डेली न्यूज़ (13 Nov, 2023)



NBFC और डिजिटल ऋण प्रथाओं पर CAFRAL की चिंता

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, उन्नत वित्तीय अनुसंधान एवं शिक्षण केंद्र, मौद्रिक नीति, कंपनी अधिनियम, 1956, जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम

मेन्स के लिये:

बैंकिंग सेक्टर के संबंध में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ: NBFC और बैंकों के बीच असमानताएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्थापित एक शोध निकाय सेंटर फॉर एडवांस्ड फाइनेंशियल रिसर्च एंड लर्निंग (CAFRAL) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिये बैंक वित्तपोषण में बढ़ते जोखिम को रेखांकित करते हुए डिजिटल ऋण परिदृश्य में संभावित खतरों की पहचान की है।

  • CAFRAL ने व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने वाले नकली/अवैध डिजिटल ऋण प्रदाता एप्स के विषय में भी चेतावनी दी, जो कि इस डेटा के संभावित दुरुपयोग के साथ ही उपयोगकर्त्ताओं के लिये सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करते हैं।

CAFRAL द्वारा उठाई गई प्रमुख चिंताएँ:

  • NBFC क्षेत्र में अन्योन्याश्रित जोखिम:
    • CAFRAL के अनुसार बैंक ज़्यादातर बड़े NBFC को ऋण देते हैं, जिससे NBFC क्षेत्र में  क्रॉस-लेंडिंग में वृद्धि हुई है।
      • यह अंतर-निर्भरता और संक्रमण चैनलों का एक नेटवर्क बनाता है जो झटके को बढ़ा सकता है तथा उसे पूरे सिस्टम में प्रसारित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में IL&FS के डिफॉल्ट होने और जून 2019 में DHFL के पतन के कारण तरलता संकट की स्थिति उत्पन्न हुई तथा NBFC के प्रति विश्वास में कमी देखी गई, जिससे उन बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता एवं लाभप्रदता प्रभावित हुई, जिन्होंने उन्हें ऋण दिया था।
  • NBFC पर संकुचनकारी मौद्रिक नीति का प्रभाव:
    • CAFRAL ने यह भी पाया कि संकुचनकारी मौद्रिक नीति के कारण NBFC के पोर्टफोलियो में जोखिम बढ़ जाता है।
    • जब RBI नीतिगत दर को सीमित करता है, तो NBFC को उच्च उधार लागत और कम लाभप्रदता का सामना करना पड़ता है।
      • अपने मार्जिन को बनाए रखने के लिये वे अपने ऋण को असुरक्षित ऋण, सबप्राइम उधारकर्त्ताओं आदि जैसे जोखिम वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कर देते हैं। वे इक्विटी और म्यूचुअल फंड में निवेश कर पूंजी बाज़ार में अपना जोखिम भी बढ़ाते हैं।
      • ये रणनीतियाँ उन्हें उच्च क्रेडिट जोखिम, बाज़ार जोखिम और तरलता जोखिम के संपर्क में लाती हैं, जो उनकी सॉल्वेंसी एवं स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
  • अवैध ऋण प्रदाता एप्स और फिनटेक प्रभाव के विषय में चेतावनियाँ:
    • ये नकली/अवैध डिजिटल ऋण प्रदाता एप्स, वैध होने का दिखावा करने और संभावित दुरुपयोग के लिये व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने के विषय में चेतावनी भी देते हैं।
    • उपयोगकर्त्ता इन एप्स की वैधता को आसानी से सत्यापित नहीं कर सकते हैं। इनके बीच मज़बूत संबंध होते हैं तो पारंपरिक बैंकिंग को प्रभावित करने वाले ऑनलाइन ऋण के संभावित नुकसान के विषय में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
      • ये एप अक्सर व्यापक व्यक्तिगत जानकारी का अनुरोध करती हैं जिससे उपभोक्ता की सुरक्षा और गोपनीयता को खतरा होता है, हालाँकि कुछ डेटा वास्तव में आवश्यक हो सकते हैं।
      • भारतीय एंड्रॉइड उपयोगकर्त्ताओं के लिये 80 एप स्टोर्स पर लगभग 1100 ऋण प्रदाता एप्स (Lending Apps) की उपलब्धता के साथ फिनटेक (FinTech) ने उत्पाद विविधता में वृद्धि की है।

नोट: डिजिटल ऋण पारंपरिक भौतिक दस्तावेज़ीकरण या व्यक्तिगत बातचीत की आवश्यकता के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या डिजिटल चैनलों के माध्यम से व्यक्तियों या व्यवसायों को ऋण या क्रेडिट प्रदान करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC): 

  • परिचय: 
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ के तहत पंजीकृत एक कंपनी है जो ऋण, प्रतिभूतियों में निवेश, पट्टे, बीमा जैसी विभिन्न वित्तीय गतिविधियों में संलग्न होती है।
    • इसमें वे संस्थान शामिल नहीं हैं जिनका प्राथमिक व्यवसाय कृषि, उद्योग, वस्तु व्यापार, सेवाएँ या अचल संपत्ति व्यापार के अंतर्गत आता है।
  • मानदंड: 
    • वित्तीय गतिविधि ‘प्रमुख व्यवसाय’ तब कहलाएगी, जब कंपनी की वित्तीय आस्तियाँ कुल आस्तियों की 50 प्रतिशत से अधिक हो और वित्तीय आस्तियों से होने वाली आय कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक हो। 
      • दोनों मानदंडों को पूरा करने वाली कंपनियों को RBI द्वारा NBFC के रूप में पंजीकृत किया जाता है।
      • RBI अधिनियम 1934 के तहत रिज़र्व बैंक को इन NBFC को पंजीकृत करने, नीति निर्धारित करने, निर्देश जारी करने, निरीक्षण, विनियमन, पर्यवेक्षण और निगरानी करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।

