नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 09 Jun, 2023
  • 50 min read
शासन व्यवस्था

मिशन ऑन एडवांस्ड एंड हाई-इम्पैक्ट रिसर्च

प्रिलिम्स के लिये:

उद्देश्य, मिशन की संरचना और लक्ष्य, ई-कुकिंग, लिथियम आयन स्टोरेज बैटरी, ग्रीन हाइड्रोजन 

मेन्स के लिये:

मिशन ऑन एडवांस्ड एंड हाई-इम्पैक्ट रिसर्च का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने संयुक्त रूप से "मिशन ऑन एडवांस एंड हाई-इम्पैक्ट रिसर्च” (MAHIR) नामक एक राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की है।

  • वर्ष 2023-24 से लेकर वर्ष 2027-28 तक पाँच वर्ष की प्रारंभिक अवधि के लिये बनाई गई इस योजना के तहत किसी विचार को उत्पाद में परिवर्तित करने हेतु प्रौद्योगिकी जीवन चक्र दृष्टिकोण का उपयोग किया जाएगा। 

राष्ट्रीय मिशन MAHIR के प्रमुख बिंदु: 

  • मिशन का लक्ष्य:  
    • वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के लिये उभरती प्रौद्योगिकियों और भविष्य की प्रासंगिकता के क्षेत्रों की पहचान करना तथा प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी विकास की शुरुआत करना
    • सामूहिक विचार-मंथन, सहक्रियात्मक प्रौद्योगिकी विकास और प्रौद्योगिकी के सुचारु हस्तांतरण के लिये मार्ग प्रशस्त करने हेतु विद्युत क्षेत्र के हितधारकों के लिये एक सामान्य मंच प्रदान करना।
    • स्वदेशी प्रौद्योगिकियों (विशेष रूप से भारतीय स्टार्ट-अप द्वारा विकसित) की पायलट परियोजनाओं और उनके व्यावसायीकरण की सुविधा का समर्थन करना।
    • उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में तेज़ी लाने के लिये विदेशी गठजोड़ एवं साझेदारी का लाभ उठाना तथा द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से दक्षताओं, क्षमताओं और उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच बनाने के लिये ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना।
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास सुनिश्चित करना, पोषण और पैमाना बनाना तथा देश के विद्युत क्षेत्र में जीवंत एवं नवोन्मेषी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
    • विद्युत प्रणाली से संबंधित प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों के विकास के संदेर्भ में देश को अग्रणी देशों में शामिल करना।
  • वित्तीयन: 
    • इस मिशन को दो मंत्रालयों विद्युत मंत्रालय, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत तथा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के वित्तीय संसाधनों को पूल करके वित्तपोषित किया जाएगा। 
    • अतिरिक्त धन की आवश्यकता की स्थिति में भारत सरकार के बजटीय संसाधनों से जुटाया जाएगा।
  • MAHIR के तहत अनुसंधान के लिये चिह्नित क्षेत्र: 
    • लिथियम-आयन स्टोरेज बैटरी के विकल्प:
    • भारतीय खाना पकाने के तरीकों के अनुरूप इलेक्ट्रिक कुकर/पैन को संशोधित करना
    • गतिशीलता के लिये ग्रीन हाइड्रोजन (उच्च दक्षता ईंधन सेल)
    • कार्बन अवशोषण/कार्बन कैप्चर
    • भू-तापीय ऊर्जा
    • ठोस अवस्था प्रशीतन
    • ईवी बैटरी के लिये नैनो तकनीक
    • स्वदेशी CRGO तकनी

मिशन की संरचना: 

  • द्वि-स्तरीय संरचना:
    • यह द्वि-स्तरीय संरचना है जिसमें एक तकनीकी कार्यक्षेत्र समिति और एक शीर्ष समिति शामिल है।
  • शीर्ष समिति: 
    • यह प्रौद्योगिकी और उत्पाद विकास पर विचार-विमर्श करते हुए अनुसंधान प्रस्तावों को स्वीकृति देती है तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी प्रदान करती है।
    • शीर्ष समिति अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रदान करते हुए सभी अनुसंधान प्रस्तावों/परियोजनाओं के अंतिम अनुमोदन को शीर्ष समिति द्वारा स्वीकृत किया जाएगा।
    • इसकी अध्यक्षता केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री करते हैं।
  • तकनीकी कार्यक्षेत्र समिति: 
    • यह अनुसंधान क्षेत्रों की पहचान करती है, संभावित प्रौद्योगिकियों की सिफारिश करती है और अनुमोदित अनुसंधान परियोजनाओं की निगरानी करती है।
    • इसकी अध्यक्षता केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
    • केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान (CPRI), बंगलूरू सर्वोच्च समिति और तकनीकी कार्यक्षेत्र समिति को सभी आवश्यक सचिवीय सहायता प्रदान करेगा।

