भारतीय अर्थव्यवस्था
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार, 2023
प्रिलिम्स के लिये:अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार 2023, श्रम बाज़ार में लैंगिक विषमता, औद्योगीकरण, लैंगिक वेतन अंतराल, गर्भनिरोधक गोलियाँ। मेन्स के लिये:अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार 2023, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को उनके शोध के लिये अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार, 2023 प्रदान किया गया है, यह शोध श्रम बाज़ार में स्त्री पुरुष के बीच भेदभाव संबंधी समझ को बेहतर बनाता है।
- गोल्डिन इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली तीसरी महिला हैं। इनसे पूर्व वर्ष 2009 में यह पुरस्कार एलिनोर ओस्ट्रोम और ओलिवर ई. विलियमसन को दिया गया था। वर्ष 2019 में एस्थर डुफ्लो तथा उनके सहयोगी अभिजीत बनर्जी और माइकल क्रेमर को यह पुरस्कार दिया गया था।
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार:
- अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1968 में स्वेरिग्स रिक्सबैंक (स्वीडन का केंद्रीय बैंक) द्वारा डायनामाइट के आविष्कारक और नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में की गई थी।
- इसे आधिकारिक तौर पर अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में अर्थशास्त्र में स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार कहा जाता है।
- मूल रूप से नोबेल पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य और शांति जैसे क्षेत्रों में दिये जाते हैं जो नोबेल की इच्छा से स्थापित किये गए थे, अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मूल रूप से दिये जाने वाले नोबेल पुरस्कारों में से नहीं है।
- यह पुरस्कार बाद में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान का सम्मान करने के लिये स्थापित किया गया था।
- यह पुरस्कार व्यक्तियों अथवा संगठनों को उनके असाधारण शोध, खोज अथवा योगदान के लिये सम्मान देता है जिन्होंने अर्थशास्त्र की समझ और वास्तविक विश्व की समस्याओं के लिये इसके अनुप्रयोग को उन्नत किया है।
अर्थव्यवस्था में नोबेल पुरस्कार के लिये क्लाउडिया का चयन:
- क्लाउडिया गोल्डिन:
- गोल्डिन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन करने में अग्रणी रही हैं और उन्होंने इस विषय पर कई किताबें लिखी हैं, जैसे: अंडरस्टैंडिंग द जेंडर गैप: एन इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन वुमेन (ऑक्सफोर्ड, 1990) और करियर एंड फैमिली: वुमेन सेंचुरी- लॉन्ग जर्नी टुवर्ड इक्विटी (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 2021)।
- क्लाउडिया का कार्य:
- गोल्डिन ने "सदियों से महिलाओं की आय और श्रम बाज़ार में भागीदारी का पहला संपूर्ण विश्लेषण" पेश किया है।
- उनके शोध से परिवर्तन के कारणों के साथ-साथ शेष लैंगिक अंतर के मुख्य स्रोतों का भी पता चलता है।
- गोल्डिन के इस पथप्रदर्शक कार्य ने पिछले 200 वर्षों में श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी पर प्रकाश डाला है, साथ ही यह भी विश्लेषण किया है कि आखिर पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन अंतर क्यों बना हुआ है, जबकि उच्च आय वाले देशों में कई महिलाएँ पुरुषों की तुलना में बेहतर रूप से शिक्षित होने की संभावनाएँ रखती हैं।
- यद्यपि उनका शोध अमेरिका पर केंद्रित था, लेकिन उनके निष्कर्ष कई अन्य देशों पर लागू होते हैं।
- कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित क्लाउडिया के शोध के निष्कर्ष:
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: औद्योगीकरण से पूर्व महिलाओं की कृषि और कुटीर उद्योगों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने की अधिक संभावनाएँ होती थीं।
- हालाँकि औद्योगीकरण और फैक्टरी-आधारित कार्य के बढ़ने के साथ महिलाओं को काम/नौकरी करने के लिये घर छोड़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- सेवा क्षेत्र की भूमिका: 20वीं सदी के प्रारंभ में सेवा क्षेत्र के विकास ने उच्च शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक महिलाओं की पहुँच में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इस क्षेत्र ने महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश के अधिक अवसर प्रदान किये।
- विवाहित महिलाओं की भागीदारी: 20वीं सदी की शुरुआत तक कार्यबल में कुल महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 20% थी, किंतु विवाहित महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 5% थी।
- गोल्डिन ने कहा कि "वैवाहिक प्रतिबंध" कानून अक्सर विवाहित महिलाओं को शिक्षक अथवा कार्यालय कर्मी के रूप में कार्यरत रहने अथवा रोज़गार से जुड़े रहने के लिये प्रतिबंधित करता है।
- श्रमबल की बढ़ती मांग के बावजूद भी श्रम बाज़ार के कुछ हिस्सों से विवाहित महिलाओं को बाहर रखा गया है।
- कॅरियर विकल्पों की भूमिका: अपने भविष्य और कॅरियर को लेकर महिलाओं की अपेक्षाओं की लैंगिक वेतन अंतराल में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- अपनी माताओं के अनुभवों का महिलाओं के कॅरियर संबंधी निर्णय पर काफी प्रभाव पड़ा, जिस कारण कई महिलाओं को काफी बार ऐसे विकल्प का चयन करना पड़ा जो ज़रूरी नहीं कि दीर्घकालिक, निर्बाध और फलदायी हों।
