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डेली न्यूज़

  • 10 Nov, 2023
  • 60 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन

प्रिलिम्स के लिये:

भाखड़ा नांगल बाँध, प्रत्यावर्ती धारा (AC), दिष्ट धारा (DC), वितरण उपकेंद्र, ट्रांसमिशन उपकेंद्र, परमाणु रिएक्टर

मेंस के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बिजली उत्पादन एवं पारेषण को सुव्यवस्थित करने का महत्त्व।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

समकालीन विश्व में बिजली की बढ़ती मांग के साथ, विशेष रूप से बढ़ती व्यक्तिगत तथा औद्योगिक ज़रूरतों के लिये, इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन सिस्टम की दक्षता तथा विश्वसनीयता को बढ़ाना भी महत्त्वपूर्ण है।

पावर ट्रांसमिशन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • परिचय:
    • किसी भी विद्युत् आपूर्ति प्रणाली में तीन व्यापक घटक होते हैं: उत्पादन, पारेषण और वितरण। बिजली का उत्पादन विद्युत् संयंत्रों के साथ-साथ छोटे नवीकरणीय-ऊर्जा प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है।
    • इसके पश्चात विद्युत् को अन्य तत्त्वों के बीच स्टेशनों, सबस्टेशनों, स्विचों, ओवरहेड एवं भूमिगत केबलों तथा ट्रांसफार्मर के वितरित नेटवर्क का उपयोग करके प्रसारित किया जाता है।
  • ट्रांसमिशन दक्षता: 
    • विद्युत धारा संचरण की दक्षता निम्न धारा और उच्च वोल्टेज पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि संचरण के दौरान ऊर्जा हानि धारा के वर्ग के समानुपाती होती है, जबकि वोल्टेज तथा धारा में 1:1 का संबंध होता है।
      • ट्रांसफार्मर का उपयोग बेहतर ट्रांसमिशन के लिये वोल्टेज बढ़ाने तथा करंट को कम करने के लिये किया जाता है।
  • केबलों में प्रतिरोध: 
    • ट्रांसमिशन के लिये उपयोग की जाने वाली केबलों में प्रतिरोध पाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा हानि होती है। ऊर्जा हानि को नियंत्रित करने के लिये केबल की मोटाई को समायोजित किया जा सकता है, मोटे केबलों से ऊर्जा हानि कम होती है, लेकिन लागत बढ़ जाती है।
  • दूरी तथा ट्रांसमिशन लागत: 
    • कम ट्रांसमिशन टावरों, सबस्टेशनों तथा रखरखाव प्रयासों की आवश्यकता जैसे कारकों के कारण लंबी ट्रांसमिशन दूरी के परिणामस्वरूप आम तौर पर ट्रांसमिशन लागत कम हो जाती है।
  • प्रत्यावर्ती धारा (AC): 
    • ट्रांसमिशन के लिये AC करंट को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसे ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करके आसानी से संशोधित किया जा सकता है और साथ ही इसकी दक्षता में भी वृद्धि होती है। हालाँकि उच्च AC आवृत्तियाँ सामग्री में प्रतिरोध बढ़ाती हैं।
      • AC करंट, पावर ट्रांसमिशन को स्थानांतरित करने का सबसे सामान्य तरीका है क्योंकि वोल्टेज लगातार ध्रुवीयता बदलता रहता है, जिससे करंट वैकल्पिक दिशाओं में प्रवाहित होता है। AC करंट आवृत्ति उस दर के समान है जिस पर वोल्टेज दिशा बदलता है।

मई 2023 तक स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता (ईंधनवार):

  • कुल स्थापित क्षमता (जीवाश्म ईंधन और गैर-जीवाश्म ईंधन) 417 गीगावॉट
  • कुल विद्युत उत्पादन में विभिन्न ईंधनों की हिस्सेदारी इस प्रकार है:
    • कुल जीवाश्म ईंधन (कोयला सहित) 56.8% है।
    • परमाणु 1.60% है तथा 
    • गैर-जीवाश्म ईंधन 41.4% है।

विद्युत शक्ति कैसे संचारित होती है?

  • प्रक्रिया:
    • विद्युत संचरण में तीन-चरणों वाला प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC circuit) शामिल होता है। प्रत्येक तार एक अलग चरण में AC करंट प्रवाहित करता है। पावर स्टेशन से तारों को ट्रांसफार्मर तक ले जाया जाता है जो उनके वोल्टेज को बढ़ाते हैं।
    • इसका बुनियादी ढाँचा सुरक्षा सुविधाओं से युक्त है, जैसे कि महोर्मि (Surges- उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के दौरान समुद्र के स्तर में वृद्धि) के दौरान उच्च धारा को मोड़ने के लिये इंसुलेटर तथा ओवरलोड होने पर सर्किट को डिस्कनेक्ट करने के लिये सर्किट-ब्रेकर मौजूद हैं।
    • इसके अतिरिक्त बिजली गिरने जैसे बाहरी कारकों के कारण होने वाले वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को रोकने के लिये ग्राउंडिंग एवं अरेस्टर का उपयोग किया जाता है। डैम्पर्स कंपन को कम करने में मदद करते हैं जो टावरों की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • सबस्टेशन नेटवर्क:
    • ट्रांसमिशन तार के अंत में विभिन्न प्रकार के सबस्टेशन मौजूद होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की विद्युत वितरण प्रणाली में एक विशेष भूमिका होती है।
      • कनेक्टर विभिन्न स्रोतों से विद्युत को समेकित करते हैं तथा इसे ट्रांसमिशन सबस्टेशनों तक पहुँचाते हैं।
    • वितरण सबस्टेशन विद्युत लाइनों में वोल्टेज को कम करने तथा घरों एवं व्यवसायों में खपत के लिये विद्युत तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • ट्रांसमिशन सबस्टेशन हब के रूप में कार्य करते हैं, विभिन्न लाइनों को विलय अथवा शाखाबद्ध करते हैं व नेटवर्क के भीतर मौजूद समस्याओं का निदान करते हैं।
  • विविध कार्य एवं बुनियादी ढाँचा:
    • विविध कार्यों को करने के लिये इसके बुनियादी ढाँचे में, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विशेषज्ञता से लेकर उन्नत कम्प्यूटरीकृत संचालन तक, समर्थन प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
      • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये अग्नि से सुरक्षा जैसे सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।

इलेक्ट्रिक ग्रिड कैसे कार्य करता है?

