लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 09 Jan, 2024
  • 48 min read
इन्फोग्राफिक्स

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता


इन्फोग्राफिक्स

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023

और पढ़ें: भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम, 2023


शासन व्यवस्था

पृथ्वी विज्ञान योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी) योजना, अक्रॉस योजना, ओ-स्मार्ट योजना, PACER

मेन्स के लिये:

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान, जलवायु परिवर्तन विज्ञान को समझने के लिये प्रारूप प्रणाली, सरकारी नीतियाँ, आपदा प्रबंधन

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की व्यापक योजना “पृथ्वी विज्ञान” (PRITHvi VIgyan- PRITHVI) को मंज़ूरी दी है।

  • इस योजना में वर्तमान में चल रही पाँच उप-योजनाएँ शामिल हैं जिसका लक्ष्य पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में सुधार लाना तथा सामाजिक, पर्यावरण एवं आर्थिक कल्याण के लिये आवश्यक सेवाएँ प्रदान करना है।
  • मंत्रिमंडल ने संयुक्त रूप से एक “लघु उपग्रह” विकसित करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) तथा मॉरीशस रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल (MRIC) के बीच एक समझौते को भी मंज़ूरी दी।

नोट:

  • भारत और मॉरीशस के बीच 1980 के दशक से सहयोग का इतिहास रहा है जब ISRO ने मॉरीशस में एक ग्राउंड स्टेशन की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य अपने प्रक्षेपण वाहन (Launch Vehicle) तथा उपग्रह मिशनों के लिये ट्रैकिंग व टेलीमेट्री संबंधी सहायता प्राप्त करना था।

“पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी)” योजना क्या है?

  • परिचय:
  • उद्देश्य:
    • पृथ्वी प्रणाली और परिवर्तन के महत्त्वपूर्ण संकेतों को रिकॉर्ड करने के लिये वायुमंडल, महासागर, भूमंडल, हिममंडल तथा पृथ्वी के ठोस भाग के दीर्घकालिक अवलोकन को बढ़ाने एवं बनाए रखने के लिये
    • मौसम, महासागर और जलवायु संकटों को समझने, उनका पूर्वानुमान करने तथा जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझने के लिये मॉडलिंग सिस्टम का विकास।
    • नई घटनाओं और संसाधनों के खोज की दिशा में पृथ्वी के ध्रुवीय तथा उच्च समुद्री क्षेत्रों की खोज;
    • सामाजिक अनुप्रयोगों के लिये समुद्री संसाधनों की खोज और संधारणीय दोहन के लिये प्रौद्योगिकी का विकास।
    • पृथ्वी प्रणाली विज्ञान से प्राप्त ज्ञान और अंतर्दृष्टि का सामाजिक, पर्यावरणीय तथा आर्थिक लाभ हेतु सेवाओं में रूपांतरण।
  • भारत के लिये लाभ:
    • PRITHVI चक्रवात, बाढ़, हीट वेव/ग्रीष्म लहर और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिये उन्नत चेतावनी सेवाएँ प्रदान करता है, जिससे त्वरित तथा प्रभावी आपदा प्रबंधन की सुविधा मिलती है।
      • इसके अतिरिक्त, यह योजना भूमि और महासागर दोनों के लिये सटीक मौसम पूर्वानुमान सुनिश्चित करती है, सुरक्षा बढ़ाती है तथा प्रतिकूल मौसम की स्थिति में संपत्ति के नुकसान को कम करती है।
    • PRITHVI ने पृथ्वी के तीन ध्रुवों, आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय तक अपनी पहुँच का विस्तार किया है तथा इन स्थानों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई है।
    • यह योजना पृथ्वी विज्ञान में आधुनिक प्रगति के साथ तालमेल बिठाते हुए समुद्री संसाधनों की खोज और टिकाऊ दोहन के लिये प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करती है।

शासन व्यवस्था

वर्ष 2024 में OTT का दृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ष 2024 में OTT का दृश्य/आउटलुक, ओवर-द-टॉप (OTT) मार्केट, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम 2021

मेन्स के लिये:

वर्ष 2024 में OTT का आउटलुक।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत में OTT मार्केट वर्तमान में मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में विकास और लाभप्रदता के मध्य दुविधा से जूझ रहा है। वर्ष 2023 में, भारत में ओवर-द-टॉप (OTT) मार्केट ने महत्त्वपूर्ण व्यवधानों और चुनौतियों का अनुभव किया, जिससे इसके विकास में असंतुलन हुआ है।

ओवर-द-टॉप क्या है?