- गर्भनिरोधक गोलियों की भूमिका: 1960 के दशक के अंत तक उपयोग में आसान गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता से महिलाओं को प्रसव पर अधिक नियंत्रण रखने तथा अपने कॅरियर और परिवार बढ़ाने की योजना का निर्माण करने में मदद की।
- इससे बड़ी संख्या में महिलाओं ने कानून, अर्थशास्त्र और चिकित्सा जैसे विषयों का अध्ययन किया तथा रोज़गार के विभिन्न क्षेत्रों जुड़ीं।
- पेरेंटहुड/माता-पिता बनने के बाद वेतन अंतराल पर प्रभाव: महिलाओं के शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में सुधार के बावजूद, लैंगिक वेतन में अभी भी एक बड़ा अंतराल मौजूद है।
- प्रारंभ में पुरुषों और महिलाओं के बीच आमदनी में अंतर काफी कम होता है, किंतु एक बच्चा आने तथा परिवार बढ़ने का महिलाओं की आमदनी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और समान शिक्षा तथा पेशे के बावजूद महिलाओं की आमदनी में पुरुषों की आमदनी के समान दर से वृद्धि नहीं हो पाती है।
- वेतन अंतराल को बढ़ाने में पेरेंटहुड की बड़ी भूमिका रही है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: औद्योगीकरण से पूर्व महिलाओं की कृषि और कुटीर उद्योगों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने की अधिक संभावनाएँ होती थीं।
जैव विविधता और पर्यावरण
कोरल रीफ ब्रेकथ्रू
प्रिलिम्स के लिए:कोरल रीफ ब्रेकथ्रू, ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स, प्रवाल भित्तियाँ मेन्स के लिये:प्रवाल भित्तियों का महत्त्व, प्रदूषण और क्षरण की रोकथाम एवं नियंत्रण |
स्रोत: आई.सी.आर.आई.
चर्चा में क्यों?
इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) ने ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR) और हाई-लेवल क्लाइमेट चैंपियंस (HLCC) की साझेदारी में कोरल रीफ ब्रेकथ्रू पहल की शुरुआत की है।
- इस पहल को वर्ष 2023 में आयोजित 37वें इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव की आम बैठक में लॉन्च किया गया।
कोरल रीफ ब्रेकथ्रू:
- कोरल रीफ ब्रेकथ्रू एक विज्ञान-आधारित पहल है, इसका उद्देश्य मानवता के भविष्य में प्रवाल भित्तियों के योगदान एवं उनके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के सामूहिक प्रयासों से प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा, संरक्षण एवं पुनर्स्थापना करना है।
- 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ कोरल रीफ ब्रेकथ्रू पहल का लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम से कम 125,000 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत उष्णकटिबंधीय उथले जल वाले प्रवाल भित्तियों के अस्तित्त्व को बनाए रखना है, इस पहल से विश्व भर में लगभग 50 करोड़ से अधिक लोगों की अनुकूलन क्षमता में वृद्धि होगी।
- यह पहल चार कार्य बिंदुओं पर आधारित है:
- कार्य बिंदु 1:
- अत्यधिक मत्स्य पालन, विनाशकारी तटीय विकास और भूमि-आधारित स्रोतों से होने वाले प्रदूषण जैसे स्थानीय कारकों के प्रभाव को कम करना।
- कार्य बिंदु 2:
- प्रभावी संरक्षण के तहत प्रवाल भित्तियों का क्षेत्र दोगुना करना: 30 बाय 30 जैसे अंतर्राष्ट्रीय तटीय सुरक्षा लक्ष्यों के अनुरूप प्रवाल भित्तियों के संरक्षण हेतु अनुकूलन-आधारित प्रयासों को बढ़ावा देना।
- 30 बाय 30 एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक पृथ्वी की कम से कम 30% भूमि और महासागर क्षेत्र की रक्षा करना है। इसे UNCCD कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP 15) के दौरान प्रस्तावित किया गया था।
- प्रभावी संरक्षण के तहत प्रवाल भित्तियों का क्षेत्र दोगुना करना: 30 बाय 30 जैसे अंतर्राष्ट्रीय तटीय सुरक्षा लक्ष्यों के अनुरूप प्रवाल भित्तियों के संरक्षण हेतु अनुकूलन-आधारित प्रयासों को बढ़ावा देना।
- कार्य बिंदु 3:
- बड़े पैमाने पर नवीन समाधानों को खोजना व जलवायु अनुकूल तंत्रों के विकास और कार्यान्वयन में सहायता करना, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक 30% निम्नीकृत भित्तियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना है।
- कार्य बिंदु 4:
- इन प्रमुख पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने के लिये सार्वजनिक व निजी स्रोतों से वर्ष 2030 तक कम से कम 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश सुरक्षित करना।
- कार्य बिंदु 1:
- कोरल ब्रेकथ्रू के लक्ष्यों को पूरा करने से सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से SDG14 (जल के नीचे जीवन/Life Below Water) को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI):
- यह राष्ट्रों और संगठनों के बीच एक वैश्विक साझेदारी है जो विश्व भर में प्रवाल भित्तियों एवं संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों को संरक्षित करने का प्रयास करती है।
- इस पहल की शुरुआत वर्ष 1994 में आठ देश की सरकारों द्वारा की गई थी जिसमें ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान, जमैका, फिलीपींस, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे।
- इसकी घोषणा वर्ष 1994 में आयोजित जैव-विविधता पर अभिसमय के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ के पहले सम्मेलन में की गई थी।
- ICRI से जुड़े संगठनों की संख्या 101 है, जिनमें 45 देश शामिल हैं (भारत उनमें से एक है)।
