सरकार ने मंत्रालय के व्यय हेतु उच्च रिपोर्टिंग सीमा का प्रस्ताव रखा
प्रिलिम्स के लिये:लोक लेखा समिति, नई सेवा और सेवा के नए साधन, अनुदान की अनुपूरक मांग, सकल घरेलू उत्पाद विकास दर, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक मेन्स के लिये:वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित नई वित्तीय सीमाएँ, वित्तपोषण सीमा बढ़ाने के संभावित लाभ और कमियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संसद की लोक लेखा समिति ने हाल ही में सरकारी मंत्रालयों और विभागों द्वारा 'नई सेवा' और 'सेवा के नए उपकरणों' पर खर्च के लिये वित्तीय सीमा बढ़ाने के वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
- वित्तीय सीमा में यह प्रस्तावित संशोधन आज़ादी के बाद चौथी बार है। अंतिम संशोधन वर्ष 2005 में हुआ लेकिन वर्ष 2006 में लागू हुआ।
वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित नई वित्तीय सीमाएँ क्या हैं?
- नई सेवा और सेवा के नए उपकरण:
- नई सेवा (NS) एक नए नीतिगत निर्णय के परिणामस्वरूप होने वाले व्यय को दर्शाती है जो पहले संसद के ध्यान में नहीं लाया गया था, जिसमें नई गतिविधियाँ या निवेश [संविधान का अनुच्छेद 115(1)(a)] शामिल हैं।
- सेवा का नया साधन (New Instrument of Service- NIS) मौजूदा नीति के उल्लेखनीय विस्तार से उत्पन्न अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण व्यय को संदर्भित करता है।
- नई सीमा:
- 50 करोड़ रुपए से 100 करोड़ रुपए के बीच के व्यय के लिये संसद को रिपोर्ट करना अनिवार्य है, लेकिन पहले से मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं है।
- पूर्व संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता केवल तभी होती है जब खर्च 100 करोड़ रुपए से अधिक हो।
- 'सेवा के नए उपकरण' के लिये रिपोर्टिंग सीमा मूल विनियोग का 20% या 100 करोड़ रुपए तक, जो भी अधिक हो, तय की गई है।
- मूल विनियोग के 20% से अधिक या 100 करोड़ रुपए से अधिक की राशि के लिये संसद की मंज़ूरी अनिवार्य हो जाती है, जो समान अनुदान अनुभाग के भीतर बचत के अधीन है।
- 50 करोड़ रुपए से 100 करोड़ रुपए के बीच के व्यय के लिये संसद को रिपोर्ट करना अनिवार्य है, लेकिन पहले से मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं है।
नोट: पहले, सीमा 10 लाख रुपए से 2.5 करोड़ रुपए के बीच बहुत कम थी और व्यय की लगभग 50 वस्तुओं में मूल्य भिन्न था।
वित्तपोषण सीमा बढ़ाने के संभावित लाभ और हानि क्या हैं?
- संभावित लाभ:
- अनुपूरक मांगों की आवृत्ति में कमी: हाल के वर्षों में, PAC और CAG ने उचित रिपोर्टिंग या अनुमोदन के बिना पूरक खर्च में वृद्धि को उजागर किया है।
- खर्च की वित्तीय सीमा बढ़ाने से अनुदान की अनुपूरक मांगों की आवश्यकता कम हो जाएगी। यह बजटीय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है।
- प्रशासनिक बाधाएँ कम हुईं: वित्तीय सीमाओं में संशोधन अपेक्षाकृत छोटे व्ययों के लिये अनुमोदन प्राप्त करने से जुड़ी नौकरशाही बाधाओं को कम करता है।
- यह सरकारी विभागों और एजेंसियों के भीतर निर्णय लेने एवं कार्यान्वयन प्रक्रियाओं में दक्षता को बढ़ावा देता है।
- आर्थिक विकास के लिये अनुकूलन: साल-दर-साल 6-7% की अनुमानित GDP वृद्धि दर के साथ, आने वाले वर्षों में बजट का आकार काफी बढ़ने का अनुमान है।
- वित्तीय सीमाएँ बढ़ाने से यह सुनिश्चित होता है कि बजट बढ़ती अर्थव्यवस्था की उभरती आवश्यकताओं को समायोजित कर सकता है।
- अनुपूरक मांगों की आवृत्ति में कमी: हाल के वर्षों में, PAC और CAG ने उचित रिपोर्टिंग या अनुमोदन के बिना पूरक खर्च में वृद्धि को उजागर किया है।
- संभावित कमियाँ:
- बजटीय अनुशासन को कमज़ोर करना: यदि पर्याप्त निगरानी तंत्र मौजूद नहीं है, तो यह जोखिम है कि धन के दुरुपयोग या गलत आवंटन के लिये उच्च वित्तीय सीमाओं का फायदा उठाया जा सकता है।
- इससे भ्रष्टाचार या फिज़ूलखर्ची की घटनाएँ हो सकती हैं।
