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भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल लेंडिंग को विनियमित करने के लिये दिशा-निर्देश

  • 13 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, डिजिटल ऋण, आरबीआई की एकीकृत लोकपाल योजना

मेन्स के लिये:

डिजिटल ऋण से संबंधित चिंताएंँ और इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कुछ संस्थाओं द्वारा की जा रही अवैध गतिविधियों को विनियमित करने के लिये डिजिटल ऋण देने के दिशानिर्देशों का पहला सेट जारी किया।

  • इस प्रकार की चिंताओं को दूर करने के लिये,आरबीआई ने जनवरी, 2021 में 'ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप के माध्यम से उधार देने सहित डिजिटल उधार' (WGDL) पर एक कार्य समूह का गठन किया था।
  • समूह ने नवंबर 2021 में डिजिटल ऋणदाताओं के लिये कड़े मानदंड प्रस्तावित किये, जिनमें से कुछ को स्वीकार कर लिया गया और नये मानदंडों में शामिल कर लिया गया है जबकि अन्य जांँच के अधीन हैं।

डिजिटल ऋण:

  • परिचय:
    • इसमें प्रमाणीकरण और क्रेडिट मूल्यांकन के लिये तकनीक का लाभ उठाकर वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल ऐप के माध्यम से उधार देना शामिल है।
    • बैंकों ने पारंपरिक उधार में मौजूदा क्षमताओं का लाभ उठाने के बाद डिजिटल ऋण बाज़ार में प्रवेश करने के लिये अपने स्वतंत्र डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म लॉन्च किये हैं।
  • महत्त्व:
    • वित्तीय समावेशन: यह भारत में लघु उद्योग और कम आय वाले उपभोक्ताओं की व्यापक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के ऋण में कमी: उधार लेने की प्रकिया को सरल और सुगम बनाकर यह अनौपचारिक क्षेत्र से लिये जाने वाले ऋण को कम करने में मदद करता है।
    • कम समय: यह बैंकों में जाकर पारंपरिक माध्यम से ऋण लेने में लगने वाले समय को कम करता है। इसके कारण 30-35 प्रतिशत अतिरिक्त लागत को बचाया जा सकता है।

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ

  • ऋण वितरण और चुकौती के लिये:
    • सभी ऋण संवितरण और पुनर्भुगतान केवल उधारकर्त्ता के बैंक खातों और विनियमित संस्थाओं (RE) के बीच उधार सेवा प्रदाताओं (LSP) या किसी तीसरी पार्टी के पास-थ्रू/पूल खाते के बिना निष्पादित किये जाने की आवश्यकता है।
      • विनियमित संस्थाओं में एक बैंक या एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी शामिल है।
  • भुगतान के संबंध में:
    • नए नियमों में कहा गया है कि क्रेडिट मध्यस्थता प्रक्रिया में LSP को देय शुल्क या शुल्क का भुगतान सीधे बैंक या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) द्वारा किया जाएगा, न कि उधारकर्त्ता द्वारा।
  • ऋण प्रकटीकरण के संबंध में:
    • उधारकर्त्ताओं को वार्षिक प्रतिशत दर (APR) के रूप में डिजिटल ऋणों की समावेशी लागत का खुलासा करना आवश्यक है।
  • क्रेडिट /ऋण सीमा में वृद्धि के संबंध में:
    • नया मानदंड उधारकर्त्ता की स्पष्ट सहमति के बिना क्रेडिट सीमा में किसी भी स्वचालित वृद्धि को प्रतिबंधित करता है।
  • डिजिटल ऋण से बाहर निकलने के संबंध में:
    • यह ऋण अनुबंध के हिस्से के रूप में कूलिंग-ऑफ/लुक-अप अवधि भी प्रदान करता है, जिसके दौरान उधारकर्त्ता बिना किसी शुल्क के मूलधन और आनुपातिक वार्षिक प्रतिशत दर का भुगतान करके डिजिटल ऋण से बाहर निकल सकते हैं।
  • डेटा गोपनीयता की रक्षा हेतु:
    • डेटा गोपनीयता की रक्षा के लिये डिजिटल लेंडिंग ऐप्स द्वारा एकत्र किये गए डेटा को ग्राहक की पूर्व सहमति से आवश्यकता-आधारित होना चाहिये और यदि आवश्यक हो तो इसका ऑडिट किया जा सकता है।
  • शिकायत निवारण अधिकारी:
    • बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके और उनके द्वारा नियुक्त LSPs के पास फिनटेक- या डिजिटल ऋण संबंधी शिकायतों से निपटने के लिये उपयुक्त नोडल शिकायत निवारण अधिकारी होना चाहिये।
    • यह अधिकारी अपने संबंधित डिजिटल लेंडिंग ऐप्स (DLA) के खिलाफ शिकायतों से भी निपटेगा।
    • वर्तमान दिशानिर्देश उधारकर्त्ता को RBI की एकीकृत लोकपाल योजना में शिकायत करने की अनुमति देते हैं यदि बैंक द्वारा 30 दिनों के भीतर उनकी शिकायत का समाधान नहीं किया जाता है।
  • ऋण की रिपोर्टिंग:
    • विनियमित संस्थाओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि DLAs के माध्यम से किये गए किसी भी उधार को क्रेडिट सूचना कंपनियों (CIC) को सूचित किया जाना चाहिये, चाहे इसकी प्रकृति या अवधि कुछ भी हो।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ‘बाय नाउ पे लेटर’ (BNPL) मॉडल के माध्यम से ऋण देने की भी CICको सूचना दी जानी चाहिये।

