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डेली न्यूज़

  • 10 Jan, 2023
  • 44 min read
इन्फोग्राफिक्स

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी

Geospatial-Technology

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सामाजिक न्याय

कालाज़ार रोग

प्रिलिम्स के लिये:

कालाज़ार रोग, लीशमैनियासिस, काला बुखार, लसीका फाइलेरिया को खत्म करने के लिये वैश्विक कार्यक्रम (GPELF), राष्ट्रीय कालाज़ार उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP)

मेन्स के लिये:

वेक्टर जनित रोगों के नियंत्रण से संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2007 और 2022 के बीच भारत में कालाज़ार के मामलों की संख्या 98.7% घटकर 44,533 से 834 हो गई, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 632 स्थानिक ब्लॉक (99.8%) ऐसे हैं जिन्हें उन्मूलन का दर्जा प्राप्त है (प्रति 10,000 पर एक से कम मामले)।

  • झारखंड के पाकुड़ ज़िले में लिट्टीपारा एकमात्र स्थानिक ब्लॉक है जहाँ प्रति 10,000 जनसंख्या पर 1.23 मामले पाए गए हैं।

कालाज़ार रोग:

  • परिचय: 
    • इसे विसरल लीशमैनियासिस या ब्लैक फीवर या दमदम बुखार के नाम से भी जाना जाता है।
      • लीशमैनियासिस के तीन प्रकार हैं: 
        • आँत का लीशमैनियासिस: यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है और रोग का सबसे गंभीर रूप है।
        • त्वचीय (Cutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा के घावों का कारण बनती है और यह बीमारी का आम रूप है।
        • श्लेष्मत्वचीय (Mucocutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा एवं श्लैष्मिक घावों का कारण है।
        • यह प्रोटोजोआ परजीवी लीशमैनिया के कारण होने वाली घातक परजीवी बीमारी है और मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया तथा लैटिन अमेरिका में रहने वाले लोगों को प्रभावित करती है।
        • यदि समय पर उपचार नहीं किया गया तो यह रोग मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • वैश्विक और राष्ट्रीय स्थिति: 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के अनुसार, कालाज़ार दुनिया की दूसरी सबसे घातक परजीवी बीमारी है और नवंबर 2022 तक आठ देशों- ब्राज़ील, इरिट्रिया, इथियोपिया, भारत, केन्या, सोमालिया, दक्षिण सूडान एवं सूडान में लगभग 89% वैश्विक मामले देखने को मिले हैं।
    • वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट किये गए कालाज़ार के कुल मामलों में भारत का योगदान लगभग 11.5% है।
      • भारत में कालाज़ार के 90% से अधिक मामले बिहार और झारखंड से रिपोर्ट किये जाते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल ने ब्लॉक स्तर पर अपने उन्मूलन लक्ष्य को हासिल कर लिया है।
  • संचरण:
    • यह एक संक्रमित मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
  • संकेत और लक्षण:
    • बुखार, वज़न घटना, रक्ताल्पता और यकृत एवंप्लीहा का बढ़ना।
  • निवारण:
    • कालाज़ार की रोकथाम में सैंडफ्लाई के प्रजनन स्थलों को कम करने और लोगों को सैंडफ्लाई के काटने से बचाने के उपाय शामिल हैं।
      • कीटनाशकों, मच्छरदानी और विकर्षक के उपयोग के साथ-साथ आवास की साफ-सफाई, स्वच्छ पानी एवंस्वच्छता के माध्यम से इस रोग का निवारण किया जा सकता है।
      • WHO उन क्षेत्रों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) की भी सिफारिश करता है जहाँ रोग स्थानिक है।
  • उपचार:
    • कालाज़ार के उपचार में सोडियम स्टिबोग्लुकोनेट और मेग्लुमाइन एंटीमोनिएट जैसी दवाओं का उपयोग शामिल है। 
      • WHO कालाज़ार के उपचार के लिये दो या दो से अधिक दवाओं के संयोजन की सिफारिश करता है, क्योंकि मोनोथेरेपी में उपचार के विफल होने और दवा प्रतिरोध का उच्च जोखिम होता है।
  • संबंधित पहल:
    • वैश्विक:
      • 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप: 2030 का उद्देश्य उन 20 बीमारियों की रोकथाम, नियंत्रण, समाप्त करना है, जिन्हें उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग कहा जाता है।
      • WHO ने लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (GPELF) को खत्म करने के लिये ग्लोबल प्रोग्राम भी स्थापित किया है, जिसका उद्देश्य MDA द्वारा लिम्फेटिक फाइलेरियासिस, ऑन्कोसेरसियासिस और कालाज़ार को खत्म किया जाना है।
        • GPELF ने वर्ष 2000 में इन बीमारियों को वर्ष 2020 तक वैश्विक स्तर पर खत्म करने का लक्ष्य रखा था जो कि पूर्ण नहीं हो पाया था। कोविड-19 की असफलताओं के बावजूद वर्ष 2030 तकइस लक्ष्य को हासिल करने के लिये WHO द्वारा कार्य में तेज़ी लाई जाएगी
    • भारत की पहल:
      • केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 तक भारत से कालाज़ार को खत्म करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये कई कदम उठाए हैं, जिसमें पीएम-आवास योजना के माध्यम से पक्के घर बनाना, ग्रामीण विद्युतीकरण, परीक्षण, उपचार, समय-समय पर उच्च-स्तरीय समीक्षा और पुरस्कार वितरण शामिल है।
      • केंद्र एक्टिव केस डिटेक्शन, सर्विलांस, इलाज़ और डायग्नोस्टिक किट, दवाओं एवंस्प्रे की आपूर्ति में भी राज्यों की मदद कर रहा है।
    • राष्ट्रीय कालाज़ार उन्मूलन कार्यक्रम
      • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2002 ने वर्ष 2010 तक भारत में कालाज़ार उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसे संशोधित कर 2015 कर दिया गया है।
      • दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (SEAR) से कालाज़ार के उन्मूलन के लिये भारत, बांग्लादेश और नेपाल ने एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं। 
      • वर्तमान में कार्यक्रम संबंधी सभी गतिविधियों को राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Vector Borne Disease Control Programme- NVBDCP) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है, जो एक अम्ब्रेला कार्यक्रम है और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत आता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में जीका वायरस रोग उसी मच्छर द्वारा संचरित होता है जिससे डेंगू संचरित होता है।
  2. जीका वायरस रोग का लैंगिक संचरण होना संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (c) 

