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जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ल्ड वाइड फंड की रिपोर्ट

  • 14 Feb 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाइड फंड

मेन्स के लिये:

वर्ल्ड वाइड फंड द्वारा जारी रिपोर्ट से संबंधित तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature) ने ‘ग्लोबल फ्यूचर्स: द ग्लोबल इकोनॉमिक इमपैक्टस ऑफ एन्वायरनमेंट चेंज टू सपोर्ट पॉलिसी मेकिंग’ (Global Futures: Assessing The Global Economic Impacts of Environmental Change To Support Policy-Making) नामक एक रिपोर्ट जारी की है।

मुख्य बिंदु:

  • इस रिपोर्ट में प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारणों पर वैश्विक आर्थिक प्रभावों का पता लगाने के लिये अत्याधुनिक मॉडलिंग का उपयोग करते हुए एक ऐतिहासिक अध्ययन किया गया है।
  • इस रिपोर्ट को वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा ‘द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट’ (The Global Trade Analysis Project) द्वारा ‘नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट’ (Natural Capital Project) के सहयोग से तैयार किया गया है।

द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट:

  • द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट को वर्ष 1992 में स्थापित किया गया था।
  • यह 17,000 से अधिक व्यक्तियों के वैश्विक नेटवर्क के साथ 170 से अधिक देशों में व्यापार और पर्यावरण नीतियों के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करता है।

नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट:

  • द नैचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट (NatCap) चार विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों- स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, द चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज़, मिनसोटा विश्वविद्यालय और स्टॉकहोम रेजिलिएशन सेंटर तथा दुनिया के दो सबसे बड़े गैर सरकारी संगठनों की साझेदारी से बना समूह है।
  • यह अध्ययन 140 देशों और सभी प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में पर्यावरण निम्नीकरण लागत की गणना के लिये नए आर्थिक और पर्यावरणीय मॉडल का उपयोग करता है।

रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • यह रिपोर्ट प्रकृति द्वारा प्रदत्त निम्नलिखित छह महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का विश्लेषण करती है-
    • कृषि के लिये पानी की आपूर्ति
    • लकड़ी की आपूर्ति
    • समुद्री मत्स्य पालन
    • फसलों का परागण
    • बाढ़, तूफान की वृद्धि और कटाव से सुरक्षा
    • जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये कार्बन संग्रहण
  • यह रिपोर्ट पर्यावरण और जैव विविधता के नुकसान की स्थिति में कार्रवाई करने में विफल रहने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के लिये भविष्य की लागत का विश्लेषण करती है।

नया परिदृश्य:

  • इस रिपोर्ट को तैयार करने में अब ‘ग्लोबल कंज़र्वेशन’ (Global Conservation) के साथ -साथ 'बिज़नेस एज़ यूज़ुअल' (Business as Usual) नामक नया परिदृश्य जोड़ा गया है।
  • जिसका उद्देश्य यह बताना है कि प्रकृति के निरंतर नुकसान के गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे तथा भविष्य में वैश्विक आर्थिक समृद्धि के लिये प्रकृति में निवेश किया जाना आवश्यक है।

वैश्विक स्थिति:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण का संरक्षण नहीं किये जाने से वर्ष 2050 तक दुनिया को लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि छह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की विफलता के कारण वर्ष 2050 तक वार्षिक वैश्विक जीडीपी में 0.67 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
  • इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर दुनिया ने जीवन यापन का उत्कृष्ट सतत् मॉडल अपनाया तो वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2050 तक 0.02 प्रतिशत अधिक होगा।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को 'बिज़नेस एज़ यूज़अल' परिदृश्य के तहत वर्ष 2050 तक महत्त्वपूर्ण वार्षिक जीडीपी घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और जापान को वर्ष 2050 तक एक वर्ष में $80 बिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान होने की संभावना है।

भारत की स्थिति:

  • ब्रिटेन और भारत को भी इस सदी के मध्य तक एक वर्ष में $20 बिलियन से अधिक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत को सर्वाधिक नुकसान पानी की कमी के कारण होगा।
  • इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन, भारत और अमेरिका द्वारा दुनिया का लगभग 45% फसल उत्पादन किया जाता है, जो कि गंभीर रूप से प्रभावित होगा।

Economic-Outcomes

प्राकृतिक असंतुलन का खतरा:

  • इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जंगल, आर्द्रभूमि और प्रवाल भित्ति जैसे प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन प्रभावित हो रहा है। इससे मछलियों के भंडार में कमी हो रही है, इमारती और जलावन में उपयोग की जाने वाली लकड़ियाँ खत्म हो रही हैं तथा पादपों के परागण के लिये कीट समाप्त हो रहे हैं।
  • मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, मौसमी घटनाओं और बाढ़ में बढ़ोतरी, पानी की कमी, मिट्टी का क्षरण जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी एवं प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।

खाद्य सुरक्षा भी होगी प्रभावित:

  • अगर पर्यावरणीय क्षरण इसी प्रकार जारी रहा तो दुनिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू सकती हैं।
  • प्रकृति के नुकसान का सर्वाधिक नकारात्मक असर कृषि को झेलना पड़ता है। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक लकड़ी 8 प्रतिशत तक महँगी हो सकती है। कॉटन, ऑयल सीड और फल व सब्जियों की कीमतों में क्रमश: 6, 4 एवं 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।

आगे की राह:

प्रकृति को नुकसान पहुँचाने के गंभीर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे हैं। असमय बाढ़, सूखा, मौसम चक्र में बदलाव, कृषि उत्पादकता में कमी, जैव विविधता का क्षरण और सबसे गंभीर समस्या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आई है। ये कुछ ऐसे बदलाव हैं जिन्हें हम देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। उपर्युक्त रिपोर्ट में प्रकृति से छेड़छाड़ के आर्थिक नुकसान का आकलन सामने आया है। अतः मानव समुदाय को इन बदलावों को देखते हुए सचेत होना चाहिये तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने चाहिये।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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