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डेली न्यूज़

  • 17 May, 2022
  • 48 min read
भारतीय राजनीति

मुख्य चुनाव आयुक्त

प्रिलिम्स के लिये:

मुख्य चुनाव आयुक्त, आदर्श आचार संहिता।

मेन्स के लिये:

संवैधानिक निकाय।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति ने राजीव कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त (25वें सीईसी) के रूप में नियुक्त किया।

  • उन्होंने सुशील चंद्रा की जगह ली है

प्रमुख बिंदु

  • भारत के चुनाव आयोग के बारे में:
    • भारत निर्वाचन आयोग जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। 
      • चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 (राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) को संविधान के अनुसार की गई थी। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
    • यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है। 
      • इसका राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। इसके लिये भारत का संविधान अलग से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों हेतु एक आयोग की स्थापना करता है।
    • अनुच्छेद 324: चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है।
    • अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
    • अनुच्छेद 326: लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
    • अनुच्छेद 327: विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति। 
    • अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
    • अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
  • निर्वाचन आयोग की संरचना:
    • निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
    • निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्त, यदि कोई हों, जो राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकता है, से मिलकर बनेगा।
    • वर्तमान में इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो अन्य चुनाव आयुक्त शामिल हैं।
      • राज्य स्तर पर निर्वाचन आयोग की सहायता मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा की जाती है जो आईएएस रैंक का अधिकारी होता है।
  • चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:
    • राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
    • इनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो) तक होता है।
    • इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
  • निष्कासन: 
    • वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
    • मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया की तरह ही पद से हटाया जा सकता है।
  • सीमाएँ:
    • संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
    • संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया है।
    • संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।

ECI की शक्तियाँ और कार्य:

  • प्रशासनिक:
    • संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना।
    • समय-समय पर मतदाता सूची तैयार करना और सभी पात्र मतदाताओं का पंजीकरण करना। 
    • राजनीतिक दलों को मान्यता देना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
    • यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
  • सलाहकार क्षेत्राधिकार और अर्द्ध-न्यायिक कार्य: 
    • संविधान के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों के मौजूदा सदस्यों को निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास सलाहकारी क्षेत्राधिकार है।
      • ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी है, किंतु ऐसे मामले पर राज्यपाल अपनी राय दे सकता है।
    • इसके अलावा चुनाव में भ्रष्ट आचरण के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के मामले, जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सामने आते हैं, इस सवाल पर आयोग की राय के लिये भी भेजा जाता है कि क्या ऐसे व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाएगा और यदि हांँ, तो किस अवधि के लिये।
    • आयोग के पास ऐसे किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है, जो समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्चों का लेखा-जोखा करने में विफल रहा है। 

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विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का चुनाव आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है।
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

विशेष आहरण अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष आहरण अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विशेष आहरण अधिकार मुद्रा टोकरी में युआन के भारांक को बढ़ा दिया, जिससे उत्साहित होकर चीन के केंद्रीय बैंक ने अपने वित्तीय बाज़ारों को और अधिक उदार बनाने का संकल्प लिया।

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प्रमुख बिंदु 

  • IMF ने वर्ष 2016 में चीनी मुद्रा के टोकरी में शामिल होने के बाद से SDR मूल्यांकन की अपनी पहली नियमित समीक्षा में युआन का भारांक 10.92% से बढ़ाकर 12.28% कर दिया है।
  • अमेरिकी डॉलर का भारांक 41.73% से बढ़कर 43.38% हो गया, जबकि यूरो, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड में गिरावट आई।
  • समीक्षा के बाद मुद्राओं के भारांक की रैंकिंग समान है, साथ ही युआन तीसरे स्थान पर बना हुआ है।
  • अप्रैल के अंत से युआन के तेज़ी से मूल्यह्रास के बीच यह परिवर्तन आया क्योंकि यह कोविद-प्रेरित लॉकडाउन और पूंजी बहिर्वाह तथा अमेरिका के साथ अपनी व्यापक मौद्रिक नीति विचलन के कारण घरेलू विकास के धीमा होने की दोहरी मार का सामना कर रहा है।

