये योग्यता और चुनाव आचरण जैसे पहलू शामिल हैं। |
भारत में एक साथ चुनाव का इतिहास
- भारत में एक साथ चुनाव, जहाँ लोकसभा तथा राज्य विधानसभाएँ दोनों एक साथ निर्वाचित होते थे, आज़ादी के बाद शुरुआती वर्षों में 1952, 1957 एवं 1962 में प्रचलित थे।
- हालाँकि, राजनीतिक अस्थिरता, राज्य विधानसभाओं के शीघ्र विघटन और क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिये अलग-अलग चुनावों की आवश्यकता जैसे विभिन्न कारकों के कारण, एक साथ चुनावों की प्रथा धीरे-धीरे खत्म हो गई।
- वर्ष 2019 में, केवल चार राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए।
एक साथ/समकालिक चुनाव वाले देश
- दक्षिण अफ्रीका:
- नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव हर 5 वर्ष में एक साथ होते हैं।
- दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली द्वारा किया जाता है।
- स्वीडन:
- स्वीडन के प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
- जर्मनी:
- जर्मनी के चांसलर का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
- चांसलर में विश्वास की कमी को केवल उत्तराधिकारी चुनकर ही दूर किया जा सकता है।
- ब्रिटेन:
- ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता तथा पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद प्रत्येक 5वें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
एक साथ/समकालिक चुनाव के संबंध में विभिन्न अन्य सिफारिशें क्या हैं?
- पिछली रिपोर्ट:
- एक साथ/समकालिक चुनाव के मुद्दे को विधि आयोग (1999) और कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर संसदीय स्थायी समिति (2015) की रिपोर्टों में हल किया गया है। इसके अतिरिक्त, विधि आयोग ने वर्ष 2018 में एक प्रारूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- सिफारिशों का सारांश:
- क्लबिंग चुनाव:
- प्रस्तावों में लोकसभा चुनावों को लगभग आधे राज्य विधानसभा चुनावों के साथ एक चक्र में जोड़ने का सुझाव दिया गया है, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों को ढाई वर्ष बाद दूसरे चक्र में कराने का सुझाव दिया गया है।
- इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित करने हेतु संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- प्रस्तावों में लोकसभा चुनावों को लगभग आधे राज्य विधानसभा चुनावों के साथ एक चक्र में जोड़ने का सुझाव दिया गया है, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों को ढाई वर्ष बाद दूसरे चक्र में कराने का सुझाव दिया गया है।
- अविश्वास प्रस्ताव:
- लोकसभा या विधानसभा में किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने का विश्वास प्रस्ताव भी होना चाहिये।
- यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा का विघटन अपरिहार्य है, तो नवगठित सदन को विघटन को हतोत्साहित और वैकल्पिक सरकार बनाने की खोज को प्रोत्साहित करने के लिये मूल सदन की केवल शेष अवधि में ही काम करना चाहिये।
- लोकसभा या विधानसभा में किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने का विश्वास प्रस्ताव भी होना चाहिये।
- उप-चुनाव:
- सदस्यों की मृत्यु, इस्तीफे या अयोग्यता के कारण होने वाले उपचुनावों को दक्षता के लिये एक साथ समूहीकृत किया जा सकता है और वर्ष में एक बार आयोजित किया जा सकता है।
- क्लबिंग चुनाव:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. “लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही समय में चुनाव, चुनाव-प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।” (2017) |
जैव विविधता और पर्यावरण
IPCC रिपोर्ट एवं जलवायु परिवर्तन शमन में समानता
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल, एकीकृत मूल्यांकन मॉडल (IAM), कार्बन कैप्चर और स्टोरेज, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन मेन्स के लिये:IPCC रिपोर्ट एवं जलवायु परिवर्तन शमन में समानता, पर्यावरण प्रदूषण तथा गिरावट |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल द्वारा मूल्यांकन किये गए 500 से अधिक भविष्य के उत्सर्जन परिदृश्यों पर प्रकाश डाला गया। ये परिदृश्य दुनिया के जलवायु प्रक्षेपवक्र हेतु अनुमान प्रस्तुत करते हैं।
- अध्ययन के निष्कर्ष IPCC रिपोर्ट के जलवायु कार्रवाई के अनुमानित मार्गों के अंर्तगत महत्त्वपूर्ण असमानताओं पर प्रकाश डालते हैं।
IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट क्या हैं?
