शासन व्यवस्था
टेलीकॉम क्षेत्र के लिये लाइसेंसिंग प्रणाली
- 06 Nov 2020
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प्रिलिम्स के लियेभारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण मेन्स के लियेराष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 के प्रमुख बिंदु |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कई टेलीकॉम ऑपरेटरों ने सामूहिक रूप से विभिन्न श्रेणियों जैसे- बुनियादी संरचना, नेटवर्क, सेवा आदि के लिये अलग-अलग लाइसेंस व्यवस्था शुरू करने के कदम का विरोध किया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications) ने बताया कि राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 के अंतर्गत शुरू किये गए 'प्रोपेल इंडिया (Propel India)’ मिशन में निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करने तथा ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा देने के लिये लाइसेंसिंग और नियामक व्यवस्था में सुधार की परिकल्पना की गई है।
- विभिन्न श्रेणियों के लिये अलग-अलग लाइसेंस व्यवस्था की शुरुआत इस रणनीति को पूरा करने के लिये बनाए गए एक्शन प्लान में से एक है।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India) ने टेलीकॉम ऑपरेटरों से अनुरोध किया कि वे संभावित लाभ और उपायों पर जानकारी दें।
वर्तमान लाइसेंसिंग नियम:
- भारत में टेलीकॉम लाइसेंस मुख्य रूप से भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और भारतीय वायरलेस टेलीग्राफ अधिनियम, 1933 के तहत प्रदान किया जाता है।
- ये अधिनियम केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्रदान करते हैं जिससे टेलीग्राफ और वायरलेस टेलीग्राफ संबंधित उपकरण की स्थापना, रखरखाव और काम करने तथा इससे जुड़ी गतिविधियों के लिये लाइसेंस प्रदान किया जाता है।
- वर्ष 1885 का अधिनियम "टेलीग्राफ" को किसी भी उपकरण, यंत्र, सामग्री के रूप में परिभाषित करता है। "टेलीग्राफ" किसी भी प्रकार के चिह्नों, संकेतों, लेखन, चित्र और ध्वनियों के प्रसारण के लिये रेडियो तरंगों, हर्ट्ज़ियन तरंगों, गैल्वेनिक, विद्युत या चुंबकीय तारों का उपयोग करने में सक्षम है।
- नवंबर 2003 में यूनीफाइड एक्सेस सर्विस लाइसेंस (Unified Access Service License) शासन के समक्ष पेश किया गया था जो एक एक्सेस सेवा प्रदाता (Access Service Provider) को किसी भी तकनीक का उपयोग करके एक ही लाइसेंस के तहत फिक्स्ड (Fixed) या मोबाइल से संबंधित या दोनों सेवाओं के उपयोग की अनुमति देता है। यह वर्ष 2013 में अस्तित्व में आया।
- जून 2012 में लाइसेंसिंग ढाँचे को सरल बनाने और सेवाओं तथा सेवा क्षेत्रों में ‘न नेशन-वन लाइसेंस’ के निर्माण के प्रयास के उद्देश्य से राष्ट्रीय दूरसंचार नीति जारी की गई थी।
चयनित मुद्दे:
- नेटवर्क लाइसेंस को अलग करने से लाइसेंसिंग शासन में अनिश्चितता आएगी और नेटवर्क क्षेत्र में भविष्य में होने वाले निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- नेटवर्क और सेवा के लिये लाइसेंस मिलना, नेटवर्क में निवेश करने वाले ऑपरेटर को स्पष्टता और निश्चितता प्रदान करता है।
- इस तरह के किसी भी बदलाव के लिये व्यावसायिक मॉडलों को फिर से संगठित करना होगा जो कि प्रतिकूल होगा।
- मौजूदा लाइसेंसिंग व्यवस्था के तहत एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया जाना बाकी है।
लागू करने से संबंधित सुझाव:
- मौजूदा लाइसेंस की वैधता तक लाइसेंस का कोई अनिवार्य स्थानांतरण नहीं होना चाहिये।
- विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों में किये गए निवेश के लिये एक स्पष्ट मुआवज़े से संबंधित कार्यप्रणाली की गणना की जानी चाहिये।
- दूरसंचार क्षेत्र के खराब वित्तीय स्वास्थ्य के अंतर्निहित मुद्दे का समाधान किया जाना चाहिये।
- टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना जिसके लिये भारी फंड जुटाने की आवश्यकता होगी। अगले 2-3 वर्षों में अनुमानित रूप से ₹2,00,000 करोड़।
- सरकार द्वारा प्रोत्साहन प्रदान करने, नियामक लागत को कम करने, मौजूदा सेवा प्रदाताओं को उचित नीति और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा असमूहीकरण (Unbundling) को ‘न तो आवश्यक और न ही वांछनीय’ कहा गया है।
- ऐसे बदलावों की आवश्यकता है, जिनके लिये व्यावसायिक मॉडल को उस समय फिर से आकार देना पड़ता है जब मौजूदा निवेश पहले से पूरी तरह से पुनर्प्राप्त नहीं होते हैं।
- इसलिये एक अन्य लाइसेंसिंग ढाँचे की सिफारिश या इसे लागू करने के बजाय इस क्षेत्र में मौजूद अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि अस्पष्टता और अतिरिक्त चुनौतियों का सामना किया जा सके।
दूरसंचार आयोग
- भारत सरकार ने दूरसंचार से संबंधित विभिन्न पहलुओं के समाधान के लिये भारत सरकार की प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों सहित दूरसंचार आयोग की स्थापना 11 अप्रैल, 1989 की अधिसूचना द्वारा की।
- आयोग एक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य,जो कि दूरसंचार विभाग में भारत सरकार के पदेन सचिव हैं और चार अंशकालिक सदस्य, जो कि संबंधित विभागों में भारत सरकार के सचिव हैं,से मिलकर बना है।