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जैव विविधता और पर्यावरण

उत्तर भारत में शीतकालीन वायु प्रदूषण

  • 27 Dec 2021
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

PM 2.5, CAAQMS, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS), सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR)।

मेन्स के लिये:

उत्तर भारत में सर्दियों में प्रदूषण की समस्या और आगे की राह, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल।

चर्चा में क्यों?

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से बाहर के शहरों पर विशेष ध्यान देते हुए वायु गुणवत्ता के रुझान का विश्लेषण किया है।

  • CSE द्वारा किये गए नवीनतम विश्लेषण में पाया गया है कि जब सर्दियों के दौरान प्रदूषण बढ़ता है, तो पूरे उत्तर भारत में धुंध का अनुभव किया जाता है।

नोट:

  • पार्टिकुलेट मैटर
    • पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), जिसे कणिका पदार्थ भी कहा जाता है, हवा में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूँदों के मिश्रण हेतु एक शब्द है।
    • इसमें समाविष्ट हैं:
      • पीएम-2.5: इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर प्रवेश कर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।
      • पीएम-10: रिसपाइरेबल पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं।
    • पार्टिकुलेट मैटर के स्रोत: कुछ सीधे स्रोत से उत्सर्जित होते हैं, जैसे- निर्माण स्थल, कच्ची सड़कें, खेत, स्मोकस्टैक्स या आग।
  • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE): 
    • सीएसई नई दिल्ली स्थित एक जनहित अनुसंधान और वकालत संगठन है।
    • यह शोध करता है एवं विकास की तात्कालिकता को संप्रेषित करता है जो कि टिकाऊ व न्यायसंगत है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: 
    • इस विश्लेषण का उद्देश्य सर्दियों के दौरान प्रदूषण के उस समकालिक पैटर्न को समझना है, जब वायुमंडलीय परिवर्तन पूरे क्षेत्र में प्रदूषण हो जाता हैं।
    • इस विश्लेषण में छह राज्यों के 56 शहरों में फैले 137 निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (CAAQMS) को शामिल किया गया है।
      • CAAQMS पूरे वर्ष वायु प्रदूषण की वास्तविक समय निगरानी को मापने की सुविधा प्रदान करता है, जिसमें कणिका पदार्थ भी शामिल हैं।
    • उत्तरी क्षेत्र को पाँच उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिनमें शामिल हैं:
      • पंजाब और चंडीगढ़।
      • एनसीआर (दिल्ली और 26 अन्य शहर/कस्बे शामिल जो एनसीआर के भीतर आते हैं)।
      • हरियाणा (एनसीआर में पहले से शामिल शहरों के अलावा)।
      • उत्तर प्रदेश (एनसीआर में शामिल शहरों को छोड़कर)।
      • राजस्थान (एनसीआर में शामिल शहरों को छोड़कर)।
    • यह 1 जनवरी, 2019 से 30 नवंबर, 2021 की अवधि के लिये PM-2.5 के संकेंद्रण में वार्षिक और मौसमी रुझानों का आकलन है।
  • कार्यप्रणाली और डेटा:
  • महत्त्वपूर्ण प्राप्तियाँ:
    • छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर: अधिकांश छोटे शहरों में PM-2.5 का स्तर वार्षिक औसत  से काफी कम है, लेकिन सर्दियों की शुरुआत में जब धुंध पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेती है तथा  पराली की आग और बढ़ जाती है, तो छोटे शहरों में इसका स्तर दिल्ली के बराबर होता है।
    • प्रारंभिक शीतकालीन धुंध पूरे क्षेत्र में फैली होती है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में यह लंबे समय तक बनी रहती है आमतौर पर नवंबर की धुंध पूरे उत्तरी क्षेत्र में सिंक्रनाइज़ रूप में  फैली होती है।
      • लेकिन ये कण बाकी सर्दियों के दौरान केवल दिल्ली, एनसीआर और उत्तर प्रदेश में ही टिके रहते हैं।
