लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 06 May, 2021
  • 32 min read
शासन व्यवस्था

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2021

चर्चा में क्यों?

प्रत्येक वर्ष विश्व भर में 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (WPFD) मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1991 में यूनेस्को की जनरल काॅन्फ्रेंस की सिफारिश के बाद वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी।
  • यह दिवस वर्ष 1991 में यूनेस्को द्वारा अपनाई गई 'विंडहोक' (Windhoek) घोषणा को भी चिह्नित करता है।
    • वर्ष 1991 की ‘विंडहोक घोषणा’ एक मुक्त, स्वतंत्र और बहुलवादी प्रेस के विकास से संबंधित है। 

WPFD 2021 की तीन प्रमुख विशेषताएँ: 

  • समाचार मीडिया की आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने पर केंद्रित कदम।
  • इंटरनेट कंपनियों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये तंत्र।
  • संवर्द्धित मीडिया और सूचना साक्षरता (MIL) क्षमताएँ जो लोगों को पहचानने और मूल्यवर्द्धन में सक्षम बनाने के साथ-साथ पत्रकारिता को सार्वजनिक हित के रूप में महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।

विश्व प्रेस सम्मलेन 2021:

  • वर्ष 2021 के वैश्विक सम्मेलन की मेज़बानी यूनेस्को और नामीबिया सरकार द्वारा की गई थी।
  • COVID-19 महामारी के कारण यह सम्मेलन दुनिया भर में स्थानीय समाचार मीडिया द्वारा जोखिम संभावित मुद्दों की ओर तत्काल ध्यान आकर्षित करेगा।
  • इस आयोजन में उन उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जो हमारे ऑनलाइन मीडिया पर्यावरण की चुनौतियों से निपटने, इंटरनेट कंपनियों की पारदर्शिता बढ़ाने के लिये, पत्रकारों की सुरक्षा को मज़बूत करने और उनकी कार्य स्थितियों में सुधार करने हेतु की जा रही है।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता

  • प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"।
  • वर्ष 1950 में रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
  • हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में मानहानि या अपराध को प्रोत्साहन।
  • संबंधित रैंकिंग / परिणाम:

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

कोविड -19: भारत में मौतों का अग्रणी कारण

चर्चा में क्यों?

‘इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन’ (IHME) के हालिया अनुमानों के अनुसार, कोविड-19 महामारी भारत में मौतों का सबसे बड़ा कारण बनकर उभरी है।

  • IHME, वाशिंगटन विश्वविद्यालय (अमेरिका) में स्थित एक स्वतंत्र वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र है।

प्रमुख बिंदु:

कोविड-19 महामारी के कारण मौतें:

  • भारत में कोरोना वायरस के 19 मिलियन से अधिक मामले दर्ज किये गए हैं। कोविड-19 महामारी के कारण हुई मौतों के मामले में भारत, अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है और यहाँ 2,15,000 से अधिक मौतों की पुष्टि की गई है।
  • महामारी में हुई मौतों की संख्या पिछले दो दशकों (2000-2019) के दौरान 320 से अधिक प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों की संख्या से दोगुनी है।

भारत में मौतों के अन्य शीर्ष कारण:

  • अरक्तजन्य हृदय रोग (दूसरा),
  • जीर्ण प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (तीसरा),
  • स्ट्रोक (चौथा),
  • डायरिया रोग (पाँचवें),
  • नवजात विकार (छठा),
  • कम श्वसन संक्रमण (सातवाँ),
  • क्षय रोग (आठवाँ),
  • मधुमेह मेलेटस (नौवाँ) और
  • क्रोनिक यकृत रोग (दसवाँ), जिसमें सिरोसिस भी शामिल है।

कोविड-19: मौतों के प्रमुख कारण के रूप में:

  • SARS-CoV-2 के 'डबल म्यूटेंट' B.1.617 के भारतीय वेरिएंट के कारण जोखिम बढ़ गया है।
  • सरकारों की तैयारियों में कमी, भारत की खराब स्वास्थ्य संरचना, मेडिकल ऑक्सीजन और दवाओं की कमी के कारण लोगों को अपना जीवन गंवाना पड़ रहा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा संकट के पैमाने को कम करने देखने और इसे प्रबंधित करने में विफलता रहने के लिये केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
  • विशेषज्ञ भारत की कोविड-19 वैक्सीन खरीद और मूल्य निर्धारण नीति से भी नाखुश रहे हैं। राज्यों को अपने टीकों के कोटा का इंतज़ार करना होगा।

