भारतीय अर्थव्यवस्था
क्रिप्टो फाइनेंस
प्रिलिम्स के लिये:क्रिप्टो फाइनेंस, बिटकॉइन, क्रिप्टोकरेंसी मेन्स के लिये:क्रिप्टो फाइनेंस का महत्त्व और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
एक दशक में बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी के विकास ने रुपए की परिभाषा बदल दी है तथा वैकल्पिक वित्तीय सेवाओं (AFS) के समानांतर जगत का निर्माण किया है।
- इस प्रकार के विकास ने क्रिप्टो व्यवसायों को पारंपरिक बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी है।
- AFS एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग अक्सर उन प्रदाताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाओं की श्रेणी का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो संघ द्वारा बीमित बैंकों और मितव्ययिता के बाहर काम करते हैं।
मुख्य बिंदु
- क्रिप्टो द्वारा दी जाने वाली वैकल्पिक सेवाएँ:
- वैकल्पिक सेवाओं के बारे में: मुख्य रूप से उधार देना और उधार लेना।
- बैंकों को लाभ: निवेशक डिजिटल करेंसी की अपनी होल्डिंग्स पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं, अक्सर वे बैंक में नकद जमा पर बहुत अधिक या ऋण वापस करने के लिये क्रिप्टो के साथ संपार्श्विक के रूप में उधार लेते हैं।
- कारण: कानून के अनुसार, बैंकों के लिये नकद रिज़र्व रखना आवश्यक होता है ताकि यदि कुल ऋण में से कुछ बैड लोन में परिवर्तित भी हो जाए तो यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्राहक अपना धन निकाल सकें, जबकि क्रिप्टो बैंकों के पास इस प्रकार का कोई भी रिज़र्व नहीं होता है और वे जिन संस्थानों को उधार देते हैं उनमें जोखिमपूर्ण गतिविधियों की संभावना रहती है।
- जोखिम: इस प्रकार के जमा की गारंटी केंद्रीय बैंक के समर्थित जमा बीमा निगम द्वारा नहीं दी जाती है। साइबर हमले, बाज़ार की प्रतिकूल स्थिति या अन्य परिचालन या तकनीकी कठिनाइयों के कारण निकासी या स्थानांतरण पर अस्थायी या स्थायी रोक लग सकती है।
- स्टेबलकॉइन:
- स्टेबल करेंसी वह क्रिप्टोकरेंसी है जो आमतौर पर डॉलर से जुड़ी होती है। वे ब्लॉकचेन लेन-देन हेतु डिजिटल रूप में सरकार द्वारा जारी धन का स्थिर मूल्य प्रदान करने के लिये हैं, लेकिन निजी संस्थाओं द्वारा जारी किये जाते हैं।
- क्रिप्टोकरेंसी अस्थिर प्रकृति की होती है, जिससे भुगतान या ऋण जैसे लेन-देन के लिये यह कम व्यावहारिक है। यहीं से स्टेबलकॉइन का महत्त्व बढ़ जाता है।
- स्टेबलकॉइन जारीकर्त्ता को सरकारी संस्थानों की तरह भंडार बनाए रखने के साथ-साथ उसकी निगरानी करनी चाहिये लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे वास्तव में वे डॉलर के समर्थन का दावा करते हों।
- स्टेबल करेंसी वह क्रिप्टोकरेंसी है जो आमतौर पर डॉलर से जुड़ी होती है। वे ब्लॉकचेन लेन-देन हेतु डिजिटल रूप में सरकार द्वारा जारी धन का स्थिर मूल्य प्रदान करने के लिये हैं, लेकिन निजी संस्थाओं द्वारा जारी किये जाते हैं।
- केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा:
- यह एक विशेष राष्ट्र या क्षेत्र के लिये फिएट मुद्रा (सरकार द्वारा जारी और एक केंद्रीय प्राधिकरण जैसे केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित) मुद्रा का आभासी प्रारूप है।
- केंद्रीय बैंकर सरकार की क्रिप्टोकरेंसी जारी करने की क्षमता की जाँच कर रहे हैं। यह सैद्धांतिक रूप से केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित धन की विश्वसनीयता के साथ क्रिप्टो की सुविधा प्रदान करेगा।
- अमेरिका और भारत सहित कई देश केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा विकसित करने पर विचार कर रहे हैं।
- विकेंद्रीकृत वित्त:
- विकेंद्रीकृत वित्त या DeFi, एक वैकल्पिक वित्त पारिस्थितिकी तंत्र को संदर्भित करता है, जहाँ उपभोक्ता सैद्धांतिक रूप से पारंपरिक वित्तीय संस्थानों और नियामक संरचनाओं से अलग एवं स्वतंत्र रूप से क्रिप्टोकरेंसी को स्थानांतरित, व्यापार, उधार देने जैसे कार्य करते हैं।
- DeFi का उद्देश्य कंप्यूटर कोड का उपयोग करके वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया में बिचौलियों और मध्यस्थों को समाप्त करना है।
- इस प्लेटफॉर्म को समय के साथ अपने डेवलपर्स और बैकर्स से स्वतंत्र होने के लिये संरचित किया जाता है और अंततः यह उपयोगकर्त्ताओं के एक समुदाय द्वारा शासित किया जाता है।
- क्रिप्टो वित्त का महत्त्व:
- वित्तीय समावेशन
- नवोन्मेषकों का तर्क है कि क्रिप्टो, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है। इससे उपभोक्ता बैंकों के विपरीत अपनी होल्डिंग पर असामान्य रूप से उच्च रिटर्न अर्जित कर सकते हैं।
- त्वरित और मितव्ययी लेन-देन:
- क्रिप्टो फाइनेंस, पारंपरिक संस्थानों द्वारा लंबे समय से बहिष्कृत लोगों को त्वरित, सस्ते और बिना निर्णय के लेन-देन में संलग्न होने का अवसर देता है।
- चूँकि क्रिप्टो अपने ऋणों का समर्थन करता है, अतः सेवाओं को प्रायः किसी प्रकार की क्रेडिट जाँच की आवश्यकता नहीं होती है, हालाँकि इसमें कुछ कर रिपोर्टिंग और धोखाधड़ी-विरोधी उद्देश्यों के लिये ग्राहक पहचान संबंधी जानकारी ली जाती है।
- इसके तहत आमतौर पर उपयोगकर्त्ता की व्यक्तिगत पहचान साझा नहीं की जाती है, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से उनके क्रिप्टो के मूल्य से आँका जाता है।
- वित्तीय समावेशन
आगे की राह
- कुछ नियामकों और नवोन्मेषकों का तर्क है कि नई तकनीक एक नए दृष्टिकोण की मांग करती है, क्योंकि नए प्रकार के जोखिम को नवाचार को बाधित किये बिना भी संबोधित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये यह अनिवार्य करने के बजाय कि DeFi प्रोटोकॉल बैंक के भंडार को बनाए रखेंगे और ग्राहक जानकारी एकत्र करेंगे, अधिकारी प्रौद्योगिकी तथा उत्पादों के लिये ‘कोड ऑडिट’ और ‘जोखिम पैरामीटर’ जैसी नई व्यवस्था बना सकते हैं।
- पहचान से संबंधित मुद्दे, जो कि वित्तीय धोखाधड़ी से मुकाबले के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, को संबोधित करने की आवश्यकता है। विशिष्टताओं से शुरू करने के बजाय- व्यक्तियों की पहचान से संबंधित कानून लागू करने वाले व्यापक दृष्टिकोण को अपना सकते हैं।
- संदिग्ध गतिविधि पर नज़र रखने तथा पहचान को ट्रैक करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विश्लेषण का उपयोग भी किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-क्रोएशिया संबंध
प्रिलिम्स के लिये:गुटनिरपेक्ष आंदोलन, नाटो मेन्स के लिये:भारत-क्रोएशिया संबंधों की पृष्ठभूमि और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और क्रोएशिया के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हिंद-प्रशांत, अफगानिस्तान की स्थिति, आतंकवाद का मुकाबला करने और साझा आर्थिक हितों जैसे मुद्दों पर दोनों देशों की स्थिति काफी हद तक समान है।
प्रमुख बिंदु
- बैठक की मुख्य बातें:
- पर्यटन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और दोनों ही देश हवाई संपर्क का विस्तार करने का प्रयास करेंगे।
- दोनों का मानना है कि रेलवे, फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में काफी संभावनाएंँ विद्यमान हैं।
- यूरोपीय संघ-भारत संबंध, अफगानिस्तान की स्थिति, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग तथा कोविड के बाद की रिकवरी सहित आपसी हित के कई विषयों पर भी इस बैठक में चर्चा की गई।
- भारत-क्रोएशिया संबंधों के बारे में:
- क्रोएशिया अपनी भू-रणनीतिक स्थिति, यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य होने के साथ-साथ एड्रियाटिक समुद्र तट के माध्यम से यूरोप के लिये गेटवे के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण मध्य यूरोपीय देश है।
- पूर्व यूगोस्लाविया के दिनों से ही भारत और क्रोएशिया के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं।
- 1990 के दशक की शुरुआत में राजनीतिक उथल-पुथल और संघर्षों की एक शृंखला के परिणामस्वरूप यूगोस्लाविया का विघटन हुआ।
- इस विघटन ने छ: नए देशों को जन्म दिया अर्थात् बोस्निया और हर्ज़िगोविना, क्रोएशिया, मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया तथा स्लोवेनिया।
- भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टिटो, दोनों ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अग्रदूत थे।
- क्रोएशिया के लोगों की भारत में गहरी दिलचस्पी है। ज़ाग्रेब विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी विभाग छह दशकों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है और एक दशक पहले भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) हिंदी पीठ की स्थापना की गई थी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई
प्रिलिम्स के लिये:वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई, कोरल मिल्स की हड़ताल, बंगाल विभाजन मेन्स के लिये:वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई का भारतीय स्वतंत्रता में योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महान स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई को उनकी 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी गई।
- वह एक लोकप्रिय कप्पलोटिया थमिज़ान (तमिल खेवनहार) और "चेक्किलुथथा चेम्मल"के रूप में जाने जाते थे।
प्रमुख बिंदु
- जन्म:
- वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई (चिदंबरम पिल्लई) का जन्म 5 सितंबर, 1872 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के ओट्टापिडारम में एक प्रख्यात वकील उलगनाथन पिल्लई और परमी अम्माई के घर हुआ था।
- प्रारंभिक जीवन:
- चिदंबरम पिल्लई ने कैलडवेल कॉलेज, तूतीकोरिन से स्नातक किया। अपनी कानून की पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्होंने एक संक्षिप्त अवधि के लिये तालुक कार्यालय में क्लर्क के रूप में काम किया।
- न्यायाधीश के साथ उनके विवाद ने उन्हें 1900 में तूतीकोरिन में नए काम की तलाश करने के लिये मजबूर किया।
- वर्ष 1905 तक वे पेशेवर और पत्रकारिता गतिविधियों में संलग्न रहे।
- राजनीति में प्रवेश:
- चिदंबरम पिल्लई ने 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया।