  • परिचय:
    • OTT का मतलब “ओवर-द-टॉप (Over-The-Top)” है, यह शब्द पारंपरिक प्रसारण, केबल या सैटेलाइट टी.वी. प्लेटफार्मों को दरकिनार करते हुए दर्शकों को सीधे इंटरनेट पर सामग्री वितरण का वर्णन करने के लिये उपयोग किया जाता है।
    • OTT बाज़ार उस उद्योग को संदर्भित करता है जो इंटरनेट के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं को स्ट्रीमिंग मीडिया सेवाएँ, फिल्में, टी.वी. शो, संगीत और अन्य सामग्री प्रदान करता है।
    • उदाहरण: नेटफ्लिक्स (Netflix), डिज़्नी प्लस (Disney+), हुलु (Hulu), अमेज़ॅन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video), पीकॉक (Peacock), क्यूरियोसिटी-स्ट्रीम (CuriosityStream), प्लूटो टी.वी. (Pluto TV) और अन्य।
  • OTT के लाभ:
    • फ्लेक्सीबिलिटी और सुविधा:
      • उपयोगकर्त्ता विशिष्ट सुविधा प्राप्त करते हुए, कभी भी, कहीं भी, कई उपकरणों पर सामग्री को एक्सेस कर सकते हैं।
      • विविध सामग्री: 
      • OTT प्लेटफॉर्म विभिन्न पसंद और रुचियों को पूरा करने वाली फिल्मों, टी.वी. शो, वृत्तचित्र तथा मूल प्रस्तुतियों सहित सामग्री की एक विस्तृत शृंखला पेश करते हैं।
    • वैयक्तिकरण:
      • ये प्लेटफॉर्म देखने की आदतों, उपयोगकर्त्ता अनुभव और सामग्री खोज को बढ़ाने के आधार पर सामग्री की अनुशंसा करने के लिये एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं।
    • लागत प्रभावशीलता:
      • पारंपरिक केबल अथवा सैटेलाइट टी.वी. सब्सक्रिप्शन की तुलना में OTT सेवाएँ अमूमन अधिक किफायती मूल्य निर्धारण विकल्प प्रदान करती हैं, जिसमें विज्ञापन विकल्प अथवा सब्सक्रिप्शन प्राप्त करने के साथ मुफ्त कॉन्टेंट/सामग्री की सुविधा प्रदान की जाती है।
    • वैश्विक पहुँच:
      • OTT प्लेटफॉर्म भौगोलिक बाधाओं का समाधान कर विश्व भर में उपयोगकर्त्ताओं को उनके मन चाहे स्थान पर सामग्री पहुँचाने में सहायता प्रदान करता है।
  • OTT की सीमाएँ:
    • इंटरनेट पर निर्भरता:
      • OTT में निर्बाध स्ट्रीमिंग के लिये हाई-स्पीड इंटरनेट महत्त्वपूर्ण है। खराब कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में सामग्री तक पहुँच में बाधा का सामना करना पद सकता है।
    • सामग्री की विविधता:
      • विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर सामग्री संबंधी विशेषाधिकारों के परिणामस्वरूप दर्शकों की संख्या प्रभावित होती है जिससे विशेष शो अथवा फिल्मों तक पहुँचने के लिये उपयोगकर्त्ताओं को एकाधिक सब्सक्रिप्शन की आवश्यकता हो सकती है।
    • डेटा संबंधी चिंताएँ:
      • OTT प्लेटफॉर्म सामग्री को उपयोगकर्त्ता के उपयुक्त बनाने के लिये उनका डेटा एकत्र करते हैं जिनका उपयोग अनुचित तरीके से किया जा सकता है अथवा उपयोगकर्त्ता सहमति के बिना तीसरे पक्ष के साथ डेटा साझा किया जा सकता है जिससे गोपनीयता संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • सामग्री की गुणवत्ता तथा उपलब्धता:
      • हालाँकि सामग्री की उपलब्धता अत्यधिक है किंतु सामग्री की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त सामग्री की व्यापक उपलब्धता उपयोगकर्त्ताओं के लिये गुणवत्तापूर्ण सामग्री की खोज को अत्यधिक कठिन बना सकती है।

वर्ष 2023 में OTT की स्थिति तथा वर्ष 2024 हेतु इसका परिदृश्य क्या है?

