भारतीय अर्थव्यवस्था
जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम
- 23 Nov 2019
- 4 min read
प्रीलिम्स के लिये:
जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम
मेन्स के लिये:
बैंक की विफलता से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (Punjab and Maharashtra Co-operative- PMC) बैंक की विफलता के बाद भारतीय बैंकों में ग्राहकों की जमा राशि (Deposits) के बीमा की निम्न राशि का मुद्दा दोबारा चर्चा में आ गया।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में बैंक विफलता (Bank Collapse) के मामले में जमाकर्त्ता बीमा कवर के रूप में अधिकतम 1 लाख रुपए प्रति खाते तक की राशि का दावा कर सकता है (भले ही उसके खाते में जमा 1 लाख से अधिक हो)।
- बैंक की विफलता के मामले में खाते में 1 लाख रुपए से अधिक की राशि रखने वाले जमाकर्त्ताओं के पास कोई कानूनी उपाय नहीं है।
- जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation- DICGC) द्वारा प्रति जमाकर्त्ता को 1 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जाता है।
जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम
- वर्ष 1978 में जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- 1 लाख रुपए का कवर वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs), स्थानीय क्षेत्र बैंकों (LABs) और सहकारी बैंकों में जमा के लिये है।
- DICGC के आँकड़ों के अनुसार, बीमित जमा का स्तर 2007-08 के 60.5% के उच्च स्तर से घटकर 2018-19 में 28.1% हो गया है।
- मार्च 2019 के अंत में DICGC के साथ पंजीकृत बीमाकृत बैंकों की संख्या 2,098 थी, जिसमें 103 वाणिज्यिक बैंक, 1,941 सहकारी बैंक, 51 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और 3 स्थानीय क्षेत्र के बैंक शामिल थे।
- DICGC ने वर्ष 1980 के 30,000 रुपए के जमा बीमा कवर को 1 मई, 1993 में संशोधित करके 1 लाख रुपए कर दिया था।
- DICGC एक बैंक द्वारा जमा किये गए 100 रुपए पर 10 पैसे का शुल्क लेता है। बीमित बैंकों द्वारा निगम को भुगतान किया गया प्रीमियम, जमाकर्त्ताओं के बजाय बैंकों द्वारा वहन किया जाना आवश्यक होता है।
- DICGC के अनुसार, वर्ष 2018-19 में वाणिज्यिक बैंकों ने कुल 11,190 करोड़ रुपए का भुगतान किया, जबकि सहकारी बैंकों ने 850 करोड़ रुपए का भुगतान किया।