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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 मार्च, 2023

  • 18 Mar 2023
  • 7 min read

ओडिशा तट से गायब हो रहे हॉर्सशू क्रैब 

ओडिशा के बालासोर ज़िले में चाँदीपुर और बलरामगढ़ी तट पर विनाशकारी मत्स्यन प्रथाओं के कारण हॉर्सशू क्रैब, औषधीय रूप से अमूल्य एवं पृथ्वी पर सबसे पुराने जीवित प्राणियों में से एक, अपने परिचित प्रजनन स्थल से गायब हो रहे हैं। भारत में हॉर्सशू क्रैब की दो प्रजातियाँ हैं- तटीय हॉर्सशू क्रैब (टैचीप्लस गिगास), मैंग्रोव हॉर्सशू क्रैब (कार्सिनोस्कॉर्पियस रोटुंडिकाउडा)। साथ ही इनकी सघनता ओडिशा में पाई जाती है। ये दोनों प्रजातियाँ अभी IUCN की रेड लिस्ट में सूचीबद्ध नहीं हैं, लेकिन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 4 का हिस्सा हैं। हॉर्सशू क्रैब का खून तेज़ी से नैदानिक अभिकर्मक तैयार करने हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है। सभी इंजेक्टेबल और दवाओं की जाँच हॉर्सशू क्रैब की मदद से की जाती है। हॉर्सशू क्रैब के अभिकर्मक से एक अणु विकसित किया गया है जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी प्री-एक्लेमप्सिया के इलाज में मदद करेगा। पुरापाषाणकालीन अध्ययन के अनुसार, हॉर्सशू क्रैब की आयु 450 मिलियन वर्ष है। यह प्राणी अपनी मज़बूत प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण बिना किसी रूपात्मक परिवर्तन के पृथ्वी पर जीवित रहता है।

भारत ने 2023 को पर्यटन विकास वर्ष नामित करने हेतु SCO बैठक में योजना प्रस्तुत की

पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन में भारत ने वर्ष 2023 को पर्यटन विकास वर्ष के रूप में नामित करने के लिये शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान एक कार्ययोजना प्रस्तुत की। पर्यटन क्षेत्र में सहयोग पर सदस्य देशों के बीच समझौते को लागू करने के लिये एक संयुक्त कार्ययोजना को मंज़ूरी दी गई है। इसमें SCO पर्यटन ब्रांड को बढ़ावा, सदस्य राज्यों की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा; पर्यटन में सूचना और डिजिटल प्रौद्योगिकियों को साझा करना; चिकित्सा तथा स्वास्थ्य पर्यटन में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है। काशी को SCO की पहली पर्यटन एवं सांस्कृतिक राजधानी घोषित किया गया है। इसके अलावा इस बैठक में "SCO क्षेत्र में पर्यटन विकास वर्ष 2023" की कार्ययोजना को स्वीकृति प्रदान की गई। SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय, यूरेशियन, राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य संबद्ध क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है। इसके सदस्य देशों में कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत, पाकिस्तान और ईरान शामिल हैं।

INS द्रोणाचार्य को प्रेसीडेंट कलर 

भारत के राष्ट्रपति ने INS द्रोणाचार्य को प्रेसिडेंट्स कलर प्रदान किया। यह राष्ट्र के लिये अपनी असाधारण सेवाओं हेतु भारत में सैन्य इकाई को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। इसे 'निशान' के रूप में भी जाना जाता है जो एक प्रतीक है तथा जिसे सभी यूनिट अधिकारी अपनी वर्दी में बाएँ हाथ की आस्तीन पर पहनते हैं। तीनों  रक्षा बलों में से भारतीय नौसेना वर्ष 1951 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्रेसिडेंट्स कलर से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय सशस्त्र सेना थी। भारत के साथ-साथ कई राष्ट्रमंडल देशों में कलर की परंपरा ब्रिटिश सेना से ली गई है। परंपरागत रूप से कलर मानक, गाइडन, कलर और बैनर से जुड़े चार प्रकार के प्रतीक रहे हैं। भारतीय नौसेना का INS द्रोणाचार्य कोच्चि, केरल में स्थित एक प्रतिष्ठित गनरी स्कूल (Gunnery School) है। यह  छोटे हथियारों, नौसैनिक मिसाइलों, तोपखाने, रडार और रक्षात्मक उपायों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण अधिकारियों और रेटिंग के लिये ज़िम्मेदार है।

अनुसंधान, शिक्षा एवं प्रशिक्षण आउटरीच (रीचआउट) योजना

क्षमता निर्माण हेतु पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा अनुसंधान, शिक्षा और प्रशिक्षण आउटरीच (रीचआउट) नामक एक अम्ब्रेला स्कीम कार्यान्वित की जा रही है। इसमें निम्नलिखित उप-योजनाएँ सम्मिलित हैं: 

  • पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में अनुसंधान एवं विकास (RDESS)
  • ऑपरेशनल ओशनोग्राफी के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र (ITCOocean)
  • पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में कुशल जनशक्ति के विकास के लिये कार्यक्रम (DESK)
  • यह योजना पूरे देश में लागू की जा रही है, न कि राज्य/संघ राज्य क्षेत्रवार। इन उप-योजनाओं के मुख्य उद्देश्य हैं:
  • पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न घटकों के प्रमुख क्षेत्रों में विभिन्न अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का समर्थन करना जो विषय और आवश्यकता पर आधारित हैं तथा जो MoES के लिये स्थापित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेंगे।
  • पृथ्वी विज्ञान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उन्नत ज्ञान के पारस्परिक हस्तांतरण और विकासशील देशों को सेवा प्रदान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ उपयोगी सहयोग विकसित करना।
  • देश और विदेश में शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से पृथ्वी विज्ञान में कुशल एवं प्रशिक्षित जनशक्ति विकसित करना।
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