  • ग्रिड संचालन एवं इसके घटक:
    • ग्रिड जटिल प्रणालियाँ हैं जो विद्युत शक्ति के वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें तीन मुख्य घटक शामिल हैं: उत्पादन, पारेषण (Transmission) और वितरण।
      • ट्रांसमिशन घटक विद्युत उत्पादन एवं अंतिम उपयोगकर्ताओं तक वितरण के बीच सेतु का कार्य करता है।
    • कुछ ऊर्जा स्रोत, जैसे कोयले से चलने वाले संयंत्र अथवा परमाणु रिएक्टर, ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति कर सकते हैं, जबकि वायु एवं सौर जैसे नवीकरणीय स्रोत अनिरंतर होते हैं।
      • ऐसे मामलों में ग्रिड उपयोगी हो जाते हैं क्योंकि ग्रिड अधिशेष विद्युत को संगृहीत करने तथा मांग आपूर्ति से अधिक होने पर इसे जारी करने के लिये भंडारण सुविधाओं से युक्त होते हैं।
  • ग्रिड लचीलापन/समुत्थानशक्ति और नियंत्रण:
    • नेटवर्क के विभिन्न हिस्सों में विफलताओं को दूसरों को प्रभावित करने से रोकने के लिये ग्रिड को लचीला/समुत्थानशील होना चाहिये। उन्हें अलग-अलग मांग को पूरा करने और स्थिर एवं विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु वोल्टेज स्तर का प्रबंधन करने की भी आवश्यकता है जिसमें AC विद्युत धारा को नियंत्रित करना व पावर फैक्टर में सुधार करना शामिल है।
  • वाइड-एरिया सिंक्रोनस ग्रिड और चुनौतियाँ:
    • वाइड-एरिया सिंक्रोनस ग्रिड एक नेटवर्क है जिसमें सभी संबद्ध जनरेटर एक ही आवृत्ति पर AC करंट उत्पन्न करते हैं। ऐसे ग्रिड का एक उदाहरण उत्तरी चीनी राज्य ग्रिड है जो 1,700 गीगावॉट की क्षमता के साथ विश्व का सबसे शक्तिशाली ग्रिड है। भारत का राष्ट्रीय ग्रिड एक विस्तृत क्षेत्र तुल्यकालिक ग्रिड के रूप में भी कार्य करता है।
    • साझा संसाधनों के कारण इन ग्रिडों को विद्युत की लागत कम करने का लाभ मिलता है, लेकिन स्थानीय विद्युत आपूर्ति विफलता की स्थिति में व्यापक विफलताओं को रोकने के लिये उपायों की आवश्यकता होती है।

भारत का इलेक्ट्रिक ग्रिड:

  • भारत का विद्युत ग्रिड, जिसे राष्ट्रीय ग्रिड के रूप में भी जाना जाता है, एक उच्च वोल्टेज विद्युत ट्रांसमिशन नेटवर्क है जो देश भर के विद्युत स्टेशनों और प्रमुख सबस्टेशनों को जोड़ता है। यह सुनिश्चित करता है कि भारत में कहीं भी उत्पादित विद्युत का अन्यत्र मांग को पूरा करने के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • नेशनल ग्रिड का स्वामित्व और रखरखाव राज्य के स्वामित्व वाली पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है तथा राज्य के स्वामित्व वाली पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन द्वारा संचालित किया जाता है। यह 31 मई 2023 तक 417.68 गीगावॉट स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता के साथ विश्व के सबसे बड़े परिचालन सिंक्रोनस ग्रिडों में से एक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (आईआरईडीए) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

Q. "सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए सस्ती, विश्वसनीय, संधारणीय और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

समकालीन विश्व में बिजली की बढ़ती मांग के साथ, विशेष रूप से बढ़ती व्यक्तिगत तथा औद्योगिक ज़रूरतों के लिये, इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन सिस्टम की दक्षता तथा विश्वसनीयता को बढ़ाना भी महत्त्वपूर्ण है।

पावर ट्रांसमिशन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • परिचय:
    • किसी भी विद्युत् आपूर्ति प्रणाली में तीन व्यापक घटक होते हैं: उत्पादन, पारेषण और वितरण। बिजली का उत्पादन विद्युत् संयंत्रों के साथ-साथ छोटे नवीकरणीय-ऊर्जा प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है।
    • इसके पश्चात विद्युत् को अन्य तत्त्वों के बीच स्टेशनों, सबस्टेशनों, स्विचों, ओवरहेड एवं भूमिगत केबलों तथा ट्रांसफार्मर के वितरित नेटवर्क का उपयोग करके प्रसारित किया जाता है।
  • ट्रांसमिशन दक्षता: 
    • विद्युत धारा संचरण की दक्षता निम्न धारा और उच्च वोल्टेज पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि संचरण के दौरान ऊर्जा हानि धारा के वर्ग के समानुपाती होती है, जबकि वोल्टेज तथा धारा में 1:1 का संबंध होता है।
      • ट्रांसफार्मर का उपयोग बेहतर ट्रांसमिशन के लिये वोल्टेज बढ़ाने तथा करंट को कम करने के लिये किया जाता है।
  • केबलों में प्रतिरोध: 
    • ट्रांसमिशन के लिये उपयोग की जाने वाली केबलों में प्रतिरोध पाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा हानि होती है। ऊर्जा हानि को नियंत्रित करने के लिये केबल की मोटाई को समायोजित किया जा सकता है, मोटे केबलों से ऊर्जा हानि कम होती है, लेकिन लागत बढ़ जाती है।
  • दूरी तथा ट्रांसमिशन लागत: 
    • कम ट्रांसमिशन टावरों, सबस्टेशनों तथा रखरखाव प्रयासों की आवश्यकता जैसे कारकों के कारण लंबी ट्रांसमिशन दूरी के परिणामस्वरूप आम तौर पर ट्रांसमिशन लागत कम हो जाती है।
  • प्रत्यावर्ती धारा (AC): 
    • ट्रांसमिशन के लिये AC करंट को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसे ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करके आसानी से संशोधित किया जा सकता है और साथ ही इसकी दक्षता में भी वृद्धि होती है। हालाँकि उच्च AC आवृत्तियाँ सामग्री में प्रतिरोध बढ़ाती हैं।
      • AC करंट, पावर ट्रांसमिशन को स्थानांतरित करने का सबसे सामान्य तरीका है क्योंकि वोल्टेज लगातार ध्रुवीयता बदलता रहता है, जिससे करंट वैकल्पिक दिशाओं में प्रवाहित होता है। AC करंट आवृत्ति उस दर के समान है जिस पर वोल्टेज दिशा बदलता है।

मई 2023 तक स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता (ईंधनवार):

  • कुल स्थापित क्षमता (जीवाश्म ईंधन और गैर-जीवाश्म ईंधन) 417 गीगावॉट
  • कुल विद्युत उत्पादन में विभिन्न ईंधनों की हिस्सेदारी इस प्रकार है:
    • कुल जीवाश्म ईंधन (कोयला सहित) 56.8% है।
    • परमाणु 1.60% है तथा 
    • गैर-जीवाश्म ईंधन 41.4% है।

विद्युत शक्ति कैसे संचारित होती है?

  • प्रक्रिया:
    • विद्युत संचरण में तीन-चरणों वाला प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (AC circuit) शामिल होता है। प्रत्येक तार एक अलग चरण में AC करंट प्रवाहित करता है। पावर स्टेशन से तारों को ट्रांसफार्मर तक ले जाया जाता है जो उनके वोल्टेज को बढ़ाते हैं।
    • इसका बुनियादी ढाँचा सुरक्षा सुविधाओं से युक्त है, जैसे कि महोर्मि (Surges- उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के दौरान समुद्र के स्तर में वृद्धि) के दौरान उच्च धारा को मोड़ने के लिये इंसुलेटर तथा ओवरलोड होने पर सर्किट को डिस्कनेक्ट करने के लिये सर्किट-ब्रेकर मौजूद हैं।
    • इसके अतिरिक्त बिजली गिरने जैसे बाहरी कारकों के कारण होने वाले वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को रोकने के लिये ग्राउंडिंग एवं अरेस्टर का उपयोग किया जाता है। डैम्पर्स कंपन को कम करने में मदद करते हैं जो टावरों की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • सबस्टेशन नेटवर्क:
    • ट्रांसमिशन तार के अंत में विभिन्न प्रकार के सबस्टेशन मौजूद होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की विद्युत वितरण प्रणाली में एक विशेष भूमिका होती है।
      • कनेक्टर विभिन्न स्रोतों से विद्युत को समेकित करते हैं तथा इसे ट्रांसमिशन सबस्टेशनों तक पहुँचाते हैं।
    • वितरण सबस्टेशन विद्युत लाइनों में वोल्टेज को कम करने तथा घरों एवं व्यवसायों में खपत के लिये विद्युत तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • ट्रांसमिशन सबस्टेशन हब के रूप में कार्य करते हैं, विभिन्न लाइनों को विलय अथवा शाखाबद्ध करते हैं व नेटवर्क के भीतर मौजूद समस्याओं का निदान करते हैं।
  • विविध कार्य एवं बुनियादी ढाँचा:
    • विविध कार्यों को करने के लिये इसके बुनियादी ढाँचे में, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विशेषज्ञता से लेकर उन्नत कम्प्यूटरीकृत संचालन तक, समर्थन प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
      • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिये अग्नि से सुरक्षा जैसे सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।

इलेक्ट्रिक ग्रिड कैसे कार्य करता है?