- इसके परिणामस्वरूप बजटीय अतिवृद्धि या घाटा हो सकता है, जिससे समग्र राजकोषीय स्थिति प्रभावित हो सकती है।
- जवाबदेही की कमी: मंत्रालयों और विभागों के लिये बढ़ी हुई वित्तीय स्वायत्तता के परिणामस्वरूप सार्वजनिक धन के उपयोग के प्रति जवाबदेही कम हो सकती है।
- इससे व्ययों पर नज़र रखना और यह सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि वे इच्छित उद्देश्यों के साथ संरेखित हों।
- संसदीय निरीक्षण पर प्रभाव: वित्तीय सीमाएँ बढ़ाने से सरकारी खर्चों पर संसदीय जाँच की आवृत्ति कम हो सकती है, जिससे सार्थक वार्ता और निरीक्षण के अवसर सीमित हो सकते हैं।
- यह पारदर्शी शासन के लिये आवश्यक नियंत्रण और संतुलन को कमज़ोर कर सकता है।
- बजटीय अनुशासन को कमज़ोर करना: यदि पर्याप्त निगरानी तंत्र मौजूद नहीं है, तो यह जोखिम है कि धन के दुरुपयोग या गलत आवंटन के लिये उच्च वित्तीय सीमाओं का फायदा उठाया जा सकता है।
लोक लेखा समिति क्या है?
- परिचय: लोक लेखा समिति भारत की संसद द्वारा स्थापित संसद के चयनित सदस्यों से बनी एक इकाई है, जिसका प्राथमिक कार्य भारत सरकार के राजस्व और व्यय की जाँच करना है।
- इसका प्राथमिक दायित्व जाँच के दौरान CAG की सहायता से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा प्रदान की गई रिपोर्टों का ऑडिट करना है।
- विशेष रूप से, इसके किसी भी सदस्य को सरकार में मंत्री पद संभालने की अनुमति नहीं है।
- इसका प्राथमिक दायित्व जाँच के दौरान CAG की सहायता से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा प्रदान की गई रिपोर्टों का ऑडिट करना है।
- सदस्य: PAC में अधिकतम 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से 15 लोकसभा द्वारा चुने जाते हैं और 7 सदस्य राज्यसभा से चुने जाते हैं।
- सदस्यों को एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा वर्षीय तौर पर चुना जाता है।
- अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है और सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष होता है।
- चेयरपर्सन मुख्यतः विपक्षी दल से होता है।
अनुच्छेद 115 के तहत अनुदान के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- अनुपूरक अनुदान:
- उद्देश्य: चालू वित्तीय वर्ष के दौरान अप्रत्याशित व्यय उत्पन्न होने और किसी विशिष्ट सेवा के लिये आवंटित बजट अपर्याप्त होने की दशा में अनुपूरक अनुदान की मांग की जा सकती है।
- अनुमोदन प्रक्रिया: सरकार वित्तीय वर्ष के अंत से पहले आवश्यक अतिरिक्त धनराशि के अनुमोदन के लिये संसद के समक्ष अनुमान प्रस्तुत करती है।
- अतिरिक्त अनुदान:
- उद्देश्य: चालू वित्तीय वर्ष के मूल बजट में परिकल्पित सेवाओं के अतिरिक्त किसी नई सेवा के लिये धन की आवश्यकता पड़ने की दशा में इस अनुदान की मांग की जा सकती है।
- अनुमोदन प्रक्रिया: अनुपूरक अनुदान के समान सरकार वित्तीय वर्ष के अंत से पहले अनुमोदन के लिये संसद के समक्ष अतिरिक्त धन राशि का अनुमान प्रस्तुत करती है।
- अतिरिक्त अनुदान:
- उद्देश्य: किसी सेवा पर वास्तविक व्यय मूल रूप से बजट और संसद द्वारा स्वीकृत धन राशि से अधिक होने की दशा में अतिरिक्त अनुदान की मांग की जा सकती है।
- अनुमोदन प्रक्रिया: उक्त दो अनुदान के अनुमोदन प्रक्रिया के विपरीत, अतिरिक्त अनुदान चालू वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद प्रस्तुत किया जाता है। वित्त मंत्रालय और रेल मंत्रालय संसद में विचार हेतु "अतिरिक्त अनुदान की मांग" प्रस्तुत करते हैं।
- अतिरिक्त अनुदान की मांगों को मतदान के लिये लोकसभा में प्रस्तुत करने से पूर्व, उन्हें संसद की लोक लेखा समिति द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में सार्वजनिक वित्त पर संसदीय नियंत्रण की निम्नलिखित में से कौन-सी विधियाँ हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (a) |
दिव्यांगजनों के लिये आवागमन की सुगमता