- वर्ष 1905 के अंत में चिदंबरम पिल्लई ने मद्रास का दौरा किया और बाल गंगाधर तिलक तथा लाला लाजपत राय द्वारा शुरू किये गए स्वदेशी आंदोलन से जुड़े।
- चिदंबरम पिल्लई रामकृष्ण मिशन की ओर आकर्षित हुए और सुब्रमण्यम भारती तथा मांडयम परिवार के संपर्क में आए।
- तूतीकोरिन (वर्तमान थूथुकुडी) में चिदंबरम पिल्लई के आने तक तिरुनेलवेली ज़िले में स्वदेशी आंदोलन ने गति प्राप्त करना शुरू नहीं किया था।
- चिदंबरम पिल्लई ने 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया।
- स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
- 1906 तक चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी (एसएसएनसीओ) के नाम से एक स्वदेशी मर्चेंट शिपिंग संगठन स्थापित करने के लिये तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का समर्थन हासिल किया।
- उन्होंने स्वदेशी प्रचार सभा, धर्मसंग नेसावु सलाई, राष्ट्रीय गोदाम, मद्रास एग्रो-इंडस्ट्रियल सोसाइटी लिमिटेड और देसबीमना संगम जैसी कई संस्थाओं की स्थापना की।
- चिदंबरम पिल्लई और शिवा को उनके प्रयासों हेतु तिरुनेलवेली स्थित कई वकीलों द्वारा सहायता प्रदान की गई, जिन्होंने स्वदेशी संगम या 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक' नामक एक संगठन का गठन किया।
- तूतीकोरिन कोरल मिल्स की हड़ताल (1908) की शुरुआत के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन ने एक द्वितीयक चरित्र प्राप्त कर लिया।
- गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह (1917) से पहले भी चिदंबरम पिल्लई ने तमिलनाडु में मज़दूर वर्ग का मुद्दा उठाया था और इस तरह वह इस संबंध में गांधीजी के अग्रदूत रहे।
- चिदंबरम पिल्लई ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर 9 मार्च, 1908 की सुबह बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने और स्वराज का झंडा फहराने के लिये एक विशाल जुलूस निकालने का संकल्प लिया।
- 1906 तक चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी (एसएसएनसीओ) के नाम से एक स्वदेशी मर्चेंट शिपिंग संगठन स्थापित करने के लिये तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का समर्थन हासिल किया।
- कृतियाँ: मेयाराम (1914), मेयारिवु (1915), एंथोलॉजी (1915), आत्मकथा (1946), थिरुकुरल के मनकुदावर के साहित्यिक नोट्स के साथ ((1917)), टोल्कपियम के इलमपुरनार के साहित्यिक नोट्स के साथ (1928)।
- मृत्यु: चिदंबरम पिल्लई की मृत्यु 18 नवंबर, 1936 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस कार्यालय तूतीकोरिन में उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप हुई।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
इंस्पायर पुरस्कार-मानक
प्रिलिम्स के लिये:इंस्पायर पुरस्कार मानक, स्टार्टअप इंडिया, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना मेन्स के लिये:विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति में विद्यार्थियों/युवाओं के प्रोत्साहन हेतु इंस्पायर पुरस्कार-मानक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंस्पायर पुरस्कार-मानक (MANAK- मिलियन माइंड्स ऑगमेंटिंग नेशनल एस्पिरेशन एंड नॉलेज) के तहत 8वीं ‘राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता’ (NLEPC) शुरू हुई है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- इसे 'स्टार्टअप इंडिया' पहल के साथ जोड़ा गया है और इसे DST (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग) द्वारा नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन- इंडिया (NIF), DST के एक स्वायत्त निकाय के साथ निष्पादित किया जा रहा है।
- इस योजना के तहत देश भर के सभी सरकारी या निजी स्कूलों से छात्रों को आमंत्रित किया जाता है, भले ही उनके शैक्षिक बोर्ड (राष्ट्रीय और राज्य) कुछ भी हों।
- इसमें विज्ञान को आगे बढ़ाने और अनुसंधान में कॅरियर बनाने हेतु 10-15 वर्ष आयु वर्ग के और कक्षा 6 से 10 तक के छात्रों को शामिल किया गया है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के तहत विजेता छात्रों के बैंक खातों में 10,000 रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है।
- यह किसी भी स्तर पर प्रतिभा की पहचान के लिये प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने में विश्वास नहीं करता है। यह प्रतिभा की पहचान हेतु मौजूदा शैक्षिक संरचना की प्रभावकारिता में विश्वास करता है और उस पर निर्भर करता है।
- लक्ष्य:
- छात्रों को भविष्य के नवप्रवर्तक और महत्त्वपूर्ण विचारक बनने के लिये प्रेरित करना।
- उद्देश्य:
- विद्यालयी छात्रों में रचनात्मकता और नवोन्मेषी सोच की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान एवं सामाजिक अनुप्रयोगों में निहित दस लाख मूल विचारों/नवाचारों को लक्षित करना।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करना तथा छात्रों को संवेदनशील एवं ज़िम्मेदार नागरिक, भविष्य के नवाचारी बनने के लिये पोषित करना।
- इंस्पायर योजना:
