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डेली न्यूज़

  • 07 Jun, 2021
  • 55 min read
महत्त्वपूर्ण संस्थान

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद

प्रिलिम्स के लिये:

CSIR तथा इसकी विभिन्न पहलें

मेन्स के लिये:

CSIR तथा भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में इसका योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता की।

  • इससे पहले CSIR फ्लोरीकल्चर मिशन (CSIR Floriculture Mission) को भारत के 21 राज्यों और केंद्र शासितप्रदेशों में लागू करने की मंज़ूरी दी गई थी।
  • यह बीमारी के लिये अद्वितीय आनुवंशिक लक्षण, संवेदनशीलता (और प्रतिरोधकता) निर्धारित करने के लिये लगभग 1000 भारतीय ग्रामीण युवाओं के नमूने की जीनोम अनुक्रमण करने की भी योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु

CSIR के बारे में:

  • यह भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास (R&D) संगठन है। 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी परिसरों और 5 इकाइयों के एक सक्रिय नेटवर्क के साथ इसकी उपस्थिति पूरे भारत में है।
  • स्किमागो इंस्टीट्यूशंस रैंकिंग वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 (Scimago Institutions Ranking World Report 2021) के अनुसार, यह विश्व भर के 1587 सरकारी संस्थानों में 37वें स्थान पर है और शीर्ष 100 वैश्विक सरकारी संस्थानों में एकमात्र भारतीय संगठन है।
    • एशिया में CSIR 7वें स्थान पर है।
  • प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष (पदेन) होता है तथा केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री इसका उपाध्यक्ष (पदेन) होता है।

वित्तपोषण

  • CSIR विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा का वित्तपोषण किया जाता है तथा यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में पंजीकृत है।

स्थापना: 

  • सितंबर 1942

अवस्थिति

  • नई दिल्ली

उद्देश्य:

  • परिषद का उद्देश्य राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान करना है। रेडियो एवं अंतरिक्ष भौतिकी (Space Physics), समुद्र विज्ञान (Oceanography), भू-भौतिकी (Geophysics), रसायन, ड्रग्स, जीनोमिक्स (Genomics), जैव प्रौद्योगिकी और नैनोटेक्नोलॉजी से लेकर खनन, वैमानिकी (Aeronautics), उपकरण विज्ञान (Instrumentation), पर्यावरण अभियांत्रिकी और सूचना प्रौद्योगिकी तक की एक विस्तृत विषय शृंखला इसके दायरे में आती है।
  • यह सामाजिक प्रयासों के संबंध में कई क्षेत्रों जैसे- पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, भोजन, आवास, ऊर्जा, कृषि-क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण तकनीकी हस्तक्षेप प्रदान करता है

CSIR की कुछ प्रमुख पहलें:

  • कोविड-19 से संबंधित:
    • महामारी के कारण उभरती स्थिति से निपटने के लिये CSIR ने पाँच प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्र स्थापित किये हैं:
      1. डिजिटल और आणविक निगरानी।
      2. रैपिड तथा किफायती निदान।
      3. औषधियों, वैक्सीन और कॉन्वेलसेंट प्लाज्मा थेरेपी का पुनर्प्रयोजन (Repurpose)।
      4. अस्पताल सहायक उपकरण और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE)।
      5. आपूर्ति शृंखला और लॉजिस्टिक्स समर्थन प्रणाली।
  • सामरिक क्षेत्र में:
    • हेड-अप-डिस्प्ले (HUD): इसने भारतीय हल्के लड़ाकू विमान तेज़स के लिये स्वदेशी हेड-अप-डिस्प्ले (HUD) विकसित किया है। HUD विमान की उड़ान और हथियार लक्ष्यीकरण सहित महत्त्वपूर्ण उड़ान युद्धाभ्यास में विमान चालक की सहायता करता है। 
  • ऊर्जा तथा पर्यावरण के क्षेत्र में:
    • सोलर ट्री (Solar Tree): यह स्वच्छ बिजली का उत्पादन करने के लिये न्यूनतम स्थान घेरता है।
    • लिथियम-आयन बैटरी: 4.0 V/14 h मानक सेल बनाने के लिये स्वदेशी नवीन सामग्री पर आधारित भारत की पहली लिथियम आयन बैटरी निर्माण सुविधा स्थापित की गई है।
  • कृषि के क्षेत्र में:
    • सांबा मसूरी चावल प्रजाति: ICAR के साथ मिलकर इसने सांबा मसूरी चावल की एक बेहतर बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी किस्म विकसित की है।
    • चावल की किस्म (मुक्ताश्री): चावल की एक ऐसी किस्म विकसित की गई है जो अनुमेय सीमा के भीतर आर्सेनिक को आत्मसात करने से रोकती है।
    • सफेद मक्खी (Whitefly) प्रतिरोधी कपास प्रजाति: एक ट्रांसजेनिक कपास किस्म विकसित की गई जो कि सफेद-मक्खी के लिये प्रतिरोधी है।
  • स्वास्थ्य-देखभाल क्षेत्र में:
    • चिकित्सा निर्णय को सक्षम करने के लिये जीनोमिक्स तथा अन्य ओमिक्स प्रौद्योगिकियाँ (GOMED): नैदानिक ​​समस्याओं को हल करने के संदर्भ में रोग जीनोमिक्स का एक मंच प्रदान करने हेतु CSIR द्वारा GOMED (Genomics and other Omics Technologies for Enabling Medical Decision) का विकास किया गया गया है।
  • खाद्य एवं पोषण के क्षेत्र में:
    • क्षीर स्कैनर (Ksheer-scanner): यह 10 पैसे की लागत पर 45 सेकंड में दूध के मिलावट स्तर और मिलावटी पदार्थ का पता लगाता है। 
    • डबल फोर्टिफाइड नमक (Double-Fortified Salt): CSIR ने आयोडीन और आयरन के साथ फोर्टिफाइड नमक का विकास किया गया है जो लोगों में एनीमिया रोग को दूर कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE) इनिशिएटिव

