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भूगोल

मिल्की सी फिनोमिना

  • 28 Aug 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मिल्की सी, महासागरीय धाराएँ, हिंद महासागर द्विध्रुव

मेन्स के लिये:

मिल्की सी से संबंधित उपकरण एवं इसकी खोज का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

चमकीले दूधिया समुद्रों/मिल्की सी (Milky Seas) को खोजने के लिये वैज्ञानिक नई उपग्रह प्रौद्योगिकी डे/नाइट बैंड का उपयोग कर रहे हैं।

Milky-Sea-Phenomenon

प्रमुख बिंदु 

  • मिल्की सी के बारे में:
    • इसे मारेल (Mareel) भी कहा जाता है, यह समुद्री बायोलुमिनसेंस (Bioluminescence) का एक दुर्लभ रूप है जहांँ रात के समय समुद्री सतह एक व्यापक, समान और स्थिर सफेद चमक उत्पन्न करती है।
      • बायोलुमिनसेंस एक जीवित जीव (Living Organism) के भीतर एक रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा उत्पन्न प्रकाश है।
    • दुनिया भर में प्रतिवर्ष लगभग दो या तीन मिल्की सी/दूधिया समुद्र देखे जाते हैं, ज़्यादातर की उत्पत्ति उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर के जल में इंडोनेशिया के तट से दूर होती हैं।
    • कभी-कभी यह स्थिति समुद्री सतह पर 1,00,000 किमी2 से अधिक के क्षेत्र में कई दिनों से लेकर हफ्तों तक बनी रहती हैं तथा प्रचलित महासागरीय धाराओं के मध्य में ये शांत रूप से बहते हैं। ये समुद्री सतह के तापमान और समुद्री बायोमास की संकीर्ण श्रेणियों के साथ सीधी रेखा में जल के द्रव्यमान को अलग करते हैं।
  • कारण
    • मैक्रोस्केल पर व्यक्त होने वाले चमकदार बैक्टीरिया (Luminous Bacteria) और माइक्रोएल्गे (Microalgae) के मध्य एक सैप्रोफाइटिक संबंध (Saprophytic Relationship) उत्पन्न होता है।
      • जल की सतह पर एक विब्रियो हार्वेई (Vibrio Harveyi) नामक चमकदार बैक्टीरिया का शैवाल के साथ कॉलोनाइजिंग स्ट्रेन पाया गया है।
    • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD):
      • IOD अपने सकारात्मक चरण के दौरान हिंद महासागर के पश्चिमी हिस्से में गर्म पूलिंग पानी के साथ उष्ण/नम परिस्थितियों और पूर्वी हिस्से में तेज़ पूर्वी हवाओं के साथ ठंडी/शुष्क स्थितियों से मेल खाता है।
      • ये हवाएंँ ठंडे, पोषक तत्त्वों से पूर्ण तटीय जल को ऊपर उठाती हैं जो धाराओं के साथ खुले समुद्र की और बहती हैं, जिससे एक व्यापक क्षेत्र में शैवाल खिलने (Algal Blooms) की घटना होती है तथा यह संभावित रूप से दूधिया समुद्री की उत्पत्ति हेतु अनुकूल परिस्थितियांँ होती हैं। 
  • उद्देश्य:
    • चमकदार बैक्टीरिया कोलोनी में चमकीले कणों को उत्पन्न करते हैं। इस चमक का उद्देश्य उन मछलियों को आकर्षित करना हो सकता जो इन्हें अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।  
    • ये बैक्टीरिया मछलियों के पेट में पनपते हैं, इसलिये जब उनकी आबादी उनके मुख्य भोजन की आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो मछली का पेट इनके पनपने का एक दूसरा बढ़िया विकल्प बन जाता है।
  • खोज:
    • सूचना का स्रोत: ‘मिल्की सी’ की मौजूदगी से संबंधित सूचना मुख्य रूप से प्रमुख शिपिंग लेन में केंद्रित अंतरिक्ष उपग्रहों के माध्यम से दर्ज की गई है।
      • वर्ष 1995 में लो-लाइट उपग्रह माप ने सोमालिया तट से दूर एक ‘मिल्की सी’ का पहला अवलोकन प्रदान किया था।
    • संबंधित उपकरण
      • ऑपरेशनल लाइनस्कैन सिस्टम (OLS): यह अमेरिका के सैन्य मौसम उपग्रहों की ‘रक्षा मौसम विज्ञान उपग्रह कार्यक्रम’ (DMSP) शृंखला का हिस्सा है।
        • यह उपकरण काफी कमज़ोर प्रकाश स्रोतों का पता लगाने में भी सक्षम है।
      • डे/नाइट बैंड (DNB): यह अमेरिका के ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ के ‘विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट’ (VIIRS) के हिस्से के रूप में योजनाबद्ध है।
    • सीमाएँ: विशिष्ट तौर पर ‘मिल्की सी’ का पता लगाने के दृष्टिकोण से इन उपकरणों की कई सीमाएँ हैं, क्योंकि इन्हें उसके लिये डिज़ाइन नहीं किया गया है।
      • ‘ऑपरेशनल लाइनस्कैन सिस्टम’ अशांत-पानी से जुड़ी अधिक सामान्य बायोल्यूमिनेशन घटनाओं का पता नहीं लगा सकता है, क्योंकि ऐसी घटनाएँ काफी छोटे स्तर पर होती हैं।
      • डे/नाइट बैंड (DNB) की स्पेक्ट्रल प्रतिक्रिया ‘मेसोस्फेरिक एयरग्लो’ उत्सर्जन के प्रति भी संवेदनशील होती है, जो बादलों से परावर्तित प्रकाश और अंतरिक्ष में प्रत्यक्ष उत्थान उत्सर्जन दोनों के रूप में होता है।
        • ‘वायुमंडलीय गुरुत्वाकर्षण तरंगें’ प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करती हैं और ‘मिल्की सी’ से अपेक्षित स्थानिक पैमानों के समान चमक के पैटर्न बनाती हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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