मैप
जैव विविधता और पर्यावरण
बाँध अवसादन के कारण जल संकट
प्रिलिम्स के लिये:अवसादन, ड्रेजिंग, जलवायु परिवर्तन, केंद्रीय जल आयोग, पर्यावरण प्रभाव आकलन। मेन्स के लिये:जल संकट, बाँध अवसादन और परिणाम। |
चर्चा में क्यों?
जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये संयुक्त राष्ट्र संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 50,000 बड़े बाँधों में वर्ष 2050 तक 24-28% जल भंडारण क्षमता कम हो जाएगी, क्योंकि उनमें निरंतर अवसादीकरण हो रहा है।
- अवसादीकरण के कारण इन जलाशयों/बाँधों की जल भंडारण क्षमता में पहले ही लगभग 13-19% की कमी आ चुकी है।
- यूनाइटेड किंगडम, पनामा, आयरलैंड, जापान और सेशेल्स वर्ष 2050 तक अपनी मूल क्षमता के 35-50% तक उच्चतम जल भंडारण क्षमता में कमी का अनुभव करेंगे।
बाँधों के संदर्भ में अवसादीकरण:
- बाँधों में अवसादीकरण बाँध के तल पर रेत, बजरी और गाद जैसे अवसादों के संचय को संदर्भित करती है।
- यह अवसाद समय के साथ जमा हो जाते हैं, जिससे जलाशय की समग्र भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
- जलाशय की क्षमता को बनाए रखने के लिये निकर्षण नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से अवसाद को हटाने की आवश्यकता होती है।
निकर्षण/ड्रेजिंग:
- निकर्षण किसी जलाशय के तल पर जमा रेत, बजरी और गाद जैसे तलछट को हटाने की प्रक्रिया है।
- यह कार्य विभिन्न तरीकों का उपयोग कर किया जा सकता है, जैसे कि ड्रेज मशीन के साथ यांत्रिक ड्रेजिंग या उच्च दबाव वाले जल के जेट के साथ हाइड्रोलिक ड्रेजिंग।
- आमतौर पर जलाशय से निकाली गई सामग्री का उपयोग या निपटान अन्य स्थानों पर किया जाता है।
अवसादीकारण का कारण:
- बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण: बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण के कारण मृदा एवं पत्थर आदि का जलाशय के तल पर जमा होना।
- शहरी और कृषि क्षेत्रों से अपवाह (यह तब होता है जब ज़मीन की क्षमता से अधिक पानी होता है): मानव गतिविधियों, जैसे- शहरीकरण और कृषि के लिये भूमि का बढ़ता उपयोग, जलाशय में तलछट के अपवाह को बढ़ा सकता है।
- प्राकृतिक प्रक्रियाएँ: अपक्षय और अपरदन जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से अवसादन प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: अधिक तीव्र और व्यापक वर्षा का कारण जलवायु परिवर्तन है।
- वनों की कटाई: पेड़ मृदा के अपरदन को रोकने में मदद करते हैं, इसलिये जब वनों की कटाई या उनका क्षरण होता है, तो जलाशय में अवसादीकरण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
- बाँध का खराब प्रबंधन: रखरखाव और मरम्मत की कमी भी अवसादन का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे बाँध की संरचना क्षतिग्रस्त हो सकती है, जिससे अवसाद जलाशय में प्रवेश कर सकते हैं।
बाँध अवसादीकरण के परिणाम:
- पर्यावरणीय:
- जलाशय की कम जल भंडारण क्षमता, जो निचले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये जल की कमी और जलीय जानवरों के आवास के ह्रास का कारण बन सकती है।
- इसके कारण बाँध टूटने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि अवसाद (तलछट) के कारण बाँध अस्थिर हो सकता है।
- आर्थिक:
- तलछट को हटाने के लिये रखरखाव और ड्रेजिंग की लागत में वृद्धि।
- बाँध से कम जल प्रवाह के कारण जलविद्युत उत्पादन को क्षति।
- कृषि सिंचाई एवं उद्योग के लिये जल- आपूर्ति में कमी।
- मछली पकड़ने और नौका विहार जैसी मनोरंजक गतिविधियों से प्राप्त राजस्व में कमी यदि जलाशय इन गतिविधियों में सक्षम नहीं होता है।
- बाँध संरचना और टर्बाइन को क्षति:
- जलाशय के तल पर तलछट का संचय बाँध की नींव के क्षरण का कारण बन सकता है, जो संरचनात्मक ढाँचे को कमज़ोर कर इसके लिये ज़ोखिम बढ़ा सकता है।
- तलछट टरबाइन को रोक सकता है जो जलविद्युत उत्पादन की दक्षता को कम कर सकता है तथा तलछट को हटाने के लिये महँगे रखरखाव की आवश्यकता हो सकती है।
- तलछट टरबाइन ब्लेड पर घर्षण भी उत्पन्न कर सकता है जिससे क्षति हो सकती है तथा उनकी दक्षता कम हो सकती है।
- जबकि तलछट जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करता है, खराब प्रबंधन से पोषण संबंधी असंतुलन हो सकता है जिससे बाँध के जलाशय में यूट्रोफिकेशन और अन्य व्यवधान हो सकते हैं तथा साथ ही निचले क्षेत्रों में स्थित आवासों को क्षति पहुँच सकती है।
आगे की राह
- नियमित निरीक्षण और निगरानी: कमज़ोर संरचना, क्षरण और अन्य संभावित मुद्दों के समाधान के लिये बाँधों का नियमित रूप से निरीक्षण एवं निगरानी करना आवश्यक है। इसमें दृश्य निरीक्षण और उपकरण-आधारित निगरानी दोनों शामिल हैं, जैसे कि संचलन हेतु बाँध की नींव की निगरानी करना।