  विशेष आहरण अधिकार:

  • परिचय: 
    • SDR न तो मुद्रा है और न ही IMF पर दावा। बल्कि, यह आईएमएफ के सदस्यों की स्वतंत्र    रूप से प्रयोग करने योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है। इन मुद्राओं के एवज में एसडीआर का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
    • SDR आईएमएफ और कुछ अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के खाते की इकाई के रूप में कार्य करता है।
    • SDR की मुद्रा कीमत का निर्धारण यूएस डॉलर में मूल्यों को जोड़कर किया जाता है, जो बाज़ार विनिमय दर, मुद्राओं की एक SDR बास्केट पर आधारित होता है।
    • मुद्राओं की SDR बास्केट में यूएस डॉलर, यूरो, जापानी येन, पाउंड स्टर्लिंग एवं चीनी रॅन्मिन्बी (वर्ष 2016 में शामिल) हैं। 
    • SDR मुद्रा के मूल्यों का दैनिक मूल्यांकन (अवकाश को छोड़कर या जिस दिन IMF व्यावसायिक गतिविधियों के लिये बंद हो) होता है एवं मूल्यांकन बास्केट की समीक्षा तथा इसका समायोजन प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है। कोटा (Quotas) को SDRs में इंगित किया गया है।
  • किसी देश का कोटा (आईएमएफ में योगदान की गई राशि) SDR में अंकित होता है।
    • सदस्य देशों का मतदान अधिकार सीधे उनके कोटे से संबंधित होता है। 
    • IMF अपने सदस्यों को उनके मौजूदा कोटा के अनुपात में सामान्य SDR आवंटित करता है।
  •  IMF में भारत का कोटा: 
    • वर्ष 2016 में IMF में कोटा और प्रशासन संबंधी सुधार हुए।
    • इसके अनुसार, भारत का मतदान अधिकार 0.3% बढ़कर 2.3% से 2.6% हो गया है और चीन का मतदान अधिकार 2.2% बढ़कर 3.8% से 6% हो गया है।
    • वर्तमान में भारत के पास IMF में विशेष आहरण अधिकार कोटा का 2.75% और वोट 2.63% है।
    • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में IMF में स्वर्ण भंडार, विदेशी मुद्रा संपत्ति और रिज़र्व ट्रेंच के अलावा अन्य विशेष आहरण अधिकार भी शामिल है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष: 

  • परिचय: 
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व बैंक के साथ IMF की स्थापना युद्ध से तबाह देशों के पुनर्निर्माण में सहायता के लिये की गई थी। 
      • IMF की स्थापना 1945 में हुई थी, यह उन 190देशों द्वारा शासित और उनके प्रति जवाबदेह है जो इसके वैश्विक सदस्य हैं। भारत ने  27 दिसंबर, 1945 को IMF की सदस्यता ग्रहण की।
    •  IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है, यह विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान की प्रणाली है जो देशों (तथा उनके नागरिकों) को एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाती है।
      • वर्ष 2012 में एक कोष के जनादेश  के अंतर्गत वैश्विक स्थिरता से संबंधित सभी व्यापक आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के मुद्दों को शामिल करने के लिये इसको अद्यतित किया गया।
  • IMF की रिपोर्ट

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को IMF के SDR के बास्केट में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है? (2016)

(a) रूबल
(b) रैंड
(c) भारतीय रुपया 
(d) रॅन्मिन्बी 

उत्तर : D


प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मद समूह सम्मिलित है? (2013)

(a) विदेशी मुद्रा संपत्ति, विशेष आहरण अधिकार और विदेशों से ऋण
(b) विदेशी मुद्रा संपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण और विशेष आहरण अधिकार
(c) विदेशी मुद्रा संपत्ति, विश्व बैंक से ऋण और विशेष आहरण अधिकार
(d) विदेशी मुद्रा संपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण और विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: B

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


सामाजिक न्याय

सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व स्वास्थ्य सभा, SDGS, UHC. 