  • वर्ष 2023 में OTT परिदृश्य में निशुल्क प्रीमियम सामग्री की प्रस्तुति करने वाले प्लेटफॉर्म अन्य की तुलना में अत्यधिक प्रभावित हुए तथा निशुल्क प्रस्तुति करने के परिणामस्वरूप अंततः उन्हें सब्सक्रिप्शन से प्राप्त आय में घाटे का सामना करना पड़ा।
  • सामग्री संबंधी मुद्रीकरण की चुनौतियाँ बनी रहीं तथा उच्च सामग्री लागत के कारण कोई भी लाभ-अलाभ (break-even) की स्थिति में नहीं था।
  • फ्रीमियम मॉडल की प्रस्तुति हुई जिससे पासवर्ड साझा करने तथा विज्ञापनों को एकीकृत करने पर अंकुश लगा। विनियामक चिंताएँ बनी रहीं किंतु सेंसरशिप को समर्थन नहीं दिया गया जिससे चयनात्मक डेटा साझाकरण को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2024 के परिदृश्य में प्रयोगात्मक सामग्री में गिरावट के साथ लागत-प्रभावशील सामग्री रणनीतियों की अपेक्षा है। Zee/Sony जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म के बीच विलय तथा RIL/Disney जैसे संभावित सहयोग बाज़ार की गतिशीलता को पुनर्गठित कर सकते हैं, जिससे सौदेबाज़ी की शक्ति एवं सामग्री लागत प्रभावित हो सकती है।
  • मूल्य-निर्धारण रणनीतियाँ विज्ञापनों को साझा करने और एम्बेड करने पर संभावित तीव्र सीमाओं को विकसित करना जारी रखेंगी।
  • धार्मिक या अल्पसंख्यक भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता पर बल देते हुए नियामक अनुपालन सख्त हो सकता है। दर्शकों के रुझान में पारदर्शिता बढ़ने से विज्ञापनदाताओं और रचनाकारों को मदद मिलेगी।

ओटीटी प्लेटफॉर्मों को विनियमित करने वाले कानून क्या हैं?

  • ओटीटी प्लेटफॉर्मों को विनियमित करने के लिये, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय  (Ministry of Electronics and Information Technology-MeitY) ने वर्ष 2022 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किया।
  • ओटीटी प्लेटफार्मों के लिये दिशानिर्देश एक सॉफ्ट-टच स्व-नियामक वास्तुकला स्थापित करते हैं, जिसमें आचार संहिता और तीन स्तरीय शिकायत निवारण प्रक्रिया शामिल है।
    • प्रत्येक प्रकाशक को 15 दिनों में शिकायतें प्राप्त करने और उनका निवारण करने के लिये भारत में स्थित एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना चाहिये।
    • इसके अलावा, प्रत्येक प्रकाशक को एक स्व-नियामक समूह में शामिल होना होगा। ऐसे संगठन को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ पंजीकृत होना होगा तथा 15 दिनों के अंदर प्रकाशन द्वारा हल नहीं किये गए मुद्दों का समाधान करना होगा।
    • सूचना प्रसारण मंत्रालय और मंत्रालय द्वारा गठित अंतर-विभागीय समिति तृतीय-स्तरीय निरीक्षण तंत्र का गठन करती है।
  • वे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की भागीदारी के बिना सामग्री के स्व-वर्गीकरण की सुविधा प्रदान करते हैं।

ओटीटी के बेहतर नियमन के लिये क्या किया जा सकता है?

  • स्व-विनियमन ढाँचा:
    • पारंपरिक मीडिया के समान पारदर्शी सामग्री दिशानिर्देश और रेटिंग सिस्टम स्थापित करने के लिये ओटीटी प्लेटफॉर्मों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • उद्योग-आधारित स्व-नियमन रचनात्मकता को प्रभावित किये बिना चिंताओं को दूर कर सकता है।
  • सहयोगात्मक निरीक्षण निकाय:
    • उद्योग विशेषज्ञों, हितधारकों और सरकारी प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए स्वतंत्र निकाय बनाना अनिवार्य है। ये निकाय सामग्री की निगरानी कर सकते हैं, शिकायतों की समीक्षा कर सकते हैं तथा उद्योग मानक निर्धारित कर सकते हैं।
  • स्पष्ट सामग्री वर्गीकरण और रेटिंग:
    • उपयोगकर्त्ताओं को आयु-उपयुक्तता और सामग्री विषयों के आधार पर सूचित देखने के विकल्प चुनने में मदद करने के लिये मानकीकृत सामग्री वर्गीकरण प्रणालियों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • डेटा शेयरिंग में पारदर्शिता:
    • OTT प्लेटफार्मों को दर्शकों के रुझान को चुनिंदा रूप से निरीक्षण निकायों के साथ साझा करने, सामग्री मूल्यांकन में सहायता करने और दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये प्रोत्साहित कीजिये।
  • नियमित ऑडिट और अनुपालन जाँच:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये समय-समय पर ऑडिट करने की आवश्यकता है कि प्लेटफॉर्म स्थापित दिशा-निर्देशों का पालन करें, जवाबदेही और ज़िम्मेदार सामग्री क्यूरेशन को बढ़ावा दें।