- आपातकालीन कार्य योजनाएँ: बाँध के विफल होने या बाढ़ जैसी संभावित घटनाओं से निपटने हेतु आपातकालीन कार्ययोजना की आवश्यकता होती है। ये योजनाएँ आपातकालीन स्थिति में की जाने वाली कार्रवाइयों को रेखांकित करती हैं, जिसमें निकासी प्रक्रियाएँ तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली शामिल हैं।
- पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन: आसपास के पर्यावरण पर बाँध के संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करने हेतु बाँधों का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) किया जाना आवश्यक है। इसमें वन्यजीवों, जलीय प्रजातियों और डाउनस्ट्रीम समुदायों पर प्रभाव का आकलन करना शामिल है।
- सार्वजनिक परामर्श: बाँध निर्माण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श और भागीदारी को शामिल किया जाना आवश्यक है, जिसमें प्रस्तावित बाँध को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी के लिये जानकारी और समय प्रदान किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार जंगलों से घिरी और जातीय समुदायों द्वारा बसाई गई एक पहाड़ी घाटी में एक बाँध निर्माण हेतु विचार कर रही है। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने हेतु किस तर्कसंगत नीति का सहारा लिया जाना चाहिये? (2018) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय राजव्यवस्था
प्रशासनिक सेवाएँ तथा केंद्र बनाम दिल्ली सरकार
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय संविधान का 69वाँ संशोधन, संविधान का अनुच्छेद 239AA, सामूहिक उत्तरदायित्त्व मेन्स के लिये:नई दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, सहकारी संघवाद, संवैधानिक संशोधन |
चर्चा में क्यों?
प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण का मुद्दा दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच विवाद का विषय बना हुआ है, जिसकी सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा की जा रही है।
- इसी तरह के एक विवाद में एक अन्य संविधान पीठ द्वारा लगभग पाँच वर्ष पहले राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2017 का निर्णय:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 के अपने फैसले में कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये उपराज्यपाल को हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह और सिफारिशों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
- वर्ष 2017 में अपील के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 239AA की व्याख्या पर निर्णय लेने के लिये मामले को आगे संदर्भित किया।
- वर्ष 2018 का निर्णय:
- पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से माना था कि दिल्ली के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह लेनी चाहिये और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
- वर्ष 2019 का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के संदर्भ में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक असमान मत दिया तथा मामले को आगे की सुनवाई के लिये तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
- जबकि एकल न्यायाधीश ने निर्णय दिया था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है।
- हालाँकि एक अन्य न्यायाधीश ने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों (संयुक्त निदेशक और उससे उच्च) की नियुक्ति या स्थानांतरण केवल केंद्र सरकार द्वारा की जा सकती है तथा अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिये मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के संदर्भ में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक असमान मत दिया तथा मामले को आगे की सुनवाई के लिये तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
- वर्ष 2022 का मामला:
- केंद्र ने 27 अप्रैल, 2022 को एक बड़ी पीठ को संदर्भित करने की मांग यह तर्क देते हुए की कि उसे राष्ट्रीय राजधानी और "राष्ट्र का चेहरा" होने के कारण दिल्ली में अधिकारियों के स्थानांतरण एवं नियुक्ति करने की शक्ति की आवश्यकता है।
- न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि "सेवाओं" शब्द के संबंध में केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित सीमित प्रश्न को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संदर्भ में संविधान पीठ द्वारा एक आधिकारिक निर्णय की आवश्यकता होगी।
मुद्दे में वाद और प्रतिवाद:
- वाद:
- केंद्र लगातार कहता रहा है कि चूँकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी और देश का चेहरा है इसलिये प्रशासनिक सेवाओं पर इसका नियंत्रण होना चाहिये, जिसमें नियुक्तियाँ और स्थानांतरण शामिल हैं।