- इंस्पायर (इनोवेशन इन साइंस परसुइट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च) योजना विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है।
- इसका उद्देश्य देश की युवा आबादी को विज्ञान की रचनात्मक खोज के बारे में बताना, प्रारंभिक चरण में विज्ञान के अध्ययन के लिये प्रतिभा को आकर्षित करना तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली अनुसंधान और विकास को मज़बूत व विस्तारित करने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल के आधार का निर्माण करना है।
- भारत सरकार ने वर्ष 2010 से INSPIRE योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है। इस योजना में 10-32 वर्ष आयु वर्ग के छात्रों को शामिल किया गया है और इसके पाँच घटक हैं।
- इंस्पायर पुरस्कार- MANAK इसके घटकों में से एक है।
- संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 का मसौदा:
- इसका उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उत्प्रेरित करने और भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार (STI) पारिस्थितिकी तंत्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये STI पारिस्थितिकी तंत्र की ताकत तथा कमज़ोरियों की पहचान करना और उन्हें दूर करना है।
- SERB-POWER योजना:
- यह भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रयोगशालाओं में विभिन्न विज्ञान व प्रौद्योगिकी (S&T)) कार्यक्रमों में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान में लैंगिक असमानता को कम करने के लिये विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों हेतु तैयार की गई एक योजना है।
- स्वर्ण जयंती फैलोशिप:
- इसके तहत अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले चयनित युवा वैज्ञानिकों को विशेष सहायता और अनुदान प्रदान किया जाता है ताकि वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अग्रणी क्षेत्रों में बुनियादी अनुसंधान को आगे बढ़ा सकें।
- राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 का मसौदा:
स्रोत- पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
IUCN वर्ल्ड कंज़र्वेशन काॅन्ग्रेस
प्रिलिम्स के लियेअंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार मेन्स के लियेIUCN से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलें |
चर्चा में क्यों?
दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे समावेशी पर्यावरण निर्णयन फोरम 'IUCN वर्ल्ड कंज़र्वेशन काॅन्ग्रेस 2020' फ्रांँस के मार्सिले में आयोजित किया जा रहा है। ज्ञात हो कि इस फोरम को जून 2020 में सितंबर 2021 तक के लिये स्थगित कर दिया गया था।
- इसके तहत मौजूदा जैव विविधता संकट सहित संरक्षण प्राथमिकताओं को संबोधित करने हेतु कई महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिये गए हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ‘विश्व संरक्षण काॅन्ग्रेस’ का आयोजन करता है, जो प्रत्येक चार वर्ष में एक बार दुनिया भर के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित की जाती है। इस प्रकार की पहली काॅन्ग्रेस’ संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1948 में आयोजित की गई थी।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) सरकारों तथा नागरिकों दोनों से मिलकर बना एक विशिष्ट सदस्यता संघ है।
- यह दुनिया की प्राकृतिक स्थिति को संरक्षित रखने के लिये एक वैश्विक प्राधिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय स्विटज़रलैंड में स्थित है।
- IUCN द्वारा जारी की जाने वाली ‘रेड लिस्ट’ दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक स्वदेशी एजेंडा:
- यह भूमि, क्षेत्रों, जल, तटीय समुद्र और प्राकृतिक संसाधनों के शासन हेतु स्वदेशी अधिकारों को मान्यता एवं सम्मान प्रदान करने का आह्वान करता है।
- इसे IUCN के स्वदेशी लोगों के संगठन के सदस्यों द्वारा विकसित किया गया था।
- यह पाँच विषयों से संबंधित 10 उच्च-स्तरीय प्रस्तावों और परिणामों को प्रस्तुत करता है: स्वदेशी शासन; जैव विविधता संरक्षण; जलवायु कार्रवाई; कोविड-19 के बाद रिकवरी के प्रयास तथा खाद्य सुरक्षा और वैश्विक नीति निर्धारण।
- अद्यतित रेड लिस्ट:
- नौ श्रेणियों में प्रजातियों की संख्या: अद्यतन या अपडेट की गई रेड लिस्ट के अनुसार, प्रजातियों के स्तर पर वैश्विक सुधार के बावजूद उच्च जोखिम वाली प्रजातियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
- कुल 902 प्रजातियांँ आधिकारिक तौर पर विलुप्त (Extinct) हो चुकी हैं। जिन प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया उनमें से 30% (138,374) विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं।
- 80 वन्य प्रजातियांँ विलुप्त हो चुकी हैं, 8,404 गंभीर रूप से संकटग्रस्त, 14,647 संकटग्रस्त, 15,492 सुभेद्य प्रजातियों में शामिल हैं तथा 8,127 प्रजातियों के भविष्य पर खतरा बना हुआ है।
- लगभग 71,148 प्रजातियों की स्थिति कम चिंताजनक है, जबकि 19,404 प्रजातियों के डेटा का अभाव है।