निष्कर्ष

  • OTT ने लचीलापन, विकल्प और सुविधा प्रदान करके लोगों के मनोरंजन के तरीके को बदल दिया है।
  • तकनीकी प्रगति, बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं और मीडिया तथा मनोरंजन के गतिशील परिदृश्य के कारण बाज़ार का विकास जारी है।

सामाजिक न्याय

पश्चिम बंगाल में बाल विवाह में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

बाल विवाह, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA), कन्याश्री प्रकल्प योजना

मेन्स के लिये:

बाल विवाह से जुड़े प्रमुख कारक, विधायी ढाँचा और भारत में बाल विवाह से संबंधित पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत में बाल विवाह पर हाल ही में किये गए लैंसेट अध्ययन में देश भर में बाल विवाह में समग्र कमी पर प्रकाश डाला गया। हालाँकि इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कुछ राज्यों, विशेष रूप से बिहार (16.7%), पश्चिम बंगाल (15.2%), उत्तर प्रदेश (12.5%) और महाराष्ट्र (8.2%) ने सामूहिक रूप से लड़कियों में बाल विवाह के कुल बोझ में आधे से अधिक का योगदान दिया। 

  • बाल विवाह पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल में कई नीतिगत हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के बावजूद, इस क्षेत्र में बाल विवाह की घटनाओं में 32.3% की पर्याप्त वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि 5,00,000 से अधिक अतिरिक्त लड़कियों की बचपन में ही शादी के अनुरूप है।

नोट:

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ( 2019-21): 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 इंगित करता है कि 18 वर्ष से पहले शादी करने वाली 20-24 वर्ष की महिलाओं की व्यापकता पश्चिम बंगाल में 41.6% के उच्च स्तर पर बनी हुई है, जबकि राष्ट्रीय आँकड़ा 23.3% है।

क्या पश्चिम बंगाल में नीतिगत हस्तक्षेप से बाल विवाह पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगा है?

  • पश्चिम बंगाल में बाल विवाह रोकने के लिये नीतिगत हस्तक्षेप:
    • कन्याश्री प्रकल्प योजना:
      • वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया, कन्याश्री प्रकल्प 13 से 18 वर्ष की किशोर लड़कियों की स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित करता है और साथ ही बाल विवाह को हतोत्साहित करता है। वर्ष 2023-24 के पश्चिम बंगाल बजट के अनुसार, इस योजना में 81 लाख लड़कियों को शामिल किया गया है।
        • इस योजना को वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।
      • जबकि राज्य में लड़कियों का स्कूल नामांकन बढ़ा है, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों और लैंसेट अध्ययन के आधार पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या योजना ने बाल विवाह को रोकने के अपने वादे को हासिल किया है।
    • रूपश्री प्रकल्प:
      • कन्याश्री के अलावा, राज्य सरकार रूपश्री प्रकल्प चलाती है, जो लड़कियों की शादी के लिये नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
        • कुछ परिवार दोनों योजनाओं से लाभ उठाते हैं, स्कूल योजना का लाभ उठाने के तुरंत बाद विवाह का आयोजन करते हैं।
  • शैक्षिक प्रगति और बाल विवाह दरें:
    • पिछले कुछ वर्षों में स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, फिर भी पश्चिम बंगाल में बाल विवाह की घटनाएँ अधिक बनी हुई हैं।
      • वर्ष 2020-21 के लिये उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण में पश्चिम बंगाल में लड़कियों के नामांकन की अनुमानित संख्या 9.29 लाख बताई गई है, जो लड़कों के नामांकन से अधिक है जो 8.63 लाख थी।
    • NFHS-5 के अनुसार, 88% से अधिक साक्षरता दर वाले पूर्व मेदिनीपुर ज़िले में बाल विवाह की सबसे अधिक घटनाएँ 57.6% से अधिक हैं।
    • विशेषज्ञों ने कहा कि पश्चिम बंगाल में प्रवासन से बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है क्योंकि सामाजिक मानदंडों और आर्थिक कारकों के कारण परिवार अविवाहित बेटियों को छोड़ने से डरते हैं।
      • यह एक ऐसे चक्र को कायम रखता है जहाँ सांस्कृतिक अपेक्षाएँ पुरुषों के काम करने के दौरान पत्नियों द्वारा बच्चे पैदा करने के लिये जल्दी विवाह को प्राथमिकता देती हैं।
  • कानून कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • सामाजिक मुद्दों के अलावा, कानून कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बाल विवाह के बने रहने में योगदान करती हैं।
      • पश्चिम बंगाल में बाल विवाह निषेध अधिनियम (The Prohibition of Child Marriage Act - PCMA), 2006 के तहत वर्ष 2021 में 105 मामले चिंताजनक स्थिति उत्पन्न करते हैं। क्योंकि तुलनात्मक रूप से, कम आबादी वाले राज्यों में अधिक मामले दर्ज किये गए।
    • मंत्रालय ने बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिये विवाह की आयु बढ़ाकर 21 करने का प्रस्ताव है, जो वर्तमान में संसदीय समीक्षा के अधीन है।
      • डेटा कानून प्रवर्तन में कमियों को दर्शाता है और व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

