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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्पेशलिटी स्टील हेतु पीएलआई योजना

  • 24 Jul 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्पेशलिटी स्टील, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये:

भारत में स्पेशलिटी स्टील को पीएलआई योजना के अंतर्गत लाने का कारण एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023-24 से पाँच वर्षों की अवधि में 6,322 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ स्पेशलिटी स्टील (SS) के निर्माण हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना (केंद्रीय क्षेत्र योजना) को मंज़ूरी दी है।

स्पेशलिटी स्टील:

  • यह मूल्यवर्द्धित स्टील है, जो सामान्य रूप से तैयार स्टील को संसाधित करके बनाया जाता है।
  • इसे सामान्य रूप से तैयार स्टील को कोटिंग, प्लेटिंग और हीट ट्रीटिंग के माध्यम से उच्च मूल्यवर्द्धित स्टील में परिवर्तित करके निर्मित किया जाता है।
  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र और विशेष पूंजीगत वस्तुओं के अलावा उनका उपयोग विभिन्न रणनीतिक अनुप्रयोगों जैसे- रक्षा, अंतरिक्ष, बिजली आदि में किया जा सकता है।
  • SS को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। जैसे- लेपित/प्लेटेड स्टील उत्पाद, उच्च शक्ति सहन क्षमता प्रतिरोधी स्टील, विशेष रेल, मिश्र धातु इस्पात उत्पाद और स्टील के तार, विद्युत स्टील आदि।

प्रमुख बिंदु:

PLI योजना:

  • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात बिलों में कटौती करने के लिये केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में एक PLI योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
  • यह योजना विदेशी कंपनियों को भारत में इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आमंत्रित करती है, हालाँकि इसका उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या विस्तार के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • इस योजना को ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर जैसे- लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, बड़े इलेक्ट्रिकल सामान, रासायनिक सेल, खाद्य प्रसंस्करण तथा वस्त्र आदि क्षेत्रों के लिये भी अनुमोदित किया गया है।

Incentive-work

स्पेशलिटी स्टील के लिये PLI:

  • उद्देश्य: भारत के SS उत्पादन को वर्तमान के 18 MT से बढ़ाकर 2026-27 तक 42 मिलियन टन (MT) तक पहुँचाने में सहायता करना।
  • श्रेणियाँ: स्पेशलिटी स्टील की पाँच श्रेणियाँ हैं जिन्हें PLI योजना में चुना गया है:
    • कोटेड/प्लेटेड स्टील उत्पाद।
    • उच्च शक्ति सहन क्षमता प्रतिरोधी स्टील।
    • स्पेशल रेल।
    • मिश्र धातु इस्पात उत्पाद और स्टील के तार।
    • विद्युत स्टील।
  • स्लैब: PLI प्रोत्साहन के तीन स्लैब हैं, सबसे कम 4% और उच्चतम 12% है।
  • लाभार्थी: एकीकृत इस्पात संयंत्र और द्वितीयक इस्पात संयत्र।
    • भारत में पंजीकृत कोई भी कंपनी जो चिह्नित 'स्पेशलिटी स्टील' ग्रेड के निर्माण में संलग्न हो, योजना में भाग लेने के लिये पात्र होगी।

स्पेशलिटी स्टील चुनने का कारण:

  • उत्पादन बढ़ाने के लिये:
    • SS को सरकार द्वारा लक्ष्य सेग्मेंट (Speciality Segment) के रूप में चुना गया है क्योंकि वर्ष 2020-21 में 102 मिलियन टन स्टील के उत्पादन में से देश में केवल 18 मिलियन टन मूल्यवर्द्धित स्टील / स्पेशलिटी स्टील का उत्पादन किया गया था।
  • आयात कम करने के लिये:
    • भारत में अधिकांश आयात मूल्यवर्द्धित और लक्ष्य सेग्मेंट (Speciality Segment)  आधारित होता है। PLI  योजना इस खंड में भारतीय मिलों की विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा देगी तथा  MSMEs सीधे ही उनसे कच्चा माल प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
      • वर्ष 2020-21 में 6.7 मिलियन टन के आयात में से करीब 4 मिलियन टन आयात स्पेशलिटी स्टील का था, जिसके परिणामस्वरूप करीब 30,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) व्यय हुई।
  • इस्पात क्षेत्र में उर्ध्वमुखी प्रवृत्ति:
    • इस्पात क्षेत्र में तेज़ी का रुख है और प्रमुख एकीकृत उत्पादकों ने प्रमुख विस्तार योजनाएंँ तैयार की हैं।

महत्त्व:

  • स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना:
    • यह सुनिश्चित करेगा कि तैयार इस्पात केवल भारत में ही निर्मित किया जाए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यह योजना देश के भीतर अंतिम छोर तक विनिर्माण (End-to-End Manufacturing) को बढ़ावा देती है।
    • यह भारत को वैश्विक विनिर्माण विजेता बनाने में मदद करेगा तथा देश को दक्षिण कोरिया और जापान जैसी वैश्विक स्टील बनाने वाली बड़ी कंपनियों के बराबर लाएगा।
  • रोज़गार सृजन:
    • इससे लगभग 5 लाख लोगों हेतु रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे, जिसमें 68,000 लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त होगा।

अपेक्षित परिणाम:

  • इससे देश में लगभग 40,000 करोड़ रुपए का निवेश आने की उम्मीद है और इसके परिणामस्वरूप स्पेशलिटी स्टील की क्षमता में 25 मिलियन टन की  वृद्धि होगी।
  • SS का निर्यात मौजूदा 1.7 मीट्रिक टन से बढ़कर लगभग 5.5 मीट्रिक टन हो जाएगा, जिससे 33,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा  की कमाई होगी।

इस्पात से संबंधित पहलें:

  • मिशन पूर्वोदय: इसे वर्ष 2020 में कोलकाता, पश्चिम बंगाल में एक एकीकृत इस्पात केंद्र की स्थापना के माध्यम से पूर्वी भारत के त्वरित विकास हेतु लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017: इसे 2017 में निजी निर्माताओं,  MSME इस्पात उत्पादकों को नीतिगत समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करके इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु लॉन्च किया गया था।
  • चौथी औद्योगिक क्रांति (उद्योग 4.0) को अपनाना: इससे  विनिर्माण प्रक्रियाओं, ऊर्जा दक्षता, संयंत्र और श्रमिक उत्पादकता, आपूर्ति शृंखला और उत्पाद जीवन-चक्र में सुधार होगा।
  • भारतीय इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन: यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक संस्थानों सहित विभिन्न संस्थानों को लौह और इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें कचरे का उपयोग, ऊर्जा दक्षता में सुधार, ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के  उत्सर्जन में कमी तथा पर्यावरणीय जैसे मुद्दे शामिल हैं। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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