- प्रतिवाद:
- दिल्ली सरकार ने तर्क दिया है कि संघवाद के हित में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास स्थानांतरण और नियुक्ति की शक्ति होनी चाहिये।
- दिल्ली सरकार ने यह भी दलील दी थी कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 में हालिया संशोधन संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
नई दिल्ली का शासन मॉडल:
- संविधान की अनुसूची 1 के तहत दिल्ली का दर्जा एक केंद्रशासित प्रदेश का है, किंतु अनुच्छेद 239AA के तहत इसे 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' का नाम दिया गया है।
- भारत के संविधान में 69वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 239AA को सम्मिलित किया गया, जिसने केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को एलजी द्वारा प्रशासित केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया जो कि निर्वाचित विधानसभा की सहायता और सलाह पर काम करता है।
- हालाँकि 'सहायता और सलाह' खंड केवल उन मामलों से संबंधित है जिन पर निर्वाचित विधानसभा को सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि के अपवाद के साथ राज्य और समवर्ती सूची के तहत शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- इसके अलावा अनुच्छेद 239AA यह भी कहता है कि एलजी को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा अथवा वह राष्ट्रपति द्वारा लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य है।
- साथ ही अनुच्छेद 239AA में यह व्यवस्था है कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद होने पर एलजी मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
- इस प्रकार एलजी और निर्वाचित सरकार के बीच यह द्वैध नियंत्रण सत्ता संघर्ष की ओर उन्मुख हो जाता है।
आगे की राह
- संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है, इस प्रकार सत्ता में रहने वाले हितधारक हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं।
- भारत जैसे विविध और बड़े देश में संघवाद के स्तंभों, यानी राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण तथा क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है।
- अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण या अराजक राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद को कमज़ोर कर सकते हैं।
- इस विकट समस्या का संतोषजनक और स्थायी समाधान विधान-पुस्तक में नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की अंतरात्मा में खोजना होगा।
- लोकतंत्र के स्तंभों के रूप में सामूहिक उत्तरदायित्त्व, सहायता और सलाह के साथ एक संतुलन खोजना एवं यह तय करना महत्त्वपूर्ण है कि दिल्ली में सेवाओं पर केंद्र या दिल्ली सरकार का नियंत्रण होना चाहिये या नहीं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023
प्रिलिम्स के लिये:विश्व आर्थिक मंच, दावोस शिखर सम्मेलन, जलवायु परिवर्तन, जलवायु कार्रवाई और जैवविविधता हानि। मेन्स के लिये:वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023 (18वाँ संस्करण) जारी की है, जिसमें विश्व से अगले दो वर्षों में 'प्राकृतिक आपदाओं और चरम मौसमी घटनाओं' के लिये तैयार रहने की मांग की गई है।
- WEF की रिपोर्ट दावोस- 2023 की बैठक से पहले जारी की गई है, जिसका शीर्षक 'को-ऑपरेशन इन ए फ्रैग्मेंटेड वर्ल्ड' है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- सबसे गंभीर जोखिम:
- 'जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता' और 'जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की विफलता' अगले दशक में दुनिया के सामने आने वाले दो सबसे गंभीर जोखिम हैं, इसके बाद 'प्राकृतिक आपदाएँ एवं चरम मौसमी घटनाएँ' तथा 'जैवविविधता का नुकसान व पारिस्थितिकी तंत्र के पतन' का भी जोखिम विद्यमान है।
- वर्तमान में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के वायुमंडलीय स्तर रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गए हैं।
- उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र से इस बात की बहुत कम संभावना है कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की वैश्विक महत्त्वाकांक्षा हासिल की जा सकेगी।
- जलवायु कार्रवाई और जैवविविधता क्षति:
- विश्व 30 वर्षों से वैश्विक जलवायु वकालत और कूटनीति के बावजूद जलवायु परिवर्तन पर आवश्यक प्रगति करने के लिये संघर्ष कर रहा है।
- जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिये जलवायु कार्यवाही पर विफलता 2011 के बाद से रिपोर्ट के शीर्ष जोखिमों में से एक है।