प्रिलिम्स के लिये 

सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE), रजत अर्थव्यवस्था, वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम, राष्ट्रीय वयोश्री योजना, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना

मेन्स के लिये 

रजत अर्थव्यवस्था का अभिप्राय, सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE) की  विशेषताएँ एवं इसकी आवश्यकता, बुजुर्गों के लिये अन्य सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने वरिष्ठ व्यक्तियों को समर्थन प्रदान करने के लिये ‘सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन’ (SAGE) पहल तथा पोर्टल का शुभारंभ किया है।

  • रजत (Silver) अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये 100 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है।

रजत अर्थव्यवस्था (Silver Economy)

  • रजत अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और खपत की प्रणाली है जिसका उद्देश्य वृद्ध और वरिष्ठ लोगों की क्रय क्षमता का उपयोग करना और उनके उपभोग, जीवन और स्वास्थ्य की ज़रूरतों को पूरा करना है।
  • रजत अर्थव्यवस्था का विश्लेषण सामाजिक जेरोन्टोलॉजी (Gerontology, आयु का अध्ययन) के क्षेत्र में एक मौजूदा आर्थिक प्रणाली के रूप में नहीं किया जाता है बल्कि आयु वृद्धि की नीति के एक साधन के रूप में तथा  उनकी आबादी हेतु एक संभावित जरूरत-उन्मुख आर्थिक प्रणाली बनाने के राजनीतिक विचार के रूप में किया जाता है।
  • इसके मुख्य तत्त्व जेरोनटेक्नोलॉजी (Gerontechnology) (वृद्ध लोगों से संबंधित प्रौद्योगिकी) को एक नए वैज्ञानिक, अनुसंधान और कार्यान्वयन प्रतिमान के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु 

परिचय:

  • सेज पोर्टल (SAGE Portal) विश्वसनीय स्टार्टअप्स के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख में उपयोगी उत्पादों तथा सेवाओं को प्रदान करने वाला ‘वन-स्टॉप एक्सेस’ होगा। 
  • यह ऐसे व्यक्तियों की मदद करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है जो वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिये सेवाएँ मुहैया कराने संबंधी क्षेत्र में रुचि रखने वाले उद्यमियों को सहयोग प्रदान करते हो।
  • SAGE परियोजना का उद्देश्य सीधे हितधारकों के लिये उत्पादों, समाधानों और सेवाओं की पहचान करना, मूल्यांकन करना, सत्यापित करना, एकत्र करना तथा वितरित करना है। मंत्रालय इन चयनित स्टार्टअप के माध्यम से बुजुर्गों को उत्पादों तक पहुँचने में सक्षम बनाने के लिये एक सुविधा के रूप में कार्य करेगा।

विशेषताएँ:

  • स्टार्टअप एक समर्पित पोर्टल के माध्यम से SAGE का हिस्सा बनने के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • SAGE के तहत चुने गए स्टार्टअप वे होंगे जो स्वास्थ्य, यात्रा, वित्त, कानूनी, आवास, भोजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बुजुर्ग व्यक्तियों को नए और अभिनव उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करेंगे।
  • वित्त वर्ष 2021-22 में SAGE परियोजना के लिये 25 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

इस पहल या कार्यक्रम की आवश्यकता:

  • देश की कुल आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 2001 में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर 2026 तक लगभग 12.5 प्रतिशत ​​और 2050 तक 19.5 प्रतिशत से अधिक होने की उम्मीद है।

SAGE

बुजुर्गों के लिये अन्य सरकारी पहलें :

  • वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPOP):
    • योजना का मुख्य उद्देश्य आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन के अवसर आदि जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करके वृद्ध व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY):
    • यह वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष से वित्तपोषित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। कोष को वर्ष 2016 में अधिसूचित किया गया था।
    • इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) श्रेणी के वरिष्ठ नागरिकों को शारीरिक सहायता और जीवन यापन के लिये आवश्यक उपकरण प्रदान करना है, जो कम दृष्टि, श्रवण दोष, दाँतों की हानि और चलने में अक्षमता जैसी उम्र से संबंधित अक्षमताओं से पीड़ित हैं।
  • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY) :
    • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY) को वृद्धावस्था के दौरान सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये मई 2017 में शुरू किया गया था।
    • यह वरिष्ठ नागरिकों के लिये एक पेंशन योजना है। इस स्कीम के तहत 10 वर्षों की अवधि तक गारंटीड रिटर्न दर के आधार पर एक निश्चित या आश्वासित पेंशन दी जाती है और इसमें मासिक/तिमाही/छमाही एवं वार्षिक आधार पर पेंशन का चयन करने का विकल्प दिया गया है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिये उपलब्ध है जिनकी आयु 60 वर्ष और उससे अधिक है।
  • वयोश्रेष्ठ सम्मान:
    • 1 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (International Day of Older Person) पर वरिष्‍ठ नागरिकों की सराहनीय सेवा करने वाले संस्‍थानों और वरिष्‍ठ नागरिकों को उनकी उत्तम सेवाओं तथा उपलब्धियों के लिये राष्ट्रीय सम्‍मान प्रदान किया जाता हैं।
  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण  (MWPSC) अधिनियम, 2007 : 
    • इसका मुख्य उद्देश्य माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों और उनके कल्याण के लिये आवश्यकता-आधारित रखरखाव या देखभाल सुनिश्चित करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