बाल विवाह के प्रभाव क्या हैं?

  • बचपन खत्म होना:
    • बाल विवाह एक वैश्विक समस्या है तथा गरीबी के कारण यह और भी जटिल हो गई है। यह किसी लड़के/लड़की का बचपन अचानक समाप्त कर देता है, उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने से पहले ही वयस्कता में धकेल देता है।
      • घरवालों की सहमति से हुए विवाहों में अक्सर लड़कियाँ काफी उम्रदराज पुरुषों से शादी करती हैं, जिससे उनके सामने आने वाली चुनौतियाँ और बढ़ जाती हैं।
      • कम उम्र में शादी करने से लड़कियों के स्कूल में बने रहने की संभावना काफी कम हो जाती है, जिससे आजीवन आर्थिक प्रभाव पड़ता है।
      • बाल विवाह के कारण बचपन में दूल्हे को स्कूल छोड़ना पड़ता है और वे अक्सर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिये कम वेतन वाली नौकरियों में संलिप्त हो जाते हैं।
      • बाल दुल्हन और दूल्हे अक्सर अलगाव का अनुभव करते हैं तथा उनकी स्वतंत्रता कम हो जाती है, जिससे उनकी सामाजिक वार्ता एवं व्यक्तिगत स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
  • मानवाधिकार का उल्लंघन:
    • बाल विवाह को मानवाधिकारों का उल्लंघन और यौन तथा लिंग आधारित हिंसा का एक स्वीकृत रूप माना जाता है; बाल विवाह का नकारात्मक प्रभाव राज्य में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर दिखाई देता है।
    • बाल वधुओं को अक्सर उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है, जिनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और सक्रिय भागीदारी के अवसर शामिल हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund - UNICEF) बाल विवाह को लड़कियों और लड़कों दोनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करता है।
      • प्रत्येक वर्ष, लगभग 12 मिलियन से अधिक लड़कियों की विवाह 18 वर्ष की उम्र से पूर्व हो जाएगी और उनमें से, 4 मिलियन 15 वर्ष से कम उम्र की हैं।
      • सेव द चिल्ड्रेन की ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2020 और वर्ष 2025 के दौरान वैश्विक स्तर पर अतिरिक्त 2.5 मिलियन लड़कियों को बाल विवाह का खतरा है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण सभी प्रकार की लिंग-आधारित हिंसा में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य निहितार्थ:
    • बाल विवाह का प्रतिकूल प्रभाव मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य तक पर पड़ता है।
      • बाल वधुएँ प्रायः किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं, जिससे गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त यह प्रथा लड़कियों को परिवार और मित्रों से अलग कर देती है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ सकता है।
    • बाल वधुओं में भी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) होने की आशंका अधिक होती है।

बाल विवाह से निपटने के लिये क्या पहल हैं?

