डेली न्यूज़ (09 Dec, 2021)



चक्रवात प्रबंधन ढांँचा

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व मौसम विज्ञान संगठन, चक्रवात, मैन्ग्रोव

मेन्स के लिये:

चक्रवात का वर्गीकरण एवं उत्पत्ति के कारण 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में चक्रवात जवाद (Cyclone Jawad) भारत के पूर्वी तट विशेषकर ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्य के तट से टकराया है।

  • हालांँकि चक्रवात कमज़ोर था जिससे ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन इसने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत का चक्रवात प्रबंधन दृष्टिकोण काफी हद तक निकासी (Evacuation) पर आधारित था। 
  • इस प्रकार भारत के चक्रवात प्रबंधन में शमन और तैयारी के उपायों (Mitigation and Preparedness measures) को शामिल करना चाहिये। शमन का अर्थ है आपदा के प्रभाव को सीमित करने के लिये आपदा आने के पहले किये गए उपाय।

प्रमुख बिंदु 

  • चक्रवात के बारे में: चक्रवात एक कम दबाव वाला क्षेत्र होता है जिसके आस-पास तेज़ी से इसके केंद्र की ओर वायु परिसंचरण होते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में हवा की दिशा वामावर्त तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त होती है।
    • आमतौर चक्रवात पर विनाशकारी तूफान और खराब मौसम के साथ उत्पन्न होते हैं।
    • साइक्लोन शब्द ग्रीक शब्द साइक्लोस से लिया गया है जिसका अर्थ है साँप की कुंडलियांँ (Coils of a Snake)।
      • यह शब्द हेनरी पेडिंगटन (Henry Peddington) द्वारा दिया गया था क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाले उष्णकटिबंधीय तूफान समुद्र के कुंडलित नागों की तरह दिखाई देते हैं।

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  • चक्रवात का वर्गीकरण: चक्रवात दो प्रकार के होते हैं:
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात: उष्णकटिबंधीय चक्रवात मकर और कर्क रेखा के बीच के क्षेत्र में विकसित होते हैं।
      • वे उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जल पर विकसित होने वाले बड़े पैमाने पर मौसम प्रणाली हैं, जहाँ वे सतही हवा परिसंचरण में व्यवस्थित हो जाते हैं।
      • विश्व मौसम विज्ञान संगठन 'उष्णकटिबंधीय चक्रवात' शब्द का उपयोग मौसम प्रणालियों को कवर करने के लिये करता है जिसमें पवनें 'गैल फोर्स' (न्यूनतम 63 किमी प्रति घंटे) से अधिक होती हैं।
    • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात: इन्हें शीतोष्ण चक्रवात या मध्य अक्षांश चक्रवात या वताग्री चक्रवात या लहर चक्रवात भी कहा जाता है।
      • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात समशीतोष्ण क्षेत्रों और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, हालाँकि वे ध्रुवीय क्षेत्रों में उत्पत्ति के कारण जाने जाते हैं।

भारत के चक्रवात प्रबंधन के लिये केस स्टडी:

  • चक्रवात फैनील  और फानी: भारत ने हाल के दिनों में कुछ प्रमुख चक्रवातों जैसे- चक्रवात फीलिन (2012), फानी (2019) आदि के दौरान तीव्र बचाव कार्रवाई के लिये विश्व स्तर पर पहचान स्थापित की है।
    • वर्ष 1999 के ‘सुपर साइक्लोन’ के बाद ओडिशा सरकार ने विभिन्न चक्रवात शमन उपाय अपनाए थे।  
      • उदाहरण के लिये इन दोनों घटनाओं से दस लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित बचाया गया था।
    • रिपोर्ट में सीमित या कम मानव मृत्यु के लिये निकासी (Evacuations) को प्राथमिक कारण माना जाता था।
    • हालांँकि, निकासी के अलावा अन्य प्रतिक्रिया पहलुओं जैसे फसल क्षति को कम करने के उपाय, त्वरित सहायता, पर्याप्त राहत और क्षतिग्रस्त घरों के लिये चक्रवात के बाद सहायता का समय पर वितरण आदिपर कम ध्यान दिया गया है।
  • चक्रवात जवाद: निकासी के अलावा अन्य प्रमुख आपदा प्रतिक्रिया कार्यों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है।
    • चक्रवात जवाद से वर्तमान खतरा ऐसे समय में आया है जब अधिकांश क्षेत्रों में फसल कटाई के करीब है।
    • चक्रवात के कारण समय से पूर्व फसल कटाई और विक्रय में समस्या हो रही है।

