सामाजिक न्याय
महिला सशक्तीकरण की राह : अंकों का खेल
- 08 Mar 2018
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संदर्भ
8 मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहुत से कार्यक्रमों, सम्मेलनों और अभियानों का आयोजन किया जाता है। बहुत सी बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। घोषणाएँ होती हैं। परंतु, जैसे ही दिन समाप्त होता है सब कुछ पहले जैसा हो जाता हैं। महिलाओं के साथ होने वाला हिंसात्मक व्यवहार, छेड़छाड़, शोषण ये सब तो जैसे व्यवस्था के अंग बन गए है। सोचने वाली बात यह है कि क्या हो- हल्ला करने भर से समस्या हल हो जाती है या फिर यह केवल आत्मसंतुष्टि के लिये किया जाने वाला आयोजन है। हालाँकि, पिछले कुछ समय में इस स्थिति में काफी बदलाव हुआ है, बहुत से मंचों के माध्यम से महिलाओं द्वारा स्वयं मोर्चा संभालते हुए अपने उत्थान एवं सशक्तीकरण की दिशा में प्रयास शुरू किये गए हैं। इन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। कुछ समय पहले शुरू हुआ “मी टू” अभियान इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है।
“हैशटैग मी टू”
- “हैशटैग मी टू” नामक इस मुहिम का दुनिया पर कितना असर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। इस अभियान के माध्यम से दुनिया भर की महिलाओं द्वारा अपने साथ हुई दुर्घटनाओं के विषय में खुलकर बात की जा रही है।
- इस अभियान की सफलता की कहानी इस बात से साबित होती है कि इसे प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन द्वारा वर्ष 2017 के पर्सन ऑफ द ईयर से सम्मानित किया गया है।
- यह अभियान उन महिलाओं के लिये एक बड़ा संबल बनकर उभरा है, जिन्होंने यौन शोषण के विरुद्ध चुप्पी तोड़ते हुए खुलकर बात करने का साहस दिखाया है।
“हैशटैग लहू का लगान”
- देश भर में जीएसटी लागू होने के बाद सैनेटरी पैड पर 12 फीसदी टैक्स अधिरोपित कर दिया गया। इसी 12 फीसदी जीएसटी के विरोध में सोशल मीडिया पर एक नया अभियान 'लहू का लगान' शुरू किया गया।
- इस अभियान के अंतर्गत महिलाओं द्वारा सैनेटरी पैड पर लगने वाले जीएसटी को हटाने की मांग की जा रही है।
“हैशटैग मेरी रात मेरी सड़क”
- पिछले दिनों महिला सुरक्षा के संबंध में सोशल मीडिया पर एक और अभियान शुरू किया गया है।
- इस अभियान के तहत 12 अगस्त, 2017 को बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा सड़कों पर उतर कर विरोध प्रकट किया गया।
“हैशटैग इक्वलपे (equalpay)”
- चीन में बीबीसी की संपादक कैरी ग्रेसी द्वारा संस्थान में पुरुष और महिला कर्मचारियों के बीच वेतन असमानता के विरोध में पद से इस्तीफा दे दिया गया।
- इस कैंपेन का इतना प्रभाव हुआ कि बीबीसी के कुछ संपादकों द्वारा अपने वेतन में कटौती की गई।
अन्य आँकड़ें
- मॉन्स्टर सेलरी इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट के अनुस्सर, भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 20 फीसद कम वेतन मिलता है।
- वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के वैश्विक लैंगिक भेद सूचकांक 2017 के अंतर्गत विश्व के 144 देशों की सूची में भारत को 108वां स्थान प्राप्त हुआ।
- वर्ष 2016 की तुलना में यह 21 स्थान नीचे आ गया।
“हैशटैग वुमन फॉर 33” (WomenFor33)
- 5 मार्च को कॉन्ग्रेस पार्टी की महिला विंग द्वारा इस कैंपेन की शुरुआत की गई। इस अभियान के तहत संसद में महिलाओं के लिये 33 फीसदी आरक्षण की मांग की जा रही है।
- वर्तमान में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 11 फीसदी ही है।
इसके अतिरिक्त बहुत से अभियान चर्चा का विषय बने रहे जो या तो महिलाओं के अधिकारों को बल प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किये गए या फिर उनकी सुरक्षा के प्रति चिंता प्रकट करने के उद्देश्य से।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
- प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है।
- सर्वप्रथम वर्ष 1909 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1975 से इसे मनाया जाने लगा है।
- विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
यौन शोषण के संदर्भ में बात की जाए तो
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी की गई विशाखा गाइडलाइंस के अनुसार, यह ज़रूरी नहीं है कि यौन शोषण का अर्थ केवल शारीरिक शोषण ही हो।
- महिला होने के कारण कार्यस्थल पर होने वाला किसी भी तरह का भेदभाव जिससे महिला की गरिमा को क्षति पहुँचती है, उसे शोषण माना गया है।
- कार्यस्थल पर किसी भी पुरुष द्वारा महिला के शरीर, रंग-रूप पर की गई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जान बूझकर छूना, महिला के संबंध में अथवा उससे जोड़कर किसी अन्य कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में अथवा अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरिक लाभ के बदले भविष्य में नफा-नुकसान का वादा करना या फिर गंदे इशारे करना आदि हरकतों को शोषण का हिस्सा बनाया गया है।
यौन शोषण के संबंध में आँकड़ाबद्ध विवरण
- हालाँकि, यह कहना आसान है कि यौन शोषण के संबंध में आँकड़ाबद्ध विवरण मौजूद होना चाहिये लेकिन व्यावहारिक रूप से सोचा जाए तो यह एक बेहद कठिन एवं पीड़ादायक (महिलाओं की नज़र से) कार्य है।
- जहाँ यौन उत्पीड़न को परिभाषित करना ही मुश्किल हो जाता है, वहाँ इस दर्दनाक और बदनामी भरे अनुभव के बारे में जानकारी एकत्र करना इसे और भी मुश्किल बना देता है।
- भारतीय राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) - IV से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 5.5% महिलाओं द्वारा यौन हिंसा का अनुभव किये जाने के संबंध में पुष्टि की गई है, चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 80% से अधिक उदाहरण पति द्वारा प्रायोजित यौन शोषण से संबद्ध हैं।
- इन परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि हिंसा के प्राथमिक स्थान के रूप में घर में सबसे अधिक यौन हिंसा होती है, इसके पश्चात् सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों का नंबर आता है।
- यदि इस सर्वेक्षण के विषय में गहराई से विचार करें तो ज्ञात होता है कि मूल समस्या सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी में नहीं बल्कि सर्वेक्षण के डिज़ाइन एवं पैटर्न में निहित है। जिसके कारण ऐसे संदेहास्पद आँकड़े सामने आए हैं।
एनएफएचएस-IV सर्वेक्षण
- एनएफएचएस-IV के अंतर्गत बहुत अजीब तरह के सवालों को शामिल किया गया। उदाहरण के तौर पर "क्या किसी ने आपको (महिला को) किसी भी तरह से उस समय यौन संबंध रखने या किसी भी अन्य यौन कृत्य करने के लिये विवश किया है जब आप नहीं चाहती थी?"
- आश्चर्यजनक रूप से, इस प्रकार के अनुचित प्रश्न को अधिकतर अर्द्ध-सार्वजनिक सभाओं में पूछा गया। स्पष्ट रूप से ऐसे सवाल नेतृत्व और संवेदनशीलता की अनुपस्थिति में, बड़े पैमाने पर नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करते है।
- इसके अलावा, बिना सहमति के यौन कृत्यों (non-consensual sexual acts) के बारे में भी सवाल पूछे गए।
- इस प्रकार के कृत्यों को कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत परिभाषित किया गया है।
- हालाँकि यहाँ एक और बात पर गौर करने की ज़रूरत है वह यह कि शोषण की परिभाषा एक महिला के लिये कुछ और है, जबकि पुरुष के लिये कुछ और। जो बात एक पुरुष के लिये सामान्य हो सकती है, हो सकता है वही एक महिला के लिये शोषण के दायरे में शामिल होती हो। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट करना बेहद कठिन है कि इस शब्द की व्यापकता को कैसे बांधा जाए।
लोक फाउंडेशन का सर्वेक्षण
- लोक फाउंडेशन (Lok Foundation) द्वारा तैयार किये गए तथा सीएमआईई (Centre for Monitoring Indian Economy Pvt. Ltd. – CMIE) द्वारा प्रशासित लोक सर्वेक्षण (Lok surveys) के अंतर्गत भी यही बात सामने आई।
- इस सर्वेक्षण के अंतर्गत लगभग 78,000 महिलाओं से यौन उत्पीड़न के उनके वास्तविक अनुभवों के बारे में पूछा गया। इनमें से लगभग 10% द्वारा अक्सर ऐसी घटनाएँ घटित होने की बात स्वीकार की गई, जबकि 7.5% द्वारा कभी-कभी ऐसा होने की बात पर सहमति जताई गई।
- सर्वेक्षण के अनुसार, तकरीबन 15.67% महिलाओं द्वारा 'शायद ही कभी’ ग्रोपिंग (groping)/ अवांछित तरीके से छूने का अनुभव किया गया है। स्पष्ट रूप से ये आँकड़े वास्वतिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्रदान नहीं करते हैं।
- जब पुरुषों और महिलाओं से पूछा गया कि क्या "महिलाओं को ईव-टीज़िंग (Eve-teasing) को जीवन के सामान्य भाग के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिये" केवल 50% द्वारा इस कथन से असहमति व्यक्त की गई।
- हालाँकि दूसरे लोगों द्वारा या तो कुछ हद तक इस संबंध में सहमति व्यक्त की गई या फिर कोई राय नहीं दी गई है। जबकि 17.5% लोगों द्वारा केवल 'कुछ हद तक असहमति’ का भाव प्रकट किया गया।
आईडीएफसी सर्वेक्षण
- स्पष्ट रूप से इस प्रकार का व्यवहार महिलाओं के जीवन, उनके शैक्षिक अनुभव के साथ-साथ काम और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता पर प्रभाव डालता है।
- आईडीएफसी संस्थान द्वारा देश के चार शहरों में 20,000 से अधिक घरों में किये गए सर्वेक्षण में जब लोगों से परिवार के भीतर पुरुषों और महिलाओं की सुरक्षा के बारे में बात की गई तो जानकारी मिली कि उनमें से अधिकांश द्वारा घर से बाहर जाने वाले अथवा घर से बाहर अकेले रहने वाले सदस्यों के संबंध में चिंता प्रकट की गई।
- दिल्ली जैसे शहर में यह स्थिति और अधिक भयावह प्रतीत होती है। यहाँ शाम को 7 बजे के बाद घर से बाहर रहने वाले पुरुष सदस्य के संबंध में कोई चिंता व्यक्त नहीं की गई, जबकि लगभग 20% परिवारों द्वारा घर से बाहर महिला सदस्य के बारे में चिंता व्यक्त की गई।
- 9 बजे के बाद पुरुषों की सुरक्षा के लिये चिहिन्त होने वाली संख्या बढ़कर 40% हो गई, जबकि महिलाओं की सुरक्षा के विषय में यह आँकड़ा 90% से भी अधिक बढ़ गया। जो इस बात को प्रकट करता है कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से दिल्ली का माहौल चिंता उत्पन्न करने वाला है।