नोट: मुख्य रूप से कृषि, उद्योग, वस्तु व्यापार, सेवाओं या रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में लगी कंपनियों को RBI द्वारा विनियमित नहीं किया जाएगा, भले ही वे कुछ वित्तीय गतिविधियाँ संचालित करते हों। यह बहिष्करण '50-50 परीक्षण' का उपयोग करके निर्धारित किया जाता है।

  • RBI के साथ पंजीकरण से छूट:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-IA के अनुसार कोई भी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी 25 लाख रुपए निवल स्वाधिकृत निधि के बिना (अप्रैल 1999 से 2 करोड़ रुपए) तथा रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किये बगैर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान का कारोबार नहीं कर सकती अथवा जारी नहीं रख सकती है। 
    • हालाँकि अन्य प्राधिकरणों द्वारा विनियमित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कुछ वर्गों जैसे- सेबी से पंजीकृत वेंचर कैपिटल फंड/मर्चेंट बैंकिंग कंपनियों/ स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण कराने से छूट दी गई है।
  • NBFC और बैंकों में अंतर: 
    • बैंकों के विपरीत NBFC को जनता से मांग जमा स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया जाता है, जो आमतौर पर इस प्रकार की जमा स्वीकार करते हैं जिन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के मांग पर निकाला जा सकता है।
    • बैंकों के विपरीत NBFC भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं बनते हैं। वे स्वयं आहरित चेक जारी करने में असमर्थ हैं, जो बैंकों द्वारा प्रस्तावित एक मानक प्रथा है।
    • बैंकों के विपरीत निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम जैसी संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली जमा बीमा सुविधा NBFC के जमाकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध नहीं है।
      • बैंक विफलताओं के मामले में यह बीमा जमाकर्त्ताओं को सुरक्षा प्रदान करता है, किंतु यह सुरक्षा NBFC जमाकर्त्ताओं को नहीं दी जाती है।
  • अनुदान: 
    • NBFC मुख्य रूप से बाज़ार ऋण-ग्रहण एवं बैंक ऋण के माध्यम से अपने परिचालन को वित्तपोषित करते हैं।

आगे की राह 

  • अंतर्संबंध तथा स्पिलओवर की निगरानी: RBI तथा अन्य नियामकों को नेटवर्क विश्लेषण, तनाव परीक्षण, प्रारंभिक चेतावनी संकेतक आदि जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग करके NBFC एवं बैंकों समेत NBFC क्षेत्र के बीच अंतर्संबंध व स्पिलओवर की निगरानी को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • प्रभावी सूचना साझाकरण तथा संकट प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये उन्हें परस्पर समन्वय एवं  सहयोग करने की भी आवश्यकता है।
  • जोखिम प्रबंधन तथा प्रशासन: NBFC में संभावित जोखिमों को प्रभावी ढंग से पहचानने, उनका आकलन एवं कम करने के लिये जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को सशक्त करना चाहिये।
    • ठोस निर्णय लेने एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये कॉर्पोरेट प्रशासन तथा नियामक निरीक्षण को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल ऋण की नियामक निगरानी: उपभोक्ता संरक्षण कानूनों एवं डेटा गोपनीयता नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल ऋण अनुप्रयोगों पर नियामक निगरानी को सुदृढ़ करना।
    • ऋण प्रदाता एप्स की वैधता तथा प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश लागू करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. वे सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों के अधिग्रहण में शामिल नहीं हो सकतीं।
  2. वे बचत खाते की तरह मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकतीं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और ना ही 2

उत्तर: (b)


लॉस एंड डैमेज फंड

प्रिलिम्स के लिये:

‘लॉस एंड डैमेज' (L&D) फंड, जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-27, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

बढ़ते जलवायु संकट के संदर्भ में लॉस एंड डैमेज' (L&D) फंड तथा अनुकूलन हाल ही में चर्चा में रहा।

लॉस एंड डैमेज फंड क्या है?