  • ग्रिड संचालन एवं इसके घटक:
    • ग्रिड जटिल प्रणालियाँ हैं जो विद्युत शक्ति के वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें तीन मुख्य घटक शामिल हैं: उत्पादन, पारेषण (Transmission) और वितरण।
      • ट्रांसमिशन घटक विद्युत उत्पादन एवं अंतिम उपयोगकर्ताओं तक वितरण के बीच सेतु का कार्य करता है।
    • कुछ ऊर्जा स्रोत, जैसे कोयले से चलने वाले संयंत्र अथवा परमाणु रिएक्टर, ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति कर सकते हैं, जबकि वायु एवं सौर जैसे नवीकरणीय स्रोत अनिरंतर होते हैं।
      • ऐसे मामलों में ग्रिड उपयोगी हो जाते हैं क्योंकि ग्रिड अधिशेष विद्युत को संगृहीत करने तथा मांग आपूर्ति से अधिक होने पर इसे जारी करने के लिये भंडारण सुविधाओं से युक्त होते हैं।
  • ग्रिड लचीलापन/समुत्थानशक्ति और नियंत्रण:
    • नेटवर्क के विभिन्न हिस्सों में विफलताओं को दूसरों को प्रभावित करने से रोकने के लिये ग्रिड को लचीला/समुत्थानशील होना चाहिये। उन्हें अलग-अलग मांग को पूरा करने और स्थिर एवं विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु वोल्टेज स्तर का प्रबंधन करने की भी आवश्यकता है जिसमें AC विद्युत धारा को नियंत्रित करना व पावर फैक्टर में सुधार करना शामिल है।
  • वाइड-एरिया सिंक्रोनस ग्रिड और चुनौतियाँ:
    • वाइड-एरिया सिंक्रोनस ग्रिड एक नेटवर्क है जिसमें सभी संबद्ध जनरेटर एक ही आवृत्ति पर AC करंट उत्पन्न करते हैं। ऐसे ग्रिड का एक उदाहरण उत्तरी चीनी राज्य ग्रिड है जो 1,700 गीगावॉट की क्षमता के साथ विश्व का सबसे शक्तिशाली ग्रिड है। भारत का राष्ट्रीय ग्रिड एक विस्तृत क्षेत्र तुल्यकालिक ग्रिड के रूप में भी कार्य करता है।
    • साझा संसाधनों के कारण इन ग्रिडों को विद्युत की लागत कम करने का लाभ मिलता है, लेकिन स्थानीय विद्युत आपूर्ति विफलता की स्थिति में व्यापक विफलताओं को रोकने के लिये उपायों की आवश्यकता होती है।

भारत का इलेक्ट्रिक ग्रिड:

  • भारत का विद्युत ग्रिड, जिसे राष्ट्रीय ग्रिड के रूप में भी जाना जाता है, एक उच्च वोल्टेज विद्युत ट्रांसमिशन नेटवर्क है जो देश भर के विद्युत स्टेशनों और प्रमुख सबस्टेशनों को जोड़ता है। यह सुनिश्चित करता है कि भारत में कहीं भी उत्पादित विद्युत का अन्यत्र मांग को पूरा करने के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • नेशनल ग्रिड का स्वामित्व और रखरखाव राज्य के स्वामित्व वाली पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है तथा राज्य के स्वामित्व वाली पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन द्वारा संचालित किया जाता है। यह 31 मई 2023 तक 417.68 गीगावॉट स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता के साथ विश्व के सबसे बड़े परिचालन सिंक्रोनस ग्रिडों में से एक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (आईआरईडीए) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

Q. "सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए सस्ती, विश्वसनीय, संधारणीय और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


कृषि

द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर- 2023

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य और कृषि संगठन (FAO), अल्ट्रा-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, खाद्य असुरक्षा, फिट इंडिया मूवमेंट, ईट राइट मूवमेंट  

मेन्स के लिये:

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य बाधाएँ और चुनौतियाँ, कृषि विपणन, खाद्य स्वस्थ जीवन शैली से संबंधित सरकारी पहल,

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की 'द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर- 2023' नामक एक नई रिपोर्ट अस्वास्थ्यकर आहार तथा अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की चौंका देने वाली प्रच्छन्न लागत का खुलासा करती है, जो हमारे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों को प्रभावित करती है। 

  • यह लागत सालाना 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक तक पहुँच जाती है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। 

नोट:

  • कृषि-खाद्य प्रणालियों के संदर्भ में छिपी हुई लागतों में उत्सर्जन और भूमि उपयोग से पर्यावरणीय व्यय, आहार पैटर्न से संबंधित स्वास्थ्य लागत, अल्पपोषण व कृषि-खाद्य श्रमिकों के बीच गरीबी से जुड़ी सामाजिक लागतें शामिल हैं।

खाद्य एवं कृषि राज्य- 2023 की प्रमुख खोजें क्या हैं?

