भारतीय राजनीति
ब्रिटिश कालीन आपराधिक कानूनों को बदलने हेतु संसद द्वारा विधेयक पारित
- 26 Dec 2023
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प्रिलिम्स के लिये:भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023, राजद्रोह, संसदीय स्थायी समिति, संगठित अपराध, महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक अपराध मेन्स के लिये:भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023, दांडिक न्याय प्रणाली से संबंधित सरकारी पहल के प्रमुख उपबंध |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद द्वारा तीन प्रमुख विधेयक भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 तथा भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 पारित किये गए। हालाँकि, उनके निलंबन के कारण 97 विपक्षी सदस्यों की अनुपस्थिति के कारण उनका पारित होना एक विवादास्पद स्थिति बन गयी।
- अगस्त, 2023 में प्रस्तुत किये जाने के बाद विधेयकों को 31-सदस्यीय संसदीय स्थायी समिति के समक्ष भेजा गया।
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 के प्रमुख उपबंध क्या हैं?
- भारतीय न्याय संहिता (द्वितीय) (BNS-2), भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेगा तथा इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- अपराधों का प्रतिधारण तथा शामिल करना: BNS2 संगठित अपराध, आतंकवाद तथा सामूहिक गंभीर आघात अथवा हत्या जैसे नए अपराधों को शामिल करते हुए हत्या, हमले तथा चोट पहुँचाने पर मौजूदा IPC प्रावधानों को बनाए रखता है। इसमें दंड के रूप में सामुदायिक सेवा को भी शामिल किया गया है।
- आतंकवाद: इसे राष्ट्र की अखंडता को खतरे में डालने अथवा जनता के बीच आतंक उत्पन्न करने वाले कृत्यों के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसके तहत मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास से लेकर ज़ुर्माने सहित कारावास तक हो सकता है।
- संगठित अपराध: इसमें अपहरण, जबरन वसूली, वित्तीय घोटाले, साइबर अपराध इत्यादि शामिल हैं। संगठित अपराध करने अथवा प्रयास करने वालों के लिये दंड के प्रावधान आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक भिन्न-भिन्न हैं जिसमें ज़ुर्माना भी शामिल है।
- मॉब लिंचिंग: BNS2 विशिष्ट आधारों (नस्ल, जाति, आदि) पर पाँच अथवा अधिक व्यक्तियों द्वारा की गई हत्या अथवा गंभीर चोट की पहचान एक दंडनीय अपराध के रूप में करता है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।
- महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक अपराध: बलात्कार, ताक-झाँक/दृश्यरति कता तथा अन्य उल्लंघनों पर IPC की धाराओं को बरकरार रखते हुए, BNS2 सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करता है। यह किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध मानता है।
- राजद्रोह संशोधन: BNS2 राजद्रोह के अपराध को समाप्त करता है तथा इसके स्थान पर फूट, सशस्त्र विद्रोह अथवा विभिन्न माध्यमों से राष्ट्रीय संप्रभुता अथवा एकता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों से संबंधित दंडात्मक गतिविधियों को लागू करता है।
- हालाँकि आलोचकों का तर्क है कि राजद्रोह कानून के 'राजद्रोह' से 'देशद्रोह' में बदलने के बावजूद, इसके सार तथा अनुप्रयोग पर चिंताएँ लगातार बनी हुई हैं।
- लापरवाही से हुई मौतें: BNS2 आईपीसी की धारा 304A के तहत लापरवाही से मौत के लिये सज़ा को दो से बढ़ाकर पाँच साल कर देता है।
- हालाँकि, यह निर्धारित करता है कि अगर चिकित्सक दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें अभी भी दो साल की कैद की सज़ा का सामना करना पड़ेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय का अनुपालन: इनमें व्यभिचार को अपराध के तौर नहीं शामिल किया गया है और आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या या हत्या के प्रयास के लिये दंड के रूप में आजीवन कारावास का प्रावधान करके इसे सर्वोच्च न्यायालय के कुछ निर्णयों के अनुरूप बनाया है।
BNS2 की आलोचना:
- आपराधिक उत्तरदायित्व आयु विसंगति: आपराधिक उत्तरदायित्व की आयु सात वर्ष बनी हुई है, आरोपी की परिपक्वता के आधार पर इसे 12 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अनुशंसाओं के अनुरूप नहीं है।
- बाल अपराध परिभाषाओं में विसंगतियाँ: BNS2 एक बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है तथा बच्चों के विरुद्ध कई अपराधों के लिये आयु सीमा भिन्न होती है। उदाहरण के लिये बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिये उम्र की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है, जिससे असंगतता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- राजद्रोह के प्रावधान तथा संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: BNS2 राजद्रोह को एक अपराध के रूप में समाप्त करता है जिससे भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने से संबंधित कृत्य राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रख सकते हैं।
- बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC प्रावधानों को बरकरार रखना: BNS2 ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC के प्रावधानों को बरकरार रखा है। यह न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) की सिफारिशों पर विचार नहीं करता है जैसे कि बलात्कार के अपराध को लिंग तटस्थ बनाना और वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में शामिल करना।
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 (BNSS2) आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करती है, जिसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- हिरासत की शर्तें: BNSS2 ने विचाराधीन कैदियों के लिये नियमों में बदलाव किया है, आजीवन कारावास के मामलों और कई आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों सहित गंभीर अपराधों के आरोपियों के लिये व्यक्तिगत ज़मानत पर रिहाई को प्रतिबंधित कर दिया है।
- चिकित्सीय परीक्षण: यह चिकित्सा परीक्षण के दायरे को व्यापक बनाता है, जिससे किसी भी पुलिस अधिकारी (सिर्फ एक उप-निरीक्षक नहीं) को अनुरोध करने की अनुमति मिलती है, जिससे प्रक्रिया अधिक सुलभ हो जाती है।
- फॉरेंसिक जाँच: कम से कम सात साल की कैद की सज़ा वाले अपराधों के लिये फोरेंसिक जाँच अनिवार्य है।
- इसमें फोरेंसिक विशेषज्ञों को अपराध स्थलों पर साक्ष्य एकत्र करने और प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होती है। जिन राज्यों में फोरेंसिक सुविधाओं की कमी है, उन्हें अन्य राज्यों में मौजूद सुविधाओं का उपयोग करना चाहिये।
- नमूना संग्रहण: CrPC के नमूना हस्ताक्षरों या लिखावट (specimen signatures) आदेशों से आगे बढ़कर, उन व्यक्तियों से भी, जो गिरफ्तार नहीं हुए हैं, उंगली के निशान और आवाज़ के नमूने एकत्र करने की शक्ति प्रदान करता है।
- समय-सीमा: BNSS2 सख्त समय-सीमा निर्धारित करता है: बलात्कार पीड़ितों के लिये 7 दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट, 30 दिनों के भीतर निर्णय (45 तक बढ़ाया जा सकता है), पीड़िता की प्रगति के बारे में 90 दिनों के भीतर अपडेट और पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना।
- न्यायालय पदानुक्रम: CrPC भारत की आपराधिक अदालतों को मजिस्ट्रेट अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पदानुक्रमित रूप से व्यवस्थित करती है। इसने पहले दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रखने की अनुमति दी थी, लेकिन BNSS2 इस अंतर और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की भूमिका को समाप्त कर देता है।
BNSS2 की आलोचनाएँ:
- अपराध से अर्जित संपत्ति की कुर्की और सुरक्षा उपायों की कमी: अपराध की आय से संपत्ति जब्त करने की शक्ति में धन शोधन निवारण अधिनियम में प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिससे संभावित दुरुपयोग या निगरानी की कमी के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- एकाधिक आरोपों के लिये ज़मानत पर प्रतिबंध: जबकि CrPC किसी अपराध के लिये अधिकतम कारावास की आधी सज़ा के लिये हिरासत में लिये गए आरोपी को ज़मानत की अनुमति देता है, BNSS2 कई आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिये इस सुविधा से इनकार करता है।
- कई धाराओं से जुड़े मामलों में प्रचलित यह प्रतिबंध ज़मानत के अवसरों को सीमित कर सकता है।
- हथकड़ी का उपयोग और विरोधाभासी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश: BNSS2 संगठित अपराध सहित विभिन्न मामलों में हथकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति देता है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित निर्देशों का खंडन करता है।
- परीक्षण प्रक्रिया और सार्वजनिक व्यवस्था रखरखाव का एकीकरण: BNSS2 सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव से संबंधित CrPC प्रावधानों को बरकरार रखता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या परीक्षण प्रक्रियाओं और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को एक ही कानून के तहत विनियमित किया जाना चाहिये या अलग से संबोधित किया जाना चाहिये।
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 (BSB2) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) का स्थान लिया है। यह IEA के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखता है जिनमें स्वीकारोक्ति, तथ्यों की प्रासंगिकता और साक्ष्य का दायित्व शामिल है। हालाँकि इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
- दस्तावेज़ी/लिखित साक्ष्य:
- परिभाषा विस्तार: BSB2 पारंपरिक लेखन, मानचित्र और कैरिकेचर के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को शामिल करने के लिये दस्तावेज़ों की परिभाषा को व्यापक बनाता है।
- प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य: प्राथमिक साक्ष्य अपनी स्थिति बरकरार रखता है, जिसमें मूल दस्तावेज़, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं।
- दस्तावेज़ों की जाँच करने वाले योग्य व्यक्ति की गवाही के साथ-साथ मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति को अब द्वितीयक साक्ष्य माना जाता है।
- मौखिक साक्ष्य: BSB2 मौखिक साक्ष्य के इलेक्ट्रॉनिक प्रावधान की अनुमति देता है, जिससे गवाहों, आरोपी व्यक्तियों और पीड़ितों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाही देने में सहायता मिलती है।
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता: इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड को कागज़ी रिकॉर्ड के बराबर कानूनी दर्जा दिया जाता है।
- इसमें सेमीकंडक्टर मेमोरी, स्मार्टफोन, लैपटॉप, ईमेल, सर्वर लॉग, स्थान संबंधी साक्ष्य और ध्वनि मेल में संग्रहीत सूचनाएँ शामिल है।
- संयुक्त परीक्षणों के लिये संशोधित स्पष्टीकरण: संयुक्त परीक्षणों में ऐसे मामले शामिल हैं जिनमें एक आरोपी पक्ष उपस्थित नहीं है या उसने गिरफ्तारी वारंट का प्रत्युत्तर नहीं दिया है, जिन्हें अब संयुक्त परीक्षणों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
BSB2 की आलोचना:
- हिरासत में आरोपी से सूचना की स्वीकार्यता: BSB2 ऐसी जानकारी को स्वीकार्य होने की अनुमति देता है यदि वह उस समय प्राप्त की गई थी जब आरोपी पुलिस हिरासत में था, लेकिन तब नहीं जब वह हिरासत से बाहर था। विधि आयोग ने इस अंतर को समाप्त करने की सिफारिश की।
- अनिगमित विधि आयोग की सिफारिशें: विधि आयोग की कई सिफारिशें, जैसे कि पुलिस हिरासत में किसी आरोपी को लगी चोटों के लिये पुलिस की ज़िम्मेदारी मानना, को उनके महत्त्व के बावज़ूद, BSB2 में शामिल नहीं किया गया है।
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़: सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ हो सकती है।
- जबकि BSB2 ऐसे रिकॉर्ड की स्वीकार्यता प्रदान करता है, लेकिन जाँच प्रक्रिया के दौरान ऐसे रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ व संदूषण/हेरफेर को रोकने के लिये कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:Q. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014) Q. भीड़ हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है। उपयुक्त उदाहरण देते हुए ऐसी हिंसा के कारणों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये। भीड़ हिंसा को रोकने के लिये उपाय भी सुझाइये। (2015) |