  • परिचय:
    • ‘लॉस एंड डैमेज' (L&D) फंड एक वित्तीय सहायता तंत्र है जिसे जलवायु परिवर्तन के उन अपरिवर्तनीय परिणामों का समाधान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिन्हें अनुकूलन प्रयासों के माध्यम से टाला अथवा कम नहीं किया जा सकता है।
      • अनुकूलन प्रयास जलवायु परिवर्तन के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया और जीवित रहने की कला है जिसका उपयोग कर समुदाय एवं देश जलवायु-संबंधी चुनौतियों से निपटने तथा तैयारी के लिये कारागार विकल्प चुनते हैं।
    • इस फंड का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण समुदायों, देशों और पारिस्थितिक तंत्रों को हुई हानि की पहचान करना है तथा उसकी क्षतिपूर्ति करना है।
      • ये हानियाँ मौद्रिक मूल्य से परे हैं तथा मूलतः मानव अधिकारों, कल्याण एवं पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
  • L&D फंड की उत्पत्ति एवं विकास:
    • ऐतिहासिक जवाबदेही तथा शुरुआत:
      • 30 वर्षों से समृद्ध देशों से उनके ऐतिहासिक प्रदूषण के प्रति ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने का लगातार आह्वान किया जाता रहा है, जिसने विश्व की औसत सतह के तापमान को 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ा दिया है।
        • यह ऐतिहासिक प्रदूषण वर्तमान में विश्व भर में विशेषकर सबसे गरीब देशों को गंभीर रूप से क्षति पहुँचा रहा है।
      • COP-19 (2013):
    • बाद के विकास और चुनौतियाँ:
      • COP-25:
        • COP-19 के बाद L&D के लिये सैंटियागो नेटवर्क COP-25 में स्थापित किया गया था। हालाँकि इस बिंदु पर देशों ने पहल का समर्थन करने हेतु कोई धनराशि नहीं दी।
      • COP-26:
        • ग्लासगो में वर्ष 2021 में आयोजित COP-26 जलवायु शिखर सम्मेलन का उद्देश्य फंड के संचालन के संबंध में अगले तीन वर्षों में वार्ता को जारी रखना था।
      • COP-27 (नवंबर 2022):
        • COP-27 में व्यापक चर्चा के बाद UNFCCC के सदस्य देशों के प्रतिनिधि L&D फंड स्थापित करने पर सहमत हुए। इसके अतिरिक्त यह पता लगाने के लिये एक ट्रांज़िशनल कमेटी (TC) की स्थापना की गई थी कि फंड के तहत नए फंडिंग तंत्र का संचालन किस प्रकार से होगा।
          • TC को सिफारिशें तैयार करने का काम सौंपा गया था, जिन पर COP-28 के दौरान विचार किया जा सके तथा देशों द्वारा संभावित रूप से उन सिफारिशों को अपनाया जा सके।
    • TC-4 और TC-5 पर गतिरोध:
      • TC-4 की बैठक:
        • TC-4 की चौथी बैठक में L&D फंड के संचालन पर कोई स्पष्ट सहमति नहीं बन पाई।
        • विवाद के प्रमुख बिंदुओं में विश्व बैंक में फंड की मेज़बानी, साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (Common But Differentiated Responsibility- CBDR) का मूलभूत सिद्धांत, जलवायु क्षतिपूर्ति से संबंधित मुद्दे और फंड के लिये सभी विकासशील देशों की पात्रता शामिल है।
      • TC-5 की बैठक:
        • TC5 की सिफारिशों का मसौदा तैयार कर लिया गया है और COP 28 को भेज दिया गया है।

लॉस एंड डैमेज फंड के संबंध में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विकसित देशों की अनिच्छा:
    • विकसित देश, विशेष रूप से अमेरिका जैसे देश फंड के प्राथमिक दाता होने के संबंध में अनिच्छुक रहे हैं। उनका समर्थन स्वैच्छिक है, जो फंड के उद्देश्यों के प्रति प्रतिबद्धता के विषय में चिंताएँ बढ़ाता है।
      • धनी देशों की अपनी स्वयं की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अनिच्छा वैश्विक जलवायु वार्ता में विश्वास को कम करती है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये आवश्यक सहकार की भावना को बाधित करती है।
  • फंड को लेकर अनिश्चितता:
    • वर्तमान में L&D फंड के आकार को लेकर कोई स्पष्ट संकेत नहीं है और UK एवं ऑस्ट्रेलिया के दबाव में फंड के आकार को निर्दिष्ट करने के किसी भी प्रयास को रद्द कर दिया गया था।
      • वर्तमान मसौदा किसी स्पष्ट प्रतिबद्धता या रूपरेखा के बिना केवल विकसित देशों को धनराशि उपलब्ध कराने के आग्रह के साथ उन्हें आमंत्रित करता है।
  • कूटनीतिक विघटन और वैश्विक परिणाम:
    • विकासशील राष्ट्र यह मानते हुए असंतोष व्यक्त करते हैं कि उनकी चिंताओं और आवश्यकताओं को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है
      • यह जलवायु कार्रवाई की राह को जटिल बनाता है और अन्य वैश्विक मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के विषय में संदेह उत्पन्न करता है।
    • तत्काल कूटनीतिक और विश्वास-संबंधी नतीजों से परे L&D फंड की कमी के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। यह जलवायु न्याय के लिये खतरा है और उन विकासशील देशों में कमज़ोर समुदायों की समस्याओं को बढ़ा देता है, जिन्होंने वैश्विक उत्सर्जन में न्यूनतम योगदान दिया है लेकिन जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहे हैं।
  • जलवायु-परिवर्तन-प्रेरित अस्थिरता के सुरक्षा निहितार्थ:
    • जलवायु-परिवर्तन-प्रेरित अस्थिरता के कारण सुरक्षा संबंधी प्रभाव देखे जा सकते हैं क्योंकि कमज़ोर देशों में संघर्ष तथा तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • इन संघर्षों का सीमा पार प्रभाव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
    • तात्कालिक परिणामों से परे कमज़ोर समुदायों के लिये समर्थन की अनुपस्थिति के कारण भोजन की कमी, व्यक्तियों के विस्थापन और संघर्ष सहित मानवीय संकटों में वृद्धि हो सकती है।
      • यह समुदायों को जलवायु संकट और उसके परिणामों से स्वतंत्र रूप से निपटने के लिये मज़बूर करता है।

आगे की राह

  • वैश्विक प्रतिबद्धता: विकसित देशों के लिये मज़बूत वित्तीय प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हुए L&D फंड में प्राथमिक दाताओं के रूप में सक्रिय योगदान करने का आग्रह करना।
  • पारदर्शिता और संरचना: फंड के आकार, परिचालन दिशा-निर्देश और आवंटन तंत्र को परिभाषित करने, स्पष्टता और जवाबदेही के लिये पारदर्शी चर्चा का समर्थन करना।
  • समावेशी कूटनीति: खुले राजनयिक संवादों को बढ़ावा देना जो विकासशील देशों की चिंताओं को संबोधित करते हैं, प्रभावी जलवायु कार्रवाई और वैश्विक मुद्दे के समाधान के लिये सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • सुरक्षा निहितार्थ: जलवायु-प्रेरित अस्थिरता से सुरक्षा निहितार्थों को सक्रिय रूप से संबोधित करना, मानवीय संकटों से निपटने के उपायों को लागू करना और कमज़ोर समुदायों का समर्थन करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:  

प्रश्न. नवंबर 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में सी.ओ.पी.-26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021)

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)


भारत-इथियोपिया संयुक्त व्यापार समिति का छठा सत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-इथियोपिया संयुक्त व्यापार समिति (JTC), एकीकृत भुगतान इंटरफेस

मेन्स के लिये:

भारत-इथियोपिया संबंध, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

स्रोत: पी. आई. बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-इथियोपिया संयुक्त व्यापार समिति (JTC) का छठा सत्र अदीस अबाबा (इथियोपिया) में आयोजित किया गया। इसमें आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये दोनों देशों के अधिकारियों ने भी भाग लिया।

भारत-इथियोपिया संयुक्त व्यापार समिति (JTC):

  • भारत-इथियोपिया JTC एक द्विपक्षीय मंच है जो दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश संबंधों की समीक्षा तथा उन्हें बढ़ाने के लिये समय-समय पर बैठक करता है।
  • JTC की सह-अध्यक्षता भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा इथियोपिया के व्यापार एवं क्षेत्रीय एकीकरण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जाती है।
  • JTC व्यापार, निवेश, सहयोग एवं नीतिगत मामलों से संबंधित विषयों तथा विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करती है।

JTC बैठक के प्रमुख बिंदु:

  • भारत ने इथियोपिया के एथस्विच के साथ यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) को एकीकृत करने पर सहयोग के लिये इथियोपिया को आमंत्रित किया।
  • एथस्विच इथियोपिया में एक भुगतान प्लेटफॉर्म बुनियादी ढाँचा है।
  • भारतीय पक्ष ने इथियोपिया से स्थानीय मुद्रा में व्यापारिक लेन-देन के निपटान की संभावना का पता लगाने का भी आग्रह किया, जिससे द्विपक्षीय व्यापार संबंधों तथा विदेशी मुद्रा के संरक्षण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल्‍स, कपड़ा, बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ, खाद्य तथा कृषि प्रसंस्करण इत्यादि शामिल हैं।
  • दोनों पक्षों ने मानकीकरण और गुणवत्ता आश्वासन तथा सीमा शुल्क प्रक्रिया के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन (MoU) को लेकर जारी चर्चाओं की प्रगति की भी समीक्षा की तथा उन्हें शीघ्रता से पूरा करने पर सहमति व्यक्त की।

भारत-इथियोपिया व्यापार संबंध कैसे रहे हैं?

  • भारत इथियोपिया के लिये दीर्घकालिक रियायती ऋण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है, जिसमें ग्रामीण विद्युतीकरण, चीनी उद्योग और रेलवे जैसे क्षेत्रों के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक का ऋण शामिल है।
  • भारत और इथियोपिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 642.59 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • वर्ष 2021-22 में इथियोपिया की अर्थव्यवस्था अनुमानित 6.4% बढ़ी।
  • भारत इथियोपिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • भारतीय कंपनियाँ इथियोपिया में शीर्ष तीन विदेशी निवेशकों में शामिल हैं, जिनका मौजूदा निवेश कुल 5 अरब अमेरिकी डॉलर है।
  • इथियोपिया और भारत के बीच कई उच्च-स्तरीय यात्राएँ हुई हैं, जिनमें मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों की यात्राएँ शामिल हैं।

इथियोपिया के संबंध में मुख्य तथ्य:

  • यह अफ्रीका के हॉर्न में स्थित स्थल-रुद्ध देश है, जिसे आधिकारिक तौर पर इथियोपिया के संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में जाना जाता है।
    • इसकी राजधानी अदीस अबाबा है।
  • इथियोपिया के दक्षिण-पूर्व में सूडान, दक्षिण में इरिट्रिया, पश्चिम में जिबूती और सोमालिया, उत्तर में केन्या तथा पूर्व में दक्षिण सूडान में स्थित है।
  • इसके बावजूद कि यूरोपीय देशों ने अफ्रीका के 90% हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, इथियोपिया विश्व के सबसे पुराने उन देशों में से एक है जो उपनिवेश होने से बच गए।
  • इथियोपियाई कैलेंडर में 30 दिनों के 12 महीने होते हैं, साथ ही पाँच या छह अतिरिक्त दिन (कभी-कभी इसे 13वें महीने के रूप में भी जाना जाता है)।
  • रास डेजेन (या डैशेन), इथियोपिया की सबसे ऊँची चोटी है।
  • इथियोपिया की सबसे बड़ी झील ताना झील है और यह ब्लू नील नदी (Blue Nile River) का स्रोत है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक सही सुमेलित है? (2013)

