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टू द पॉइंट

भारतीय राजव्यवस्था

शहरीकरण

  • 28 Sep 2021
  • 13 min read

परिचय

  • शहरीकरण का तात्पर्य ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या की आवाजाही से है, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के अनुपात में कमी एवं समाज का इस परिवर्तन के साथ अनुकूलन से है। 

शहरीकरण का कारण:

  • जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि: यह तब होता है जब मृत्यु दर से जन्म दर अधिक हो जाती है।
  • ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में प्रवास: यह 'Pull' (जो लोगों को शहरी क्षेत्रों की ओर आकर्षित करते हैं) और 'Push' (जो लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से दूर करते हैं) कारकों द्वारा संचालित होता है।
    • रोज़गार के अवसर, शैक्षणिक संस्थान और शहरी जीवनशैली आकर्षक करने वाले मुख्य कारक हैं।
    • रहने की खराब स्थिति, शैक्षिक और आर्थिक अवसरों की कमी तथा खराब स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ ऐसे मुख्य कारक जो ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में जाने के लिये प्रेरित करते हैं।

वैश्विक शहरीकरण:

  • सबसे अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में उत्तरी अमेरिका (वर्ष 2018 तक शहरी क्षेत्रों में रहने वाली आबादी 82%), लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (81%), यूरोप (74%) तथा ओशिनिया (68%) शामिल हैं।
  • एशिया में शहरीकरण का स्तर लगभग 50% है।
  • अफ्रीका में ज़्यादातर ग्रामीण आबादी है, इसकी 43% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है।

भारत में शहरीकरण

  • शहरीकरण की संभावनाएँ:
    • संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा तैयार की गई 'विश्व शहरीकरण संभावनाएँ, 2018' रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में दुनिया की शहरी आबादी के आकार में वृद्धि कुछ ही देशों में अत्यधिक केंद्रित रहने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2018 से 2050 के मध्य दुनिया की शहरी आबादी की वृद्धि में भारत, चीन और नाइजीरिया का योगदान 35% रहने का अनुमान है।
    • वर्ष 2050 तक भारत के शहरी निवासियों की संख्या में 416 मिलियन की बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
    • भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, वर्तमान में भारत की जनसंख्या 31.1% के शहरीकरण स्तर के साथ वर्ष 2011 में 1210 मिलियन थी।

राज्यों की स्थिति:

  • शहरी क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या:
    • देश की 75% से अधिक शहरी आबादी निम्नलिखित 10 राज्यों में है: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और केरल।
    • महाराष्ट्र 50.8 मिलियन व्यक्तियों (देश की कुल शहरी आबादी का 13.5%) के साथ सबसे आगे है।
    • उत्तर प्रदेश में लगभग 44.4 मिलियन शहरी आबादी है, इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है।
  • उच्च स्कोर वाले राज्य:
    • 62.2% शहरी आबादी के साथ गोवा सबसे अधिक शहरीकृत राज्य है।
    • तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात ने 40% से अधिक शहरीकरण की स्थिति प्राप्त कर ली है।
    • उत्तर-पूर्वी राज्यों में मिज़ोरम 51.5% शहरी आबादी के साथ सबसे अधिक शहरीकृत है।
  • कम स्कोर वाले राज्य: बिहार, ओडिशा, असम और उत्तर प्रदेश में शहरीकरण का स्तर राष्ट्रीय औसत से कम है।
  • केंद्रशासित प्रदेश: दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और चंडीगढ़ केंद्रशासित प्रदेश में क्रमशः 97.5% और 97.25% शहरी आबादी है। सबसे अधिक शहरीकरण इन्हीं केंद्रशासित प्रदेशों का हुआ है, इसके बाद दमन और दीव तथा लक्षद्वीप (दोनों स्थानों में 75% से ऊपर शहरीकरण) का स्थान है।

शहरी विकास के संबंध में भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता:

  • एसडीजी लक्ष्य 11 के तहत सतत् विकास को प्राप्त करने के लिये अनुशंसित तरीकों में से एक शहरी नियोजन को बढ़ावा देना है।
  • यूएन-हैबिटेट के न्यू अर्बन एजेंडा को वर्ष 2016 में हैबिटेट III में अपनाया गया था।
  • यह शहरी क्षेत्रों की योजना, निर्माण, विकास, प्रबंधन और सुधार के सिद्धांतों को सामने रखता है।
  • यूएन-हैबिटेट (वर्ष 2020) सुझाव देता है कि किसी शहर की स्थानिक स्थितियाँ, सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय मूल्य कल्याण करने की उसकी शक्ति को बढ़ा सकते हैं।

पेरिस समझौता: भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) में वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता में 33 से 35 प्रतिशत की कमी लाना।

शहरीकरण के लिये भारत की पहल:

शहरी जीवन का महत्त्व

  • सुविधाओं तक आसान पहुँच: शहरी जीवन में साक्षरता और शिक्षा का उच्च स्तर, बेहतर स्वास्थ्य, लंबी जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सेवाओं तक अधिक पहुँच एवं सांस्कृतिक एवं राजनीतिक भागीदारी के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
    • शहरीकरण सामान्य रूप से अस्पतालों, क्लीनिकों और स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुँच से जुड़ा है।
    • इन सेवाओं से आपातकालीन देखभाल के साथ-साथ सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • सूचना तक पहुँच: रेडियो और टेलीविज़न जैसे सूचना के स्रोतों तक आसान पहुँच के लाभ भी हैं, जिनका उपयोग आम जनता को स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के लिये किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये कस्बों और शहरों में रहने वाली महिलाओं को परिवार नियोजन के बारे में अधिक जानकारी की संभावना होती है जिसके परिणामस्वरूप परिवार के आकार में कमी आती है और बच्चों का जन्म दर कम रहता है।
  • व्यक्तिवाद: यह अवसरों की बहुलता, सामाजिक विविधता, निर्णय लेने को लेकर पारिवारिक और सामाजिक नियंत्रण की कमी तथा व्यक्ति द्वारा स्वयं के लिये निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है और अपने स्वयं के कॅरियर एवं कार्यों को चुनने में मदद करता है।

शहरीकरण से जुड़े मुद्दे

  • अत्यधिक जनसंख्या दबाव: एक ओर ग्रामीण-शहरी प्रवास शहरीकरण की गति को तेज़ करता है, दूसरी ओर, यह मौजूदा सार्वजनिक संसाधनों पर अत्यधिक जनसंख्या दबाव पैदा करता है।
    • नतीजतन शहर मलिन बस्तियों, अपराध, बेरोज़गारी, शहरी गरीबी, प्रदूषण, भीड़भाड़, खराब स्वास्थ्य और कई विकृत सामाजिक गतिविधियों जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं।
  • मलिन बस्तियों की बढ़ती संख्या: देश में लगभग 13.7 मिलियन झुग्गी-झोपड़ियाँ 65.49 मिलियन लोगों को आश्रय देते हैं।
    • लगभग 65% भारतीय शहरों के बाहरी इलाके में झुग्गियाँ हैं, जहाँ लोग एक-दूसरे से सटे छोटे घरों में रहते हैं।
  • अपर्याप्त आवास: शहरीकरण की अनेक सामाजिक समस्याओं में से आवास की समस्या सबसे अधिक चिंताजनक है।
    • शहरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी की स्थिति में और अत्यधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों में रहता है।
    • भारत में आधे से अधिक शहरी परिवार एक कमरे में रहते हैं, जिसमें प्रति कमरा औसतन 4.4 व्यक्ति रहते हैं।
  • अनियोजित विकास: एक विकसित शहर के निर्माण मॉडल की तुलना में अनियोजित विकास के कारण शहरों में अमीर और गरीब के बीच प्रचलित द्वंद्व मज़बूत होता है।
  • महामारी-प्रेरित समस्याएँ: कोविड-19 महामारी ने शहरी गरीबों या झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की परेशानी को बढ़ा दिया है।
    • अचानक पूर्ण कोविड लॉकडाउन के कारण झुग्गीवासियों की आजीविका कमाने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
  • गैर-समावेशी कल्याण योजनाएँ: शहरी गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अक्सर लक्षित लाभार्थियों के एक छोटे से हिस्से तक ही पहुँचता है।
    • अधिकांश राहत कोष और लाभ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों तक नहीं पहुँचता है, इसका मुख्य कारण यह है कि इन बस्तियों को सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी जाती है।

आगे की राह 

  • सफल विकास के लिये सतत् शहरीकरण: सतत् विकास शहरी विकास के सफल प्रबंधन पर निर्भर करता है, विशेष रूप से निम्न आय और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जहाँ शहरीकरण की गति सबसे तेज़ होने का अनुमान है।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच संबंधों को मज़बूत करते हुए उनके मौजूदा आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संबंधों पर ध्यान देकर शहरी एवं ग्रामीण दोनों के निवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये एकीकृत नीतियों की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य सुविधाओं और कल्याण योजनाओं तक पहुँच में सुधार: मलिन बस्तियों में मुफ्त टीके, खाद्य सुरक्षा और पर्याप्त आश्रय तक पहुँच सुनिश्चित करने के साथ-साथ कल्याण एवं राहत योजनाओं की दक्षता में तेज़ी लाना।
    • मलिन बस्तियों में स्वच्छता और परिवहन सुविधाओं में सुधार तथा क्लीनिक एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना करना।
    • उन गैर-लाभकारी संस्थाओं और स्थानीय सहायता निकायों को सहयोग प्रदान करना, जिनकी इन हाशिये के समुदायों तक बेहतर पहुँच है।
  • शहरीकरण के लिये नया दृष्टिकोण: शहरी नियोजन और प्रभावी शासन के नए दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करना समय की आवश्यकता है।
    • टिकाऊ, मज़बूत और समावेशी बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिये।
    • शहरी गरीबों के सामने आने वाली चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिये टॉप-डाउन दृष्टिकोण के बजाय, बॉटम-अप दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।
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