व्याख्या: 

  • जीका वायरस एक फ्लेविवायरस है जिसे पहली बार वर्ष 1947 में बंदरों में और फिर वर्ष 1952 में युगांडा में मनुष्यों में देखा गया था।
  • जीका और डेंगू दोनों में बुखार, त्वचा पर चकत्ते, नेत्रश्लेष्मलाशोथ/कंजक्टिवाइटिस (Conjunctivitis), मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, अस्वस्थता तथा सिरदर्द के लक्षणों में समानता है। इसके अलावा दोनों रोगों के संचरण का तरीका भी समान है, अर्थात् दोनों एडीज़ एजिप्टी और एडीज़ एल्बोपिक्टस प्रजाति के मच्छरों द्वारा फैलते हैं। अतः कथन 1 सही है।
  • जीका के संचरण के तरीके:
    • मच्छर का काटना।
    • गर्भावस्था के दौरान माँ से बच्चे में संचरण, जो माइक्रोसेफली और अन्य गंभीर भ्रूण मस्तिष्क दोष पैदा कर सकता है। जीका वायरस माँ के दूध में भी पाया गया है। अतः कथन 2 सही है।
    • रक्त आधान (Blood Transfusion) के माध्यम से। 

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

विदेशी विश्वविद्यालयों हेतु UGC द्वारा मसौदा मानदंड की घोषणा

प्रिलिम्स के लिये:

यूजीसी, NEP 2020

मेन्स के लिये:

विदेशी विश्वविद्यालयों के लिये यूजीसी द्वारा मसौदा मानदंड की घोषणा और इसका महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने मसौदा नियम जारी किये हैं जो अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के लिये भारत में कैंपस खोलना आसान बनाएंगे और उन्हें निर्णय लेने की स्वायत्तता प्रदान करेंगे।

Foreign

यूजीसी द्वारा घोषित मसौदा मानदंड: 