मेन्स के लिये:

सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट, सहायक प्रौद्योगिकी और भारत में प्रौद्योगिकी की स्थिति, विकलांगता से संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने संयुक्त रूप से पहली ‘सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट’ (GReAT) जारी की।

सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट (GReAT) का उद्देश्य:

  • यह रिपोर्ट सहायक प्रौद्योगिकी तक प्रभावी पहुँच पर एक वैश्विक रिपोर्ट तैयार करने हेतु वर्ष 2018 के विश्व स्वास्थ्य सभा के 71वें प्रस्ताव की परिणति है।
  • रिपोर्ट का महत्त्व इसलिये है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जिन लोगों को सहायक तकनीक की आवश्यकता है, उनमें से 90% तक इसकी पहुँच नहीं है। स्वास्थ्य प्रणालियों में सहायक प्रौद्योगिकी को शामिल करना सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • लोगों को सहायक उत्पादों की आवश्यकता: 
    • 2.5 बिलियन से अधिक लोगों को एक या अधिक सहायक उत्पादों की आवश्यकता होती है, जैसे- व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र या संचार और अनुभूति का समर्थन करने से संबंधित एप।
  • लोगों की सहायक उत्पादों तक कम पहुँच: 
    • विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जहाँ सहायक प्रौद्योगिकी तक पहुँच जीवन बदलने वाले उत्पादों की आवश्यकता के 3% जितनी कम हो सकती है, उनमें से लगभग एक अरब लोग सहायक प्रौद्योगिकी तक पहुँच से वंचित हैं।
  • भविष्य में सहायक उत्पादों की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या:
    • बढ़ती उम्र और दुनिया भर में बढ़ती गैर-संचारी बीमारियों के प्रसार के कारण वर्ष 2050 तक एक या एक से अधिक सहायक उत्पादों की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या बढ़कर 3.5 बिलियन हो जाने की संभावना है। 
    • साथ ही इसकी वहनीयता पहुँँच के लिये एक प्रमुख बाधा है।
  • सेवा प्रावधान और प्रशिक्षित कार्यबल में व्याप्त अंतराल:
    • रिपोर्ट में दिखाए गए 70 देशों के एक सर्वेक्षण में विशेष रूप से अनुभूति, संचार और स्वयं की देखभाल के क्षेत्र में सहायक प्रौद्योगिकी के लिये सेवा प्रावधान तथा प्रशिक्षित कार्यबल में बड़ा अंतराल पाया गया है।

सहायक प्रौद्योगिकी:

  • सहायक प्रौद्योगिकी कोई भी वस्तु, उपकरण का भाग, सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या उत्पाद प्रणाली है जिसका उपयोग विकलांग व्यक्तियों की कार्यात्मक क्षमताओं को बढ़ाने, बनाए रखने या सुधारने के लिये किया जाता है।
    • उदाहरण:  
      • कृत्रिम अंग, वॉकर, विशेष स्विच, विशेष प्रयोजन वाले कंप्यूटर, स्क्रीन-रीडर और विशेष पाठ्यचर्या सॉफ़्टवेयर जैसी तकनीकें एवं उपकरण आदि सहायक प्रौद्योगिकी के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • सार्वभौमिक सहायक प्रौद्योगिकी कवरेज का तात्पर्य है कि प्रत्येक ज़रूरतमंद व्यक्ति सभी स्थानों पर सुलभ उन सभी सहायक प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने में सक्षम हो जिसको प्राप्त करने में उसे वित्तीय या अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • डब्ल्यूएचओ द्वारा वर्ष 2018 में शुरू की गई प्राथमिक सहायक उत्पादों की सूची में बुजुर्गों और विकलांग व्यक्तियों के लिये श्रवण यंत्र, व्हीलचेयर, संचार सहायता, चश्मा, कृत्रिम अंग और अन्य आवश्यक वस्तुएँ शामिल हैं।

 भारत में समस्या की भयावहता:

  • 2011 की जनगणना:
    • 2011 की जनगणना में विकलांग लोगों की संख्या का राष्ट्रीय अनुमान कुल जनसंख्या का 2.21% है, जिसमें दृश्य, श्रवण, मूक, अपाहिज़ और मानसिक विकलांग व्यक्तियों की संख्या 19-59 आयु वर्ग में सबसे अधिक है।
    • 2001 और 2011 की जनगणना अवधि के बीच देश की विकलांग आबादी में 22.4% की वृद्धि हुई, जबकि कुल जनसंख्या में 17.6% की वृद्धि हुई।
  • एनएसएस सर्वेक्षण:
    • विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम की अधिसूचना 2016  के बाद राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 76वें दौर (जुलाई-दिसंबर 2018) में बताया गया कि विकलांग व्यक्तियों में से 21.8% ने सरकार से सहायता प्राप्त करने की सूचना दी और 1.8% ने अन्य संगठनों से सहायता मिलने की बात कही।
      • रैपिड असिस्टिव टेक्नोलॉजी असेसमेंट (rATA) डब्ल्यूएचओ द्वारा राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण हेतु विकसित किया गया उपकरण है, जो सहायक तकनीक की अधूरी आवश्यकता का मापन करने के साथ ही भारत के लिये उपलब्ध होने पर मांग पक्ष का बारीकी से साक्ष्य प्रदान करेगा।

स्वास्थ्य-उद्योग अंतराफलक (इंटरफेस) की आवश्यकता:

  • सार्वभौमिक सहायक प्रौद्योगिकी कवरेज सुनिश्चित करना:
    • सार्वभौमिक सहायक प्रौद्योगिकी कवरेज सुनिश्चित करने हेतु UHC दृष्टिकोण को बनाए रखना आवश्यक है, जिससे प्रत्येक नागरिक के लिये बिना वित्तीय कठिनाई के सहायक प्रौद्योगिकी तक पहुंँच सुनिश्चित होगी।
      • शामिल कार्य हैं: (i) सहायक प्रौद्योगिकी के पूरे स्पेक्ट्रम का उत्पादन और प्रावधान (ii) दीर्घकालिक देखभाल में आवश्यक रणनीति के रूप में पुनर्वास सेवाओं को एकीकृत करना (iii) प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर पुनर्वास (iv) समुदाय आधारित पुनर्वास को बढ़ावा देना।
  • उपयोगकर्त्ताओं की विविध ज़रूरतों को पूरा करने हेतु आवश्यक:
    • उपयोगकर्त्ताओं की विविध ज़रूरतों को पूरा करने और उनकी ज़रूरतों से मेल खाने वाले उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला प्रदान करने हेतु सहायक प्रौद्योगिकी सिस्टम के घटकों का निर्माण और प्रावधान किया जाना आवश्यक है।
    • अकादमिक, उद्योग और सरकार के सहयोग से विनिर्माण क्षमता का विश्लेषण करने, विशिष्ट सहायक प्रौद्योगिकी तथा उत्पादों की तत्काल आवश्यकता का पता लगाने एवं उपयोगकर्त्ताओं को अनुमोदित मानदंडों के अनुसार सुरक्षित, सुनिश्चित और प्रभावी उत्पाद प्रदान करने के लिये एक नियामक ढाँचा तैयार करने में मदद मिलेगी।

संबंधित पहल:

सिफारिशें: 

  • शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल प्रणालियों तक पहुँच में सुधार
  • सहायक उत्पादों की उपलब्धता, सुरक्षा, प्रभावशीलता और क्षमता सुनिश्चित करना। 
  • कार्यबल की क्षमता को बढ़ाना, उसमें विविधता लाना और सुधार करना।
  • सहायक तकनीक के उपयोगकर्त्ताओं और उनके परिवारों को सक्रिय रूप से शामिल करना
  • जन जागरूकता बढ़ाना
  • डेटा और साक्ष्य-आधारित नीति में निवेश करना।
  • अनुसंधान, नवाचार और एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करना। 
  • सक्षम वातावरण का विकास और उसमें निवेश करें।
  • मानवीय प्रतिक्रियाओं में सहायक तकनीक को शामिल करें।
  • राष्ट्रीय प्रयासों के समर्थन के लिया अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से तकनीकी और आर्थिक सहायता प्रदान करना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

खाद्य मुद्रास्फीति

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, खाद्य मुद्रास्फीति, सीपीआई, आरबीआई।

मेन्स के लिये :

खाद्य मुद्रास्फीति और मुद्दे, वृद्धि और विकास।

चर्चा में क्यों? 