चक्रवात शमन और तैयारी के उपाय

  • जोखिम मानचित्रण: चक्रवातों के लिये जोखिम मानचित्रण, विभिन्न तीव्रताओं या अवधियों की घटनाओं की आवृत्ति/संभावना को दर्शाने वाले मानचित्र पर चक्रवात जोखिम मूल्यांकन के परिणामों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • भूमि उपयोग योजना: भूमि उपयोग को विनियमित करने और भवन संहिताओं को लागू करने के लिये नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • मानव बस्तियों के बजाय संवेदनशील क्षेत्रों को पार्कों, चरागाहों या बाढ़ के मोड़ हेतु रखा जाना चाहिये।
  • अभियांत्रिक संरचनाएँ: सामान्यतः अच्छी विनिर्माण प्रक्रियाओं के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
    • स्टिल्टों पर या मिट्टी के टीले पर भवनों का निर्माण करना।
    • इमारतें वायु और जल प्रतिरोधी होनी चाहिये।
    • खाद्य सामग्री का भंडारण करने वाले भवनों को हवा और पानी से बचाना चाहिये।
  • चक्रवात आश्रयगृह: लगातार चक्रवातों की चपेट में रहने वाले क्षेत्रों हेतु चक्रवात आश्रयगृह आवश्यक हैं।
    • चक्रवात आश्रयगृहों के निर्माण के लिये पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है, इसलिये यह आमतौर पर सरकार या बाहरी दाताओं के समर्थन से जुड़ा होता है।
    • चक्रवात आश्रयगृहों के निर्माण के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली का उपयोग करते हुए सबसे उपयुक्त स्थलों का चयन किया जाना चाहिये।
  • बाढ़ प्रबंधन: चक्रवाती तूफान के कारण बाढ़ आएगी। तूफानी लहरों से तटीय इलाकों में पानी भर जाएगा।
    • नदियों के किनारे तटबंध, तटों पर समुद्र की दीवारें बाढ़ के मैदानों से पानी को दूर रख सकती हैं।
    • जलाशयों, चेक डैम और वैकल्पिक जल निकासी चैनलों/मार्गों के निर्माण के माध्यम से जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मैन्ग्रोव वृक्षारोपण: मैन्ग्रोव तटीय क्षेत्र को तूफानी लहरों और चक्रवातों के साथ आने वाली हवा से बचाते हैं।
    • समुदायों को मैन्ग्रोव वृक्षारोपण में भाग लेना चाहिये जो स्थानीय अधिकारियों, गैर सरकारी संगठनों या स्वयं समुदाय द्वारा आयोजित किया जा सकता है।
    • मैन्ग्रोव कटाव-नियंत्रण और तटीय संरक्षण में भी मदद करते हैं।
  • जन जागरूकता पैदा करना: शिक्षा के माध्यम से जन जागरूकता कई लोगों की जान बचाने की कुंजी है। यह साबित हो चुका है कि जन-जीवन और आजीविका को सबसे अधिक नुकसान सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण हुआ है।
  • एंड टू एंड वार्निंग सिस्टम: एंड टू एंड अर्ली वार्निंग की आवश्यकता है जो सभी स्तरों पर लोगों को त्वरित और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाएगी।
    • समुदाय को चेतावनी प्रणाली, चेतावनी संकेतों और उन स्रोतों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिये जहाँ उन्हें चक्रवातों की प्रारंभिक चेतावनी मिल सकती है।
  • सामुदायिक भागीदारी: चूँकि स्थानीय लोग अपने क्षेत्र, स्थान, संस्कृति और रीति-रिवाजों की ताकत तथा कमज़ोरियों के बारे में सबसे अच्छी तरह जानते हैं, कुछ शमन उपायों को समुदाय द्वारा स्वयं विकसित किया जाना चाहिये।
    • इन सामुदायिक शमन गतिविधियों को सरकार और अन्य नागरिक समाज संगठनों के समर्थन से प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में चक्रवात प्रबंधन के लिये सरकारी पहलें:

  • राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना:
    • भारत ने चक्रवात के प्रभावों को कम करने के लिये संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपाय करने के लिये इस परियोजना की शुरुआत की।
    • परियोजना का उद्देश्य कमज़ोर स्थानीय समुदायों को चक्रवातों और अन्य जल-मौसम संबंधी आपदाओं के प्रभाव से बचाना है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के गठन के बाद परियोजना का प्रबंधन सितंबर, 2006 में NDMA को स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) परियोजना:
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने एकीकृत तटीय प्रबंधन हेतु पर्यावरण और सामाजिक प्रबंधन ढाँचे (ESMF) के मसौदे का अनावरण किया है।
    • मसौदा योजना यह तय करेगी कि तटीय राज्यों के लिये दिशा-निर्देशों को निर्धारित करके मंज़ूरी हेतु संभावित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का मूल्यांकन कैसे किया जाएगा।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ): समुद्र, खाड़ी, क्रीक, नदियों और बैकवाटर के तटीय क्षेत्र जो उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मीटर तक ज्वार से प्रभावित होते हैं तथा निम्न ज्वार रेखा (LTL) और उच्च ज्वार रेखा के बीच की भूमि को वर्ष 1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) के रूप में घोषित किया गया।
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा तटीय विनियमन क्षेत्र घोषित किये गए हैं।
  • चक्रवातों की रंग कोडिंग:
    • यह एक मौसम चेतावनी है जो भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा लोगों को प्राकृतिक खतरों से पहले सतर्क करने के लिये जारी की जाती है।
    • इसमें IMD द्वारा हरे, पीले, नारंगी और लाल चार रंग का उपयोग किया जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन

प्रिलिम्स के लिये

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन, प्रोविज़न ऑफ अर्बन एमेनिटीज़ इन रूलर एरिया

मेन्स के लिये 

ग्रामीण-शहरी विभाजन, शहरीकरण के कारण उत्पन्न मुद्दे

चर्चा में क्यो?