  • अस्वास्थ्यकर आहार की छुपी लागत:
    • अस्वास्थ्यकर आहार, जिसमें अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, वसा और शर्करा का सेवन शामिल है, के कारण काफी छिपी हुई लागतें सामने आती हैं।
    • ये लागत सालाना 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो मोटापे और गैर-संचरणीय रोगों जैसे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के आर्थिक बोझ को दर्शाती है।
      • इसके अतिरिक्त, इन आहारों के परिणामस्वरूप श्रम उत्पादकता में कमी आती है, जो कुल छिपी हुई लागतों में योगदान करती है।
  • वैश्विक प्रभाव और आर्थिक बोझ:
    • अधिकांश प्रच्छन्न लागतें उच्च-मध्यम-आय (39%) और उच्च-आय वाले देशों (36%) में दिखाई दीं, निम्न-मध्यम-आय वाले देशों में ये लागतें 22% तथा निम्न-आय वाले देशों में 3% थीं।
      • रिपोर्ट का अनुमान है कि अस्वास्थ्यकर आहार के परिणामस्वरूप सालाना कम से कम कुल 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर प्रच्छन्न लागत का वहन करना होता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 10% है।
      • विश्लेषण में 154 देशों को शामिल किया गया है, जिसमें अति-प्रसंस्कृत आहार पैटर्न के व्यापक प्रभाव पर ज़ोर दिया गया है।
  • भारत पर प्रभाव:
    • कृषि खाद्य प्रणालियों में भारत की कुल प्रच्छन्न लागत लगभग 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर थी।
    • भारत में प्रमुख योगदानकर्ता:
      • भारत में छिपी हुई लागतों में बीमारी का बोझ (आहार पैटर्न से उत्पादकता हानि) सबसे बड़ी हिस्सेदारी (60%) के लिये ज़िम्मेदार है, इसके बाद निर्धनता के कारण प्रच्छन्न सामाजिक लागत, जिसमें सामाजिक व्यय शामिल हैं (14%) और नाइट्रोजन उत्सर्जन से पर्यावरणीय लागत (13%) आती है।
  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का तेज़ी से प्रसार:
    • विश्व भर के उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ रही है।
      • इस प्रवृत्ति को बढ़ने वाले कारकों में शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव तथा महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिये रोज़गार प्रोफाइल में बदलाव शामिल हैं।
      • यात्रा में लगने वाला लंबा समय भी इन क्षेत्रों में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत में योगदान देता है।
  • शहरी बनाम ग्रामीण उपभोग पैटर्न:
    • रिपोर्ट उस पारंपरिक धारणा को चुनौती देती है जो मानती है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच उपभोग पैटर्न काफी भिन्न होता है।
      • निष्कर्षों से पता चलता है कि प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का प्रसार ग्रामीण-शहरी सातत्य में व्यापक और लगभग समान है।
      • उच्च और निम्न-खाद्य-बजट दोनों क्षेत्रों में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ कुल खपत का एक बड़ा हिस्सा निर्मित करते हैं, शहरीकरण इनका एकमात्र चालक नहीं है।
  • वैश्विक खाद्य असुरक्षा: 
    • खाद्य असुरक्षा, विशेष रूप से मध्यम अथवा गंभीर खाद्य असुरक्षा लगातार दूसरे वर्ष वैश्विक स्तर पर काफी हद तक अपरिवर्तित रही।
      • हालाँकि यह स्तर कोविड-19 महामारी के पूर्व के आँकड़ों से काफी अधिक है।
    • रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक आबादी का लगभग 29.6% यानी लगभग 2.4 अरब लोगों ने वर्ष 2022 में मध्यम अथवा गंभीर खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया।
      • उनमें से लगभग 900 मिलियन व्यक्तियों (वैश्विक जनसंख्या का 11.3%) को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।
    • विश्लेषण से पता चला कि नौ दक्षिण एशियाई देशों में अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बाद भारत की कुल आबादी में अल्पपोषण (233.9 मिलियन) का तीसरा सबसे बड़ा प्रसार था।
      • हालाँकि भारत में कुपोषित लोगों की हिस्सेदारी वर्ष 2004-06 में जनसंख्या के 21.4% से घटकर 2020-22 में 16.6% हो गई है।
    • निम्न-आय वाले देश कृषि-खाद्य प्रणालियों की अप्रत्यक्ष लागतों से सबसे अधिक प्रभावित हुए, जो उनके कुल सकल घरेलू उत्पाद के एक चौथाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मध्यम-आय वाले देशों में यह 12% से कम व उच्च-आय वाले देशों में 8% से कम है।
  • भविष्य के अनुमान एवं अल्पपोषण:
    • रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक लगभग 600 मिलियन लोगों के दीर्घकालिक अल्पपोषण से पीड़ित होने की आशंका है।

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का बोझ कैसे कम किया जा सकता है? 

  • वर्तमान कृषि खाद्य प्रणालियों को अधिक सतत्, स्वस्थ एवं समावेशी बनाकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के बोझ को कम किया जा सकता है।
    • फलों, सब्जियों, फलियों, नट्स, बीज और साबुत अनाज जैसे अधिक विविध, पौष्टिक एवं अल्प प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के उत्पादन व खपत को बढ़ावा देना।
  • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के विपणन, लेबलिंग एवं कराधान को विनियमित करना तथा स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों के लिये सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान करना
  • सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सहायता और सार्वजनिक खरीद के माध्यम से विशेष रूप से कम आय एवं सुभेद्य समूहों के लिये स्वस्थ खाद्य पदार्थों की पहुँच तथा सामर्थ्य में सुधार करना।
  • पोषण शिक्षा, व्यवहार परिवर्तन संचार एवं डिजिटल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से उपभोक्ताओं को सूचित करने तथा स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने के लिये शिक्षित व सशक्त बनाना।
  • खाद्यानों की हानि और बर्बादी को कम करके, संसाधन उपयोग दक्षता में सुधार करके तथा स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाकर कृषि खाद्य प्रणालियों की दक्षता व चक्रीयता को बढ़ाना।
  • कई हितधारकों को शामिल करके, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देकर तथा प्रभावों एवं परिणामों की निगरानी व मूल्यांकन करके कृषि खाद्य प्रणालियों के शासन तथा समन्वय को मज़बूत करना।

स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहलें क्या हैं?

खाद्य एवं कृषि संगठन क्या है?