- परिचय:
- IPCC नियमित रूप से व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करती है जो जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक साहित्य का संश्लेषण करती है।
- इन रिपोर्टों में भौतिक विज्ञान, जलवायु अनुकूलन एवं शमन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाले तीन कार्य समूह मूल्यांकन शामिल हैं, साथ ही उनके निष्कर्षों को समेकित करने वाली एक संश्लेषण रिपोर्ट भी शामिल है।
- भविष्य के परिदृश्यों का आकलन:
- IPCC यह अनुमान लगाने के लिये 'मॉडल किये गए मार्गों' का उपयोग करता है कि पृथ्वी की सतह के तापमान को सीमित करने के लिये क्या करना होगा।
- ये मार्ग इंटीग्रेटेड असेसमेंट मॉडल (IAM) का उपयोग करके तैयार किये गए हैं जो मानव एवं पृथ्वी प्रणालियों का वर्णन करते हैं।
- IAM जटिल मॉडल हैं जो ऊर्जा एवं जलवायु प्रणालियों के साथ अर्थव्यवस्थाओं के संभावित भविष्य की जाँच भी करते हैं।
- इसके व्यापक आर्थिक मॉडल सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित विकास स्तर का संकेत दे सकते हैं; इसके ऊर्जा मॉडल भविष्य की खपत का अनुमान लगा सकते हैं। इसके ऊर्जा मॉडल भविष्य की मांग का पूर्वानुमान लगा सकते हैं, वनस्पति मॉडल भूमि-उपयोग परिवर्तनों की जाँच कर सकते हैं और पृथ्वी-प्रणाली मॉडल यह समझाने के लिये भौतिक नियम लागू करते हैं कि जलवायु कैसे विकसित होती है।
- विभिन्न विषयों में इस तरह के एकीकरण के साथ, IAMs का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई पर नीति-प्रासंगिक दिशा-निर्देश प्रदान करना है।
- हालाँकि इन मॉडलों में कमियाँ भी हैं। वे कम-से-कम लागत वाले आकलन को प्राथमिकता देते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत में सौर संयंत्र स्थापित करने या वनीकरण करने की पूर्ण लागत अमेरिका की तुलना में कम है।
- हालाँकि विशेषज्ञों ने देशों को जलवायु कार्रवाई के बोझ को समान रूप से साझा करने में सक्षम बनाने के परिदृश्य को सुविधाजनक बनाने का सुझाव दिया है, जिसमें विकसित देश त्वरित और व्यापक शमन उपाय कर रहे हैं।
- IPCC यह अनुमान लगाने के लिये 'मॉडल किये गए मार्गों' का उपयोग करता है कि पृथ्वी की सतह के तापमान को सीमित करने के लिये क्या करना होगा।
नए अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?
- छठी आकलन रिपोर्ट के तहत जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के शोधकर्त्ताओं ने 556 परिदृश्यों का विश्लेषण किया। जिसमें अनुमान लगाया गया है, कि वर्ष 2050 तक, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण, पश्चिम तथा पूर्वी एशिया (चीन को छोड़कर) सहित विश्व की 60% आबादी वाले क्षेत्रों में अभी भी वैश्विक औसत प्रति व्यक्ति जीडीपी से कम रहेगा।
- वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच वस्तुओं, ऊर्जा तथा जीवाश्म ईंधन की खपत में समान असमानताएँ विद्यमान हैं।
- इसके अलावा, इन परिदृश्यों से संकेत मिलता है, कि विकासशील देशों को कार्बन पृथक्करण और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज प्रौद्योगिकियों के मामले में अधिक लागत वहन करना होगी।
- यह गलत तरीके से गरीब देशों पर शमन और कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की ज़िम्मेदारी डालता है।
- शोधकर्त्ता धनी देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी की अनदेखी करने और विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ग्लोबल साउथ की ऊर्जा ज़रूरतों को संबोधित करने में विफल रहने हेतु परिदृश्यों की आलोचना करते हैं।
- यह जलवायु कार्रवाई के अनुमानित मार्गों के भीतर महत्त्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करता है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में समानता क्यों मायने रखती है?
- ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी:
- धनी देशों, विशेष रूप से वैश्विक उत्तर में, ने ऐतिहासिक रूप से औद्योगीकरण और आर्थिक विकास के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान दिया है।
- इन ऐतिहासिक उत्सर्जनों ने जलवायु परिवर्तन में असंगत रूप से योगदान दिया है।
- जलवायु परिवर्तन से निष्पक्षता से निपटने के लिये इस ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को पहचानना आवश्यक है।
- विकासशील देशों की असुरक्षा:
- विकासशील देश, जो अक्सर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये सबसे कम ज़िम्मेदार होते हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। उनके पास अक्सर जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों जैसे चरम मौसम की घटनाओं, समुद्र के स्तर में वृद्धि और बदलती कृषि स्थितियों के अनुकूल संसाधनों तथा बुनियादी ढाँचे की कमी होती है।
- यह सुनिश्चित करने में समानता के विचार महत्त्वपूर्ण हैं कि कमज़ोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिये आवश्यक समर्थन और संसाधन प्राप्त हों।
- संसाधनों तक पहुँच:
- विकसित और विकासशील देशों के बीच शमन और अनुकूलन प्रयासों के लिये संसाधनों तक पहुँच असमान है।
- अमीर देशों के पास आमतौर पर नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचे और अनुकूलन उपायों में निवेश करने के लिये अधिक वित्तीय संसाधन, तकनीकी क्षमताएँ तथा बुनियादी ढाँचा होता है।
- निष्पक्षता विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये जलवायु वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण सहायता तक एकसमान पहुँच सुनिश्चित करती है।
- सामाजिक न्याय:
- जलवायु परिवर्तन देशों के बीच मौजूदा सामाजिक असमानताओं और अन्याय को व्यापक बनता है। हाशिए पर जीवन यापन करने वाले समूह, मूल निवासी और कम आय अर्जित करने वाली आबादी सहित सुभेद्य समुदाय को अमूमन जलवायु प्रभावों का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
- जलवायु कार्रवाई में समानता में इन सामाजिक अन्यायों का समाधान करना और जलवायु नीतियों तथा उपायों से समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित लोग का लाभ सुनिश्चित करना शामिल है।
- वैश्विक सहयोग:
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में सार्थक प्रगति हासिल करने के लिये वैश्विक सहयोग और एकजुटता की आवश्यकता है।
- समानता के सिद्धांत, जैसे कि एकसमान किंतु विभेदित उत्तरदायित्व, जलवायु परिवर्तन का समाधान करने में देशों की अलग-अलग क्षमताओं और उत्तरदायित्व को स्वीकार कर सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
- जलवायु कार्रवाई में समानता सुनिश्चित करने से विश्वास जनित होता है और साझा जलवायु लक्ष्यों की दिशा में कार्य करने के लिये राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC):
- परिचय:
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों व भविष्य के जोखिमों तथा अनुकूलन एवं शमन के विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करना था।
- IPCC के आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को जलवायु-संबंधी नीतियाँ विकसित करने के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं जिनको आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय में वार्ता की जाती है।
- IPCC आकलन रिपोर्ट:
- वर्ष 1988 के बाद से, IPCC ने छह मूल्यांकन चक्र चलाए हैं और छह आकलन रिपोर्टें दी हैं, जो विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यापक वैज्ञानिक रिपोर्ट हैं। वे हैं –
- पहली आकलन रिपोर्ट (FAR) (1990)
- दूसरी आकलन रिपोर्ट (SAR) (1995)
- तीसरी आकलन रिपोर्ट (TAR) (2001)
- चौथी आकलन रिपोर्ट (AR4) (2007)
- पाँचवीं आकलन रिपोर्ट (AR5) (2014)
- छठी आकलन रिपोर्ट(AR6) (2023)
- IPCC वर्तमान (2024) में अपने सातवें आकलन चक्र (AR7) में है।
- वर्ष 1988 के बाद से, IPCC ने छह मूल्यांकन चक्र चलाए हैं और छह आकलन रिपोर्टें दी हैं, जो विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यापक वैज्ञानिक रिपोर्ट हैं। वे हैं –
निष्कर्ष
- IPCC परिदृश्यों और UNFCCC में उल्लिखित सिद्धांतों का विश्लेषण विकसित तथा विकासशील देशों के बीच जलवायु कार्रवाई ज़िम्मेदारियों में महत्त्वपूर्ण असमानताओं को उजागर करता है।
- समानता और विभेदित ज़िम्मेदारियों के सिद्धांतों के बावजूद, वर्तमान शमन मार्ग प्रायः राष्ट्रों की ऐतिहासिक तथा आर्थिक वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
- इसके साथ ही समानता और निष्पक्षता को प्राथमिकता देने के लिये जलवायु कार्रवाई रणनीतियों को फिर से व्यवस्थित करना अनिवार्य है। इसमें विकसित देशों के महत्त्वपूर्ण दायित्व को स्वीकार करना तथा शमन प्रयासों के संबंध में अल्प विकसित क्षेत्रों पर न्यायसंगत दायित्व सुनिश्चित करना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: b मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |
भूगोल
अवैध प्रवासन का संकट
प्रिलिम्स के लिये:इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन, मिसिंग माइग्रेंट्स प्रोजेक्ट, इंटरनल माइग्रेशन, डंकी फ्लाइट, सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन के लिये ग्लोबल कॉम्पैक्ट मेन्स के लिये:समग्र विश्व में प्रवासन की स्थिति, प्रवासियों के सम्मुख प्रमुख चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन (International Organization for Migration- IOM) ने कहा है कि वर्ष 2023 में विश्व भर में थल और समुद्री मार्गों पर कुल 8,565 प्रवासियों की मृत्यु हो गई।
- IOM ने बताया कि वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में प्रवासी मौतों की संख्या लगभग 20% बढ़ गई।
- IOM द्वारा वर्ष 2014 में स्थापित "लापता प्रवासी" परियोजना इन आँकड़ों पर नज़र रखती है और इसे भूमध्य सागर में मौतों में वृद्धि तथा इतालवी द्वीप लैम्पेडुसा पर प्रवासियों की आमद के बाद शुरू किया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन क्या है?
- परिचय:
- द्वितीय विश्व युद्ध की उथल-पुथल के बाद यूरोप से प्रवासियों के आंदोलन के लिये अनंतिम अंतर सरकारी समिति (PICMME) के रूप में वर्ष 1951 में अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन की शुरुआत हुई।
- वर्ष 1952 में इसका नाम PICMME से बदलकर इंटरगवर्नमेंटल कमेटी फॉर यूरोपियन माइग्रेशन (ICEM), वर्ष 1980 में इंटरगवर्नमेंटल कमेटी फॉर माइग्रेशन (ICM) और अंततः वर्ष 1989 में इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन कर दिया गया, जो एक प्रवासन एजेंसी के रूप में इसके विकास को दर्शाता है।
- वर्ष 2016 में, IOM ने संयुक्त राष्ट्र के साथ एक समझौता किया, जो एक संबंधित संगठन बन गया।
- सदस्य: वर्तमान में इसके 175 सदस्य राज्य और 8 राज्य पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त हैं। भारत 18 जून 2008 को IOM सदस्य राज्य बन गया।
- संकटग्रस्त प्रबंधन: अपने पूरे इतिहास में, IOM ने विभिन्न संकटों जैसे वर्ष 1956 में हंगरी, वर्ष 1968 में चेकोस्लोवाकिया, वर्ष 1973 में चिली, वर्ष 1975 में वियतनामी बोट पीपल, वर्ष 1990 में कुवैत, वर्ष 1999 में कोसोवो और तिमोर तथा वर्ष 2004/2005 के एशियाई सुनामी एवं पाकिस्तान भूकंप पर प्रतिक्रिया दी है।
विश्व में प्रवासन की स्थिति क्या है?
- परिचय: प्रवासन से तात्पर्य लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से है, जिसमें आमतौर पर निवास में परिवर्तन शामिल होता है।
- यह आंदोलन एक देश के भीतर (आंतरिक प्रवासन) या देशों के बीच (अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन) हो सकता है।
- यह व्यक्ति के इरादों और परिस्थितियों के आधार पर अस्थायी या स्थायी हो सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन के अनुसार, प्रवासी वर्तमान में वैश्विक आबादी का 36% हिस्सा हैं।
- प्रमुख कारण:
- आर्थिक कारण: लोग अक्सर बेहतर रोज़गार के अवसरों, उच्च वेतन, बेहतर जीवन स्तर और शिक्षा तथा स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच की तलाश में पलायन करते हैं।
- संघर्ष और युद्ध: सशस्त्र संघर्ष, गृह युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता लोगों को अपने क्षेत्रों से पलायन तथा सुरक्षित क्षेत्रों या देशों में शरण लेने के लिये मजबूर कर सकती है।
- पर्यावरणीय कारक: प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- बाढ़, सूखा, तूफान, भूकंप और जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रभाव आबादी को विस्थापित कर सकते हैं, जिससे प्रवासन हो सकता है।
- सामाजिक और राजनीतिक कारक: भेदभाव, उत्पीड़न, मानवाधिकारों का उल्लंघन, स्वतंत्रता की कमी और राजनीतिक उत्पीड़न व्यक्तियों या समुदायों को शरण लेने या अधिक अनुकूल परिस्थितियों वाले देशों में जाने के लिये मजबूर कर सकते हैं।
- शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी प्रवासन: ग्रामीण निवासी रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और बेहतर जीवन स्तर की तलाश में शहरी क्षेत्रों में जा सकते हैं, जो शहरीकरण की प्रवृत्ति में योगदान देता है।
- अवैध प्रवासियों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियाँ:
- शारीरिक जोखिम और खतरे: अवैध प्रवासियों (जैसे- डंकी फ्लाइट का विकल्प चुनने वाले) को पूरी यात्रा के दौरान कई शारीरिक खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें डेरियन गैप जैसे खतरनाक इलाके, साफ पानी की कमी, जंगली जानवर और आपराधिक गिरोहों से हिंसा का खतरा शामिल है।
- इससे यात्रा के दौरान चोट, बीमारी या यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
- कानूनी स्थिति और अधिकार: गैर-दस्तावेज़ प्रवासियों या अनियमित स्थिति वाले लोगों को अक्सर कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, मौलिक अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच की कमी होती है तथा निर्वासन, हिरासत या शोषण के लगातार खतरे में रहते हैं।