ब्लैक कार्बन का ग्लेशियरों पर प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लैक कार्बन, ग्लेशियर, हिमालय, काराकोरम,  हिंदूकुश

मेन्स के लिये:

ब्लैक कार्बन और इससे ग्लेशियरों पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

"हिमालय के ग्लेशियर: जलवायु परिवर्तन, ब्लैक कार्बन और क्षेत्रीय लचीलापन" शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ग्लेशियर ‘वैश्विक औसत बर्फ द्रव्यमान’ की तुलना में तेज़ी से पिघल रहे हैं। हालाँकि ब्लैक कार्बन से संबंधित मज़बूत नीति ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ी से रोक सकती है।

  • यह अनुसंधान रिपोर्ट विश्व बैंक द्वारा जारी की गई है और इसमें हिमालय, काराकोरम और हिंदूकुश (HKHK) पर्वत शृंखलाएँ शामिल हैं।

ब्लैक कार्बन (BC):

  • ब्लैक कार्बन एक तरह का एयरोसोल है। 
    • एक एयरोसोल हवा में सूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूँदों का निलंबन होता है।
  • एयरोसोल (जैसे ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
  • यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर या PM का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।

HKHK पर्वत क्षेत्र:

  • HKHK क्षेत्र आठ देशों में फैला है; अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार और सहित इस क्षेत्र में  एवरेस्ट और K2 जैसे दुनिया के कुछ सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियाँ भी शमिल हैं।
  • HKHK पर्वतीय क्षेत्र के ग्लेशियर गंगा, यांग्त्ज़ी, इरावदी और मेकांग सहित नदी प्रणालियों से संबंधित हैं।
    • ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी कृषि का पोषण करता है, जिस पर लगभग 2 अरब लोग निर्भर हैं।
  • HKHK क्षेत्र को चीन के तिआनशान पर्वत के साथ तीसरे ध्रुव के रूप में भी जाना जाता है, यहाँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फ है।  

प्रमुख बिंदु:

  • BC एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
    • अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC जल्दी से धुल जाता है और अगर इसका उत्सर्जन बंद हो जाता है तो इसे वातावरण से समाप्त किया जा सकता है।
    • ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह अधिक स्थानीय प्रभाव वाला एक स्थानीय स्रोत भी है।

हिमालयी क्षेत्र में ब्लैक कार्बन का स्रोत:

  • कुल ब्लैक कार्बन में उद्योग (मुख्य रूप से ईंट भट्टे) और ठोस ईंधन जलने से क्षेत्रीय मानवजनित BC के उत्सर्जन का  45-66% हिस्सा शामिल होता है, इसके बाद ऑन-रोड डीज़ल ईंधन (7-18%) और खुले में ईंधन जलाने से (3% से कम) ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता है।

BC भंडारण का प्रभाव:

  • यह ग्लेशियर के पिघलने की गति को दो तरह से तेज़ करने का कार्य करता है:
    • सूर्य के प्रकाश की सतह परावर्तन को कम करके।
    • हवा का तापमान बढ़ाकर।

हिमाच्छादन की दर को कम करके:

  • HKHK ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की दर पश्चिम में 0.3 मीटर प्रतिवर्ष और पूर्व में 1.0 मीटर प्रतिवर्ष होने का अनुमान है।
  • BC को कम करने के लिये मौजूदा नीतियों का पूर्ण कार्यान्वयन इसमें 23% की कमी कर सकता है लेकिन नई नीतियों को लागू करने और देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से उन्हें शामिल करने से अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
    • सतत् हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMSHE) भारत में अपनाई गई ऐसी ही एक नीति है। यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
  • BC के जमाव को वर्तमान में व्यवहार्य नीतियों के माध्यम से मौजूदा स्तरों से अतिरिक्त 50% तक कम किया जा सकता है।

ग्लेशियर पिघलने के कारण:

  • ग्लेशियर के पिघलने से अचानक बाढ़, भूस्खलन, मिट्टी का कटाव और हिमनद झील से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) संबंधी समस्याएँ सामने आती हैं।
  • अल्पावधि में पिघले हुए पानी की अधिक मात्रा नीचे की ओर घटते भूजल की जगह ले सकती है। लेकिन लंबे समय में पानी की उपलब्धता कम होने से पानी की किल्लत बढ़ जाएगी।

उठाए गए कदम:

  • हिमालय पर रसोई चूल्हे, डीज़ल इंजन और खुले में जलने से ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे बड़ा प्रभाव होगा और यह विकिरण बल को काफी कम कर सकता है तथा हिमालयी ग्लेशियर तंत्र के एक बड़े हिस्से को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
    • विकिरण बल वैश्विक ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करने और जलवायु परिवर्तन में योगदान करने के लिये एक मज़बूर एजेंट (जैसे- ग्रीनहाउस गैसों, एयरोसोल, क्लाउड और सतही एल्बीदडो) में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऊर्जा संतुलन में परिवर्तन का एक उपाय है।

क्षेत्रीय सरकारों के प्रयास:

  • दक्षता के लिये बेसिन आधारित विनियमन और मूल्य संकेतों (एक विशेष कार्रवाई) के उपयोग पर ज़ोर देते हुए जल प्रबंधन नीतियों की समीक्षा करना।
  • जल प्रवाह और इसकी उपलब्धता में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिये जलविद्युत की सावधानीपूर्वक योजना तैयार करना।
  • प्रमाणित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ईंट भट्ठों की दक्षता बढ़ाना।
  • इस क्षेत्र से संबंधित अधिक-से-अधिक ज्ञान का साझाकरण भी होना चाहिये।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट, 2021: आईईए

प्रिलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट, कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज, विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट, वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट, वैश्विक ऊर्जा समीक्षा

मेन्स के लिये

नवीकरणीय ऊर्जा से होने वाले लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) ने विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट (World Energy Investment Report), 2021 प्रकाशित की।

वैश्विक ऊर्जा निवेश, 2017-21

World-Energy-Investment

प्रमुख बिंदु

ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ा निवेश:

  • वैश्विक ऊर्जा निवेश को वर्ष 2021 में फिर से बढ़ाने और इसके सालाना 10% बढ़कर लगभग 1.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
  • इस निवेश का अधिकांश हिस्सा पारंपरिक जीवाश्म ईंधन उत्पादन से हटकर बिजली और अंतिम उपयोग क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होगा।
  • परिदृश्य पूरी तरह से इस अनुमान के अनुरूप है कि वैश्विक ऊर्जा मांग वर्ष 2021 में सालाना आधार पर 4.6% बढ़ेगी, जिससे वर्ष 2020 में इसके संकुचन की भरपाई होगी।

नवीकरणीय ऊर्जा:

  • नई बिजली उत्पादन क्षमता पर होने वाले कुल खर्च का लगभग 70% नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Power) पर किया जाएगा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का पर्याप्त लाभ होगा क्योंकि यह तकनीकी विकास, अच्छी तरह से स्थापित आपूर्ति शृंखला और कार्बन-तटस्थ बिजली के लिये उपभोक्ताओं की मांग पर निर्भर है।

जीवाश्म ईंधन:

  • तेल के उत्पादन और अन्वेषण में 10% निवेश बढ़ने की उम्मीद है। जीवाश्म ईंधन में इस विस्तार की योजना कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (Carbon Capture and Storage- CCS) तथा बायोएनर्जी (Bioenergy CCS) सीसीएस जैसी नई प्रौद्योगिकियों के साथ बनाई गई थी, जिन्हें अभी तक व्यावसायिक सफलता नहीं मिली है।
  • वर्ष 2020 में कोयले से उत्पादित बिजली की वृद्धि, जो ज़्यादातर चीन द्वारा संचालित है, यह संकेत दे रही है कि कोयले से बिजली उत्पादन महँगा होने के बाद भी इसका महत्त्व बना हुआ है।

बढ़ा हुआ उत्सर्जन:

  • उपरोक्त सकारात्मक परिदृश्य अभी भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि को रोक नहीं पाएगा, मुख्य रूप से वर्ष 2020 के बाद कोरोना वायरस महामारी से प्रेरित आर्थिक मंदी के कारण।
  • वर्ष 2021 में वैश्विक उत्सर्जन 1.5 बिलियन टन बढ़ने का अनुमान है।
  • कई विकासशील देशों की सहायक नीति और नियामक ढाँचे अभी तक लंबी अवधि के नेट ज़ीरो एमिशन (Net Zero Emission) के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं हैं।
    • नेट ज़ीरो एमिशन का तात्पर्य उत्पादित ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) उत्सर्जन और वातावरण से निकाले गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना है।
  • कई उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Market and Developing Economies- EMDE) में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश विकसित देशों की तुलना में कोविड-19 के कारण कम हुआ जिससे कई ईएमडीई ने कोयले और तेल को प्राथमिकता दी है।

बढ़े हुए उत्सर्जन का कारण:

  • मांग में वृद्धि के लिये उभरता बाज़ार लगभग 70% ज़िम्मेदार है और भारत इस ब्लॉक में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • चीन कोयला आधारित बिजली उत्पादन में अत्यधिक विस्तार कर रहा है, (इसकी  दिसंबर 2020 में कोयले की खपत उच्चतम स्तर पर थी) हालाँकि यह अपने अक्षय ऊर्जा विकास में भी सराहनीय काम कर रहा है।
  • विकसित देशों की ज़िम्मेदारी और हिस्सेदारी को कम नहीं आँका जाना चाहिये। इनके उत्सर्जन की वृद्धि मध्यम है लेकिन इनका निर्यात उत्सर्जन चिंता का विषय है।
    • कोयले के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया का निर्यात उत्सर्जन उसके घरेलू उत्सर्जन से दोगुना है।
  • हालाँकि अमेरिका ने पेरिस समझौते (Paris Agreement) में फिर से शामिल होकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये बहुपक्षीय संयुक्त राष्ट्र (United Nation) प्रणाली के प्रति नई प्रतिबद्धता दिखाई है। सस्ते शेल गैस के प्रति इसका आकर्षण निवेश में विकृति पैदा कर रहा है और भारत जैसे देशों के विकास पथ की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के विषय में:

  • यह वर्ष 1974 में पेरिस, फ्राँस में स्थापित एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है।
  • यह मुख्य रूप से ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण आदि शामिल हैं। इन नीतियों को 3 ई (3 E) के रूप में भी जाना जाता है।

भारत और आईईए:

  • भारत मार्च 2017 में आईईए का एसोसिएट सदस्य बना था, हालाँकि भारत इससे पूर्व से ही संगठन के साथ कार्य कर रहा था।
  • हाल ही में भारत ने वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने के लिये आईईए के साथ एक रणनीतिक समझौता किया है।

आईईए स्वच्छ कोयला केंद्र:

  • यह स्वतंत्र सूचना और विश्लेषण प्रदान करने के लिये समर्पित है कि कैसे कोयला संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत बन सकता है।

 रिपोर्ट:

आगे की राह

  • कोविड महामारी के बीच बाज़ार प्रोत्साहन ने स्वच्छ विकास मार्ग को अधिकतम करने का अवसर खो दिया है, जिसकी विश्व को सख्त ज़रूरत है।
  • संचार में दिखाई देने वाली तात्कालिकता अभी भी कार्रवाई में संतोषजनक रूप से प्रतिबिंबित नहीं हुई है और विश्व जलवायु परिवर्तन को दो डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित करने के वैज्ञानिक लक्ष्य से बहुत दूर है।
  • एक अधिक लोकतांत्रिक निर्णय लेने की प्रक्रिया और ऊर्जा क्षेत्र का डी-कॉरपोरेटाइज़ेशन इस ग्रह पर सभ्यता के अस्तित्व के लिये भविष्य की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

CIBER-2 : तारों की गणना

प्रिलिम्स के लिये 

CIBER-2, राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA), इन्फ्रारेड अंतरिक्ष वेधशाला हर्शल (Herschel), परिज्ञापी राकेट (Sounding Rocket)

मेन्स के लिये 

CIBER-2 का संक्षिप्त परिचय तथा तारों की गणना में इसकी भूमिका

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) द्वारा वित्त पोषित CIBER-2 परिज्ञापी राकेट (Sounding Rocket) का लॉन्च पैड अमेरिका के न्यू मैक्सिको में व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज में खोला जाएगा।

  • CIBER-2 मिशन का उद्देश्य उन अतिरिक्त तारों के साक्ष्य की खोज करना है जो प्रमुख तारों की  गणना के दौरान छूट गए हों।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) इन्फ्रारेड अंतरिक्ष वेधशाला हर्शल (Herschel) ने भी इन्फ्रारेड में आकाशगंगाओं की संख्या की गणना की और इसमें सबसे पहले तारों की चमक को मापा गया।

प्रमुख बिंदु 

परिज्ञापी राकेट (Sounding Rocket) :

  • परिज्ञापी रॉकेट का नामकरण  समुद्री शब्द "ध्वनि" से (Sound) किया गया हैं, जिसका अर्थ है माप लेना
  • वर्ष 1959 से नासा द्वारा प्रायोजित अंतरिक्ष और पृथ्वी विज्ञान अनुसंधान ने उपग्रहों तथा अंतरिक्षयान पर उपयोग किये जाने वाले उपकरणों का परीक्षण करने और सूर्य, तारे, आकाशगंगा एवं पृथ्वी के वायुमंडल तथा विकिरण के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये परिज्ञापी रॉकेटों का उपयोग किया गया।

CIBER-2 (कॉस्मिक इन्फ्रारेड बैकग्राउंड अनुप्रयोग-2) के बारे में :

  • यह मिशन वर्ष 2009 में शुरू हुए परिज्ञापी रॉकेट लॉन्च की शृंखला में नवीनतम है। प्रथम CIBER मिशन ने अनुसंधान को पुनर्गठित करने और तारों की गिनती को एक नई गति प्रदान करने वाला मार्ग प्रशस्त किया।
  • CIBER-2 उपकरण एक छोटे से उप-कक्षीय रॉकेट द्वारा एक परिज्ञापी रॉकेट पर लॉन्च होगा, जो वैज्ञानिक उपकरणों को अंतरिक्ष में निश्चित दूरी तक ले जाएगा, जिससे वह रिकवरी के लिये पृथ्वी पर वापस आ जाए।
  • एक बार पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर, CIBER-2 लगभग 4 वर्ग डिग्री आकाश के एक हिस्से का सर्वेक्षण करेगा जिसके संदर्भ में  पूर्ण चंद्रमा लगभग आधा डिग्री आकाश के हिस्से का सर्वेक्षण करता है जिसमें दर्जनों आकाशगंगा समूह शामिल हैं।
  • वास्तव में यह सिर्फ तारों की गणना नहीं करेगा, बल्कि इसके अलावा एक्स्ट्रागैलेक्टिक बैकग्राउंड लाइट (Extragalactic Background Light)  का भी पता लगाएगा, जो कि ब्रह्मांड के पूरे इतिहास में उत्सर्जित होने वाला प्रकाश है।
  • इन सभी एक्स्ट्रागैलेक्टिक बैकग्राउंड लाइट से CIBER-2 इस कॉस्मिक इंफ्रारेड बैकग्राउंड के एक हिस्से पर ध्यान केंद्रित करेगा जिनमें से कुछ सबसे सामान्य तारों द्वारा उत्सर्जित होता है।
    • मुख्य रूप से इस दृष्टिकोण का उद्देश्य यह देखना है कि यह प्रकाश कितना उज्ज्वल या चमकदार है, जिससे वैज्ञानिकों द्वारा यह अनुमान लगाया जा सके कि इनमें से कितने तारे पृथक हुए हैं।

तारों का अपूर्ण अनुमान:

  • ब्रह्मांड में तारों की कुल संख्या का एक नज़दीकी अनुमान प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिकों ने एक आकाशगंगा में तारों की औसत संख्या की गणना की है जिनमें से  कुछ अनुमान के अनुसार इसकी संख्या लगभग 100 मिलियन हैं, हालाँकि यह 10 या इसके कई गुना अधिक हो सकता है।
  • इस अनुमान को आकाशगंगाओं की संख्या से गुणा करने पर लगभग 2 ट्रिलियन (बहुत ही अस्थायी) तारों की संख्या का अस्थायी अनुमान लगाया गया है अर्थात् एक सौ क्विंटल तारे (या 1  के बाद 21 ज़ीरो) मौज़ूद हैं।
  • लेकिन इस गणना का मानना है कि सभी तारे आकाशगंगाओं के भीतर मौज़ूद हैं, जो शायद सच न हो और इसी तथ्य को CIBER-2 उपकरण पता लगाने की कोशिश करेगा।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी  (ESA) के अनुसार एक आकाशगंगा में 100 हज़ार मिलियन तारे हो सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन

प्रिलिम्स के लिये:

द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय बाँस मिशन एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने बाँस के सामानों के विपणन के लिये GeM (गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस) पोर्टल पर एक विंडो 'द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन' शुरू करने के लिये कार्य प्रारंभ किया है।

  • यह विंडो राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM) और GeM के सामूहिक प्रयास से शुरू किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • “द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन” [https://gem.gov.in/national-bamboo-mission] के माध्यम से जीईएम पर उत्कृष्ट दस्तकारी वाले बाँस और बाँस से बने उत्पादों, हस्तशिल्प, डिस्पोज़ल और कार्यालय में उपयोग होने वाले उत्पादों का प्रदर्शन किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बाँस के कारीगरों, बुनकरों और उद्यमियों को सरकारी खरीदारों हेतु बाज़ार तक पहुँच प्रदान करना है।
  • यह सरकारी खरीदारों के बीच बाँस उत्पादों को अपनाने और इनके उपयोग को बढ़ावा देने तथा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण हेतु एक स्थायी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की शुरुआत करने का प्रयास करता है।

राष्ट्रीय बाँस मिशन:

  • लॉन्च:
    • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture - NMSA) के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित पुर्नगठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission - NBM) को स्वीकृति दी गई थी। यह ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल पर आधारित है।
      • "हब एंड स्पोक" मॉडल जिसमें मेंटर इंस्टीट्यूशन, जिसे "हब" कहा जाता है, केंद्रीकृत है और इस पर माध्यमिक शाखाओं द्वारा "स्पोक" यानी ‘मेंटी’ को प्रदान की गई सेवाओं के माध्यम से इन संस्थानों का मार्गदर्शन करने की ज़िम्मेदारी होगी।
  • उद्देश्य:
    • कृषि आय के पूरक के रूप में गैर-वन सरकारी और निजी भूमि में बाँस पौधरोपण क्षेत्र में वृद्धि करना और जलवायु परिवर्तन की दिशा में मज़बूती से योगदान करना।
    • नवाचारी प्राथमिक प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना करके, शोधन तथा मौसमी पौधे लगाकर, प्राथमिक शोधन करके, संरक्षण प्रौद्योगिकी तथा बाज़ार अवसंरचना स्थापित करके फसल के बाद के प्रबंधन में सुधार करना।
    • सूक्ष्म, लघु और मझौले स्तरों पर उत्पाद के विकास को प्रोत्साहित करना और बड़े उद्योगों की पूर्ति करना।
    • भारत में अविकसित बाँस उद्योग का कायाकल्प करना।
    • कौशल विकास, क्षमता सृजन और बाँस क्षेत्र के विकास के बारे में जागरूकता को प्रोत्साहित करना।
  • नोडल मंत्रालय:
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय। 

गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस:

  • GeM विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकार के विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) द्वारा आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा के लिये वन-स्टॉप राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल है।
  • GeM पर उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के लिये मंत्रालयों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद करना अनिवार्य है।
  • यह सरकारी उपयोगकर्त्ताओं को उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने की सुविधा के लिये ई-बोली और रिवर्स ई-नीलामी के उपकरण भी प्रदान करता है।
  • वर्तमान में GeM के पास 30 लाख से अधिक उत्पाद हैं, इसके पोर्टल पर अब तक 10 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हो चुका है।

लॉन्च;

  • इसे वर्ष 2016 में सरकारी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिये लॉन्च किया गया था।

नोडल मंत्रालय:

  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय

बाँस:

  • विश्व बाँस संगठन द्वारा 18 सितंबर को विश्व बाँस दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • स्टेट ऑफ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाँस की खेती करने वाला देश है, इसकी 136 प्रजातियाँ और 23 वंश 13.96 मिलियन हेक्टेयर में फैले हुए हैं।
  • बाँस को प्रायः ‘हरा सोना’ नाम से जाना जाता है, यह भारत में हर जगह पाया जाता है।
  • इसे 'गरीब आदमी की लकड़ी' के रूप में जाना जाता है, बाँस आदिवासी संस्कृतियों और सामुदायिक जीवन में सर्वव्यापी स्थान रखता है। ग्रामीण समुदाय प्रायः बाँस हस्तशिल्प, वस्त्र, कलाकृतियों और घरेलू उपयोगिताओं में संलग्न होते हैं।
    • उदाहरणों में त्रिपुरा बाँस रेशम, भुना हुआ और मसालेदार बाँस व्यंजन, असमिया 'जापी' (बाँस, बेंत और हथेली से बने) जैसे सांस्कृतिक प्रतीक, व्यापक रूप से लोकप्रिय बाँस के पेड़ के घर, मचान, आधुनिक टिकाऊ वास्तुशिल्प अवधारणाओं और संगीत वाद्ययंत्र आदि।
  • नई पहल: राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत बाँस समूह को 'वृक्ष' श्रेणी से हटाना (भारतीय वन अधिनियम 1927 को 2017 में संशोधित किया गया था)।

स्रोत-पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व पर्यावरण दिवस, 2021

प्रिलिम्स के लिये

विश्व पर्यावरण दिवस, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना, हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन, पारिस्थितिकी तंत्र, E-100 पायलट प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये

पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिये की गई पहलें और इसकी चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिये प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

विश्व पर्यावरण दिवस:

  • इतिहास: 
    • विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत वर्ष 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • वर्ष 2021 की थीम:
    • 'पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली'।
      • यह पारिस्थितिक तंत्र बहाली (वर्ष 2021-30) पर संयुक्त राष्ट्र दशक की शुरुआत करेगा, साथ ही यह जंगलों से लेकर खेत तक, पहाड़ों की चोटी से लेकर समुद्र की गहराई तक अरबों हेक्टेयर क्षेत्र को पुनर्जीवित करने हेतु एक वैश्विक मिशन।
    • भारत में इस वर्ष की थीम 'बेहतर पर्यावरण के लिये जैव ईंधन को बढ़ावा देना' है।
  • मेज़बान देश:
    • पाकिस्तान वर्ष 2021 के लिये वैश्विक मेज़बान होगा।
  • भारत द्वारा की गई पहलें:
    • पूरे देश में इथेनॉल के उत्पादन और वितरण के लिये पुणे में E-100 पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है।
    • सरकार E-20 अधिसूचना जारी कर रही है जो तेल कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 से 20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल और इथेनॉल मिश्रण E12 तथा E15 को BIS विनिर्देशों के अधर पर बेचने की अनुमति देगी।

पारिस्थितिकी तंत्र बहाली

पारिस्थितिकी तंत्र:

  • पारिस्थितिकी तंत्र में सभी जीव एक-दूसरे के आस-पास रहते हैं और ये एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते रहते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र बहाली:

  • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली का मतलब है कि उन पारिस्थितिक तंत्रों के निर्माण में सहायता करना जो कि खराब या नष्ट हो चुके हैं, साथ ही उन पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण करना जो अभी भी बरकरार हैं।
    • इसमें पुराने जल निकायों को पुनर्जीवित करना, प्राकृतिक वनों का निर्माण, वन्यजीवों को स्थान प्रदान करना और जलीय जीवन को बहाल करने के लिये जल प्रदूषण को कम करना शामिल है।
  • समृद्ध जैव विविधता के साथ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र, अधिक उपजाऊ मिट्टी, लकड़ी और मछली की बड़ी पैदावार तथा ग्रीनहाउस गैसों के बड़े भंडार जैसे अधिक लाभ प्रदान करते हैं।

बहाली की आवश्यकता:

  • पारिस्थितिक तंत्र का नुकसान विश्व को जंगलों और आर्द्रभूमि जैसे कार्बन सिंक से वंचित कर रहा है, ऐसे समय में जब मानवता इसे कम से कम वहन कर सकती है।
  • वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगातार तीन वर्षों से बढ़ा है, जिससे पृथ्वी संभावित विनाशकारी जलवायु परिवर्तन की ओर जा रही है।

भारत द्वारा बहाली हेतु की गई पहलें:

  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम: यह वनों के आसपास के अवक्रमित वनों के पुनर्वास और वनरोपण पर केंद्रित है।
  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन: यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change) के अंतर्गत है और इसका उद्देश्य जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीति के रूप में वृक्षों के आवरण में सुधार तथा वृद्धि करना है।
  • राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना: इसे प्राकृतिक आवासों के क्षरण, विखंडन और नुकसान की दरों में कमी के लिये नीतियों को लागू करने हेतु शुरू किया गया है।
  • ग्रामीण आजीविका योजनाएँ: ग्रामीण आजीविका से आंतरिक रूप से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों की मान्यता महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसी प्रमुख योजनाओं में भी परिलक्षित होती है।
    • मनरेगा के माध्यम से बहाली की संभावना इसके द्वारा वृक्षारोपण और जल निकायों के उप-घटकों के कायाकल्प में निहित है, जिसके माध्यम से वनीकरण, वृक्षारोपण, बागवानी तथा नए तालाबों के निर्माण में आजीविका के प्रावधान किये गए हैं।
    • इसी तरह एनआरएलएम के तहत योजनाएँ, कृषि और गैर-कृषि आजीविका में विभाजित, प्राकृतिक पूंजी को बढ़ाने के लिये हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करती हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के अवसर प्रदान करती हैं।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘कॉर्बेवैक्‍स’ कोविड-19 वैक्सीन

प्रिलिम्स के लिये

‘कॉर्बेवैक्‍स’ वैक्सीन, mRNA वैक्सीन, वायरल वेक्टर वैक्सीन निष्क्रिय वैक्सीन

मेन्स के लिये

वैक्सीन स्वदेशीकरण और उससे संबंधित विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने कोविड-19 की नई वैक्सीन ‘कॉर्बेवैक्‍स’ की 300 मिलियन खुराक के लिये अग्रिम आदेश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: यह भारत की स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन है, जो वर्तमान में नैदानिक ​​​​परीक्षण के तीसरे चरण से गुज़र रही है।

कार्यविधि

  • यह एक ’रिकॉम्बिनेंट प्रोटीन सब-यूनिट’ टीका है।
    • इसका अर्थ है कि यह ‘SARS-CoV-2’ के एक विशिष्ट भाग यानी वायरस की सतह पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन से बना है।
  • स्पाइक प्रोटीन वायरस को शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने की अनुमति देता है, जिससे वह रेप्लिकेट होता है यानी उसकी संख्या में वृद्धि होती है और बीमारी का कारण बनता है।
  • हालाँकि जब अकेले स्पाइक प्रोटीन शरीर में प्रवेश करता है तो इसके हानिकारक होने की उम्मीद नहीं होती है, क्योंकि वायरस के शेष हिस्से अनुपस्थित होते हैं।
  • इस तरह जब स्पाइक प्रोटीन को मानव शरीर में इंजेक्ट किया जाता है तो शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित होने की उम्मीद होती है।
  • इसके पश्चात् जब वास्तविक वायरस शरीर को संक्रमित करने का प्रयास करता है, तो शरीर के पास पहले से ही एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया तैयार होती है, जिससे उस व्यक्ति के गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संभावना कम हो जाती है।

कॉर्बेवैक्स और अन्य कोविड-19 टीकों के बीच अंतर

  • कोई भी वैक्सीन या तो mRNA वैक्सीन (फाइज़र और मॉडर्ना) या वायरल वेक्टर वैक्सीन (कोविशील्ड और स्पुतनिक वी) या निष्क्रिय वैक्सीन (कोवैक्सिन, सिनोवैक-कोरोनावैक और सिनोफार्म्स वेरो सेल) हो सकती है।
  • वायरल वेक्टर और mRNA वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन बनाने के लिये हमारी कोशिकाओं को प्रेरित करने हेतु एक कोड का उपयोग करते हैं और हमारे शरीर को इसी स्पाइक प्रोटीन  के खिलाफ प्रतिरक्षा का निर्माण करना होता है।
    • ‘कॉर्बेवैक्स’ के मामले में भी शरीर को प्रोटीन ही दिया जाता है।
    • mRNA वैक्सीन, मैसेंजर RNA (एमआरएनए) के उपयोग से कार्य करती है, यह एक अणु है और अनिवार्य रूप से डीएनए निर्देशों के लिये कार्रवाई में भाग लेता है। कोशिका के अंदर mRNA का उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये टेम्पलेट के रूप में किया जाता है।
    • वायरल वेक्टर टीके हमारी कोशिकाओं को महत्त्वपूर्ण निर्देश देने के लिये एक अलग वायरस (वेक्टर) के संशोधित संस्करण का उपयोग करते हैं।
  • निष्क्रिय वैक्सीन में समग्र ‘SARS-CoV-2’ वायरस के मृत अथवा निष्क्रिय कण शामिल होते हैं, जो वायरस की पूरी संरचना को लक्षित करने का प्रयास करते हैं।
    • इस तरह ‘कॉर्बेवैक्स’ भी mRNA और वायरल वेक्टर कोविड-19 वैक्सीन की तरह केवल स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करता है, लेकिन एक अलग तरीके से।

अन्य प्रकार के टीके

सक्रिय वैक्सीन

  • इसमें किसी रोगाणु के कमज़ोर (अथवा क्षीण) रूप का उपयोग किया जाता है।
  • क्योंकि यह वैक्सीन प्राकृतिक संक्रमण से इतनी मिलती-जुलती है कि एक शक्तिशाली एवं दीर्घकालीन प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
  • इस वैक्सीन की सीमा यह है कि इसे आमतौर पर कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को नहीं दिया जा सकता है।
  • सक्रिय वैक्सीन का उपयोग खसरा, गलसुआ, रूबेला (MMR संयुक्त टीका), रोटावायरस, चेचक से प्रतिरक्षा के लिये किया जाता है।

सबयूनिट, रिकॉम्बिनेंट, पॉलीसेकेराइड और संयुग्म टीके

  • इस प्रकार की वैक्सीन में रोगाणु के विशिष्ट हिस्सों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि इसका प्रोटीन, कैप्सिड (रोगाणु के चारों ओर एक आवरण) आदि। वे बहुत मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं।
  • इनका उपयोग कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों पर भी किया जा सकता है।
  • इनका उपयोग हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी रोग, हेपेटाइटिस बी, ह्यूमन पेपिलोमावायरस, न्यूमोकोकल रोग से प्रतिरक्षा के लिये किया जाता है।

टॉक्सोइड वैक्सीन 

  • टॉक्सोइड टीके रोगाणु द्वारा बनाए गए विष का उपयोग करते हैं। टॉक्सोइड टीकों का उपयोग डिप्थीरिया और टिटनेस से बचाव के लिये किया जाता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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