- मानव इतिहास के दौरान किसी भी अन्य काल की तुलना में पारिस्थितिक तंत्र के भीतर जैवविविधता पहले से तेज़ गति से घट रही है।
- लेकिन जलवायु संबंधी अन्य जोखिमों के विपरीत 'जैवविविधता हानि और पारिस्थितिकी तंत्र के पतन' को अल्पावधि में चिंता का विषय नहीं माना गया।
- इसे लंबी अवधि में या अगले दस वर्षों (2033 तक) में चौथे सबसे गंभीर जोखिम के रूप में स्थान दिया गया।
- जलवायु शमन प्रगति का उत्क्रमण:
- भू-राजनीतिक तनाव के कारण सामाजिक-आर्थिक अल्पकालिक संकटों की वजह से सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के संसाधनों की बढ़ती मांग, अगले दो वर्षों में शमन प्रयासों की गति एवं पैमाने को और कम करने की तरफ अग्रसर है।
- कुछ मामलों में इसने अल्पावधि में जलवायु परिवर्तन शमन पर प्रगति को उलट दिया है।
- उदाहरण के लिये यूरोपीय संघ ने नए और विस्तारित जीवाश्म-ईंधन के बुनियादी ढाँचे एवं आपूर्ति पर न्यूनतम 50 बिलियन यूरो खर्च किये हैं।
- ऑस्ट्रिया, इटली, नीदरलैंड और फ्राँस सहित कुछ देशों ने कोयला आधारित विद्युत स्टेशनों का परिचालन फिर से शुरू किया है।
- आशंकाएँ और चेतावनियाँ:
- अगले 10 वर्षों में या वर्ष 2033 तक जैवविविधता हानि, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों की खपत, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक आर्थिक कारकों के बीच अंतर्संबंध के खतरनाक संयोजन के निर्माण की आशंका है।
- इस बीच यूरोप में वैश्विक महामारी और युद्ध को ऊर्जा, मुद्रास्फीति और खाद्य संकट का कारण माना जा रहा है। वास्तव में 'जीवन यापन की लागत' (अगले दो वर्षों में) सबसे महत्त्वपूर्ण अल्पकालिक वैश्विक जोखिम हो सकती है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने में विफलता भी एक बड़ा वैश्विक जोखिम है जिसके लिये दुनिया तैयार नहीं है।
- WEF के शोध में 70% उत्तरदाताओं का मानना था कि जलवायु परिवर्तन को कम करने या सामना करने हेतु वर्तमान पहल "अप्रभावी" या "अत्यधिक अप्रभावी" रही है।
वैश्विक जोखिम:
- वैश्विक जोखिम को किसी घटना या स्थिति के घटित होने की संभावना के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो यदि घटित होती है तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या या प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्वपूर्ण अनुपात पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
- वैश्विक जोखिम रिपोर्ट दावोस, स्विट्ज़रलैंड में फोरम की वार्षिक बैठक से पहले विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक अध्ययन है। ग्लोबल रिस्क नेटवर्क के काम के आधार पर रिपोर्ट वर्ष-दर-वर्ष वैश्विक जोखिम परिदृश्य में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करती है।
विश्व आर्थिक मंच:
- परिचय:
- विश्व आर्थिक मंच एक स्विस गैर-लाभकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में है।
- यह स्विस/स्विट्ज़रलैंड के अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिशन:
- फोरम वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक एजेंडा को आकार देने के लिये राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र के अग्रणी नेतृत्व को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है।
- संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष: क्लाउस श्वाब (Klaus Schwab)
- विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी की जाने वाली अन्य रिपोर्ट:
- ऊर्जा संक्रमण सूचकांक।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट।
- वैश्विक आईटी रिपोर्ट।
- WEF द्वारा INSEAD और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है।
- वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट।
- वैश्विक यात्रा और पर्यटन रिपोर्ट।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों के लिये “सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)” का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व आर्थिक मंच का संस्थापक है? (2009) (a) क्लॉस श्वाब उत्तर (a) प्रश्न. वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट किसके द्वारा प्रकाशित की जाती है? (2019) (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उत्तर: (c) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सामाजिक न्याय
