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भारतीय विरासत और संस्कृति

विश्व संस्कृत दिवस

  • 24 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

विश्व संस्कृत दिवस, नई शिक्षा नीति, संस्कृत ग्राम 

मेन्स के लिये

विश्व संस्कृत दिवस का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

विश्व संस्कृत दिवस (विश्व संस्कृत दिनम) 22 अगस्त, 2021 को मनाया गया।

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • यह एक वार्षिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के पुनरुद्धार और रखरखाव को बढ़ावा देना है।
  • यह हिंदू कैलेंडर में श्रावण महीने के पूर्णिमा दिवस (पूर्णिमा) को मनाया जाता है।
  • प्राचीन काल की तरह व्यापक रूप से नहीं बोली जाने के बावजूद यह दिवस अनिवार्य रूप से संस्कृत सीखने और जानने के महत्त्व की बात करता है।
  • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा राज्य और केंद्र सरकारों को अधिसूचना जारी करने के बाद वर्ष 1969 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था।
  • संस्कृत संगठन संस्कृत भारती (Sanskrit Organisation Samskrita Bharati) दिवस को बढ़ावा देने का कार्य करता है।

संस्कृत भाषा के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • इसे विश्व की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है। यह एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है जिसमें सबसे प्राचीन दस्तावेज़, वेद, वैदिक संस्कृत में हैं।
  • वैदिक काल में संस्कृत एक अखिल भारतीय भाषा हुआ करती थी और देश में अधिकांश भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है।
    • यह भाषा किसी-न-किसी तरह की आधुनिक व्युत्पत्तियों और क्षेत्रीय बोलियों के कारण अपना अस्तित्व खोती गई।
  • शास्त्रीय संस्कृत, उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में इस्तेमाल होने वाली वैदिक के करीब की भाषा ग्रंथ पाणिनी (6वीं-5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) द्वारा रचित अष्टाध्याय (आठ अध्याय), अब तक के सबसे बेहतरीन व्याकरण ग्रंथों में से एक है।
  • संस्कृत को देवनागरी लिपि और विभिन्न क्षेत्रीय लिपियों में लिखा गया है, जैसे- उत्तर (कश्मीर) में  शारदा, पूर्व में बांग्ला (बंगाली), पश्चिम में गुजराती व ग्रंथ वर्णमाला सहित विभिन्न दक्षिणी लिपियाँ जिसे विशेष रूप से संस्कृत ग्रंथों के लिये तैयार गया था।
  • इसे एक वैज्ञानिक भाषा माना जाता है और इसे सबसे अधिक कंप्यूटर के अनुकूल भाषा माना जाता है।
    • वर्ष 1786 में अंग्रेज़ी भाषाविद् विलियम जोन्स ने अपनी पुस्तक 'द संस्कृत लैंग्वेज' में बताया है कि ग्रीक और लैटिन भाषा संस्कृत से संबंधित थी। 
  • हालाँकि यह भाषा पूरी तरह से मृत नहीं है। माना जाता है कि कर्नाटक के शिमोगा ज़िले के एक गाँव, जिसे मत्तूर कहा जाता है, ने भाषा को संरक्षित रखा है।
  • विश्व का एकमात्र संस्कृत समाचार पत्र 'सुधर्म' है। यह समाचार पत्र 1970 से कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित हो रहा है और ऑनलाइन भी उपलब्ध है।
  • पाणिनि, पतंजलि, आदि शंकराचार्य, वेद व्यास, कालिदास आदि संस्कृत के कुछ प्रसिद्ध लेखक हैं।

संस्कृत में महत्त्वपूर्ण लेखक और कार्य:

  • भास (उदाहरण के लिये उनके स्वप्नवासवदत्त - वासवदत्त इन ए ड्रीम), जिनके लिये व्यापक रूप से अलग-अलग तिथियाँ निर्धारित की गई हैं, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से कालिदास से पहले कार्य किया है, इनमें उनका उल्लेख मिलता है।
  • कालिदास (पहली शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी तक) के कार्यों में शकुंतला, विक्रमोर्वण्य, कुमारसंभव और रघुवंश शामिल हैं।
  • सूद्रका (Śūdraka) और मच्छकाटिका ("लिटिल क्ले कार्ट") संभवतः तीसरी शताब्दी के काल की हैं।
  • अश्वघोष की बुद्धचरित (Ashvaghosha’s Buddhacarita) बौद्ध साहित्य के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है।
  • भारवी और किरातार्जुन्य (अर्जुन और किरात) लगभग 7वीं शताब्दी के हैं।
  • माघ (Māgha) का शिशुपालवधा ("शिशुपाल का वध") 7वीं शताब्दी के अंत का है।
  • दो महाकाव्य रामायण ("राम का जीवन") और महाभारत ("भारत की महान कथा") भी संस्कृत में रचे गए।

केंद्र सरकार द्वारा संस्कृत को बढ़ावा:

  • नई शिक्षा नीति (NEP) ने भाषा को "मुख्यधारा" में लाने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी मार्ग निर्धारित किया है। इसके तहत स्कूलों में संस्कृत के अध्ययन की पेशकश करना है, जिसमें त्रि-भाषा सूत्र के साथ-साथ उच्च शिक्षा में एक भाषा विकल्प भी शामिल है।
    • NEP में यह भी कहा गया है कि संस्कृत विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा के बहु-विषयक संस्थानों में बदल दिया जाएगा।
  • संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये एक नोडल प्राधिकरण के रूप में दिल्ली में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की स्थापना की गई है।
  • साथ ही आदर्श संस्कृत महाविद्यालय/शोध संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • महाविद्यालय स्तर पर संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थियों को योग्यता के आधार पर छात्रवृत्ति प्रदान करना।
  • विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं/कार्यक्रमों के लिये गैर-सरकारी संगठनों/संस्कृत के उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता देना।
  • शास्त्र चूड़ामणि योजना (Shastra Chudamani Scheme) के तहत अध्यापन के लिये सेवानिवृत्त प्रख्यात संस्कृत विद्वान कार्यरत हैं।
  • भारतीय संस्थानों, प्रौद्योगिकी, आयुर्वेद संस्थानों, आधुनिक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्रों की स्थापना करके गैर-औपचारिक संस्कृत शिक्षा (Non-formal Sanskrit Education- NFSE) कार्यक्रम के माध्यम से भी संस्कृत पढ़ाया जाता है।
  • संस्कृत भाषा के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार प्रतिवर्ष 16 वरिष्ठ विद्वानों और 5 युवा विद्वानों को प्रदान किया जाता है।
  • प्रकाशन के लिये वित्तीय सहायता और दुर्लभ संस्कृत पुस्तकों का पुनर्मुद्रण।
  • संस्कृत के विकास के लिये अठारह परियोजनाओं वाली अष्टादशी को लागू करना।

स्रोत: पीआईबी

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