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, सुगम्य भारत अभियान मेन्स के लिये:दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और समान अधिकारों को बढ़ावा देने का महत्त्व, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने सार्वजनिक भवनों में दिव्यांगजनों (PwD) के लिये आवागमन में सुधार करने हेतु कदम उठाए। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के बावजूद दिव्यांगजनों से संबंधित चुनौतियाँ बनी हुई हैं जिसके कारण CPWD ने भवनों में आवागमन की सुगमता मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये सुधारात्मक उपायों का कार्यान्वन किया।
दिव्यांगजन अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 क्या है?
- परिचय:
- RPwD अधिनियम, 2016, दिव्यांगजन अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का अनुसमर्थन करता है जिसका अनुमोदन भारत द्वारा वर्ष 2007 में किया गया था।
- इस अधिनियम ने निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित किया।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में निःशक्त अथवा दिव्यांगजन की संख्या लगभग 26.8 मिलियन थी जो भारत की कुल जनसंख्या का 2.21% है।
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय के आँकड़ों के अनुसार भारत में दिव्यांगजनों का प्रतिशत भारत की कुल आबादी का 2.2% है।
- NSSO के 76वें चरण, 2019 के अनुसार 1 वर्ष की अवधि में प्रति 1,00,000 लोगों में से 86 व्यक्ति दिव्यांग थे।
- RPwD अधिनियम, 2016, दिव्यांगजन अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का अनुसमर्थन करता है जिसका अनुमोदन भारत द्वारा वर्ष 2007 में किया गया था।
- दिव्यांगता की विस्तारित परिभाषा:
- इस अधिनियम में दिव्यांगता को एक विकासशील और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है।
- RPwD अधिनियम, 2016 में दिव्यांगता के प्रकार 7 से बढ़ाकर 21 कर दिये गए जिसमें केंद्र सरकार द्वारा दिव्यांगता के और अधिक प्रकार शामिल किये जाने का प्रावधान है।
- अधिकार और हकदारी:
- अधिनियम के तहत उपयुक्त सरकारों को दिव्यांगजनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।
- अधिनियम के तहत बेंचमार्क दिव्यांगजनों (चालीस प्रतिशत अथवा उससे अधिक दिव्यांगता वाला व्यक्ति) और उच्च समर्थन आवश्यकताओं वाले लोगों के लिये उच्च शिक्षा में आरक्षण (न्यूनतम 5%), सरकारी नौकरियों (न्यूनतम 4%) और भूमि का आवंटन (न्यूनतम 5%) जैसे अतिरिक्त लाभ प्रदान किये जाते हैं।
- 6 से 18 वर्ष की आयु वाले बेंचमार्क दिव्यांगजनों के लिये निशुल्क शिक्षा की गारंटी का प्रावधान किया गया है।
- सरकार द्वारा वित्त पोषित और मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है।
- इस अधिनियम में सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं को दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सुलभ बनाने, उनकी भागीदारी तथा समावेशन को बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया।
- सार्वजनिक भवनों के संबंध में आदेश:
- दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 का नियम 15 केंद्र सरकार को दिव्यांग जनों के लिये सुगमता सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक भवनों के लिये दिशा-निर्देश और मानक स्थापित करने का आदेश देता है।
- इन मानकों में दिव्यांग जनों के लिये मानक निर्मित वातावरण, परिवहन और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी शामिल है।
- सार्वजनिक भवनों सहित प्रत्येक प्रतिष्ठान को वर्ष 2016 के सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देशों के आधार पर इन मानकों का पालन करना होगा।
- नियम 15 में हाल के संशोधनों के अनुसार प्रतिष्ठानों को वर्ष 2021 के सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देशों का अनुपालन करने की आवश्यकता है, जिससे दिव्यांग जनों के लिये सुगमता सुनिश्चित हो सके।
