विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति का मसौदा
- 14 Jan 2021
- 12 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति के मसौदे से जुड़े प्रस्ताव के महत्त्व व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
COVID-19 महामारी ने विश्व के समक्ष इस तथ्य को उजागर किया है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान को पहले की तुलना में अधिक गंभीरता से लेना होगा। भारत में इस महामारी ने अनुसंधान और विकास से जुड़े संस्थानों, शिक्षाविदों तथा उद्योगों को एक साझा उद्देश्य, तालमेल, सहयोग एवं समन्वय के साथ काम करने का अवसर प्रदान किया है।
हाल के वर्षों में समाज में इस बात की समझ और स्वीकार्यता बढ़ी है कि विज्ञान के माध्यम से समाज की कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, इसी के तहत भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति [National Science, Technology and Innovation Policy (STIP)] 2020’ का मसौदा जारी किया गया है। STIP आने वाले दशक में भारत को विश्व की शीर्ष तीन वैज्ञानिक महाशक्तियों के बीच स्थापित करने के दृष्टिकोण से निर्देशित होगी। इसके अतिरिक्त यह नीति आत्मनिर्भर भारत के वृहत लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत के STI पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने के लिये आवश्यक रणनीतियों को रेखांकित करती है।
नीति में शामिल नए विचार और उनका महत्त्व:
- ओपन साइंस फ्रेमवर्क और समावेशन: ओपन साइंस अनुसंधान में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ इसके परिणामों को अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाने के माध्यम से विज्ञान में अधिक न्यायसंगत भागीदारी को बढ़ावा देता है।
- इसके अतिरिक्त न्यूनतम प्रतिबंध और उत्पादकों तथा उपयोगकर्त्ताओं के बीच ज्ञान के निरंतर आदान-प्रदान के माध्यम से यह संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करेगा।
- यह ढाँचा मुख्य रूप से समुदाय-संचालित होने के साथ ही आवश्यक संस्थागत तंत्र तथा परिचालन साधनों से समर्थित होगा।
- एक देश, एक सदस्यता: STIP एक केंद्रीय भुगतान तंत्र के माध्यम से प्रत्येक भारतीय को सभी पत्रिकाओं (भारतीय और विदेशी) तक नि:शुल्क पहुँच प्रदान करने की परिकल्पना करता है।
- वर्तमान में प्रमुख सरकारी विभाग, अन्वेषकों, उद्योग आदि जैसे उपभोक्ताओं की इन शोध पत्रिकाओं तक व्यापक पहुँच नहीं है।
- ऐसे में यह नीति न सिर्फ शोधकर्त्ताओं को बल्कि देश के प्रत्येक व्यक्ति को विद्वत्तापूर्ण ज्ञान तक पहुँच प्रदान कर विज्ञान का लोकतंत्रीकरण करने का प्रयत्न करती है।
- विज्ञान और लैंगिक समानता: भारत द्वारा प्राचीन काल से ही विज्ञान और शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी को महत्त्व दिया गया है।
- लीलावती, गार्गी और खाना सहित कई अन्य शुरुआती महिला वैज्ञानिकों ने गणित, प्राकृतिक विज्ञान और खगोल विज्ञान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- पिछले छह वर्षों में भारत में अनुसंधान और विकास (R&D) के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दोगुनी हो गई है; हालाँकि R&D में महिलाओं की कुल भागीदारी मात्र 16% ही है।
- ऐसे में यह नीति जैविक/भौतिक आयु की बजाय शैक्षिक आयु/अनुभव को मुख्य कारक मानकर कामकाज़ी महिलाओं द्वारा ली गई छुट्टियों के कारण उनके पेशेवर जीवन में आए अंतराल की चुनौती को दूर करते हुए लैंगिक समानता लाने की परिकल्पना करती है।
- इसके अतिरिक्त यह नीति एक समावेशी संस्कृति की परिकल्पना प्रस्तुत करती है, जिसे ग्रामीण-दूरदराज़ के क्षेत्रों, हाशिये के समुदायों, दिव्यांगजनों आदि उम्मीदवारों को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद समान अवसर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाएगी।
- पारंपरिक ज्ञान और मौलिकता: यह नीति पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों (Traditional Knowledge Systems-TKS) और ज़मीनी स्तर के नवोन्मेष को समग्र शिक्षा, अनुसंधान तथा नवाचार प्रणाली में एकीकृत करने के लिये एक संस्थागत अवसंरचना की स्थापना की परिकल्पना करती है।
- स्वदेशी ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करने का यह विशेष प्रयास भारत को विश्व स्तर पर स्थापित करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि यह आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित प्राचीन ज्ञान की अद्वितीय प्रौद्योगिकियों तथा योग्यता पर आधारित होगा ।