हाई-लेवल क्लाइमेट चैंपियंस (HLCC):
- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करने में व्यवसायों, शहरों, क्षेत्रों और निवेशकों जैसे गैर-राज्य अभिकर्ताओं की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने एवं बेहतर करने हेतु उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त किया जाता है।
ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR):
- GFCR प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिये कार्रवाई करने तथा संसाधन जुटाने हेतु एक वित्त साधन के रूप में कार्य करती है।
- यह प्रवाल भित्तियों तथा उन पर निर्भर समुदायों को बचाने हेतु संधारणीय हस्तक्षेपों का समर्थन करने के लिये अनुदान और निजी पूंजी प्रदान करता है।
- पारिस्थितिक, सामाजिक एवं आर्थिक प्रत्यास्थता प्रदान करने के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ, राष्ट्र, परोपकारी संसंस्थाएँ, निजी निवेशक और संगठन ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (प्रवाल भित्तियों के लिये वैश्विक कोष) गठबंधन में शामिल हो गए हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित स्थितियों में से किस एक में “जैवशैल प्रौद्योगिकी (बायोरॉक टेक्नोलॉजी )” की बातें होती हैं? (a) क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) की बहाली उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
मौद्रिक नीति समिति के निर्णय: RBI
प्रिलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति समिति के निर्णय, भारतीय रिज़र्व बैंक, रेपो दर, सकल घरेलू उत्पाद, मुद्रास्फीति, खुला बाज़ार परिचालन मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति समिति के निर्णय: RBI, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना निर्माण से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोज़गार, समावेशी विकास और इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे, सरकारी बजटिंग |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में लगातार चौथी बार बेंचमार्क ब्याज दरों में बिना बदलाव किये हुए उसे बनाए रखा है।
- मौद्रिक नीति समिति ने 6.50% रेपो दर को बरकरार रखा।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के प्रमुख बिंदु:
- अपरिवर्तित रेपो रेट:
- RBI ने सर्वसम्मति से आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण को संतुलित करने के लिये नीतिगत रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया।
- सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि और मुद्रास्फीति:
- RBI ने वर्ष 2023-24 के लिये अपने वास्तविक GDP विकास पूर्वानुमान को 6.5% पर और चालू वित्त वर्ष 24 के लिये औसत CPI मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को 5.4% पर अपरिवर्तित रखा है।
- हालाँकि MPC ने दूसरी तिमाही के लिये अपना मुख्य मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ाकर 6.4% कर दिया है।
- RBI गवर्नर ने 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य के प्रति वचनबद्धता पर बल दिया तथा खाद्य और ईंधन की कीमतों में व्यवधान से उत्पन्न होने वाले अंतर्निहित मुद्रास्फीति के प्रभाव से बचने के लिये समय पर कार्रवाई करने हेतु तैयार रहने के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- RBI ने वर्ष 2023-24 के लिये अपने वास्तविक GDP विकास पूर्वानुमान को 6.5% पर और चालू वित्त वर्ष 24 के लिये औसत CPI मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को 5.4% पर अपरिवर्तित रखा है।
- तरलता प्रबंधन और वित्तीय स्थिरता:
- बैंकिंग प्रणाली की तरलता को मौद्रिक नीति के रुख के अनुसार सक्रिय रूप से प्रबंधित किया जाएगा।
- RBI आवश्यकतानुसार ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) का प्रयोग करेगा। मूल्य स्थिरता और विकास के लिये वित्तीय स्थिरता आवश्यक है।
- बुलेट रिपेमेंट योजना के तहत गोल्ड लोन:
- RBI ने शहरी सहकारी बैंकों के लिये बुलेट रिपेमेंट योजना (BRS) के तहत गोल्ड लोन की ऋण सीमा को दोगुना कर 4 लाख रुपए करने की घोषणा की।
- यह निर्णय उन शहरी सहकारी बैंकों (UCB) से संबंधित है जिन्होंने 31 मार्च, 2023 तक प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के तहत समग्र लक्ष्य और उप-लक्ष्य पूरा कर लिया है।
- BRS ऐसी योजना जिसमें एक कर्ज़दार ऋण अवधि के दौरान ऋण अदायगी की चिंता किये बिना ऋण अवधि के अंत में ब्याज़ और मूल राशि का भुगतान करता है।
- समायोजनकारी रुख:
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी मुद्रास्फीति संबंधी खतरे टल जाने तक "समायोजन वापस लेने" की अपनी नीति पर ज़ोर दिया है।
- समायोजनकारी रुख केंद्रीय बैंक द्वारा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये मुद्रा पूर्ति का विस्तार करने की उसकी तत्परता को दर्शाता है।
- समायोजन को वापस लेने का अर्थ अर्थव्यवस्था तंत्र में मुद्रा पूर्ति को नियंत्रित करना है जिससे मुद्रास्फीति की रोक थाम में सहायता मिलेगी।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी मुद्रास्फीति संबंधी खतरे टल जाने तक "समायोजन वापस लेने" की अपनी नीति पर ज़ोर दिया है।
बेंचमार्क दरें अपरिवर्तित रखने के कारण:
- स्थिति स्थापक आर्थिक गतिविधि:
- भारतीय अर्थव्यवस्था ने विभिन्न कारकों से उत्पन्न अनिश्चितताओं और चुनौतियों के बावजूद अपने स्थिति स्थापन का प्रदर्शन किया है।
- इसके चलते बेंचमार्क दरों को बनाए रखने का निर्णय लिया गया, जो अर्थव्यवस्था द्वारा संभावित जोखिम का सामना करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है।
- पिछली नीतिगत रेपो दर में बढ़ोतरी:
- MPC ने पिछली नीतिगत रेपो दर में कुल 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की।
- इन दरों में बढ़ोतरी के प्रभावों से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये समिति ने वर्तमान बैठक में दरों को स्थिर रखने का विकल्प चुना।
- MPC ने स्वीकार किया कि पिछली नीतिगत रेपो दर में बढ़ोतरी अभी भी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की प्रक्रिया में है।
- मुद्रास्फीति जोखिम प्रबंधन:
- MPC संधारणीय आधार पर मुद्रास्फीति को 4% लक्ष्य के साथ बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध है।
- इसके अतिरिक्त, दरों को तुरंत समायोजित किये बिना इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये, वर्तमान नीतिगत रुख की आवश्यकता है।
- MPC ने हेडलाइन इन्फ्लेशन को प्रभावित करने वाले खाद्य मूल्य के जोखिमों की संभावित पुनरावृत्ति के बारे में चिंता व्यक्त की।
- दरों को अपरिवर्तित रखना इस स्थिति पर बारीकी से नज़र रखने और मुद्रास्फीति दबाव बढ़ने की स्थिति में तुरंत कार्रवाई करने के लिये तत्पर रहने हेतु एक एहतियाती उपाय हो सकता है।
MPC बैठक में RBI द्वारा व्यक्त चिंताएँ:
- उच्च मुद्रास्फीति:
- RBI, उच्च मुद्रास्फीति को व्यापक आर्थिक स्थिरता और सतत् विकास दोनों के लिये एक बड़ा जोखिम मानता है।
- मुख्य मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन घटकों को छोड़कर) में गिरावट के बावजूद, अनिश्चितताओं ने समग्र मुद्रास्फीति दृष्टिकोण को धूमिल कर दिया है।
- आवश्यक फसलों के लिये खरीफ फसलों की बुआई में कमी, जलाशय स्तर में गिरावट और वैश्विक खाद्य तथा ऊर्जा की कीमतों में उतार-चढ़ाव जैसे कारक इस अनिश्चितता में योगदान करते हैं।
- भू-राजनीतिक और आर्थिक जोखिम:
- RBI ने भू-राजनीतिक तनाव, भू-आर्थिक विखंडन, वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता और वैश्विक आर्थिक मंदी सहित विभिन्न प्रतिकूलताओं को चिह्नित किया।
- ये बाह्य कारक आर्थिक दृष्टिकोण के लिये जोखिम उत्पन्न करते हैं, इन पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
- वित्तीय स्थिरता और निगरानी:
- RBI ने वित्तीय स्थिरता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए इसे मूल्य स्थिरता और विकास के लिये मौलिक बताया। वित्तीय क्षेत्र की मज़बूत बैलेंस शीट को स्वीकार किया गया, लेकिन विशेष रूप से व्यक्तिगत ऋणों में वृद्धि के संबंध में सतर्कता तथा मज़बूत आंतरिक निगरानी तंत्र स्थापित करने की सलाह दी गई।
नोट:
- CRR: नकद आरक्षित अनुपात, शुद्ध मांग और सावधि देनदारियों का एक प्रतिशत, बैंकों को तरलता को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक (RBI) के पास रखना चाहिये।
- वृद्धिशील CRR: अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन एवं अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये RBI द्वारा बैंकों की CRR को अधिक करने आवश्यकता है।
- रेपो दर: यह वाणिज्यिक बैंकों हेतु अल्पकालिक ऋण के लिये RBI द्वारा निर्धारित ब्याज दर है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने एवं आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है।
- मुद्रास्फीति: यह एक समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि को संदर्भित करता है, जिससे रुपए की क्रय शक्ति में कमी आती है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
- कोर मुद्रास्फीति: हेडलाइन मुद्रास्फीति उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं का एक बास्केट शामिल है। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से भोजन और पेय पदार्थ (सब्जियों सहित) तथा ईंधन एवं प्रकाश (कच्चा तेल) सम्मिलित हैं।
- कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: यह एक मौद्रिक नीति संरचना है जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के लिये एक विशिष्ट लक्ष्य सीमा बनाए रखना है।
- उर्जित पटेल समिति ने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के उपाय के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की सिफारिश की।
- वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य भी 4% की लक्ष्य मुद्रास्फीति दर स्थापित करने की समिति की सिफारिश के साथ संरेखित है, जिसमें विचलन की स्वीकार्य सीमा ± 2% है।
- केंद्र सरकार, RBI के परामर्श से खुदरा मुद्रास्फीति के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्य तथा उच्च और निम्न छूट का स्तर निर्धारित करती है।
- उर्जित पटेल समिति ने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के उपाय के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की सिफारिश की।
- तरलता से तात्पर्य उस सुविधा से है जिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सिक्योरिटी को उसकी कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले बिना बाज़ार में सरलता से खरीदा या बेचा जा सकता है।