भौगोलिक लक्षण    :     प्रदेश

(a) एबिसिनी पठार :   अरब

(b) एटलस पर्वत    :    उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका

(c) गुयाना उच्चभूमि :  दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका

(d) ओकावांगो द्रोणी :  पैटागोनिया

उत्तर: (b)

  • एबिसिनियन पठार इथियोपिया (अफ्रीका) में एक पठार है जो समुद्र तल से 1388 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
  • एटलस पर्वत उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में पर्वतों की एक शृंखला है, जो आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक फैली हुई है। यह माघरेब (Maghreb-अरब दुनिया का पश्चिमी क्षेत्र) - मोरक्को, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया के देशों का भूगर्भिक आधार बनाता है।
  • गुयाना हाइलैंड्स उत्तरी दक्षिण अमेरिका का वह क्षेत्र है जहाँ ब्राज़ील, गुयाना और वेनेज़ुएला माउंट रोराइमा (Mount Roraima) पर मिलते हैं। यह ओरिनोको तथा अमेज़न नदी घाटियों एवं गुयाना के तटीय तराई क्षेत्रों से घिरा हुआ है।
  • ओकावांगो नदी द्रोणी दक्षिणी अफ्रीका की चौथी सबसे लंबी नदी प्रणाली है। यह दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका में पाया जाने वाला एक एंडोरहिक बेसिन (Endorheic Basin- जलक्षेत्र जो समुद्र में नहीं प्रवाहित होता है) है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


भारत और नीदरलैंड संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और नीदरलैंड संबंध, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), चिकित्सा उत्पाद विनियमन, विश्व स्थानीय उत्पादन मंच (WLPF)

मेन्स के लिये:

भारत और नीदरलैंड संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह, भारत और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रतिनिधियों ने नीदरलैंड का दौरा किया, जहाँ दोनों पक्षों ने चिकित्सा उत्पाद विनियमन पर सहयोग करने तथा दोनों देशों के लिये चिकित्सा उत्पादों एवं स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये एक आशय पत्र (MoI) पर हस्ताक्षर किये।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने हेग में दूसरे विश्व स्थानीय उत्पादन मंच (WLPF) की बैठक में भाग लिया।

  • WLPF विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा दवाओं एवं स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों तक पहुँच बढ़ाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया एक मंच है।

नीदरलैंड के बारे में प्रमुख तथ्य:

  • सीमाएँ: पूर्व में जर्मनी, दक्षिण में बेल्ज़ियम और उत्तर-पश्चिम में उत्तरी सागर।
  • राजधानी: एम्स्टर्डम (आधिकारिक), हेग (सरकार की सीट)।
  • सरकार: संसदीय प्रणाली के साथ संवैधानिक राजतंत्र।
  • प्रमुख नदियाँ: राइन, म्यूज़ और शेल्ड्ट।

भारत-नीदरलैंड संबंध कैसे रहे हैं?

  • राजनयिक गठबंधन:
    • भारत और नीदरलैंड ने वर्ष 1947 में राजनयिक संबंध स्थापित किये। वर्ष 2022 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 वर्ष पूरे किये।
    • वर्तमान में दोनों देशों के बीच मज़बूत राजनीतिक, आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध हैं।
    • उच्च स्तरीय आपसी आदान-प्रदान ने दोनों देशों के बीच बहुआयामी साझेदारी को गति प्रदान की है।
  • द्विपक्षीय व्यापार और निवेश:
    • नीदरलैंड यूरोप में भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है (अप्रैल 2000-मार्च 2023 तक)। यह भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक भी है।
    • वर्ष 2022-23 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार 27.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
    • अप्रैल 2000-मार्च 2023 तक नीदरलैंड से भारत में संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) का प्रवाह 43.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • भारत से नीदरलैंड को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ:
    • भारत ने FY22 में नीदरलैंड को 4,610 वस्तुओं का निर्यात किया।
    • अप्रैल-मई 2023-24 तक नीदरलैंड को भारत का निर्यात 3.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • अप्रैल-मई 2023-24 के दौरान भारत से नीदरलैंड को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, दूरसंचार उपकरण, एल्युमीनियम और एल्युमीनियम उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, लोहा तथा इस्पात आदि शामिल हैं।
  • हालिया विकास:
    • भारत में डच कंपनियों ने निवेश की सुविधा के लिये भारत व नीदरलैंड के बीच औपचारिक रूप से एक द्विपक्षीय फास्ट-ट्रैक तंत्र (FTM) स्थापित करने के लिये उद्योग तथा आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) एवं नीदरलैंड के दूतावास के माध्यम से सितंबर 2022 में एक संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये। 
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग:
    • नीदरलैंड्स ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर साइंटिफिक रिसर्च (NWO) भारत सरकार के विभिन्न विभागों के साथ सहयोग करता है।
    • उदाहरण के लिये "स्‍वस्‍थ्‍य पुन: उपयोग सयंत्र के लिये शहरी सीवेज स्ट्रीम के स्‍थानीय उपचार (Local Treatment of Urban Sewage Streams for Healthy Reuse, LOTUS-HR)" शीर्षक से एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 
      • LOTUS-HR परियोजना भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग एवं डच NWO-TTW द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों एवं  कंपनियों का भारत-नीदरलैंड संयुक्त सहयोग है।
  • जल प्रबंधन में सहयोग:
    • डच इंडो वाटर अलायंस लीडरशिप इनिशिएटिव (DIWALI) नामक एक मंच विकसित किया गया है जिसमें भारत तथा नीदरलैंड जल संबंधी चुनौतियों के समाधानों की रूपरेखा तैयार करने हेतु भाग ले सकते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में सहयोग:
    • भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिये नीदरलैंड द्वारा पहचाने गए प्रमुख क्षेत्रों में से एक कृषि है।
    • कृषि पर 5वीं संयुक्त कृषि कार्य समूह (Joint Agriculture Working Group- JAWG) की बैठक वर्ष 2018 में नई दिल्ली में हुई।
    • JAWG के तहत एक कार्य योजना पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें बागवानी, पशुपालन एवं डेयरी, मत्स्यपालन तथा खाद्य प्रसंस्करण में उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित करने में सहयोग की परिकल्पना की गई है।
    • इसके अतिरिक्त कोल्ड चेन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन आदि के क्षेत्र में कौशल विकास एवं क्षमता निर्माण में सहयोग करना शामिल है।
  • स्वास्थ्य सेवा सहयोग:
    • संचारी रोगों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से जुड़ी उभरती स्वास्थ्य चुनौतियों में अधिक अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने हेतु जनवरी 2014 में स्वास्थ्य देखभाल एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे।