मिशन का दायरा:

  • एक बार अनुसंधान क्षेत्रों की पहचान और अनुमोदन हो जाने के बाद परिणाम से जुड़े वित्तपोषण प्रस्तावों को विश्व स्तर पर आमंत्रित किया जाएगा।
  • प्रस्तावों के चयन के लिये गुणवत्ता सह लागत आधारित चयन (QCBS) आधार का उपयोग किया जाएगा।
  • भारतीय स्टार्ट-अप्स द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों की पायलट परियोजनाओं को वित्तपोषित किया जाएगा और उनके व्यावसायीकरण की सुविधा प्रदान की जाएगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

MAHIR का महत्त्व: 

  • स्वदेशी विकास:
    • देश के भीतर उन्नत तकनीकों का विकास करके भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है, आत्मनिर्भरता बढ़ा सकता है और घरेलू नवाचार एवं विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा दे सकता है। 
    • यह "मेक इन इंडिया" पहल के साथ संरेखित है और स्वदेशी प्रौद्योगिकी संचालित उद्योगों के विकास में योगदान देता है।
  • ऊर्जा संक्रमण और शुद्ध शून्य उत्सर्जन:
    • MAHIR स्वच्छ और हरित ऊर्जा स्रोतों, ऊर्जा भंडारण समाधानों तथा कार्बन कैप्चर तकनीकों को अपनाने में सहायता कर सकता है।
    • यह जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और एक स्थायी ऊर्जा भविष्य की ओर गति के लिये भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देता है।
  • आर्थिक विकास और विनिर्माण हब:
    • MAHIR का उद्देश्य भारत को उन्नत विद्युत प्रौद्योगिकियों के लिये एक विनिर्माण केंद्र बनाना है।
    • अत्याधुनिक तकनीकों को विकसित और तैनात करके यह निवेश आकर्षित कर सकता है, नवाचार-संचालित उद्योगों को बढ़ावा दे सकता है और रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सर्वोत्तम रूप से वर्णन करता है/करते हैं? (2016) 

  1. पर्यावरणीय लाभों एवं लागतों को केंद्र और राज्य के बजट में सम्मिलित करते हुए 'हरित लेखाकरण (ग्रीन एकाउंटिंग) को अमल में लाना।
  2. कृषि उत्पादन के संवर्द्धन हेतु द्वितीय हरित क्रांति आरंभ करना जिससे भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो।
  3. वन आच्छादन की पुनर्प्राप्ति और संवर्द्धन तथा अनुकूलन एवं न्यूनीकरण के संयुक्त उपायों से जलवायु परिवर्तन का प्रत्युतर देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c) 

व्याख्या: 