- यह वित्तीय दायित्वों को पूरा करने अथवा निवेश करने के लिये रोकड़ या तरल संपत्ति की उपलब्धता को दर्शाता है। सरल शब्दों में तरलता का अर्थ है- जब भी आपको ज़रूरत हो अपना पैसा प्राप्त करना।
मौद्रिक नीति समिति (MPC): सरलीकृत
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पालिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2017) 1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है। नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020) 1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |
शासन व्यवस्था
कृष्णा जल विवाद
प्रिलिम्स के लिये:कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण- II (KWDT-II), अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम (ISRWD)-1956, कृष्णा नदी, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 262 मेन्स के लिये:कृष्णा जल विवाद, कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II, अंतर-राज्यीय जल विवाद |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश (AP) राज्यों के बीच निर्णय हेतु अंतर-राज्य नदी जल विवाद अधिनियम (ISRWD)-1956 के तहत मौजूदा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण- II (KWDT-II) के लिये एक अन्य संदर्भ की शर्तों (ToR) के मुद्दे को मंज़ूरी दे दी है। ।
कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II (KWDT-II):
- कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II का गठन केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2004 में ISRWD अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत कृष्णा नदी से संबंधित जल-वितरण/नियंत्रण विवादों को निपटाने और सुलझाने के लिये किया गया था।
- इसका गठन महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच कृष्णा नदी के जल-वितरण/नियंत्रण विवाद का समाधान करने के लिये किया गया था।
- KWDT-II ने जल की उपलब्धता, राज्यों को इसकी आपूर्ति और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर कृष्णा नदी के जल की अनुशंसा एवं आवंटन सुनिश्चित किया। इसने प्रत्येक राज्य को एक निश्चित मात्रा में जल उपलब्ध कराया, इसमें उस प्रत्येक हिस्से को रेखांकित किया गया जिसे वे प्राप्त करने के हकदार थे।
कृष्णा जल विवाद:
- परिचय:
- कृष्णा जल विवाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच कृष्णा नदी के जल के न्यायसंगत वितरण पर केंद्रित है।
- कृष्णा नदी इन राज्यों से होकर बहती है और विवाद उत्पन्न होने का प्रमुख कारण राज्यों की अलग-अलग ज़रूरतें, ऐतिहासिक मतभेद और राजनीतिक व प्रशासनिक परिदृश्य में बदलाव हैं।
- पृष्ठभूमि:
- विवाद का केंद्र: आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर स्थित श्रीशैलम बाँध विवाद का प्रमुख केंद्र है। आंध्र प्रदेश ने विद्युत उत्पादन के लिये श्रीशैलम बाँध के जल के तेलंगाना द्वारा उपयोग का विरोध किया।
- विवाद की पृष्ठभूमि: इस विवाद का संबंध वर्ष 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन से है और इसका समाधान वर्ष 1973 में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (KWDT) के माध्यम से किया गया था। कृष्णा नदी के जल को पुनः आवंटित करने के लिये वर्ष 2004 में दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।
- KWDT आवंटन (वर्ष 2010): दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 2010 में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कृष्णा नदी के जल का आवंटन इस पर 65% निर्भरता और अधिशेष प्रवाह के लिये निम्नानुसार किया गया:
- महाराष्ट्र के लिये 81 हज़ार मिलियन घन (TMC) फीट, कर्नाटक के लिये 177 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 190 TMC।
- आंध्र प्रदेश की चुनौतियाँ: वर्ष 2011 में आंध्र प्रदेश ने एक विशेष अनुमति याचिका सहित कानूनी कार्यवाही के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष KWDT द्वारा किये गये आवंटन को चुनौती दी।
- वर्ष 2013 में KWDT ने एक अन्य रिपोर्ट जारी की, जिसे वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश द्वारा फिर से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
- तेलंगाना के गठन के बाद वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश ने चार राज्यों के बीच कृष्णा जल आवंटन की समीक्षा की मांग की।
- महाराष्ट्र और कर्नाटक ने तर्क प्रस्तुत किया कि तेलंगाना का निर्माण आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद हुआ था। इसलिये जल का आवंटन आंध्र प्रदेश के हिस्से में से होना चाहिये, जिसे कोर्ट ने मंज़ूरी दे दी।
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करता है, जिससे संसद को इस उद्देश्य के लिये कानून बनाने की अनुमति मिलती है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 केंद्र सरकार को राज्यों के बीच जल विवादों को सुलझाने के लिये तदर्थ न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
- वर्तमान स्थिति:
- KWDT संदर्भ की नई शर्तें प्रदान करेगा जिसके तहत न्यायाधिकरण भविष्य में कृष्णा नदी के जल को दोनों राज्यों, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच विभाजित करेगा।
- यह दोनों राज्यों में विकासात्मक या भविष्य के उद्देश्यों हेतु प्रस्तावित परियोजनाओं के लिये परियोजना-वार जल आवंटित करेगा।