लोकसभा में प्रस्तुत की गई सूचना के अनुसार, ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन’ (SPMRM) ने पिछले चार वर्षों में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।

प्रमुख बिंदु

  • श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन
    • यह ग्रामीण क्षेत्रों में एकीकृत परियोजना आधारित बुनियादी अवसंरचना को वितरित करने हेतु ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) है, जिसमें आर्थिक गतिविधियों का विकास और कौशल विकास भी शामिल है।
      • ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन’ के कार्यान्वयन से पूर्व ‘प्रोविज़न ऑफ अर्बन अमेनिटीज़ टू रूरल एरियाज़’ (PURA) को लागू किया गया था, जिसकी घोषणा वर्ष 2003 में की गई थी।
    • इस योजना का मुख्य उद्देश्य विशेष तौर पर आर्थिक, तकनीकी और सुविधाओं एवं सेवाओं के क्षेत्र में ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करना है।
  • पृष्ठभूमि
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 6 लाख से अधिक गाँव हैं जबकि लगभग 7,000 कस्बे और शहरी केंद्र मौजूद हैं। कुल जनसंख्या में से ग्रामीण जनसंख्या 69% और शहरी जनसंख्या 31% है।
      • लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और कुल श्रम शक्ति का लगभग 50% अभी भी कृषि पर निर्भर है, जो पर्याप्त उत्पादक नहीं है।
      • देश की  सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का योगदान केवल 14% है जबकि उद्योगों और सेवा क्षेत्र के लिये यह योगदान क्रमशः 26% और 60% है।
    • देश में ग्रामीण क्षेत्रों के बड़े हिस्से केवल अकेली बस्तियाँ नहीं हैं, बल्कि बस्तियों के समूह का एक हिस्सा हैं, जो अपेक्षाकृत एक दूसरे के निकट मौजूद हैं। ये क्लस्टर आमतौर पर विकास की संभावनाओं का प्रतिनिधित्त्व करते हैं और आर्थिक चालक होते हैं तथा स्थानीय प्रतिस्पर्द्धा का लाभ प्रदान कर सकते हैं।
    • एक बार विकसित हो जाने के बाद इन समूहों को ‘रुर्बन’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन’ की शुरुआत की है, जिसका लक्ष्य आर्थिक, सामाजिक और भौतिक बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करके ग्रामीण क्षेत्रों का विकास सुनिश्चित करना है।
  • रुर्बन क्लस्टर (गैर-आदिवासी और जनजातीय):
    • इनकी पहचान देश के ग्रामीण क्षेत्रों के रूप में की जाती है, जहाँ जनसंख्या घनत्व में वृद्धि, गैर-कृषि रोज़गार के उच्च स्तर, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और अन्य सामाजिक आर्थिक मानकों की उपस्थिति आदि शहरीकरण के स्थितियाँ पाई जाती हैं।
    • ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन’ के प्रयोजनों हेतु ‘रुर्बन क्षेत्र’ लगभग 30 से 40 लाख की आबादी वाले 15-20 गाँवों के समूह को संदर्भित करता है।
    • ये क्लस्टर प्रायः भौगोलिक दृष्टि से सटे हुए ग्राम पंचायतें होती हैं, जिनकी आबादी मैदानी एवं तटीय क्षेत्रों में लगभग 25000 से 50000 और रेगिस्तानी, पहाड़ी या आदिवासी क्षेत्रों में 5000 से 15000 होती है।
  • राज्यों की भूमिका
    • राज्य सरकार ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा तैयार की गई रूपरेखा के अनुसार क्लस्टरों की पहचान करती है।
    •  क्लस्टरों के चयन के लिये, MoRD द्वारा क्लस्टर चयन की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है जिसमें ज़िला, उप-ज़िला और ग्राम स्तर पर जनसांख्यिकी, अर्थव्यवस्था, पर्यटन तथा तीर्थस्थल का महत्त्व एवं परिवहन गलियारे के प्रभाव का एक उद्देश्य विश्लेषण शामिल है।
  • प्रगति: 
    • 300 रूर्बन क्लस्टर्स में से 291 इंटीग्रेटेड क्लस्टर एक्शन प्लान (ICAP) और 282 विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 27,788.44 रुपए (क्रिटिकल गैप फंड + कन्वर्जेंस फंड) के प्रस्तावित निवेश के साथ विकसित किये गए हैं।
    • कुल 76,973 अनुमानित कार्यों में से कुल 40,751 (55%) कार्य या तो पूरे हो चुके हैं या पूरा होने के करीब हैं।
  • महत्त्व:
    • SPMRM ग्रोथ क्लस्टर बुनियादी ढाँचा, सुविधाएँ प्रदान करना और औद्योगीकरण को बढ़ावा देना सुनिश्चित करके शहरी प्रवास को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 
    • यह भारत के ग्रामीण विकास क्षेत्र में संक्रमणकालीन/ट्रांज़िशनल विकास के मुकाबले परिवर्तनकारी विकास सुनिश्चित करने के लिये बहुत प्रासंगिक है।

‘प्रोविज़न ऑफ अर्बन एमेनिटीज़ इन रूलर एरिया' (PURA)

