आभासी मुद्रा का दौर और भारत
संदर्भ
मुद्रा के आविष्कार से पहले लोग बार्टर सिस्टम के ज़रिये वस्तुओं का लेन-देन किया करते थे लेकिन जैसे-जैसे तकनीक उन्नत होती गई व्यापार के तरीकों में भी बदलाव आता गया। आभासी मुद्रा (virtual currency) का लगातार बढ़ रहा प्रचलन 21वीं सदी के सबसे महत्त्वपूर्ण बदलावों में से एक है। आभासी मुद्रा को लेकर हाल ही में आर्थिक मामलों के मंत्रालय ने यह आदेश पारित किया है कि लोग बिटकॉइन तथा अन्य क्रिप्टो-करेंसी में निवेश करने से बचें।
क्या है क्रिप्टो-करेंसी?
- क्रिप्टो-करेंसी क्रिप्टोग्राफी प्रोग्राम पर आधारित एक वर्चुअल करेंसी या ऑनलाइन मुद्रा है। यह पीयर-टू-पीयर कैश सिस्टम है।
- क्रिप्टो-करेंसी को डिजिटल वालेट में ही रखा जा सकता है। दरअसल, क्रिप्टो-करेंसी के इस्तेमाल के लिये बैंक या किसी अन्य वित्तीय संस्थान की ज़रूरत नहीं होती।
क्या है फिएट और नॉन-फिएट क्रिप्टो-करेंसी?
- “नॉन-फिएट” क्रिप्टो-करेंसी (“non-fiat” cryptocurrency) को लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ-साथ सरकारें भी समय-समय पर एडवाइजरी ज़ारी करती रहती हैं।
- एक ‘नॉन-फिएट’ क्रिप्टो-करेंसी जैसे कि बिटकॉइन, एक निजी क्रिप्टो-करेंसी है। जबकि ‘फिएट क्रिप्टो-करेंसी’ एक डिजिटल मुद्रा है जो देश के केद्रीय बैंक द्वारा जारी किया जाता है।
- “नॉन-फिएट” क्रिप्टो-करेंसी को लेकर तमाम तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं और यह तकनीकी उन्नयन विनाशकारी साबित हो सकता है।
- यदि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कोई आभासी मुद्रा जारी की जाती है, तो उसे फ़िएट क्रिप्टो-करेंसी कहा जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि सभी क्रिप्टो-करेंसी बिटकॉइन नहीं हैं, जबकि सभी बिटकॉइन क्रिप्टो-करेंसी हैं। बिटकॉइन (bitcoin), एथ्रॉम (ethereum) और रिप्पल (ripple) कुछ लोकप्रिय क्रिप्टो-करेंसी हैं।
क्रिप्टो-करेंसी की लोकप्रियता के कारण
- निजता बनाए रखने में मददगार:
⇒ क्रिप्टो-करेंसी के ज़रिये लेन-देन के दौरान छद्म नाम एवं पहचान बताए जाते हैं। ऐसे में अपनी निजता को लेकर अत्यधिक संवेदनशील व्यक्तियों को यह माध्यम उपयुक्त जान पड़ता है।
- एक लागत-प्रभावी विकल्प:
⇒ क्रिप्टो-करेंसी में लेन-देन संबंधी लागत अत्यंत ही कम है। धरेलू हो या अंतर्राष्ट्रीय किसी भी लेन-देन की लागत एक समान ही होती है।
⇒ क्रिप्टो-करेंसी के ज़रिये होने वाले लेन-देन में ‘थर्ड-पार्टी सर्टिफिकेशन’ (third party certification) की आवश्यकता नहीं होती। अतः धन एवं समय दोनों की बचत होती है।
- न के बराबर हैं प्रवेश जनक बाधाएँ:
⇒ गौरतलब है कि बैंक में अकाउंट खोलने से लेकर लगभग सभी लेन-देन के लिये कई तरह के प्रमाण पत्रों की ज़रूरत होती है, जबकि क्रिप्टो-करेंसी के मामले में ऐसा नहीं है।
⇒ वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले लेन-देन के लिये भी कई तरह की औपचारिकताओं से गुज़रना होता है जबकि क्रिप्टो-करेंसी से होने वाले लेन-देन में इन बातों का संज्ञान नहीं लिया जाता है।
- पारंपरिक बैकिंग व्यवस्था का एक विकल्प:
⇒ बैंकिंग प्रणालियों तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले लेन-देन पर सरकार का सख्त नियंत्रण होता है।
⇒ वहीं क्रिप्टो-करेंसी उपयोगकर्त्ताओं को राष्ट्रीय बैंकिंग सिस्टम के प्रत्यक्ष नियंत्रण के बाहर धन के आदान-प्रदान का एक विश्वसनीय और सुरक्षित माध्यम प्रदान करता है।
- ओपन सोर्स पद्धति:
⇒ गौरतलब है कि अधिकांश क्रिप्टो-करेंसी प्लेटफार्म ओपन सोर्स पद्धति पर आधारित होते हैं। इन प्लेटफॉर्म्स के सॉफ्टवेयर कोड सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रहते हैं।
⇒ इसका प्रभाव यह होता है कि क्रिप्टो-करेंसी प्लेटफार्म में लगातार सुधार की संभावनाएँ बनी रहती हैं।
- वित्तीय दंड से सुरक्षा:
⇒ विदित हो कि सरकारों के पास बैंक खाते को फ्रीज या जब्त करने का अधिकार है, लेकिन क्रिप्टो-करेंसी के मामले में वे ऐसा नहीं कर सकती हैं।
⇒ अतः सरकार के नियंत्रण से बचाव के एक प्रभावकारी विकल्प के रूप में भी क्रिप्टो-करेंसी का प्रयोग किया जा रहा है।
क्रिप्टो-करेंसी का प्रचलन खतरनाक क्यों?