आगे की राह 

  • विधायी उपायों के माध्यम से बाल विवाह उन्मूलन को प्राथमिकता देने के लिये राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति का समन्वय आवश्यक है।
    • पंचायतों, स्कूलों और स्थानीय समुदायों सहित सभी हितधारकों को शामिल करते हुए सामाजिक अभियान चलाए जाएँ क्योंकि मौजूदा कानूनों को लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना ज़मीनी स्तर पर स्थिति में उतनी तेज़ी से सुधार संभव नहीं होगा जितना देश के अन्य हिस्सों में हुआ है।
  • PCMA 2006 के तहत बाल विवाह मामलों पर नियमित रूप से अद्यतन तथा विस्तृत जानकारी प्रदान कर रिपोर्टिंग व पारदर्शिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • प्रवर्तन में सुधार के लिये खामियों तथा आवश्यक क्षेत्रों की पहचान करने के लिये PCMA 2006 की व्यापक समीक्षा की सुविधा प्रदान करना।
  • संसदीय स्थायी समिति द्वारा बाल-विवाह प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को शीघ्र मंज़ूरी देने का समर्थन करना।
    • यह विधेयक महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिये PCMA 2006 में संशोधन करता है। इसके अतिरिक्त यह विधेयक किसी भी अन्य कानून, प्रथा को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
  • स्वायत्तता तथा निर्णय लेने के लिये लड़कियों को जागरूकता, कौशल एवं समर्थन व्यवस्था के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)


भारतीय राजव्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987, सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority - NALSA), राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authorities - SLSA)।

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति,विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई को  सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee - SCLSC) के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • विधिक सेवा समिति का विचार सबसे पहले 1950 के दशक में आया था, वर्ष 1980 में तत्कालीन SC के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति की स्थापना की गई थी।
    • विधिक सेवा समिति को लागू करने वाली समिति ने पूरे भारत में विधिक सहायता गतिविधियों की निगरानी शुरू कर दी।
  • परिचय:
    • SCLSC का गठन शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले मामलों में “समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ” प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 3A के तहत किया गया था।
    • अधिनियम की धारा 3A में कहा गया है कि  राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority - NALSA) इस समिति का गठन करेगी।
    • इसमें एक सर्वोच्च न्यायालय (SC) का वर्तमान न्यायाधीश, जो अध्यक्ष है, के साथ-साथ केंद्र द्वारा निर्धारित अनुभव और योग्यता रखने वाले अन्य सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष और अन्य सदस्यों दोनों को भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI) द्वारा नामित किया जाएगा।
    • इसके अलावा, CJI समिति में सचिव की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • सदस्य:
    • SCLSC में एक अध्यक्ष तथा CJI द्वारा नामित नौ सदस्य शामिल होते हैं। समिति CJI के परामर्श से केंद्र द्वारा निर्धारित अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकती है।
    • इसके अतिरिक्त NALSA नियम, 1995 के नियम 10 में SCLSC सदस्यों की संख्या, अनुभव तथा अर्हताएँ शामिल हैं।
    • 1987 अधिनियम की धारा 27 के तहत केंद्र को अधिनियम के उपबंधो को कार्यान्वित करने के लिये अधिसूचना द्वारा CJI के परामर्श से नियम बनाने का अधिकार है।

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 1987 में विधिक सहायता कार्यक्रमों को वैधानिक आधार प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम क्रियान्वित किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं, बच्चों, SC (अनुसूचित जाति)/ST (अनुसूचित जनजाति) तथा EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) श्रेणियों, औद्योगिक श्रमिकों, दिव्यांगजनों सहित पात्र समूहों को निशुल्क व सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करना है।
  • NALSA:
    • इस अधिनियम के तहत विधिक सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी व मूल्यांकन करने तथा विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु नीतियों के निर्माण के लिये वर्ष 1995 में NALSA का गठन किया गया था।
    • विधिक सहायता तथा सहयोग प्रदान करने के लिये अधिनियम के तहत एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क की परिकल्पना की गई।
    • यह विधिक सहायता योजनाओं तथा कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों एवं गैर-सरकारी संगठनों को निधि व अनुदान भी उपलब्ध कराता है।
  • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण:
    • इसके बाद, हर राज्य में NALSA की नीतियों और निर्देशों को लागू करने, लोगों को मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करने एवं लोक अदालतों का संचालन करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) की स्थापना की गई।
    • SLSA का नेतृत्व संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और इसके कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ HC न्यायाधीश शामिल होते हैं। जबकि HC मुख्य न्यायाधीश SLSA के संरक्षक-प्रमुख हैं, CJI, NALSA के संरक्षक-प्रमुख हैं।
  • ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण:
    • इसी प्रकार, ज़िलों और अधिकांश तालुकों में ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authorities- DLSA) तथा तालुक कानूनी सेवा समितियाँ स्थापित की गईं। प्रत्येक ज़िले में ज़िला न्यायालय परिसर में स्थित, प्रत्येक DLSA की अध्यक्षता संबंधित ज़िले के ज़िला न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
    • तालुका या उप-विभागीय कानूनी सेवा समितियों का नेतृत्व एक वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश करता है। सामूहिक रूप से ये निकाय अन्य कार्यों के साथ-साथ कानूनी जागरूकता शिविर आयोजित करते हैं, मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करते हैं और प्रामाणित आदेश प्रतियाँ एवं अन्य कानूनी दस्तावेज़ों की आपूर्ति प्राप्त करते हैं।