  • मापदंड निर्धारण:
    • भारत में परिसर स्थापित करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय जिसे विश्व भर के शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों में स्थान दिया गया है या एक विदेशी शैक्षणिक संस्थान जो अपने देश में अच्छी स्थिति में है, यूजीसी को आवेदन दे सकता है। 
  • आवेदन प्रक्रिया: 
    • यूजीसी द्वारा नियुक्त एक स्थायी समिति इस आवेदन पर विचार करेगी जो संस्थान की विश्वसनीयता, प्रस्तावित कार्यक्रमों, उसकी क्षमता का आकलन करने के बाद 45 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगी।
    • यूजीसी इसके बाद 45 दिनों के भीतर अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को दो वर्ष के भीतर भारत में कैंपस खोलने की प्रारंभिक मंज़ूरी दे सकता है।
    • आरंभिक मंज़ूरी 10 वर्ष के लिये होगी, जिसे बढ़ाया जा सकता है।
  • शिक्षण का तरीका: 
    • उन्हें भारत और विदेशसे फैकल्टी एवं स्टाफ की भर्ती करने संबंधी स्वायत्तता होगी
    • पाठ्यक्रम ऑनलाइन तथा मुक्त और दूरस्थ शिक्षा मोड में नहीं चलाए जा सकेंगे।
    • भारतीय परिसर में छात्रों को दी जाने वाली डिग्रियाँ उनके मूल देश में संस्थानों द्वारा दी गई डिग्रियों के समकक्ष होनी चाहिये।
    • ऐसे विश्वविद्यालय और महाविद्यालय अध्ययन का ऐसा कोई भी कार्यक्रम प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं जो भारत के राष्ट्रीय हित या भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को खतरे में डालता हो।
  • निधि प्रबंधन: 
    • विदेशी विश्वविद्यालयों को मूल परिसरों में धन प्रत्यावर्तित करने की अनुमति होगी।
    • धन की सीमा पार आवाजाही और विदेशी मुद्रा खातों का रखरखाव, भुगतान का तरीका, प्रेषण, प्रत्यावर्तन आदि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) 1999 एवं इसके नियमों के अनुरूप होगी।
    • इसके पास अपनी फीस संरचना तय करने की स्वायत्तता भी होगी और भारतीय संस्थानों पर लगाए गए किसी भी सीमा का सामना नहीं करना पड़ेगा। शुल्क “उचित एवं पारदर्शी होना चाहिये।

पहल का महत्त्व: 

  • विदेश मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में करीब 13 लाख छात्र विदेश में पढ़ रहे थे और RBI के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-2022 में छात्रों के विदेश जाने के कारण विदेशी मुद्रा में 5 अरब रुपए का नुकसान हुआ।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने की अनुमति देने से यह भी सुनिश्चित होगा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले हमारे लगभग 40 मिलियन छात्रों की वैश्विक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच होगी।
  • भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस की स्थापना के आदर्श का उल्लेख राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 में भी किया गया है।
    • NEP के अनुसार, दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों को विधायी ढाँचे के माध्यम से भारत में संचालित करने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
    • ये मसौदा नियम केवल NEP के दृष्टिकोण को संस्थागत बनाने की कोशिश करते हैं। 
  • यह कदम भारत को शिक्षा के लिये वैश्विक गंतव्य बनने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • यह न केवल विदेशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के प्रतिभा पलायन और विदेशी मुद्रा के नुकसान को रोकने में मदद करेगा बल्कि विदेशी छात्रों को भारत में आकर्षित करने में भी मदद करेगा।
  • यह देश में विभिन्न अभिकर्त्ताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करेगा और विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच संकाय से संकाय अनुसंधान सहयोग की अनुमति देगा।
  • अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में चीनी छात्रों के बाद भारतीय विदेशी छात्रों की सबसे बड़ी संख्या है। 

प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • ऐसा माना जाता है कि सामाजिक न्याय के सरोकारों की उपेक्षा की गई है जो कि भारत के संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उच्च शिक्षा सामाजिक परिवर्तन के लिये बहुत प्रभावी साधन है।
  • मसौदा नियमों में छात्र प्रवेश में जाति आधारित/आर्थिक आधारित/अल्पसंख्यक आधारित/सशस्त्र बल आधारित/दिव्यांग आधारित/कश्मीरी प्रवासियों/प्रतिनिधित्व आधारित/महिला आरक्षण के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
  • शैक्षिक व्यवसाइयों के एक वर्ग ने भारत में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों को संचालित करने की अनुमति देने के बारे में आपत्ति व्यक्त की है क्योंकि इससे शिक्षा की लागत बढ़ जाएगी, जिससे यह आबादी के एक बड़े हिस्से की पहुँच से बाहर हो जाएगी।
  • विदेश में स्थित मूल संस्थानों को धन का प्रत्यावर्तन, जो कि पहले प्रतिबंधित था, को अब अनुमति दे दी गई है।
  • भारत में कार्य करने के लिये विदेशी शिक्षा प्रदाताओं को कोष निर्माण हेतु किसी प्रकार की बाध्यता नहीं है