  • ग्रीन इंडिया के लिये राष्ट्रीय मिशन जिसे ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) के रूप में भी जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत उल्लिखित आठ मिशनों में से एक है। इसे फरवरी 2014 में लॉन्च किया गया था।
  • मिशन के लक्ष्य: 
    • 5 मिलियन हेक्टेयर (mha) की सीमा तक वन/वृक्ष आच्छादन को बढ़ाना और अन्य 5 mha वन/गैर-वन भूमि पर वन/वृक्ष आच्छादन की गुणवत्ता में सुधार करना। 
    • भिन्न-भिन्न प्रकार के वन और पारिस्थितिक तंत्र (जैसे- आर्द्रभूमि, चरागाह, सघन वन आदि) के लिये मौजूद भिन्न-भिन्न उप-लक्ष्य। अत: 3 सही है।
    • मध्यम सघन, खुले वनों, निम्नीकृत घास के मैदानों और आर्द्रभूमि (5 mha) सहित वनों/गैर-वनों के वन आच्छादन एवं पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।
    • उनमें से प्रत्येक के लिये भिन्न-भिन्न उप-लक्ष्यों के साथ झाड़ियों, झूम कृषि क्षेत्रों, ठंडे रेगिस्तानों, मैंग्रोव, बीहड़ों और छोड़े गए खनन क्षेत्रों (1.8 mha) की पारिस्थितिकी- पुनर्स्थापना/वनारोपण।
    • शहरी/अर्द्ध-शहरी भूमि (0.20 mha) में वन और वृक्षावरण में सुधार।
    • कृषि-वानिकी/सामाजिक वानिकी (3 mha) के तहत सीमांत कृषि भूमि/परती और अन्य गैर-वन भूमि पर वन एवं वृक्षों के आवरण में सुधार।
    • कार्बन पृथक्करण और भंडारण (वनों तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्रों में), हाइड्रोलॉजिकल सेवाओं और जैवविविधता जैसी पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में सुधार या इन सेवाओं को बढ़ाने हेतु ईंधन, चारा तथा लकड़ी व गैर-लकड़ी वन उत्पाद (लघु वन उत्पाद या MFP) आदि जैसी सेवाओं का प्रावधान, जिससे 10 मिलियन हेक्टेयर (mha) क्षेत्र में सुधार होने की अपेक्षा की गई है।
    • ईंधन, चारा तथा लकड़ी व गैर-लकड़ी वन उपज (लघु वन उपज या MFP) आदि जैसी सेवाओं के साथ-साथ कार्बन पृथक्करण और भंडारण (जंगलों तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्रों में), हाइड्रोलॉजिकल सेवाओं एवं जैवविविधता जैसी पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में सुधार, जिससे 10 मिलियन हेक्टेयर (mha) क्षेत्र में सुधार होने की अपेक्षा है।
    • इन वन क्षेत्रों में तथा इसके आसपास के लगभग 3 मिलियन परिवारों के लिये वन आधारित आजीविका में वृद्धि करना और वर्ष 2020 तक 50 से 60 मिलियन टन वार्षिक CO2 पृथक्करण बढ़ाना।
    • दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत करना और संघ तथा राज्य के बजट में हरित लेखांकन को शामिल करना ग्रीन इंडिया मिशन का उद्देश्य नहीं है। अतः 1 और 2 सही नहीं हैं।
    • अत: विकल्प (C) सही उत्तर है

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

दिल्ली में ग्राउंड लेवल ओज़ोन प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB), ओज़ोन प्रदूषण, वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index- AQI), NCAP

मेन्स के लिये:

दिल्ली में ग्राउंड लेवल ओज़ोन प्रदूषण

चर्चा में क्यों? 

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) के एक नए विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ हिस्सों में वर्ष 2023 में मार्च तथा मई के बीच 92 में से 87 दिनों में ग्राउंड लेवल ओज़ोन राष्ट्रीय मानकों से अधिक देखा गया।

नोट: CSE नई दिल्ली स्थित एक जनहित अनुसंधान एवं समर्थन संगठन है।

यह विकास की तात्कालिकता के लिये शोध करता है, शोध का समर्थन करता है और उसे संप्रेषित करता है जो टिकाऊ एवं न्यायसंगत दोनों है।

निष्कर्ष:

  • अधिक ओज़ोन प्रदूषण की अवधि:  
    • हालाँकि दिल्ली-एनसीआर में ग्राउंड लेवल ओज़ोन प्रदूषण पिछले पाँच वर्षों की तुलना में वर्ष 2023 में कम था लेकिन इसकी अधिकता की अवधि में वृद्धि हुई है।
    • यह घटना चिंता का विषय है क्योंकि उच्च ओज़ोन का स्तर आशा के विपरीत सूर्यास्त के कुछ घंटे बाद भी बना रहता है।
    • इस ग्रीष्मकाल में जिन स्टेशनों पर रोलिंग 8 घंटे के औसत से अधिक होने की सूचना है, वे औसतन 4.9 घंटे के लिये मानक से ऊपर रहे है, जो कि पिछले ग्रीष्मकाल में देखे गए 4.6 घंटे से अधिक है।
      • परिवेशी (बाहरी) ओज़ोन के लिये WHO वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश 100 μg/m3 (~50 ppb) है, जिसे एक दिन में 8 घंटे की अधिकतम औसत सामान्य गति के रूप में मापा जाता है।
  • ऋतुओं के लिये विशिष्ट नहीं:
    • ओज़ोन प्रदूषण विशिष्ट ऋतुओं तक ही सीमित नहीं है। शीत ऋतु के महीनों में जब ठंड और कोहरे की स्थिति ग्राउंड लेवल ओज़ोन के गठन को बाधित करती है, तब दिल्ली-NCR ने जनवरी 2023 में कई दिनों में ओज़ोन के स्तर में वृद्धि का अनुभव किया है। 
      • जनवरी 2023 में 26 दिनों में कई स्टेशनों पर ओज़ोन का स्तर मानक से अधिक हो गया।
  • कुछ विशिष्ट क्षेत्रों पर इसका प्रभाव: 
    • ग्राउंड लेवल के ओज़ोन प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित नई दिल्ली और दक्षिण दिल्ली के क्षेत्र थे। 

ग्राउंड लेवल ओज़ोन: 

  • परिचय: 
    • ग्राउंड-लेवल ओज़ोन, जिसे ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन के रूप में भी जाना जाता है, एक रंगरहित गैस है जिसका निर्माण पृथ्वी की सतह के निकट, आमतौर पर ज़मीन से दो मील ऊपर होता है।
    • ग्राउंड लेवल ओज़ोन गैस का उत्सर्जन सीधे किसी विशिष्ट स्रोत से नहीं होता है। यह नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) और वाहनों, विद्युत संयंत्रों, कारखानों तथा अन्य दहन स्रोतों से निकलने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड के बीच जटिल अंतःक्रियाओं के माध्यम से बनती है। ये यौगिक ग्राउंड लेवल ओज़ोन का निर्माण करने के लिये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में चक्रीय प्रतिक्रियाओं से गुज़रते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कार्बन मोनोआक्साइड 
  2. मीथेन
  3. ओज़ोन 
  4. सल्फर डाइऑक्साइड 

फसल/जैव मात्रा अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (d) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


शासन व्यवस्था

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (FAO), अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य, खाद्य उत्पादों में मिलावट

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक

चर्चा में क्यों?  

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के उपलक्ष्य में 7 जून, 2023 को एक सत्र का आयोजन किया। 

  • इस कार्यक्रम में 5वें राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (State Food Safety Index- SFSI) का भी अनावरण किया गया। 

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस:

  • विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस एक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य खाद्य जनित जोखिमों को रोकने, उनका पता लगाने और प्रबंधित करने में मदद के लिये ध्यान आकर्षित करना तथा आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेरित करना है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव के बाद वर्ष 2019 से प्रतिवर्ष 7 जून को मनाया जाता है।
  • इस अभियान का नेतृत्त्व विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा सदस्य राज्यों एवं अन्य संबंधित संगठनों के सहयोग से किया जाता है।
  • वर्ष 2023 की थीम है: खाद्य मानक जीवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं (Food standards save lives)।

राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक:

  • परिचय: FSSAI ने खाद्य सुरक्षा के विभिन्न मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिये राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (पहली बार वर्ष 2018-19 में लॉन्च किया गया) विकसित किया है।
  • मापदंड: यह सूचकांक पाँच महत्त्वपूर्ण मापदंडों, अर्थात् मानव संसाधन और संस्थागत डेटा, अनुपालन, खाद्य परीक्षण- बुनियादी ढाँचा एवं निगरानी, ​​प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण एवं उपभोक्ता अधिकारिता पर राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन पर आधारित है।
    • यह सूचकांक एक गतिशील मात्रात्मक और गुणात्मक बेंचमार्किंग मॉडल है जो सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में खाद्य सुरक्षा के मूल्यांकन के लिये एक वस्तुनिष्ठ ढाँचा प्रदान करता है।
  • शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता: बड़े राज्यों में केरल ने शीर्ष रैंक हासिल किया है, इसके बाद पंजाब और तमिलनाडु का स्थान रहा।
    • छोटे राज्यों में गोवा अग्रणी रहा, इसके बाद मणिपुर और सिक्किम का स्थान रहा।
    • केंद्रशासित प्रदेशों में शीर्ष तीन रैंक हासिल करने वाले राज्य जम्मू-कश्मीर, दिल्ली तथा चंडीगढ़ हैं। 