निष्कर्ष:

  • भारत और नीदरलैंड के बीच संबंध 17वीं शताब्दी की शुरुआत से हैं।
  • लंबे समय से प्रशंसनीय यह ऐतिहासिक संबंध दोनों देशों के बीच साझा मूल्यों, कानून का शासन, बहुलवाद और लोगों से लोगों के बीच संबंध पर आधारित है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर सहयोग ने निस्संदेह नीदरलैंड और भारत को करीब ला दिया है।
  • दोनों देश व्यापार और अर्थव्यवस्था, ऊर्जा परिवर्तन, स्मार्ट शहर और शहरी गतिशीलता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग, जल प्रबंधन तथा कृषि क्षेत्र, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल एवं संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग स्थापित कर वैश्विक चुनौतियों को मिलकर हल करने के लिये मज़बूती से प्रयास कर रहे हैं।

बेलर मशीन

प्रिलिम्स के लिये:

बेलर मशीन, पराली प्रबंधन, फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) योजना, वनाग्नि, बेलर मशीन, पराली दहन के विकल्प, इन-सीटू पराली उपचार, जैव-अपघटक, टर्बो हैप्पी सीडर (THS), कृषि में बेलर, वायु प्रदूषण, मृदा क्षरण

मेन्स के लिये:

किसानों की सहायता में प्रौद्योगिकी, कृषि के लिये प्रौद्योगिकी का विकास, पराली प्रबंधन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

वनाग्नि की समस्या को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए जाने के साथ ही बेलर मशीन जो एक्स-सीटू (ऑफ-साइट) पराली प्रबंधन की सुविधा प्रदान करती है, की मांग पंजाब और आस-पास के क्षेत्रों में देखी जा रही है।

  • बेलर मशीनें लगभग एक दशक से अस्तित्व में हैं तथा वर्तमान में लगभग 2,000 का उपयोग पंजाब में किया जा रहा है। इनमें से 1,268 को केंद्र की फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management- CRM) योजना के तहत अत्यधिक सब्सिडी (50-80%) दी जाती है।

फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) योजना:

  • परिचय: 
  • योजना के तहत वित्तीय सहायता:
    • इसके अंतर्गत  फसल अवशेष प्रबंधन के तहत मशीनरी की खरीद के लिये किसानों को 50% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और पंचायतों को कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) की स्थापना के लिये 80% की दर से वित्तीय सहायता मिलती है।
  • योजना के तहत समर्थित मशीनें:
    • सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, ज़ीरो टिल सीड कम फर्टिलाइज़र ड्रिल, मल्चर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, हाइड्रॉलिकली रिवर्सेबल मोल्ड बोर्ड प्लो, क्रॉप रीपर, रीपर बाइंडर्स, बेलर और रेक।

बेलर मशीन क्या है?

  • परिचय: 
    • बेलर पराली के संपीड़न में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो फसल अवशेषों को घने, प्रबंधनीय पैकेजों में जमा करने के लिये हाइड्रोलिक प्रेस के रूप में कार्य करती हैं। इन संपीड़ित पराली को सुतली, तार अथवा स्ट्रैपिंग का उपयोग करके सुरक्षित रूप से बाँधा जाता है।
      • बेलर मशीन का उपयोग करने से पहले किसान फसल अवशेषों को ट्रैक्टर पर लगे कटर से काटते हैं। ट्रैक्टर पर लगी बेलर मशीन जाल का उपयोग करके पराली को कॉम्पैक्ट गाँठों में संपीड़ित करती है।