  • परिचय:
    • PURA को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम द्वारा जनवरी 2003 में तीव्र एवं सशक्त ग्रामीण विकास के लिये प्रस्तुत किया गया।
      • PURA 2.0 को एक केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में वर्ष 2012 में संभावित विकास केंद्रों जैसे-शहरी जनगणना के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए शुरू किया गया था।
    • ग्रामीण एवं शहरी विभाजन को कम करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों एवं शहरी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इसे शुरू किया गया था।
  • मिशन: 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये आजीविका के अवसर एवं शहरी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी ( Public Private Partnership- PPP) के माध्यम से एक ग्राम पंचायत (या ग्राम पंचायतों के एक समूह) में एक संभावित विकास केंद्र के आसपास सुगठित क्षेत्रों का समग्र और त्वरित विकास करना।
    • PURA के तहत दी जाने वाली सुविधाओं तथा आर्थिक गतिविधियों में जल एवं सीवरेज, गाँव की सड़कों का निर्माण एवं रखरखाव, ड्रेनेज, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, स्किल डेवलपमेंट, गाँव की स्ट्रीट लाइटिंग, टेलीकॉम, बिजली उत्पादन, गाँव से जुड़े पर्यटन आदि को शामिल किया जाता है।

स्रोत: पीआईबी


1857 का विद्रोह

प्रिलिम्स के लिये:

1857 का विद्रोह, विनायक दामोदर सावरकर, व्यपगत का सिद्धांत

मेन्स के लिये:

1857 का विद्रोह: कारण एवं केंद्र

चर्चा में क्यों?

1857 के विद्रोह में शहीदों के सम्मान में अंबाला में हरियाणा सरकार द्वारा एक स्मारक-संग्रहालय बनाया जा रहा है।

  • अंबाला में युद्ध स्मारक बनाने का उद्देश्य उन गुमनाम नायकों की वीरता को अमर करना है, जिन्हें स्वतंत्रता के प्रथम विद्रोह (अंग्रेजों के खिलाफ) की पटकथा लिखने का श्रेय कभी नहीं मिला।
  • यह अंबाला में विद्रोह की घटनाओं पर विशेष ज़ोर देने के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान को भी उजागर करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • 1857 के विद्रोह के बारे में:
    • यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संगठित प्रतिरोध की पहली अभिव्यक्ति थी। 
    • यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जनता की भागीदारी भी इसने हासिल कर ली।
    • विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है: सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा), भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों द्वारा), 1857 का विद्रोह, भारतीय विद्रोह और स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर द्वारा)

हरियाणा में विद्रोह

  • विद्रोह का केंद्र: इतिहासकार केसी यादव के अनुसार, 1857 का विद्रोह वास्तव में अंबाला में शुरू हुआ था, न कि मेरठ में जैसा कि लोकप्रिय माना जाता है।
    • उन्होंने 'हरियाणा में 1857 का विद्रोह' नामक अपनी पुस्तक में अपने निष्कर्षों का दस्तावेज़ीकरण किया था।
  • महत्त्वपूर्ण नेता:  राव तुला राम (अहिरवाल), गफ्फूर अली और हरसुख राय (पलवल), धनु सिंह (फरीदाबाद), नाहर सिंह (बल्लभगढ़) आदि हरियाणा में विद्रोह के महत्त्वपूर्ण नेता थे।
  •  प्रमुख युद्ध: कई युद्ध राज्यों के शासकों द्वारा लड़ी गईं और किसानों द्वारा भी कभी-कभी ब्रिटिश सेना को पराजित किया गया।
    • कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध सिरसा, सोनीपत, रोहतक और हिसार में लड़ें गए। 
    • सिरसा में चौरमार (Chormar) का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था।
  • विद्रोह के कारण:
    • राजनीतिक कारण:
      • अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति:  1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनैतिक कारण अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति और व्यपगत का सिद्धांत था।
        • बड़ी संख्या में भारतीय शासकों और प्रमुखों को हटा दिया गया, जिससे अन्य सत्तारुढ़ परिवारों के मन में भय पैदा हो गया।
      • व्यपगत के सिद्धांत को लागू करके डलहौज़ी ने सतारा (1848 ईस्वी), जैतपुर, और संबलपुर (1849 ईस्वी), बघाट (1850 ईस्वी), उदयपुर (1852 ईस्वी), झाँसी (1853 ईस्वी) तथा नागपुर (1854 ईस्वी) राज्यों को अपने कब्जे में ले लिया।
    • सामाजिक और धार्मिक कारण:
      • भारत में तेज़ी से फैल रही पश्चिमी सभ्यता के कारण आबादी का एक बड़ा वर्ग चिंतित था।
      • सती प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं को समाप्त करने और विधवा-पुनर्विवाह को वैध बनाने वाले कानून को स्थापित सामाजिक संरचना के लिये खतरा माना गया।
      • शिक्षा ग्रहण करने के पश्चिमी तरीके हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों की रूढ़िवादिता को सीधे चुनौती दे रहे थे।
    • आर्थिक कारण:
      • ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और ज़मींदार भूमि पर भारी-भरकम लगान और कर/राजस्व वसूली के सख्त तौर-तरीकों के कारण किसानों की पीढ़ियों पुरानी ज़मीने हाथ से निकलती जा रही थी।
        • बड़ी संख्या में सिपाही खुद किसान वर्ग से थे और वे अपने परिवार, गाँव को छोड़कर आए थे, इसलिये किसानों की शिकायतों ने उन्हें भी प्रभावित किया।
      • इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का प्रवेश भारत में हुआ जिसने विशेष रूप से भारत के कपड़ा उद्योग को बर्बाद कर दिया।
        • भारतीय हस्तकला उद्योगों को ब्रिटेन के सस्ते मशीन निर्मित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ी। 
    • सैन्य कारण:
      • भारत में ब्रिटिश सैनिकों के बीच भारतीय सिपाहियों की संख्या 87 प्रतिशत थी, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था।
      • एक भारतीय सिपाही को उसी रैंक के एक यूरोपीय सिपाही से कम वेतन का भुगतान किया जाता था।
      • उनसे अपने घरों से दूर क्षेत्रों में काम करने की अपेक्षा की जाती थी।
      • वर्ष 1856 में लॉर्ड कैनिंग ने एक नया कानून (सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम, 1856) जारी किया, जिसमें कहा गया कि कोई भी व्यक्ति जो कंपनी की सेना में नौकरी करेगा तो ज़रूरत पड़ने पर उसे समुद्र पार भी जाना पड़ सकता है।
    • तात्कालिक कारण
      • 1857 का विद्रोह अंततः चर्बी वाले कारतूसों की घटना को लेकर शुरू हुआ।
        • एक अफवाह यह फैल गई कि नई ‘एनफील्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है।
        • सिपाहियों को इन राइफलों को लोड करने से पहले कारतूस को मुँह से खोलना पड़ता था।
        • ऐसे में हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

