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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में जीनोम अनुक्रमण

  • 13 Jun 2019
  • 16 min read

जीनोम मैपिंग यानी जीन-समूह को क्रमबद्ध करने का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। भारत सरकार का संस्थान CSIR भारत के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में रहने वाले करीब 1000 युवाओं के जीन-समूह को क्रमबद्ध करने के प्रोजेक्ट पर काम काम कर रहा है। प्रस्तुत Editorial में इस जटिल विषय का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है और इसके लिये The Hindu, The Indian Express तथा अन्य स्रोतों से जानकारी जुटाई गई है।

संदर्भ

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) अपनी एक महत्त्वाकांक्षी योजना के तहत भारत के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में रहने वाले करीब 1000 युवाओं के जीन-समूह को क्रमबद्ध करने के प्रोजेक्ट पर काम काम कर रही है। इसे जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य छात्रों की नई पीढ़ी को जीन-विज्ञान (Genomics) की उपयोगिता से अवगत कराना है। इस प्रोजेक्ट पर 18 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।

जीनोम मैपिंग क्या है?

  • हमारी कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material) होता है जिसे हम DNA, RNA कहते हैं। इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है।
  • एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकों को ही जीन या जीनोम मैपिंग कहा जाता है।
  • अक्सर जीनोम मैपिंग का इस्तेमाल वैज्ञानिकों द्वारा नए जीन की खोज करने में मदद के लिये किया जाता है।
  • जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों को दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने की क्षमता होती है।
  • ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना शामिल है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है।
  • मानव जीनोम में अनुमानतः 80 हज़ार से एक लाख तक जींस होते हैं।
  • जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स (Genomics) कहा जाता है।

मेंडल के वंशानुक्रम नियम

ग्रेगोर मेंडल को Father of Genetics कहा जाता है, उन्होंने 1865 में वंशानुक्रम के तीन नियम खोजे थे, जिन्हें मेंडल के नियम कहा जाता है। मेंडल के इन वंशानुक्रम नियमों में प्रभाव, अलगाव और स्वतंत्र वर्गीकरण के नियम शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक को जीवाणु कोशिकाओं में केंद्रकीय परिवर्तन के विकास की अवस्था अर्थात् अर्द्ध-सूत्री विभाजन की प्रक्रिया (Meiosis) के माध्यम से समझा जा सकता है।

क्रैक किया DNA कोड

  • इसके लगभग 91 वर्ष बाद 1953 में जेम्स वाटसन, फ्रांसिस क्रिक, मॉरिस विल्किन्स और रोजालिंड फ्रेंकलिन ने दुनिया को DNA मॉलिक्यूल के गूढ़ अर्थ के बारे में जानकारी दी।
  • इन्होंने DNA कोड को पढ़कर बताया कि इस मॉलिक्यूल में हमारी आनुवंशिक जानकारी रहती है, जो माता-पिता से बच्चों में हस्तांतरित होती रहती है।
  • DNA कोड को पढ़ने में सफलता मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने इस बात पर विचार करना शुरू किया कि क्या मनुष्य के DNA में एकत्र जानकारी के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के लिये अलग से दवा तैयार की जा सकती है।
  • उस समय यानी 1953 में मानव जीन-समूह से इस तरह की सूचनाओं को प्राप्त करना असंभव था, लेकिन हाल के वर्षों में जींस को क्रमबद्ध करने में तकनीकी प्रगति के बाद ऐसा करना संभव हो गया है।

जीनोम मैपिंग की आवश्यकता क्यों?

2003 में मानव जीनोम को पहली बार अनुक्रमित किये जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिखाई दे रही है। अधिकांश गैर-संचारी रोग, जैसे- मानसिक मंदता (Mental Retardation), कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर तथा हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathy) कार्यात्मक जीन में असामान्य DNA म्यूटेशन के कारण होते हैं। चूँकि जीन कुछ दवाओं के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं, ऐसे में इन रोगों को आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से समझने में सहायता मिल सकती है।

जीनोम मैपिंग के लाभ

  • जीनोम मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं।
  • इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और यदि उनमें कोई समानता है तो वह क्या है।
  • इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है।
  • बीमारियों का पता समय रहते लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।

इसके माध्यम से उपचारात्मक और एहतियाती (Curative & Precautionary) चिकित्सा के स्थान पर Predictive चिकित्सा की जा सकती है। इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती है। इसे ही Predictive चिकित्सा कहा गया है। इसके अलावा बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जींस का पता भी लगाया जा सकता है और आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि कुछ ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनका सही समय पर पता चल जाए तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन विकसित की जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।

कई देशों में चल रहा जीनोम अनुक्रमण प्रोजेक्ट

  • दुनिया में कई देशों ने अपने नागरिकों के जीन-समूहों को क्रमबद्ध करना आरंभ किया है ताकि उनके जींस की विशिष्टताओं तथा रोगों से लड़ने की क्षमताओं या रोगों के प्रति उनकी कमज़ोरियों को निर्धारित किया जा सके।
  • भारत में यह पहला अवसर है जब विस्तृत अध्ययन के लिये एक बड़े समूह को शामिल किया जा रहा है।
  • उपरोक्त प्रोजेक्ट सरकार द्वारा प्रस्तावित एक बड़े कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसके अंतर्गत कम-से-कम 10 हज़ार भारतीय समूहों के जीनोम को क्रमबद्ध किया जाएगा।
  • जीन-समूहों के नमूना संग्रह के लिये जिन लोगों को सम्मिलित किया जाएगा, वे देश की आबादी की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें अधिकतर कॉलेजों में पढ़ने वाले ऐसे छात्र-छात्राएँ शामिल हैं, जो जीव-विज्ञान या उससे संबंधित विषयों का अध्ययन कर रहे हैं।

साझा की जाएगी जानकारी

  • CSIR के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत केवल लोगों के नमूने ही नहीं एकत्र करेंगे, बल्कि कॉलेजों में जाकर विद्यार्थियों को जीनोमिक्स के बारे में शिक्षित भी करेंगे।
  • एक ऐसा सिस्टम बनाया जाएगा, जिसके ज़रिये वे अपने जीन-समूहों द्वारा दी गई जानकारी हासिल कर सकेंगे। जीनोमिक्स अभी भारत में अपनी शैशवावस्था में है और घनी शहरी आबादी तक ही सीमित है, लेकिन नए कार्यक्रम से इस तरह की जानकारियों का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को भी मिलेगा।
  • इस प्रोजेक्ट के तहत जीन-समूहों को रक्त के नमूनों के आधार पर क्रमबद्ध किया जाएगा। इसके लिये वैज्ञानिक अधिकांश राज्यों में कम-से- कम 30 शिविर लगाएंगे।
  • जिस व्यक्ति के जीन क्रमबद्ध किये जाएंगे, उसे एक रिपोर्ट दी जाएगी। नमूने देने वाले व्यक्ति को ऐसे जींस के बारे में बताया जाएगा, जिनकी मौजूदगी से कुछ दवाएँ कम असर करती हैं।
  • इसी तरह कुछ मामलों में जींस और बीमारी के बीच संबंध काफी कमज़ोर होता है। कई रोग एक जीन की वज़ह से होते हैं और उनका कोई इलाज संभव नहीं होता।
  • रिपोर्ट में इस तरह की कोई जानकारी साझा नहीं की जाएगी, जिससे व्यक्ति की निजता खतरे में पड़ने की संभावना हो। नैतिकता का तकाजा भी यह है कि इस तरह की सूचनाएँ उपयुक्त परामर्श के बाद ही साझा की जानी चाहिये।
  • इस प्रोजेक्ट में हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी को भी शामिल किया जाएगा।
  • जींस को क्रमबद्ध करने का काम इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी और सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी में किया जाएगा।

क्या होता है जीनोम अनुक्रमण?

  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत DNA के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत DNA में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
  • DNA अनुक्रमण विधि से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका समय पर इलाज करना और साथ ही आने वाली पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव है।

मानव जीन-समूह (DNA) में 3.20 अरब बेस पेयर्स

  • इस प्रोजेक्ट के ज़रिये यह साबित हो जाएगा कि भारत भी संपूर्ण जीन-समूह को क्रमबद्ध करने में सक्षम है। मानव जीन-समूह यानी DNA में करीब 3.20 अरब बेस पेयर्स होते हैं।
  • जीन-समूह को क्रमबद्ध करके नई जानकारियां भी प्राप्त की जा सकती हैं। जैसे कि विकसित देशों में डायरिया इंफेक्शन के मामले बहुत कम होते हैं, तो क्या इसमें जींस की भी कोई भूमिका हो सकती है?
  • मानव जीन-समूह को क्रमबद्ध किये जाने के बाद व्यक्ति विशेष के जीन-समूह और बीमारी के बीच संबंध को समझना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
  • थैलेसीमिया और सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी करीब 10 हज़ार बीमारियाँ केवल एक जीन की गड़बड़ी से उत्पन्न होती हैं।
  • जींस को क्रमबद्ध करके कैंसर जैसे रोगों को आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।

अब भारत को अपनी स्वयं की जीनोमिक्स क्रांति की शुरुआत करनी चाहिये। आनुवंशिक अनुसंधान के लिये भारत के पास समुचित वैज्ञानिक संसाधन मौजूद हैं। जीन-विज्ञान में क्रांति का भरपूर लाभ उठाने के लिये भारत को अपनी आबादी की आनुवंशिकी के बारे में सूचनाएं एकत्र करनी होंगी और इन्हें ठीक से समझने के लिये जनबल को भी प्रशिक्षित करना होगा। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों के पास मौजूद है। आनुवंशिक दृष्टि से भारत में विविधता अधिक है, यहाँ करीब 5000 जातीय, भाषायी और धार्मिक समूह हैं तथा सभी की अपनी आनुवंशिक विशिष्टताएँ हैं।

मानव जीनोम मैपिंग परियोजना

  • वर्ष 1988 में अमेरिकी ऊर्जा विभाग तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने मिलकर मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project-HGP) पर काम शुरू किया था और इसकी औपचारिक शुरुआत वर्ष 1990 में हुई थी।
  • HGP एक बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय और बहु-संस्थागत प्रयास है जिसमें जीन अनुक्रमण की रूपरेखा तैयार करने में 13 साल [1990-2003] लगे और इस प्रोजेक्ट पर 2.7 बिलियन डॉलर खर्च हुए।
  • भारत इस परियोजना में शामिल नहीं था, लेकिन इस परियोजना की सहायता से भारत में मानव जीनोम से संबंधित कार्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।
  • HGP में 18 देशों की लगभग 250 प्रयोगशालाएँ सम्मिलित हैं।
  • इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्यों में निम्नलिखित शामिल हैं…
    • मानव DNA के लगभग एक लाख जींस की पहचान करना।
    • मानव DNA बनाने वाले लगभग 3.20 अरब बेस पेयर्स का निर्धारण करना।
    • सूचनाओं को डेटाबेस में संचित करना।
    • अधिक तेज़ और कार्यक्षम अनुक्रमित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
    • आँकड़ों के विश्लेषण के लिये संसाधन (Tools) विकसित करना।
    • परियोजना के नैतिक, विधिक व सामाजिक मुद्दों का निराकरण करना।

अभ्यास प्रश्न: चिकित्सा पद्धति के परिप्रेक्ष्य में जीनोम अनुक्रमण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भारत में इसकी संभावनाओं का विश्लेषण कीजिये।

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