वे कौन से संवैधानिक प्रावधान हैं जो भारत में कानूनी सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाते हैं?

  • भारतीय संविधान के कई प्रावधानों में कानूनी सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। अनुच्छेद 39A में कहा गया है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देगा और विशेष रूप से, उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी नागरिक को आर्थिक या अन्य विकलांगताओं के कारण न्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए।
  • इसके अलावा, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 22(1) (गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित होने का अधिकार) भी राज्य के लिये विधि के समक्ष समानता तथा समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली विधिक प्रणाली सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q1. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. इसका उद्देश्य समान अवसरों के आधार पर समाज के कमज़ोर वर्गों को निःशुल्क एवं सक्षम विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
  2. यह देश भर में विधिक कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश जारी करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


भारतीय अर्थव्यवस्था

अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, शॉर्ट-सेलिंग, नेकेड शॉर्ट सेलिंग, टैक्स हेवन, जस्टिस सप्रे समिति, वायदा और विकल्प।

मेन्स के लिये:

भारत में शॉर्ट-सेलिंग का विनियमन, पूंजी बाज़ार से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अडानी समूह के खिलाफ अमेरिका स्थित फर्म, हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित याचिकाओं की एक शृंखला पर अपना फैसला सुनाया।

  • शीर्ष अदालत ने मामले को संभालने में SEBI के प्रति अपने विश्वास की पुष्टि करते हुए जाँच को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से अन्य निकायों में स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया।
  • साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सेबी को यह निर्धारित करने के लिये अपने जाँच अधिकार का उपयोग करने का निर्देश दिया कि क्या हिंडनबर्ग रिपोर्ट की कम बिक्री वाली कार्रवाइयों ने कानूनों का उल्लंघन किया है, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों को नुकसान हुआ है।

अडानी-हिंडनबर्ग विवाद और सेबी की जाँच के संबंध में  सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति क्या है?

  • पृष्ठभूमि: 
    • हिंडनबर्ग के आरोप: जनवरी 2023 में, हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदानी समूह पर स्टॉक हेराफेरी लेखांकन धोखाधड़ी और फंड के प्रबंधन के लिये अनुचित टैक्स हेवन तथा शेल कंपनियों का उपयोग करने का आरोप लगाया, जिससे शेयर बाज़ार पर काफी प्रभाव पड़ा।
  • याचिकाएँ और तर्क:
    • दायर की गई याचिकाएँ: राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का हवाला देते हुए अदालत की निगरानी में जाँच की मांग करते हुए विभिन्न याचिकाएँ दायर की गईं।
      • उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बाज़ार नियामक सेबी निष्पक्ष जाँच करने के लिये पर्याप्त सक्षम या स्वतंत्र नहीं है।
    • विपक्ष में तर्क: अडानी समूह ने आरोपों का खंडन किया और इसके लिये गलत सूचना तथा निहित स्वार्थों को ज़िम्मेदार ठहराया।
      • सेबी ने जाँच से निपटने में अपनी क्षमता और स्वतंत्रता का बचाव किया।
  • हालिया निर्णय: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच को अन्य निकायों को स्थानांतरित करने से इनकार करते हुए अडानी समूह और सेबी के पक्ष में फैसला सुनाया
      • अदालत ने माना कि जाँच स्थानांतरित करने की शक्तियों का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिये, न कि संज्ञान के लिये तर्क (cogent justifications) के अभाव में।
    • न्यायालय ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को अविश्वसनीय माना और इसका उद्देश्य चयनात्मक तथा विकृत जानकारी के माध्यम से बाज़ार को प्रभावित करना था।
      • सेबी की सत्यनिष्ठा को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने सेबी की जाँच को तीन महीने के भीतर तेज़ी से पूरा करने का निर्देश दिया।

नोट: शेयर मूल्य में हेरफेर तथा लेखांकन धोखाधड़ी के लिये अडानी समूह के विरुद्ध हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के बाद बाज़ार में अस्थिरता के कारण निवेशकों को नुकसान होने के बाद संभावित नियामक विफलताओं की जाँच के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में न्यायमूर्ति सप्रे समिति का गठन किया।

शॉर्ट सेलिंग क्या है?

