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जैव विविधता और पर्यावरण

एशियाई शेरों की संख्या में वृद्धि

  • 11 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

‘एशियाई शेर’, कैनाइन डिस्टेंपर वायरस

मेन्स के लिये:

वन्य जीव संरक्षण, संरक्षण और विकास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात राज्य के वन विभाग के अनुसार, राज्य में गिर के जंगलों और सौराष्ट्र के अन्य कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले ‘एशियाई शेरों’ (Asiatic Lion) संख्या में वृद्धि दर्ज़ की गई है।  

प्रमुख बिंदु:

  • गुजरात वन विभाग द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में की गई गणना की तुलना में राज्य में एशियाई शेरों की संख्या में लगभग 29% वृद्धि हुई है। 
  • वन विभाग द्वारा नवीन जनगणना के अनुसार, वर्तमान में राज्य में एशियाई शेरों की कुल संख्या 674 बताई गई है, जबकि वर्ष 2015 में यह संख्या मात्र 523 ही थी।
  • वर्तमान में राज्य के कुल 674 एशियाई शेरों में 260 मादा, 161 नर, 45 नर उप-वयस्क, 49 मादा उप-वयस्क, 22 (अज्ञात लिंग) और 137 शावक हैं।
  • साथ ही इस दौरान राज्य में एशियाई शेरों के प्रवास क्षेत्रफल में भी 36% वृद्धि हुई है, वर्तमान में राज्य में एशियाई शेरों का प्रवास क्षेत्रफल वर्ष 2015 के 22,000 वर्ग किमी. से बढ़कर 30,000 वर्ग किमी. तक पहुँच गया है।
    • हालिया जनगणना में वर्ष 2015 में एशियाई शेरों के प्रवास के रूप में चिह्नित क्षेत्रों के अलावा राज्य के दो अन्य ज़िलों (सुरेंद्रनगर और मोरबी) को भी शामिल किया गया था।

एशियाई शेर (Asiatic lion):

  • एशियाई शेर का वैज्ञानिक नाम पैंथेरा लियो पर्सिका (Panthera Leo Persica) है।
  • ये मुख्यतः गिर के जंगलों और जूनागढ़, अमरेली तथा भावनगर ज़िलों में फैले कुछ अन्य संरक्षित क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • एशियाई शेर को ‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972’ के तहत अनुसूची-I में रखा गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) की रेड लिस्ट में एशियाई शेर को संकटग्रस्त (Endangered) श्रेणी में रखा गया है। 

जनगणना प्रक्रिया:

  • इस वर्ष राज्य में एशियाई शेरों की संख्या का अनुमान जनगणना से नहीं, बल्कि ‘पूनम अवलोकन (Poonam Avlokan) नामक एक निगरानी प्रक्रिया के माध्यम से लगाया गया था।
  • पूनम अवलोकन:
    • पूनम अवलोकन, शेरों की गणना के लिये प्रत्येक माह में पूर्णिमा (Full Moon) की तिथि को आयोजित किया जाने वाला एक कार्यक्रम है।

    • इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2014 में वन विभाग द्वारा वर्ष 2015 की ‘शेर जनगणना’ (Lion Census) की तैयारियों के तहत की गई थी।  
    • इसके तहत निर्धारित तिथि को वन विभाग के अधिकारी और क्षेत्रीय कर्मचारी 24 घंटे के दौरान अपने कार्यक्षेत्र में शेरों की संख्या और उनकी अवस्थिति के आँकड़े दर्ज़ करते हैं।

सामान्य शेर जनगणना और ‘पूनम अवलोकन’ में अंतर: 

  • पूनम अवलोकन की तुलना में सामान्य शेर जनगणना में अधिक कर्मचारी शामिल होते हैं, जो इस प्रक्रिया को ज़्यादा विश्वसनीय बनाती है।   
  • वर्ष 2015 की जनगणना में लगभग 2000 अधिकारी, विशेषज्ञ और स्वयं सेवकों ने भाग लिया था जबकि इस माह आयोजित पूनम अवलोकन में लगभग 1400 अधिकारियों और कुछ विशेषज्ञों को शामिल किया गया था।
  • सामान्यतः शेर जनगणना दो से अधिक दिनों तक चलती है, जिसके तहत एक प्राथमिक जनगणना (Primary  Census) और एक मुख्य/अंतिम जनगणना (Final Census) का कार्य पूरा किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया में ‘ब्लॉक गणना विधि’ (Block Counting Method) का प्रयोग किया जाता है, जिसके तहत जनगणना प्रगणक किसी दिए गए ब्लॉक में जल स्रोतों पर तैनात किये जाते हैं और ये प्रगणक उस ब्लॉक में 24 घंटे के दौरान जल स्रोतों पर देखे गए शेरों की गणना करते हैं।  
  • वहीं ‘पूनम अवलोकन’ की प्रक्रिया में सामान्यतः केवल वन विभाग के अधिकारी ही शामिल होते हैं और इसकी कार्यप्रणाली भी भिन्न है।
  • इसके तहत प्रगणक दल जल स्रोत पर स्थिर रहने की बजाय अपने निर्धारित क्षेत्र में चलता रहता है और इस दौरान ‘लायन  ट्रैकर्स’ (Lion Trackers) से प्राप्त इनपुट और देखे गए शेरों के आधार पर उनकी कुल संख्या का आकलन किया जाता है।   