दुनिया भर में खाद्य कीमतें इस वर्ष उच्च स्तर पर पहुँच गई हैं क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विश्व के देशों ने गेहूँ और उर्वरक के इन प्रमुख निर्यातक देशों से अपने आयात को कम कर दिया है, साथ ही सूखा, बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े हुए तापमान से भी विश्व स्तर पर गेहूँ के उत्पादन में कमी आई है, इस समस्या के समाधान के लिये  गेहूँ के अधिक उत्पादन की आवश्यकता है।

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खाद्य मुद्रास्फीति का कारण:

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष:
    • रूस और यूक्रेन वैश्विक गेहूँ निर्यात के लगभग 30% की आपूर्ति करते हैं, लेकिन युद्ध के कारण उनकी अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है।
  • गेहूँ का उच्च भंडार:
    • जिन देशों में इसे उगाया जाता है, वहाँ गेहूँ की खपत अपेक्षाकृत अधिक रहती है।
    • लेकिन रूस और यूक्रेन से निर्यात में गिरावट ने वैश्विक बाज़ार में गेहूँ के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा दिया है, जिससे इसके लागत बढ़ रही है जो विशेष रूप से गरीब, कर्ज में डूबे उन देशों के लिये प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न करता है जो आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • अफ्रीका द्वारा किये जाने वाले गेहूँ आयात के लगभग 40% की आपूर्ति यूक्रेन और रूस द्वारा की जाती है, जबकि वैश्विक गेहूँ की बढ़ती कीमतों के कारण लेबनान में ब्रेड की कीमतों में 70% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • खाद्य भंडार और पण्य (Commodity ) बाज़ार:
    • 2007-2008 और 2011-2012 के पिछले खाद्य मूल्य संकट के बाद भी सरकारें अत्यधिक अटकलों पर अंकुश लगाने एवं खाद्य भंडार और पण्य बाज़ारों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल रही हैं।

मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति:

  • खाद्य और कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक ने अप्रैल 2022 के लिये वर्ष-दर-वर्ष 29.8% की वृद्धि दर्शाई है। 
  • इसके अलावा सभी कमोडिटी समूह के मूल्य सूचकांकों में भारी उछाल आया है: अनाज (34.3%), वनस्पति तेल (46.5%), डेयरी (23.5%), चीनी (21.8%) और मांस (16.8%)।
  • सीधे शब्दों में कहें तो खाद्य मुद्रास्फीति पहले से ही विश्व स्तर पर बढ़ रही है, युद्ध के कारण  आपूर्ति में व्यवधान, दक्षिण अमेरिका में शुष्क मौसम, उच्च कच्चे तेल की कीमतें, साथ ही जैव-ईंधन हेतु मक्का, चीनी, ताड़ और सोयाबीन तेल की उच्च कीमतें आदि।

खाद्यान्न की वैश्विक कीमतें घरेलू कीमतों को कैसे प्रभावित करती हैं?

  • उपरोक्त वैश्विक मुद्रास्फीति का घरेलू खाद्य कीमतों में संचरण मूल रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि किसी देश की खपत/उत्पादन का कितना आयात/निर्यात किया जाता है।
  • ऐसा हस्तांतरण खाद्य तेलों और कपास में स्पष्ट है, जहांँ भारत की खपत का दो-तिहाई और इसके उत्पादन का पांँचवां हिस्से का क्रमशः आयात और निर्यात किया जाता है।  
  • गेहूँँ के मामले में मार्च के मध्य से गर्मी की लहर गंभीर रूप से पैदावार को प्रभावित कर रही है, सार्वजनिक स्टॉक और समग्र घरेलू उपलब्धता दोनों दबाव में हैं, यहांँ तक ​​कि खुले बाज़ार की कीमतें निर्यात समता मूल्य स्तर तक बढ़ गई हैं।
  • आश्चर्य की बात नहीं कि केंद्र ने अपनी प्रमुख मुफ्त अनाज योजना के तहत गेहूँँ आवंटन को कम करने और अधिक चावल की पेशकश करने का फैसला किया है। इसी तरह निर्यात मांग भी मक्के के व्यापार को उसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी ऊपर रखने में मदद कर रही है। लेकिन उच्च खाद्य तेल की कीमतों के साथ पशुओं के चारे की लागत भी बढ़ेगी जिससे दूध, अंडे और मांँस की कीमतें बढ़ जाएंगी।
  • हालांँकि अभी के लिये राहत की बात यह है कि दाल, चीनी, प्याज़, आलू और ज़्यादातर गर्मियों की सब्जियों में मुद्रास्फीति बहुत कम या न के बराबर है। 
  • उस सीमा तक भारत में खाद्य मुद्रास्फीति अभी "सामान्यीकृत" नहीं हुई है।  
    • चीनी एक ऐसी वस्तु है जिसमें मिलों द्वारा रिकॉर्ड निर्यात के बावजूद खुदरा कीमतें ज़्यादा नहीं बढ़ी हैं।
    • इसकी वजह उत्पादन का ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंँचना है।

खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के उपाय: 

  • मांस और डेयरी उत्पादों का कम उपभोग:
    • चूँकि दुनिया के अनाज का एक बड़े हिस्से का प्रयोग पशुओं को खिलाने में होता है, लोगों को कम मांस और डेयरी उत्पादों के उपभोग के लिये तैयार करने से अनाज की आपूर्ति में नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है।
      • इस साल निर्यात बाज़ारों में अनाज की वैश्विक कमी 20-25 मिलियन टन रहने का अनुमान है,लेकिन यदि अकेले यूरोपीय देश ही पशु उत्पादों की खपत में 10% की कटौती करते हैं, तो वे मांग को 18-19 मिलियन टन तक कम कर सकते हैं।
  • अनाज भंडारण में सुधार:  
    • विशेष रूप से उन देशों द्वारा अनाज के भंडारण में सुधार करना जो किआयात पर अत्यधिक निर्भर हैं (उन देशों को नहीं जो अक्सर अनाज़ की जगह निर्यात के लिये नकदी फसलें उगाते हैं) इससे उन्हें अपने यहाँअधिकअनाज़ उगाने में मदद मिल सकती है। 
  • व्यापक किस्म की फसलें उगाना: 
    • विश्व स्तर पर, केवल कुछ अनाजों पर निर्भरता कम करने के लिये विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नीति परिवर्तन:
    • अफ्रीका के नए महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र जैसे देशों में नीतिगत बदलाव के माध्यम से अंततः कुछ गरीब देश दूरस्थ उत्पादकों और संवेदनशील आपूर्ति शृंखलाओं पर अपनी निर्भरता को कम कर सकते हैं।
  • जलवायु-स्मार्ट खेती में निवेश: 
    • इसके अलावा ग्रह के गर्म होने पर फसल की रक्षा के लिये जलवायु-स्मार्ट खेती में निवेश,  वैश्विक खाद्य आपूर्ति को बढ़ाने में मदद करेगा, जबकि ऋण राहत प्रदान करने से सबसे गरीब देशों को खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करने के लिये अधिक वित्तीय मदद मिल सकती है।
  • घरेलू उत्पादन में वृद्धि: 
    • संक्षेप में जबकि वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति एक वास्तविकता है, इसके "आयातित" होने के प्रभावों को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका घरेलू उत्पादन को बढ़ाना है।

आगे की राह

  • आयात नीति में एकरूपता होनी चाहिये क्योंकि यह अग्रिम रूप से उचित बाज़ार संकेतकों से अवगत कराती है। आयात शुल्क के माध्यम से हस्तक्षेप करना कोटा से बेहतर है। यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके अधिक सटीक फसल पूर्वानुमानों की भी मांग करती है ताकि फसल वर्ष में बहुत पहले से कमी/अधिशेष का संकेत दिया जा सके।
  • इसके अलावा वर्ष 2011-12 का एक दशक पुराना सीपीआई आधार वर्ष को संशोधित और अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि भोजन की आदतों तथा आबादी की जीवनशैली में बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके। बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च बढ़ गया है और इसे सीपीआई में बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है, जिससे आरबीआई गैर-परिवर्तनशील खंड (मुख्य मुद्रास्फीति) को बेहतर ढंग से लक्षित कर सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

उपासना स्थल अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, संबंधित प्रावधान।

चर्चा में क्यों ?