कृष्णा नदी:
- स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट होता है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
- ड्रेनेज: यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले चार राज्यों महाराष्ट्र (303 कि.मी.), उत्तरी कर्नाटक (480 कि.मी.) और शेष 1300 कि.मी. तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
- सहायक नदियाँ:
- दाईं ओर की सहायक नदियाँ: घटप्रभा, मल्लप्रभा और तुंगभद्रा।
- बाईं ओर की सहायक नदियाँ: भीमा, मुसी और मुन्नेरु।
- जलविद्युत विकास:
- कृष्णा नदी बेसिन में प्रमुख जल विद्युत स्टेशन कोयना, तुंगभद्रा, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर, अलमाटी, नारायणपुर और भद्रा हैं।
- पौराणिक महत्त्व:
- कृष्णा प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व की ओर बहने वाली एक विशालकाय नदी है । इसे पुराणों में कृष्णवेना अथवा योगिनीतंत्र (एक तांत्रिक ग्रन्थ) में कृष्णवेणी के नाम से जाना जाता है।
- इसे जातकों और खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में कान्हापेन्ना के नाम से भी जाना जाता है।
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन से उभयचरों को ख़तरा
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन से खतरे में पड़े उभयचर, उभयचर, जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)। मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन से खतरे में पड़े उभयचर, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में प्रकाशित 'ऑनगोइंग डिकलाइंस फॉर द वर्ल्डस एम्फीबियंस इन द फेस ऑफ इमर्जिंग थ्रेट्स' (Ongoing declines for the world’s amphibians in the face of emerging threats) शीर्षक वाले अध्ययन से विश्व भर के उभयचरों के लिये विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से प्रमुख खतरों का पता चला है।
- यह अध्ययन एम्फिबियन रेड लिस्ट अथॉरिटी द्वारा समन्वित द्वितीय वैश्विक उभयचर मूल्यांकन पर आधारित है, जो अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) प्रजाति उत्तरजीविता आयोग (Species Survival Commission) के उभयचर विशेषज्ञ समूह की एक शाखा है।
- इस मूल्यांकन में विश्व भर से 8,000 से अधिक उभयचर प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन किया गया, जिसमें 2,286 प्रजातियों का मूल्यांकन प्रथम बार किया गया।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- विलुप्त होने का जोखिम:
- विशव में प्रत्येक पाँच उभयचर प्रजातियों में से दो प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
- विश्व स्तर पर लगभग 40.7% प्रजातियाँ खतरे में हैं जो किसी भी प्रकार की प्रजाति के लिये सबसे बड़ा प्रतिशत है। इसके विपरीत 12.9% पक्षियों, 21.4% सरीसृपों और 26.5% स्तनधारियों को भी इसका खतरा है।
- वर्ष 2004 और 2022 के बीच 300 से अधिक उभयचर प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं, इनमें से 39% प्रजातियों के लिये जलवायु परिवर्तन को प्राथमिक खतरे के रूप में देखा जाता है।
- उभयचर पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- विलुप्त उभयचर:
- वर्ष 2004 के बाद से चार उभयचर प्रजातियों को विलुप्त प्रजातियों के रूप में उल्लेखित किया गया था, जिसमे कोस्टा रिका (देश) की चिरिकि हार्लेक्विन मेंढक (एटलोपस चिरिकिनेसिस), ऑस्ट्रेलिया की शार्प स्नाउट डे फ्रॉग (टौडैक्टाइलस एक्यूटिरोस्ट्रिस) और ग्वाटेमाला की क्राउगैस्टोर माइलोमिलॉन एवं जालपा फाल्स ब्रुक सैलामैंडर (स्यूडोयूरीसिया एक्सस्पेक्टाटा) प्रजातियाँ शामिल है।
- संकटग्रस्त उभयचरों का सबसे बड़ी संक्रेंद्रण:
- संकटग्रस्त उभयचरों का सबसे व्यापक संक्रेंद्रण कैरेबियाई द्वीपों, मैक्सिको और मध्य अमेरिका, उष्णकटिबंधीय एंडीज़ क्षेत्र, भारत के पश्चिमी घाट, श्रीलंका, कैमरून, नाइजीरिया और मेडागास्कर में पाया गया।
- मानवीय प्रभाव:
- कृषि, बुनियादी ढाँचे के विकास और अन्य उद्योगों जैसी गतिविधियों के कारण आवास का विनाश तथा क्षरण उभयचरों के लिये प्रमुख संकट बना हुआ है, जो सभी संकटग्रस्त प्रजातियों में से 93% प्रभावित कर रहा है।
- रोग और अत्यधिक शोषण:
- चिट्रिड कवक के कारण होने वाली बीमारी और अत्यधिक दोहन उभयचरों की कमी में योगदान दे रहा है।
- वर्ष 1980 और 2004 के बीच बीमारी और निवास स्थान के नुकसान के कारण स्थिति में 91% गिरावट आई।
- अविरत और अनुमानित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब बढ़ती चिंता का कारण बन रहे हैं, वर्ष 2004 के बाद से 39% स्थिति में गिरावट आई है, इसके बाद निवास स्थान का नुकसान हुआ है।
- सैलामैंडर संकट:
- सैलामैंडर की हर पाँच में से तीन प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, जिसका मुख्य कारण आवास विखंडन और जलवायु परिवर्तन है।
- सैलामैंडर को विश्व के उभयचरों के सबसे संकटग्रस्त समूह के रूप में पहचाना जाता है।
- उभयचर को पहली बार 300 मिलियन वर्ष से भी पहले पहचाना गया था। उभयचरों के तीन वर्ग आज भी मौजूद हैं:
- सैलामैंडर और न्यूट्स (60% विलुप्त होने का खतरा), मेंढक व टोड (39%), तथा अंगहीन एवं सर्पीन सीसिलियन (16%)।
- उभयचर को पहली बार 300 मिलियन वर्ष से भी पहले पहचाना गया था। उभयचरों के तीन वर्ग आज भी मौजूद हैं:
- संरक्षण कार्रवाई:
- संरक्षणवादियों ने वैश्विक संरक्षण कार्य योजना विकसित करने, संरक्षण के प्रयासों को प्राथमिकता देने, अतिरिक्त संसाधनों को सुरक्षित करने और उभयचरों के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति में बदलाव लाने के लिये नीतियों को प्रभावित वाले अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग करने की योजना बनाई है।
उभयचर:
- परिचय:
- वे एनिमेलिया जीव जगत के कॉर्डेटा संघ के अंतर्गत आते हैं, उदाहरण के लिये, मेंढक, टोड, सैलामैंडर, न्यूट्स, सीसिलियन आदि।
- ये बहुकोशिकीय कशेरुक हैं जो स्थल और जल दोनों पर निवास करते हैं।
- ये भूमि पर विचरण करने वाले पहले समतापी जीव हैं।
- समतापी जीवों को उन जीवों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो पर्यावरण में परिवर्तन के साथ अपने आंतरिक शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
- ये फुफ्फुस और त्वचा के माध्यम से श्वसन क्रिया करते हैं।
- उनके हृदय तीन प्रकोष्ठ के बने होते हैं।
- महत्त्व:
- पारिस्थितिक दृष्टिकोण से उभयचरों को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक माना जाता है। उच्च स्तर की संवेदनशीलता के कारण उनका अध्ययन किया जाता है, जिससे उनके निवास स्थान के विखंडन, पारिस्थितिकी तंत्र के तनाव, कीटनाशकों के प्रभाव और विभिन्न मानवजनित गतिविधियों का संकेत मिलता है।
- ये महत्त्वपूर्ण जैविक संकेतक हैं और पारिस्थितिक तंत्र के व्यापक स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- ये उपभोक्ता (शिकारी) और उत्पादक (शिकार) दोनों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उभयचर कीट खाते हैं, जो कृषि के लिये फायदेमंद है और मलेरिया जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने में भी सहायता करते हैं।
- उभयचर प्राणी चिकित्सीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। उभयचरों की त्वचा में विभिन्न प्रकार के पेप्टाइड्स होते हैं और ये कई मानव रोगों के लिये चिकित्सा उपचार की संभावना प्रदान करते हैं।
- वर्तमान समय में इनका उपयोग कुछ दर्द निवारक के रूप में भी किया जाता है।
- पारिस्थितिक दृष्टिकोण से उभयचरों को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक माना जाता है। उच्च स्तर की संवेदनशीलता के कारण उनका अध्ययन किया जाता है, जिससे उनके निवास स्थान के विखंडन, पारिस्थितिकी तंत्र के तनाव, कीटनाशकों के प्रभाव और विभिन्न मानवजनित गतिविधियों का संकेत मिलता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की जैवविविधता के संदर्भ में सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बार्बेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और ह्वाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट क्या है? (2020) (a) पक्षी उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। प्रश्न. सजीवों के विकास के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा क्रम सही है? (2009) (a) ऑक्टोपस - डॉल्फिन - शार्क उत्तर: (c)
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सामाजिक न्याय
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र, राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम मेन्स के लिये:भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल, जनसंख्या और संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्तूबर को मनाया जाता है, यह एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये समर्थन जुटाना है।
- भारत के संदर्भ में यह दिन देश की बढ़ती किशोर जनसंख्या (10-19 वर्ष की आयु) के सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है, जो इसकी भविष्य की समृद्धि और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम: मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है।
नोट: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की स्थापना 10 अक्तूबर,1992 को वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ द्वारा की गई थी। तब से यह हर वर्ष मनाया जाता है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति:
- परिचय:
- मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सेहत को संदर्भित करता है, जिसमें उसकी समग्र मानसिक और भावनात्मक स्थिति शामिल होती है।
- इसमें किसी व्यक्ति की तनाव से निपटने, अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने, स्वस्थ रिश्ते बनाए रखने, उत्पादक रूप से काम करने और तर्कसंगत निर्णय लेने की क्षमता शामिल है।
- मानसिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य और खुशहाली का एक अभिन्न अंग है तथा यह शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्त्वपूर्ण है।
- भारत में स्थिति:
- भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज़ के आँकड़ों के अनुसार, ज्ञान की कमी, कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों की वजह से 80% से अधिक लोगों की देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
- वर्ष 2012-2030 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (WHO) का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।
- भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज़ के आँकड़ों के अनुसार, ज्ञान की कमी, कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों की वजह से 80% से अधिक लोगों की देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल:
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे:
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
- इस कमी के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच है, शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक संसाधन होते हैं।
- जागरूकता की कमी और कलंक : भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को प्रायः कलंकित किया जाता है और गलत समझा जाता है।
- कई व्यक्ति एवं परिवार सामाजिक भेदभाव के डर और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मदद लेने से झिझकते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के प्रति किशोरों की संवेदनशीलता: किशोरावस्था बचपन से वयस्कता की ओर परिवर्तन का प्रतीक है, जो शारीरिक छवि के मुद्दों और सामाजिक अपेक्षाओं सहित विभिन्न चुनौतियों से भरी होती है।
- शैक्षणिक दबाव, भविष्य को लेकर चिंताएँ किशोरावस्था के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को प्रमुखता से प्रभावित कर सकती हैं।
- भारत में किशोरों में गंभीर मानसिक बीमारी की व्यापकता 7.3% है।
- लैंगिक असमानताएँ: स्त्रियों एवं पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य में असमानताओं में उनके लैंगिक भिन्नताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- भारत में महिलाओं को अवसाद, चिंता और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है तथा उनके पास मदद मांगने हेतु स्वायत्तता अक्सर सीमित होती है।
- NCRB की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021 में भारत में कुल आत्महत्याओं में गृहिणियों की हिस्सेदारी 50% थी।
- आर्थिक कारक: गरीबी और आर्थिक असमानता मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वृद्धि में योगदान देती है।
- वित्तीय अस्थिरता के चलते तनाव और शैक्षिक अवसरों की सीमितता भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है।
- ऑनलाइन और सोशल मीडिया का प्रभाव: मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन कंटेंट का बढ़ता प्रभाव एक अन्य चिंता का विषय है।
- साइबरबुलिंग, सामाजिक तुलना और गलत सूचना का प्रसार आदि मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले अन्य प्रमुख कारक हैं।
- वृद्ध जनसंख्या और वृद्धजन मानसिक स्वास्थ्य: भारत में वृद्ध जनसंख्या में तीव्र वृद्धि को देखते हुए उनके लिये बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- अकेलापन, अवसाद और मनोभ्रंश अधिक उम्र के वयस्कों के बीच आम चिंताएँ हैं।
- आपदा और आघात: प्राकृतिक आपदाओं तथा अन्य दर्दनाक घटनाओं का मानसिक स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
- भारत बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के प्रति काफी संवेदनशील है, इसके कारण मानसिक आघात तथा अभिघात-उपरांत तनाव विकार (Post-Traumatic Stress Disorder - PTSD) हो सकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
आगे की राह
- मानसिक स्वास्थ्य हेतु सहायता केंद्रित मॉडल को अपनाना: नीति निर्माताओं को सामान्य चिकित्सा मॉडल से सहायता केंद्रित मॉडल को अपनाना चाहिये जो मानव जीवन के सार्वभौमिक कल्याण को समाहित करता है।
- उदाहरणतः अमेरिका में 'होल स्कूल, होल कम्युनिटी, होल चाइल्ड' (Whole School, Whole Community, Whole Child) मॉडल का सफल कार्यान्वयन, जो स्कूली परिवेश में पोषण, शारीरिक गतिविधि और भावनात्मक स्वास्थ्य जैसे कारकों पर विचार करके बच्चों की भलाई के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे में वृद्धि: विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में अधिक मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिक और सुविधाओं के निर्माण में निवेश करना चाहिये।
- मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं सहित अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना और उनकी भर्ती करना।
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विषमता को पाटने तथा पहुँच बढ़ाने के लिये टेलीमेडिसिन एवं ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ एकीकरण: प्रारंभिक जाँच और उपचार सुनिश्चित करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- साथ ही सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन के लिये प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं को प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।
- शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करना: प्रारंभिक जागरूकता और उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज: उपचार को अधिक किफायती और सुलभ बनाने के लिये चरणबद्ध तरीके से स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के तहत मानसिक स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- साथ ही ऐसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है जो मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये बीमा समानता सुनिश्चित करती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारतीय समाज में युवा महिलाओं में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? (2023) |