संयुक्त राष्ट्र विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2023: वृद्ध जनसंख्या, जनसंख्या पर राष्ट्रीय आयोग, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY), SAMPANN परियोजना, बुज़ुर्गों के लिये सेक्रेड(Sacred) पोर्टल, स्वस्थ वृद्धावस्था दशक। मेन्स के लिये:भारत में वृद्ध जनसंख्या की स्थिति, इनसे जुड़ी समस्याएँ तथा वृद्ध जनसंख्या से संबंधित वर्तमान योजनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (UN) की विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2023 के अनुसार, बढ़ती उम्र के मामलों में शीर्ष पर रहते हुए दुनिया भर में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या अगले तीन दशकों में दोगुनी होने की संभावना है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- वृद्ध आबादी वर्ष 2050 में 1.6 बिलियन तक पहुँच जाएगी, जो वैश्विक आबादी का 16% से अधिक है।
- उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में अगले तीन दशकों में वृद्ध लोगों की संख्या में सबसे तेज़ वृद्धि होने की उम्मीद है।
- साथ ही यूरोप और उत्तरी अमेरिका को मिलाकर अब वृद्ध व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक है।
- यह जनसांख्यिकीय बदलाव युवा और वृद्ध देशों में वृद्धावस्था सहायता की वर्तमान व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
- लैंगिक असमानता वृद्धावस्था में भी बनी रहती है। आर्थिक रूप से महिलाओं की औपचारिक श्रम बाज़ार भागीदारी के निचले स्तर, कम कामकाज़ी जीवन और कार्य के वर्षों के दौरान कम वेतन बाद के जीवन में अधिक आर्थिक असुरक्षा का कारण बनते हैं।
वृद्ध जनसंख्या:
- परिचय:
- इससे तात्पर्य समय के साथ बढ़ रहे समाज में वृद्ध/बुज़ुर्ग व्यक्तियों के अनुपात से है।
- यह सामान्यतः जनसंख्या के अनुपात से मापा जाता है जो निर्धारित आयु से अधिक है, जैसे कि 65 वर्ष या उससे अधिक।
- भारत में स्थिति:
- राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुसार, भारत की जनसंख्या में बुज़ुर्गों की हिस्सेदारी (जो वर्ष 2011 में 9% के करीब थी) तेज़ी से बढ़ रही है और वर्ष 2036 तक 18% तक पहुँच सकती है।
- स्वतंत्रता के बाद से भारत में जीवन प्रत्याशा वर्ष 1940 के दशक के अंत में जो कि लगभग 32 वर्ष थी, वर्तमान में दोगुने से अधिक बढ़कर 70 वर्ष हो गई है।
- वृद्ध जनसंख्या से संबद्ध समस्याएँ:
- स्वास्थ्य देखभाल की लागत: उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति में जीर्ण शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों की अधिक संभावना के साथ ही उन्हें अधिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता होती है।
- इससे सरकारों, बीमाकर्त्ताओं और व्यक्तियों के लिये स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि हो सकती है।
- सामाजिक सुरक्षा असंतुलन: वृद्ध जनसंख्या सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर दबाव डाल सकती है, क्योंकि जनसंख्या का एक छोटा हिस्सा कार्यशील है और तंत्र में योगदान दे रहा है, जबकि एक बड़ा हिस्सा सेवानिवृत्त हो रहा है और आश्रित होकर लाभ उठा रहा है।
- इससे कर बढ़ाने या लाभों को कम करने का दबाव बढ़ सकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 30%-50% बुज़ुर्गों में ऐसे लक्षण थे जो उन्हें शक्तिहीनता, अकेलेपन के कारण उदास करते हैं।
- अकेले रहने वाले बुज़ुर्गों में बड़ी संख्या महिलाओं की है, खासकर विधवाओं की।
- अन्य समस्याएँ:
- बच्चों द्वारा अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के प्रति लापरवाही, सेवानिवृत्ति के कारण मोहभंग, शक्तिहीनता, अकेलापन, बेकारी और बुज़ुर्गों में अलगाव की भावना, पीढ़ीगत भिन्नता।
- स्वास्थ्य देखभाल की लागत: उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति में जीर्ण शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों की अधिक संभावना के साथ ही उन्हें अधिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता होती है।
- वृद्धावस्था जनसंख्या से संबंधित वर्तमान योजनाएँ:
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY)
- वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम
- संपन्न परियोजना (SAMPANN Project)
- बुज़ुर्गों के लिये ‘SACRED’ पोर्टल
- Elder Line (अखिल भारतीय बुज़ुर्ग सहायता हेतु टोल फ्री नंबर)
- मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन लिविंग के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2021-2030 को अच्छे स्वास्थ्य के साथ उम्र बढ़ने अथवा जीवन जीने के दशक के रूप में घोषित किया है। यह वरिष्ठ नागरिकों के सशक्तीकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
आगे की राह
- स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना: वृद्ध नागरिकों की सहायता के लिये स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये वित्तपोषण में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा स्वस्थ उम्र और निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने से पुरानी बीमारी का बोझ कम हो सकता है।