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में माँ शृंगारगौरी स्थल की वीडियोग्राफी सर्वेक्षण करने के वाराणसी के एक सिविल न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई करेगा.

  • मुख्य तर्क यह है कि वाराणसी न्यायालय का आदेश जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा "स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित" है।

उपासना स्थल अधिनियम: 

  • यह अधिनियम किसी भी पूजा/उपासना स्थल की वस्तुस्थिति को उसी अवस्था में रोक देता/बनाए रखता है, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को थी। 
  • छूट: 
    • अयोध्या में विवादित स्थल को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इस छूट के चलते अयोध्या मामले में इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही।
    • अयोध्या विवाद के अलावा इस अधिनियम में इन्हें भी छूट दी गई है:
      • कोई भी पूजा स्थल जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या एक पुरातात्त्विक स्थल है जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित है।
      • एक ऐसा वाद जो अंतत: निपटा दिया गया हो।
      • कोई भी विवाद जो पक्षों द्वारा सुलझाया गया हो या किसी स्थान का स्थानांतरण जो अधिनियम के शुरू होने से पहले सहमति से हुआ हो।
  • दंड: 
    • अधिनियम की धारा 6 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सज़ा का प्रावधान करती है।
  • आलोचना: 
    • इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है, साथ ही यह एक "मनमाना तर्कहीन पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि" आरोपित करता है जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों के धार्मिक  अधिकारों को सीमित करता है।

प्रावधान:

  • धारा 3:  इस अधिनियम की धारा 3 उपासना स्थलों के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
  • धारा 4(1): यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए पूजा स्थलों की धार्मिक   प्रकृति "पूर्ववत् बनी रहेगी"।
  • धारा 4(2): इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। 
    • इस उपखंड का प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही से बचाता है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि पर लंबित हैं, यदि वे कट-ऑफ तिथि के बाद पूजा स्थल के धार्मिक प्रकृति के रूपांतरण से संबंधित हैं।
  • धारा 5: यह निर्धारित करता है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।

अयोध्या फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट की क्या राय थी?

  • संविधान पीठ ने 2019 के अयोध्या फैसले में कानून का हवाला दिया और कहा कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को प्रकट करता है और कार्यवाहीं पर प्रतिबंधित करता है।
  • इसलिये कानून भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा हेतु बनाया गया विधायी साधन है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

राइस फोर्टिफिकेशन

प्रिलिम्स के लिये:

सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, FSSAI

मेन्स के लिये:

फूड फोर्टिफिकेशन से संबंधित मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल के परिणामों के अनुसार, सब्सिडी वाले आयरन-फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की केंद्र सरकार की योजना उन आदिवासियों या स्थानीय आबादी को फायदे की बजाय अधिक नुकसान पहुँचा सकती है जो सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया एवं आनुवंशिक बीमारियों से ग्रस्त हैं।

फूड फोर्टिफिकेशन:

  • फोर्टिफिकेशन:
    • फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट का आशय चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिन्स और खनिजों (जैसे आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D) को संलग्न करने की प्रक्रिया से है, ताकि पोषण सामग्री में सुधार लाया जा सके।
    • प्रसंस्करण से पहले ये पोषक तत्त्व मूल रूप से भोजन में मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
  • राइस फोर्टिफिकेशन:
    • खाद्य मंत्रालय के अनुसार, आहार में विटामिन और खनिज सामग्री को बढ़ाने के लिये राइस फोर्टिफिकेशन एक लागत प्रभावी और पूरक रणनीति है। 
      • FSSAI के मानदंडों के अनुसार, 1 किलो फोर्टिफाइड चावल में आयरन (28 mg-42.5 mg), फोलिक एसिड (75-125 माइक्रोग्राम) और विटामिन B-12 (0.75-1.25 माइक्रोग्राम) होगा।
    • इसके अलावा चावल को जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी3 और विटामिन बी6 के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ अकेले या इनको संयोजित करके भी राइस फोर्टिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

फोर्टिफिकेशन की आवश्यकता:

  • भारत में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का स्तर बहुत अधिक है। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में हर दूसरी महिला एनीमिया से ग्रस्त है और हर तीसरा बच्चा अविकसित है।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी या सूक्ष्म पोषक तत्त्व कुपोषण, जिसे "छिपी हुई भूख" के रूप में भी जाना जाता है, एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम है।
  • चावल भारत के प्रमुख खाद्य पदार्थों में से एक है, जिसका सेवन लगभग दो-तिहाई आबादी करती है। भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत 6.8 किलोग्राम प्रतिमाह है। इसलिये सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ राइस फोर्टिफिकेशन गरीबों के पूरक आहार का एक विकल्प हो सकता है।

  फोर्टिफिकेशन से उत्पन्न मुद्दे:

  • अनिर्णायक साक्ष्य:
    • प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने से पहले फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णायक और निश्चित रूप से अपर्याप्त हैं।
    • FSSAI फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये जिन अध्ययनों पर निर्भर है, उनमें से कई अध्ययन निजी खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित हैं, जो इससे लाभान्वित होंगे, परिणामस्वरूप हितों के टकराव की भी संभावना है।
  • हाइपरविटामिनोसिस:
    • हाइपरविटामिनोसिस विटामिन के असामान्य रूप से उच्च भंडारण स्तर की स्थिति है, जो विभिन्न लक्षणों जैसे कि अत्यधिक उत्तेजना, चिड़चिड़ापन या यहाँ तक ​​कि विषाक्तता को जन्म दे सकती है।
    • मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ और ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि एनीमिया तथा विटामिन ए की कमी दोनों का निदान अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से ‘हाइपरविटामिनोसिस’ हो सकता है।
  • विषाक्तता:
    • खाद्य पदार्थों के रासायनिक फोर्टिफिकेशन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि पोषक तत्त्व अलगाव में काम नहीं करते हैं, लेकिन इनके अधिकतम अवशोषण के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। भारत में अल्पपोषण का कारण सब्जियों और पशु प्रोटीन की कम खपत तथा अनाज आधारित आहार की वजह से है।
    • एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों को जोड़ने से इस बड़ी समस्या का समाधान नहीं होगा तथा इससे अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • वर्ष 2010 के एक अध्ययन में बताया गया है कि कुपोषित बच्चों में आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण आँत में सूजन और रोगजनक आँत माइक्रोबायोटा प्रोफाइल की स्थिति देखी गई।
  • कार्टेलाइज़ेशन:
    • अनिवार्य फोर्टिफिकेशन के चलते भारतीय किसानों, स्थानीय तेल और चावल मिलों सहित खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं की विशाल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा  बहुराष्ट्रीय निगमों के एक छोटे समूह को लाभ मिलेगा, जिसके चलते 3,000 करोड़ रुपए का बाज़ार प्रभावित  होगा।
  • प्राकृतिक भोजन के मूल्य में कमी: 
    • कुपोषण से लड़ने के लिये आहार विविधता एक स्वस्थ और अधिक लागत प्रभावी तरीका है।
    • एक बार यदि आयरन-फोर्टिफाइड चावल एनीमिया के उपाय के रूप में बेचा जाने लगेगा तो बाजरा, हरी पत्तेदार सब्जियों की किस्मों, मांस खाद्य पदार्थ, कुछ प्राकृतिक रूप से लौह युक्त खाद्य पदार्थों के मूल्य एवं रुचियों में कमी आएगी।

आगे की राह

  • किसी के भोजन के बारे में सूचित विकल्पों का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है। कोई क्या खा रहा है यह जानने का अधिकार भी एक बुनियादी अधिकार है। फोर्टिफाइड चावल के मामले में यह देखा गया है कि प्राप्तकर्त्ताओं से कभी भी पूर्व सूचित सहमति नहीं मांगी गई थी।
  • इसके बारे में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है क्योंकि अधिक मात्रा में लिये गए किसी भी पोषक तत्त्व से लाभ नहीं मिलेगा।
    • यूनिवर्सल फोर्टिफिकेशन पोषण संबंधी कमियों का उचित विकल्प नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


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