शेरों की जनगणना की शुरुआत:

  • प्रथम शेर जनगणना वर्ष 1936 में जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब द्वारा कराई गई थी। 
  • वर्ष 1965 से वन विभाग नियमित रूप से हर पाँच वर्ष पर शेरों की जनगणना करता रहा है।
  • इससे पहले 6वीं, 8वीं और 11वीं जनगणना का आयोजन विभिन्न कारणों से एक वर्ष की देरी से हुआ था।       

जनगणना रद्द किये जाने का कारण:

  • हर पाँचवें वर्ष नियमित रूप से होने वाली यह जनगणना इस वर्ष देश में फैली COVID-19 महामारी के कारण निर्धारित तिथि पर नहीं आयोजित की जा सकी थी।
  • 25 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद वन विभाग के लगभग 1500 से अधिक वन रक्षक, रेंज वन अधिकारी और कुछ अन्य कर्मचारियों को लॉकडाउन को सही तरह से लागू कराने के लिये तैनात कर दिया गया था।

वर्ष 2020 की जनगणना का महत्त्व:

  • वर्ष 2015 की जनगणना में एशियाई शेरों की संख्या 411 (वर्ष 2010) से बढ़कर 523 तक पहुँच गई थी।
  • परंतु इस जनगणना के एक माह बाद ही अमरेली (गुजरात) में अचानक आई तीव्र बाढ़ में 12 शेरों की मृत्यु हो गई थी।
  • इसके बाद वर्ष 2018 में ‘कैनाइन डिस्टेंपर वायरस’ (Canine Distemper Virus-CDV) और ‘बबेसिओसिस’ (Babesiosis)  के प्रकोप के कारण 20 से अधिक शेरों की मृत्यु हो गई थी।
  • इस वर्ष के ग्रीष्मकाल में भी गिर के जंगलों में ‘बबेसिओसिस’ के प्रकोप की सूचनाएँ मिली थी और लगभग 23 एशियाई शेरों की मृत्यु हो गई थी।

एशियाई शेरों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण:

  • हाल के कुछ वर्षों में गिर के जंगलों में एशियाई शेरों की आबादी में लगातार वृद्धि देखी गई है।
  • वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, एशियाई शेरों के संरक्षण के लिये विभाग द्वारा तकनीकी के प्रयोग और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रयासों के माध्यम से प्रवास प्रबंधन, शिकार और भोजन की व्यवस्था तथा मानव-पशु संघर्ष को कम किया गया है।
  • साथ ही ‘कैनाइन डिस्टेंपर वायरस’ से निपटने के लिये वैक्सीन का आयात भी किया गया था।    
  • वर्ष 2018 में ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) द्वारा ‘एशियाई शेर संरक्षण परियोजना’ (Asiatic Lion Conservation Project) की शुरुआअत की गई थी।  

आगे की राह:

  • हाल के वर्षों में प्राकृतिक और मानव-पशु संघर्षों के कारण एशियाई शेरों की असमय मृत्यु की कई घटनाओं के बीच उनकी आबादी में वृद्धि, सरकार द्वारा चलाए जा रहे संरक्षण के प्रयासों के लिये एक बड़ी उपलब्धि है। 
  • अधिकांश वन्य जीवों की असमय मृत्यु का प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं, ऐसे में सरकार द्वारा वन्य जीवों के प्रवास के संरक्षण के साथ मानव-पशु संघर्षों को कम करने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये। 
  • साथ ही हाल के वर्षों में वन्य जीवों में अज्ञात संक्रामक रोगों के बढ़ते मामलों को देखते हुए देश में इसके उपचार के प्रबंध और शोध पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।  

स्रोत:  द इंडियन एक्सप्रेस

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