- व्यापक दिशा-निर्देशों में दिव्यांग जनों के लिये रैंप, ग्रैब रेल, लिफ्ट और शौचालय जैसी विभिन्न सुगमता सुविधाओं वाली योजना, निविदा एवं विशिष्टताओं को शामिल किया गया है।
- दिव्यांग जनों के लिये समान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सभी भवन योजनाओं को इन दिशा-निर्देशों के अनुरूप होना चाहिये।
- मौजूदा इमारतों को अभिगम मानकों को पूरा करने, दिव्यांग जनों के लिये बेहतर समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में पाँच वर्ष के भीतर रेट्रोफिटिंग से गुज़रना अनिवार्य है।
- दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 का नियम 15 केंद्र सरकार को दिव्यांग जनों के लिये सुगमता सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक भवनों के लिये दिशा-निर्देश और मानक स्थापित करने का आदेश देता है।
नोट:
- RPWD अधिनियम, 2016 में 21 अक्षमताओं में अंधापन, दृष्टि-बाधिता, कुष्ठ रोग से मुक्त व्यक्ति, श्रवण विकार/दोष (बहरा और सुनने में कठिनाई), चलन-संबंधी विकलांगता, बौनापन, बौद्धिक अक्षमता, मानसिक बीमारी, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियाँ, स्पेसिफिक लर्निंग डिसेबिलिटी (डिस्लेक्सिया), मल्टीपल स्केलेरॉसिस, वाक् एवं भाषा विकलांगता, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकल सेल रोग, बहु-विकलांगता, तेज़ाब हमले से प्रभावित और पार्किन्संस रोग शामिल हैं।
दिव्यांगों के सशक्तीकरण से संबंधित अन्य पहल क्या हैं?
- अद्वितीय अक्षमता पहचान पोर्टल
- दीन दयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना
- दिव्यांग जनों को सहायक उपकरणों और उपकरणों की खरीद/फिटिंग हेतु सहायता
- दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप
- दिव्य कला मेला 2023
- सुगम्य भारत अभियान
सार्वजनिक भवनों में पहुँच के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- PwD और कार्यकर्त्ताओं की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में स्थापित दिशा-निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा, वर्ष 2021 के नए दिशा-निर्देशों को राज्य सरकारों से इसी तरह की उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
- विश्लेषकों का कहना है कि किसी भी राज्य ने अभी तक अपने भवन उपनियमों में सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देशों को शामिल नहीं किया है, जो पहुँच के मुद्दों को संबोधित करने में व्यापक विफलता का संकेत देता है।
- विशेषज्ञ पहुँच संबंधी दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार सार्वजनिक निर्माण विभागों के इंजीनियरों के बीच जागरूकता और जवाबदेही की कमी पर प्रकाश डालते हैं।
- रेट्रोफिटिंग परियोजनाओं के लिये फंड उपलब्ध हैं, लेकिन कई राज्यों और शहरों ने उनके लिये आवेदन जमा नहीं किये हैं, जो पहुँच पहल को प्राथमिकता देने में विफलता का संकेत देता है।
- केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के ज्ञापन में स्पष्टता का अभाव है और इससे अनावश्यक संसाधन की बर्बादी हो सकती है, जिससे पहुँच उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD)
- CPWD की स्थापना मूल रूप से जुलाई 1854 में अजमेर प्रोविजनल डिवीज़न के रूप में की गई थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य वास्तुकला, इंजीनियरिंग, परियोजना प्रबंधन और भवन निर्माण तथा रखरखाव जैसे विषयों को शामिल करते हुए सार्वजनिक कार्यों को निष्पादित करना था।
- वर्तमान में, CPWD शहरी विकास मंत्रालय के तहत काम करता है और इसकी राष्ट्रव्यापी उपस्थिति है।
- CPWD केंद्र सरकार के प्रमुख इंजीनियरिंग ब्लॉक के रूप में कार्य करता है, जिसमें तीन प्रभाग, भवन और सड़क (Buildings and Roads- B&R), इलेक्ट्रिकल तथा मैकेनिकल (Electrical and Mechanical- E&M) एवं बागवानी शामिल हैं।
