डेली न्यूज़ (06 Jul, 2022)



अफ्रीकी संघ की 20वीं वर्षगाँठ

प्रिलिम्स के लिये:

अफ्रीकी महाद्वीप के देश, अफ्रीका के खनिज, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अंतर्राष्ट्रीय संस्थान

मेन्स के लिये:

भारत-अफ्रीका संबंध और समझौते, भारतीय अर्थव्यवस्था में अफ्रीका का महत्त्व , अफ्रीका में चीन की उपस्थिति, अफ्रीका के लिये चुनौतियांँ

चर्चा में क्यों?

अफ्रीकी संघ 9 जुलाई, 2022 को अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है।

अफ्रीकी संघ:

  • परिचय:
    • अफ्रीकी संघ (AU) महाद्वीपीय निकाय है, इसमें 55 सदस्य देश शामिल हैं जो अफ्रीकी महाद्वीप के देशों से बना है।
  • गठन:
    • अफ्रीकी एकता संगठन की स्थापना वर्ष 1963 में अफ्रीका के स्वतंत्र राज्यों द्वारा की गई थी। संगठन का उद्देश्य अफ्रीकी राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • लागोस प्लान ऑफ एक्शन को अफ्रीकी एकता संगठन द्वारा वर्ष 1980 में अपनाया गया। इस योजना ने सुझाव दिया कि अफ्रीका को अंतर-अफ्रीकी व्यापार को बढ़ावा देकर पश्चिम पर निर्भरता को कम करना चाहिये।
    • वर्ष 2002 में अफ्रीकी एकता संगठन की जगह अफ्रीकी संघ ने ले लिया, जिसका लक्ष्य "महाद्वीप के आर्थिक एकीकरण" में तेज़ी लाना था।

अफ्रीकी संघ की 20 वर्षों में उपलब्धियांँ:

  • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र:
    • इसकी स्थापना वर्ष 2018 में अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार समझौते (AfCFTA) द्वारा की गई थी।
      • AfCFTA व्यापारियों तथा निवेशों की मुक्त आवाजाही के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये एक एकल महाद्वीपीय बाज़ार बनाने का प्रयास करता है और इस प्रकार महाद्वीपीय सीमा शुल्क संघ व अफ्रीकी सीमा शुल्क संघ की स्थापना में तेज़ी लाने का मार्ग प्रशस्त करता है।
      • AfCFTA के प्रारंभिक कार्य वृद्धिशील टैरिफ में कमी, गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त करना, आपूर्ति शृंखला और विवाद निपटान आदि हैं।
    • इससे वर्ष 2022 के अंत तक अंतर-अफ्रीकी व्यापार लगभग 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • बड़ा बाज़ार क्षेत्र महाद्वीपीय बुनियादी ढांँचे के विकास के लिये निवेश आकर्षित करेगा।
    • बढ़े हुए व्यापार से रोज़गार सृजित होंगे, अफ्रीका की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी, सामाजिक कल्याण में सुधार होगा और अफ्रीका का अधिक औद्योगीकरण होगा।
  • राजनयिक उपलब्धि:
    • AU ने अफ्रीका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये बीजिंग, चीन में एक स्थायी मिशन की स्थापना की है।
      • यह अफ्रीका की वैश्विक प्रोफाइल और वैश्विक मामलों पर एक स्वर से बोलने की क्षमता को समेकित करता है।
  • महिलाओं का आर्थिक वित्तीय समावेशन:
    • AU ने फरवरी 2020 में शुरू की गई लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य से 10 वर्षीय महाद्वीपीय घोषणा का समर्थन किया।
    • यह घोषणा, जिसे महिलाओं के वित्तीय और आर्थिक समावेश का दशक कहा जाता है, अफ्रीकी नेताओं की राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं महाद्वीपीय स्तर पर सतत् विकास की दिशा में लैंगिक समावेशन के लिये कार्रवाई करने की प्रतिबद्धता दर्शाती है।

अफ्रीकी संघ के समक्ष चुनौतियाँ:

  • सत्ता पर असंवैधानिक पकड़:
    • अफ्रीका सैन्य तख्तापलट का एक चिंताजनक पुनरुत्थान तथा सत्ता में बने रहने के लिये असंवैधानिक साधनों का उपयोग करने वाले नेताओं जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
      • वर्ष 2013 के बाद से कम-से-कम 32 तख्तापलट और तख्तापलट के प्रयास हुए हैं।
    • वर्ष 2020 के बाद से तख्तापलट के सात प्रयासों में से पांँच सफल रहे।
      • पांँच देशों -बुर्किना फासो, चाड, गिनी, माली और सूडान में तख्तापलट करने वाले नेताओं ने लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों को हिंसक रूप से दबा दिया।
    • उदाहरण के लिये सूडान में तख्तापलट विरोधी प्रदर्शनों के दमन में मरने वालों की संख्या 100 से अधिक है। खाद्य असुरक्षा से 18 मिलियन से अधिक सूडानी खतरे में हैं।
  • कानून के शासन की अवहेलना:
    • लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई और वैध सरकारों की बढ़ती संख्या नागरिक समाज संगठनों पर नकेल कस रही है।
    • सरकारें उन संस्थानों को दबा रही हैं जो उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहती हैं तथा मीडिया को चुप करा रहे हैं।
    • वे कार्यकर्त्ताओं को गिरफ्तार करते हैं और ऐसे कानून बनाते हैं जो नागरिक समाज संगठनों एवं उनकी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
    • अफ्रीका को कम-से-कम दो स्थायी सीटें प्रदान करने हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता है।
      • परिषद के एजेंडे का दो-तिहाई से अधिक अफ्रीका से संबंधित है, फिर भी महाद्वीप को स्थायी प्रतिनिधित्व से बाहर रखा गया है।

भारत-अफ्रीका संबंध:

  • सामाजिक अवसंरचना:
    • भारत-अफ्रीका सामाजिक बुनियादी ढाँचा (शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल) सहयोग बहुआयामी एवं व्यापक है, इसमें अफ्रीकी संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम करने वाले राष्ट्रीय, राज्य तथा उपराष्ट्रीय कारक शामिल हैं।
  • समान भू-राजनीतिक हित:
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत और अफ्रीका के साझा हित हैं, जैसे- संयुक्त राष्ट्र सुधार, आतंकवाद का मुकाबला, शांति स्थापना, साइबर सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा आदि।
  • आर्थिक सहयोग:
    • अफ्रीका के साथ भारत का आर्थिक जुड़ाव मौलिक है।
    • पिछले डेढ़ दशक में भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार में विविधता के साथ यह कई गुना बढ़ गया है, वर्ष 2018-19 में 63.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार ने भारत को महाद्वीप के लिये  तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना दिया है।
  • कोविड-19 के उपचार में सहायता:
    • -आईटीईसी पहल के तहत भारत ने भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा अफ्रीका के स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षण वेबिनार, कोविड-19 प्रबंधन रणनीतियों को साझा किया।
      • भारत कई अफ्रीकी देशों में डॉक्टरों और पैरामेडिक्स के अलावा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) एवं पैरासिटामोल समेत ज़रूरी दवाओं की खेप भी भेज रहा है।
  • हालिया विकास:
    • वर्ष 2022 में भारत की पहली उच्च स्तरीय अफ्रीका यात्रा संपन्न हुई जिसके परिणाम निम्नलिखित हैं :
      • भारत ने भारतीय अनुदान सहायता से निर्मित डकार में उद्यमिता विकास और प्रौद्योगिकी केंद्र (CEDT) के दूसरे चरण के उन्नयन की घोषणा की।
      • भारत ने सेनेगल के लोक सेवकों के लिये एक विशेष आईटीईसी अंग्रेज़ी प्रवीणता पाठ्यक्रम की भी पेशकश की है।
      • भारत ने विदेश सेवा के सुषमा स्वराज संस्थान में 15 सेनेगल राजनयिकों के एक बैच के लिये एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की घोषणा की।
  • इस दौरान दोनों पक्षों ने तीन समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये:
    • युवा मामलों में द्विपक्षीय सहयोग
    • सांस्कृतिक विनियम कार्यक्रम (CEP)
    • राजनयिकों/अधिकारियों के लिये वीज़ा मुक्त व्यवस्था

भारत-अफ्रीका संबंधों में विद्यमान संभावित अवसर:

  • खाद्य सुरक्षा: कृषि और खाद्य सुरक्षा भी संबंधों को प्रगाढ़ करने के हेतु एक आधार हो सकती है।
    • अफ्रीका के पास दुनिया की कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन वैश्विक कृषि-उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी अत्यंत कम है।
    • भारत कृषि क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त कर चुका है, जो  कृषि उपज के  शीर्ष उत्पादक देशों में शामिल  है।
    • इस प्रकार भारत और अफ्रीका दोनों एक-दूसरे के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहयोग कर सकते हैं।
  • नव-उपनिवेशवाद का मुकाबला:
    • अफ्रीका में चीन सक्रिय रूप से चेकबुक एवं दान कूटनीति (Chequebook and Donation Diplomacy) का अनुसरण कर रहा है।
      • हालाॅंकि चीनी निवेश को नव-औपनिवेशिक प्रकृति के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह धन, राजनीतिक प्रभाव, कठिन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और संसाधन निष्कर्षण पर केंद्रित है।
      • दूसरी ओर भारत का लक्ष्य स्थानीय क्षमताओं के निर्माण और अफ्रीकियों के साथ समान भागीदारी के ज़रिये अफ्रीका को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है, न कि केवल अफ्रीकी अभिजात वर्ग के साथ आगे बढ़ना।
  • वैश्विक प्रतिद्वंद्विता को रोकना:
    • हाल के वर्षों में विश्व के कई अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं ने ऊर्जा, खनन, बुनियादी ढाॅंचे और कनेक्टिविटी सहित बढ़ते आर्थिक अवसरों की दृष्टि से अफ्रीकी देशों के साथ अपने संपर्क को मज़बूत किया है।
      • जैसे-जैसे अफ्रीका मे वैश्विक हित बढ़ता है, भारत और अफ्रीका यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अफ्रीका एक बार फिर प्रतिद्वंद्वी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले क्षेत्र में न बदल जाए।

आगे की राह

  • AU को उन सदस्य देशों से निर्णायक रूप से निपटना चाहिये जो अपने क्षेत्रों के भीतर कानून के शासन को कमज़ोर करते हैं।
    • सतत् और समावेशी आर्थिक विकास, सतत् विकास, गरीबी एवं भुखमरी के उन्मूलन के लिये कानून का शासन आवश्यक है।
    • कानून का शासन लोगों, व्यापार और वाणिज्य को समृद्ध बनाता है।
  • अफ्रीकी नेताओं को उन समस्याओं का समाधान करना चाहिये जिनका उपयोग सैन्य नेता अफ्रीकी राज्यों में मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, कुशासन और असुरक्षा के लिये तख्तापलट के बहाने करते हैं। इन समस्याओं का समाधान सेना को नागरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से वंचित कर देगा।
  • नागरिकों तथा समाज पर नकेल कसने के बजाय राज्यों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने और नागरिकों को सशक्त बनाने के लिये अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिये।
    • सामूहिक आर्थिक ताकत से वैश्विक कर्त्ता के रूप में अफ्रीका की स्थिति में सुधार होगा।
  • AU को संवैधानिक उल्लंघनों से निपटने के लिये भी दृढ़ और सुसंगत होना चाहिये।
    • हाल के उदाहरणों से पता चलता है कि अपराधी संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के निर्देश की अवहेलना करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


उद्यम और सेवा केंद्रों का विकास विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, इक्वलाइज़ेशन लेवी, मिनिमम अल्टरनेट टैक्स, सनसेट क्लॉज़।

मेन्स के लिये:

उद्यम और सेवा केंद्रों का विकास विधेयक तथा इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

सरकार की योजना संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान उद्यम और सेवा केंद्रों के विकास (DESH) विधेयक को पेश करने की है।

 DESH विधेयक:

  • यह वर्ष 2005 के मौजूदा विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) कानून में बदलाव करेगा, जिसका उद्देश्य SEZ में रुचि को पुनर्जीवित करना और अधिक समावेशी आर्थिक केंद्रों को विकसित करना है।
  • SEZ को नया रूप दिया जाएगा और विकास केंद्रों के रूप में स्थापित किया जाएगा तथा ये उन कई कानूनों से मुक्त होंगे जो वर्तमान में उन्हें प्रतिबंधित करते हैं। ये हब घरेलू टैरिफ क्षेत्र एवं SEZ की दोहरी भूमिका निभाते हुए निर्यात-उन्मुख व घरेलू निवेश दोनों की सुविधा प्रदान करेंगे।
  • सरकार घरेलू बाज़ार में आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं पर समतुल्य लेवी (Equalisation Levy) लगा सकती है ताकि करों को बाहर की इकाइयों द्वारा प्रदान किये गए करों के बराबर लाया जा सके।

वर्तमान SEZ अधिनियम में परिवर्तन की आवश्यकता:

  • WTO की विवाद समाधान समिति ने निर्णय दिया है कि SEZ योजना सहित भारत की निर्यात-संबंधित योजनाएँ, WTO के नियमों के साथ असंगत थीं क्योंकि वे सीधे कर लाभ को निर्यात से जोड़ती थीं।
  • देशों को सीधे निर्यात सब्सिडी देने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह बाज़ार की कीमतों को विकृत कर सकता है।
  • न्यूनतम वैकल्पिक कर की शुरुआत और कर छूट को हटाने के लिये एक सनसेट क्लॉज के  बाद SEZ में गिरावट शुरू हो गई।
    • SEZ इकाइयों को पहले पाँच र्षों के लिये निर्यात आय पर 100% आयकर छूट प्रदान की जाती है, फिर अगले पाँच वर्षों के लिये 50% आयकर छूट, और उसके बाद पाँच वर्षों के लिये 50% निर्यात लाभ मिलता है।

 DESH विधेयक का महत्त्व:

  • विकास केंद्र:
    • निर्यात को बढ़ावा देने के अलावा इसका व्यापक उद्देश्य 'विकास केंद्रों' के माध्यम से घरेलू विनिर्माण और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना है।
    • इन केन्द्रों को SEZ शासन में अनिवार्य पाँच वर्षों में संचयी रूप से आयात से अधिक निर्यात और घरेलू क्षेत्र में अधिक आसानी से विक्रय की अनुमति प्रदान की जाएगी।
    • इसलिये हब विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप होंगे।
  • स्वीकृति के लिये ऑनलाइन पोर्टल:
    • DESH कानून हब की स्थापना और संचालन के लिये समयबद्ध अनुमोदन प्रदान करने हेतु एक ऑनलाइन सिंगल-विंडो पोर्टल प्रदान करता है।
  • घरेलू बाज़ार को प्रोत्साहन:
    • कंपनियांँ घरेलू बाज़ार में केवल अंतिम उत्पाद के बजाय आयातित इनपुट और कच्चे माल को भुगतान किये जाने वाले शुल्क के साथ बेच सकती हैं।
      • मौजूदा SEZ व्यवस्था में जब कोई उत्पाद घरेलू बाज़ार में बेचा जाता है तो अंतिम उत्पाद पर शुल्क का भुगतान किया जाता है। इसके अलावा SEZ के मामले में विदेशी मुद्रा में किसी अनिवार्य भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है।
  • राज्यों की बड़ी भूमिका:
    • हब के कामकाज की निगरानी के लिये राज्य बोर्ड स्थापित किये जाएंगे। उनके पास माल के आयात या खरीद को मंज़ूरी देने और विकास केंद्र में वस्तुओं या सेवाओं, गोदामों व व्यापार के विकास की निगरानी करने की शक्ति होगी।
      • SEZ शासन में केंद्र के वाणिज्य विभाग द्वारा अधिकांश निर्णय लिये गए थे। अब राज्य भी भाग ले सकेंगे और यहाँ तक कि विकास केंद्रों हेतु सीधे अनुमोदन के लिये केंद्रीय बोर्ड को सिफारिशें भेज सकेंगे।

स्रोत: मिंट


प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

एकल उपयोग प्लास्टिक और इसके उपयोग, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR)।

मेन्स के लिये:

एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्प की आवश्यकता, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने प्लास्टिक के विकल्पों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये 'प्लास्टिक और उनके अनुप्रयोगों के लिये वैकल्पिक उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एकल उपयोग प्लास्टिक (SUP) पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA) की धारा 15 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

Environment-Impact

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन और निपटान: वर्ष 1950-2015 के बीच पॉलिमर, सिंथेटिक फाइबर और एडिटिव्स का संचयी उत्पादन 8,300 मिलियन टन था, जिसमें से 55% को सीधे लैंडफिल में डाल दिया गया या 8% को जला दिया गया और केवल 6% प्लास्टिक का पुनर्नवीनीकरण हो पाया है।
    • यदि वर्ष 2050 तक इसी दर से उत्पादन जारी रखा जाता है, तो यह 12,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन करेगा।
  • भारत का मामला: भारत ने प्रतिवर्ष47 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन किया, जिसमें प्रति व्यक्ति कचरा पिछले पाँच वर्षों में 700 ग्राम से बढ़कर 2,500 ग्राम हो गया।
    • गोवा, दिल्ली और केरल में सबसे ज़्यादा प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ, जबकि नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में सबसे कम प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ।
  • चुनौती: विश्व स्तर पर इनमें से 97-99% प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन फीडस्टॉक से प्राप्त होता है, जबकि शेष 1-3% जैव (संयंत्र) आधारित प्लास्टिक है।
    • इस प्लास्टिक कचरे के केवल छोटे से हिस्से का ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि इस कचरे का अधिकांश हिस्सा विभिन्न प्रदूषणकारी मार्गों के माध्यम से पर्यावरण में निष्कासित हो जाता है।
    • भारत अपने प्लास्टिक कचरे का केवल 60% एकत्र करता है और शेष 40% बिना एकत्र किये रह जाता है जो कचरे के रूप में सीधे पर्यावरण में प्रवेश करता है।
    • प्लास्टिक का लगभग हर टुकड़ा जीवाश्म ईंधन के रूप में शुरू होता है, और ग्रीनहाउस गैसें (GHG) प्लास्टिक जीवनचक्र के प्रत्येक चरण में उत्सर्जित होती हैं:
      • जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण और परिवहन
      • प्लास्टिक शोधन और निर्माण
      • प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन
      • महासागरों, जलमार्गों और विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र परिदृश्यों पर प्रभाव

Plastice-waste-management

पहल:

  • कचरे के प्रबंधन के लिये सबसे पसंदीदा विकल्प अपशिष्ट न्यूनीकरण है। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को अपनाने की समय-सीमा में छूट देते हुए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR), उचित लेबलिंग और खाद एवं बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के संग्रह के माध्यम से अपशिष्ट न्यूनीकरण अभियान को मज़बूत करें।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों का विकास करना, उदाहरण के लिये एडिटिव्स प्लास्टिक को जैव- निम्नीकरणीय पॉलीओलेफिन में बदल सकते हैं, जैसे- पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीइथाइलीन।
  • बायो-प्लास्टिक का उपयोग: प्लास्टिक के किफायती विकल्प के रूप में।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करना।
  • जवाबदेही तय करने और ग्रीनवाशिंग से बचने के लिये अपशिष्ट उत्पादन, संग्रह, पुनर्चक्रण या वैज्ञानिक निपटान का खुलासा करने में पारदर्शिता बढ़ाना।
    • ग्रीनवाशिंग भ्रामक जानकारी देने की एक प्रक्रिया है कि कैसे कंपनी के उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर हैं।

प्लास्टिक का विकल्प:

  • काँच:
    • खाद्य और तरल पदार्थों की पैकेजिंग एवं उपयोग के लिये काँच हमेशा सबसे सुरक्षित व सबसे व्यवहार्य विकल्प रहा है।
    • काँच को कई बार पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है, इसलिये इसे लैंडफिल में समाप्त नहीं किया जाता है। इसके स्थायित्व और पुनर्चक्रण क्षमता को देखते हुए यह लागत प्रभावी है।
  • खोई:
    • कम्पोस्टेबल इको-फ्रेंडली खोई प्लास्टिक की आवश्यकता को डिस्पोबल प्लेट कप या बॉक्स के रूप में समाप्त कर सकती है।
    • गन्ने या चुकंदर से रस निकालने के बाद बचे हुए गूदे से खोई बनाई जाती है। इसका उपयोग जैव ईंधन जैसे अन्य उद्देश्यों के लिये भी किया जा सकता है।
  • बायोप्लास्टिक्स:
    • प्लांट-आधारित प्लास्टिक, जिसे बायोप्लास्टिक्स के रूप में जाना जाता है, को जीवाश्म ईंधन-आधारित प्लास्टिक के हरे विकल्प के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से जब खाद्य पैकेजिंग की बात आती है।
    • लेकिन बायोप्लास्टिक का अपना पर्यावरण पदचिह्न होता है, जिसके लिये फसल उगाने की आवश्यकता होती है तथा भूमि और पानी का उपयोग होता है।
    • बायोप्लास्टिक को पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में उतना ही हानिकारक और कुछ मामलों में अधिक हानिकारक माना जाता है।
  • प्राकृतिक वस्त्र:
    • हर बार धोने के साथ लाखों छोटे प्लास्टिक फाइबर बह जाते हैं जिससे पॉलिएस्टर और नायलॉन कपड़ों को बदलने की बात आती है, तो कपास, ऊन, लिनन और सन (Hemp) पारंपरिक विकल्प के रूप में हैं।
      • कपास का उत्पादन पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
  • रिफिल, पुन: उपयोग और अनपैक्ड खरीद:
    • कम-से-कम हानिकारक पैकेजिंग वह है जिसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बिल्कुल भी नहीं।
      • फल और सब्जी आदि के लिये पुन: उपयोग किये जाने वाले कपड़े के बैग।
      • मांस, मछली, पनीर आदि के लिये पुन: उपयोग किये जाने वाले कंटेनर और बक्से।
      • तेल और सिरका, सफाई हेतु तरल पदार्थ आदि के लिये फिर से भरने योग्य बोतलें और जार।
      • फॉइल (Foil) और क्लिंगफिल्म के बजाय मोम (Beeswax) लपेटना।

संबंधित पहल:

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स