- बुज़ुर्गों को वित्तीय सुरक्षा: वृद्ध नागरिकों को वित्तीय रूप से सुरक्षित करने के लिये पेंशन कवरेज में वृद्धि और पेंशन योजनाओं में सुधार करना।
- CSR को बुज़ुर्गों के सशक्तीकरण से जोड़ना: कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व के माध्यम से बुज़ुर्ग देखभाल सेवाओं के प्रावधान में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- निजी क्षेत्र बुज़ुर्ग नागरिकों की सहायता के लिये उम्र के अनुकूल बुनियादी ढाँचे और वातावरण के विकास में भी मदद कर सकता है।
- वृद्धावस्था स्वयं सहायता समूह: बुज़ुर्गों को सामाजिक और शारीरिक रूप से सक्रिय तथा व्यस्त रखने के लिये हथकरघा एवं हस्तशिल्प गतिविधियों से जुड़े स्थानीय स्तर पर वृद्धावस्था स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जा सकता है।
- स्थानीय स्तर पर समय-समय पर बोर्ड गेम कार्यक्रम भी आयोजित किये जा सकते हैं ताकि वृद्ध एवं युवा नागरिकों को एक साथ लाने वाली गतिविधियों के माध्यम से अंतर-पीढ़ी बंधन को बढ़ावा दिया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सुभेद्य वर्गों के लिये क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। चर्चा कीजिये। (मेन्स- 2019) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वायु प्रदूषण और NCAP
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु पहल |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान (National Clean Air Campaign- NCAP) के तहत विश्लेषकों ने पाया कि प्रदूषण नियंत्रण के संबंध में सुधार की गति धीमी रही है और अधिकांश शहरों के प्रदूषण में नाममात्र कमी आई है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम:
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जनवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
- यह देश में वायु प्रदूषण में कमी लाने के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करने का पहला प्रयास है।
- आधार वर्ष 2017 के साथ आगामी पाँच वर्षों में भारी (व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM10 के कण पदार्थ) और महीन कणों (व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM2.5 के कण पदार्थ) के संकेंद्रण में कम-से-कम 20% की कमी लाने का प्रयास करना है।
- इसमें प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले 132 शहर शामिल हैं जिनकी पहचान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा की गई थी।
- प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले शहर (Non- Attainment Cities) वे शहर हैं जो पाँच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा करने में विफल रहे हैं।
- NAAQs वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत CPCB द्वारा अधिसूचित विभिन्न पहचाने गए प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं। NAAQS के तहत प्रदूषकों की सूची में PM10, PM2.5, SO2, NO2, CO, NH3, ओज़ोन, लेड, बेंज़ीन, बेंजो-पाइरेन, आर्सेनिक और निकेल शामिल है।
- प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले शहर (Non- Attainment Cities) वे शहर हैं जो पाँच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा करने में विफल रहे हैं।
लक्षित स्तर:
- वर्तमान परिदृश्य: PM2.5 और PM10 के लिये देश की वर्तमान, वार्षिक औसत निर्धारित सीमा 40 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर (ug/m3) और 60 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर है।
- नए लक्ष्य: वर्ष 2017 में प्रदूषण के स्तर को सुधारने को आधार वर्ष मानते हुए NCAP ने वर्ष 2024 में प्रमुख वायु प्रदूषकों PM10 और PM2.5 को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया।
- हालाँकि सितंबर 2022 में केंद्र ने लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2026 तक पार्टिकुलेट मैटर की सघनता में 40% की कमी लाने का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया।
- सुधारों का आकलन: 2020-21 की शुरुआत से शहरों को सुधार की मात्रा निर्धारित करनी चाहिये थी, जिसके अंतर्गत वार्षिक औसत PM10 एकाग्रता में 15% या उससे अधिक की कमी और वार्षिक स्तर पर स्वच्छ वायु के दिनों की संख्या में कम-से-कम 200 तक आपेक्षित है।
- इससे कुछ भी कम अपर्याप्त माना जाएगा और परिणामस्वरूप मामले में वित्तपोषण में कमी की जा सकती है।
NCAP का प्रभाव:
- लक्ष्य प्राप्ति के संबंध में:
- सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) द्वारा NCAP के चार वर्ष के प्रदर्शन के विश्लेषण से निष्कर्ष निकला कि केंद्र, शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) और राज्य प्रदूषण के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले 131 शहरों में से केवल 38 नियंत्रण बोर्डों ने अपने वार्षिक प्रदूषण में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त किया है।
