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जैव विविधता और पर्यावरण

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में पारदर्शिता का अभाव

  • 19 Aug 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:  

गैर सरकारी संगठन, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

SPCBs से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (Centre for Science and Environment- CSE) की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में लोगों के साथ जानकारी साझा करने में अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board-SPCB) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (Pollution Control Committees- PCCs) में पारदर्शिता का अभाव बना हुआ है।  

  • CSE नई दिल्ली में स्थित एक जनहित अनुसंधान और सलाहकार गैर-सरकारी संगठन (NGO) है।

प्रमुख बिंदु 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • रिपोर्ट का शीर्षक पारदर्शिता सूचकांक: सार्वजनिक प्रकटीकरण पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की रेटिंग (Transparency Index: Rating of pollution control boards on public disclosure) है।  
  • रिपोर्ट में देश भर से 29 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और छह प्रदूषण नियंत्रण समितियों के डेटा प्रस्तुतिकरण प्रदर्शन का आकलन किया है। इनमें से केवल 17 बोर्डों और समितियों ने ही 50% या उससे अधिक अंक प्राप्त किये ।
  • वायु अधिनियम 1981 और जल अधिनियम 1974 के तहत प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियांँ वायु और जल प्रदूषण से संबंधित जानकारी एकत्र करने, प्रसारित करने तथा इसकी रोकथाम, नियंत्रण या उपशमन से भी संबंधित हैं।
    • कानून बोर्डों को सार्वजनिक डोमेन में डेटा साझा करने के लिये भी कहता है।
    • हालांँकि व्यवहार में ऐसा बहुत कम ही किया जाता है।
  • ओडिशा और तेलंगाना के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पारदर्शिता सूचकांक में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले रहे और उन्होंने पारदर्शिता में 67% स्कोर प्राप्त किये। 
  • प्रदूषण से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी, डेटा और की गई कार्रवाइयों का विवरण सार्वजनिक डोमेन में डालना महत्त्वपूर्ण है। यह नीति निर्माताओं को प्रदूषण प्रबंधन के अगले स्तर पर चर्चा करने में मदद कर सकता है।
    •  यह इन बोर्डों और समितियों की दक्षता के बारे में लोगों को आश्वस्त भी कर सकता है।

SPCBs से संबंधित अन्य मुद्दे:

  • अधिक ज़िम्मेदारियांँ, सीमित संस्थागत क्षमता: पिछले दो दशकों में SPCBs के काम के दायरे और पैमाने में विस्तार देखा गया है, लेकिन बजट एवं कार्यबल में किसी प्रकार की कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।
    • पारिश्रमिक बहुत कम होने के कारण बोर्ड के लिये प्रतिभावान व्यक्तियों को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
  • तकनीकी विशेषज्ञों की कमी: इसके अलावा तकनीकी विशेषज्ञों और अन्य कर्मचारियों की भारी कमी ने केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियामकों को केवल सलाहकार निकाय बना दिया है, जिससे वे वायु गुणवत्ता मानकों को लागू करने में असमर्थ हैं।
  • शीर्ष प्रशासकों के पास कोई डोमेन विशेषज्ञता नहीं है: SPCBs में नेतृत्व आमतौर पर सिविल सेवकों द्वारा ही किया जाता है, जिनके पास प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को समझने के लिये विज्ञान या पर्यावरण अध्ययन में कोई विशेषज्ञता नहीं होती है।
    • उदाहरण के लिये CPCB के संचालन में सरकारी प्रतिनिधियों का वर्चस्व होता है और इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जो इनकी ‘निगरानी के रूप में कार्य करने के स्वरूप में एक विवादास्पद स्थित उत्पन्न करता है’।
  • प्रेरणा और जवाबदेही में कमी: राज्य बोर्ड के अधिकारियों का अक्सर अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारी के बारे में कम उत्सुकता होती है।
    • साथ ही मानकों को तैयार करने की प्रक्रिया समावेशी नहीं थी और राज्य के अधिकारियों को बस इन्हें लागू करने के लिये कहा गया था।
  • खराब बहु-क्षेत्रीय समन्वय: विभिन्न राज्य और केंद्रीय विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण अन्य विभाग एसपीसीबी के निर्देशों को लागू नहीं करते हैं।
  • निगरानी में कम विशेषज्ञता: रियल टाइम निगरानी की क्षमता के प्रत्येक वर्ष बढ़ने, डेटा संग्रह में अंतराल और खराब अंशांकन के कारण गलत रीडिंग बनी रहती है।

भारत में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:

  • यह बोर्ड एक वैधानिक संगठन है जिसका गठन जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 में किया गया था।
  • इसे वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ और कार्य भी सौंपे गए।
  • यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • इस बोर्ड के प्रमुख कार्य हैं:
    • जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नालों तथा कुओं की सफाई को बढ़ावा देना।
    • वायु की गुणवत्ता में सुधार करना और देश में वायु प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना या कम करना।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:

  • ये बोर्ड CPCB के पूरक और सांविधिक होते हैं जो संबंधित राज्य के अधिकार क्षेत्र के भीतर पर्यावरण कानूनों और नियमों को लागू करने के लिये अधिकृत होते हैं।

प्रदूषण नियंत्रण समितियाँ:

  • ये समितियाँ SPCB के समान कार्य करती हैं। दोनों में अंतर यह है कि PCC केंद्रशासित प्रदेशों से संबंधित हैं।

आगे की राह

  • समान मानक: वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने और वेबसाइटों पर जानकारी साझा करने के लिये एक समान प्रारूप होना चाहिये।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को एसपीसीबी/पीसीसी के लिये एक वेबसाइट प्रारूप और वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने हेतु दिशा-निर्देश जारी करना चाहिये।
  • विशिष्ट भर्ती: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में विभिन्न सदस्यों की भर्ती के लिये स्पष्ट योग्यता निर्धारित करने की आवश्यकता है।
    • पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना एक मानदंड हो सकता है।
  • संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना: उन नियामक निकाय को जो इनके कार्यान्वयन को सक्षम करते हैं, आवश्यक तकनीकी और वित्तीय संसाधनों के साथ मज़बूत करना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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