आगे की राह 

  • यदि भारतीय उच्च शिक्षा क्षेत्र का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, तो भारत विश्व गुरु न सही किंतु फिर से भारतीय समाज ज्ञानवान बनने की राह में एक कदम आगे होगा।
  • संरक्षणवाद हमारी बौद्धिक सीमाओं को बंद नहीं करता, अपितु प्रतिस्पर्द्धा और सर्वश्रेष्ठ के साथ सहयोग वास्तव में भारतीय पुनर्जागरण की दिशा में सहायक होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में से कौन से प्रावधान भारत की शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत 
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पाँचवीं अनुसूची
  4. छठी अनुसूची
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने देश में शिक्षा प्रणाली के कामकाज़ में कैसे योगदान दिया है? अपने उत्तर की  विस्तृत व्याख्या कीजिये। (2020)

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021)

 स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय प्रवासी समुदाय

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवासी भारतीय दिवस (PBD), अनिवासी भारतीय (NRI), भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO), भारत के विदेशी नागरिक (OCI)

मेन्स के लिये:

भारतीय प्रवासी: महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) के अवसर पर मध्य प्रदेश में 17वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का उद्घाटन किया।

  • वर्ष 2003 में शुरू हुआ यह सम्मेलन पिछले कुछ वर्षों में आकार एवं दायरे में काफी बड़ा हो गया है, खासकर वर्ष 2015 के बाद से जब वार्षिक सम्मेलन द्विवार्षिक हो गया।

भारतीय प्रवासी समुदाय (डायस्पोरा):

  • उत्पत्ति:  
    • शब्द ‘डायस्पोरा’ ग्रीक शब्द डायस्पेयरिन से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘फैलाव’। गिरमिटिया व्यवस्था के तहत भारतीयों के पहले जत्थे को गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में पूर्वी प्रशांत और कैरेबियाई द्वीपों में ले जाए जाने के बाद से भारतीय प्रवासियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
  • वर्गीकरण:
    • अनिवासी भारतीय (NRI): NRI वे भारतीय हैं जो विदेशों के निवासी हैं। एक व्यक्ति को NRI माना जाता है यदि:
      • वह वित्तीय वर्ष के दौरान 182 दिनों या उससे अधिक समय तक भारत में नहीं रहा है या;
      • यदि वह उस वर्ष से पहले 4 वर्षों के दौरान 365 दिनों से कम और उस वर्ष में 60 दिनों से कम समय तक भारत में रहा है।
    • भारतीय मूल के व्यक्ति (Persons of Indian Origin- PIO): PIO विदेशी नागरिक को संदर्भित करता है (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, ईरान, भूटान, श्रीलंका और नेपाल के नागरिकों को छोड़कर) जो: 
      • वह व्यक्ति जिसके पास भारतीय पासपोर्ट हो या उनके माता-पिता/दादा दादी/परदादा-दादी में से कोई भी भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा परिभाषित भारतीय क्षेत्र में पैदा हुआ था और स्थायी रूप से निवास किया था या जिसकी शादी किसी भारतीय नागरिक या PIO से हुई है। 
        • PIO श्रेणी को वर्ष 2015 में समाप्त कर OCI श्रेणी के साथ विलय कर दिया गया था। 
    • प्रवासी भारतीय नागरिक (Overseas Citizens of India- OCIs): वर्ष 2005 में OCIs की एक अलग श्रेणी बनाई गई थी। विदेशी नागरिक को OCIs कार्ड दिया जाता है जो:  
      • 26 जनवरी, 1950 को भारत का नागरिक होने के योग्य था।
      • 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था या 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बनने वाले क्षेत्र से संबंधित था।
      • ऐसे व्यक्तियों के नाबालिग बच्चे, सिवाय उनके जो पाकिस्तान या बांग्लादेश के नागरिक हैं, भी OCIs कार्ड के लिये पात्र हैं। 

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भौगोलिक विस्तार:

  • विश्व प्रवासन रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, वर्ष 2020 में दुनिया की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी भारत में है, जो इसे विश्व स्तर पर शीर्ष मूल देश बनाती है, इसके बाद मेक्सिको, रूस और चीन का स्थान आता है।
  • वर्ष 2022 में सरकार द्वारा संसद में साझा किये गए आँकड़ों से पता चला है कि भारतीय डायस्पोरा का विशाल भौगोलिक विस्तार है। 10 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी देशों में शामिल हैं:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, म्याँमार, मलेशिया, कुवैत और कनाडा।
  • प्रेषण (रेमिटेंस): 
    • वर्ष 2022 में जारी वर्ल्ड बैंक माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ के अनुसार, पहली बार भारत वार्षिक प्रेषण के माध्यम से 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक प्राप्त करने की राह पर है।
    • विश्व प्रवासन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन, मैक्सिको, फिलीपींस और मिस्र शीर्ष पाँच प्रेषण प्राप्तकर्त्ता देश (अवरोही क्रम में) हैं।

भारतीय डायस्पोरा का महत्त्व:

  • भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाना: कई विकसित देशों में भारतीय डायस्पोरा सबसे अमीर अल्पसंख्यकों में से एक है। "प्रवासी कूटनीति" के माध्यम से वे लाभ अर्जित कर रहे हैं, जिससे वे अपने गृह तथा डायस्पोरा देशों के बीच "सेतु-निर्माता" के रूप में कार्य करते हैं।
    • भारतीय प्रवासी न केवल भारत की सॉफ्ट पावर का एक हिस्सा हैं, बल्कि एक पूरी तरह से हस्तांतरणीय राजनीतिक वोट बैंक भी है।
    • इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में भारतीय मूल के व्यक्ति विभिन्न देशों में प्रमुख राजनीतिक पदों पर आसीन हैं, जो संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संगठनों में भारत के राजनीतिक प्रभाव को मज़बूत करता है।
  • आर्थिक योगदान: भारतीय प्रवासियों द्वारा भेजे गए प्रेषण का भुगतान संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो व्यापक व्यापार घाटे के अंतर को कम करने में मदद करता है।  
    • कम कुशल श्रमिकों (विशेष रूप से पश्चिम एशिया में) के प्रवासन ने भारत में प्रच्छन्न बेरोज़गारी को कम करने में मदद की है।
    • इसके अलावा प्रवासी श्रमिकों ने भारत में सूचना, वाणिज्यिक और व्यावसायिक विचारों तथा प्रौद्योगिकियों के प्रवाह को सुगम बनाया।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आयु निर्धारण तकनीक

प्रिलिम्स के लिये:

आयु निर्धारण तकनीक, सर्वोच्च न्यायालय, ऑसिफिकेशन टेस्ट, विज़डम टीथ, एपिजेनेटिक क्लॉक तकनीक, सतत् विकास लक्ष्य-16, जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969

मेन्स के लिये:

आयु निर्धारण तकनीक, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

नवंबर 2022 में कठुआ में आठ वर्ष की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के चार वर्ष बाद सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आरोपियों में से एक, जिसने अपराध के समय किशोर होने का दावा किया था, को वयस्क के रूप में पेश किया जाना चाहिये।

विभिन्न आयु निर्धारण तकनीकें: 

  • ऑसिफिकेशन टेस्ट: 
    • आयु निर्धारण के लिये सबसे लोकप्रिय परीक्षण ऑसिफिकेशन (हड्डी बनने की प्राकृतिक प्रक्रिया/अस्थिभंग) टेस्ट है।
    • ऑसिफिकेशन (अर्थात् कैल्सीफिकेशन) की सीमा और हड्डियों में एपिफेसिस (एक लंबी हड्डी का गोल सिरा) विशेष रूप से लंबी हड्डियाँ जैसे- रेडीअस (बाँह के अग्र भाग की बाहरी हड्डी) और उल्ना, ह्यूमरस, टिबिया, फाइबुला एवं फीमर उम्र का अनुमान लगाने में सहायक होते हैं।
    •  यद्यपि जलवायु, आहार, वंशानुगत और अन्य कारक विभिन्न क्षेत्रों में ऑसिफिकेशन की सीमा को प्रभावित करते हैं, दो साल (उदाहरण के लिये 16-18 वर्ष) के मार्जिन के भीतर काफी करीबी अनुमान लगाया जा सकता है, अर्थात् दोनों तरफ छह महीने की त्रुटि का मार्जिन (15.5 वर्ष या 18.5 वर्ष), यौवन से कंकाल समेकन तक किया जा सकता है।
  • अक्ल दाढ़/विज़डम टीथ: 
    • किसी व्यक्ति की उम्र का अनुमान लगाने की विधि के रूप में अक्ल दाढ़ की उपस्थिति, अनुपस्थिति और विकास का उपयोग किया जा सकता है।
      • अक्ल दाढ़, जिसे तीसरे दाढ़ के रूप में भी जाना जाता है, मुँह में उभरने वाले अंतिम दाँत होते हैं और आमतौर पर देर से किशोरावस्था या प्रारंभिक वयस्कता में दिखाई देते हैं।
    • यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि अक्ल दाढ़ का निकलना एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण करता है और इसका उपयोग कुछ वर्षों की सीमा के भीतर किसी व्यक्ति की आयु का निर्धारण करने के लिये किया जा सकता है। 
    • हालाँकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह विधि पूरी तरह से सटीक नहीं है और इसका उपयोग आयु निर्धारण हेतु एकमात्र आधार के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।
      • आनुवंशिकी,  मुँह की स्वच्छता और समग्र स्वास्थ्य जैसे कारक अक्ल दाढ़ के विकास को प्रभावित कर सकते हैं तथा अपेक्षित पैटर्न में भिन्नता पैदा कर सकते हैं।
  • एपिजेनेटिक क्लॉक तकनीक:
    • यह विषय की कालानुक्रमिक आयु का अनुमान लगाने के लिये डीएनए मेथिलिकरण स्तरों को मापता है।
      • डीएनए मेथिलिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मिथाइल समूहों को डीएनए अणु में जोड़ा जाता है, आमतौर पर जीन के संरक्षक क्षेत्र में, जिसके परिणामस्वरूप जीन प्रतिलेखन का दमन होता है।
      • यह मुख्य रूप से साइटोसिन पर होता है जो गुआनाइन न्यूक्लियोटाइड (CpG sites) से पहले होता है।
        • साइटोसिन एक रासायनिक यौगिक है जिसका उपयोग DNA और RNA के बिल्डिंग ब्लॉक्स बनाने के लिये किया जाता है। 
    • भारतीय फोरेंसिक वैज्ञानिकों ने अभी तक इस तकनीक के अनुप्रयोग का अध्ययन नहीं किया है।
  • रेडियोग्राफिक तकनीक:  
    • एक्स-रे और CT स्कैन का उपयोग हड्डियों की परिपक्वता का आकलन करने के साथ-साथ अध:पतन या बीमारी के लक्षणों को जानने के लिये किया जा सकता है।

भारत में जन्म पंजीकरण की स्थिति: 

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में केवल 72 फीसदी का जन्म पंजीकरण किया गया था।
    • इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले 26 मिलियन बच्चों में से अपंजीकृत बच्चों की संख्या 10 मिलियन थी।
      • सतत् विकास लक्ष्य संख्या 16 के तहत जन्म पंजीकरण सहित सभी के लिये कानूनी पहचान प्रदान करना एक विशिष्ट लक्ष्य है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, भारत में संस्थागत प्रसव, वर्ष 2005-06 (NFHS-3) के 40.8% से बढ़कर वर्ष 2019-21 (NFHS-5) में 88.6% हो गया है।  
      • आश्चर्य की बात है कि संस्थागत प्रसव में वृद्धि के बावजूद उम्र साबित करना आपराधिक मुकदमों में एक विवादित मुद्दा बना हुआ है।
  • गैर-अनुपालन के लिये ज़ुर्माना:
    • किसी भी परिवार के प्रमुख अथवा अस्पताल द्वारा जन्म का पंजीकरण न कराने पर जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत 50 रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। 
    • इस अधिनियम के संशोधन मसौदे में अन्य बातों के साथ-साथ किसी व्यक्ति और संस्था के लिये ज़ुर्माने को क्रमशः 250 रुपए और 1000 रुपए तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।  
      • इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से लोगों को जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण के लिये राजी करना है और ऐसा नहीं करने वालों के लिये किसी दंड का प्रावधान नहीं है।