- नौवीं श्रेणी 'नॉट इवैल्यूएटेड' (Not Evaluated) प्रजाति है अर्थात् इन प्रजातियों का मूल्यांकन आईयूसीएन द्वारा नहीं किया गया है।
- कोमोडो ड्रैगन्स: इंडोनेशिया की कोमोडो ड्रैगन (Varanus komodoensis) विश्व की सबसे बड़ी जीवित छिपकली है और इसे सुभेद्य से संकटग्रस्त की श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया गया है।
- इस प्रजाति पर जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभाव देखे गए हैं, समुद्र के बढ़ते स्तर के साथ अगले 45 वर्षों में प्रजाति के आवास में कम-से-कम 30% की कमी आने की आशंका है।
- टूना प्रजाति: सात सबसे अधिक व्यावसायिक रूप से पकड़ी जाने वाली मछली की टूना प्रजातियों में से चार की स्थिति में सुधार/ रिकवरी के संकेत दिखाई दिये हैं।
- अटलांटिक ब्लूफिन टूना (Thunnus thynnus) को संकटग्रस्त (Endangered) से कम चिंताग्रस्त (Least concern) श्रेणी में रखा गया है।
- दक्षिणी ब्लूफिन टूना (Thunnus maccoyii) संकटग्रस्त से कम संकटग्रस्त में स्थानांतरित।
- एल्बाकोर (Thunnus alalunga) और येलोफिन टूना (Thunnus albacares) दोनों निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) से बहुत कम संकट (Least Concern) की सूची में स्थानांतरित।
- टूना की अन्य प्रजातियाँ जिसमें बिगआई टूना (Thunnus obesus) सुभेद्य में, जबकि स्किपजैक टूना (Katsuwonus pelamis) बहुत कम संकट ( least concerned) में ही बनी हुई है।
- पैसिफिक ब्लूफिन टूना (Thunnus orientalis) को न्यूअर स्टॉक मूल्यांकन डेटा (Newer Stock Assessment Data) और मॉडल (Models) की उपलब्धता के कारण सुभेद्य से निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) की श्रेणी में स्थानांतरित किया गया है।
- नौ श्रेणियों में प्रजातियों की संख्या: अद्यतन या अपडेट की गई रेड लिस्ट के अनुसार, प्रजातियों के स्तर पर वैश्विक सुधार के बावजूद उच्च जोखिम वाली प्रजातियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
- सतत् पर्यटन पहल:
- यह कार्यक्रम जर्मनी द्वारा वित्तपोषित किया गया है तथा इसमें संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) एवं वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर (WWF) जैसे कार्यकारी भागीदार शामिल हैं।
- यह विकासशील और उभरते देशों के सतत् विकास में योगदान करने के लिये पर्यटन को एक उपकरण के रूप में उपयोग करेगा।
- पहल को संचालित करने के लिये IUCN दो विश्व धरोहर स्थलों तथा पेरू और वियतनाम में पाँच अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ काम करेगा ताकि समुदाय-आधारित पर्यटन क्षेत्र के भविष्य के व्यवधानों के प्रति लचीलापन बढ़ाया जा सके।
- यह कार्यक्रम जर्मनी द्वारा वित्तपोषित किया गया है तथा इसमें संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) एवं वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर (WWF) जैसे कार्यकारी भागीदार शामिल हैं।
- अन्य हालिया अद्यतन:
- रैप्टर प्रजाति से संबंधित खतरा: IUCN और बर्डलाइफ इंटरनेशनल के एक विश्लेषण के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 557 रैप्टर प्रजातियों में से लगभग 30% को कुछ स्तर तक विलुप्त होने का खतरा है।
- बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार: हाल ही में भारतीय जीवविज्ञानी शैलेंद्र सिंह को तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) कछुए की प्रजातियों को उनके विलुप्त होने की स्थिति से बाहर लाने हेतु बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार (Behler Turtle Conservation Award) से सम्मानित किया गया है।
- ‘बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार’ कछुआ संरक्षण में शामिल कई वैश्विक निकायों जैसे- ‘टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA), IUCN/SSC कच्छप और मीठे पानी के कछुआ विशेषज्ञ समूह, कछुआ संरक्षण तथा ‘कछुआ संरक्षण कोष’ द्वारा प्रदान किया जाता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विश्व इतिहास
नेपोलियन बोनापार्ट
मेन्स के लियेफ्राँसीसी क्रांति का संक्षिप्त परिचय, नेपोलियन द्वारा उठाए गए कुछ जन-समर्थक कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में डीएनए साक्ष्य पूर्वावलोकन द्वारा खोजी गई एक नई टोपी, जो यह प्रमाणित करती है कि यह नेपोलियन बोनापार्ट की थी, को हॉन्गकॉन्ग के एक नीलामी घर में प्रदर्शित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- संक्षिप्त परिचय :
- नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त, 1769 को कोर्सिका (भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप) की राजधानी अजाशियो ( Ajaccio) में हुआ था।
- उसे नेपोलियन-I के नाम से भी जाना जाता है।
- एक फ्राँसीसी सैन्य प्रमुख और सम्राट जिसने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की।
- वर्ष 1804 में इसने स्वयं को सम्राट घोषित किया।
- 5 मई, 1821 को सेंट हेलेना द्वीप पर उसका निधन हो गया।
- नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त, 1769 को कोर्सिका (भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप) की राजधानी अजाशियो ( Ajaccio) में हुआ था।
- नेपोलियन बोनापार्ट का उदय:
- फ्राँसीसी क्रांति: नेपोलियन बोनापार्ट फ्राँसीसी क्रांति के दौरान सेना के स्थापित रैंकों के माध्यम से शीघ्रता से पदोन्नत हुआ।
- उसे फ्राँसीसी क्रांति (1789-1799) की संतान माना जाता है।
- एक सुदूर-वाम राजनीतिक आंदोलन और फ्राँसीसी क्रांति के सबसे प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय राजनीतिक क्लब के एक युवा नेता के रूप में उसने तत्परता से जैकोबिन्स (Jacobins) के लिये अपना समर्थन दिखाया।
- वह फ्राँसीसी क्रांतिकारी युद्धों में लड़ा तथा 1793 में ब्रिगेडियर जनरल के रूप में पदोन्नत किया गया।
- कैम्पो फॉर्मियो की संधि (1797): उत्तरी इटली में ऑस्ट्रियाई लोगों के खिलाफ जीत के बाद उसने कैंपो फॉर्मियो (Campo Formio) की संधि पर विचार किया।
- नील नदी का युद्ध (1798): उसने मिस्र (1798-99) को जीतने का प्रयास किया, लेकिन नील नदी के युद्ध में होरेशियो नेल्सन के नेतृत्व में अंग्रेज़ों ने उसे हरा दिया।
- 18 ब्रूमेयर का तख्तापलट (1799): इस घटना में नेपोलियन एक ऐसे समूह का हिस्सा था जिसने फ्राँसीसी निर्देशिका को सफलतापूर्वक उखाड़ फेंका।
- निर्देशिका को तीन सदस्यीय वाणिज्य दूतावास के साथ परिवर्तित कर दिया गया था, नेपोलियन पहला कौंसल/वाणिज्य-दूत (Consul) बन गया, जिससे वह फ्राँस के प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में उभरा।
- मारेंगो की लड़ाई (1800): नेपोलियन की सेना ने फ्राँस के स्थायी शत्रुओं में से एक ऑस्ट्रिया को हराया और उसे इटली से बाहर कर दिया।
- इस जीत ने नेपोलियन की शक्ति को प्रथम वाणिज्यिक-दूत के रूप में स्थापित करने में मदद की।
- इसके अतिरिक्त 1802 में ब्रिटिश और फ्राँस ने युद्ध को समाप्त करते हुए अमीन्स की संधि पर हस्ताक्षर किये (हालाँकि इस शांति की समयावधि केवल एक वर्ष थी)।
- फ्राँसीसी क्रांति: नेपोलियन बोनापार्ट फ्राँसीसी क्रांति के दौरान सेना के स्थापित रैंकों के माध्यम से शीघ्रता से पदोन्नत हुआ।
- नेपोलियन बोनापार्ट का शासनकाल:
- नेपोलियन से संबंधित युद्ध: वर्ष 1803 से 1815 तक फ्राँस नेपोलियन से संबंधित युद्धों में लगा हुआ था, जो कि यूरोपीय देशों के विभिन्न गठबंधनों के साथ प्रमुख संघर्षों की एक शृंखला है।
- लुइसियाना खरीद: वर्ष 1803 में आंशिक रूप से भविष्य के युद्धों के लिये धन जुटाने के साधन के रूप में नेपोलियन ने उत्तरी अमेरिका में फ्राँस के लुइसियाना क्षेत्र को नए स्वतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका को $15 मिलियन में बेच दिया, इस लेन-देन को बाद में ‘लुइसियाना’ खरीद के रूप में जाना जाने लगा।
- ट्रफैलगर की लड़ाई: अक्तूबर 1805 में अंग्रेज़ों ने ट्रफैलगर की लड़ाई में नेपोलियन के बेड़े का सफाया कर दिया।
- हालाँकि उसी वर्ष दिसंबर में नेपोलियन ने वह प्राप्त किया’ जो ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई में उसकी सबसे बड़ी जीत में से एक माना जाता है।
- उसकी सेना ने ऑस्ट्रियाई और रूसियों को हराया।
- जीत के परिणामस्वरूप पवित्र रोमन साम्राज्य का विघटन हुआ और राइन परिसंघ का निर्माण हुआ।
- हालाँकि उसी वर्ष दिसंबर में नेपोलियन ने वह प्राप्त किया’ जो ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई में उसकी सबसे बड़ी जीत में से एक माना जाता है।
- नेपोलियन द्वारा शुरू किये गए सुधार:
- नेपोलियन संहिता: 21 मार्च, 1804 को नेपोलियन ने नेपोलियन संहिता की स्थापना की, जिसे फ्राँसीसी नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है, जिसके कुछ हिस्से आज भी दुनिया भर में उपयोग में हैं।
- इसने जन्म के आधार पर विशेषाधिकारों की मनाही की, धर्म की स्वतंत्रता की अनुमति दी और कहा कि सरकारी नौकरी सबसे योग्य लोगों को दी जानी चाहिये।
- इसमें आपराधिक कोड, सैन्य कोड और नागरिक प्रक्रिया संहिता तथा वाणिज्यिक कोड शामिल थे।
- नेपोलियन संहिता ने नेपोलियन के नए संविधान का पालन किया, जिसने पहला ‘कौंसल’ बनाया।‘
- ‘कौंसल’ एक ऐसी स्थिति थी जो किसी तानाशाही शासन से कम नहीं थी।
- दासता और सामंतवाद की समाप्ति: नेपोलियन बोनापार्ट ने लोगों को स्वतंत्र करने के लिये देश में "दासता और सामंतवाद" को समाप्त कर दिया।
- दास प्रथा, मध्यकालीन यूरोप में एक ऐसी स्थिति थी जिसमें एक काश्तकार किसान भूमि के वंशानुगत भूखंड और अपने ज़मींदार की इच्छा से बंँधा हुआ था।
- सामंतवाद 10वीं-13वीं शताब्दी के यूरोपीय मध्ययुगीन समाजों की व्यवस्था थी जहांँ स्थानीय प्रशासनिक नियंत्रण और इकाइयों (जागों) में भूमि के वितरण के आधार पर एक सामाजिक पदानुक्रम स्थापित किया गया था।
- शिक्षा: नेपोलियन ने स्कूलों की एक विस्तृत प्रणाली की स्थापना की, जिसे लाइसी (lycées) कहा जाता है, जो अभी भी उपयोग में है। वह सार्वभौमिक शिक्षा का प्रस्तावक था।
- नेपोलियन संहिता: 21 मार्च, 1804 को नेपोलियन ने नेपोलियन संहिता की स्थापना की, जिसे फ्राँसीसी नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है, जिसके कुछ हिस्से आज भी दुनिया भर में उपयोग में हैं।
- नेपोलियन का पतन:
- महाद्वीपीय प्रणाली: यह ब्रिटिश वाणिज्य एवं व्यापार को समाप्त करके ग्रेट ब्रिटेन को पंगु बनाने के लिये नेपोलियन द्वारा डिज़ाइन की गई नाकाबंदी थी। यह काफी हद तक अप्रभावी साबित हुई और अंततः नेपोलियन के पतन का कारण बनी।
- प्रायद्वीपीय युद्ध (1807–1814): यह नेपोलियन के सैन्य अभियानों के दौरान इबेरियन प्रायद्वीप के नियंत्रण के लिये फ्रांँस की आक्रमणकारी नीति के खिलाफ स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और पुर्तगाल द्वारा लड़ा गया सैन्य संघर्ष था।
- रूस का आक्रमण: नेपोलियन ने यूनाइटेड किंगडम पर शांति स्थापित करने के लिये दबाव बनाने को ब्रिटिश व्यापारियों के साथ व्यापार बंद करने हेतु रूस के ज़ार अलेक्जेंडर को गुप्त रूप से मजबूर किया।
- वर्ष 1812 में रूस के विनाशकारी आक्रमण के बाद फ्राँसीसी प्रभुत्व का तेज़ी से पतन हुआ। वर्ष 1812 में कई कारणों के चलते नेपोलियन रूस पर विजय प्राप्त करने में विफल रहा, जैसे- दोषपूर्ण रसद, खराब अनुशासन, बीमारी,और प्रतिकूल मौसम ।
- वर्ष 1814 में नेपोलियन को पराजित कर एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया, इस प्रकार अंततः 1815 में वाटरलू के युद्ध में वह पराजित हो गया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
श्रीलंका में खाद्य आपातकाल
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रा मूल्यह्रास, विदेशी मुद्रा भंडार, सकल घरेलू उत्पाद, मुद्रास्फीति मेन्स के लिये:श्रीलंका में खाद्य आपातकाल का कारण एवं इसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा मूल्यह्रास और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिये आर्थिक आपातकाल की घोषणा की है।
- श्रीलंका में सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश के तहत आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर आपातकाल घोषित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- श्रीलंकाई आर्थिक संकट के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- अंडरपरफॉर्मिंग टूरिज़्म इंडस्ट्री: पर्यटन उद्योग जो देश के सकल घरेलू उत्पाद के 10% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है और विदेशी मुद्रा का स्रोत है, कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
- नतीजतन वर्ष 2019 में विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर से गिरकर जुलाई 2021 में लगभग 2.8 बिलियन डॉलर हो गया है।
- मुद्रा का मूल्यह्रास: विदेशी मुद्रा की आपूर्ति के अत्यधिक कम होने के साथ श्रीलंकाई लोगों को सामान आयात करने के लिये आवश्यक विदेशी मुद्रा खरीदने हेतु जितना पैसा खर्च करना पड़ा है, वह बढ़ गया है।
- इसकी वजह से इस वर्ष अब तक श्रीलंकाई रुपये के मूल्य में करीब 8% की गिरावट आई है।
- बढ़ती मुद्रास्फीति: श्रीलंका अपनी बुनियादी खाद्य आपूर्ति, जैसे- चीनी, डेयरी उत्पाद, गेहूँ, चिकित्सा आपूर्ति को पूरा करने के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- ऐसे में रुपए में गिरावट के साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज़ी आई है।
- विदेशी मुद्रा का कम होना: महामारी ने विदेशी मुद्रा आय के सभी प्रमुख स्रोतों जैसे- निर्यात, श्रमिकों के प्रेषण आदि को प्रभावित किया है।
- खाद्यान में कमी: श्रीलंका सरकार का हाल ही में रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाने और "केवल जैविक" दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय।
- रातों-रात जैविक खादों की ओर रुख करने से खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
- अंडरपरफॉर्मिंग टूरिज़्म इंडस्ट्री: पर्यटन उद्योग जो देश के सकल घरेलू उत्पाद के 10% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है और विदेशी मुद्रा का स्रोत है, कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
- आपातकालीन संकट के तहत उठाए गए कदम:
- आपातकालीन प्रावधान सरकार को आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिये खुदरा मूल्य निर्धारित करने और व्यापारियों से स्टॉक ज़ब्त करने की अनुमति देते हैं।
- आपातकालीन कानून अधिकारियों को वारंट के बिना लोगों को हिरासत में लेने, संपत्ति को ज़ब्त करने, किसी भी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने, कानूनों को निलंबित करने तथा आदेश जारी करने में सक्षम बनाता है, इन पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
- इसके अलावा ऐसे आदेश जारी करने वाले अधिकारी भी मुकदमों से मुक्त होते हैं।
- सेना उस कार्रवाई की निगरानी करेगी जो अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देती है कि आवश्यक वस्तुओं को सरकार द्वारा गारंटीकृत कीमतों पर बेचा जाए।
- कदम की आलोचना:
- खतरा यह है कि असंतोष को दबाने की वर्तमान सरकार की प्रवृत्ति को देखते हुए विरोध और अन्य लोकतांत्रिक कार्रवाइयों को रोकने के लिये आपातकालीन नियमों का इस्तेमाल किया जाएगा।
- श्रीलंका के पास एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली या राशन कार्ड नहीं है जो यह सुनिश्चित कर सके कि आवश्यक सामान सभी उपभोक्ताओं तक पहुँच सके।
