अंतर्राष्ट्रीय संबंध
NAM शिखर सम्मेलन
- 14 May 2020
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संदर्भ:
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से 120 देशों के गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, उन्होने इस बात पर ज़ोर दिया कि COVID-19 महामारी ने मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है। COVID के बाद की दुनिया में, हमें निष्पक्षता, समानता और मानवता के आधार पर वैश्वीकरण के एक नए ढांचे की जरूरत है। प्रधान मंत्री ने कहा कि हमें ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की आवश्यकता है जो आज की दुनिया के अधिक प्रतिनिधि हैं. केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय हमें मानव कल्याण को बढ़ावा देने की जरूरत है।
पृष्ठभूमि:
- गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement- NAM) की अवधारणा शीत युद्ध (Cold War) की पृष्ठभूमि में इंडोनेशिया में आयोजित ‘बांडुंग सम्मेलन (Bandung Conference),1955’ के दौरान रखी गई थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् शीत युद्ध के दौरान दुनिया के अधिकांश देश दो गुटों (साम्यवादी सोवियत संघ और पूंजीवादी अमेरिका के नेतृत्व में) में बँटे हुए थे।
- साथ ही इसी दौरान विश्व के अधिकांश भागों में औपनिवेशिक शासन का अंत होना शुरू हुआ और एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका तथा अन्य क्षेत्रों में कई नए देश विश्व के मानचित्र पर उभर कर आए।
- ऐसे समय में NAM ने इन देशों के लिये दोनों गुटों से अलग रहकर एक स्वतंत्र विदेशी नीति रखते हुए आपसी सहयोग बढ़ाने का एक मज़बूत आधार प्रदान किया।
- इस समूह की स्थापना में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्राॅज़ टीटो और मिस्र (Egypt) के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई साथ ही घाना के तत्कालीन प्रधान मंत्री वामे एनक्रूमा तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णों ने भी NAM को अपना समर्थन दिया था।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड (यूगोस्लाविया) में आयोजित किया गया था, इस सम्मेलन में विश्व के 25 देशों ने हिस्सा लिया था।
- वर्तमान में विश्व के 120 देश इस समूह के सक्रिय सदस्य हैं।
NAM वर्चुअल शिखर सम्मेलन:
- 4 मई, 2020 को अज़रबैजान की अध्यक्षता में गुट निरपेक्ष समूह के एक वर्चुअल सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने इस बैठक में COVID-19 को हाल के दशकों में मानवता के लिये सबसे बड़ा संकट बताते हुए इससे निपटने के लिये NAM सदस्यों को COVID-19 से निपटने में अपने अनुभवों और सुझावों को साझा करने तथा शोध एवं संसाधनों के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया।
- प्रधानमंत्री ने इस बैठक में आतंकवाद और फेक न्यूज़ (Fake News) जैसे मुद्दों पर भी अपनी चिंता व्यक्त की।
- प्रधानमंत्री के अनुसार, COVID-19 महामारी ने वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था/तंत्र में व्याप्त कमियों और इसकी सीमाओं को उजागर किया है। हमें ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की आवश्यकता है जो वर्तमान/आज के दौर के विश्व के प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महामारी के बाद ‘उत्तर COVID-19 विश्व में (Post-COVID world) में हमें समानता, निष्पक्षता और मानवता के मूल्यों पर आधारित वैश्वीकरण के नए मानक स्थापित करने होंगे।
बहुपक्षीय मंचों की असफलता :
- विश्व के कई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंच समय के साथ बदलते वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप स्वयं को ढालने में असफल रहे हैं, जिसके कारण वर्तमान में विश्व के कई देशों में अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्त्व के प्रति असंतोष बढ़ा है:
संयुक्त राष्ट्र (United Nation-UN):
- द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जब UN की स्थापना हुई तो इस संगठन में मात्र 53 सदस्य थे जबकि वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 193 तक पहुँच गई है परंतु आज भी UNSC में अन्य देशों को स्थान नहीं दिया गया है।
- हाल के वर्षों में भारत, जापान, ब्राज़ील जैसे विश्व के कई देशों ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, परंतु इन्हें वैश्विक मंचों पर अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका है क्योंकि कई प्रमुख संगठनों की कार्यप्रणाली आज भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की ही है।
- संगठनों के संचालन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया और प्रतिनिधित्व के अधिकार की दृष्टि से पारदर्शिता में कमी आई है जिससे इन संगठनों की विश्वसनीयता कम हुई है।
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’
(World Health Organization-WHO):
- WHO की स्थापना के बाद से ही विश्व मे अनेक गंभीर बीमारियों से निपटने में इस संगठन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है परंतु COVID-19 महामारी के दौरान WHO की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठने लगे हैं।
- चीन के वुहान प्रांत में COVID-19 के शुरुआती मामलों के मिलने के बाद WHO की प्रतिक्रिया धीमी रही है और विश्व के कई देशों ने WHO पर चीन का बचाव करने का भी आरोप लगाया है।