अन्य प्रमुख विशेषताएँ:

  • ज़िलों के लिये ईट राइट चैलेंज- चरण II: ज़िलों में ईट राइट चैलेंज के विजेताओं को खाद्य पर्यावरण में सुधार और खाद्य सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उनके उत्कृष्ट प्रयासों के लिये सम्मानित किया गया।
    • तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के ज़िलों में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ देखी गईं।

नोट: FSSAI ने ईट राइट इंडिया आंदोलन की शुरुआत की है। आंदोलन तीन प्रमुख विषयों पर आधारित है:

  • यदि यह सुरक्षित नहीं है, तो यह भोजन नहीं है' (सुरक्षित भोजन),
  • भोजन केवल स्वाद के लिये ही नहीं बल्कि शरीर और मन के लिये भी होना चाहिये (स्वस्थ आहार)
  • भोजन लोगों और ग्रह दोनों के लिये अच्छा होना चाहिये (स्थायी आहार)।
  • ईट राइट चैलेंज को ईट राइट इंडिया के तहत विभिन्न पहलों को अपनाने और बढ़ाव देने में उनके प्रयासों को पहचानने के लिये ज़िलों और शहरों के बीच एक प्रतियोगिता के रूप में देखा गया है। 
  • ईट राइट बाजरा मेला: भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ और बाजरा के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के उपलक्ष्य में FSSAI ने देश भर में ईट राइट बाजरा मेला आयोजित करने की कल्पना की।
    • ये मेले देश में व्यंजनों और बाजरे के व्यंजनों की विविधता को प्रदर्शित करते हैं।
  • खाद्य व्यवसाय संचालकों को प्रशिक्षण: FSSAI का लक्ष्य अगले तीन वर्षों में 25 लाख खाद्य व्यवसाय संचालकों को प्रशिक्षित करना है ताकि देश भर में खाद्य गुणवत्ता मानकों को पूरा किया जा सके।
  • फूड स्ट्रीट्स: देश भर में 100 फूड स्ट्रीट्स की स्थापना, जो खाद्य सुरक्षा, स्वच्छता और पोषण के लिये गुणवत्ता बेंचमार्क को पूरा करते हैं, की घोषणा इस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में की गई थी।
  • रैपिड फूड टेस्टिंग किट (RAFT) पोर्टल: FSSAI के डिजिटलीकरण प्रयासों के हिस्से के रूप में RAFT पोर्टल का अनावरण किया गया।
    • पोर्टल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए RAFT योजना के संचालन को सुव्यवस्थित करता है।
      • रैपिड एनालिटिकल फूड टेस्टिंग (Rapid Analytical Food Testing- RAFT) किट/उपकरण/विधि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों (Food Safety Officers- FSOs) या मोबाइल परीक्षण प्रयोगशालाओं द्वारा स्पॉट फील्ड परीक्षण की सुविधा प्रदान करती है या खाद्य प्रयोगशालाओं में गति में सुधार और परीक्षण लागत को कम करती है।
  • बढ़ी हुई खाद्य सुरक्षा प्रथाओं के लिये नियमावली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने पूरे देश में खाद्य सुरक्षा प्रथाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से नियमावली जारी की।

खाद्य सुरक्षा की महत्ता:

  • खाद्य सुरक्षा सरकारों, उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच एक साझा ज़िम्मेदारी है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, विश्व में 10 में से लगभग 1 व्यक्ति (अनुमानित 600 मिलियन लोग) दूषित भोजन खाने के बाद बीमार हो जाते हैं तथा प्रतिवर्ष 420 000 लोगों की मृत्यु हो जाती हैं।
    • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे खाद्य जनित रोग के भार का 40% वहन करते हैं, जिसमें प्रतिवर्ष 1,25,000 लोगों की मृत्यु होती है।
    • खाद्य जनित रोगों के दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं जैसे- कुपोषण, स्टंटिंग (उम्र की तुलना में छोटा कद), कैंसर और पुरानी बीमारियाँ।
  • संयुक्त राष्ट्र के कई सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये खाद्य सुरक्षा भी आवश्यक है जैसे कि भूख मिटाना, स्वास्थ्य में सुधार करना, गरीबी को कम करना और पर्यावरण की रक्षा करना।

भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • अवसंरचना और संसाधनों की कमी: अपर्याप्त अवसंरचना और संसाधन पूरे देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करते हैं।
    • सीमित प्रयोगशाला सुविधाओं और परीक्षण क्षमताओं के कारण प्रदूषकों की अपर्याप्त निगरानी एवं पहचान हो पाती है। अपर्याप्त भंडारण तथा परिवहन सुविधाओं के चलते भोजन का अनुचित रखरखाव होता है जिससे संदूषण का खतरा बढ़ सकता है।
  • संदूषण और मिलावट:
    • रोगजनकों, रसायनों और विषाक्त पदार्थों के साथ भोजन का संदूषण भारत में एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। खाद्य उत्पादों में गैर-गुणवत्तापूर्ण सामग्री या हानिकारक पदार्थों की मिलावट खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य को संकट में डाल रहा है।
      • कृषि और खाद्य उत्पादन में कीटनाशकों एवं रासायनिक योजकों का अनियंत्रित उपयोग भोजन के संदूषण में योगदान देता है।
  • खराब स्वच्छता स्थिति और स्वच्छता विधियाँ: 
    • खाद्य पदार्थों का प्रबंधन और प्रसंस्करण करने वाले प्रतिष्ठानों में उचित हाथ धोने, स्वच्छता सुविधाओं एवं स्वच्छ जल स्रोतों की कमी से सूक्ष्मजीव संदूषण का खतरा बढ़ जाता है।
      • खाद्य बाज़ारों, स्ट्रीट फूड विक्रेताओं और रेस्तराँ में अस्वास्थ्यकर स्थितियाँ खाद्य जनित बीमारियों के प्रसार में योगदान करती हैं।
  • कमज़ोर विनियामक ढाँचा और प्रवर्तन: विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में मानकों एवं विनियमों में विसंगतियाँ उचित खाद्य सुरक्षा प्रथाओं को बनाए रखने में चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • निरीक्षण और प्रवर्तन हेतु सीमित संसाधनों तथा जनशक्ति के परिणामस्वरूप खाद्य सुरक्षा मानकों की अपर्याप्त निगरानी एवं नियंत्रण होता है।
  • तीव्र शहरीकरण और बदलती खाद्य आदतें: तीव्र शहरीकरण और खान-पान की बदलती आदतें खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ पेश करती हैं।
    • प्रसंस्कृत और रेडी-टू-ईट खाद्य पदार्थों के साथ-साथ सड़क पर बिकने वाले खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के चलते सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये मज़बूत निगरानी एवं विनियमन की आवश्यकता है। 

आगे की राह 

  • खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ बनाना: देश भर में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी तरह से सुसज्जित और मान्यता प्राप्त खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • इन प्रयोगशालाओं को कीटनाशकों, भारी धातुओं और रोगजनकों सहित विभिन्न संदूषकों हेतु तीव्र और सटीक परीक्षण करने में सक्षम होना चाहिये, जिससे असुरक्षित भोजन की समय पर पहचान सुनिश्चित हो सके।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: खाद्य सुरक्षा पर कार्यशालाओं, सेमिनारों और संवादात्मक सत्रों का आयोजन करके सामुदायिक भागीदारी एवं जागरूकता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • खाद्य सुरक्षा के मुद्दों और ज़मीनी स्तर पर समाधानों को लागू करने हेतु स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने की भी आवश्यकता है।
  • खाद्य स्टॉक होल्डिंग्स में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: किसानों के साथ संचार चैनलों को बेहतर बनाने हेतु IT का उपयोग करने से उन्हें अपनी उपज के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जबकि प्राकृतिक आपदाओं एवं जमाखोरी से निपटने हेतु नवीनतम तकनीक के साथ भंडारागारों में सुधार करना भी अति महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके अलावा खाद्यान्न बैंकों को ब्लॉक/ग्राम स्तर पर स्थापित किया जा सकता है, जहाँ से लोगों को खाद्य कूपन के बदले सब्सिडी वाला खाद्यान्न मिल सकता है (जो आधार से जुड़े लाभार्थियों को प्रदान किया जा सकता है)।