विद्रोह के केंद्र, नेतृत्व और दमन

विद्रोह के स्थान

भारतीय नेता

ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने विद्रोह को दबा दिया

दिल्ली

बहादुर शाह द्वितीय

जॉन निकोलसन

लखनऊ

बेगम हजरत महल

हेनरी लारेंस

कानपुर

नाना साहेब

सर कोलिन कैंपबेल

झाँसी और ग्वालियर

लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे

जनरल ह्यूग रोज

बरेली

खान बहादुर खान

सर कोलिन कैंपबेल

इलाहाबाद और बनारस

मौलवी लियाकत अली

कर्नल ऑनसेल

बिहार

कुँवर सिंह

विलियम टेलर

विद्रोह की असफलता के कारण

  • सीमित प्रभाव: विद्रोह मुख्य रूप से दोआब क्षेत्र तक ही सीमित था।
    • बड़ी रियासतें हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर तथा राजपूताना इस विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
    • दक्षिणी प्रांतों ने भी इसमें भाग नहीं लिया।
  • प्रभावी नेतृत्व का अभाव: विद्रोहियों के बीच एक प्रभावी नेता का अभाव था। हालाँकि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई आदि बहादुर नेता थे, लेकिन वे समग्र रूप से आंदोलन को प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके।
  • सीमित संसाधन: सत्ताधारी होने के कारण रेल, डाक, तार एवं परिवहन तथा संचार के अन्य सभी साधन अंग्रेज़ों के अधीन थे। इसलिये विद्रोहियों के पास हथियारों और धन की कमी थी।
  • मध्य वर्ग की भागीदारी नहीं: अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों और ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ों की मदद की।

विद्रोह का परिणाम

  • कंपनी शासन का अंत: वर्ष 1857 का विद्रोह आधुनिक भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी।
    • इलाहाबाद के एक दरबार में ‘लॉर्ड कैनिंग’ ने घोषणा की कि भारतीय प्रशासन अब महारानी विक्टोरिया यानी ‘ब्रिटिश संसद’ के अधीन था।
  • धार्मिक सहिष्णुता: अंग्रेज़ों ने यह वादा किया कि वे भारत के लोगों के धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाज़ों और परंपराओं का सम्मान करेंगे।
  • प्रशासनिक परिवर्तन: भारत के गवर्नर जनरल के पद को वायसराय के पद से स्थानांतरित किया गया।
    • भारतीय शासकों के अधिकारों को मान्यता दी गई थी।
    • व्यपगत के सिद्धांत को समाप्त कर दिया गया था।
    • अपनी रियासतों को दत्तक पुत्रों को सौंपने की छूट दे दी गई थी।
  • सैन्य पुनर्गठन: सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया गया लेकिन शस्त्रागार ब्रिटिश शासन के हाथों में रहा। बंगाल की सेना के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिये यह योजना बनाई गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मानव अधिकारों का उल्लंघन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, स्वास्थ्य का अधिकार

मेन्स के लिये:

मानव अधिकारों का उल्लंघन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों में मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित आँकड़े राज्यसभा में सार्वजनिक किये।