आगे की राह

  • हालाँकि उम्र का अनुमान लगाने के लिये बेहतर चिकित्सा तकनीकों का परिचय स्वागत योग्य है, लेकिन यह बेहतर होगा कि प्रत्येक जन्म को अस्पताल या किसी अन्य प्रमाण के आधार पर दर्ज किया जाए ताकि कानून की नज़र में इसकी विश्वसनीयता बनी रहे।  
  • अंतत: तथ्य यह है कि जन्म पंजीकरण (जन्म तिथि के बारे में) का चिकित्सकीय राय के आधार पर अनुमानित आयु की तुलना में अधिक प्रमाणिक मूल्य होता है, जो कई बार गलत हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

भारतीय बाँधों की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

UNU-INWEH, बाँध, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

बाँध सुरक्षा के मुद्दे और संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र के एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत के लगभग 3,700 बाँधों की कुल भंडारण क्षमता में 26% की कमी आ जाएगी, जो तलछट के संचय के कारण भविष्य में जल सुरक्षा, सिंचाई और बिजली उत्पादन को कमज़ोर कर सकता है।

  • यह अध्ययन जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय संस्थान (United Nations University Institute on Water, Environment and Health- UNU-INWEH) द्वारा आयोजित किया गया था, जिसे जल पर संयुक्त राष्ट्र के थिंक टैंक के रूप में भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • तलछट पहले ही दुनिया भर में लगभग 50,000 प्रमुख बाँधों में उनकी संपूर्ण प्रारंभिक भंडारण क्षमता को 13-19% तक कम कर चुके हैं।
  • यह दर्शाता है कि 150 देशों के 47,403 बड़े बाँधों में 6,316 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रारंभिक वैश्विक भंडारण क्षमता घटकर 4,665 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगा, जिससे वर्ष 2050 तक भंडारण में 26% की हानि होगी।
    • 1,650 बिलियन क्यूबिक मीटर भंडारण क्षमता की कमी प्रमुख रूप से भारत, चीन, इंडोनेशिया, फ्राँस और कनाडा के वार्षिक जल उपयोग के बराबर है।
  • वर्ष 2022 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र जो कि दुनिया का सबसे भारी बाँध वाला क्षेत्र है, की प्रारंभिक बाँध भंडारण क्षमता में 13% की कमी आने का अनुमान है। 
    • इस सदी के मध्य तक इसकी आरंभिक भंडारण क्षमता में लगभग एक-चौथाई (23%) की कमी हो जाएगी।
    • इस क्षेत्र में दुनिया की 60% आबादी रहती है और जल एवं खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिये जल भंडारण महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन, दुनिया के सबसे भारी बाँध वाले देश की बाँध भंडारण क्षमता लगभग 10% कम हो चुकी है तथा  वर्ष 2050 तक इसमें और 10% की कमी हो जाएगी।

भारतीय बाँधों की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • बड़े बाँध बनाने के संदर्भ में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है।
    • अब तक बनाए गए 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 साल पुराने हो चुके हैं और कुछ 120 साल से भी पुराने हैं।
      • 2050 तक ऐसे बाँधों की संख्या बढ़कर 4,400 हो जाएगी अर्थात् देश के 80% बड़े बाँधों के अप्रचलित होने की संभावना है क्योंकि वे 50 वर्ष से लेकर 150 वर्षो से भी अधिक पुराने हो चुके होंगे।
      • सैकड़ों हज़ारों मध्यम और छोटे बाँधों की स्थिति और भी खतरनाक है क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ बड़े बाँधों की तुलना में और भी कम है।
    • उदाहरण: कृष्णा राजा सागर बाँध 1931 में बना था और अब 90 साल पुराना है। इसी तरह मेट्टूर बाँध 1934 में बना था और अब 87 साल पुराना है। ये दोनों बाँध पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित हैं।
  • महत्त्व:
    • बाँध ताज़ा पानी की आपूर्ति, सिंचाई के लिये पानी का भंडारण, पनबिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और परिवहन के लिये बेहतर नेविगेशन सहित कई लाभ प्रदान करते हैं।

भारतीय बाँधों के साथ समस्याएँ:

  • वर्षा पद्धति के अनुसार निर्मित:
    • भारतीय बाँध बहुत पुराने हैं और पिछले दशकों के वर्षा पैटर्न के अनुसार बनाए गए हैं। हाल के वर्षों में अनियमित बारिश ने उन्हें कमज़ोर बना दिया है।
    • लेकिन सरकार बाँधों को वर्षा अलर्ट, बाढ़ अलर्ट जैसी सूचना प्रणाली से लैस कर रही है और हर तरह की दुर्घटना से बचने के लिये आपातकालीन कार्य योजना तैयार कर रही है।
  • घटती भंडारण क्षमता:
    • बाँध की आयु जैसे-जैसे बढ़ती है समय के साथ मृदा और तलछट का जमाव जलाशय में होता रहता है, नतीजतन, यह बताना संभव नहीं है कि भंडारण क्षमता वैसी ही है जैसी वर्ष 1900 और 1950 के दशक में थी।
    • भारतीय जलाशयों की भंडारण क्षमता अनुमान से अधिक तेज़ी से घट रही  है। 
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन ने भविष्य में पानी की उपलब्धता में अनिश्चितता तथा परिवर्तनशीलता को और बढ़ाया है।

बाँध निर्माण के प्रभाव: 

  • पर्यावरणीय प्रभाव:

बाँध नदियों के प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और अनुप्रवाह पारिस्थितिकी को बदल सकते हैं, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह पर निर्भर पौधों और जानवरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इसके अतिरिक्त बाँध मिट्टी के कटाव, अवसादन और मैदानी इलाकों में बाढ़ का कारण बन सकते हैं।

समुदायों का विस्थापन:

बाँधों के निर्माण से अक्सर स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है।

इसके परिणामस्वरूप घरों, भूमि एवं आजीविका का नुकसान हो सकता है, जो स्थानीय लोगों, किसानों और मछुआरों जैसे हाशिये वाले समुदायों हेतु विशेष रूप से विनाशकारी हो सकता है। उदाहरण:  

  • सरदार सरोवर बाँध के अप्रवाही जल (Back Water) से लगभग 1,500 लोग विस्थापित और प्रभावित हुए थे।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
    • बाँधों के निर्माण से स्थानीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये यह स्थानीय मछुआरों और खेती की गतिविधियों को बाधित कर सकता है तथा कई लोगों के लिये आय का नुकसान कर सकता है।
  • लागत:
    • बाँधों का निर्माण एक महँगी प्रक्रिया है और यह राज्य तथा केंद्र सरकार दोनों के बजट पर दबाव डाल सकती है।
  • पारदर्शिता:
    • निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी से बाँधों और उन्हें संचालित करने वाले संगठनों पर जनता के विश्वास की कमी आ सकती है।

उठाए गए संबंधित कदम:

  • भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत जल और जल भंडारण राज्य का विषय है।
    • इसलिये बाँध सुरक्षा कानून बनाना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार कुछ स्थितियों में बाँधों को नियंत्रित करने वाले कानून बना सकती है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय जल आयोग (CWC) बाँधों से संबंधित सभी मामलों पर तकनीकी विशेषज्ञता और मार्गदर्शन प्रदान करता है।
    • इसे बाँध सुरक्षा में अनुसंधान, बाँध डिज़ाइन और संचालन के लिये मानक विकसित करने का काम सौंपा गया है तथा यह बाँध निर्माण परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में शामिल है।
  • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 का उद्देश्य देश भर में सभी निर्दिष्ट  बाँधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव करना है।
    • यह अधिनियम देश के सभी निर्दिष्ट बाँधों पर लागू होता है, अर्थात् उन बाँधों की ऊँचाई 15 मीटर से अधिक और 10 मीटर से 15 मीटर के बीच होती है, जिनमें कुछ निश्चित डिज़ाइन एवं संरचनात्मक स्थितियाँ होती हैं। 

आगे की राह

  • जवाबदेही और पारदर्शिता, साथ-ही-साथ वास्तविक हितधारकों की राय पर विचार: वे लोग जो बाँधों के निचले क्षेत्रों में रहते हैं और किसी भी प्रकार की स्थिति में सबसे अधिक ज़ोखिम में हैं, इसलिये बाँध सुरक्षा को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।
  • परिचालन सुरक्षा के संदर्भ में एक बाँध को गाद और वर्षा पैटर्न जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों के आधार पर नियमित अंतराल पर अपग्रेड करने की आवश्यकता होती है क्योंकि इससे बाँध में आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ बाँध उत्प्लव मार्ग (Spillway) क्षमता प्राभावित होती है।
    • नियम वक्र (Rule Curve) की भी सार्वजनिक उपलब्धता होना आवश्यक है ताकि लोग इसके सही कामकाज पर नज़र रख सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और जहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं, अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (मुख्य परीक्षा, 2018) 

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स


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