आगे की राह:

  • IHME ने सरकारों को सलाह दी है कि वे कम-से-कम छह सप्ताह के लिये सख्त ‘फिज़िकल डिस्टेंसिंग’ संबंधी मानदंड लागू करें। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र के साथ-साथ राज्यों को सलाह दी है कि यदि आवश्यक हो तो लॉकडाउन का सहारा लें, लेकिन यह भी सुनिश्चित करें कि आजीविका प्रभावित न हो।

स्रोत-डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

एशियाई शेर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हैदराबाद के नेहरू प्राणी उद्यान (Nehru Zoological Park) में आठ एशियाई शेरों (Asiatic Lion) में कोविड-19 संक्रमण की पुष्टि हुई है।

  • यह भारत में इस प्रकार का पहला ज्ञात मामला है।
  • इससे पूर्व वर्ष 2020 में बाघ के कोविड-19 से संक्रमित होने की सूचना न्यूयॉर्क (ब्रोंक्स चिड़ियाघर) में दर्ज की गई थी।

प्रमुख बिंदु

एशियाई शेर के विषय में:

  • एशियाई शेर, जिसे फारसी शेर या भारतीय शेर के नाम से भी जाना जाता है, पैंथेरा लियो पर्सिका (Panthera Leo Persica) उप-प्रजाति का सदस्य है, जो कि मूलतः भारत तक सीमित है।
    • पूर्व में ये पश्चिम और मध्य पूर्व एशिया में भी पाए जाते थे, लेकिन इन क्षेत्रों में आवासीय क्षति के कारण ये विलुप्त हो गए।
  • एशियाई शेर, अफ्रीकी शेरों की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
  • एशियाई शेरों में पाए जाने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण रूपात्मक विशेषता यह है कि उनके पेट की त्वचा पर विशिष्ट लंबवत फोल्ड होते हैं। यह विशेषता अफ्रीकी शेरों में काफी दुर्लभ होती है।

वितरण:

  • एशियाई शेर एक समय में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और मध्य भारत के पारिस्थितिकी पर्यावास में पाए जाते थे।
  • वर्तमान में गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य (Gir National Park and Wildlife Sanctuary) एशियाई शेर का एकमात्र निवास स्थान है।

संकट:

  • इन शेरों को प्राकृतिक आपदा, अवैध शिकार, मानव-पशु संघर्ष आदि से खतरा है।

 संरक्षण की स्थिति:

संरक्षण के प्रयास:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा ‘एशियाई शेर संरक्षण परियोजना’ (Asiatic Lion Conservation Project) शुरू की गई है।
  • इसे वर्ष 2018 से वर्ष 2021 तक तीन वित्तीय वर्षों के लिये अनुमोदित किया गया है।
  • यह परियोजना रोग नियंत्रण और चिकित्सकीय देखभाल हेतु बहु-क्षेत्रीय एजेंसियों के साथ समुदायों की भागीदारी के माध्यम से वैज्ञानिक प्रबंधन द्वारा एशियाई शेरों के समग्र संरक्षण की परिकल्पना करती है।

नेहरू प्राणी उद्यान

  • यह उद्यान भारत के सबसे बड़े चिड़ियाघरों और हैदराबाद के शीर्ष दर्शनीय स्थलों में से एक है। तेलंगाना सरकार के वन विभाग द्वारा संचालित इस चिड़ियाघर का नाम देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया है।
  • इसे वर्ष 1963 में जनता के लिये खोला गया था।
  • यह ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण ‘मीर आलम टैंक’ के पास स्थित है, जो कि 200 वर्ष पुराना है और विश्व का पहला बहु-आर्क चिनाई (Multi-Arch Masonry) वाला बाँध है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ताइवान द्वारा भारत की मदद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ताइवान द्वारा भारत को कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने हेतु ऑक्सीजन कंसंट्रेटर (Oxygen Concentrators) और सिलेंडर (Cylinders) के रूप में सहायता उपलब्ध कराई गई है।

  • यह सहायता भारत और ताइवान के मध्य बढ़ते संबंधों को दर्शाती है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर चीन के साथ गतिरोध की स्थिति बनी हुई है और इस क्षेत्र में चीन द्वारा आक्रामक कार्रवाईयों को अंजाम दिया जा रहा है, जिसमें चीन द्वारा ताइवान के हवाई क्षेत्र का बार-बार उल्लंघन करना भी शामिल है।
  • हालांँकि, भारत ने अभी तक चीन से  किसी भी प्रकार की सहायता के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है तथा वाणिज्यिक आधार पर ही चीन से प्राप्त होने वाले चिकित्सा आपूर्ति स्रोतों को प्राथमिकता दी है।

ताइवान

South-china-sea

  • तकरीबन 23 मिलियन लोगों की आबादी वाला रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान चीन के दक्षिणी तट के पास स्थित द्वीप है, जिसे वर्ष 1949 के बाद से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से स्वतंत्र, एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा शासित किया जा रहा है।
  • इसके पश्चिम में चीन (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना), उत्तर-पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस स्थित है।
  • ताइवान सबसे अधिक आबादी वाला ऐसा राष्ट्र है, जो संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) का सदस्य नहीं है और साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र के बाहर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है।
  • ताइवान एशिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  • यह चिप निर्माण में एक वैश्विक प्रतिनिधि और आईटी हार्डवेयर आदि का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है।
  • चीन और ताइवान के बीच संबंध: 
    • पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People’s Republic of China- PRC) ताइवान को अपने एक प्रांत के रूप में देखता है, जबकि ताइवान में अपनी खुद की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है और वहाँ के लोगों ताइवान को मेनलैंड चाइना की राजनीतिक प्रणाली और विचारधारा से अलग मानते हैं।
    • चीन और ताइवान के मध्य संबंध काफी नाज़ुक हैं, जिसमें पिछले सात वर्षों के दौरान सुधार हुआ है, लेकिन समय-समय पर इनके संबंधों में उतार-चढ़ाव देखा जाता है ।
    •  ‘एक चीन नीति’ (One China Policy) का आशय चीन की उस कूटनीतिक से है, जिसमें केवल एक चीनी सरकार को मान्यता दी जाती है।
      • एक नीति के तौर पर इसका अर्थ है कि ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी जन-गणराज्य (PRC) जो कि चीन का मुख्य भू-भाग है) से कूटनीतिक संबंधों के इच्छुक देशों को ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (चीनी गणराज्य या ROC यानी ताइवान) से संबंध तोड़ने होंगे।

प्रमुख बिंदु: 

भारत-ताइवान संबंध:

  • कूटनीतिक संबंध: 
    • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन वर्ष 1995 में दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये थे। भारत द्वारा ‘एक चीन नीति’ का समर्थन किया जाता है। 
  • आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2000 में भारत और ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
    • वर्ष 2018 में भारत और ताइवान ने द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किये।
      • भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, विनिर्माण, पेट्रोकेमिकल, मशीन, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी और ऑटो पार्ट्स के क्षेत्र में लगभग 200 ताइवानी कंपनियांँ हैं।
    • दोनों पक्षों के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, तीस से अधिक सरकार द्वारा वित्त पोषित संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएंँ चल रही हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध : 
    • वर्ष 2010 में दोनों पक्षों के मध्य उच्च शिक्षा हेतु हुए’ म्यूच्यूअल डिग्री रिकोगनाइज़ेशन समझौते’ (Mutual Degree Recognition Agreement) के बाद शैक्षिक आदान-प्रदान का विस्तार हुआ है।

संबंधों में चुनौती: 

  • एक चीन नीति: भारत के लिये ताइवान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह से विकसित करना अपेक्षाकृत मुश्किल है। वर्तमान में, विश्व के लगभग 15 देशों द्वारा  ताइवान को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी गई है। भारत मान्यता देने वाले 15 देशों में शामिल नहीं है।
  • आर्थिक सहयोग में बाधाएंँ: भारत में ताइवान का बढ़ता निवेश, सांस्कृतिक चुनौतियों और घरेलू उत्पादकों से दबाव का कारण बना हुआ है।

ताइवान के साथ बढ़ते संबंधों का दायरा

  • ताइवान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण भौगोलिक इकाई है। भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत का समावेशी दृष्टिकोण है अत: भारत को ताइवान और अन्य समान विचारधारा वाले देशों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  •  वर्ष 2016 में शुरू की गई ‘ताइवान न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (Taiwan’s New Southbound Policy) में भारत पहले से ही एक प्रमुख फोकस देश है। इसके तहत, ताइवान का उद्देश्य राजनीतिक, आर्थिक और पीपल-टू-पीपल संपर्क को बढ़ाकर अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को मज़बूत करना है।
    • सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अग्रणी होने के चलते ताइवान, आईटीईएस (सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम सेवा) में भारत का पूरक हो सकता है।
    • यह भारत के मेक इन इंडिया (Make in India), डिजिटल इंडिया (Digital India) और स्मार्ट सिटीज़ (Smart Cities) अभियानों में योगदान दे सकता है।
    • ताइवान की कृषि-प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी भारत के कृषि क्षेत्र हेतु बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है।
  • ताइवान क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और ताइवान के साथ एक व्यापार समझौता भारत को चीन से अलग कर क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता से जुड़े रहने में मदद करेगा।

आगे की राह: 

  • दोनों देश एक जीवंत लोकतंत्र का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, ऐसी स्थिति में संसदीय वार्ता एवं दोनों देशों के मध्य आयोजित विभिन्न दौरे, कानून के शासन (Rule Of Law) तथा सुशासन (Good Governance) के प्रति दोनों देशों की प्रतिबद्धता को मज़बूत कर सकते हैं।
  • भारत-ताइवान संबंधों के मध्य गहरे जुड़ाव का उद्देश्य ताइवान के साथ संबंधों को चीन के साथ बढ़ती दुश्मनी के साथ प्रतिसंतुलित करना नहीं है, बल्कि भारत-ताइवान संबंधों को चीन से अलग करके देखने की आवश्यकता है। ताइवान अपनी पहुँच भारत तक बना रहा है भारत को भी इस दिशा में एक साथ कदम बढ़ाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सूत्र (SUTRA) मॉडल

चर्चा में क्यों?

कई वैज्ञानिकों ने सरकार द्वारा समर्थित एक मॉडल को कोविड की दूसरी लहर के लिये ज़िम्मेदार ठहराया हैं, जिसे SUTRA  (Susceptible, Undetected, Tested (positive), and Removed Approach) कहा जाता है , इस मॉडल के निर्माण के पीछे सबसे बड़ी धारणा यह थी कि भारत में कोविड की दूसरी लहर की संभावना नहीं है।

  • कोविड-19 की दूसरी लहर ने अप्रैल 2021 से हज़ारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।

प्रमुख बिंदु 

परिचय:

  • कानपुर और हैदराबाद आईआईटी के वैज्ञानिकों ने भारत में कोविड ग्राफ का पूर्वानुमान लगाने के लिये SUTRA मॉडल लागू किया।
    • यह पहली बार तब सार्वजनिक रूप से लोगों के ध्यान में आया, जब उसके एक विशेषज्ञ सदस्य ने अक्तूबर 2020 में यह घोषणा की कि भारत में कोविड की स्थिति अपनी चरम सीमा पर है।
  • महामारी संबंधी विषयों का पूर्वानुमान लगाने के लिये यह मॉडल तीन मुख्य मापदंडों का उपयोग करता है, जो इस प्रकार हैं: 
    • बीटा (Beta): जिसे संपर्क दर भी कहा जाता है, जो यह मापता है कि एक संक्रमित व्यक्ति प्रतिदिन कितने लोगों को संक्रमित करता है। यह R0 वैल्यू से संबंधित है, जो एक संक्रमित व्यक्ति के संक्रमण के दौरान वायरस को फैलाने वाले लोगों की संख्या है।
    • पहुँच (Reach): यह जनसंख्या में महामारी के प्रसार के स्तर की एक माप है।
    • एप्सिलॉन (Epsilon): यह जाँच किये गए सक्रिय और असक्रिय मामलों का अनुपात है।

सूत्र संबंधित समस्याएँ:

  • भिन्नता (Variability):
    • SUTRA के पूर्वानुमानों के कई उदाहरण हैं जो वास्तविक मामलों की संख्या के अनुमान (Caseload) की पहुँच से बहुत दूर हैं और SUTRA मॉडल के पूर्वानुमान सरकारी नीतियों का मार्गदर्शन करने के लिये बहुत अधिक परिवर्तनशील हैं।
  •  अनेक मापदंड (Too Many Parameters):
    • SUTRA मॉडल समस्याग्रस्त था क्योंकि यह अनेक मापदंडों पर निर्भर था और जब भी इसके पूर्वानुमान विफल होते थे तो उन मापदंडों को पुनर्गठित किया जाता था।
    • अधिक पैरामीटर या मापदंड का होना, 'ओवरफिटिंग' (Overfitting) या किसी मॉडल के विफल होने के खतरे को संदर्भित करता है। इसके लिये 3 या 4 मापदंडों के साथ छोटी-छोटी पहलों पर किसी भी वक्र को स्थापित कर सकते हैं।
  • वायरस के व्यवहार को अनदेखा करना:
    • SUTRA मॉडल में वायरस के व्यवहार को पहचानने वाले गुणों की कमी है; कुछ तथ्यों द्वारा यह स्पष्ट होता है कि कुछ लोग दूसरों की तुलना में वायरस के बड़े ट्रांसमीटर थे (घर से काम करने वाले व्यक्ति की तुलना में बार्बर (नाई) या रिसेप्शनिस्ट अधिक ट्रांसमीटर थे); इसके अतिरिक्त सामाजिक या भौगोलिक विषमता के लिये लेखांकन की कमी और उम्र के अनुसार जनसंख्या का स्तरीकरण नहीं करना इसके प्रमुख कारणों में शामिल है, क्योंकि  इसने विभिन्न आयु समूहों के बीच संपर्कों के लिये इसकी वैधता को कम नहीं किया था।
  •  परिवर्तन के कारणों की अनदेखी:
    • नए वेरिएंट SUTRA मॉडल में 'बीटा' (जो अनुमानित संपर्क दर) नामक मापदंडों के मूल्य में वृद्धि के रूप में दिखाई दिये।
    • जहाँ तक ​​मॉडल का संबंध है, इसकी पैरामीटर वैल्यू में परिवर्तन नज़र आ रहा है। यह इस बात की पुष्टि नहीं करता कि परिवर्तन के पीछे क्या कारण हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ब्रिटेन वर्चुअल सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के बीच एक वर्चुअल सम्मेलन आयोजित किया गया।

  • भारत ने ब्रिटेन को कोविड-19 की दूसरी गंभीर लहर के मद्देनज़र उसके द्वारा प्रदान की गई त्वरित चिकित्सा सहायता के लिये धन्यवाद दिया।

North-sea

प्रमुख बिंदु

रोडमैप 2030:

  • यह द्विपक्षीय संबंधों को एक "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाएगा।
  • यह स्वास्थ्य, जलवायु, व्यापार, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा रक्षा क्षेत्र में ब्रिटेन-भारत संबंधों के लिये एक रूपरेखा प्रदान करेगा।
    • यह वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी से निपटने में ब्रिटेन-भारत के बीच स्वास्थ्य साझेदारी का विस्तार करेगा।
    • इसमें महत्त्वपूर्ण दवाओं, टीकों और अन्य चिकित्सा उत्पादों को उन लोगों तक पहुँचाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूती प्रदान करना शामिल है, जिनकी उन्हें सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
    • दोनों देश मौज़ूदा वैक्सीन साझेदारी (Vaccines Partnership) को बढ़ाने पर सहमत हुए।

उन्नत व्यापार साझेदारी की शुरुआत:

  • यह बाज़ार के विशिष्ट क्षेत्रों में पहुँच को सुविधाजनक बनाने की परिकल्पना करता है। इसके अंतर्गत ब्रिटेन अपने मत्स्य पालन क्षेत्र को भारतीयों के लिये खोलने, नर्सों हेतु अधिक अवसरों की सुविधा प्रदान करने और एक सामाजिक सुरक्षा समझौते पर सहमत हुआ।
  • दूसरी ओर भारत ने ब्रिटिश फल उत्पादकों पर लगाये प्रतिबंध हटा दिये।
  • ये दोनों देश कानूनी सेवाओं में पारस्परिक सहयोग की दिशा में भी काम करेंगे।
  • भारत और ब्रिटेन ने एक अंतरिम व्यापार समझौते पर विचार करने सहित एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) पर बातचीत करने की घोषणा की।
  • वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया।

एक नए भारत-ब्रिटेन ‘वैश्विक नवाचार साझेदारी’ की घोषणा:

  • ब्रिटेन अनुसंधान और नवाचार सहयोग में भारत का दूसरा सबसे बड़ा भागीदार है।
  • इस साझेदारी का उद्देश्य चुनिंदा विकासशील देशों को समावेशी भारतीय नवाचारों का हस्तांतरण करने में आवश्यक सहयोग प्रदान करना है। इस दिशा में शुरुआत अफ्रीका से होगी।।

सुरक्षा और रक्षा:

  • समुद्री क्षेत्र में जागरूकता पर सहयोग:
    • इसमें समुद्री सूचना साझाकरण पर नए समझौते, गुड़गाँव में भारत के सूचना संलयन केंद्र (Information Fusion Centre)  में शामिल होने के लिये ब्रिटेन का निमंत्रण और एक महत्वाकांक्षी अभ्यास कार्यक्रम शामिल है, जिसमें संयुक्त त्रिपक्षीय अभ्यास शामिल हैं।
  • ब्रिटेन का कैरियर स्ट्राइक ग्रुप:
    • ब्रिटेन का कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (Carrier Strike Group) इस वर्ष के अंत में भारत का दौरा करेगा, जो भारतीय नौसेना और वायुसेना के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के लिये पश्चिमी हिंद महासागर में भविष्य के सहयोग को सक्षम करने हेतु संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास करेगा।
  • लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 2:
    • ब्रिटेन, भारत के स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क 2 (Light Combat Aircraft Mark 2) के विकास में सहायता करेगा।
  • संभावित सहयोग:
    • दोनों देशों ने अनुसंधान, क्षमता निर्माण, औद्योगिक सहयोग, रक्षा, अंतरिक्ष और साइबर जैसे क्षेत्रों में नए औद्योगिक सहयोग पर चर्चा की।

प्रवासन:

  • भारत और ब्रिटेन ने ‘प्रवासन एवं आवाजाही साझेदारी’ (Migration and Mobility Partnership) पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच विद्यार्थियों और कामगारों की आवाज़ाही के लिये और भी अधिक अवसर सुलभ कराना तथा अवैध आव्रजन को कम करना है।

जलवायु परिवर्तन:

  • दोनों देशों ने आगामी कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ COP-26 में एक महत्त्वाकांक्षी परिणाम सुनिश्चित करने के लिये एक साथ काम करने पर सहमत हुए और स्वच्छ ऊर्जा, परिवहन, नई तकनीक के विकास में तेज़ी लाने, प्रकृति और जैव विविधता की रक्षा तथा विकास में मदद करने सहित जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये ब्रिटेन-भारत साझेदारी का विस्तार किया।

द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास

आगे की राह

  • भारत 21वीं सदी की महाशक्ति बनाने की तरफ अग्रसर है। यह जल्द ही विश्व का सबसे प्रभावी देश बन जाएगा। यह वैश्विक दौड़ में नए भागीदारों की तलाश कर रहा है। ऐसे समय में ब्रिटेन के पास भारत के शिक्षा, अनुसंधान, नागरिक समाज और रचनात्मक क्षेत्र में सहयोग करके अपने रिश्ते को मज़बूत करने का उपयुक्त अवसर है।
  • हाल ही में यूरोपीय संघ से अलग हुए ब्रिटेन के वाणिज्यिक नुकसान की भरपाई भारत के कुशल श्रम, तकनीकी सहायता और व्यवसायिक बाज़ार कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2