- एक असुरक्षित मुद्रा:
⇒ क्रिप्टो-करेंसी की सम्पूर्ण व्यवस्था के ऑनलाइन होने के कारण इसकी सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है और इसके हैक होने का खतरा बना रहता है।
⇒ क्रिप्टो-करेंसी की सबसे बड़ी समस्या है इसका ऑनलाइन होना और यही कारण है कि क्रिप्टो-करेंसी को एक असुरक्षित मुद्रा माना जा रहा है।
- देश की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
⇒ यह ‘मुख्य वित्तीय सिस्टम’ और ‘बैंकिंग प्रणाली’ से बाहर रहकर काम करती है। यही कारण है कि इसके स्रोत और सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रश्न उठते रहते हैं।
⇒ इस डिजिटल मुद्रा को फ्रॉड, हवाला मनी और आतंकी गतिविधियों को पोषित करने वाली मुद्रा के रूप में संबोधित किया जाता रहा है।
- नियंत्रण एवं प्रबन्धन की समस्या:
⇒ क्रिप्टो-करेंसी से संबंधित एक बड़ी समस्या इसके नियंत्रण एवं प्रबंधन की भी है। भारत जैसे कई देशों ने अभी तक इसे मुद्रा के रूप में स्वीकृति प्रदान नहीं की है, ऐसे में इसका प्रबंधन एक बड़ी समस्या है।
⇒ आर्थिक जानकारों का भी मानना है कि इसकी तकनीकी जानकारी रखे बिना इसमें निवेश करने के भारी दुष्परिणाम हो सकते हैं।
- पर्यावरणीय चिंताएँ:
⇒ गौरतलब है कि प्रत्येक बिटकॉइन लेन-देन के लिये लगभग 237 किलोवाट बिजली की खपत होती है और इससे प्रतिघंटा लगभग 92 किलो कार्बन का उत्सर्जन होता है।
क्या है वर्तमान स्थिति?
- इन तमाम चिंताओं के बावजूद बिटकॉइन और एथ्रॉम जैसी क्रिप्टो-करेंसियाँ लगातार लोकप्रिय होती जा रही हैं और सरकारें चाहकर भी इन पर नियंत्रण नहीं कर पा रही हैं।
- विश्व के शीर्ष केंद्रीय बैंकों को यह महसूस होने लगा है कि क्रिप्टो-करेंसी को नियंत्रित करने की कोशिश निरर्थक है और वे स्वयं के क्रिप्टो-करेंसी जारी करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
- गौरतलब है कि नाम नामित "लक्ष्मी" होगा।
- भारत की यह अपनी क्रिप्टो-करेंसी फिएट क्रिप्टो-करेंसी के नाम से जानी जाएगी जिसका जिक्र हम इस लेख के आरंभ में कर चुके हैं।
इस संबंध में सरकार के प्रयास
- देश में बिटकॉइन की स्थिति तय करने के लिये वित्त मंत्रालय ने एक अंतर-अनुशासनात्मक समिति गठित की है, जो भारत में बिटकॉइन के भविष्य की दशा-दिशा पर सुझाव देगी।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में आयकर विभाग ने देश के बड़े बिटकॉइन एक्सचेंजों में टैक्स चोरी की संभावनाओं के मद्देनज़र सर्वे किये थे और इसके मद्देनज़र सरकार द्वारा बिटकॉइन पर एक अन्य समिति का गठन किया है।
- रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर बी.पी. कानूनगो और सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी वित्त मंत्रालय द्वारा गठित इस समिति में शामिल हैं।
- हालाँकि, इससे पहले मार्च 2017 में बिटकॉइन पर एक समिति बनाई गई थी, जो कोई ठोस सुझाव देने में असफल रही थी।
आगे की राह
- सेंट्रल बैंक की अपनी डिजिटल मुद्रा:
⇒ वर्ष 2007 में सुभाष चंद्रा ने आईसीएल (Indian cricket league) की शुरुआत की थी। यहाँ भी स्थिति लगभग बिटकॉइन जैसी ही थी।
⇒ देश में क्रिकेट संबंधी गतिविधियों की विधिवत कर्त्ता-धर्त्ता बीसीसीआई चाहकर भी इसे बंद नहीं करा पाई।
⇒ ऐसे में बीसीसीआई ने आईपीएल के नाम से खुद की अपनी टी-20 लीग शुरू की और आईसीएल खत्म हो गया।
⇒ दुनिया भर के सेंट्रल बैंकों को भी यही करना चाहिये, उन्हें स्वयं की अपनी क्रिप्टो-करेंसी जारी करनी चाहिये। भारत इसकी कवायद आरंभ भी कर चुका है।
- डबल स्पेंडिंग की समस्या का निदान:
⇒ यदि देश के सेंट्रल बैंक द्वारा खुद की वर्चुअल करेंसी जारी की जाती है तो सबसे पहले डबल स्पेंडिंग की समस्या (problem of double spending) से निपटना होगा।
⇒ दरअसल, क्रिप्टो-करेंसी एक डिजिटल करेंसी होगी और यह देखते हुए कि जो कुछ भी डिजिटल है उसे आसानी से कॉपी किया जा सकता है।
⇒ ऐसे में कोई किसी को मुद्रा की एक ही इकाई के दुबारा (double) इस्तेमाल से कैसे रोक सकता है?
