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राष्ट्रीय मतदाता दिवस : लोकतंत्र के लिए मज़बूत प्रतिबद्धता

  • 25 Jan 2017
  • 9 min read

उल्लेखनीय है कि देश का 7वाँ “राष्ट्रीय मतदाता दिवस” 25 जनवरी (बुधवार) को मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत भारत के निर्वाचन आयोग की स्थापना के सन्दर्भ में वर्ष 2011 में की गई थी। ध्यातव्य है कि 25 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के पहले गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर निर्वाचन आयोग अस्तित्व में आया था।

  • वस्तुतः “राष्ट्रीय मतदाता दिवस” की घोषणा मतदाताओं की संख्या (जिस व्यक्ति ने हाल में ही 18 वर्ष की आयु सीमा पूरी की है) को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • भारत सरकार द्वारा लम्बे समय से चली आ रही जनता की मांग को पूरा करने के लिए 61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1988 (Constitutional amendment act) के तहत मतदान की आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इस संशोधन का परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1989 में संपन्न हुए 10वें आम चुनाव में 18 से 21 वर्ष के आयु वर्ग के तकरीबन 35.7 मिलियन (3.5 करोड़) मतदाताओं ने पहली बार मतदान में हिस्सा लिया।
  • हालाँकि इस सबके बावजूद पिछले दो दशकों में उत्साहजनक  परिणाम प्राप्त नहीं हुए। योग्य युवा मतदाताओं द्वारा मतदाता सूची में नाम दर्ज़ कराने की रफ्तार काफी कम रही है। इतना ही नहीं कुछ मामलों में तो यह गति मात्र 20 से 25 प्रतिशत ही रही है।
  • ध्यातव्य है कि मतदाता सूची में नाम दर्ज़ कराना अनिवार्य नहीं वरन् एक स्वैच्छिक गतिविधि है, यही कारण है कि चुनाव आयोग लोगों को मतदान के लिये केवल जागरूक कर सकता है, विवश नहीं|
  • हालाँकि लोगों को मतदान के लिये जागरूक करने के साथ-साथ चुनाव आयोग की प्राथमिकता स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की भी होती है। 

भारत में चुनाव का प्रमुख उत्तरदायित्व

  • उल्लेखनीय है कि देश में चुनाव संबंधी अधिसूचना जारी करने से लेकर परिणाम घोषित करने तक चुनाव आयोग की एक लंबी प्रक्रिया है। भारत जैसे विशाल एवं बड़ी आबादी वाले देश में चुनाव संपन्न कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। चुनाव आयोग पर धन-बल तथा बाहु-बल से निपटने की भी ज़िम्मेदारी होती है।
  • वस्तुतः जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 11 और 62 के अनुसार, मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए एक साफ-सुथरी एवं त्रुटिमुक्त मतदाता सूची तैयार करना चुनाव आयोग की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है। 
  • ध्यातव्य है कि मतदाताओं को लामबंद करने का कार्य चुनाव प्रचार कर रहे विभिन्न राजनीतिक दलों पर छोड़ दिया जाता है। स्वाभाविक रूप से सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हितों को साधने के लिये मतदाताओं को लुभाकर अपने पक्ष में मतदान करने के लिये भरपूर प्रयास करते हैं।
  • इसी सन्दर्भ में चुनाव आयोग का दायित्व एवं जिम्मेदारी प्रमुख रूप से उभर कर सामने आती है| यह आयोग का उत्तरदायित्व होता है कि वह मतदाताओं को जागरूक कर उन्हें अपने मताधिकार का स्वतंत्र रूप से अनुपालन करने के लियेए प्रेरित करे।

प्रमुख बिंदु

  • बुद्धिजीवियों की बात माने तो जैसे-जैसे देश में साक्षरता के स्तर में बढ़ोतरी होगी वैसे-वैसे ही देश का मतदाता भी अपने मताधिकारों के प्रति सचेत हो जाएगा| जिसके फलस्वरूप मतदान में स्वत: बढ़ोतरी होने की सम्भावना है|
  • यदि हम पहले आम चुनाव (1951-52) में मतदान के प्रतिशत पर गौर करें तो हम पाएंगे कि उस समय के चुनाव में मतदान का प्रतिशत तकरीबन 51.15% था। हालाँकि मतदान के इस प्रतिशत को पूर्णतया असंतोषजनक नहीं माना जा सकता है क्योंकि उस समय देश की साक्षरता दर मात्र 17 प्रतिशत ही थी|
  • यदि बुद्धिजीवियों की बात पर यकीन करें तो जिस तरह से देश की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लगभग उसी  अनुपात में मतदान में भी तेजी होनी चाहिये थी| हालाँकि ऐसा नहीं हुआ|
  • वर्ष 2009 के बाद देश में मतदान के अनुपात में वृद्धि करने के लिये निर्वाचन आयोग ने “व्यवस्थित मतदाता शिक्षा तथा इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन” (Systematic Voter’s Education and Electoral Participation-SVEEP) नामक एक व्यापक मतदाता जागरूकता कार्यक्रम तैयार किया। 
  • इस कार्यक्रम के तहत निर्वाचन आयोग द्वारा दो नारे तैयार किये गए| इनमें पहला नारा था-‘समावेशी और गुणात्मक भागीदारी’ तथा दूसरा ‘किसी भी मतदाता को नहीं छोड़ा जा सकता’।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत न केवल व्यक्तियों अथवा संस्थाओं सहित सभी हितधारकों को सम्मिलित किया गया बल्कि मतदाता सूची में पंजीकरण एवं मतदान में भागीदारी के अंतर पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करते हुए इस कार्यक्रम के अंतर्गत लिंग, क्षेत्र, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य की स्थिति, शैक्षणिक स्तर, पेशेवर प्रवास, भाषा इत्यादि पर भी ध्यान दिया गया।
  • ध्यातव्य है कि इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक मतदाता के रूप में ही दृष्टिगत किया गया है। यहाँ तक कि अवयस्क लड़के एवं लड़कियों को भविष्य का मतदाता मानकर अभी से ही उनके अंदर मतदान के प्रति जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को समझते हुए शिक्षा संस्थानों एवं शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी को उनके मताधिकार का सही उपयोग करने के संबंध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है|
  • मतदान का उच्च प्रतिशत जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है। जबकि मतदान का निम्न प्रतिशत राजनीतिक उदासीन समाज की ओर इशारा करता है। वस्तुतः देश में मौजूद विघटनकारी तत्त्व अक्सर ऐसी स्थिति का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं जिससे न केवल लोकतंत्र के अस्तित्व के लिये खतरा पैदा होता है बल्कि इससे देश की समस्त राजनैतिक व्यवस्था भी उथल-पुथल होने की आशंका उत्पन्न हो जाती है| 
  • गौरतलब है कि हाल ही में वर्ष 2014 में संपन्न हुए 16वें आम चुनाव में, मतदान का प्रतिशत अब तक के सबसे उच्च स्तर 66.38 प्रतिशत के स्तर पर रहा।
  • अधिकांश टिप्पणीकारों के द्वारा मतदान में हुई इस उल्लेखनीय वृद्धि के लिये राजनीतिक कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया। तथापि इसका कुछ श्रेय निश्चित रूप से निर्वाचन आयोग के ‘स्वीप’ जागरूकता अभियान को भी दिया जाना चाहिये।

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आयोजन करना, नए मतदाताओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रयासों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कदम  साबित होगा।

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