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा पिछले तीन वित्तीय वर्षों में (31 अक्तूबर 2021 तक) प्रतिवर्ष दर्ज किये गए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में से लगभग 40% उत्तर प्रदेश से संबंधित थे।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन विचार और आंदोलन की स्वतंत्रता की अस्वीकृति है जिस पर सभी मनुष्यों का कानूनी रूप से अधिकार है।
    • जबकि व्यक्ति इन अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं, नेतृत्वकर्त्ता या सरकार अक्सर हाशिये पर रहने वाले व्यक्तियों को कम आँकती है।
    • यह हाशिये पर रहने वाले व्यक्तियों को गरीबी और उत्पीड़न के चक्र में डाल देता है। जो व्यक्ति जीवन को इस दृष्टिकोण से देखते हैं कि सभी मानव जीवन समान मूल्य के नहीं हैं, वे इस चक्र को बनाए रखते हैं।
  • उदाहरण:
    • लोगों को उनके घरों से ज़बरन बेदखल करना (पर्याप्त आवास का अधिकार)।
    • दूषित जल (स्वास्थ्य का अधिकार) 
    • मानवीय जीवन के लिये पर्याप्त न्यूनतम मज़दूरी सुनिश्चित करने में विफलता (काम का अधिकार)
    • देश में सभी क्षेत्रों और समुदायों में भुखमरी को रोकने में विफलता (भूख से मुक्ति)।
  •  मानवाधिकार उल्लंघन के प्रकार: 
    • प्रत्यक्ष या जानबूझकर:
      • उल्लंघन या तो राज्य द्वारा जानबूझकर किया जा सकता है और या राज्य द्वारा उल्लंघन को रोकने में विफल रहने के परिणामस्वरूप हो सकता है। 
        • जब कोई राज्य मानवाधिकारों के उल्लंघन में संलग्न होता है, तो पुलिस, न्यायाधीश, अभियोजक, सरकारी अधिकारी और अन्य जैसे विभिन्न अभिनेता शामिल हो सकते हैं। 
        • उल्लंघन प्रकृति में शारीरिक रूप से हिंसक हो सकता है, जैसे कि पुलिस की बर्बरता, जबकि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार जैसे अधिकारों का भी उल्लंघन किया जा सकता है, जहाँ कोई शारीरिक हिंसा शामिल नहीं है।
    •  अधिकारों की रक्षा करने में राज्य की विफलता:
      • यह तब होता है जब किसी समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों के बीच संघर्ष होता है। 
      • यदि राज्य कमज़ोर लोगों और समूहों में हस्तक्षेप करने एवं उनकी रक्षा करने के लिये कुछ नहीं करता है, तो यह प्रतिक्रिया उल्लंघन मानी जाएगी।
        • अमेरिका में राज्य श्वेत अमेरिकियों की रक्षा करने में विफल रहा जब देश भर में अक्सर लिंचिंग होती रही। 
  • भारत में वर्तमान परिदृश्य:
    • कुल उल्लंघन:
      • भारत में NHRC द्वारा दर्ज़ अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की कुल संख्या 2018-19 में 89,584 से घटकर 2019-20 में 76,628 और 2020-21 में 74,968 हो गई। 
        • 2021-22 में 31 अक्तूबर (2021) तक 64,170 मामले दर्ज़ किये गए।
    • जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा:
      • पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 2018 तक दलितों के खिलाफ अपराधों में 6% की वृद्धि हुई, जिसमें 3.91 लाख से अधिक घटनाएँ देखी गई।
    • सांप्रदायिक और जातीय हिंसा:
      • कई लोगों पर गोरक्षा समूहों द्वारा हमला किया गया था और प्रभावित लोगों में से कई अल्पसंख्यक समूह के थे। 
      • अफ्रीकी देशों के लोगों को भारत में नस्लवाद और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
    • संघ की स्वतंत्रता:
      • सरकार द्वारा कई नागरिक समाज संगठनों के पंजीकरण को निरस्त कर दिया गया, जो विशेष रूप से उन्हें विदेशी धन प्राप्त करने से रोकते थे, भले ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) ने दावा किया कि यह कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप  नहीं थी।  
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
      • कई लोगों को सरकार की नीतियों के प्रति असहमति व्यक्त करने के लिये  राजद्रोह कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और कई भारतीयों को फेसबुक पर टिप्पणी करने पर  गिरफ्तार किया गया था।. 
    • महिला के विरुद्ध हिंसा: 
    • बच्चों से संबंधित अधिकार:
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के आंँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2020 में भारत में बच्चों के खिलाफ कुल 1,28,531 अपराध दर्ज़ किये गए थे, जिसका अर्थ है कि महामारी के दौरान हर दिन औसतन 350 ऐसे मामले दर्ज़ किये गए थे।

आगे की राह 

  • दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये एक स्थायी, व्यावहारिक और प्रभावी तरीका अपनाना जो स्थानीय मूल्यों तथा संस्कृति को भी बरकरार रखने में भी सक्षम हो।
  • मनुष्य को आपसी मतभेदों की पहचानना चाहिये तथा एक-दूसरे को समझते हुए इन्हें पहचानकर परिवर्तन करने की प्रयास करना चाहिये।
  • छोटी-छोटी पहलों की शुरुआत करना, जैसे- बलात्कार, हिंसा और भेदभाव के शिकार लोगों की स्थितियों को समझते हुए दोषपूर्ण संस्कृति से बाहर निकालना। इस प्रकार का विस्तृत दृष्टिकोण  इन परिस्थितियों के प्रति अधिक प्रभावशाली साबित हो सकता है। 
    • इन सबके बाद ही मानवाधिकारों के उल्लंघन के उदाहरण मानवीय दया एवं सहानभूति की मिसाल विकसित कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