  • परिचय:
    • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी पर नियंत्रण करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
    • विश्व खाद्य दिवस प्रत्येक वर्ष 16 अक्तूबर को विश्व भर में मनाया जाता है। यह दिन वर्ष 1945 में FAO की स्थापना की वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये मनाया जाता है।
    • भारत सहित 194 सदस्य देशों एवं यूरोपीय संघ के साथ FAO विश्वभर में 130 से अधिक देशों में कार्य करता है।
    • यह रोम (इटली) स्थित संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। इसकी सहयोगी संस्थाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) हैं।
  • प्रमुख प्रकाशन:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत सरकार मेगा फुड पार्क की अवधारणा को किन-किन उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)

1- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु।
2- खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्र में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु।
3- उद्यमियों के लिये उद्गामी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकीया उपलब्ध कराने हेतु।

उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • मूल्य संवर्धन को अधिकतम करने, खाद्यानों की बर्बादी को कम करने, किसानों की आय बढ़ाने तथा रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में "मेगा फूड पार्क" योजना किसानों प्रोसेसर और खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाती है। अतः कथन 2 सही है।
  • इसमें अच्छी तरह से स्थापित आपूर्ति शृंखला के साथ पार्क में प्रदान किये गए औद्योगिक भूखंडों में आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये एक अच्छी तरह से परिभाषित कृषि एवं बागवानी क्षेत्र में अत्याधुनिक समर्थन बुनियादी ढाँचे के निर्माण की परिकल्पना की गई है। अतः कथन 1 सही है।
  • "मेगा फूड पार्क" योजना में उद्यमियों को पर्यावरण-अनुकूल खाद्य प्रसंस्करण तकनीक प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। अतः कथन 3 सही नहीं है। अत: विकल्प (B) सही उत्तर है।

प्रश्न. बाज़ार में बिकने वाला ऐस्परटेम कृत्रिम मधुरक है। यह ऐमीनो अम्लों से बना होता है और अन्य ऐमीनो अम्लों के समान ही कैलोरी प्रदान करता है। फिर भी यह भोज्य पदार्थों में कम कैलोरी मधुरक के रूप में प्रयोग होता है। उसके प्रयोग का क्या आधार है? (2011)

(a) ऐस्परटेम सामान्य चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु चीनी की विपरीत यह मानव शरीर में आवश्यक एन्जाइमों के अभाव के कारण शीघ्र ऑक्सीकृत नहीं हो पाता।
(b) जब ऐस्परेटेम आहार प्रसंस्करण में प्रयुक्त होता है, तब उसका मीठा स्वाद तो बना रहता है किंतु यह ऑक्सीकरण-प्रतिरोधी हो जाता है।
(c) ऐस्परटेम चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु शरीर में अंतर्गहण होने के बाद यह कुछ ऐसे उपचयजों (मेटाबोलाइट्स) में परिवर्तित हो जाता है जो कोई कैलोरी नहीं देते।
(d) ऐस्परेटेम सामान्य चीनी से कई गुना अधिक मीठा होता है, अतः थोड़े से ऐस्परेटेम में बने भोज्य पदार्थ ऑक्सीकृत होने पर कम कैलोरी प्रदान करते हैं।

उत्तर: (d)


मेंस:

प्रश्न. उत्तर-पश्चिम भारत के कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों पर चर्चा करें। (2019)

प्रश्न. देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर किसानों की आय में भारी वृद्धि कैसे की जा सकती है? (2020)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का इस्पात क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023, स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, लौह

मेन्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, संभावनाएं और चुनौतियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023' का चौथा संस्करण आयोजित किया गया था, यह भारत के प्रमुख बुनियादी ढाँचा इनपुट का उत्पादन वर्ष 2030 तक दोगुना कर 300 मिलियन टन प्रति वर्ष करने पर केंद्रित था, इसमें इस्पात कंपनियों को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये प्रेरित किया गया।

  • इस कार्यक्रम में भारत की वृद्धि और विकास में इस्पात उद्योग की बहुमुखी भूमिका को रेखांकित करते हुए 'स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर' विषय पर चर्चा की गई।

भारत में इस्पात क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • वर्तमान परिदृश्य:
    • वित्त वर्ष 2023 में 125.32 मिलियन टन (MT) कच्चे इस्पात का उत्पादन और 121.29 मीट्रिक टन उपयोग के लिये तैयार इस्पात उत्पादन के साथ भारत कच्चे इस्पात के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत में इस्पात उद्योग में पिछले दशक में पर्याप्त वृद्धि हुई है, वर्ष 2008 के बाद से इसके उत्पादन में 75% की वृद्धि हुई है।
    • वित्त वर्ष 2023 में भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 86.7 किलोग्राम थी।
    • लौह अयस्क जैसे कच्चे माल की उपलब्धता और लागत प्रभावी श्रमबल की भारत के इस्पात उद्योग में अहम भूमिका रही है।
    • वर्ष 2017 में शुरू की गई राष्ट्रीय इस्पात नीति के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक कच्चे इस्पात की क्षमता को 300 मिलियन टन तथा उत्पादन क्षमता को 255 मीट्रिक टन एवं प्रति व्यक्ति तैयार मज़बूत इस्पात की खपत को 158 किलोग्राम तक पहुँचाना है।
  • महत्त्व:
    • इस्पात विश्व भर में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्रियों में से एक है। लौह और इस्पात उद्योग सर्वाधिक मुनाफे का उद्योग है।
      • इस्पात उद्योग की निर्माण कार्य, बुनियादी ढाँचे, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग तथा रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अहम भूमिका है।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था में इस्पात सबसे प्रमुख क्षेत्रों में से एक है (वित्त वर्ष 21-22 में देश की GDP में 2% भागीदारी)।
  • इस्पात क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ:
    • आधुनिक इस्पात संयंत्र स्थापित करने में बाधाएँ:
      • आधुनिक इस्पात निर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिये अत्यधिक निवेश एक बड़ी बाधा है।
        • 1 टन क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना में लगभग 7000.00 करोड़ रुपए की लागत विभिन्न भारतीय संस्थाओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
      • अन्य देशों की तुलना में भारत में महँगे वित्तीयन एवं ऋण वित्तपोषण पर निर्भरता के कारण उत्पाद की लागत में वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक स्तर पर अंततः तैयार इस्पात उत्पाद को लेकर प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • चक्रीय मांग और मानसून संबंधी चुनौतियाँ:
      • भारत में इस्पात की चक्रीय मांग के परिणामस्वरूप इस्पात कंपनियों को वित्तीय कठिनाइयाँ का सामना करना पड़ता है, मानसून जैसे तत्त्वों के कारण निर्माण कार्य की गति प्रभावित होती है।
      • कम मांग की अवधि के दौरान इस्पात संयंत्रों की आय व लाभ न्यूनतम हो जाते हैं, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है, कई मामलों में विनिर्माण कार्य को बंद और स्थगित भी करना पड़ता है।
    • प्रति व्यक्ति कम खपत:
      • विश्व के औसत 233 किलोग्राम की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 86.7 किलोग्राम है, यह आर्थिक असमानताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
      • प्रति व्यक्ति कम आय और खपत वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिये बड़े पैमाने पर इस्पात संयंत्र की स्थापना करना कम लाभदायक होता है।
      • प्रति व्यक्ति आय काफी अधिक होने के कारण चीन में इस्पात की अधिक मांग वहाँ की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता को दर्शाती है।
    • प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में कम निवेश:
      • भारत ऐतिहासिक रूप से इस्पात क्षेत्र के लिये प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास में निवेश करने में पीछे रहा है।
      • इससे अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ती है, जिससे अतिरिक्त लागत में वृद्धि होती है। पुरानी तथा प्रदूषणकारी प्रौद्योगिकियाँ इस क्षेत्र को कम आकर्षक बनाती हैं।
    • निर्माण कार्यों में इस्पात का कम उपयोग:
      • भारत में इस्पात के उपयोग के बजाय पारंपरिक कंक्रीट-आधारित निर्माण विधियों का पालन, इस्पात उद्योग के विकास में बाधक है।
      • पश्चिमी देशों, जहाँ निर्माणी कार्य में दक्षता, मज़बूती और गति प्रदान करने के लिये इस्पात का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, के विपरीत भारत में अभी भी अपनी निर्माण प्रथाओं में इस्पात का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जाता है।
    • पर्यावरणीय चिंताएँ: 
      • कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन में इस्पात उद्योग तीन सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। नतीजतन, दुनिया भर में स्टील व्यापारियों को पर्यावरण तथा आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये डीकार्बनाइज़ेशन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • यूरोपीय संघ के CBAM का प्रभाव: 
      • यूरोपीय संघ 1 जनवरी 2026 से इस्पात, एल्यूमीनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की प्रत्येक खेप पर कार्बन टैक्स (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) एकत्र करना शुरू कर देगा। यह भारत द्वारा यूरोपीय संघ को लौह, इस्पात तथा एल्युमीनियम उत्पादों जैसे धातुओं के निर्यात को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, क्योंकि इन्हें इन उत्पादों को यूरोपीय संघ के CBAM तंत्र के तहत अतिरिक्त जाँच प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा।
      • CBAM "फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज" का हिस्सा है, यह यूरोपीय संघ की एक योजना है जिसका उद्देश्य यूरोपीय जलवायु कानून के अनुरूप वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगभग 55% तक कम करना है।

इस्पात उद्योग के लिये सरकारी पहलें:

आगे  की राह

  • पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और सतत् उत्पादन प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिये हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करना तथा उन्हें अपनाना।
    • ग्रीन स्टील/हरित इस्पात के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और इसे पारंपरिक, कार्बन-सघन कोयला-आधारित संयंत्र निर्माण प्रक्रिया के लिये विद्युत, हाइड्रोजन तथा कोयला गैसीकरण जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों को प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • इस्पात उत्पादन में कार्बन दक्षता बढ़ाने के उपायों को लागू करने से CBAM के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। इस्पात उत्पादों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने हेतु स्वच्छ तथा अधिक सतत् प्रौद्योगिकियों को अपनाना व उन्हें बढ़ावा देना बेहद प्रभावी कदम हो सकता है।
  • उचित और न्यायसंगत CBAM नियमों को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं नीति निर्माताओं के साथ संवाद स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। अन्य उद्योगों तथा देशों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों से ऐसे समाधान विकसित किये जा सकते है जो भारतीय इस्पात क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक हैं, भारत में इस्पात उद्योग द्वारा मुक्त किये जाते हैं? (2014)

  1. सल्फर के आक्साइड
  2.  नाइट्रोजन के आक्साइड
  3.  कार्बन मोनोआक्साइड
  4.  कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • इस्पात उद्योग प्रदूषण उत्पन्न करता है क्योंकि यह कोयला और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिनके दहन से विभिन्न पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) यौगिक तथा ऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होते हैं।
  • स्टील भट्ठी में लौह अयस्क के साथ कोक प्रतिक्रिया करता है, जिससे लौह का निर्माण होता है और प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं
  • इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक हैं:
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO); अतः 3 सही है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2); अत 4 सही है।
    • सल्फर के ऑक्साइड (SOx); अत: 1 सही है।
    • नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx); अत: 2 सही है।
    • PM 2.5;
    • अपशिष्ट जल;
    • खतरनाक अपशिष्ट;
    • ठोस अपशिष्ट।
  • हालांँकि एयर फिल्टर, वॉटर फिल्टर और अन्य प्रकार से पानी की बचत, बिजली की बचत तथा बंद कंटेनर के रूप तकनीकी हस्तक्षेप उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • अतः विकल्प (D) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये। (2020)

प्रश्न. विश्व में लौह एवं इस्पात उद्योग के स्थानिक प्रतिरूप में परिवर्तन का विवरण प्रस्तुत कीजिये। (2014)


कृषि

भारत के कृषि निर्यात में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), खाद्य मूल्य सूचकांक (FPI), रूस-यूक्रेन युद्ध, मुद्रास्फीति, न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP), गैर बासमती, बासमती,

मेन्स के लिये:

भारत में कृषि निर्यात में गिरावट के कारण आर्थिक वृद्धि और विकास पर चिंताएँ एवं शामिल मुद्दे।      

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों ?

वाणिज्य विभाग के हालिया आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर 2023 में कृषि वस्तुओं का निर्यात 23.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो अप्रैल-सितंबर 2022 के 26.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम था।

  • आयात में भी 19.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 16.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि व्यापार अधिशेष में भी गिरावट आई है। 

कृषि निर्यात में गिरावट के क्या कारण हैं?

  • निर्यात पर सरकारी प्रतिबंध:
    • अप्रैल-सितंबर 2023 की अवधि में भारत के कृषि निर्यात में पिछले वर्ष की तुलना में 11.6% की गिरावट आई है। इस गिरावट का श्रेय सरकार द्वारा गेहूँ, चावल एवं चीनी सहित कई वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंधों को लागू करने को दिया जा सकता है।
      • सितंबर 2022 में टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया एवं सभी सफेद (गैर-उबला हुआ) गैर-बासमती किस्मों के शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाया गया। जुलाई 2023 में सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके पश्चात केवल उबले हुए गैर-बासमती तथा बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी गई।
      • भारत सरकार द्वारा मई 2022 में चीनी निर्यात को "मुक्त" से "प्रतिबंधित" श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया गया साथ ही किसी भी वर्ष निर्यात की जाने वाली चीनी की कुल मात्रा को सीमित कर दिया।
  • वैश्विक कीमतों में नरमी:
    • इसके अतिरिक्त, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद वैश्विक कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुँचने के बाद नरम हो गई हैं।

खाद्य निर्यात में गिरावट पर वैश्विक कीमतों का क्या प्रभाव है?

  • भारत का कृषि व्यापार एवं वैश्विक कीमतों से इसका संबंध:
  • FFPI के रुझान भारत के कृषि निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं:
    • FFPI, खाद्य पदार्थों की एक शृंखला के लिये अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को दर्शाता है, जिसमें हाल के वर्षों में उल्लेखनीय बदलाव देखे गए हैं। भारत का कृषि निर्यात FFPI में हुए परिवर्तनों से प्रभावित होता है, जो वर्ष 2013-14 में FFPI (119.1 से 96.5 अंक तक) के साथ 43.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2019-20 में 35.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया तथा वर्ष 2022-23 में सूचकांक के अभूतपूर्व स्तर पर पहुँचने के साथ बढ़ गया। 
  • भारत के कृषि व्यापार पर विश्व की घटती कीमतों का प्रभाव:
    • वैश्विक कीमतों में हुई कमी के साथ भारत में कृषि निर्यात व आयात दोनों का मूल्य वर्ष 2023-24 में कम होने की उम्मीद हैरूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण आपूर्ति में व्यवधान कम होने के बावजूद यह पैटर्न जारी है। खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के नवीनतम आपूर्ति और मांग विवरण के अनुसार वर्ष 2023-2024 के लिये वैश्विक अनाज भंडार के समाप्त होने के संकेत हैं।

भारतीय कृषि के लिये अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में गिरावट के परिणाम क्या हैं?

  • किसानों की आय में कमी:
    • अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में गिरावट से न केवल देश के कृषि निर्यात की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो गई है, अपितु किसान आयात के प्रति अधिक संवेदनशील भी बन गए हैं। कपास और खाद्य तेलों में यही प्रभाव देखने को मिल रहा है।
      • कीमतों में गिरावट के कारण न केवल भारत के कपास निर्यात में गिरावट आई है, अपितु वर्ष 2021-22 से वर्ष 2022-23 के बीच आयात भी 2.5 गुना बढ़ गया है।
  • खाद्य तेल पर प्रभाव:
    • वर्ष 2019-20 तथा वर्ष 2022-23 के बीच भारत के खाद्य तेल आयात का मूल्य दोगुना से अधिक हो गया। यह विशेष रूप से यूक्रेन में युद्ध के बाद वैश्विक कीमतों के बढ़ने के कारण हुआ था।
      • अधिक चिंता की बात यह है कि कीमतें गिर गई हैं, लेकिन कच्चे पाम, सोयाबीन एवं सूरजमुखी तेल का आयात शुल्क अभी भी 5.5% पर है।
  • प्रक्रियात्मक चिंताएँ: 
    • राष्ट्रीय चुनावों से पहले खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने साथ ही उत्पादकों पर उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता देने पर सरकार का ध्यान केंद्रित करने का अर्थ है कि अनाज, चीनी  एवं प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ खाद्य तेल और दालों का आयात निर्बाध रूप से जारी रहेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसे कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)

  1. सभी फसलों की कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
  2. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कम्प्यूटरीकरण
  3. सामाजिक पूंजी का विकास
  4. किसानों को निःशुल्क विद्युत आपूर्ति
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋणों की माफी
  6. सरकारों द्वारा शीत भण्डारण सुविधाओं की स्थापना

नीचे दिये गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3, और 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: C


प्रश्न. ‘राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट)’ स्कीम को क्रियान्वित करने का/के क्या लाभ है/हैं? (2017)

1- यह कृषि वस्तुओं के लिये सर्व-भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है।
2- यह कृषकाें के लिये राष्ट्रव्यापी बाज़ार सुलभ कराता है जिसमें उनके उत्पाद की गुणता के अनुरूप कीमत मिलती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: C


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