शासन व्यवस्था
केंद्र द्वारा नागरिकता आवेदन से संबंधित शक्तियों का विस्तार
- 01 Jun 2021
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प्रिलिम्स के लियेनागरिकता, नागरिकता अधिनियम, 1955; नागरिकता नियम, 2009; नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, देशीकरण द्वारा नागरिकता मेन्स के लियेनागरिकता प्रमाण पत्र देने संबंधित शक्तियाँ तथा इनके विस्तार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने पाँच राज्यों के अधिकारियों को मौजूदा नियमों के तहत नागरिकता आवेदनों से संबंधित शक्तियाँ प्रदान करते हुए एक अधिसूचना जारी की।
- यह आदेश नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता नियम, 2009 के तहत जारी किया गया है, न कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के अंतर्गत क्योंकि इसके नियम अभी तक नहीं बनाए गए हैं।
प्रमुख बिंदु
अधिसूचना के विषय में:
- नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 16 के अनुसार, केंद्र सरकार ने निर्देश दिया कि भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण या देशीयकरण के प्रमाण पत्र देने संबंधित केंद्र की शक्तियों का प्रयोग कलेक्टर (ज़िला मजिस्ट्रेट) द्वारा भी किया जा सकती हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में आवेदक साधारणतया निवास करता है।
- नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 16: केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा यह निर्देश दे सकती है कि उसके किसी शक्ति का प्रयोग किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा भी किया जा सकता है।
- अपवाद: हालाँकि धारा 10 (पंजीकरण का प्रमाण पत्र पंजीकृत व्यक्तियों को दिया जाना) और धारा 18 (देशीयकरण प्रमाण पत्र का रूप) में उल्लिखित शक्तियों का प्रयोग केवल केंद्र सरकार द्वारा किया जा सकता है।
- इसने फरीदाबाद और जालंधर को छोड़कर हरियाणा और पंजाब के गृह सचिवों को भी समान अधिकार दिये।
राज्य और ज़िले:
- राज्यों के 13 ज़िलों के कार्यालय तक शक्तियाँ विस्तारित की गईं, जो इस प्रकार हैं:
- गुजरात- मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा।
- छत्तीसगढ़- दुर्ग और बलौदा बाज़ार।
- राजस्थान- जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही।
- हरियाणा- फरीदाबाद।
- पंजाब- जालंधर।
विस्तारित शक्तियाँ:
- इसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के नागरिकता आवेदनों को स्वीकार करने, सत्यापित करने तथा स्वीकृत करने की शक्ति शामिल है।
- इसमें शामिल किये जाने वाले समुदायों के रूप में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को सूचीबद्ध किया गया है।
- सरकार ने वर्ष 2018 में कुछ ज़िलों के संबंध में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों के कलेक्टरों तथा गृह सचिवों को समान अधिकार प्रदान किये थे।
नागरिकता
नागरिकता के विषय में:
- नागरिकता व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है।
- भारत में भी अन्य आधुनिक राज्यों की तरह दो तरह के लोग अर्थात् नागरिक और विदेशी रहते हैं।
- नागरिक भारत के पूर्ण सदस्य हैं और इसके प्रति निष्ठावान हैं। इन्हें सभी नागरिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।
- नागरिकता निषेध का एक विचार है क्योंकि इसमें गैर-नागरिकों को शामिल नहीं किया जाता है।
- नागरिकता प्रदान करने के दो प्रसिद्ध सिद्धांत हैं:
- जहाँ 'जस सोलि' (Jus Soli) जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, वहीं 'जस सांगुइनिस (Jus Sanguinis) रक्त संबंधों को मान्यता देता है।
- मोतीलाल नेहरू समिति, 1928 के समय से ही भारतीय नेतृत्व जस सोलि की प्रबुद्ध अवधारणा के पक्ष में था।
- जस सांगुइनिस के नस्लीय विचार को भी संविधान सभा ने खारिज कर दिया था क्योंकि यह भारतीय लोकाचार के खिलाफ था।
- जहाँ 'जस सोलि' (Jus Soli) जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, वहीं 'जस सांगुइनिस (Jus Sanguinis) रक्त संबंधों को मान्यता देता है।
संवैधानिक प्रावधान:
- नागरिकता को संविधान के तहत संघ सूची (Union List) में सूचीबद्ध किया गया है और इस प्रकार यह संसद के अनन्य अधिकार क्षेत्र में है।
- संविधान 'नागरिक' शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन नागरिकता के लिये पात्र व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) में दिया गया है।
- संविधान के अन्य प्रावधानों के विपरीत, जो 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आए इन अनुच्छेदों को संविधान को अपनाते हुए 26 नवंबर, 1949 को ही लागू कर दिया गया था।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के प्रमुख प्रावधान
धर्म के आधार पर नागरिकता:
- इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में आकर रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों तथा ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
गैर-मुस्लिम समुदायों को बाहर रखा गया:
- इसका तात्पर्य यह है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के प्रवासी, जो संशोधित अधिनियम में उल्लेखित समुदाय के अलावा किसी अन्य समुदाय के हैं, वे नागरिकता के लिये पात्र नहीं होंगे।
अपवाद:
- इस अधिनियम के प्रावधान दो क्षेत्रों यानी 'इनर लाइन' (Inner Line) द्वारा संरक्षित राज्य और संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
- इनर लाइन परमिट: यह एक विशेष प्रकार का परमिट है जिसे लेने की जरूरत भारत के अन्य हिस्सों के नागरिकों को इसके द्वारा संरक्षित राज्य में प्रवेश करने पर होती है। एक राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया गया यह परमिट दूसरे राज्य में वैध नहीं होता।
- छठी अनुसूची: इसमें कुछ पूर्वोत्तर राज्यों (असम, मिज़ोरम, मेघालय और त्रिपुरा) के प्रशासन के लिये विशेष उपबंध किये गए हैं। यह इन राज्यों में स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Council) को विशेष अधिकार प्रदान करता है।
देशीकरण द्वारा नागरिकता:
- नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत देशीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने हेतु आवेदक को पिछले 12 महीनों से लगातार और साथ ही पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा होना चाहिये।
- यह अधिनियम निर्दिष्ट छह धर्मों और उपर्युक्त तीन देशों से संबंधित आवेदकों के लिये भारत में 11 वर्ष रहने की शर्त को 5 वर्ष करता है।
ओसीआई का पंजीकरण रद्द करना:
- इस अधिनियम में प्रावधान है कि केंद्र सरकार कुछ आधारों पर प्रवासी भारतीय नागरिकों (Overseas Citizens of India- OCI) के पंजीकरण को रद्द कर सकती है जो इस प्रकार हैं:
- यदि ओसीआई पंजीकरण में कोई धोखाधड़ी सामने आती है।
- यदि पंजीकरण के पाँच वर्ष के भीतर ओसीआई कार्डधारक को दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है।
- यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये आवश्यक हो।
- यदि ओसीआई ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया हो।
- हालाँकि इन कार्डधारकों को सुनवाई का मौका दिये जाने तक ओसीआई रद्द करने का आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिये।