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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के सीवेज उपचार संयंत्रों की क्षमता

  • 24 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ‘खुले में शौच-मुक्त’ (ODF) का दर्जा

मेन्स के लिये: 

भारत में सीवेज उपचार संयंत्र और उनके पुन: उपयोग की क्षमता एवं संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (CPCB) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (STPs) प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले एक-तिहाई से अधिक सीवेज अपशिष्ट का उपचार करने में सक्षम हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट संबंधी मुख्य बिंदु:
    • STPs की स्थापित क्षमता:
      • भारत ने 72,368 एमएलडी (प्रतिदिन मिलियन लीटर) अपशिष्ट का उत्पादन किया, जबकि देश में ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ की स्थापित क्षमता 31,841 एमएलडी (43.9%) थी।
      • देश की कुल स्थापित उपचार क्षमता के 60% हिस्से को 5 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों- महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक द्वारा कवर किया जाता हैं।
      • अरुणाचल प्रदेश, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय और नगालैंड ने सीवेज उपचार संयंत्र स्थापित नहीं किये हैं।
      • वास्तव में उपचारित कुल सीवेज के मामले में चंडीगढ़ पहले स्थान पर है।
    • उपचारित सीवेज का पुन: उपयोग:
      • उपचारित सीवेज का पुन:उपयोग हरियाणा में सबसे अधिक होता है, जिसके बाद पुद्दुचेरी, दिल्ली और चंडीगढ़ का स्थान है।
        • इसे कई राज्य सरकारों की नीति नियोजन में अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है।
      • उपचारित सीवेज के पानी को बागवानी, सिंचाई, धुलाई गतिविधियों (सड़क, वाहन और ट्रेन), अग्निशमन, औद्योगिक शीतलन तथा शौचालय फ्लशिंग के लिये पुन: उपयोग किया जा सकता है।
      • यह पानी की मांग के लिये नदियों, तालाबों, झीलों और भू-जल स्रोतों पर दबाव को कम कर सकता है।
  • चिंताएँ
    • अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि:
      • ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुमान के मुताबिक, 2051 तक अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 1,20,000 एमएलडी से अधिक हो जाएगा।
    • उपचार क्षमता में अंतराल:
      • उपचार क्षमता में अंतराल स्थानीय स्तर पर काफी बढ़ गया है, क्योंकि ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (STPs) बड़े शहरों में केंद्रित होते हैं और ‘कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट’ (CETPs) राज्यों में असमान रूप से वितरित होते हैं।
    • आर्थिक चुनौतियाँ
      • ‘आधुनिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र’ (WTPs) पूंजी-गहन होते हैं और इसके लिये सेंसर, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित ट्रैकर्स जैसी नवीन तकनीक के उपयोग की आवश्यकता होती है।
      • अप्रत्याशित राजस्व के साथ मशीनरी और उपकरणों में उच्च अग्रिम पूंजी आवश्यकता निजी क्षेत्र के निवेश को रोकते हुए इसे एक उच्च जोखिम वाला क्षेत्र बनाती है।
  • संबंधित सरकारी प्रयास
    • उपरोक्त चुनौतियों को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने हाल ही में घोषित स्वच्छ भारत मिशन 2.0 (SBM 2.0) के तहत ठोस अपशिष्ट, कीचड़ और ग्रे-वाटर प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया।
    • ‘खुले में शौच-मुक्त’ (ODF) का दर्जा हासिल करने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने के बाद आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने मई 2020 में शहरों के लिये ओडीएफ+, ओडीएफ++ एवं वाटर+ का स्टेटस हासिल करने हेतु विस्तृत मानदंड विकसित किये।

आगे की राह

  • भारत में अपशिष्ट जल उपचार तकरीबन 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उद्योग है, जो प्रतिवर्ष 10-12% की दर से बढ़ रहा है।
  • महामारी के बाद की अर्थव्यवस्था में केंद्र और राज्य सरकारों को उपचारित जल के उपयोग के लिये बाज़ार विकसित करने हेतु साझेदारी में काम करना चाहिये।
  • भारत के लिये आर्थिक विकास की उच्च दर प्राप्त करना सीधे तौर पर जल के सतत् उपयोग से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के मामले में क्योंकि यह भविष्य की शहरी योजना और नीति के लिये महत्त्वपूर्ण होगी।
  • अपशिष्ट जल ऊर्जा, पोषक तत्त्वों और जैविक एवं जैविक-खनिज उर्वरक जैसे अन्य उपयोगी उप-उत्पादों का एक लागत प्रभावी और सतत् स्रोत हो सकता है।
    • अपशिष्ट जल से ऐसे संसाधन प्राप्त करना मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अलावा खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन शमन पर प्रभाव डालता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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