- वर्ष 2016 में CPWD ने 100 करोड़ रुपए के बजट से अधिक की सभी परियोजनाओं के लिये आधुनिक धूल-मुक्त निर्माण विधियों, विशेष रूप से मोनोलिथिक प्रणाली को अपनाया।
- मोनोलिथिक प्रणाली में बीम और स्लैब के लिये कंक्रीट का उपयोग करना शामिल है, जिससे एक एकीकृत निर्माण घटक बनता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. क्या नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में अभीष्ट लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन की प्रभावी क्रियाविधि को सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |
भारत-इंडोनेशिया के बीच स्थानीय मुद्रा व्यापार
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, लुक ईस्ट पॉलिसी, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, G20, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन मेन्स के लिये:भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण, भारत से जुड़े या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और समझौते। |
स्रोत: बिज़नेस लाइन
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंक इंडोनेशिया ने सीमा पार लेन-देन के लिये स्थानीय मुद्राओं (भारतीय रुपया (INR) और इंडोनेशियाई रुपिया (IDR) के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा स्थापित करने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- इससे पहले वर्ष 2023 में भारत और मलेशिया ने घोषणा की थी कि वे अन्य मुद्राओं के अलावा भारतीय रुपए में भी व्यापार का निपटारा करेंगे।
RBI और बैंक इंडोनेशिया के बीच समझौता ज्ञापन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- MoU का प्राथमिक उद्देश्य INR और INR में द्विपक्षीय लेन-देन को सुविधाजनक बनाना है, जिसमें सभी चालू खाता लेन-देन, अनुमत पूंजी खाता लेन-देन तथा दोनों देशों द्वारा पारस्परिक रूप से सहमति के अनुसार अन्य आर्थिक एवं वित्तीय लेन-देन शामिल हैं।
- यह ढाँचा निर्यातकों और आयातकों को उनकी संबंधित घरेलू मुद्राओं में चालान तथा भुगतान करने में सक्षम बनाता है, जिससे INR-IDR विदेशी मुद्रा बाज़ार के विकास को बढ़ावा मिलता है। यह दृष्टिकोण लेन-देन के लिये लागत और निपटान समय को अनुकूलित करता है।
- इससे भारत और इंडोनेशिया के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलने, वित्तीय एकीकरण गहरा होने तथा दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों में वृद्धि होने की उम्मीद है।
भारत-इंडोनेशिया संबंध
- वाणिज्यिक संबंध:
- आसियान (ASEAN) क्षेत्र में इंडोनेशिया भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश बनकर उभरा है।
- द्विपक्षीय व्यापार सत्र 2005-06 में 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सत्र 2022-23 में 38.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- आसियान (ASEAN) क्षेत्र में इंडोनेशिया भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश बनकर उभरा है।
- राजनीतिक संबंध:
- दोनों देश एशियाई और अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता के प्रमुख समर्थक थे, जिसके कारण वर्ष 1955 का बांडुंग सम्मेलन हुआ और वर्ष 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत हुई।
- वर्ष 1991 में भारत द्वारा ‘लुक ईस्ट नीति अपनाने के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में तेज़ी से विकास हुआ है।
- दोनों देश G20, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं।
- सांस्कृतिक संबंध:
- हिंदू, बौद्ध और बाद में मुस्लिम धर्मों ने भारत के तटों से इंडोनेशिया की यात्रा की। रामायण और महाभारत के महान महाकाव्यों की कथाएँ इंडोनेशियाई लोक कला तथा नाटकों का स्रोत बनी हैं।
- इंडोनेशिया में भारतीय मूल के लगभग 100,000 लोग हैं, जो मुख्य रूप से ग्रेटर जकार्ता, मेदान, सुरबाया और बांडुंग में स्थित हैं।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास क्या हैं?