  • महत्त्व:
    • पर्यावरण संरक्षण: इससे फसल के डंठल जलाने की आवश्यकता नहीं होती है, जो वायु प्रदूषण एवं मृदा के क्षरण को कम करने में योगदान देता है।
      • किसान कटाई के बाद पराली को जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषण होता है। बेलर पराली को संपीड़ित करके उसे गाँठो में तब्दील करके जलाने का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करती है।     
    • संसाधन दक्षता: यह पराली को कुशलतापूर्वक संपीड़ित करती है, जिससे प्रबंधन, परिवहन और भंडारण करना आसान हो जाता है।
      • यह किसानों को तुरंत खेत की जुताई करने और अगली फसल बोने में सक्षम बनाती  है।
    • आर्थिक लाभ: एक मूल्यवान संसाधन के रूप में संपीड़ित पराली की बिक्री के माध्यम से राजस्व सृजन के रास्ते खुलते हैं।
  • पराली दहन के विकल्प:
    • पराली का स्व-स्थानिक उपचार: उदाहरण के लिये ज़ीरो-टिलर मशीन द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन और जैव-अपघटकों (जैसे- पूसा बायो-डीकंपोज़र) का उपयोग
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन, जो पराली को उखाड़ कर साफ किये गए क्षेत्र में बीजों की बुवाई भी कर सकती है। फिर पराली को खेत में गीली घास के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

बेलर्स से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • उच्च इनपुट लागत: एक बेलर की लागत बिना सब्सिडी के लगभग 14.5 लाख रुपए है। वर्तमान में पंजाब में लगभग 700 गैर-सब्सिडी वाले बेलर कार्य कर रहे हैं।
    • सामर्थ्य का मुद्दा: फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत शामिल किये जाने के बाद पहले दो वर्षों में कोई बेलर इकाइयाँ नहीं बेची गईं।
  • पर्याप्त मशीनों की अनुपलब्धता: पंजाब में लगभग 32 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है, लेकिन राज्य में उपलब्ध बेलर्स द्वारा इस क्षेत्र का केवल 15-18% ही कवर किया जा सकता है। एक बेलर एक दिन में केवल 15-20 एकड़ को ही कवर कर सकता है।

पराली दहन क्या है? 

  • पराली दहन दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ सितंबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर तक गेहूँ की बुआई के लिये धान की फसल के अवशेषों को खेत से हटाने की एक विधि है।  
  • पराली दहन धान, गेहूँ आदि जैसे अनाजों की कटाई के बाद बचे अवशेषों को आग लगाने की एक प्रक्रिया है। यह सामान्यतः उन क्षेत्रों में आवश्यक है जहाँ कंबाइंड  हार्वेस्टिंग  विधि का उपयोग किया जाता है जो फसल अवशेषों को छोड़ देती है।


आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC)

मेन्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट, आईटी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में जैव अर्थव्यवस्था के योगदान को 2.6% से बढ़ाकर 5% करना है, जैसा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा 'बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2022' में बताया गया है।

  • भारत में जैव प्रौद्योगिकी वित्तपोषण सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.0001% आवंटन के साथ स्थिर बना हुआ है। कोविड-19 के दौरान अस्थायी वृद्धि के बावजूद वित्तपोषण का स्तर महामारी-पूर्व मानकों पर वापस नहीं आया है।
  • अप्रैल 2023 में DBT द्वारा जारी 'आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Engineered- GE) कीटों के लिये दिशा-निर्देश' उन लोगों हेतु प्रक्रियात्मक रोडमैप प्रदान करते हैं जो GE कीट निर्माण में रुचि रखते हैं लेकिन उनकी अपनी समस्याएँ हैं

जैव अर्थव्यवस्था क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, जैव अर्थव्यवस्था “एक सतत् अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के उद्देश्य से सभी आर्थिक क्षेत्रों को सूचना, उत्पाद, प्रक्रियाएँ और सेवाएँ प्रदान करने के लिये संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सहित जैविक संसाधनों का उत्पादन, उपयोग तथा संरक्षण है”।
  • यूरोपीय संघ (EU) तथा आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा नए उत्पादों एवं बाज़ारों को विकसित करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा के रूप में अपनाए जाने के बाद 21वीं सदी के पहले दशक में लोकप्रिय हुआ। तब से यूरोपीय संघ और OECD दोनों ने विशिष्ट जैव-आर्थिक नीतियों को लागू किया है।

बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2022 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • भारत की जैव अर्थव्यवस्था मज़बूत विकास पथ पर है, जिसके वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने और वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।
  • इस क्षेत्र में उल्लेखनीय 14.1% की वृद्धि हुई, जो वर्ष 2020 के 70.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2021 में 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई।
    • जैव अर्थव्यवस्था ने प्रतिदिन 219 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का उत्पादन किया, जो इसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव को दर्शाता है।
  • वर्ष 2021 में इस क्षेत्र में प्रतिदिन तीन बायोटेक स्टार्टअप की स्थापना हुई, जो वर्ष में कुल 1,128 थीं।
  • अनुसंधान और विकास में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश के साथ यह उद्योग नवाचार और उन्नति के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रहा है।
  • वैश्विक महामारी के बीच भारत ने अपने लचीलेपन और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए 4 मिलियन कोविड-19 वैक्सीन खुराक  प्रदान की और प्रतिदिन 3 मिलियन परीक्षण किये।
  • पिछले एक दशक में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या 50 से बढ़कर 5,300 से अधिक हो गई है तथा वर्ष 2025 तक दोगुनी होने की उम्मीद है।
  • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) ने जैव-उद्यमियों के लिये एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने, 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 74 जैव-ऊष्मायन केंद्र स्थापित करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • विशेष रूप से भारत अमेरिका के बाहर USFDA (यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या का दावा करता है, जो बायोटेक उद्योग में इसकी वैश्विक स्थिति को रेखांकित करता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट क्या हैं? 