हथकरघा क्षेत्र में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, हथकरघा  उद्योग, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

मेन्स के लिये:

हथकरघा क्षेत्र : चुनौतियाँ एवं सुधार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने हथकरघा क्षेत्र में महामारी से उत्पन्न मुद्दों को बढ़ावा देने और उनका समाधान करने के लिये कई कदम उठाए हैं।

  • एक टेक्सटाइल को केवल बुनाई के लिये इस्तेमाल होने वाले धागे या उससे बने कपड़े के रूप में समझा जा सकता है।
  • जबकि, हथकरघा टेक्सटाइल के निर्माण का एक भाग है, इसमें बुनाई में श्रमिक और मशीनें शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
    • अनुरोध करने वाले राज्य: वस्त्र मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अपने राज्य हथकरघा निगमों/सहकारिता/एजेंसियों से हथकरघा बुनकरों/कारीगरों के पास तैयार इन्वेंट्री की खरीद करने का अनुरोध किया है।
    • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस ( GeM) पोर्टल पर बुनकरों का पंजीकरण: सरकार द्वारा गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस से बुनकरों को जोड़ने के लिये कदम उठाए गए हैं।
      • इस कदम से बुनकर अपने उत्पादों को सीधे विभिन्न सरकारी विभागों और संगठनों को बेचने में सक्षम होंगे।  
      • अब तक लगभग 1.50 लाख बुनकरों को GeM पोर्टल से जोड़ा जा चुका है।
    • हथकरघा उत्पादक कंपनियों की स्थापना: उत्पादकता, विपणन क्षमताओं को बढ़ाने और बेहतर आय सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न राज्यों में 128 हथकरघा उत्पादक कंपनियों का गठन किया गया है।
    • आसान ऋण नीति: रियायती ऋण/बुनकर मुद्रा योजना के तहत वित्तीय सहायता, ब्याज सबवेंशन/रियायत, क्रेडिट गारंटी प्रदान की जाती है।
    • डिज़ाइन संसाधन केंद्र: नई दिल्ली, मुंबई आदि जैसे प्रमुख शहरों में बुनकर सेवा केंद्रों में डिज़ाइन संसाधन केंद्र (DRC) स्थापित किये गए हैं।
      • इन DRC का उद्देश्य हथकरघा क्षेत्र में डिज़ाइन-उन्मुख उत्कृष्टता का सृजन और निर्माण करना है।
      • इसमें बुनकरों, निर्यातकों, विनिर्माताओं और डिज़ाइनरों को नमूना/उत्पाद सुधार तथा विकास के लिये डिज़ाइन रिपॉजिटरी तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने की भी परिकल्पना की गई है।
    • हथकरघा निर्यात संवर्द्धन परिषद (HEPC) की स्थापना: हथकरघा उत्पादों के विपणन को बढ़ावा देने के लिये हथकरघा निर्यात संवर्द्धन परिषद (Handloom Export Promotion Council- HEPC) वर्चुअल मोड में अंतर्राष्ट्रीय मेलों का आयोजन करती रही है। 
      • 23 ई-कॉमर्स संस्थाओं को हथकरघा उत्पादों के ई-विपणन को बढ़ावा देने के कार्य में लगाया गया है।
    • कच्चे माल की आपूर्ति योजना: हथकरघा बुनकरों को सूत उपलब्ध कराने के लिये  यह योजना पूरे देश में लागू की जा रही है।
      • योजना के तहत वस्त्र क्षेत्र में कच्चे माल के लिए प्रतिपूर्ति और मूल्य सब्सिडी प्रदान की जाती है।
    • बुनकरों को शिक्षित करना: बुनकरों को उनके कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये विभिन्न हथकरघा योजनाओं का लाभ उठाने के लिये शिक्षित करने हेतु  विभिन्न राज्यों में कई चौपालों का आयोजन किया गया।
  • वस्त्र उद्योग का महत्त्व:
    • यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
    • भारत में कच्चे माल और श्रम की प्रचुर आपूर्ति के निम्नलिखित कारण है:
      • कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है जिसकी वैश्विक उत्पादन में  25% हिस्सेदारी  है।
      • चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक देश है।
      • मानव निर्मित रेशों (पॉलिएस्टर और विस्कोस) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में एक विस्तृत घरेलू बाज़ार उपलब्ध है।

भारतीय वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ

  • अत्यधिक खंडित: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और इसमें मुख्य तौर पर असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व देखने को मिलता है।
  • पुरानी तकनीक: भारतीय वस्त्र उद्योग के समक्ष नवीनतम तकनीक तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और ऐसी स्थिति में यह अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा करने में विफल रहा है।
  • कर संरचना संबंधी मुद्दे: कर संरचना जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्र उद्योग को महँगा एवं अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है। 
  • स्थिर निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात स्थिर है और पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्तर पर बना हुआ है।
  • व्यापकता का अभाव: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम-से-कम 500 मशीनें हैं।
    • विदेशी निवेश की कमी: ऊपर दी गई चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में विदेशी निवेशक वस्त्र क्षेत्र में निवेश करने के बारे में बहुत उत्साहित नहीं हैं जो कि चिंता का क्षेत्र भी है।
      • हालाँकि इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान निवेश में तेज़ी देखी गई है, इस उद्योग ने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक केवल 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया।