⇒ डबल स्पेंडिंग की समस्या से निपटने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। फिर भी इसे हैक-प्रूफ बनाने हेतु अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
ब्लॉकचेन क्या है?
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- क्रिप्टो-करेंसी का विनियमन:
⇒ यदि क्रिप्टो-करेंसी को एक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली के रूप में अधिकृत कर वैधानिकता प्रदान की गई तो इसके विनियमन का दायित्व आरबीआई को निभाना होगा।
⇒ पूंजी लाभ (capital gains) और व्यापारिक लेन-देन (business transaction) पर टैक्स की व्यवस्था करनी होगी।
⇒ साथ ही, विदेशों में होने वाले भुगतान को विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (Foreign Exchange Management Act) के दायरे में लाना होगा।
⇒ क्रिप्टो-करेंसी का विनियमन उपभोक्ता संरक्षण को मज़बूती प्रदान करेगा।
- क्रिप्टो-करेंसी को सामाजिक विकास से जोड़ने की ज़रूरत:
⇒ क्रिप्टो-करेंसी का इस्तेमाल सामाजिक विकास के लिये किया जा सकता है। हालाँकि इसमें कुछ सावधानियाँ बरतने की भी ज़रूरत है।
⇒ किस विशेष सामाजिक विकास के कार्य संपूर्ण हो जाने और विशेषज्ञों द्वारा इसकी सम्पूर्णता की जाँच के उपरांत गैर-लाभकारी संगठनों एवं निजी संगठनों को क्रिप्टो-करेंसी दिया जा सकता है।
⇒ इससे गैर-लाभकारी संगठनों के बीच सामाजिक विकास के लिये भागीदारी और प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी होगी।
⇒ यदि सामाजिक विकास के क्षेत्र में भागीदारी और प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती है, तो यह विदेशी निवेशकों के साथ-साथ कॉर्पोरेट संगठनों को आकर्षित कर सकेगा।
⇒ अतः क्रिप्टो-करेंसी का इस्तेमाल सामाजिक विकास की प्रक्रिया में जवाबदेही, पारदर्शिता और इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस के अलावा नवाचारों को भी बढ़ावा देगा।
संभावित लाभ
- भारत में सबसे ज़्यादा नकदी संचालन में है, 2014 में यह जीडीपी की 12.42% थी, जबकि चीन और ब्राज़ील के लिये ये आँकड़े क्रमशः 9.47% तथा 4% थे।
- गौरतलब है कि नकद संचालन में भारतीय रिज़र्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों का सालाना खर्च 21,000 करोड़ रुपए आता है। ऐसे में क्रिप्टो-करेंसी को बढ़ावा देना कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- क्रिप्टो-करेंसी वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में भी अहम् साबित हो सकता है। विदित हो कि वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी का सबसे बड़ा कारण बैंकों का दिवालिया हो जाना था और भविष्य में भी ऐसा हो सकता है।
- इन परिस्थितियों में यदि बैंकिंग व्यवस्था से अलग लेकिन एक विनियमित मुद्रा जैसे की फिएट क्रिप्टो-करेंसी अहम् साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
- क्रिप्टो-करेंसी की आगे की सफलता इसके विनियामक ढाँचे के स्वरूप पर निर्भर करता है। दरअसल विभिन्न देशों ने इस नवाचार के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाया है।
- गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले वेनेजुएला ने पेट्रो नामक क्रिप्टो-करेंसी का प्रचालन आरंभ किया था, लेकिन हाल ही में वहाँ की संसद ने पेट्रो को अवैध घोषित कर दिया है।
- यही कारण है कि इस संबंध में नियामकीय अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।
- अतः सरकार को आतंक के वित्तपोषण, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी में क्रिप्टो-करेंसी के संभावित प्रयोग को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनानी होंगी।