आरबीआई के नए दायरे में आने वाले घटक:

  • नए मानदंडों की घोषणा करते हुए, आरबीआई ने डिजिटल उधारदाताओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया।
    • आरबीआई द्वारा विनियमित संस्थाएँ और ऋण कारोबार करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
    • ये संस्थाएँ अन्य वैधानिक या नियामक प्रावधानों के अनुसार उधार देने के लिये अधिकृत हैं लेकिन आरबीआई द्वारा विनियमित नहीं हैं।
    • किसी वैधानिक या नियामक प्रावधानों के दायरे से बाहर उधार देने वाली संस्थाएँ ।
  • केंद्रीय बैंक का नियामक ढाँचा विभिन्न अनुमेय ऋण सुविधा सेवाओं का विस्तार करने के लिये विनियमित संस्थाओं और उनके द्वारा लगे LSPs के डिजिटल उधार पारिस्थितिकी तंत्र पर केंद्रित है।
    • हालाँकि अन्य श्रेणियों के ऋणदाता नए दिशानिर्देशों के तहत नहीं आते हैं और कार्य समूह की सिफारिशों के आधार पर डिजिटल ऋण पर उचित नियम और विनियम तैयार करने पर विचार कर सकते हैं।

ऐसे दिशा-निर्देशों की आवश्यकता:

  • तकनीकी नवाचार के आगमन के साथ, डिजिटल उधार पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यधिक विकास हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप कई फिनटेक फर्म साख सेवाओं का विस्तार कर रही हैं।
  • हालाँकि इस वृद्धि ने ग्राहकों को गलत बिक्री, डिजिटल उधारदाताओं द्वारा अनैतिक व्यापार आचरण और तीसरे पक्ष की अत्यधिक व्यस्तता, एवं उधारकर्त्ता की डेटा गोपनीयता पर चिंताओं को जन्म दिया है।
  • उपभोक्ताओं द्वारा कई शिकायतें भी की गई हैं कि डिजिटल ऋण देने वाले ऐप अत्यधिक ब्याज दर वसूल रहे हैं या वे धोखाधड़ी कर रहे हैं।

आगे की राह

  • भारत एक डिजिटल ऋण महत्त्वपूर्ण स्थिति में हैं इसलिये यह सुनिश्चित करके इसके परिणामों को बेहतर बनाना चाहिये।
  • डिजिटल ऋणदाताओं को सक्रिय रूप से एक आचार संहिता विकसित और प्रतिबद्ध करनी चाहिये जो प्रकटीकरण और शिकायत निवारण के स्पष्ट मानकों के साथ एकनिष्ठता, पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण के सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार करती है।
  • तकनीकी सुरक्षा उपायों को स्थापित करने के अलावा, डिजिटल उधार के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये ग्राहकों को शिक्षित और प्रशिक्षित करना भी महत्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू

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