- वर्तमान विनियम इसकी मूलभूत आर्थिक समस्या का समाधान नहीं करते हैं और इसके बजाय काला बाज़ारी का जोखिम पैदा करते हैं।
- राज्य संस्थानों के बढ़ते सैन्यीकरण संबंधी मुद्दे भी चिंता का विषय हैं।
- श्रीलंका में यह आर्थिक आपातकाल भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल से बहुत अलग है।
भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल
- घोषणा का आधार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि वह संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसके कारण भारतीय राज्यक्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या क्रेडिट को खतरा है।
- संसदीय अनुमोदन और अवधि: वित्तीय आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।
- संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होने के बाद वित्तीय आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है, जब तक कि इसे रद्द नहीं किया जाता।
- वित्तीय आपातकाल का प्रभाव
- राज्यों के वित्तीय मामलों पर संघ के कार्यकारी अधिकार का विस्तार।
- राज्य में सेवारत सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के वेतन और भत्तों में कटौती।
- राज्य की विधायिका द्वारा पारित किये जाने के बाद सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।
- संघ की सेवा में कार्यरत सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्तों में कटौती के लिये राष्ट्रपति से निर्देश।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
कॉमन सर्विस सेंटर (CSC)
प्रिलिम्स के लिये:ई-गवर्नेंस योजना, कॉमन सर्विस सेंटर, ग्राम पंचायत, नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क मेन्स के लिये:ई-गवर्नेंस में सीएससी और डिजिटल इंडिया की महत्ता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामान्य सेवा केंद्रों/कॉमन सर्विस सेंटर (Common Services Centres- CSC) को ग्रामीण क्षेत्रों में पासपोर्ट सेवा केंद्र कियोस्क (Passport Seva Kendra kiosks) के प्रबंधन और संचालन की मंज़ूरी प्राप्त हुई है।
प्रमुख बिंदु
- CSC के बारे में:
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) की एक पहल है।
- CSC राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) की एक रणनीतिक आधारशिला है, जिसे मई 2006 में सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था, यह बड़े स्तर पर ई-गवर्नेंस को शुरू करने हेतु राष्ट्रीय सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम में प्रतिबद्धता के रूप में है।
- CSCs का उद्देश्य ई-गवर्नेंस, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेलीमेडिसिन, मनोरंजन के साथ-साथ अन्य निजी सेवाओं के क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी वीडियो, वाॅइस और डेटा सामग्री तथा सेवाएंँ प्रदान करना है।
- यह योजना निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों के लिये CSC योजना के कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये एक अनुकूल वातावरण प्रदान करती है, जो ग्रामीण भारत के विकास में सरकार की भागीदारी को सुनिशित करता है।
- CSC योजना के निजी-सार्वजनिक भागीदारी (Public Private Partnership- PPP ) मॉडल में एक 3-स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई है जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- सीएससी ऑपरेटर (CSC Operator) जिन्हें ग्राम स्तरीय उद्यमी या वीएलई कहा जाता है।
- सर्विस सेंटर एजेंसी (CSA), जो 500-1000 CSCs के विभाजन के लिये ज़िम्मेदार होगी
- राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राज्य नामित एजेंसी (SDA) पूरे राज्य में कार्यान्वयन के प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार।
- सीएससी और डिजिटल इंडिया:
- डिजिटल इंडिया भारत का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना है।
- CSC डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तीन विज़न क्षेत्रों को सक्षम बनाता है:
- प्रत्येक नागरिक के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर एक उपयोगिता के रूप में;
- मांग पर शासन और सेवाएँ;
- नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण।
- सीएससी 2.0:
- इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था, जिसने देश के सभी ग्राम पंचायतों में कार्यक्रम की पहुँच का विस्तार किया। 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक में कम-से-कम एक सीएससी की परिकल्पना की गई है।
- CSC 2.0 एक सेवा वितरण उन्मुख उद्यमिता मॉडल है, जो कि स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (SWAN), स्टेट सर्विस डिलीवरी गेटवे (SSDG), ई-डिस्ट्रिक्ट (e-District), स्टेट डेटा सेंटर (SDC) और नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN)/ भारतनेट (BharatNet) के रूप में पहले से निर्मित बुनियादी ढाँचे के इष्टतम उपयोग के माध्यम से नागरिकों के लिये उपलब्ध कराई गई सेवाओं का एक व्यापक मंच है।