      • सर्दियों के दौरान वायुमंडलीय परिवर्तन जिनसे शांत स्थिति, हवा की दिशा में परिवर्तन और परिवेश के तापमान में मौसमी गिरावट होती है, पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण का कारण बनते हैं।
      • नवंबर के दौरान खेत की आग और दिवाली के पटाखों से निकलने वाले धुएंँ से यह एक गंभीर श्रेणी में आ जाता है।
    • 'बहुत खराब' और 'गंभीर' श्रेणियों में वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या: दिल्ली और एनसीआर शहर 2021 में ‘सबसे गंभीर' (Most Severe) दिनों की श्रेणी में सबसे आगे हैं।
    • प्रदूषण उत्पन्न करने वाले सुभेद्य शहर: हालांँकि पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की चपेट में है, वहीं दिल्ली और एनसीआर का कुल वार्षिक औसत इस क्षेत्र में सबसे अधिक है।
    • औद्योगिक शहर पूरे वर्ष  प्रदूषण के प्रति सुभेद्य: इस वर्ष अधिक वर्षा और लंबी मानसून अवधि ने पूरे क्षेत्र में पीएम-2.5 के स्तर को काफी हद तक नीचे ला दिया है।
      • भले ही मानसून ने इस क्षेत्र में समग्र प्रदूषण को कम कर दिया, लेकिन औद्योगिक शहरों में प्रदूषण का स्तर मानसून के दौरान अन्य शहरों की तुलना में अधिक था।
    • खेत में आग की समस्या: सर्दियों के दौरान खेत में आग लगने की घटनाएँ सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। 
      • इसके लिये दो स्तरों पर विश्लेषण किये गए- खेतों में आग की संख्या पर दैनिक प्रवृत्ति जानने के लिये दैनिक रूप से खेतों में लगे आग के आँकड़े इकट्ठा किये गए और औसत अग्नि विकिरण शक्ति (एफआरपी) प्रक्रिया के तहत नासा के उपग्रहों द्वारा लिये गए आँकड़ों पर रिपोर्ट बनाई गई।
        • एफआरपी वास्तव में आग लगने के समय उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर है जिसे मेगावाट (MW) में अंकित किया जाता है।
        • एफआरपी बायोमास बर्निंग से उत्सर्जन को मापने का बेहतर तकनीक है क्योंकि इसमें एफआरपी तीव्रता जलाए गए बायोमास की मात्रा को इंगित करती है।
      • हरियाणा, यूपी, राजस्थान और दिल्ली के बाद इस साल, पंजाब में सर्वाधिक आग लगने की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है
    • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) का स्तर: अक्तूबर और सितंबर की तुलना में नवंबर के दौरान हवा में NO2 की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
      • NO2 का उत्सर्जन दहन स्रोतों और महत्त्वपूर्ण रूप से वाहनों से होता है। 
    • दिवाली के दौरान प्रदूषण में वृद्धि: पटाखे जलाने पर पाबंदी के बावज़ूद दिवाली की रात में प्रदूषण बढ़ जाता है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल

आगे की राह:

  • विश्लेषण ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और एनसीआर के शहरों को सर्दियों के दौरान होने वाले वायुमंडलीय परिवर्तन व प्रदूषण के चक्र को समझने के लिये केंद्र बिंदु में लाकर रख दिया है, ताकि प्रदूषण से संबंधित उलझाने वाली पहेली को समझा जा सके। 
    • इससे पता चलता है कि कम वार्षिक औसत स्तर वाले छोटे शहरों में भी प्रदूषण का स्तर दिल्ली से खराब या उससे भी बदतर है।
    • प्रदूषण फैलाने वाले इन सभी स्रोतों व प्रमुख क्षेत्रों में नियंत्रण हेतु बड़े पैमाने पर तीव्र गति से कार्रवाई की जानी चाहिये। 
  • उत्तरी क्षेत्र के उद्योग और बिजली संयंत्रों में स्वच्छ ईंधन तथा प्रौद्योगिकी तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वॉकिंग और साइकलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं कचरे के पूर्ण पृथक्करण, पुनर्चक्रण हेतु नगरपालिका सेवाओं में वृद्धि के साथ सभी राज्यों में सामंजस्यपूर्ण कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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