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’
(united nation security council-UNSC):
- मार्च 2020 में जब विश्व के बहुत से देश इस महामारी की चपेट में आ चुके थे तब भी इस मुद्दे पर UNSC की मीटिंग नहीं हो पायी क्योंकि मार्च में UNSC की अध्यक्षता चीन के पास थी।
- अप्रैल माह में अध्यक्षता बदलने पर 9 अप्रैल, 2020 को UNSC की बैठक हुई परंतु चीन और अमेरिका के बीच COVID-19 को लेकर चल रहे विवाद के कारण इस बैठक का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल सका।
अन्य संगठन:
- COVID-19 को G-7 और G-20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया गया परंतु ये संगठन भी इस महामारी निपटने या इसकी रोकथाम हेतु किसी समायोजित योजना को लागू करने में असफल रहे।
- COVID-19 के मुद्दे पर अन्य देशों को सहायता उपलब्ध कराने के स्थान पर यूरोपीय संघ के देशों में काफी मतभेद दिखाई दिए, साथ ही समूह का शीर्ष नेतृत्त्व इस महामारी के समय में संघ को एक साथ लाने में संघर्ष करता दिखाई दिया।
- COVID-19 से पहले हाल के वर्षों में अधिकांश वैश्विक चुनौतियों (जैसे-आर्थिक मंदी, आतंकवाद, इबोला संकट, जीका वायरस आदि) से निपटने में अमेरिका नेतृत्व की भूमिका में रहा है परंतु वर्तमान संकट में अमेरिका के नज़रिये में बदलाव देखने को मिला है।
- हालाँकि चीन ने इस संकट में स्वयं को वैश्विक पटल पर आगे लाने का प्रयास किया है परंतु COVID-19 के बारे में जानकारी छुपाने से चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है।
COVID-19 और भारत:
- COVID-19 महामारी के दौरान शीर्ष के अंतर्राष्ट्रीय संगठन समय रहते सही निर्णय लेने में असफल रहे हैं या उन्होंने एक देश के प्रभाव में आकर निर्णय लिये जिससे मानवता को काफी क्षति हुई है। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर इन संगठनों में परिवर्तनों की मांग एक बार फिर तेज़ हुई है।
- इस संकट के दौरान जहाँ कई देश अपने हितों को आगे लेकर चल रहे थे भारत ने शुरू ही से इस महामारी से निपटने में G-20, सार्क (SAARC), ब्रिक्स और हाल ही में NAM के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिये जाने पर ज़ोर दिया है।
- वर्तमान संकट में पूरी दुनिया में एक मज़बूत नेतृत्व की कमी महसूस की गई है जो न अमेरिका दे सकता है और न ही चीन।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने सार्क, G-20, NAM आदि वैश्विक मंचों से भारतीय नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया है साथ ही उन्होंने वैश्विक राजनीति के वर्तमान संकट में नेतृत्व और सामूहिक सहयोग के लिये एक नई दिशा प्रदान की है।
- भारत द्वारा सार्क और ब्रिक्स समूहों में सहयोग को बढ़ावा देने के अतिरिक्त लगभग 123 देशों को दवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं साथ ही अन्य देशों से भारतीय नागरिकों को निकलने से लेकर COVID-19 से निपटने के हर चरण में पारदर्शिता बनाए रखने से भारत की एक सकारात्मक छवि बनी है।
- NAM के सदस्य पहले सैद्धांतिक रूप से जुड़े हुए थे परंतु आर्थिक विकास के साथ इन देशों में व्यापार, अर्थव्यवस्था और अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ा है।
NAM की चुनौतियाँ:
- NAM की स्थापना के समय विश्व दो गुटों में बँटा हुआ था परंतु समय के साथ वैश्विक राजनीति में कई परिवर्तन हुए है और वर्तमान में विश्व राजनीति को एक बहु-ध्रुवीय (Multipolar) व्यवस्था के रूप में देखा जा सकता है।
- बीते कुछ वर्षों में NAM सदस्यों में कई मुद्दों पर सहमति का अभाव दिखा है और गुट के सदस्य NAM के मूल्यों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने हितों के लिये अलग-अलग क्षेत्रीय गुटों में शामिल हुए हैं।
- यह संगठन अपने सदस्यों के मतभेदों को दूर करने में असफल रहा है। उदाहरण के लिये यह समूह वर्ष 1980 में इराक-ईरान युद्ध (दोनों NAM सदस्य) रोकने में असफल रहा।
- भारत भी समय-समय पर अपने आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा के लिये NAM के मूल्यों की अनदेखी की है, उदाहरण के लिये परमाणु परीक्षण, अमेरिकी सैन्य समझौते, क्वाड (भारत,अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया) समझौता आदि।
आगे की राह:
- COVID-19 महामारी में जहाँ अन्य बड़े देश अपने हितों की रक्षा या आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं वहीं भारत ने सीमित संसाधनों के साथ भी इस महामारी से निपटने में परस्पर सहयोग और बंधुत्व की नीति से वैश्विक राजनीति को एक नई दिशा दी है।
- वर्तमान COVID-19 संकट से यह भी स्पष्ट हुआ है कि वैश्विक राजनीति में सामरिक और आर्थिक हितों के साथ मानवीय मूल्यों को शीर्ष पर रखना होगा।
- इस महामारी के दौरान भारत को विश्व के सभी देशों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई हैं, अतः भारत को विश्व के इस विश्वास को और अधिक मज़बूत करने के लिये वैश्विक सहयोग के प्रयासों को और अधिक बढ़ाना चाहिये।
- भारत द्वारा अपनी चुनौतियों से लड़ते हुए दूसरे देशों को सहयोग प्रदान करने की पहल में अन्य देशों (जापान, ब्राजील, जर्मनी, आदि) को जोड़ कर COVID-19 से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है।