  UPSE सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूलन कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में 'क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज' दृष्टिकोण जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा (CCAFS) के नेतृत्व वाली परियोजना का एक भाग है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रम है। 
  2.  CCAFS की परियोजना का संचालन फ्राँस में मुख्यालय वाले अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान (CGIAR) पर सलाहकार समूह के अंतर्गत किया जाता है।
  3.  भारत में अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिये अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं। 
  2.  परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार की मुखिया होगी।
  3.  गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छह महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं। 

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2   
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3   
(d) केवल 3  

उत्तर: (b) 

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

अल नीनो 2023: 2009 की तरह असामान्य रूप से गर्म होना

प्रिलिम्स के लिये:

अल नीनो, ला नीना, अल नीनो-दक्षिणी दोलन

मेन्स के लिये:

अल नीनो और इसके प्रभाव, अल नीनो और ग्लोबल वार्मिंग के बीच संबंध

चर्चा में क्यों? 

भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में एक असामान्य घटना विकसित हो रही है, जो वर्ष 2023 में अल नीनो स्थितियों के उभरने का संकेत दे रही है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के एक साथ गर्म होने की प्रवृत्ति, जो कि आखिरी बार वर्ष 2009 में देखी गई थी, दुनिया भर में समुद्री जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

इस घटना का कारण:

  • जब पूर्वी प्रशांत क्षेत्र गर्म हो जाता है, तो पश्चिमी क्षेत्र को आमतौर पर ठंडा हो जाना चाहिये।
    • हालाँकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में बेसिन स्केल वार्मिंग की स्थिति है। 
  • यह घटना दो तरीके से उत्प्रेरित हो सकती है:
    • प्रशांत क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग और दूसरा प्राकृतिक परिवर्तनशीलता ।
    • ला नीना शीत से अल नीनो ऊष्ण में संक्रमण जो अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) चक्र का हिस्सा है।
  • भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में बेसिन स्केल वार्मिंग:
    • ग्लोबल वार्मिंग के कारण भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र बेसिन स्केल वार्मिंग का अनुभव करता है जिससे पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्र गर्म हो जाते हैं।
    • इस मामले में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र के बेसिन स्केल का माप एक बेसिन या कॉमन वॉटर आउटलेट की स्थानिक सीमा को संदर्भित करता है।
    • हाल ही के डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि 29 मई, 2023 को समुद्र का तापमान वर्ष 2003-2014 के औसत की तुलना में असामान्य रूप से गर्म था।

अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):

इस घटना के संभावित परिणाम:

  • ग्लोबल वार्मिंग: 
    • ला नीना (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के जल का ठंडा होना) के खत्म होने का मतलब है कि समुद्र ऊष्मा को अवशोषित नही कर रहा है जो पूरे वातावरण को गर्म करेगा।
  • भू-भौतिकीय प्रभाव: 
  • प्रवाल विरंजन:
    • समुद्री जल के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने से 70 से 90 प्रतिशत प्रवाल भित्तियों के नष्ट होने का खतरा है, जबकि 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अर्थ है कि प्रवाल भित्तियाँ लगभग 100 प्रतिशत नष्ट हो जाएंगी और पुनः पनप नहीं पाएंगी।

पूर्व की अल नीनो घटनाएँ:

  • वर्ष 1982-83 एवं वर्ष 1997-98 की अल नीनो घटनाएँ 20वीं शताब्दी की सबसे प्रबल अल नीनो घटनाएँ थीं।
  • वर्ष 1982-83 की अल नीनो घटना के दौरान पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत में समुद्र सतह का तापमान सामान्य से 9-18 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • वर्ष 1997-98 की अल नीनो घटना प्रथम अल-नीनो घटना थी जिसकी शुरू से लेकर अंत तक वैज्ञानिक निगरानी की गई थी।
  • वर्ष 1997-98 की अल नीनो घटना ने जहाँ इंडोनेशिया, मलेशिया एवं फिलीपींस में सूखे की स्थिति उत्पन्न कर दी, वहीं पेरू एवं कैलिफोर्निया में भारी बारिश व गंभीर बाढ़ की घटनाएँ देखी गईं।
  • मध्य पश्चिम में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी दर्ज की गई, उस अवधि को “शीत विहीन वर्ष" के रूप में जाना जाता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ एल नीनो ने वर्ष 2016 को रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष बना दिया था।