- पूंजी बाज़ार का उदारीकरण:
- भारत ने रुपए की अपील को बढ़ाने के लिये रुपए-मूल्य वाले वित्तीय साधनों, जैसे बॉन्ड (मसाला बॉन्ड) और डेरिवेटिव की उपलब्धता बढ़ा दी।
- डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा:
- यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस जैसी पहल ने रुपए में डिजिटल विनिमय की सुविधा प्रदान की है।
- हाल ही में श्रीलंका और मॉरीशस ने UPI को अपनाया है।
- विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते (SVRA):
- भारत ने 18 देशों (जैसे- रूस और मलेशिया) के अधिकृत बैंकों को बाज़ार-निर्धारित विनिमय दरों पर रुपए में भुगतान का निपटान करने के लिये विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते खोलने की अनुमति दी।
- तंत्र का उद्देश्य कम लेन-देन लागत, अधिक मूल्य पारदर्शिता, द्रुत निपटान समय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को समग्र रूप से बढ़ावा देना है।
- मुद्रा विनिमय समझौते:
- RBI द्वारा कई देशों (जैसे- जापान, श्रीलंका एवं सार्क सदस्य) के साथ हस्ताक्षरित समझौता संबंधित केंद्रीय बैंकों के बीच रुपए तथा विदेशी मुद्रा के आदान-प्रदान को सक्षम बनाता है, जिससे रुपए के अंतर्राष्ट्रीय उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
- द्विपक्षीय व्यापार समझौता:
- सरकार द्वारा अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने से सीमा पार व्यापार एवं निवेश में वृद्धि हुई है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में रुपए के उपयोग को बढ़ावा मिला है।
भुगतान संतुलन (BoP)
- भुगतान संतुलन, किसी देश के आर्थिक स्थिति का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है, जो विश्व के शेष भागों के साथ उसके अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को प्रदर्शित करता है।
- भारतीय निवासियों एवं विदेशियों अथवा अनिवासी भारतीयों (NRI) के बीच होने वाले लेन-देन को भारत के भुगतान संतुलन में दर्ज किया जाता है।
- संरचना: BoP को मुख्य रूप से दो खातों में विभाजित किया गया है:
- चालू खाता: यह खाता वस्तुओं, सेवाओं, आय एवं वर्तमान हस्तांतरण के प्रवाह को दर्शाता है।
- यह उन लेन-देन से संबंधित होता है जो विदेश में भारतीय निवासियों अथवा भारत में विदेशी निवासियों की कुल संपत्ति या देनदारियों में बदलाव नहीं करते हैं। इसमें शामिल हैं:
- वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात और आयात
- निवेश आय (ब्याज, लाभांश) तथा कर्मचारियों का मुआवज़ा
- वर्तमान हस्तांतरण (उपहार, सहायता, प्रेषण)
- यह उन लेन-देन से संबंधित होता है जो विदेश में भारतीय निवासियों अथवा भारत में विदेशी निवासियों की कुल संपत्ति या देनदारियों में बदलाव नहीं करते हैं। इसमें शामिल हैं:
- पूंजी खाता: यह खाता पूंजीगत संपत्तियों से जुड़े लेन-देन को दर्ज करता है।
- यह उन लेन-देन को दर्ज करता है जो किसी देश की विदेशी संपत्तियों एवं देनदारियों पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
- गैर-उत्पादित गैर-वित्तीय परिसंपत्तियों (भूमि, बौद्धिक संपदा) का अधिग्रहण अथवा निपटान
- इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश, विदेश में व्यवसायों में निवेश, विदेशी संस्थाओं से उधार लेना और साथ-ही-साथ NRI द्वारा भारतीय बैंकों में की गई जमा पूंजी खाता लेन-देन के उदाहरण हैं।
- चालू खाता: यह खाता वस्तुओं, सेवाओं, आय एवं वर्तमान हस्तांतरण के प्रवाह को दर्शाता है।
- विदेशी मुद्रा भंडार:
- भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्राओं में RBI द्वारा रखी गई महत्त्वपूर्ण संपत्ति है।
- वे वित्तीय सहायक के रूप में कार्य करते हैं, बाह्य दायित्वों को पूर्ण करने के लिये तरलता सुनिश्चित करते हैं और साथ ही देश की मुद्रा एवं अर्थव्यवस्था को स्थिर भी करते हैं।
- भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार के घटक:
- विदेशी मुद्राएँ:
- भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड जैसी विदेशी मुद्राएँ शामिल हैं। ये मुद्राएँ तरलता प्रदान करती हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लेन-देन की सुविधा प्रदान करती हैं।
- आरक्षित स्वर्ण निधि:
- यह मुद्रास्फीति की स्थिति में एक आवश्यक बचाव और आर्थिक अनिश्चितताओं के दौरान एक सुरक्षा जाल के रूप में भूमिका निभाता है।
- भारत के पास 800.78 टन आरक्षित स्वर्ण निधि है।
- विशेष आहरण अधिकार (SDR):
- SDR, IMF द्वारा अनुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित आस्तियाँ हैं। ये सदस्य देशों के विदेशी मुद्रा भंडार के पूरक की भूमिका निभाते हैं।
- SDR अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की एक टोकरी पर आधारित है जिसमें USD, जापानी येन, यूरो, पाउंड स्टर्लिंग और चीनी रेनमिनबी शामिल हैं।
- SDR, IMF द्वारा अनुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित आस्तियाँ हैं। ये सदस्य देशों के विदेशी मुद्रा भंडार के पूरक की भूमिका निभाते हैं।
- IMF में आरक्षित भाग:
- IMF में आरक्षित भाग का तात्पर्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के कोटा से है। यह इस वैश्विक वित्तीय संस्था के भीतर भारत की स्थिति और मतदान की शक्ति को दर्शाता है।
- भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ करता है।
- विदेशी मुद्राएँ:
- भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्राओं में RBI द्वारा रखी गई महत्त्वपूर्ण संपत्ति है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015) (a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना। उत्तर: (c) |
ASI द्वारा भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), राजा भोज, भोजशाला, वाग्देवी मंदिर मेन्स के लिये:भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की भूमिका, मंदिर वास्तुकला |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण को धार ज़िले में भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर की मूल प्रकृति को स्पष्ट करने के लिये वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है।
भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर क्या है?
- परिचय:
- भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर मूल रूप से 11वीं शताब्दी ई. में परमार राजा भोज द्वारा निर्मित देवी सरस्वती का मंदिर था।
- मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके किया गया है। स्मारक में संस्कृत और प्राकृत साहित्यिक कृतियों के साथ अंकित कुछ स्लैब भी मौजूद हैं।
- मतों के अनुसार कला और साहित्य के महान संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध राजा भोज ने एक स्कूल की स्थापना की थी जिसे अब भोजशाला के नाम से जाना जाता है।
- ASI के साथ एक समझौते के तहत हिंदू प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में उपासना करते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग प्रत्येक शुक्रवार को नमाज़ पढ़ते हैं।
- विवाद:
- हिंदू समुदाय इस परिसर की मूल स्थिति को मंदिर के रूप में दर्शाते हैं जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला की मस्जिद मानते हैं जिसके कारण यह विवाद का विषय बन गया है।
- याचिकाकर्त्ता ने ASI रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि मस्जिद बनाने के लिये भोजशाला और वाग्देवी मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। साइट का वास्तविक इतिहास निर्धारित करने के लिये एक सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया था।
- एक प्रतिवादी ने रेस ज्यूडिकाटा (निर्णय किया गया) के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी, यह देखते हुए कि इसी तरह की याचिका को वर्ष 2003 में उच्च न्यायालय की प्रधान पीठ ने खारिज कर दिया था।
- उच्च न्यायालय का आदेश:
- अदालत ने कहा कि मंदिर की स्थिति निर्धारित होने तक रहस्यमय बना हुआ है। सभी पक्ष स्मारक की प्रकृति को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर सहमत हैं, यह कार्य स्मारक अधिनियम, 1958 के तहत ASI को सौंपा गया है।
- अदालत ने ASI को GPR-GPS और कार्बन डेटिंग जैसे उन्नत तरीकों का उपयोग करके तुरंत एक व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण, उत्खनन तथा जाँच करने का आदेश दिया, जिसमें न केवल साइट बल्कि इसके 50-मीटर पेरीफेरल रिंग क्षेत्र को भी शामिल किया गया।
- अदालत ने कहा कि मंदिर की स्थिति निर्धारित होने तक रहस्यमय बना हुआ है। सभी पक्ष स्मारक की प्रकृति को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर सहमत हैं, यह कार्य स्मारक अधिनियम, 1958 के तहत ASI को सौंपा गया है।
उत्खनन हेतु ASI द्वारा क्या तरीके अपनाए जाते हैं?
- आक्रामक विधि:
- उत्खनन, सबसे आक्रामक पुरातात्त्विक तकनीक, जिसमें अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ उसे नष्ट करने के लिये स्ट्रैटिग्राफिक सिद्धांतों का उपयोग करके खुदाई करना शामिल है।
- पुरातत्त्वविदों द्वारा परतों को उल्टे क्रम में हटाने और पुरातात्त्विक रिकॉर्ड के तार्किक गठन को समझने के लिये स्ट्रैटिग्राफी को अपनाया जाता है।
- उत्खनन, सबसे आक्रामक पुरातात्त्विक तकनीक, जिसमें अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ उसे नष्ट करने के लिये स्ट्रैटिग्राफिक सिद्धांतों का उपयोग करके खुदाई करना शामिल है।
- गैर-आक्रामक विधियाँ: गैर-आक्रामक तरीकों का उपयोग तब किया जाता है जब किसी निर्मित संरचना के अंदर जाँच की जाती है और किसी खुदाई की अनुमति नहीं होती है। इसकी कई विधियाँ हैं:
- सक्रिय विधि: ज़मीन में ऊर्जा डालें और प्रतिक्रिया को मापना। विधियाँ ज़मीन के भौतिक गुणों, जैसे घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग का अनुमान प्रदान करती हैं।
- भूकंपीय तकनीक: उपसतह संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये सदमे तरंगों का उपयोग करना।
- विद्युत चुंबकीय विधियाँ: एनर्जी इंजेक्शन के बाद विद्युत चुंबकीय प्रतिक्रियाओं को मापें।
- निष्क्रिय विधि: मौजूदा भौतिक गुणों को मापना।
- मैग्नेटोमेट्री: दबी हुई संरचनाओं के कारण होने वाली चुंबकीय विसंगतियों का पता लगाना।
- गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण: उपसतही विशेषताओं के कारण गुरुत्वाकर्षण बल भिन्नता का मापन।
- ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR):
- ASI दफन पुरातात्त्विक विशेषताओं का 3-D मॉडल तैयार करने के लिये GPR का प्रयोग किया जाता है।
- GPR एक सतह एंटीना से एक छोटे रडार आवेग द्वारा संचालित होता है और उपमृदा से परावर्ती संकेतों के समय व परिमाण को रिकॉर्ड करता है।
- रडार की किरणों का शंकु की तरह प्रकीर्णन होता है, जिससे एंटीना द्वारा वस्तु के ऊपर से गुज़रने से पूर्व प्रतिबिंब उत्पन्न होता है।
- रडार की किरणों का शंकु की तरह प्रकीर्णन होता है, जिससे ऐसे प्रतिबिंब बनते हैं जो सीधे भौतिक आयामों के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे आभासी प्रतिबिंब बनते हैं।
- कार्बन डेटिंग:
- कार्बन सामग्री (C-14) का निर्धारण कर कार्बनिक पदार्थ की आयु निर्धारित करना।
- सक्रिय विधि: ज़मीन में ऊर्जा डालें और प्रतिक्रिया को मापना। विधियाँ ज़मीन के भौतिक गुणों, जैसे घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग का अनुमान प्रदान करती हैं।
पुरातत्त्व सर्वेक्षण में विभिन्न पद्धतियों की सीमाएँ क्या हैं?
- विभिन्न सामग्रियों के समान भौतिक गुण समान प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे लक्ष्यों की पहचान करने में अस्पष्टता हो सकती है।
- एकत्र किया गया डेटा सीमित है और इसमें निर्धारण संबंधी त्रुटियाँ हैं, जिससे संपत्तियों के स्थानिक वितरण का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- पुरातात्त्विक संरचनाएँ प्रायः जटिल ज्यामिति वाली विषम प्रकृति की सामग्रियों से बनी होती हैं, जिससे डेटा व्याख्या चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
- भू-भौतिकीय उपकरण, विशेष रूप से जटिल परिदृश्यों में, लक्ष्य प्रतिबिंबों का सटीकता से पुनर्निर्माण नहीं कर सकते हैं।
- धार्मिक स्थलों पर विवाद जैसे मामलों में भावनात्मक और राजनीतिक कारक व्याख्याओं एवं निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय के तहत देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरावशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज तथा उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण एवं रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020) प्रसिद्ध स्थल - राज्य
ऊपर दिये गए युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित है? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न.1 चोल वास्तुकला मंदिर वास्तुकला के विकास में एक उच्च वॉटरमार्क का प्रतिनिधित्व करती है। विचार-विमर्श करना। (2013) प्रश्न.2 भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों तथा उनकी कला की कल्पना करने एवं उन्हें आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चर्चा कीजिये। (2020) |