  • परिचय: 
    • शॉर्ट सेलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें एक निवेशक किसी स्टॉक अथवा प्रतिभूति को उधार लेता है तथा उसका विक्रय खुले बाज़ार में करता है एवं भविष्य में कीमत में संभावित गिरावट का अनुमान लगाते हुए बाद में उसी परिसंपत्ति को कम कीमत पर पुनर्खरीद करने का लक्ष्य रखता है।
      • SEBI शॉर्ट सेलिंग को उस स्टॉक का विक्रय करने के रूप में परिभाषित करता है जिस पर व्यापार के समय विक्रेता का स्वामित्व नहीं होता है।

  • भारत में शॉर्ट-सेलिंग का विनियमन:
    • SEBI ने हाल ही में कहा है कि सभी श्रेणियों के निवेशकों को शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति दी जाएगी हालाँकि नेकेड शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
      • नतीजतन सभी निवेशकों को निपटान अवधि के दौरान प्रतिभूतियाँ वितरित करने के अपने कर्त्तव्य को पूरा करना आवश्यक है।
      • जब कोई निवेशक स्टॉक अथवा प्रतिभूतियों को उधार लेने की व्यवस्था किये बिना अथवा यह सुनिश्चित किये बिना बेचता है कि उन्हें उधार लिया जा सकता है तो इसे नेकेड शॉर्ट सेलिंग के रूप में जाना जाता है।
    • खुदरा निवेशकों के पास दिन के समापन से पहले लेनदेन की शॉर्ट-सेल स्थिति का विवरण देने का विकल्प होता है जबकि संस्थागत निवेशकों को पहले से ही यह सूचित करना आवश्यक होता है कि लेनदेन शॉर्ट-सेल है अथवा नहीं।
    • इसके अलावा, सेबी द्वारा पात्र शेयरों की आवधिक समीक्षा के अधीन, F&O (वायदा और विकल्प) खंड में कारोबार की जाने वाली प्रतिभूतियों के लिये शॉर्ट सेलिंग की अनुमति है।
      • वायदा और विकल्प ( F&O) व्युत्पन्न उपकरण हैं। वायदा में असीमित जोखिम के साथ एक निर्धारित तिथि पर सहमत मूल्य पर संपत्ति खरीदने/बेचने का दायित्व शामिल होता है।
        • विकल्प एक निश्चित तिथि तक संपत्ति खरीदने/बेचने का अधिकार (लेकिन दायित्व नहीं) देते हैं, जिसमें प्रीमियम का अग्रिम भुगतान संभावित नुकसान को सीमित करता है।

भविष्य 

विकल्प

एक खरीदार को डिलीवरी के समय स्टॉक खरीदना होगा चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो (भले ही वह कम हो रही हो)

स्टॉक में गिरावट होने पर खरीदार स्टॉक खरीदने का निर्णय छोड़ सकता है या बिल्कुल भी नहीं खरीद सकता है

विकल्पों की तुलना में अधिक मार्जिन भुगतान की आवश्यकता होती है।

वायदा की तुलना में कम मार्जिन का भुगतान होता है

इसमें असीमित लाभ है और जोखिम भी अधिक है

उक्त तिथि पर स्टॉक खरीदने या न खरीदने के फ्लेक्सीबिलिटी के कारण नुकसान की सीमित संभावना और असीमित लाभ होते हैं

कमीशन के अलावा किसी अग्रिम लागत की आवश्यकता नहीं है

भुगतान करने के लिये एक प्रीमियम आवश्यक है

वायदा में अंतर्निहित स्थिति विकल्पों से कहीं अधिक होता है

अंतर्निहित स्थिति वायदा से कम होती है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वित्तीय निवेश की भाषा में 'बियर' शब्द का अर्थ है: (2010)

(a) एक निवेशक जिसे लगता है कि किसी विशेष प्रतिभूति की कीमत गिरने वाली है
(b) एक निवेशक जो विशेष शेयरों की कीमत बढ़ने की उम्मीद करता है
(c) एक शेयरधारक या एक बांडधारक जिसका किसी वित्तीय या अन्य कंपनी में हित है
(d) कोई भी ऋणदाता चाहे ऋण देकर या बांड खरीदकर

उत्तर: (a)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2