अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ताइवान में चीन की कार्यवाही और अमेरिका
- 30 Jan 2021
- 9 min read
चर्चा में क्यों?
ताइवान के ‘एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन’ (ADIZ) में चीन के युद्धक विमानों के प्रवेश करने की घटना के बाद अमेरिका ने ताइवान को अपने समर्थन की पुष्टि की है।
- ताइवान के क्षेत्र में प्रवेश करने संबंधी चीन की यह कार्यवाही चीन द्वारा वर्तमान में ताइवान की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से प्रेरित है, ताकि ताइवान स्वयं को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार कर ले।
प्रमुख बिंदु
चीन-ताइवान संघर्ष की पृष्ठभूमि
- वर्ष 1949 में हुए गृह युद्ध के दौरान चीन और ताइवान अलग हो गए, हालाँकि इसके बावजूद चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी तरह से उस पर नियंत्रण प्राप्त करने का इच्छुक है।
- वहीं ताइवान के नेताओं का कहना है कि ताइवान एक संप्रभु राज्य है।
- दशकों की तनावपूर्ण स्थिति के बाद 1980 के दशक में चीन और ताइवान के बीच संबंधों में सुधार की शुरुआत हुई, चीन ने ‘एक देश, दो प्रणाली’ के रूप में एक सूत्र प्रस्तुत किया, जिसके तहत ताइवान यदि चीन के साथ पुन: एकीकरण को स्वीकार करता है, तो उसे स्वायत्तता दी जाएगी।
- ताइवान ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, हालाँकि ताइवान सरकार ने चीन की यात्रा करने और वहाँ निवेश संबंधी नियमों में ढील दे दी।
- इस दौरान दोनों पक्षों के बीच अनौपचारिक वार्ता का दौर भी शुरू हुआ, हालाँकि चीन का कहना था कि ताइवान की रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट वार्ता को अवैध रूप से रोक रही है।
- वर्ष 2020 में हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन को कई लोग इस तथ्य के संकेत के रूप में भी देख रहे हैं कि चीन इस क्षेत्र में काफी अधिक मुखर हो रहा है।
चीन-ताइवान संघर्ष में अमेरिका
- चीन की सरकार ने वर्ष 2005 में एक एंटी-ससेशन कानून पारित किया था, जिसके तहत मेनलैंड चाइना से ताइवान के स्थायी अलगाव को रोकने के लिये गैर-शांतिपूर्ण साधनों को लागू करने की स्थितियाँ प्रदान की गई हैं।
- यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो ताइवान संबंध अधिनियम (TRA) 1979 के हिस्से के रूप में अमेरिका ताइवान की सहायता के लिये प्रतिबद्ध है।
- इस प्रकार ताइवान में चीन की हालिया कार्यवाही और अमेरिका द्वारा उसका विरोध दोनों देशों द्वारा ताइवान को लेकर अपनाई गई विरोधाभासी नीति का परिणाम है।
अमेरिका का पक्ष
- अमेरिका ने ताइवान समेत अपने पड़ोसियों को भयभीत करने की चीन की नीति की कड़ी आलोचना की है।
- अमेरिका ने चीन से ताइवान के विरुद्ध अपने सैन्य, राजनयिक और आर्थिक दबाव को रोकने और ताइवान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के साथ सार्थक बातचीत में संलग्न होने का आग्रह किया है।
चीन की चिंताएँ
- ताइवान को अमेरिका का सामरिक और रक्षा समर्थन
- ताइवान अमेरिकी हथियारों की खरीद के माध्यम से अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें उन्नत F-16 फाइटर जेट, सशस्त्र ड्रोन, रॉकेट सिस्टम और हार्पून मिसाइल आदि शामिल हैं।
- ताइवान सरकार ने अपने स्वदेशी हथियार उद्योग के लिये अमेरिका के समर्थन को भी बढ़ावा दिया है, जिसमें चीन की बढ़ती नौसेना क्षमताओं का मुकाबला करने को नई पनडुब्बियों के निर्माण हेतु एक कार्यक्रम शुरू करना भी शामिल है।
- आसपास के क्षेत्रों में अमेरिका की उपस्थिति
- युद्धपोत थियोडोर रूज़वेल्ट के नेतृत्त्व में एक अमेरिकी विमान वाहक समूह ने दक्षिण चीन सागर में प्रवेश किया है, ताकि समुद्री स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके और समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये साझेदारी का निर्माण किया जा सके।
- ‘वन चाइना पाॅलिसी’ के समक्ष चुनौती
- चीन की ‘वन चाइना पाॅलिसी’ का अर्थ है कि जो देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ से कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (ताइवान) के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
- कुछ देशों के ताइवान के साथ मौजूदा राजनयिक संबंध और विभिन्न अंतर-सरकारी संगठनों में इसकी सदस्यता चीन की नीति को चुनौती देती है:
- रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान के कुल 15 देशों के साथ राजनयिक संबंध हैं और इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के देशों, जापान और न्यूज़ीलैंड जैसे कई अन्य देशों के साथ भी इसके अनौपचारिक संबंध हैं।
- इसके अलावा ताइवान के पास 38 अंतर-सरकारी संगठनों और उनके सहायक निकायों की पूर्ण सदस्यता है, जिसमें विश्व व्यापार संगठन (WTO), एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) और एशियाई विकास बैंक (ADB) शामिल हैं।
- भारत का पक्ष
- वर्ष 1949 से ही भारत ने ‘वन चाइना’ नीति को मान्यता दी है, इस तरह भारत ताइवान और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार करता है।
- भारत इस नीति का उपयोग अपने सामरिक हितों को साधने के उद्देश्य से करता है, इस तरह यदि भारत ‘वन चाइना’ नीति में विश्वास करता है तो चीन को भी ‘वन इंडिया’ नीति में विश्वास करना चाहिये।
- यद्यपि भारत ने वर्ष 2010 के बाद से संयुक्त बयानों और आधिकारिक दस्तावेज़ों में ‘वन चाइना’ नीति के पालन का उल्लेख करना बंद कर दिया है, किंतु चीन के साथ संबंधों के कारण भारत अभी तक ताइवान के साथ औपचारिक संबंध स्थापित नहीं कर पाया है।
- वर्ष 1995 के बाद से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय खोल रखे हैं जो वास्तव में दूतावास के रूप में कार्य करते हैं।
ताइवान
- तकरीबन 23 मिलियन लोगों की आबादी वाला रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान चीन के दक्षिणी तट के पास स्थित द्वीप है, जिसे वर्ष 1949 के बाद से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से स्वतंत्र एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा शासित किया जा रहा है।
- इसके पश्चिम में चीन (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना), उत्तर पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस स्थित है।
- ताइवान सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है और संयुक्त राष्ट्र के बाहर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है।
- ताइवान एशिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- यह चिप निर्माण में एक वैश्विक प्रतिनिधि और आईटी हार्डवेयर आदि का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है।