- सुझाव:
- CERA (जो किसी शहर में प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण स्रोतों को सूचीबद्ध और परिमाणित करता है) के अनुसार, 37 शहरों ने स्रोत अवलोकन संबंधी विश्लेषण पूरा कर लिया है। हालाँकि इनमें से अधिकांश रिपोर्ट आम जनता के लिये उपलब्ध नहीं कराई गई और इन जाँचों के निष्कर्षों का उपयोग कर किसी भी शहर की कार्ययोजना में कोई संशोधन नहीं किया गया था।
- CERA का अनुमान है कि भारत को वर्ष 2024 तक 1,500 निगरानी स्टेशनों के NCAP लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिवर्ष 300 से अधिक मैनुअल वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता होगी। पिछले चार वर्षों में केवल 180 स्टेशन स्थापित किये गए हैं।
NCAP प्रदूषण कम करने में कितना सफल:
- NCAP ट्रैकर, वायु प्रदूषण नीति में सक्रिय दो संगठनों की एक संयुक्त परियोजना है, जो वर्ष 2024 के स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति की निगरानी कर रहे हैं।
- गैर-प्राप्ति शहरों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली वर्ष 2022 में सबसे प्रदूषित रही लेकिन दिल्ली के PM 2.5 के स्तर में वर्ष 2019 की तुलना में 7% से अधिक का सुधार हुआ है।
- वर्ष 2022 की शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित सूची में अधिकांश शहर सिंधु-गंगा के मैदान से थे।
- वर्ष 2019 में सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से नौ ने वर्ष 2022 में अपने PM 2.5 और PM 10 सांद्रता को कम किया है।
- 16 NCAP शहर और 15 Non-NCAP शहर ऐसे थे जिन्होंने लगभग समान संख्या के साथ अपने वार्षिक PM 2.5 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। इससे पता चलता कि NCAP की कम प्रभावशीलता के साथ Non-NCAP और NCAP शहरों के प्रदूषित होने की संभावना अधिक थी।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल:
- ‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’- सफर (SAFAR) पोर्टल
- वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): इसे आठ प्रदूषकों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। इसमें शामिल हैं- PM 2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड।
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान।
- वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने हेतु:
- बीएस-VI वाहन
- इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देना
- एक आपातकालीन उपाय के रूप में ‘ऑड-इवन’ नीति
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग
- टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन खरीदने हेतु किसानों को सब्सिडी
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Air Quality Monitoring Programme- NAMP):
- NAMP के तहत सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिये चार वायु प्रदूषकों अर्थात् SO2, NO2, PM 10 और PM 2.5 की पहचान की गई है।
आगे की राह
- परिवर्तनकारी दृष्टिकोण:
- भारत को वायु गुणवत्ता में सुधार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकार्य स्तर तक प्रदूषकों को कम करने के लिये अपने दृष्टिकोण को बदलने और प्रभावी नीतियाँ लाने की आवश्यकता है।
- निकट समन्वय आवश्यक:
- वायु प्रदूषण को रोकने के लिये न केवल इसके विशिष्ट स्रोतों से निपटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार सीमाओं में घनिष्ठ समन्वय बनाने की भी दरकार है।
- क्षेत्रीय सहयोग लागत प्रभावी संयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकता है जो वायु गुणवत्ता की अन्योन्याश्रित प्रकृति का लाभ उठाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक के मान की गणना में सामान्यतः निम्नलिखित में से किस वायुमंडलीय गैस पर विचार किया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन कीजिये। 2005 में इसके अंतिम अद्यतन से ये कैसे भिन्न हैं? संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में क्या बदलाव आवश्यक हैं? (2021) |
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
डीप-वाटर सर्कुलेशन
प्रिलिम्स के लिये:डीप-वाटर सर्कुलेशन, मध्य अमेरिकी समुद्री मार्ग, अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW), ओशन करंट, हिंद महासागर, आयरन-मैंगनीज़ क्रस्ट, ऑथिजेनिक नियोडिमियम आइसोटोप। मेन्स के लिये:डीप-वाटर सर्कुलेशन (DWC) का महत्त्व, हिंद महासागर का डीप-वाटर सर्कुलेशन। |
चर्चा में क्यों?