- सहयोग और शोध की सुगमता: प्रस्तावित विज्ञान प्रौद्योगिकी नवाचार वेधशाला (Science Technology Innovation Observatory) की इस सहभागिता हेतु नेटवर्क में एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक भूमिका होगी।
- इसके अतिरिक्त चुने हुए रणनीतिक क्षेत्रों में प्रत्यक्ष दीर्घकालिक निवेश को बढ़ावा देने हेतु कायिक निधि या कॉर्पस फंड की सुविधा के लिये एक ‘एसटीआई विकास बैंक’ (STI Development Bank) की स्थापना की जाएगी।
आगे की राह:
- परिचालन क्लस्टर: आने वाले समय में जब भी यह मसौदा नीति वास्तविक प्रक्रिया का आकार लेगी, तो इसमें क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण को शामिल किये जाने पर अवश्य ही ध्यान दिया जाना चाहिये।
- क्लस्टर में आपूर्तिकर्त्ता, निर्माता, ग्राहक, श्रम बाज़ार, वित्तीय मध्यस्थ, पेशेवर और उद्योग संघ, नियामक संस्थान तथा सरकारी विभाग सहित कई संगठन शामिल होते हैं।
- ये एक विशिष्ट डोमेन में मज़बूत विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान क्षमताओं के विकास को बढ़ावा देने के साथ ही इन क्षमताओं को अनुप्रयोगों में बदलने में सहायता करते हैं।
- कैलिफोर्निया (अमेरिका) स्थित सिलिकॉन वैली इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर क्लस्टर का एक उदाहरण है।
- अनुसंधान के लिये निधि में वृद्धि: वर्तमान में अनुसंधान और विकास पर भारत का सकल घरेलू व्यय (Gross Domestic Expenditure on R&D-GRED) इसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मात्र 0.6% है जो अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के GERD-GDP अनुपात (1.5% से 3%) की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
- देश में अनुसंधान और विकास (R&D) पर होने वाले खर्च को बढ़ाने का एक तरीका यह है कि इसे कंपनियों द्वारा निवेश के लिये आकर्षक बनाया जाए।
- इस संदर्भ में नौकरशाही में सुधार के साथ ‘कर लाभ’ और नई कंपनियों के लिये बाज़ार पहुँच को आसान बनाने पर भी विचार किया जाना चाहिये।
- नवीन प्रौद्योगिकी में अनुसंधान: नवीन प्रौद्योगिकियाँ जिन्हें सामूहिक रूप से औद्योगिक क्रांति 4.0 कहा जाता है, निस्संदेह विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिदृश्य का भविष्य हैं।
- भारत को अवश्य ही इन परिवर्तित और प्रभावकारी प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना चाहिये।
- इन संबद्ध तकनीकों पर अधिक शोध को बढ़ावा देना कई उद्योगों जैसे-रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- विज्ञान कूटनीति: भारत को अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहभागिता के साथ ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार कूटनीति’ (STIP diplomacy) में अपनी सक्रियता बढ़ानी चाहिये।
- यह स्वदेशीकरण के दायरे को बढ़ाने और राष्ट्रीय उन्नति को स्थिरता प्रदान करने के साथ वैश्विक साझा हितों को बढ़ावा देते हुए अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता के माध्यम से सामूहिक तथा समावेशी वैश्विक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
निष्कर्ष:
हाल के वर्षों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार विकास के क्षेत्र में भारत की प्रगति प्रभावशाली रही है। वैश्विक नवाचार सूचकांक में शीर्ष 50 देशों के समूह में 48वीं रैंक (वर्ष 2015 के 81वें स्थान में भारी सुधार) के साथ भारत का प्रवेश इस क्षेत्र में भारत की क्षमता और इसके सकारात्मक भविष्य को रेखांकित करता है।
इस उपलब्धि को जारी रखने के लिये ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति के मसौदे’ में कई प्रगतिशील प्रस्ताव शामिल किये गए हैं, जो वैज्ञानिक अनुसंधान समुदाय के साथ-साथ सामान्य भारतीयों द्वारा विज्ञान को समझने एवं दैनिक जीवन में इसे लागू करने के तरीकों में एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: ‘वर्तमान में भारत को ऐसे वैज्ञानिक नवाचारों और तकनीक की आवश्यकता है, जो प्रभावी समाधान तथा सकारात्मक बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सके।’ इस कथन के संदर्भ में ‘राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 के मसौदे के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।