  • परिचय:
    • GE कीट ऐसे जीव हैं जिनकी आनुवंशिक सामग्री को विशिष्ट वांछित लक्षण अथवा विशेषताओं को पेश करने के लिये आनुवंशिक संशोधन तकनीकों के माध्यम से परिवर्तित कर दिया गया है।
    • इसमें कीट के DNA में इस तरह से हेर-फेर करना शामिल है जो स्वाभाविक रूप से नहीं होता है, अक्सर कुछ लाभ प्रदान करने या विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से।
    • इसमें अमूमन लाभ प्रदान करने अथवा विशेष समस्याओं को हल करने के प्रयास में कीट के DNA को इस तरह से संशोधित करना शामिल है जो प्रकृति में नहीं देखा जाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • GE कीटों का विकास विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयोग प्रदान करता है, जैसे-
      • मानव व पशुधन स्वास्थ्य में वेक्टर प्रबंधन
      • प्रमुख फसल कीटों का प्रबंधन
      • रसायनों के उपयोग में कमी के माध्यम से मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का रखरखाव तथा उसमें सुधार
      • स्वास्थ्य देखभाल प्रयोजनों के लिये प्रोटीन का उत्पादन
      • शिकारी, परजीवी, परागणकर्त्ता (जैसे मधुमक्खी) अथवा उत्पादक कीट (जैसे रेशमकीट, लाख कीट) आदि लाभकारी कीटों का आनुवंशिक सुधार।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) कीट दिशा-निर्देशों से संबंधित मुद्दे:
    • भारत में GE कीटों के उपयोग के बारे में दिशा-निर्देश अस्पष्ट हैं। वे स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्रों में अनुप्रयोगों पर ज़ोर देते हैं, लेकिन उनका ध्यान जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के बड़े लक्ष्य के अनुरूप नहीं है।
      • शोधकर्त्ताओं के लिये अनिश्चितता: दिशा-निर्देश अनुसंधान तक सीमित हैं एवं सीमित परीक्षणों अथवा नियोजन को संबोधित नहीं करते हैं। नियोजन के लिये सरकारी मंज़ूरी पर अनिश्चितता व्यक्तिगत प्राथमिकता से परे सामुदायिक प्रदर्शन के बारे में चिंता पैदा करती है।
      • दायरे की अनिश्चितता: GE कीटों के संदर्भ में 'फायदेमंद' की परिभाषा को लेकर अस्पष्टता है, जो फंड प्रदाता तथा वैज्ञानिकों को निवेश करने से रोकती है। अन्य जीन-संपादन दिशा-निर्देशों में भी इसी तरह की अस्पष्टताएँ मौजूद हैं, जो प्रगति को प्रभावित कर रही हैं।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) कीटों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • एक बड़ी चिंता पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों को छोड़ने का संभावित पारिस्थितिक प्रभाव हो सकता है। ऐसा जोखिम है कि ये कीट गैर-लक्षित प्रजातियों को प्रभावित कर अथवा मौजूदा आबादी के संतुलन को बदलकर पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर सकते हैं।
  • अनायास नतीजे: 
    • यह आनुवंशिक रूप से संशोधित एक जटिल प्रक्रिया है और इसके अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। लक्षित जीन में परिवर्तन से कीट के व्यवहार, जीवन काल या अन्य जीवों के साथ अंतःक्रिया पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है।
    • संशोधित जीन की लक्षित आबादी से परे फैलने का जोखिम है। यदि संशोधित कीट जंगली आबादी के साथ प्रजनन करते हैं, तो संशोधित जीन जंगली जीन पूल में प्रवेश कर सकते हैं, जिसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।
  • नैतिक चिंताएँ:
    • कुछ व्यक्ति जीवित जीवों की आनुवंशिकी को बदलने की नैतिकता के विषय में चिंतित हैं, खासकर जब पर्यावरण में उनकी रिहाई शामिल होती है।
  • नियामक चुनौतियाँ:
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों के लिये नियामक ढाँचा विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सुरक्षा और प्रभावशीलता दोनों सुनिश्चित करने के लिये परीक्षण, निगरानी तथा निरीक्षण का उचित स्तर निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • दीर्घकालिक स्थिरता:
    • पीढ़ी-दर-पीढ़ी संशोधित किये गए लक्षणों की स्थिरता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। आनुवंशिक संशोधनों को प्रभावी रहना चाहिये और उनमें खराबी नहीं आनी चाहिये या यह प्राकृतिक चयन के दबाव के अधीन नहीं होना चाहिये जो उनके इच्छित उद्देश्य से समझौता कर सकता है।
  • लागत और मापनीयता:
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट प्रौद्योगिकियों का विकास और कार्यान्वयन महँगा हो सकता है। रोग वेक्टर नियंत्रण जैसे बड़े पैमाने के अनुप्रयोगों के लिये लागत-प्रभावशीलता और मापनीयता सुनिश्चित करना एक निरंतर चुनौती है।

आगे की राह

  • जैव अर्थव्यवस्था के लिये निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु व्यापक और स्पष्ट नीतियाँ आवश्यक है और इन मुद्दों को संबोधित करना क्षेत्र की वृद्धि तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान के लिये  महत्त्वपूर्ण है।
  • GM कीटों से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, नैतिकतावादियों और जनता को शामिल करते हुए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संभावित जोखिमों को कम करते हुए आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों के लाभ प्राप्त हो।
  • इन जटिलताओं से ज़िम्मेदारीपूर्वक निपटने के लिये निरंतर अनुसंधान और खुला संवाद आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना  
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना 
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
  4. उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)