- हाल के शोध में पाया गया है कि महासागर के प्रवेश द्वार पर टेक्टोनिक रूप से संचालित परिवर्तनों का वैश्विक उथलन वाले परिसंचरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
नवीनतम निष्कर्ष:
- अध्ययनों से पता चलता है कि टेक्टोनिक्स के कारण महासागरीय मार्गों में परिवर्तन, जैसे कि मध्य अमेरिकी समुद्री मार्ग (Central American Seaway) के बंद होने से महासागर परिसंचरण पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
- मध्य अमेरिकी समुद्री मार्ग पानी का एक निकाय है जो कभी उत्तरी अमेरिका को दक्षिण अमेरिका से अलग करता था।
- इन परिवर्तनों के कारण दो अलग-अलग जल निकायों का निर्माण हो सकता है:
- उत्तरी अटलांटिक महासागर में उत्तरी भाग का पानी।
- दक्षिणी महासागर में अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW)
- नतीजतन, यह भी परिकल्पना की गई है कि दुनिया भर के महासागरों में गहरे पानी के परिसंचरण (DWC) में वैश्विक जलवायु और ऊष्मा के आदान-प्रदान के कारण बड़े पैमाने पर बदलाव हुए होंगे।
डीप-वाटर सर्कुलेशन
- परिचय:
- यह गहरे समुद्र में पानी की गति को संदर्भित करता है। यह तापमान और लवणता में भिन्नता के कारण पानी के द्रव्यमान के मध्य घनत्त्व के अंतर से प्रेरित होता है।
- पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्र का पानी बहुत ठंडा हो जाता है, जिससे समुद्री बर्फ बनती है। नतीजतन, आसपास का समुद्री जल नमकीन हो जाता है, क्योंकि जब समुद्री बर्फ बनती है, तो नमक पीछे छूट जाता है।
- जैसे-जैसे समुद्र का जल खारा होता जाता है, उसका घनत्त्व बढ़ता जाता है जिससे जल का अधोगमन होता है। इस खाली स्थान को भरने के लिये सतही जल आकर्षित होता है, जो अंततः ठंडा और लवणीय हो जाता है।
- यह एक परिसंचरण प्रतिरूप बनाता है जिसे थर्मोहलाइन सर्कुलेशन के रूप में जाना जाता है।
- महत्त्व:
- ऊष्मा वितरण: यह दुनिया भर में ऊष्मा का विस्तार करने में मदद करता है, जो पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने और विभिन्न क्षेत्रों को बहुत गर्म या बहुत ठंडा होने से बचाने में मदद करता है।
- कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को बनाए रखना: यह कार्बन को सतह से गहरे समुद्र तक ले जाने में मदद करके वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहाँ इसे लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है।
- महासागरीय धाराओं का प्रतिरूप: यह महासागर की धाराओं और विश्व के महासागरों के संचलन प्रतिरूप को आकार देने के लिये ज़िम्मेदार है।
- ये धाराएँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, मौसम के प्रतिरूप और तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं।
- समुद्र के स्तर को बनाए रखना: इसका समुद्र के स्तर पर भी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि ठंडे जल की तुलना में गर्म जल का घनत्व कम होता है, इसलिये यह ताप और ऊष्मा विस्तार को पुनर्वितरित करके समुद्र के जल स्तर को भी प्रभावित कर सकता है।
- हिंद महासागर का डीप-वाटर सर्कुलेशन:
- हिंद महासागर में डीप-वाटर उत्पन्न नहीं होता है, बल्कि इसे अन्य स्रोतों जैसे उत्तरी अटलांटिक और अंटार्कटिक महासागर से प्राप्त होता है।
- हिंद महासागर का उत्तरी भाग उन क्षेत्रों से बहुत दूर स्थित है जहाँ डीप-वाटर का निर्माण होता है यही कारण है कि समुद्री मार्ग, जिससे यह समुद्र परिसंचरण में परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिये एक आदर्श स्थान बन जाता है।
- हिंद महासागर में किये गए अध्ययन लौह-मैंगनीज़ क्रस्ट के ऑथिजेनिक नियोडिमियम आइसोटोप संरचना से संबंधित अभिलेख का उपयोग करके बीते समय में डीप-वाटर सर्कुलेशन को समझने में मदद मिल सकती है।
- इन अभिलेखों की सीमाएँ:
- क्योंकि आयरन-मैंगनीज़ क्रस्ट अंटार्कटिक बॉटम वॉटर (AABW) में अधिक गहराई पर पाए जाते हैं, वे केवल AABW के विकास के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
- प्रामाणिक नियोडिमियम आइसोटोप संबंधी जानकारियाँ केवल बंगाल की खाड़ी क्षेत्र से उपलब्ध हैं, लेकिन वे भी सटीक नहीं हैं क्योंकि खाड़ी में बहने वाली हिमालयी नदियाँ बहुत सारे नियोडिमियम कण निक्षेपित करती हैं जो जानकारियों को समझने में समस्या उत्पन्न कर सकती हैं।
- इन अभिलेखों की सीमाएँ:
- वैज्ञानिकों ने हाल ही में अरब सागर से एक प्रामाणिक नियोडिमियम आइसोटोप डेटा तैयार किया है और 11.3 मिलियन वर्ष (मियोसीन युग) से 1.98 मिलियन वर्ष पूर्व (प्लेइस्टोसिन युग) अवधि के हिंद महासागर के DWC डेटा को संकलित किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. महासागरीय धाराएँ और जलराशियाँ समुद्री जीवन और तटीय पर्यावरण पर अपने प्रभावों में किस प्रकार परस्पर भिन्न होते हैं? उपयुक्त उदाहरण दीजिये। (2019) प्रश्न. समुद्री धाराओं को प्रभावित करने वाली शक्तियाँ कौन सी हैं? विश्व के मत्स्य उद्योग में इनके योगदान का वर्णन कीजिये। (2022) |