आगे की राह

  • एक संगठित क्षेत्र की ओर: भारत वस्त्र उद्योग के लिये मेगा अपैरल पार्क और सामान्य बुनियादी ढाँचे की स्थापना करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है।
    • इससे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होगी और भारतीय खिलाड़ियों को संचालन में अधिकतम दक्षता के साथ तेज़ी से तथा कम लागत पर उत्पादन करने में मदद मिलेगी।
  • उद्योग के आधुनिकीकरण को सुगम बनाना: अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिये। यह वस्त्र उद्योग के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है तथा इस तरह निर्यात भी बढ़ा सकता है।
    • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (ATUFS) और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों को सबसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिये।
  • तर्कसंगत श्रम कानूनों की आवश्यकता: कई उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ पैनलों ने फर्म के आकार की सीमा संबंधी शर्तों को हटाने और ‘हायरिंग एंड फायरिंग’ (Hiring and Firing) प्रक्रिया में लचीलेपन की अनुमति देने की सिफारिश की है।
    • इस प्रकार ऐसे श्रम कानूनों के शीघ्र युक्तिकरण की आवश्यकता है।
  • निर्यात बढ़ाना: भारत को निर्यात अवसरों को बढ़ाने के लिये विकसित देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने की भी आवश्यकता है।
    • इस तरह के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और UK जैसे बड़े वस्त्र बाज़ारों में शुल्क मुक्त पहुँच हासिल करने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत-पीआईबी


गुरु तेग बहादुर

प्रिलिम्स के लिये:

सिख धर्म के गुरुओं से संबंधित तथ्य 

मेन्स के लिये:

सिख धर्म में गुरु तेग बहादुर का महत्त्व एवं उनके योगदान

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में श्री गुरु तेग बहादुर जी का शहादत दिवस मनाया गया।

प्रमुख बिंदु 

  • गुरु तेग बहादुर (1621-1675):
    • गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे, जिन्हें अक्सर सिखों द्वारा ‘मानवता के रक्षक’ (श्रीष्ट-दी-चादर) के रूप में याद किया जाता था।
    • गुरु तेग बहादुर एक महान शिक्षक के अलावा एक उत्कृष्ट योद्धा, विचारक और कवि भी थे, जिन्होंने आध्यात्मिक, ईश्वर, मन और शरीर की प्रकृति के विषय में विस्तृत वर्णन किया।
    • उनके लेखन को पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ (Guru Granth Sahib) में 116 काव्यात्मक भजनों के रूप में रखा गया है।
    • ये एक उत्साही यात्री भी थे और उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में उपदेश केंद्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • इन्होंने ऐसे ही एक मिशन के दौरान पंजाब में चाक-नानकी शहर की स्थापना की, जो बाद में पंजाब के आनंदपुर साहिब का हिस्सा बन गया।
    • गुरु तेग बहादुर को वर्ष 1675 में दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश के बाद  मार दिया गया।
  • सिख धर्म
    • पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ है 'शिष्य'। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
    • सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं। 
    • सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया। 
    • सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
    • इस्लामिक युग में सिखों के उत्पीड़न ने खालसा की स्थापना को प्रेरित किया जो अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है।
    • गुरु गोविंद सिंह ने खालसा (जिसका अर्थ है 'शुद्ध') पंथ की स्थापना की जो सैनिक-संतों का विशिष्ट समूह था। 
    • खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है तथा ये पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं को धारण करते हैं, जो हैं:
    • केश (बिना कटे बाल), कंघा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (एक लोहे का कंगन), कच्छा (सूती जांघिया) और कृपाण (एक लोहे का खंजर)।
    • यह उपदेश देता है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग भगवान की नज़र में समान हैं।
  • सिख साहित्य:
    • आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
    • दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।

सिख धर्म के दस गुरु

गुरु नानक देव (1469-1539)

  • ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे।
  • इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की।
  • वह बाबर के समकालीन थे।
  • गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।

गुरु अंगद (1504-1552)

  • इन्होंने गुरुमुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय बनाया।

गुरु अमर दास (1479-1574)

  • इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की।
  • इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा व्यवस्था जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
  • ये अकबर के समकालीन थे।

गुरु राम दास (1534-1581)

  • इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की।
  • इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।

गुरु अर्जुन देव (1563-1606)

  • इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की।
  • इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया।
  • वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे।
  • इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।

गुरु हरगोबिंद (1594-1644)

  • इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है।
  • इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया
  • इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।

गुरु हर राय (1630-1661)

  • ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगज़ेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।

गुरु हरकिशन (1656-1664)

  • ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे कम आयु के गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी।
  • इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।

गुरु तेग बहादुर (1621-1675)

  • इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।

गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)

  • इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की।
  • इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया।
  • वह बहादुर शाह के साथ एक कुलीन के रूप में शामिल हुए।
  • ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।

स्रोत: पी.आई.बी.