वर्ष 2023 में अल नीनो का भारत पर प्रभाव: 

  • भारत के लिये कमज़ोर मानसून: मई या जून 2023 में अल नीनो के विकास से दक्षिण-पश्चिम मानसून कमज़ोर हो सकता है जिसके कारण भारत में कुल वर्षा के लगभग 70% वर्षा होती है, साथ ही अभी भी इस पर अधिकांश कृषक निर्भर हैं।
    • हालाँकि मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) और मानसून कम दबाव प्रणाली जैसे उप-मानसूनी कारक वर्ष 2015 में देखे गए थे जो कुछ हिस्सों में अस्थायी रूप से वर्षा में वृद्धि सकते हैं।
  • गर्म तापमान: यह भारत और विश्व के अन्य क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में हीटवेव और सूखे का कारण बन सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाईपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017) 

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर और उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती है। क्या आप सहमत हैं? (2014) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI मौद्रिक नीति समिति: नीतिगत दरें अपरिवर्तित

प्रिलिम्स के लिये:

RBI, मौद्रिक नीति दरें, मौद्रिक नीति समिति (MPC), मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

मौद्रिक नीति, वृद्धि और विकास, RBI एवं इसके मौद्रिक नीति उपकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने उभरती व्यापक आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।

मौद्रिक नीति समिति: 

  • यह वृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैधानिक एवं संस्थागत ढाँचा है।
  • RBI का गवर्नर समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • MPC मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यक नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) निर्धारित करती है।

प्रमुख घोषणाएँ:

  • नीतिगत दरें अपरिवर्तित हैं: 
  • मुद्रास्फीति प्रबंधन पर बल: 
  • मुद्रास्फीति आउटलुक: 
    • खाद्य कीमतों की गतिशीलता: 
      • हेडलाइन मुद्रास्फीति का प्रक्षेपवक्र खाद्य कीमतों की गतिशीलता से प्रभावित होने की संभावना है।
      • मंडियों में आवक और खरीद बढ़ने से गेहूँ की कीमतों में गिरावट देखी जा सकती है।
      • आपूर्ति में कमी और उच्च चारा लागत के कारण दूध की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है।
    • मानसून प्रभाव: 
      • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान खरीफ फसलों के लिये सकारात्मक है।
    • कच्चे तेल की कीमतें और इनपुट लागत:
      • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है लेकिन परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है।
      • शुरुआती सर्वेक्षण के परिणाम फर्मों की इनपुट लागत और आउटपुट कीमतों के सहिष्णु (Hardening) होने की उम्मीदों का संकेत देते हैं।
  • मुद्रास्फीति और विकास अनुमान:
    • CPI मुद्रास्फीति: 
      • वर्ष 2023-24 के लिये CPI मुद्रास्फीति 5.1% अनुमानित है।
      • सामान्य मानसून CPI मुद्रास्फीति को वर्ष 2023-24 के लिये 5.1% अनुमानित किया गया है।
    • GDP वृद्धि: 
      • उच्च रबी फसल उत्पादन, प्रत्याशित सामान्य मानसून और मज़बूत सेवा क्षेत्र चालू वर्ष में निजी खपत एवं समग्र आर्थिक गतिविधि का समर्थन करते हैं।
      • सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय पर ज़ोर दिए जाने से वस्तुओं की कीमतों में नरमी और ऋण वृद्धि से निवेश गतिविधियों के पोषण की उम्मीद है।
      • कम बाह्य मांग, भू-राजनीतिक तनाव और भू-आर्थिक विखंडन विकास परिदृश्य के लिये जोखिम पैदा करते हैं।
      • वर्ष 2023-24 के लिये वास्तविक GDP वृद्धि 6.5% अनुमानित है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2015) 

  1. बैंक दर
  2. खुला बाज़ार परिचालन
  3. सार्वजनिक ऋण
  4. सार्वजनिक राजस्व

उपर्युक्त में से कौन-सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017) 

  1. यह भारतीय रिज़र्व बैंक की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
  2. यह एक 12 सदस्यीय निकाय है जिसमें RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन  किया जाता है।
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3.  बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow