जैव विविधता और पर्यावरण
प्लास्टिक वेस्ट
- 16 Nov 2019
- 22 min read
परिचय
- कागज, भोजन के छिलके, पत्तियों आदि जैसे कचरे के अन्य रूपों के विपरीत (प्रकृति में बैक्टीरिया या अन्य जीवित जीवों द्वारा विघटित होने में सक्षम अर्थात जैव निम्नीकरणीय) प्लास्टिक कचरा अपनी जैव अनिम्नीकरणीय प्रकृति के कारण सैकड़ों या (हजारों) वर्षों तक पर्यावरण में बना रहता है।
- प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के संचय के कारण होता है। इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- जैसे कि प्राथमिक वर्ग में सिगरेट बट्स और बोतल कैप इत्यादि तथा द्वितीयक वर्ग की प्लास्टिक प्राथमिक वर्ग के प्लास्टिक के क्षरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत में सालाना 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 40% असंग्रहीत रहता है और 43% का उपयोग पैकेजिंग के लिये किया जाता है, जिसमें से अधिकांश एकल-उपयोग प्लास्टिक है।
यू. एन.-प्लास्टिक कलेक्टिव
(Un-Plastic Collective)
- यू.एन.-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, भारतीय उद्योग परिसंघ और WWF-भारत द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
- यह संगठन हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक जनित दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास करता है।
UPC पहल के एक हिस्से के रूप में कंपनियाँ निम्नलिखित समयबद्ध, सार्वजनिक लक्ष्य निर्धारित करती हैं:
- प्लास्टिक के अनावश्यक उपयोग को खत्म करना।
- परिपत्र अर्थव्यवस्था के माध्यम से प्लास्टिक का पुन: उपयोग और चक्रण।
- प्लास्टिक का साधारणीय विकल्प या पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से प्रतिस्थापन।
- सार्थक और औसत दर्जे की कार्रवाई के लिये प्रतिबद्धताओं को निश्चित करना।
प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रकार
- माइक्रोप्लास्टिक पाँच मिलीमीटर से कम आकार के छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक में माइक्रोबीड्स शामिल हैं जो सौंदर्य प्रसाधन और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में उपयोग किये जाते हैं इनमें औद्योगिक स्क्रबर्स भी शामिल हैं जो आक्रामक ब्लास्ट सफाई के लिये उपयोग किये जाते हैं, माइक्रोफाइबर का प्रयोग वस्त्रों में तथा नवीन रेजिन पैलेट्स का प्रयोग प्लास्टिक विनिर्माण की प्रक्रिया में किया जाता है।
- सौंदर्य प्रसाधन और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों के अलावा, अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक्स का निर्माण प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से होता है जो सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने के कारण पुनर्चक्रित नहीं होते।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक एक डिस्पोज़ेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुनर्चक्रण से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियाँ, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, पुआल, प्लास्टिक की प्लेटें, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर आदि।
- भारत ने नई दिल्ली में भारतीय उद्योग परिसंघ के संघारणीयता सम्मेलन में 2022 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की है।
प्लास्टिक अपशिष्ट का विस्तार
एक वैश्विक घटना के रूप में प्लास्टिक अपशिष्ट:
- 1950 के बाद से 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है और इसका लगभग 60% हिस्सा भूमि भराव के रूप में या प्राकृतिक वातावरण में उपस्थित है।
- अभी तक उत्पादित सभी प्लास्टिक कचरे में से केवल 9% का चक्रण किया गया है और लगभग 12% का क्षरण हुआ है, जबकि शेष 79% भूमि-भराव, डंप या प्राकृतिक वातावरण में जमा हुआ है।
- प्लास्टिक कचरा, चाहे वह नदी में हो, महासागर में हो या भूमि पर सदियों तक पर्यावरण में बना रह सकता है, इसलिये 2050 तक दुनिया भर के समुद्रों और महासागरों में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक की मात्रा अधिक होगी।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट:
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, भारत में एक दिन में करीब 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है और प्रतिदिन 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा असंग्रहीत ही रह जाता है।
- फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के एक अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग 2015 के 13.4 (मिलियन टन) से 2020 तक 22 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है और इसका लगभग आधा हिस्सा सिंगल-यूज़ प्लास्टिक है।
- भारत की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किग्रा. से कम है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत का लगभग दसवाँ हिस्सा है।
प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रभाव:
आर्थिक नुकसान:
- तटों पर प्लास्टिक कचरा तट की सुंदरता को प्रभावित करता हैं जिसका पर्यटन राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिये अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में प्लास्टिक कचरे की अंतर्राष्ट्रीय डंपिंग से द्वीप की सुंदरता प्रभावित हुई है।
जानवरों के लिये निहितार्थ:
- समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्लास्टिक कचरा जलीय जीव जंतुओं पर अत्यंत बुरा प्रभाव डालता है।
- प्लास्टिक जानवरों के पाचन तंत्र को खराब कर देता है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
- समुद्री जानवर भी प्लास्टिक कचरे के संपर्क में आ जाते है जिसके कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
- प्लास्टिक में ज़हरीले रसायन भी हो सकते हैं जो पशु के महत्त्वपूर्ण अंगों या जैविक प्रक्रियाओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
मानव स्वास्थ्य के लिये निहितार्थ:
- प्लास्टिक से निकलने वाले रसायनों में पॉलीब्रोमिनेटेड डाईफिनाइल ईथर (एंटी-एंड्रोजन), बिस्फेनॉल ए (महिलाओं में पाए जाने वाला प्राकृतिक हार्मोन एस्ट्रोजन की नकल) और थैलेट्स (एंटी-एंड्रोजन के रूप में भी जाना जाता है) जैसे यौगिक होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य से संबंधित अवांछित परिवर्तन और आनुवंशिक विकारों को बढ़ावा देते हैं।
- ये रसायन अंतःस्रावी तंत्र और थायरॉयड हार्मोन की कार्यपद्धति में रुकावट पैदा कर सकते हैं और प्रजननशील आयु वर्ग की महिलाओं और छोटे बच्चों के लिये बहुत विनाशकारी हो सकते हैं।
भूमि प्रदूषण:
- प्लास्टिक भूमि पर खतरनाक रसायनों का निक्षालन करता है, जिससे भूमि की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
वायु प्रदूषण:
- प्लास्टिक जलने से वातावरण में ज़हरीले रसायन मुक्त होते हैं जो जन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और जीवित प्राणियों में श्वसन संबंधी विकार पैदा करते हैं।
भूजल प्रदूषण:
- जब भी प्लास्टिक को गड्ढे में फेंक दिया जाता है, तो उसमें मौजूद खतरनाक रसायन वर्षा होने पर भूमिगत रूप से रिसने लगते हैं।
- निक्षालन से रसायन और ज़हरीले तत्त्व जल स्तर में प्रवेश कर अप्रत्यक्ष रूप से भूजल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
जल प्रदूषण:
- कई झीलों और महासागरों में पानी की सतह पर तैरते हुए प्लास्टिक के मलबे से बड़ी संख्या में जलीय जीव प्रभावित हुए हैं। 2014 में सयुंक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में महासागरों पर प्लास्टिक प्रदूषण के वार्षिक प्रभाव का अनुमान 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर लगाया गया था।
खाद्य श्रृंखला में हस्तक्षेप:
- अध्ययन यह बताते हैं कि प्लास्टिक से उत्पन्न रसायन, जैविक और प्रजनन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं जिसके परिणामस्वरूप जीव-जंतुओं की प्रजनन दर कम हो जाती है और खाद्य श्रृंखला बाधित होती है।
- प्लास्टिक को खाने से छोटे जानवरों (प्लेंक्टन, मोलस्क, कीड़े, मछलियाँ और उभयचर) इत्यादि को नुकसान होता है, खाद्य श्रृंखला के परस्पर संबंधों के कारण इसका नुकसान संपूर्ण खाद्य श्रृंखला को उठाना पड़ता है।
खराब ड्रेनेज:
- जल निकासी प्रणाली प्लास्टिक की थैलियों और अन्य प्लास्टिक वस्तुओं से भरी हुई हैं, जो जल निकासी को बाधित करते हैं और बाढ़ की संभावना को बढ़ाते हैं।
निवास स्थान पर प्रभाव:
समुद्रतल में प्लास्टिक की बेकार चादरें कंबल की तरह कार्य करती हैं, जिससे गैसों का आदान-प्रदान रुक जाता है तथा यह जलीय प्रणाली में एनोक्सिया या हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन का कम स्तर) की समस्या उत्पन्न होती है, जिससे समुद्री जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
आक्रामक प्रजातियाँ:
- प्लास्टिक अपशिष्ट भी प्रजातियों के लिये परिवहन का एक संभावित माध्यम हो सकता है, जिससे कुछ समुद्री जीवों की श्रेणी में वृद्धि हो जाती है या प्रजातियों को एक ऐसे वातावरण में प्रवेश मिल जाता है जहाँ वे पहले अनुपस्थित थे। यह किसी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाले परिवर्तनों का कारण बन सकता है।
चुनौतियाँ
प्लास्टिक अपशिष्ट का खराब प्रबंधन (प्लास्टिक को खुली जगह में फेंकना):
- हवा, दूषित जल और ज्वार द्वारा प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण जब महासागर में प्रवेश कर जाते है तो उन्हें छानना मुश्किल हो जाता है।
- समुद्र की धाराओं के साथ प्लास्टिक के प्रवाह से ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच नामक कचरे का एक द्वीप बन गया है।
सहज जैव-निम्नीकरण प्लास्टिक:
- प्रभावी परीक्षण और प्रमाणन के अभाव में, सहज जैव-निम्नीकरण और कंपोस्टेबल प्लास्टिक बाज़ार में प्रवेश नहीं कर पा रहा है।
ऑनलाइन या ई-कॉमर्स कंपनियाँ:
- ऑनलाइन बिक्री और फूड डिलीवरी एप्लीकेशन की लोकप्रियता के चलते प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि हुई है। हालाँकि यह बड़े शहरों तक सीमित है, जो प्लास्टिक कचरे को बढ़ाने में योगदान दे रहा है।
माइक्रोप्लास्टिक्स:
- जलीय वातावरण में प्रवेश करने के बाद माइक्रोप्लास्टिक्स समुद्री जल में तैरता हुआ बहुत दूरी तक जा सकता है या समुद्र के तलछट में जा सकता है। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि वायुमंडल में माइक्रोप्लास्टिक्स बादलों और गिरने वाली बर्फ में भी फँसे हुए हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक के कण आमतौर पर सफेद या अपारदर्शी रंग के होते हैं, जिन्हें सतह पर तैरने वाली मछलियाँ खा लेती है अगर मनुष्य इसे अपने भोजन (दूषित मछली/समुद्री भोजन/घोंघा) में शामिल कर ले तो यह मनुष्य की खाद्य श्रृंखला में शामिल हो उसे प्रभावित करता है।
समुद्री कूड़ा:
- ताज़े पानी और समुद्री वातावरण में प्लास्टिक प्रदूषण की पहचान एक वैश्विक समस्या के रूप में की गई है और यह अनुमान लगाया गया है कि 60-80% समुद्री प्रदूषण का कारण प्लास्टिक है।
स्थलीय प्लास्टिक:
- 80% प्लास्टिक प्रदूषण की उत्पत्ति भूमि आधारित स्रोतों से होती तथा शेष की सागर आधारित स्रोतों (मछली पकड़ने के जाल, मछली पकड़ने की रस्सी) से होती है।
अनुचित कार्यान्वयन और निगरानी:
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (पीडब्लूएम) नियम, 2016 की अधिसूचना और 2018 में किये गए संशोधनों के बावजूद स्थानीय निकाय (यहाँ तक कि सबसे बड़े नगर निगम) कचरे के अलगाव को लागू करने और निगरानी करने में विफल रहे हैं।
समाधान:
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कम करें:
- प्लास्टिक कचरे को कम करने में पहला कदम इसके एकल उपयोग को कम करना है, प्लास्टिक की थैलियों पर कर का समर्थन करके, प्लास्टिक के विनिर्माण पर संयम और प्लास्टिक या बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के विकल्पों का उपयोग करना।
उदाहरण के लिये खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा शुरू की गई परियोजना REPLAN (प्रकृति में पुनरुद्धार के लिये खड़ा है) का उद्देश्य अधिक टिकाऊ विकल्प प्रदान करके प्लास्टिक की थैलियों की खपत को कम करना है।
पुन: उपयोग:
- प्लास्टिक का पुन: उपयोग नए प्लास्टिक की मांग को कम कर सकता है, इसलिये यह प्लास्टिक निर्माण पर प्राकृतिक प्रतिबंध के रूप में कार्य कर सकता है।
- रीसाइ कल: प्लास्टिक पुनर्चक्रण अपशिष्ट या स्क्रैप प्लास्टिक को पुनर्प्राप्त करने और इसे उपयोगी उत्पादों में पुन: परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। यह कई लाभ प्रदान करता है जैसे:
- मूल्यवर्धन के कारण आर्थिक लाभ
- रोजगार सृजन।
- भूमि भराव की समस्याओं को कम करना।
- प्लास्टिक के पुनर्चक्रण के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है
रिकवरी:
- यह गैर-नवीनीकृत प्लास्टिक को उद्योग के लिये ऊर्जा और रसायनों के उपयोगी रूपों की श्रेणी में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। चूंकि प्लास्टिक में मुख्य रूप से कार्बन और हाइड्रोजन होते हैं, अतः डीज़ल जैसे पारंपरिक ईंधन के समान, ऊर्जा सामग्री के साथ इनका उपयोग ईंधन के एक संभावित स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
सरकार और वैश्विक हस्तक्षेप
- 2018 विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दुनिया के नेताओं ने प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने और इसके उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने की कसम खाई।
- G20 की बैठक में पर्यावरण मंत्रियों के समूह ने वैश्विक स्तर पर समुद्री प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिये एक नया कार्यान्वयन ढाँचा अपनाने पर सहमति व्यक्त की।
- 2016 में लागू प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, बताता है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढांचे की स्थापना की ज़िम्मेदारी प्रत्येक स्थानीय निकाय की होनी चाहिये।
- प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर एक नया राष्ट्रीय ढांचा काम कर रहा है, जो नियंत्रण तंत्र के हिस्से के रूप में तीसरे पक्ष के ऑडिट को पेश करेगा।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 ने विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (ईपीआर) की अवधारणा पेश की।
विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी
(Extended Producer Responsibility-EPR)
ईपीआर एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों को उपभोक्ता के उपयोग के बाद उत्पादों के उपचार या निपटान के लिये एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय और शारीरिक ज़िम्मेदारी दी जाती है। (अलगाव और स्रोत पर कचरे के संग्रहण के संबंध में)
ऐसी ज़िम्मेदारी पर्यावरण अनुकूल उत्पाद डिजाइन को बढ़ावा देने, सार्वजनिक पुनर्चक्रण और सामग्री प्रबंधन लक्ष्यों की उपलब्धि का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।
आगे की राह
- प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना और व्यवहार को संशोधित करने के लिये ज़्यादा से ज़्यादा कार्यक्रम प्रारंभ किये जाने चाहिये।
- एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ एक आंदोलन चलाया जाना चाहिये, जिसके अंतर्गत बहु-परत पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप और सुरक्षात्मक पैकेजिंग आदि को रोका जाना चाहिये।
- प्रतिबंध या लेवी लागू करने से पहले जनता के लिये विभिन्न विकल्पों को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है, जैसे:
- इको-फ्रेंडली और फिट-फॉर-ऑप्शनल विकल्पों को आगे बढ़ाने के लिये आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
- उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के आयात पर करों को कम करना या समाप्त करना।
- प्लास्टिक उद्योग के स्थान पर अन्य किसी वैकल्पिक उद्योग की स्थापना हेतु कर छूट या अन्य शर्तों को लागू करके प्रोत्साहन प्रदान करना।
- विभिन्न सामग्रियों जैसे- गन्ने से रस निकालने के बाद का अवशेष, मकई स्टार्च और अनाज के आटे से बने जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिक के उपयोग का विस्तार किया जाना चाहिये।
- व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स का उपयोग निषिद्ध होना चाहिये।
- स्वच्छ भारत मिशन को प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिये एक मंच के रूप में उभरना चाहिये।
- एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को प्रबंधित करने के लिये उनके कुप्रबंधन के वर्तमान कारणों, सीमा और प्रभावों का भी पता लगाया जाना चाहिये।
- प्लास्टिक कचरे के सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों को सूचीबद्ध किया जाना चाहिये।
- खुदरा विक्रेताओं, उपभोक्ताओं, उद्योग के प्रतिनिधियों, स्थानीय सरकार, निर्माताओं, नागरिक समाज, पर्यावरण समूहों और पर्यटन संगठनों जैसे प्रमुख हितधारक समूहों की पहचान कर, उन्हें इस मुहीम में संलग्न किया जाना चाहिये।
- प्लास्टिक प्रबंधन निर्णय का पालन न करने पर दंडात्मक नियमो का प्रावधान किया जाना चाहिये।
- प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- यदि आवश्यक हो तो प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन माप की निगरानी तथा उसका समायोजन कर, इसके बारे में जनता को अपडेट किया जाना चाहिये।