- भेदभाव और ज़ेनोफोबिया: प्रवासियों को उनकी राष्ट्रीयता, जातीयता, धर्म, भाषा या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव, पूर्वाग्रह और शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है, जिससे सामाजिक बहिष्कार, वंचितता तथा असमान व्यवहार हो सकता है।
- तस्करी और शोषण: प्रवासियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों जैसे कमज़ोर समूहों को मानव तस्करी, शोषण, दुर्व्यवहार तथा जबरन श्रम का खतरा है, खासकर अनौपचारिक या अनिश्चित कार्य सेटिंग्स में।
- शारीरिक जोखिम और खतरे: अवैध प्रवासियों (जैसे- डंकी फ्लाइट का विकल्प चुनने वाले) को पूरी यात्रा के दौरान कई शारीरिक खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें डेरियन गैप जैसे खतरनाक इलाके, साफ पानी की कमी, जंगली जानवर और आपराधिक गिरोहों से हिंसा का खतरा शामिल है।
नोट:
- डंकी फ्लाइट (Donkey flight):
- एक शब्द है जिसका उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अनधिकृत प्रवेश चाहने वाले लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली अवैध आप्रवासन तकनीक का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (USCBP) के अनुसार, भारतीय दक्षिण पश्चिम सीमा से अमेरिका में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों का 5वाँ सबसे बड़ा स्रोत हैं।
- अक्तूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच 96,917 भारतीयों को अवैध रूप से अमेरिका में सीमा पार करते हुए पकड़ा गया।
- एक शब्द है जिसका उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अनधिकृत प्रवेश चाहने वाले लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली अवैध आप्रवासन तकनीक का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- डेरियन गैप (Darién Gap):
- डेरीन के इस्तमुस या पनामा के इस्तमुस में एक भौगोलिक क्षेत्र जो मध्य अमेरिका के भीतर अमेरिकी महाद्वीपों को जोड़ता है, जिसमें पनामा के डेरियन प्रांत और कोलंबिया के चोको विभाग के उत्तरी भाग में एक बड़ा जलक्षेत्र, जंगल तथा पहाड़ शामिल हैं।
आगे की राह
- सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन हेतु ग्लोबल कॉम्पैक्ट (GCM): सरकारों, नागरिक समाज और अन्य हितधारकों को शामिल करते हुए एक सहकारी, जन-केंद्रित दृष्टिकोण के माध्यम से प्रवासन चुनौतियों को संबोधित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले ढाँचे में GCM में उल्लिखित उद्देश्यों तथा प्रतिबद्धताओं को लागू करना।
- कानूनी और सुरक्षित रास्ते का विस्तार: प्रवासन के लिये कानूनी और सुरक्षित रास्ते बढ़ाना, जिसमें शरणार्थियों हेतु पुनर्वास कार्यक्रम, परिवार पुनर्मिलन तंत्र, श्रमिक प्रवासन योजनाएँ तथा मानवीय वीजा शामिल हैं।
- इससे डंकी फ्लाइट जैसे खतरनाक और अवैध मार्गों पर निर्भरता कम हो सकती है।
- मानव तस्करी का मुकाबला करना: मानव तस्करी एवं प्रवासियों का शोषण करने वाले तस्करी नेटवर्क से निपटने हेतु कानून प्रवर्तन तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना।
- क्षेत्रीय सहयोग: प्रवास प्रबंधन, सूचना साझाकरण एवं क्षमता निर्माण के लिये संयुक्त रणनीति विकसित करने हेतु मूल, पारगमन और गंतव्य के देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- वापस लौटने वालों को सहायता प्रदान करना: सहायता कार्यक्रम जो लौटने वाले प्रवासियों को उनके समुदायों में पुन: एकीकरण में सहायता करते हैं, जिसमें शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य देखभाल एवं मनोसामाजिक सहायता तक पहुँच शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिये जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा"। खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले किसी राष्ट्र द्वारा नैतिक आयाम के उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021) प्रश्न: बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न : पिछले चार दशकों में भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में आए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015) |